एडिटोरियल (03 Sep, 2025)



आत्मनिर्भर सेमीकंडक्टर पारिस्थितिकी तंत्र

यह एडिटोरियल 03/09/2025 को द फाइनेंशियल एक्सप्रेस में प्रकाशित More wafer work पर आधारित है। इस लेख में भारत के सेमीकंडक्टर क्षेत्र में बढ़ते कदम को सामने लाया गया है, जिसमें CG सेमी इस वर्ष पहला मेड-इन-इंडिया चिप लॉन्च करने जा रही है। साथ ही यह तथ्य रेखांकित किया गया है कि जहाँ चीन में 44 और अमेरिका में 15 फैब निर्माणाधीन हैं, वहीं भारत में केवल एक ही फैब बन रही है। ऐसे में भारत को प्रशासनिक बाधाओं को कम कर अपनी गति तीव्र करने की आवश्यकता है ताकि वह ट्रिलियन-डॉलर के चिप मार्केट में अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित कर सके। 

प्रिलिम्स के लिये: भारत का सेमीकंडक्टर मिशन, उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI), डिज़ाइन से जुड़े प्रोत्साहन (DLI), 'विक्रम' 32-बिट माइक्रोप्रोसेसर, चिप टू स्टार्टअप (C2S) कार्यक्रम‘चिप 4’ गठबंधन 

मेन्स के लिये: भारत के सेमीकंडक्टर क्षेत्र में हालिया प्रगति, भारत के सेमीकंडक्टर क्षेत्र से जुड़े प्रमुख मुद्दे  

    भारत की सेमीकंडक्टर यात्रा को गति तब मिली जब CG सेमी कंपनी ने वर्ष के अंत तक पहली मेड-इन-इंडिया चिप की घोषणा की, जिसके बाद कैबिनेट ने चार नई सेमीकंडक्टर परियोजनाओं को स्वीकृति दी। भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक ट्रिलियन डॉलर के वैश्विक चिप बाज़ार के 8-10% हिस्से पर कब्ज़ा करना है। हालाँकि, देश को निर्माण क्षमताओं को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जहाँ चीन में 44 और अमेरिका में 15 मेगा फैब की तुलना में केवल एक मेगा फैब निर्माणाधीन है। जैसा कि भारतीय प्रधानमंत्री ने ज़ोर दिया, भारत को अब एक देर से प्रवेश करने वाले से एक प्रतिस्पर्धी सेमीकंडक्टर पावरहाउस में बदलने के लिये "लेस पेपर वर्क एंड मोर वेफर वर्क" की आवश्यकता है। 

    भारत के सेमीकंडक्टर क्षेत्र में हालिया प्रगति क्या हैं? 

