भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार
प्रिलिम्स के लिये: विश्व बैंक, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, भारतीय खाद्य निगम, पोषण अभियान
मेन्स के लिये: भारत में खाद्य सुरक्षा: सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) और सुधार, पोषण और हिडन हंगर
चर्चा में क्यों?
क्रिसिल द्वारा 'थाली सूचकांक' का उपयोग करते हुए किये गए एक हालिया अध्ययन से पता चलता है कि 50% ग्रामीण और 20% शहरी भारतीय एक दिन में दो समय का संतुलित भोजन नहीं कर सकते हैं, जिससे व्यापक रूप से खाद्यान्न अभाव का पता चलता है। यह वर्ष 2024 के घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण पर आधारित विश्व बैंक की पावर्टी एंड इक्विटी ब्रीफ के विपरीत है, जो दावा करता है कि अत्यधिक निर्धनता वर्ष 2011-12 में 16.2% से घटकर 2022-23 में 2.3% हो गई है।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के समर्थन के बावजूद, ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्यान्न अभाव 40% तथा शहरी क्षेत्रों में 10% बना रहा, जो आय-आधारित निर्धनता अनुमानों की तुलना में अधिक गहरी खाद्य असुरक्षा को दर्शाता है।
थाली सूचकांक
- केवल कैलोरी या आय पर आधारित पारंपरिक निर्धनता मापों के विपरीत, ‘थाली सूचकांक’ दृष्टिकोण यह आकलन करके खाद्यान्न अभाव को मापता है कि क्या परिवार एक बुनियादी, संतुलित भोजन (थाली, जिसमें चावल, दाल, रोटी, सब्ज़ियाँ, दही और सलाद शामिल हैं) का व्यय वहन करने की क्षमता रखता है।
- यह केवल कैलोरी नहीं बल्कि पोषण और तृप्ति दोनों को दर्शाता है। यह छिपी हुई वंचना को उजागर करता है, क्योंकि कई परिवारों के लिये आधिकारिक निर्धनता दर कम होने के बावजूद दिन में दो थाली भी वहन करना संभव नहीं है।
- यह दृष्टिकोण प्राथमिक खाद्य उपभोग में समानता को बढ़ावा देने के लिये PDS के पुनर्गठन की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
प्राथमिक खाद्य उपभोग में समानता को बढ़ावा देने के लिये सार्वजनिक वितरण प्रणाली के पुनर्गठन की आवश्यकता क्यों है?
- वर्तमान PDS की सीमाएँ: सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) सभी आय वर्गों में अनाज की खपत को समान बनाने में सफल रही है। हालाँकि PDS मुख्य रूप से चावल और गेहूँ प्रदान करता है, जिनमें कैलोरी तो अधिक होती है, लेकिन प्रोटीन तथा अन्य पोषक तत्त्व कम होते हैं। इससे भूख तो कम लगती है, लेकिन संतुलित पोषण नहीं मिलता।
- दलहनों की खपत में अंतर: एक स्वस्थ आहार के लिये केवल कैलोरी ही नहीं, बल्कि प्रोटीन, विटामिन और खनिज भी आवश्यक हैं। दलहन, जो प्राय: निर्धन के लिये प्रोटीन का एकमात्र स्रोत होती हैं, सब्सिडी के बिना उनकी पहुँच से बाहर रहती हैं।
- परिणामस्वरूप, ग्रामीण क्षेत्रों के सबसे निर्धन 5% परिवार, सबसे संपन्न 5% परिवारों की तुलना में केवल आधी दलहनों का उपभोग करते हैं, जो लागत बाधाओं के कारण उत्पन्न गंभीर पोषण संबंधी अंतर को उजागर करता है।
- सब्सिडी का गलत उपयोग: ग्रामीण भारत में, शीर्ष 10% उपभोग वर्ग के व्यक्तियों को सबसे निर्धन 5% लोगों को मिलने वाली सब्सिडी का 88% तक प्राप्त होता है।
- यह समूह सबसे निर्धन लोगों की तुलना में भोजन पर तीन गुना अधिक व्यय करता है, फिर भी PDS सब्सिडी से लाभ उठाता रहता है, जो लीकेज और गलत आवंटन को दर्शाता है।
- शहरी क्षेत्रों में, यद्यपि प्रणाली अधिक प्रगतिशील है, फिर भी 80% लोग अभी भी PDS सब्सिडी प्राप्त करते हैं, भले ही वे ‘दो थाली’ उपभोग मानदंड से अधिक हों।
- राजकोषीय बोझ और संसाधन का दुरुपयोग: जनवरी 2024 में, केंद्र सरकार ने 80 करोड़ लोगों को मुफ्त खाद्यान्न आपूर्ति (राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) 2013 के तहत) प्रदान की।
- हालाँकि, घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES) 2023-24 के आँकड़े बताते हैं कि इनमें से कई परिवार पहले से ही पर्याप्त अनाज का उपभोग कर रहे हैं। इतने बड़े पैमाने पर अधिकार वास्तविक आवश्यकता को नहीं दर्शाती और सार्वजनिक धनराशि की बर्बादी करती है।
