डेली न्यूज़ (26 Nov, 2021)



ओ-स्मार्ट योजना

प्रिलिम्स के लिये:

ओ-स्मार्ट योजना, नीली अर्थव्यवस्था, समुद्री जल प्रदूषक, अनन्य आर्थिक क्षेत्र

मेन्स के लिये:

ओ-स्मार्ट योजना के उद्देश्य एवं महत्त्व

चर्चा में क्यों?

आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने 2021-26 की अवधि के लिये 'महासागरीय सेवाएँ, मॉडलिंग, अनुप्रयोग, संसाधन और प्रौद्योगिकी (O-SMART)' योजना को जारी रखने को मंज़ूरी दे दी है।

O-SMART-BENIFITS-drishtiias_hindi

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • यह एक सरकारी योजना है जिसका उद्देश्य समुद्री अनुसंधान को बढ़ावा देना और पूर्व चेतावनी मौसम प्रणाली स्थापित करना है। 
      • इसे अगस्त 2018 में लॉन्च किया गया था।
    • इसका उद्देश्य महासागर विकास गतिविधियों जैसे कि प्रौद्योगिकी, सेवाओं, संसाधनों, निगरानी और अवलोकन के साथ-साथ नीली अर्थव्यवस्था के पहलुओं को लागू करने के लिये आवश्यक तकनीकी सहायता प्रदान करना है।
    • इसमें सात उप-योजनाएँ शामिल हैं जिन्हें पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) के स्वायत्त संस्थानों द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
      • उप-योजनाएँ इस प्रकार हैं: महासागरीय प्रौद्योगिकी, महासागरीय  मॉडलिंग और परामर्श सेवाएँ (OSMAS), समुद्री अवलोकन नेटवर्क (OON), समुद्री निर्जीव (नॉन-लिविंग) संसाधन, समुद्री सजीव संसाधन एवं इको-सिस्टम (MLRE), तटीय अनुसंधान एवं परिचालन, पोतों का अनुसंधान एवं रख-रखाव।
  • उद्देश्य:
    • भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone) में ‘मरीन लिविंग रिसोर्सेज़’ (Marine Living Resources) एवं भौतिक पर्यावरण के साथ उनके संबंधों के बारे में सूचना एकत्र करना और उसे नियमित रूप से अपडेट करना।
    • समय-समय पर भारत के तटीय जल का स्वच्छता मूल्यांकन करने के लिये समुद्री जल प्रदूषकों के स्तर की निगरानी करना। प्राकृतिक एवं मानवजनित गतिविधियों के कारण होने वाले तटीय कटाव के मूल्यांकन के लिये तटरेखा परिवर्तन मानचित्र विकसित करना।
    • भारत के आसपास के समुद्रों से रियल टाइम डेटा के लिये और महासागर प्रौद्योगिकी के परीक्षण एवं समुद्री प्रायोगिक गतिविधियों को पूरा करने हेतु अत्याधुनिक महासागर अवलोकन प्रणालियों की एक विस्तृत शृंखला विकसित करना। 
    • सामाजिक लाभ के लिये उपयोगकर्त्ता-उन्मुख महासागरीय सूचना, सलाह, चेतावनी, डेटा एवं डेटा उत्पादों का एक पैकेज तैयार करना एवं उसका प्रसारण करना।
    • महासागर पूर्वानुमान एवं पुनर्विश्लेषण प्रणाली के लिये ‘हाई रिज़ोल्यूशन मॉडल’ विकसित करना।
    • तटीय अनुसंधान हेतु उपग्रह डेटा के सत्यापन के लिये एल्गोरिदम विकसित करना।
    •  तटीय प्रदूषण की निगरानी, विभिन्न अंडरवाटर घटकों के परीक्षण और प्रौद्योगिकी प्रदर्शन तथा उनके संचालन एवं रखरखाव का समर्थन करने के लिये तटीय अनुसंधान पोत (CRV) का अधिग्रहण करना।
    • समुद्री जैव संसाधनों के निरीक्षण एवं निगरानी करने के लिये प्रौद्योगिकियों, समुद्र से मीठे जल व महासागरीय ऊर्जा उत्पन्न करने वाली प्रौद्योगिकियों तथा अंडरवाटर वाहनों एवं प्रौद्योगिकियों को विकसित करना।
    • गिट्टी जल उपचार (Ballast Water Treatment) सुविधा सुनिश्चित करना।
      • जहाज़ों द्वारा गिट्टी जल का निर्वहन महासागरों में गैर-स्वदेशी प्रजातियों के प्रवेश के लिये ज़िम्मेदार है। यह एक बंदरगाह से जल ग्रहण करते हैं और दूसरे बंदरगाह में उसका निर्वहन करते हैं।