    • मेड-इन-इंडिया चिप उत्पादन: CG सेमी द्वारा 2025 के अंत तक अपनी पहली "मेड-इन-इंडिया" चिप के उत्पादन की घोषणा के साथ, भारत सेमीकंडक्टर निर्माण में महत्त्वपूर्ण प्रगति कर रहा है। 
      • यह विकास एक महत्त्वपूर्ण क्षण है क्योंकि भारत वैश्विक सेमीकंडक्टर क्षेत्र में एक उपभोक्ता से एक निर्माता के रूप में परिवर्तित हो रहा है। 
      • भारतीय प्रधानमंत्री ने ज़ोर देकर कहा कि "तेल काला सोना है। लेकिन चिप्स डिजिटल हीरा है।" 
        • CG पावर की ₹7,600 करोड़ की आउटसोर्स्ड सेमीकंडक्टर असेंबली एंड टेस्ट (OSAT) सुविधा और निर्माणाधीन कई सेमीकंडक्टर फैब जैसे बड़े निवेशों के साथ, यह चिप एक लंबे समय से प्रतीक्षित प्रगति का प्रतीक है। 
    • सरकारी प्रोत्साहन और रणनीतिक नीतियाँ: भारत सेमीकंडक्टर मिशन (ISM) के माध्यम से भारत सरकार की सक्रिय भूमिका ने देश की सेमीकंडक्टर महत्त्वाकांक्षाओं को गति प्रदान की है। 
      • उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) और डिज़ाइन से जुड़े प्रोत्साहन (DLI) में ₹76,000 करोड़ की पेशकश करके, भारत तेज़ी से वैश्विक चिप निर्माताओं का केंद्र बन रहा है। 
      • मोहाली लैब अपग्रेड और कौशल विकास पहल जैसे सेमीकंडक्टर-संबंधित बुनियादी अवसंरचना के लिये ₹7.1 बिलियन की प्रतिबद्धता के माध्यम से सरकार का दृष्टिकोण स्पष्ट है। 
    • कार्यबल विकास और प्रतिभा पूल विस्तार: चूँकि भारत का लक्ष्य 2030 तक 500,000 सेमीकंडक्टर पेशेवरों की अनुमानित माँग को पूरा करना है, कार्यबल विकास उसकी सेमीकंडक्टर रणनीति का एक केंद्रीय स्तंभ है। 
      • 'सेमीकॉनइंडिया फ्यूचर स्किल्स टैलेंट कमेटी रिपोर्ट' के अनुसार, वर्ष 2022 में भारत में लगभग 1.25 लाख सेमीकंडक्टर डिज़ाइन इंजीनियर कार्यरत थे। 
      • सरकार, शिक्षा जगत और उद्योग के बीच सहयोग से बेंगलुरु और नोएडा जैसे प्रमुख सेमीकंडक्टर केंद्रों में विशेष प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना हुई है। 
        • चिप डिज़ाइन और निर्माण में भारत की वृद्धि को बनाए रखने के लिये यह प्रतिभा पाइपलाइन महत्त्वपूर्ण है। 
    • रणनीतिक वैश्विक साझेदारियाँ और सहयोग: वैश्विक दिग्गजों के साथ रणनीतिक सहयोग से भारत की सेमीकंडक्टर महत्त्वाकांक्षाएँ तेज़ी से बढ़ रही हैं। 
      • प्रमुख साझेदारियों में टाटा और ताइवान की पावरचिप सेमीकंडक्टर के संयुक्त उद्यम और माइक्रोन तथा गुजरात सरकार के बीच 2.75 अरब डॉलर की OST सुविधा के लिये सहयोग शामिल हैं। 