- अधिक आवंटन से भारतीय खाद्य निगम (FCI) की खरीद, भंडारण और वितरण लागत भी बढ़ जाती है।
भारत में उपभोग के आधार पर गरीबी से संबंधित समितियाँ
- कार्य समूह (1962): न्यूनतम खाद्य और गैर-खाद्य आवश्यकताओं के आधार पर परिमाणित गरीबी रेखा। वर्ष 1960-61 के मूल्यों पर प्रति व्यक्ति प्रति माह ग्रामीण (20 रुपए) और शहरी (25 रुपए) को अलग-अलग किया गया।
- वी.एम. दांडेकर और एन. रथ (1971): प्रति व्यक्ति 2,250 किलो कैलोरी/दिन की पूर्ति हेतु आवश्यक व्यय के आधार पर व्युत्पन्न गरीबी रेखा।
- वाई.के. अलघ (1979): गरीबी रेखा बुनियादी कैलोरी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये आवश्यक प्रति व्यक्ति उपभोग पर आधारित थी: ग्रामीण क्षेत्रों में 2,400 किलो कैलोरी/दिन और शहरी क्षेत्रों में 2,100 किलो कैलोरी/दिन, जो ग्रामीण परिवारों के लिये 49.09 रुपए प्रति माह तथा शहरी परिवारों के लिये 56.64 रुपए प्रति माह के अनुरूप थी (1973-74 की कीमतें)।
- लकड़ावाला विशेषज्ञ समूह (1993): अलघ समिति की गरीबी रेखाओं को राष्ट्रीय स्तर पर बरकरार रखा गया तथा मूल्य अंतर को दर्शाने के लिये राज्य-विशिष्ट रेखाएँ शुरू की गईं।
- तेंदुलकर विशेषज्ञ समूह (2009): राज्य स्तर पर ग्रामीण और शहरी गरीबी को निकालने के लिये एक ही अखिल भारतीय शहरी गरीबी रेखा का उपयोग किया गया, जो पहले अलग-अलग ग्रामीण तथा शहरी गरीबी रेखा की प्रथा के स्थान पर था।
- इसने कैलोरी-आधारित से लक्ष्य-आधारित पोषण परिणामों की ओर परिवर्तन की सिफारिश की तथा ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए एक समान अखिल भारतीय गरीबी रेखा की सिफारिश की।
- रंगराजन समिति (2014): खाद्य और गैर-खाद्य वस्तुओं को शामिल करते हुए उपभोग बास्केट के साथ अलग-अलग ग्रामीण और शहरी गरीबी रेखाएँ पुनः लागू की गईं।
- गरीबी रेखा का अनुमान शहरी क्षेत्रों में 1407 रुपए और ग्रामीण क्षेत्रों में 972 रुपए प्रति व्यक्ति मासिक व्यय के रूप में लगाया गया है। सरकार ने इस रिपोर्ट को आधिकारिक तौर पर स्वीकार नहीं किया है।
पोषण-संवेदनशील PDS को लागू करने में क्या चुनौतियाँ हैं?
- लक्षित लाभार्थियों की सही पहचान: उन परिवारों की पहचान करना कठिन है जो वास्तव में "प्रतिदिन दो थाली" के मानदंड से कम भोजन करते हैं।
- इसमें बहिष्करण त्रुटियों (निर्धन परिवारों का छूट जाना) और समावेशन त्रुटियों (अच्छी स्थिति वाले परिवारों को लाभ मिलना) का उच्च जोखिम रहता है।
- अनाज अनुदान कम करने में राजनीतिक संवेदनशीलता: कई परिवार, जिनमें मध्यम वर्ग और समृद्ध स्थिति वाले समूह भी शामिल हैं, वर्तमान में सब्सिडी वाले चावल तथा गेहूँ का लाभ उठा रहे हैं।
- उनके अधिकारों में कटौती या उन्हें समाप्त करने से राजनीतिक प्रतिरोध और सार्वजनिक प्रतिक्रिया उत्पन्न हो सकती है।
- दालों की खरीद और वितरण: चावल तथा गेहूँ के विपरीत, दालों का उत्पादन कम मात्रा में होता है, इनकी कीमतों में अधिक उतार-चढ़ाव होता है एवं इनके भंडारण के लिये बेहतर सुविधाओं की आवश्यकता होती है।
- PDS के माध्यम से उनकी खरीद और वितरण को बढ़ाना तार्किक रूप से चुनौतीपूर्ण होगा।
- वित्तीय स्थिरता: दालों पर सब्सिडी बढ़ाने के साथ-साथ अनाज पर समर्थन जारी रखने से खाद्य सब्सिडी बिल पर भारी दबाव पड़ सकता है।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली के पुनर्गठन के बिना यह सरकार के लिये वित्तीय रूप से टिकाऊ नहीं हो सकता।
- सब्सिडी वाले खाद्य पदार्थ अक्सर खुले बाज़ारों में भेज दिये जाते हैं। दलहन जैसी महंगी वस्तुओं को शामिल करने से कालाबाज़ारी और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।
- प्रशासनिक और निगरानी क्षमता: पोषण-संवेदनशील PDS को लागू करने के लिये विश्वसनीय डेटा सिस्टम, डिजिटल ट्रैकिंग तथा मज़बूत निगरानी की आवश्यकता होती है।
- कमज़ोर निगरानी से कार्यकुशलता प्रभावित होती है और लाभ वास्तव में ज़रूरतमंदों तक नहीं पहुँच पाते हैं।
न्यायसंगत एवं पौष्टिक खाद्यान्न पहुँच सुनिश्चित करने हेतु सार्वजनिक वितरण प्रणाली में किस प्रकार सुधार किया जा सकता है?