    • गैस हाइड्रेट्स की जाँच करने के लिये मध्य हिंद महासागर बेसिन में संयुक्त राष्ट्र द्वारा भारत को आवंटित किये गए 75000 वर्ग किमी. के स्थान पर 5500 मीटर तक की गहराई से पॉलीमेटैलिक नोड्यूल्स (Poly Metallic Nodules) की खोज को पूरा करना।
      • पॉलीमेटैलिक नोड्यूल्स जिसे मैंगनीज़ नोड्यूल (Manganese Nodules) भी कहा जाता है, एक कोर के चारों ओर लोहे और मैंगनीज़ हाइड्रॉक्साइड (Manganese Hydroxides) की संकेंद्रित परतों से निर्मित चट्टानें हैं।
      • पॉलीमेटैलिक नोड्यूल्स में तांबा, निकल, कोबाल्ट, मैंगनीज़, लोहा, सीसा, जस्ता, एल्युमीनियम, चांदी, सोना और प्लेटिनम आदि कई धातुएंँ होती हैं। परिवर्तनशील संरचनाओं में और महासागरीय क्रस्ट के गहरे आंतरिक भाग से ऊपर उठने वाले गर्म मैग्मा से गर्म तरल पदार्थ का अवक्षेपण होता है।
      • भारत के लिये पॉलीमेटैलिक नोड्यूल्स (Polymetallic Nodules) का खनन सामरिक महत्त्व का है क्योंकि भारत में इन धातुओं के कोई स्थलीय स्रोत विद्यमान नहीं हैं।
    • अंतर्राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण द्वारा रॉड्रिक्स ट्रिपल जंक्शन (कन्वर्जेन्स ऑफ सेंट्रल इंडियन रिज, दक्षिण-पूर्व भारतीय रिज और दक्षिण-पश्चिम भारतीय रिज) के पास पॉलीमेटैलिक सल्फाइड की खोज हेतु अंतर्राष्ट्रीय समुद्र में भारत को 10000 वर्ग किमी. क्षेत्र आवंटित है।
    • EEZ से आगे फैले महाद्वीपीय शेल्फ (Continental Shelf) पर भारत के दावे को वैज्ञानिक डेटा और भारत के EEZ के स्थलाकृतिक सर्वेक्षण द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।
  • महत्त्व:
    • यह व्यापक अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास गतिविधियों के साथ समुद्र विज्ञान के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की क्षमता निर्माण में वृद्धि करेगा।
    • यह सतत् तरीके से समुद्री संसाधनों के कुशल और प्रभावी उपयोग के लिये नीली अर्थव्यवस्था (Blue Economy) पर एक राष्ट्रीय नीति की दिशा में भारत के योगदान को मज़बूत करने में सहायता करेगा।
    • यह योजना समुद्री क्षेत्र के लिये अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग कर विभिन्न तटीय हितधारकों को पूर्वानुमान और चेतावनी सेवाएंँ प्रदान करने, समुद्री जीवन की संरक्षण रणनीति में जैव विविधता तथा तटीय प्रक्रिया को समझने की दिशा में संचालित गतिविधियों को मजबूत कर व्यापक कवरेज प्रदान करेगी।
    • यह महासागरों, समुद्रों और समुद्री संसाधनों के संरक्षण एवं सतत् उपयोग के लिये  संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्य-14 को प्राप्त करने में मदद करेगी।
  • प्रमुख उपलब्धियाँ:
    • इसने हिंद महासागर के आवंटित क्षेत्र में पॉलीमेटैलिक नोड्यूल्स और हाइड्रोथर्मल सल्फाइड के गहरे समुद्र में खनन पर व्यापक शोध हेतु भारत को अंतर्राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण (International Seabed Authority- ISA) के साथ अग्रणी निवेशक के रूप में मान्यता प्राप्त करने में मदद की है।
    • इस योजना ने यूनेस्को के अंतर-सरकारी समुद्र विज्ञान आयोग (IOC) में वैश्विक महासागर अवलोकन प्रणाली के हिंद महासागर घटक को लागू करने में भारत को नेतृत्व की भूमिका निभाने में सक्षम बनाया है।
    • भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS), हैदराबाद में तूफान, सुनामी जैसी समुद्री आपदाओं के लिये एक अत्याधुनिक पूर्व चेतावनी प्रणाली भी स्थापित की गई है।