      • ये साझेदारियाँ न केवल महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी हस्तांतरण लाती हैं, बल्कि भारत को वैश्विक सेमीकंडक्टर दिग्गजों के साथ जोड़ती हैं, जिससे यह वैश्विक आपूर्ति शृंखला में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित होता है। 
    • उन्नत सेमीकंडक्टर प्रौद्योगिकियों में परिवर्तन: भारत सिलिकॉन कार्बाइड (SiC) और 3D ग्लास पैकेजिंग जैसी उन्नत सेमीकंडक्टर प्रौद्योगिकियों को तेज़ी से अपना रहा है, जो रक्षा, ऑटोमोटिव और AI जैसे क्षेत्रों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। 
      • ये नवाचार भारत को अगली पीढ़ी की सेमीकंडक्टर क्षमताओं, विशेष रूप से पावर इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रिक वाहनों को, अग्रणी स्थान पर ला रहे हैं। 
      • इन प्रौद्योगिकियों पर सरकार का ध्यान ओडिशा में पहले वाणिज्यिक SiC फ़ैक्टरी की स्थापना से स्पष्ट है, जो विविध अनुप्रयोगों के लिये उच्च-प्रदर्शन चिप्स का उत्पादन करने के लिये तैयार है। 
    • बुनियादी अवसंरचना विकास और राज्य-स्तरीय पहल: भारत के सेमीकंडक्टर पारिस्थितिकी तंत्र को महत्त्वपूर्ण बुनियादी अवसंरचना के विकास द्वारा समर्थित किया जा रहा है, जिसमें समर्पित सेमीकंडक्टर पार्क और वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं से बेहतर कनेक्टिविटी शामिल है। 
      • गुजरात और उत्तर प्रदेश में प्लग-एंड-प्ले सुविधाओं की शुरुआत, सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन के लिये एक सक्षम वातावरण बनाने के भारत के प्रयासों को दर्शाती है। 
      • ये राज्य-नेतृत्व वाली पहल अधिक विदेशी निवेश आकर्षित करने और यह सुनिश्चित करने के लिये अभिन्न हैं कि डिज़ाइन से लेकर निर्माण तक पूरी आपूर्ति शृंखला स्थानीयकृत हो। 
    • घरेलू बाज़ार में बढ़ती माँग: भारत में सेमीकंडक्टर उपकरणों, विशेष रूप से स्मार्टफ़ोन, इलेक्ट्रिक वाहनों और दूरसंचार में बढ़ती माँग, स्थानीय चिप उत्पादन को राष्ट्रीय अनिवार्यता बनाती है। 
      • चूँकि भारत के वर्तमान 770 मिलियन से 2026 तक 1 बिलियन स्मार्टफोन तक पहुँचने की उम्मीद है, सेमीकंडक्टर बाज़ार का उल्लेखनीय रूप से विस्तार होने वाला है। 
        • आयात पर निर्भरता कम करने और घरेलू स्तर पर चिप्स का निर्माण करने के भारत सरकार के प्रयास देश की डिजिटल और रक्षा रणनीतियों के साथ तेज़ी से संरेखित हो रहे हैं। 
      • देश का पहला पूर्णतः स्वदेशी 32-बिट माइक्रोप्रोसेसर, 'विक्रम', इसरो के विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र द्वारा एससीएल, चंडीगढ़ के सहयोग से डिज़ाइन और विकसित किया गया है।

    भारत के सेमीकंडक्टर क्षेत्र से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं? 

    • उन्नत निर्माण सुविधाओं का अभाव: भारत की सेमीकंडक्टर महत्त्वाकांक्षाओं के सामने एक प्रमुख चुनौती उच्च-स्तरीय चिप्स का उत्पादन करने वाले उन्नत निर्माण संयंत्रों (फैब्स) का अभाव है। 
      • सरकार द्वारा बड़े निवेश और प्रोत्साहनों के बावजूद, भारत में अभी भी अत्याधुनिक सेमीकंडक्टर उत्पादन के लिये बुनियादी अवसंरचना का अभाव (खासकर 28nm से छोटे नोड्स में) है। 
      • वैश्विक सेमीकंडक्टर बाज़ार, जो तेज़ी से उन्नत 5nm और 3nm चिप्स पर निर्भर हो रहा है, उच्च तकनीक वाले फैब्स में महत्त्वपूर्ण निवेश की मांग करता है, जिसे भारत अभी तक पूरी तरह से विकसित नहीं कर पाया है। 
      • वर्ष 2025 तक, भारत में केवल एक मेगा फैब निर्माणाधीन है, जबकि चीन जैसे देशों में 44 फैब और अमेरिका में 15 फैब हैं। 
        • ISM के तहत आवंटित ₹76,000 करोड़ के बावजूद, भारत के वर्तमान फैब उन्नत-नोड चिप्स के बजाय केवल परिपक्व नोड्स को लक्षित करते हैं, जिससे उन्नत सेमीकंडक्टर बाज़ारों में इसकी प्रतिस्पर्द्धात्मकता सीमित हो जाती है। 
    • प्रतिभा की कमी और कौशल अंतराल: भारत का सेमीकंडक्टर क्षेत्र गंभीर रूप से कौशल अंतराल का सामना कर रहा है। हालाँकि सरकार का लक्ष्य चिप टू स्टार्टअप (C2S) कार्यक्रम के माध्यम से 85,000 पेशेवरों को प्रशिक्षित करना है, एक हालिया अध्ययन में वर्ष 2027 तक 2,50,000-3,00,000 सेमीकंडक्टर पेशेवरों की कमी का अनुमान लगाया गया है। 
      • उन्नत चिप डिज़ाइन, 3D पैकेजिंग और AI-सक्षम सेमीकंडक्टर जैसे क्षेत्रों में अत्यधिक विशिष्ट प्रतिभाओं की आवश्यकता अभी भी पूरी नहीं हुई है, जिससे इस क्षेत्र के विकास में बाधा आ रही है। 
    • आयातित उपकरणों और सामग्रियों पर निर्भरता: भारत का सेमीकंडक्टर क्षेत्र आयातित उपकरणों और विशिष्ट गैसों और रसायनों जैसे कच्चे माल पर अत्यधिक निर्भर है। 
      • यह निर्भरता भारत को आपूर्ति शृंखला में व्यवधान के जोखिम में डालती है, जैसा कि कोविड-19 महामारी के दौरान देखा गया है। 
      • आपूर्ति शृंखला के कुछ हिस्सों को स्थानीय बनाने के प्रयासों के बावजूद, भारत अभी भी सेमीकंडक्टर उत्पादन के लिये आवश्यक सामग्रियों का एक बड़ा प्रतिशत आयात करता है, जिससे स्थानीय कारखानों की प्रतिस्पर्द्धात्मकता सीमित हो जाती है और लागत बढ़ जाती है। 
        • वित्त वर्ष 2023-24 में, इसके सेमीकंडक्टर आयात में 18.5% की वृद्धि हुई। वर्तमान में, भारत अपने सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स घटकों का लगभग 90-95% आयात करता है, जिसके प्रमुख आपूर्तिकर्त्ता चीन, मलेशिया, ताइवान, थाईलैंड और सिंगापुर हैं। 
    • भू-राजनीतिक जोखिम और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा: भारत का सेमीकंडक्टर क्षेत्र बढ़ती भू-राजनीतिक चुनौतियों का सामना कर रहा है, खासकर ऐसे वैश्विक परिवेश में जहाँ चिप आपूर्ति शृंखलाओं को हथियार बनाया जा रहा है।
      • अमेरिका, चीन और ताइवान के बीच चल रहे तनाव और चिप प्रौद्योगिकी पर व्यापार प्रतिबंधों के कारण भारत वैश्विक राजनीतिक बदलावों के प्रति संवेदनशील हो गया है। 
      • अमेरिका के नेतृत्व वाले ‘चिप 4’ गठबंधन का उद्देश्य एक चीन-मुक्त आपूर्ति शृंखला का निर्माण करना है, जो भारत को एक वैकल्पिक केंद्र के रूप में अवसर प्रदान करता है, लेकिन अगर वह चूक जाता है तो उसे तकनीकी अस्वीकृति के जोखिमों का भी सामना करना पड़ सकता है। 
    • परियोजना कार्यान्वयन की धीमी गति: सरकार की बड़ी वित्तीय प्रतिबद्धताओं के बावजूद, भारत में सेमीकंडक्टर परियोजनाओं के कार्यान्वयन की गति धीमी बनी हुई है। 
      • अनुमोदन, बुनियादी अवसंरचना के विकास और परियोजना समय-सीमा में देरी भारत को उतनी तेज़ी से सेमीकंडक्टर क्षेत्र में महाशक्ति बनने से रोक रही है जितनी उसे चाहिये। 