स्रोत: पीआईबी


भारत-अमेरिका डिजिटल कर समझौता

प्रिलिम्स के लिये:

यूनाइटेड स्टेट्स ट्रेड रिप्रेज़ेंटेटिव, इक्वलाइज़ेशन लेवी, न्यूनतम कॉर्पोरेट कर

मेन्स के लिये:

भारत-अमेरिका डिजिटल कर समझौता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका 1 अप्रैल, 2022 से शुरू होने वाली ई-कॉमर्स आपूर्ति पर समान लेवी या डिजिटल कर को लेकर एक संक्रमणकालीन दृष्टिकोण पर सहमत हुए हैं।

  • इससे पहले जनवरी 2021 में ‘यूनाइटेड स्टेट्स ट्रेड रिप्रेज़ेंटेटिव’ (USTR) के कार्यालय ने कहा था कि भारत, इटली और तुर्की द्वारा अपनाए गए डिजिटल सेवा कर अमेरिकी कंपनियों के साथ भेदभाव करते हैं।

प्रमुख बिंदु

  • पृष्ठभूमि:
    • 8 अक्तूबर, 2021 को भारत सहित 136 देश उन बाज़ारों में जहाँ बड़ी कंपनियाँ आय अर्जित करती हैं, में 15% की न्यूनतम कॉर्पोरेट कर दर (वैश्विक कर समझौता) लागू करने के लिये सहमत हुए, यह बड़ी कंपनियों के मुनाफे पर कर लगाने की यह एक समान प्रणाली है।
      • इस समझौते के लिये देशों को सभी डिजिटल सेवा कर और अन्य समान एकतरफा उपायों को हटाने की आवश्यकता है।
    • उसके बाद अमेरिका, ऑस्ट्रिया, फ्राँस, इटली, स्पेन और यूनाइटेड किंगडम ने इसके प्रथम स्तंभ को लागू करते हुए मौजूदा एकतरफा उपायों हेतु संक्रमणकालीन दृष्टिकोण पर एक समझौता किया।
  • वैश्विक कर समझौता:
    • यह एप्पल, अल्फाबेट और फेसबुक जैसी ‘बिग टेक’ कंपनियों सहित दुनिया के कुछ सबसे बड़े निगमों द्वारा लागू किये गए कर की कम प्रभावी दरों को संबोधित करने के लिये तैयार किया गया है।
    • वैश्विक न्यूनतम कर की दर वैश्विक स्तर पर बिक्री में 868 मिलियन अमेरिकी डॉलर के साथ बहुराष्ट्रीय फर्मों के विदेशी मुनाफे पर लागू होगी।
      • स्तंभ 1 (न्यूनतम कर और कर नियमों के अधीन): सरकारें अभी जो भी स्थानीय कॉर्पोरेट कर दर चाहती हैं, निर्धारित कर सकती हैं, लेकिन अगर कंपनियाँ किसी विशेष देश में कम दरों का भुगतान करती हैं, तो उनकी गृह सरकारें अपने करों को न्यूनतम 15% तक "टॉप अप", मुनाफे को स्थानांतरित करने के लाभ को समाप्त कर सकती हैं। 
      • स्तंभ 2 (बाज़ार के अधिकार क्षेत्र में लाभ के अतिरिक्त हिस्से का पुन: आवंटन): यह उन देशों को इसकी अनुमति देता है जहाँ राजस्व अर्जित किया जाता है, सबसे बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के तथाकथित अतिरिक्त लाभ के 25% पर कर लगाया जाता है, जिसे राजस्व के 10% से अधिक लाभ के रूप में परिभाषित किया जाता है।
  • भारत-अमेरिका समझौता:
    • भारत और अमेरिका इस बात पर सहमत हुए हैं कि समान शर्तों के आधार पर (जैसा कि यूएस, ऑस्ट्रिया, फ्राँस, इटली, स्पेन और यूनाइटेड किंगडम द्वारा सहमति व्यक्त की गई है) भारत के ई-कॉमर्स आपूर्ति पर 2% इक्वलाइज़ेशन लेवी शुल्क लागू होगा।
    • समझौते के तहत भारत मार्च 2024 तक या बहुराष्ट्रीय कंपनियों और सीमा पार डिजिटल लेन-देन हेतु कर लगाने पर आर्थिक सहयोग और विकास संगठन समझौते के स्तंभ 1 के लागू होने तक लेवी लगाता रहेगा।
      • भारत और अमेरिका संबंधित प्रतिबद्धताओं की एक समान समझ विकसित करने तथा रचनात्मक वार्ता के माध्यम से इससे संबंधित किसी भी मतभेद को हल करने हेतु निकट संपर्क में रहेंगे।
      • अमेरिका लेवी के जवाब में घोषित व्यापार टैरिफ कार्रवाइयों को समाप्त कर देगा और आगे कोई कार्रवाई नहीं करेगा।
  • भारत-अमेरिका समझौते का महत्त्व:
    • यह भारत के लिये फायदेमंद है, क्योंकि इससे भारत वर्तमान 2% लेवी को निश्चित रूप से तब तक जारी रख सकता है जब तक कि ‘पिलर वन’ प्रभावी नहीं हो जाता, साथ ही इसमें सभी प्रस्तावित कार्रवाइयों को समाप्त करने और आगे किसी प्रकार की कार्रवाई न करने की प्रतिबद्धता भी शामिल है।
    • यह ऑनलाइन लेन-देन के कारण होने वाले कर नुकसान को रोकने में मदद करेगा, क्योंकि भारत को ‘पिलर-1’ के बाद ‘इक्वलाइज़ेशन लेवी 2.0’ को वापस लेना होगा।
      • यह ध्यान में रखा जाना चाहिये कि ‘पिलर-1’ केवल 20 बिलियन यूरो से ऊपर के वैश्विक कारोबार वाली कंपनियों पर लागू होता है, जो कि शीर्ष 100 कंपनियाँ हैं।

डिजिटल सेवा कर (DSTs)

  • यह कर गूगल, अमेज़न और एप्पल जैसी डिजिटल बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा डिजिटल सेवाएँ प्रदान करने के बदले प्राप्त राजस्व पर अधिरोपित किया जाता है। 
  • आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) वर्तमान में 130 से अधिक देशों के साथ वार्ता कर रहा है, जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय कर प्रणाली को अनुकूलित करना है। इस वार्ता का एक लक्ष्य अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण की कर चुनौतियों का समाधान करना है।
    • कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि किसी एक विशिष्ट क्षेत्र या गतिविधि को लक्षित करने के लिये डिज़ाइन की गई कर नीति पूर्णतः अनुचित होगी और इसके जटिल परिणाम हो सकते हैं।
    • इसके अलावा डिजिटल अर्थव्यवस्था को बाकी वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं से आसानी से अलग नहीं किया जा सकता है।

डिजिटल कंपनियों पर भारत का कर

  • बीते दिनों सरकार ने 2 करोड़ रुपए से अधिक के कारोबार वाले गैर-निवासी ई-कॉमर्स ऑपरेटरों द्वारा प्रदान किये गए व्यापार और सेवाओं पर 2 प्रतिशत डिजिटल सेवा कर (DST) लगाते हुए वित्त विधेयक 2020-21 में एक संशोधन किया था।
    • इसके माध्यम से इक्विलाइज़ेशन लेवी के दायरे को प्रभावी ढंग से विस्तारित किया गया, जो कि बीते वर्ष तक केवल डिजिटल विज्ञापन सेवाओं पर ही लागू था।
    • इससे पहले इक्विलाइज़ेशन लेवी (6 प्रतिशत) वर्ष 2016 में प्रस्तुत की गई थी और रेज़िडेंट सर्विस प्रोवाइडर के बिज़नेस-टू-बिज़नेस डिजिटल विज्ञापनों एवं संबद्ध सेवाओं से उत्पन्न राजस्व पर लगाया जाता था।
  • नई लेवी 1 अप्रैल, 2020 से लागू हुई, जिसके तहत ई-कॉमर्स ऑपरेटर प्रत्येक तिमाही के अंत में कर का भुगतान करने के लिये बाध्य हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


हवाना सिंड्रोम (Havana Syndrome)

प्रिलिम्स के लिये:

माइक्रोवेव हथियार, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन

मेन्स के लिये:

माइक्रोवेव हथियार वाले देश तथा निर्देशित ऊर्जा हथियारों के लिये भारत की योजना

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूएस फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन ( Federal Bureau of Investigation- FBI) ने कहा है कि हवाना सिंड्रोम के मुद्दे से निपटना सर्वोच्च प्राथमिकता है तथा यह इसके कारण की जाँच करने के साथ-साथ कर्मचारियों को किस प्रकार इससे सुरक्षा प्रदान की जाए इस बात का निरीक्षण करेगा।