      • ये देरी इसलिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारत चिप्स की बढ़ती वैश्विक माँग, विशेष रूप से इलेक्ट्रिक वाहनों, स्मार्टफ़ोन और AI जैसे क्षेत्रों में, का लाभ उठाना चाहता है। 
      • वर्ष 2025 तक, भारत ने ISM के तहत केवल 10 सेमीकंडक्टर परियोजनाओं को मंज़ूरी दी है, जिनमें से कई अभी भी योजना के चरण में हैं। 
        • 19.5 अरब डॉलर का वेदांता-फॉक्सकॉन चिप प्रोजेक्ट 2023 में ध्वस्त हो गया, जब फॉक्सकॉन ने तकनीकी साझेदार और अन्य चुनौतियों के कारण पीछे हटने का निर्णय लिया, जिससे भारत की सेमीकंडक्टर महत्वाकांक्षाएँ प्रभावित हुई। 
    • फ्रंट-एंड विनिर्माण पर सीमित ध्यान: भारत का सेमीकंडक्टर उद्योग वर्तमान में असेंबली, परीक्षण, मार्किंग और पैकेजिंग (ATMP) जैसी बैक-एंड प्रक्रियाओं की ओर अधिक केंद्रित है, जबकि फ्रंट-एंड विनिर्माण (फैब्रिकेशन) में सीमित प्रगति हुई है। 
      • हालाँकि OSAT परियोजनाएँ बढ़ रही हैं, लेकिन वास्तविक चिप्स के उत्पादन के लिये फ्रंट-एंड फैब्रिकेशन प्लांट्स की कमी वैश्विक सेमीकंडक्टर मूल्य शृंखला में भारत की भूमिका को सीमित कर रही है। 
        • यह अंतर भारत को निम्न मूल्य-वर्द्धित गतिविधियों में एक हितधारक बनाता है और कोर चिप उत्पादन के लिये इसे विदेशी हितधारकों पर निर्भर रखता है। 
      • हालाँकि देश में विश्व के 20% से अधिक चिप डिज़ाइन इंजीनियरों का एक मज़बूत पूल है, लेकिन अधिक पूँजी-गहन और मूल्य-वर्धित निर्माण चरण में इसकी उपस्थिति अभी भी कम है। 
    • अनुसंधान और विकास (R&D) पर अपर्याप्त ध्यान: हालाँकि भारत ने सेमीकंडक्टर निर्माण में प्रगति की है, लेकिन सेमीकंडक्टर अनुसंधान और विकास में गिरावट आई है। 
      • चिप डिज़ाइन और क्वांटम कंप्यूटिंग और AI चिप्स जैसी उन्नत सेमीकंडक्टर तकनीकों में स्वदेशी नवाचार की कमी एक बड़ी बाधा है। 
        • R&D पर अधिक ध्यान दिये बिना, भारत के पीछे छूट जाने का खतरा है क्योंकि वैश्विक बाज़ार अधिक विशिष्ट और जटिल सेमीकंडक्टर तकनीकों की ओर बढ़ रहा है। 
    • बुनियादी अवसंरचना और कनेक्टिविटी चुनौतियाँ: हालाँकि सरकार द्वारा सेमीकंडक्टर पार्क और अन्य बुनियादी अवसंरचना का विकास किया जा रहा है, फिर भी भारत को विनिर्माण केंद्रों, अनुसंधान केंद्रों और वैश्विक बाज़ारों के बीच आवश्यक संपर्क बनाने में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। 
      • कुछ क्षेत्रों में, विशेष रूप से राज्य-स्तरीय पार्कों के विकास में, अपर्याप्त रसद और परिवहन बुनियादी अवसंरचना, सेमीकंडक्टर विनिर्माण के विस्तार में देरी कर सकता है और एक विनिर्माण केंद्र के रूप में भारत के विकास में बाधा डाल सकता है। 
      • हालाँकि उत्तर प्रदेश जैसे राज्य समर्पित सेमीकंडक्टर पार्क विकसित कर रहे हैं, लेकिन इन क्षेत्रों में सामग्री और वस्तुओं की कुशल आवाजाही के लिये पर्याप्त बुनियादी अवसंरचना का अभाव है। 
        • इसके विपरीत, ताइवान और दक्षिण कोरिया में सेमीकंडक्टर केंद्र पहले से ही निर्बाध रसद और आपूर्ति शृंखला प्रणालियों से अच्छी तरह जुड़े हुए हैं। 
    • पर्यावरणीय चिंताएँ और स्थिरता: सेमीकंडक्टर उद्योग संसाधन-प्रधान है, जिसके लिये महत्त्वपूर्ण ऊर्जा और पानी की खपत की आवश्यकता होती है, साथ ही संभावित पर्यावरणीय जोखिम भी उत्पन्न होते हैं। 
      • प्रति माह 40,000 वेफर्स का उत्पादन करने वाला एक बड़ा सेमीकंडक्टर संयंत्र प्रतिदिन 4.8 मिलियन गैलन पानी की खपत करता है। 
      • इसके अलावा, भारत की सेमीकंडक्टर योजनाओं में अभी तक उत्पादन प्रक्रियाओं से उत्पन्न पर्यावरणीय चुनौतियों, जैसे अपशिष्ट प्रबंधन और सेमीकंडक्टर फैब के कार्बन फ़ुटप्रिंट, का पूरी तरह से समाधान नहीं किया गया है। 