प्रमुख बिंदु 

  • हवाना सिंड्रोम:
    • 2016 के उत्तरार्द्ध में हवाना (क्यूबा) में तैनात संयुक्त राज्य अमेरिका के कुछ राजनयिकों और उनके कर्मचारियों ने कुछ सामान्य लक्षणों की सूचना दी थी।
    • उन सभी ने कुछ अजीब सी आवाज़ें सुनने और अजीब शारीरिक संवेदनाओं का अनुभव करने के बाद इस बीमारी को महसूस किया।
    • अमेरिका ने क्यूबा पर "ध्वनि हमला" (Sonic Attacks) करने का आरोप लगाया था लेकिन क्यूबा ने इस बीमारी या सिंड्रोम के बारे में किसी भी तरह की जानकारी होने से इनकार कर दिया।
    • तब से कई निकाय और संस्थान हवाना सिंड्रोम के कारणों पर शोध कर रहे हैं और इन संस्थाओं ने अब तक कई संभावित कारकों की खोज की है।
    • इस बीमारी के लक्षणों में मिचली, तीव्र सिरदर्द, थकान, चक्कर आना, नींद की समस्या आदि शामिल हैं।
      • उनमें से कुछ  लोग जो अत्यधिक प्रभावित हुए थे, उन्हें वेस्टिबुलर प्रसंस्करण (Vestibular Processing) और संज्ञानात्मक (Cognitive) समस्याओं जैसी चिरकालिक मुद्दों का सामना करना पड़ा।
    • वर्ष 2020 में नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज़ (NAS), यूएस की एक रिपोर्ट में हवाना सिंड्रोम का मुख्य कारण निर्देशित माइक्रोवेव विकिरण पाया गया।
  • माइक्रोवेव हथियार (Microwave Weapon)
    • प्रत्यक्ष ऊर्जा हथियार (DEW)
      • माइक्रोवेव हथियार एक प्रकार के प्रत्यक्ष ऊर्जा हथियार होते हैं, जो अपने लक्ष्य को अत्यधिक केंद्रित ऊर्जा रूपों जैसे- ध्वनि, लेज़र या माइक्रोवेव आदि द्वारा लक्षित करते हैं।
      • इसमें उच्च-आवृत्ति के विद्युत चुंबकीय विकिरण द्वारा मानव शरीर में संवेदना पैदा की जाती है।
        • विद्युत चुंबकीय विकिरण (माइक्रोवेव) भोजन में पानी के अणुओं को उत्तेजित करता है और उनका कंपन गर्मी पैदा करती है जो व्यक्ति को चक्कर आना और मतली जैसे लक्षणों का अनुभव कराती है।
    • माइक्रोवेव हथियार वाले देश:
      • ऐसा माना जाता है कि एक से अधिक देशों ने मानव और इलेक्ट्रॉनिक दोनों प्रणालियों को लक्षित करने के लिये इन हथियारों को विकसित किया है।
      • चीन ने पहली बार वर्ष 2014 में एक एयर शो में पॉली डब्ल्यू.बी.-1 (Poly WB-1) नामक “माइक्रोवेव हथियार” का प्रदर्शन किया था।
      • संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी ‘एक्टिव डेनियल सिस्टम’ (Active Denial System) नामक 'प्रोटोटाइप माइक्रोवेव हथियार' विकसित किया है जो कि पहला गैर-घातक, निर्देशित-ऊर्जा, काउंटर-कार्मिक प्रणाली है, जिसमें वर्तमान में गैर-घातक हथियारों की तुलना में अधिक विस्तारित क्षमता विद्यमान है।
    • निर्देशित ऊर्जा हथियारों के लिये भारत की योजना:
      • हाल ही में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने उच्च-ऊर्जा लेज़र और माइक्रोवेव का उपयोग करके निर्देशित ऊर्जा हथियार (DEW) विकसित करने की योजना की घोषणा की है।
      • भारत के अन्य देशों (विशेष रूप से चीन) के साथ बिगड़ते सुरक्षा संबंधों के संदर्भ में निर्देशित ऊर्जा हथियार के विकास को अत्यधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
    • चिंताएँ:
      • इस प्रकार के हथियार देशों की चिंता का कारण बन रहें है, क्योंकि ये मशीनों और इंसानों दोनों को प्रभावित कर सकते हैं।
      • ये हथियार मानव शरीर पर बिना किसी निशान के उन्हें दीर्घकालिक नुकसान पहुँचा सकते हैं।

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स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


हिंद महासागर क्षेत्र में भारत का पहला रिस्पांडर

प्रिलिम्स के लिये:

हिंद महासागर क्षेत्र, आपदा प्रबंधन पर विश्व कॉन्ग्रेस, सागर पहल, नीली अर्थव्यवस्था

मेन्स के लिये:

प्रथम रिस्पांडर के रूप में भारत का प्रकटीकरण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के रक्षा मंत्री ने नई दिल्ली में आपदा प्रबंधन पर विश्व कॉन्ग्रेस (World Congress on Disaster Management- WCDM) के पाँचवें संस्करण  को संबोधित किया।

  • इस सम्मेलन में रक्षा मंत्री ने इस बात को प्राथमिकता देते हुए कहा कि भारत ने बार-बार हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में स्वयं को "प्रथम प्रतिक्रियाकर्त्ता" (First Responder) के रूप में साबित किया है।
  • "प्रथम प्रतिक्रियाकर्त्ता" (First Responder) के रूप में भारत की उभरती अवधारणा देश की बढ़ती क्षमता और एक प्रमुख शक्ति की भूमिका ग्रहण करने की बढ़ती इच्छा को दर्शाती है।

आपदा प्रबंधन पर विश्व कॉन्ग्रेस (WCDM):

  • आपदा जोखिम प्रबंधन के विभिन्न चुनौतीपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करने के लिये विश्व के शोधकर्त्ताओं, नीति निर्माताओं एवं चिकित्सकों को एक मंच पर लाने हेतु यह आपदा प्रबंधन और अभिसरित समाज की एक अनूठी पहल है।
  • इसका उद्देश्य जोखिमों को कम करने और आपदाओं के प्रति लचीलापन के लिये जोखिमों एवं अग्रिम कार्यों की समझ बढ़ाने हेतु विज्ञान, नीति तथा प्रथाओं पर बातचीत को बढ़ावा देना है।

प्रमुख बिंदु

  • भारत, प्रथम प्रतिक्रियाकर्त्ता के रूप में:
    • अंतर्निहित विज़न: हिंद महासागर के लिये भारत का दृष्टिकोण सागर पहल (Security and Growth for All in the Region-SAGAR) की अवधारणा से प्रेरित है। सागर में विशिष्ट और अंतर-संबंधित दोनों तत्त्व शामिल हैं जैसे:
      • तटीय राज्यों के बीच आर्थिक और सुरक्षा सहयोग को मज़बूत करना।
      • भूमि और समुद्री क्षेत्रों की सुरक्षा के लिये क्षमता बढ़ाना।
      • सतत् क्षेत्रीय विकास की दिशा में कार्य करना।
      • नीली अर्थव्यवस्था और प्राकृतिक आपदाओं, समुद्री डकैती तथा आतंकवाद जैसे गैर-पारंपरिक खतरों से निपटने के लिये सामूहिक कार्रवाई को बढ़ावा देना।
    • सक्षम बनाने वाले कारक: हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की अद्वितीय स्थिति, सशस्त्र बलों की क्षमता से पूरित इसे मानवीय सहायता और आपदा राहत (HADR) स्थितियों में महत्त्वपूर्ण योगदान देने में सक्षम बनाती है।
      • क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संकटों को रोकने या कम करने में अपने संसाधनों के योगदान से  भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में एक ज़िम्मेदार नेतृत्वकर्त्ता के रूप में अपनी प्रतिबद्धता का प्रदर्शन कर रहा है।
    • इस पहल की आवश्यकता: भौगोलिक-राजनीतिक परिदृश्य और पारंपरिक एवं गैर-पारंपरिक खतरों को चुनौती देना जिसमें दुनिया के सामने कोविड-19 जैसी प्राकृतिक आपदाएँ शामिल हैं।
      • क्षेत्रीय और वैश्विक निहितार्थों के साथ आपदाएँ (चाहे वह प्राकृतिक आपदा हो, या आकस्मिक वित्तीय संकट) अक्सर बड़े पैमाने पर प्रभाव डालती हैं।
      • नेतृत्वकर्त्ता के रूप में भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था सुनिश्चित करने की कोशिश करता है क्योंकि छोटे या कम सक्षम राष्ट्रों को सहायता की सख्त ज़रूरत है।
  • प्रथम प्रतिक्रियाकर्त्ता के रूप में भारत का प्रकटीकरण:
    • मानवीय सहायता और आपदा राहत (HADR) अभियान: भारत विशेषज्ञता और निर्माण क्षमता को साझा करने पर ध्यान देने के साथ अपने पड़ोसियों और मित्र देशों के साथ HADR सहयोग व समन्वय को मज़बूत करने के लिये नियमित रूप से अभ्यास करता रहा है।
    • डिज़ास्टर रेज़िलिएशन: भारत द्वारा इसका नेतृत्व किया जा रहा है और अपने मित्र देशों को डिज़ास्टर रेज़िलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर (Disaster Resilient Infrastructure- DRI) की विशेषज्ञता प्रदान कर रहा है।
    • प्रवासी निकासी अभियान: वर्ष 2015 में ‘ऑपरेशन राहत’ के तहत  भारत ने 40 से अधिक देशों के 6,700 लोगों के साथ 1,940 भारतीय नागरिकों को यमन से सुरक्षित बाहर निकाला।
    • गैर-पारंपरिक सुरक्षा चुनौतियांँ: भारतीय नौसेना गैर-पारंपरिक सुरक्षा चुनौतियों के लिये  हिंद महासागर की डिफाॅल्ट फर्स्ट रेसपोंडर (Default First Responder) के रूप में उभरी है।
      • वर्ष 2008 से अदन की खाड़ी में समुद्री डकैती का मुकाबला करने के लिये  भारतीय सेना द्वारा लगभग तीस युद्धपोतों को तैनात किया गया, जिन्होंने 1500 से अधिक जहाज़ोंं को बचा लिया और लगभग तीस समुद्री डकैती के प्रयासों को विफल कर दिया गया।
    • संघर्ष के बाद राहत और पुनर्वास: भारत ने अक्सर संघर्ष के बाद की प्रक्रियाओं से गुज़रने वाले देशों का समर्थन करने में अग्रणी भूमिका निभाई है, इसके लिये संसाधनों और महत्त्वपूर्ण धन की आवश्यकता होती है।
      • उदाहरण के लिये भारत ने संघर्ष के बाद की स्थिति से बाहर निकलने हेतु अफगानिस्तान और श्रीलंका को सहायता प्रदान की।
    • शरणार्थी प्रवाह: जब भी लोग दक्षिण एशिया में अपने जीवन को संकट में देखते हैं, तो वे अक्सर पहले भारत की ओर देखते हैं। भारत ने शरणार्थियों और अल्पसंख्यक आबादी के लिये आपातकालीन सुरक्षित आश्रय प्रदान किया है। 

आगे की राह 

  • अत्याधुनिक तकनीकों का लाभ उठाना: अंतरिक्ष, संचार, जैव-इंजीनियरिंग, जैव-चिकित्सा और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में उभरती अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियांँ आपदा के जोखिमों का आकलन करने और पूर्व चेतावनी के माध्यम से संचार के तरीके में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती हैं।
  • महामारी के बाद का आकलन: ‘2030 सतत् विकास हेतु एजेंडा’ के कार्यान्वयन पर महामारी के प्रभाव के व्यापक मूल्यांकन की आवश्यकता है।
    • नए ढांँचे को लक्ष्यों के कार्यान्वयन हेतु वैश्विक और राष्ट्रीय रणनीतियों में नए विचारों को शामिल करने पर ज़ोर देना चाहिये। 
  • प्रथम प्रतिक्रियाकर्त्ता परंपरा और संवर्द्धन: प्रथम प्रतिक्रियाकर्त्ता परंपरा का और अधिक प्रचार किया जाना चाहिये क्योंकि यह अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में एक प्रेरक भूमिका का निर्वहन करने की भारत की गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
    • इसके लिये भारत को अपनी सीमाओं से भी और आगे बढ़ने के लिये पर्याप्त संसाधनों और क्षमताओं से संपन्न होना होगा।

स्रोत: द हिंदू


भूकंप

प्रिलिम्स के लिये:

भूकंप, सिस्मोग्राफ, अधिकेंद्र, परिधि-प्रशांत भूकंपीय पेटी

मेन्स के लिये:

भूकंप के प्रकार एवं उनका वितरण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में म्याँमार-भारत सीमा क्षेत्र में 6.1 तीव्रता का एक सतही और शक्तिशाली भूकंप आया।