    सेमीकंडक्टर क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है? 

    • अनुसंधान एवं विकास और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करना: वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिये, भारत को सेमीकंडक्टर अनुसंधान एवं विकास में अपने निवेश को उल्लेखनीय रूप से बढ़ाना होगा। 
      • क्वांटम कंप्यूटिंग, एआई और 3D पैकेजिंग जैसी उन्नत चिप तकनीकों के लिये समर्पित अनुसंधान एवं विकास केंद्र स्थापित करके, भारत उभरते क्षेत्रों में नवाचार का नेतृत्व कर सकता है। 
      • शिक्षा जगत, उद्योग और सरकार समर्थित अनुसंधान संस्थानों के बीच साझेदारी को मज़बूत करके एक मज़बूत नवाचार पाइपलाइन बनाई जा सकती है, जिससे वैश्विक नेताओं के साथ तकनीकी अंतर को कम में मदद मिलेगी। 
        • सेमीकंडक्टर अनुसंधान एवं विकास पर केंद्रित स्टार्टअप्स के लिये लक्षित अनुदान घरेलू नवाचारों को और प्रोत्साहित कर सकते हैं। 
    • प्रतिभा विकास और कौशल उन्नयन में तेज़ी: भारत को मज़बूत शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से सेमीकंडक्टर उद्योग में महत्त्वपूर्ण कौशल अंतर  को दूर करना होगा। 
      • एक राष्ट्रव्यापी कौशल विकास पहल को चिप डिज़ाइन, नैनो-निर्माण और सेमीकंडक्टर सामग्री विज्ञान जैसे उच्च-तकनीकी क्षेत्रों पर केंद्रित होना चाहिये। 
      • तकनीकी कंपनियों, विश्वविद्यालयों और व्यावसायिक संस्थानों के बीच सहयोग से विशिष्ट पाठ्यक्रम और व्यावहारिक प्रशिक्षण केंद्र बनाए जा सकते हैं। 
        • इसके अतिरिक्त, सब्सिडी या छात्रवृत्ति के माध्यम से उन्नत सेमीकंडक्टर-संबंधित पाठ्यक्रमों को करने के लिये पेशेवरों को प्रोत्साहित करने से एक स्थायी प्रतिभा पूल बनाने में मदद मिलेगी। 
    • फैब्रिकेशन प्लांट्स में निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा देना: भारत को लक्षित वित्तीय प्रोत्साहनों और सुव्यवस्थित नियामक प्रक्रियाओं के माध्यम से निजी कंपनियों को उन्नत सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन प्लांट्स (फैब्स) स्थापित करने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये। 
      • पर्याप्त रूप से कर में छूट प्रदान करके और नियामक अनुमोदनों की समय-सीमा को कम करके, भारत विदेशी और घरेलू निवेशकों के लिये फैब्रिकेशन इकाइयों के निर्माण और विस्तार के लिये एक अधिक आकर्षक वातावरण का निर्माण किया जा सकता है। 
      • दीर्घकालिक नीति स्थिरता और पारदर्शी प्रोत्साहन संरचना सुनिश्चित करने से निवेशक जोखिम कम होगा और भारत की सेमीकंडक्टर विनिर्माण क्षमताओं में वैश्विक विश्वास बढ़ेगा। 
    • सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखला क्लस्टर का निर्माण: भारत को एक व्यापक सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखला पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है जिसमें कच्चे माल के आपूर्तिकर्त्ता, घटक निर्माता और परीक्षण सुविधाएँ शामिल हों। 
      • एक सेमीकंडक्टर "सुपर क्लस्टर" स्थापित किया जा सकता है, जिसमें रणनीतिक स्थान परिवहन, बिजली और कुशल श्रम सहित सभी आवश्यक बुनियादी अवसंरचना प्रदान करते हैं। 
      • यह समग्र दृष्टिकोण न केवल सेमीकंडक्टर फैब्स का समर्थन करेगा, बल्कि मूल्य शृंखला में विभिन्न खिलाड़ियों के बीच सहयोग को भी बढ़ावा देगा, जिससे भारत सेमीकंडक्टर उत्पादन और निर्यात के लिये एक प्रतिस्पर्द्धा केंद्र बन जाएगा। 
    • पर्यावरणीय नियमों और संवहनीयता प्रथाओं को सुदृढ़ बनाना: सेमीकंडक्टर निर्माण की उच्च संसाधन गहनता को देखते हुए, भारत को सेमीकंडक्टर उद्योग के लिये कड़े पर्यावरणीय नियम अपनाने चाहिये। 
      • यह सुनिश्चित करना कि फैब हरित भवन मानकों का पालन करना, जल और ऊर्जा संरक्षण उपायों को लागू करना तथा सतत् कच्चे माल का उपयोग करना, इस क्षेत्र की वैश्विक प्रतिष्ठा को बढ़ाएगा। 
      • सेमीकंडक्टर परियोजनाओं के लिये पर्यावरण-प्रमाणन शुरू करना और कंपनियों को चक्रीय अर्थव्यवस्था प्रथाओं को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना पर्यावरणीय प्रभाव को कम कर सकता है और साथ ही हरित निवेश को भी आकर्षित कर सकता है। 
    • वैश्विक सेमीकंडक्टर नेताओं के साथ रणनीतिक गठबंधन बनाना: भारत को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, आपूर्ति शृंखला एकीकरण और रणनीतिक बाज़ार पहुँच सुनिश्चित करने के लिये वैश्विक सेमीकंडक्टर हितधारकों के साथ सहयोग को गहरा करना चाहिये। 
      • ताइवान, अमेरिका और जापान की अग्रणी सेमीकंडक्टर कंपनियों के साथ संयुक्त उद्यम बनाने से ज्ञान का आदान-प्रदान, विशेष रूप से उन्नत विनिर्माण प्रौद्योगिकियों में, सुगम हो सकता है। 
      • ये साझेदारियाँ भारत को डिज़ाइन और निर्माण प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों तक पहुँच सुनिश्चित करने में भी मदद कर सकती हैं, जिससे देश वैश्विक सेमीकंडक्टर पारिस्थितिकी तंत्र में एक प्रमुख हितधारक के रूप में स्थापित हो सकता है। 
    • तीव्र अनुमोदन हेतु नीतिगत ढाँचे में सुधार: सेमीकंडक्टर क्षेत्र के विकास में तेज़ी लाने के लिये, भारत को अपनी नीति और नियामक ढाँचों को सुव्यवस्थित तथा परियोजना शुरू होने में देरी करने वाली नौकरशाही बाधाओं को दूर करना होगा। 
      • सेमीकंडक्टर निवेश के लिये एक समर्पित वन-स्टॉप-शॉप नई फैब और संबंधित बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं के लिये अनुमोदन प्रक्रिया में तेज़ी लाने में मदद कर सकता है। 
      • कागजी कार्रवाई को कम करने, तेज़ी से ज़मीन मंज़ूरी प्रदान करने तथा अधिक लचीले ज़ोनिंग कानूनों की पेशकश से सेमीकंडक्टर विकास का एक तेज़ और अधिक गतिशील वातावरण तैयार होगा। 
    • फैबलेस सेमीकंडक्टर स्टार्टअप्स को बढ़ावा देना: भारत को फैबलेस सेमीकंडक्टर कंपनियों के विकास का सक्रिय रूप से समर्थन करना चाहिये, जो चिप्स डिज़ाइन करने पर ध्यान केंद्रित करती हैं। 
      • डिज़ाइन-लिंक्ड इंसेंटिव (DLI) और उद्यम पूंजी तक आसान पहुँच प्रदान करके, भारत सेमीकंडक्टर स्टार्टअप्स के पारिस्थितिकी तंत्र को प्रोत्साहित कर सकता है। 
      • ऑटोमोटिव, दूरसंचार और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे उद्योगों के लिये इनोवेटिव चिप्स बनाने के लिये इन कंपनियों को प्रोत्साहित करने से भारत की सेमीकंडक्टर पेशकशों में विविधता आएगी और विदेशी चिप डिज़ाइनों पर निर्भरता कम होगी। 
    • डिजिटल इंडिया पहल के साथ सेमीकंडक्टर विनिर्माण को एकीकृत करना: भारत को अपने बढ़ते डिजिटल बुनियादी अवसंरचना, जैसे कि राष्ट्रीय डिजिटल राजमार्ग और 5G रोलआउट, का सेमीकंडक्टर माँग को बढ़ावा देने के लिये एक मंच के रूप में लाभ उठाना चाहिये। 
      • सेमीकंडक्टर उत्पादन को डिजिटल इंडिया पहल के साथ जोड़कर, देश सेमीकंडक्टर चिप्स के लिये एक मज़बूत घरेलू बाज़ार सुनिश्चित कर सकता है। 
      • IoT, स्मार्ट शहरों और AI-सक्षम तकनीकों के लिये सरकार समर्थित कार्यक्रमों को स्थानीय चिप निर्माण से जोड़ा जाना चाहिये, ताकि सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में सेमीकंडक्टरों की स्थिर और गारंटीकृत माँग उत्पन्न हो सके।