प्रमुख बिंदु

  • भूकंप:
    • साधारण शब्दों में भूकंप का अर्थ पृथ्वी की कंपन से होता है। यह एक प्राकृतिक घटना है, जिसमें पृथ्वी के अंदर से ऊर्जा के निकलने के कारण तरंगें उत्पन्न होती हैं जो सभी दिशाओं में फैलकर पृथ्वी को कंपित करती हैं।
    • भूकंप से उत्पन्न तरगों को भूकंपीय तरगें कहा जाता है, जो पृथ्वी की सतह पर गति करती हैं तथा इन्हें ‘सिस्मोग्राफ’ (Seismographs) से मापा जाता है।
    • पृथ्वी की सतह के नीचे का स्थान जहाँ भूकंप का केंद्र स्थित होता है, हाइपोसेंटर  (Hypocenter) कहलाता है और पृथ्वी की सतह के ऊपर स्थित वह स्थान जहाँ भूकंपीय तरगें सबसे पहले पहुँचती है अधिकेंद्र (Epicenter) कहलाता है।
    • भूकंप के प्रकार: फाल्ट ज़ोन, विवर्तनिक भूकंप, ज्वालामुखी भूकंप, मानव प्रेरित भूकंप।
  • भूकंप का वितरण:
    • विश्व की सबसे बड़ी भूकंप पेटी, परिधि-प्रशांत भूकंपीय पेटी, प्रशांत महासागर के किनारे पाई जाती है, जहाँ हमारे ग्रह के सबसे बड़े भूकंपों के लगभग 81% आते हैं। इसने "रिंग ऑफ फायर" उपनाम अर्जित किया है।
      • यह पेटी विवर्तनिक प्लेटों की सीमाओं में मौजूद है, जहाँ अधिकतर समुद्री क्रस्ट की प्लेटें दूसरी प्लेट के नीचे डूब रही हैं। इन ‘सबडक्शन ज़ोन’ में भूकंप, प्लेटों के बीच फिसलन और प्लेटों के भीतर से टूटने के कारण आता है।
    • एल्पाइड भूकंप बेल्ट (मध्य महाद्वीपीय बेल्ट) जावा से सुमात्रा तक हिमालय, भूमध्यसागर और अटलांटिक में फैली हुई है।
      • यह बेल्ट दुनिया के सबसे बड़े भूकंपों का लगभग 17% हिस्सा है, जिसमें कुछ सबसे विनाशकारी भी शामिल हैं।
    • तीसरा प्रमुख बेल्ट जलमग्न मध्य-अटलांटिक रिज में है। रिज वह क्षेत्र होता है, जहाँ दो टेक्टोनिक प्लेट अलग-अलग विस्तृत होती हैं।
      • मध्य अटलांटिक रिज का अधिकांश भाग गहरे पानी के भीतर है और मानव हस्तक्षेप से बहुत दूर है।

भारत में भूकंप जोखिम मानचित्रण: 

  • तकनीकी रूप से सक्रिय वलित हिमालय पहाड़ों की उपस्थिति के कारण भारत भूकंप प्रभावित देशों में से एक है।
  • अतीत में आए भूकंप तथा विवर्तनिक झटकों के आधार पर भारत को चार भूकंपीय क्षेत्रों (II, III, IV और V) में विभाजित किया गया है।
  • पहले भूकंप क्षेत्रों को भूकंप की गंभीरता के संबंध में पाँच क्षेत्रों में विभाजित किया गया था, लेकिन भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards- BIS) ने पहले दो क्षेत्रों को एक साथ मिलाकर देश को चार भूकंपीय क्षेत्रों में विभाजित किया है।
    • BIS भूकंपीय खतरे के नक्शे और कोड को प्रकाशित करने हेतु एक आधिकारिक एजेंसी है।

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  • भूकंपीय ज़ोन II:
    • मामूली क्षति वाला भूकंपीय ज़ोन, जहाँ तीव्रता MM (संशोधित मरकली तीव्रता पैमाना) के पैमाने पर V से VI तक होती है।
  • भूकंपीय ज़ोन III:
    • MM पैमाने की तीव्रता VII के अनुरूप मध्यम क्षति वाला ज़ोन।
  • भूकंपीय ज़ोन IV:
    • MM पैमाने की तीव्रता VII के अनुरूप अधिक क्षति वाला ज़ोन।
  • भूकंपीय ज़ोन V:
    • यह क्षेत्र फाॅल्ट प्रणालियों की उपस्थिति के कारण भूकंपीय रूप से सर्वाधिक सक्रिय होता है।
    • भूकंपीय ज़ोन V भूकंप के लिये सबसे अधिक संवेदनशील क्षेत्र है, जहाँ ऐतिहासिक रूप से देश में भूकंप के कुछ सबसे तीव्र झटके देखे गए हैं।
    • इन क्षेत्रों में 7.0 से अधिक तीव्रता वाले भूकंप देखे गए हैं और यह IX की तुलना में अधिक तीव्र होते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारत की घटती कुल प्रजनन दर

प्रिलिम्स के लिये:

कुल प्रजनन दर, प्रतिस्थापन दर

मेन्स के लिये: 

कुल प्रजनन दर में कमी के कारण और इसके प्रभाव, इस संबंध में सरकार द्वारा किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण’ (NFHS 2019-21) के नवीनतम आँकड़े जारी किये गए हैं।

  • ये आँकड़े ‘कुल प्रजनन दर’ (TFR: प्रति महिला पर कुल बच्चों की औसत संख्या) के संबंध में गिरावट की प्रवृत्ति को दर्शाते हैं।

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प्रमुख बिंदु

  • ‘कुल प्रजनन दर’ के विषय में:
    • सामान्य शब्दों में कुल प्रजनन दर (TFR) का तात्पर्य उन बच्चों की कुल संख्या से है जो किसी महिला के अपने जीवनकाल में पैदा होते है या होने की संभावना होती है।
    • प्रति महिला लगभग 2.1 बच्चों के टीएफआर को ‘प्रतिस्थापन स्तर’ कहा जाता है। प्रति महिला 2.1 बच्चों से कम टीएफआर इंगित करता है कि एक पीढ़ी स्वयं को प्रतिस्थापित करने हेतु पर्याप्त बच्चे पैदा नहीं कर रही है, अंततः जनसंख्या में एकमुश्त कमी आई है।
  • टीएफआर में कमी की प्रवृत्ति:
    • दशकों तक चले परिवार नियोजन कार्यक्रम के कारण ‘कुल प्रजनन दर’ वर्ष 2015-16 में रिपोर्ट किये गए 2.2 से गिरकर इस वर्ष 2.0 तक पहुँच गई है।
      • टीएफआर शहरी क्षेत्रों में 1.6 और ग्रामीण भारत में 2.1 है।
      • 1950 के दशक में कुल प्रजनन दर 6 या उससे अधिक थी।
    • इसका कारण मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य में सुधार है।
  • टीएफआर में गिरावट के कारण:
    • महिला सशक्तीकरण: नवीनतम आँकड़े प्रजनन क्षमता, परिवार नियोजन, विवाह की आयु और महिला सशक्तीकरण से संबंधित कई संकेतकों पर महत्त्वपूर्ण प्रगति दर्शाते हैं, इन सभी ने टीएफआर में कमी लाने में योगदान दिया है।
    • गर्भनिरोधक: साथ ही वर्तमान में आधुनिक गर्भनिरोधक पद्धति के उपयोग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
      • अखिल भारतीय स्तर पर गर्भनिरोधक प्रसार दर 54% से बढ़कर 67% हो गई है।
    • रिवर्सिबल स्पेसिंग: नई ‘रिवर्सिबल स्पेसिंग’ (बच्चों के बीच अंतर) विधियों की शुरुआत, नसबंदी के परिणामस्वरूप मज़दूरी मुआवज़ा प्रणाली और छोटे परिवार के मानदंडों को बढ़ावा देने जैसी कार्यवाहियों ने पिछले कुछ वर्षों में बेहतर प्रदर्शन किया है।
    • सरकार द्वारा किये गए प्रयास: भारत लंबे समय से जनसंख्या नियंत्रण पर काम कर रहा है। वास्तव में राष्ट्रीय स्तर पर परिवार नियोजन कार्यक्रम शुरू करने वाला भारत पहला देश था और अब हम जो उत्साहजनक परिणाम देख रहे हैं, वे केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा एक साथ किये गए निरंतर, ठोस प्रयासों के कारण हैं।

संबंधित सरकारी पहलें:

  • प्रधानमंत्री की अपील: वर्ष 2019 में अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण के दौरान प्रधानमंत्री ने देश से अपील की थी कि जनसंख्या नियंत्रण भी देशभक्ति का एक रूप है।
  • मिशन परिवार विकास: सरकार ने सात उच्च फोकस वाले राज्यों में 3 और उससे अधिक के टीएफआर वाले 146 उच्च प्रजनन क्षमता वाले ज़िलों में गर्भ निरोधकों और परिवार नियोजन सेवाओं तक पहुँच बढ़ाने के लिये वर्ष 2017 में ‘मिशन परिवार विकास’ शुरू किया।
  • राष्ट्रीय परिवार नियोजन क्षतिपूर्ति योजना (NFPIS): यह योजना वर्ष 2005 में शुरू की गई थी, इस योजना के तहत नसबंदी के बाद मृत्यु, जटिलता और विफलता की स्थिति के लिये ग्राहकों का बीमा किया जाता है।
  • नसबंदी करने वालों के लिये मुआवज़ा योजना: इस योजना के तहत स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय वर्ष 2014 से नसबंदी कराने के लिये लाभार्थी और सेवा प्रदाता (टीम) को मुआवज़ा प्रदान करता है।
  • घटते TFR का महत्त्व:
    • जनसंख्या स्थिरीकरण: TFR का 2 होना देश में लंबी अवधि में जनसंख्या की स्थिरता का एक "निश्चित संकेतक" है। 2.1 का TFR एक ऐसा लक्ष्य है जिसे हर देश हासिल करना चाहता है।
      • TFR के 2 तक कम होने का मतलब है कि भारत ने जनसंख्या स्थिरीकरण का लक्ष्य हासिल कर लिया है।
      • इसका अनिवार्य रूप से यह अर्थ है कि भारत को एक बहुत बड़ी आबादी के विकास की चुनौती को लेकर बहुत अधिक चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।
    • त्वरित आर्थिक विकास: अगले 2-3 दशकों में युवा जनसंख्या शक्ति त्वरित आर्थिक विकास का अवसर प्रदान करेगी।
      • हालाँकि त्वरित विकास का लाभ उठाने के लिये भारत को कौशल के साथ सार्वजनिक स्वास्थ्य और शिक्षा में निवेश करना चाहिये।
    • जनसंख्या वृद्धि में कमी: इसका मतलब यह भी है कि जहाँ भारत की आबादी के दुनिया में सबसे अधिक होने की संभावना वर्ष 2024-2028 के बीच थी, उसमें अब देरी होगी।
  • चिंताजनक रुझान:
    • महिला नसबंदी में वृद्धि: सर्वेक्षण से पता चलता है कि 2015-16 में 36% के मुकाबले महिला नसबंदी में 38% वृद्धि हुई है।
      • महिला नसबंदी में वृद्धि से पता चलता है कि परिवार नियोजन की ज़िम्मेदारी महिलाओं पर बनी हुई है, पुरुष इस प्रक्रिया में भाग नहीं ले रहे हैं और "ज़िम्मेदारी से पीछे हट रहे हैं"।
    • कम TFR संबंधी चिंताएँ: TFR प्रति महिला 2.1 बच्चों से कम है, यह दर्शाता है कि वर्तमान पीढ़ी स्वयं के प्रतिस्थापन हेतु पर्याप्त बच्चों को जन्म नहीं दे रही है, जिससे जनसंख्या में एकमुश्त कमी आई है।
      • इस प्रकार TFR 2 से कम (जैसा कि भारत में शहरी क्षेत्रों में होता है) होने की अपनी समस्याएँ होती हैं। उदाहरण के लिये घटती जनसंख्या से वृद्ध जनसंख्या में वृद्धि होगी, जैसा कि चीन में हो रहा है।