    निष्कर्ष: 

    भारत की सेमीकंडक्टर यात्रा एक निर्णायक मोड़ पर है, जो मज़बूत नीतियों, वैश्विक सहयोग और बढ़ती घरेलू क्षमताओं द्वारा समर्थित है। यद्यपि उन्नत विनिर्माण, प्रतिभा-विकास और आपूर्ति शृंखला जैसे क्षेत्रों में चुनौतियाँ बनी हुई हैं, फिर भी दिशा स्पष्ट है। सेमिकॉन इंडिया- 2025 में भारतीय प्रधानमंत्री ने इस बात पर बल दिया कि भारत “डिज़ाइंड इन इंडिया, मेड इन इंडिया तथा ट्रस्टेड बाय द वर्ल्ड” बनने की ओर अग्रसर है। विश्व जब भारत के साथ सेमीकंडक्टर के भविष्य का निर्माण करने के लिये तैयार है, तब भारत के पास यह अद्वितीय अवसर है कि वह एक सुदृढ़ और प्रतिस्पर्द्धी 'चिप पावरहाउस' के रूप में उभरे।  

    दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

    प्रश्न. "भारत का सेमीकंडक्टर क्षेत्र बढ़ते निवेश, वैश्विक रणनीतिक सहयोग और लगातार बनी हुई संरचनात्मक चुनौतियों के बीच अवसर और जोखिम दोनों के संगम पर खड़ा है।" वर्ष 2030 तक वैश्विक चिप निर्माण केंद्र के रूप में उभरने की भारत की महत्त्वाकांक्षा के संदर्भ में चर्चा कीजिये। 

    UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

    प्रिलिम्स 

    प्रश्न 1. लेज़र प्रिंटर में निम्नलिखित में से किस प्रकार के लेज़र का उपयोग किया जाता है? (2008) 

    (a) डाई लेज़र 

    (b) गैस लेज़र 

    (c) अर्द्ध-चालक लेज़र 

    (d) एक्साइमर लेज़र 

    उत्तर: (c)


    मेन्स 

    प्रश्न 1. भारत ने एक सेमिकंडक्टर विनिर्माण केंद्र बनने का लक्ष्य रखा है। भारत में सेमिकंडक्टर उद्योग के सामने क्या चुनौतियाँ हैं? भारत सेमिकंडक्टर मिशन की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिये। (2025)