आगे की राह

  • व्यवहार परिवर्तन संचार रणनीति: सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिये एक लक्षित सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन संचार रणनीति अपनानी चाहिये कि पुरुष भी परिवार नियोजन की ज़िम्मेदारी लें।
  • पर्यावरण संरक्षण: जनसंख्या स्थिरीकरण का मतलब यह नहीं है कि भारत अपना ध्यान पर्यावरण संरक्षण से हटा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


रिवर सिटीज एलायंस

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, शहरी मामलों के राष्ट्रीय संस्थान, नमामि गंगे कार्यक्रम, गंगा एक्शन प्लान

मेन्स के लिये:

रिवर सिटीज़ एलायंस के उद्देश्य एवं महत्त्व 

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में जल शक्ति मंत्रालय ने आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के साथ मिलकर रिवर सिटीज़ एलायंस (River Cities Alliance- RCA) लॉन्च किया है।

  • यह भारत में नदियों के किनारे बसे शहरों के सतत् प्रबंधन को लेकर भारत में एक समर्पित विचार मंच है। 

प्रमुख बिंदु 

  • रिवर सिटीज़ एलायंस:
    • गठबंधन तीन व्यापक विषयों पर ध्यान केंद्रित करेगा- नेटवर्किंग, क्षमता निर्माण और तकनीकी सहायता।
    • हालांँकि गठबंधन की शुरुआत गंगा बेसिन शहरों के साथ हुई थी, लेकिन इसे बेसिन से बाहर के शहरों को भी शामिल करने के लिये विस्तारित किया गया था। रिवर सिटीज़ एलायंस में निम्नलिखित शहर शामिल हैं:
    • देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश, श्रीनगर, बेगूसराय, भागलपुर, मुंगेर, पटना, बरहामपुर, हुगली-चिनसुराह, हावड़ा, जंगीपुर, महेशतला, राजमहल, साहिबगंज, अयोध्या, बिजनौर, फर्रुखाबाद, कानपुर, मथुरा-वृंदावन, मिर्ज़ापुर, प्रयागराज, वाराणसी, औरंगाबाद, चेन्नई, भुवनेश्वर, हैदराबाद, पुणे, उदयपुर और विजयवाड़ा हैं।
    • राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (National Mission for Clean Ganga- NMCG) और शहरी मामलों के राष्ट्रीय संस्थान ( National Institute for Urban Affairs- NIUA) ने RCA को शुरू करने के लिये गठबंधन किया है।
  • उद्देश्य:
    • सदस्य शहरों को शहरी नदियों के सतत् प्रबंधन हेतु महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा और सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिये एक मंच प्रदान करना।
    • नदी से संबंधित राष्ट्रीय नीतियों और उपकरणों को अपनाने की दिशा में काम करना।
    • शहरों के लिये शहरी नदी प्रबंधन योजनाएँ तैयार करना और शहर-विशिष्ट क्षेत्रीय रणनीतियाँ विकसित करना जो स्थायी शहरी नदी प्रबंधन के लिये आवश्यक हैं।
  • महत्त्व:
    • यह शहरों को एक-दूसरे की सफलताओं और असफलताओं से सीखने के साथ-साथ लोगों को नदियों से जोड़ने में सक्षम बनाएगा।
    • यह शहरों को उनकी नदियों से जोड़ने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है और यह बेसिन तथा उससे आगे के सभी शहरों के अनुकरण के लिये एक मॉडल हो सकता है।
    • यह नगर निगम के प्रशासकों और उनकी टीमों को पथ-प्रदर्शक पहल और एक-दूसरे से सीखने व प्रेरित करने का अवसर देगा।
    • यह शहरों को नदी के शासन संबंधी पहलुओं को मज़बूत करने का अवसर प्रदान करता है और बाहरी आर्थिक निवेशों को आकर्षित करने हेतु उनकी जीवंतता में सुधार करता है, अत्याधुनिक ज्ञान और अवसंरचना के साथ-साथ अद्वितीय परियोजनाओं के रूप में कार्य करने का अवसर प्रदान करता है।
  • सिफारिशें
    • शहरों को अपनी नदियों के कायाकल्प के लिये उत्तरदायी होना चाहिये। इसे न केवल एक नियामक मानसिकता के साथ बल्कि एक विकासात्मक और सुविधाजनक दृष्टिकोण के साथ भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
    • शहरी जल चक्र तथा शहरी निर्माण के बीच एकीकरण के लिये एक रूपरेखा की आवश्यकता है।
    • नदियों की बिगड़ती स्थिति के लिये बड़े पैमाने पर शहरों को उत्तरदायी ठहराया गया है और इसलिये कायाकल्प के प्रयासों में भी उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका की आवश्यकता होगी।
    • शहरों के लिये योजना बनाते समय नदी संवेदनशील दृष्टिकोण को मुख्यधारा में अपनाने की आवश्यकता है।

संबंधित पहल  

  • नमामि गंगे कार्यक्रम: यह राष्ट्रीय नदी ‘गंगा’ के संरक्षण और कायाकल्प तथा प्रदूषण के प्रभावी उन्मूलन के दोहरे उद्देश्यों को पूरा करने के लिये एक एकीकृत संरक्षण मिशन के रूप में प्रारंभ किया गया था।
  • गंगा एक्शन प्लान: यह पहली नदी कार्ययोजना थी जो 1985 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा लाई गई थी। इसका उद्देश्य जल अवरोधन, डायवर्ज़न और घरेलू सीवेज के उपचार द्वारा पानी की गुणवत्ता में सुधार करना था।
  • राष्ट्रीय नदी गंगा बेसिन प्राधिकरण (NRGBA): इसका गठन भारत सरकार ने वर्ष 2009 में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा-3 के तहत किया था। 
  • स्वच्छ गंगा कोष: इसे वर्ष 2014 में गंगा की सफाई, अपशिष्ट उपचार संयंत्रों की स्थापना और नदी की जैविक विविधता के संरक्षण के लिये बनाया गया था।
  • भुवन-गंगा वेब एप: यह गंगा नदी में प्रवेश करने वाले प्रदूषण की निगरानी में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करता है।
  • अपशिष्ट निपटान पर प्रतिबंध: वर्ष 2017 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने गंगा में किसी भी प्रकार के कचरे के निपटान पर प्रतिबंध लगा दिया।

स्रोत: पीआईबी