- पोषण आधारित खाद्य मानक स्थापित करना: एक "न्यूनतम संतुलित आहार" मानक निर्धारित करना (जैसे, दिन में दो थालियाँ) जिसमें अनाज, दलहन, सब्जियाँ और दुग्ध उत्पाद शामिल हों।
- स्थानीय आहार पैटर्न और लागत को प्रतिबिंबित करने के लिये इसे क्षेत्र-विशिष्ट बनाइये।
- जैसा कि तेंदुलकर समिति (2009) ने सिफारिश की थी, गरीबी का आकलन कैलोरी मानदंडों से आगे बढ़कर व्यापक उपभोग की श्रेणी में होना चाहिये, जिसमें भोजन, स्वास्थ्य और शिक्षा शामिल हों।
- आवश्यकता के आधार पर सब्सिडी का लक्ष्य निर्धारित करना: पोषण मानक से नीचे के परिवारों की पहचान करने के लिये नवीनतम HCES डेटा को अद्यतन करना और उसका उपयोग करना।
- सबसे अधिक वंचितों को पूर्ण सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) सहायता प्रदान करना तथा मानक से ऊपर वाले लोगों के लिये सब्सिडी को कम या समाप्त करना।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली में दालों को शामिल करने का विस्तार: प्रोटीन की कमी को दूर करने हेतु सार्वजनिक वितरण प्रणाली में प्रमुख दलहन (अरहर, मूँग, चना) का वितरण बढ़ाया जाए। कम प्रोटीन सेवन वाले निम्न-आय वाले परिवारों के लिये आपूर्ति को प्राथमिकता दें और खरीद को न्यूनतम समर्थन मूल्य तथा बफर स्टॉकिंग तकनीक से जोड़ा जाए।
- अत्यधिक अनाज आवंटन में कटौती: जहाँ खपत पहले से ही लक्षित स्तर तक पहुँच चुकी है, वहाँ अनाज के कोटे में कटौती करें। इससे होने वाली बचत का उपयोग खाद्य टोकरी में विविधता लाने और पोषण स्तर सुधारने के लिये करें।
- पायलट और धीरे-धीरे विस्तार: राज्य स्तर पर पायलट परियोजना लागू करना, पोषण, वित्तीय लागतों तथा आपूर्ति शृंखलाओं पर प्रभावों की निगरानी करना, फिर राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार करना।
- प्रभाव को अधिकतम करने के लिये पोषण अभियान (राष्ट्रीय पोषण मिशन), समेकित बाल विकास योजना और मध्याह्न भोजन योजनाओं के साथ संरेखित करना।
- बेहतर लक्ष्य निर्धारण हेतु तकनीक का उपयोग: पारदर्शिता में सुधार तथा लीकेज को कम करने के लिये डिजिटल राशन कार्ड, आधार लिंकिंग और वास्तविक समय डेटा का उपयोग करना।
- दलहन और विविध आहारों के उपयोग को बढ़ाने के लिये लाभार्थियों के बीच पोषण साक्षरता को बढ़ावा देना।
निष्कर्ष
एक सुधारित और पोषण-केंद्रित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) भारत के अप्रत्यक्ष कुपोषण के अंतर को पाटने के लिये अत्यंत आवश्यक है। भविष्य की योजनाओं में रणनीतिक लक्ष्य निर्धारण, वित्तीय समझदारी तथा आहार विविधता को प्राथमिकता देनी चाहिये। भोजन की समानता केवल वितरण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पोषण के माध्यम से गरिमा प्रदान करने का माध्यम भी है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. लगभग सार्वभौमिक कैलोरी पर्याप्तता के बावजूद, भारत गंभीर पोषण असमानता का सामना कर रहा है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में सुधार की आवश्यकता का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये और कार्यान्वयन हेतु एक संक्षिप्त रोडमैप प्रस्तावित कीजिये। |
UPSC यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQs)
प्रिलिम्स
प्रश्न. प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन' के उद्देश्य हैं? (2017)
- गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं में कुपोषण के बारे में ज़ागरूकता पैदा करना।
- छोटे बच्चों, किशोरियों और महिलाओं में एनीमिया के मामलों को कम करना।
- बाजरा, मोटे अनाज और बिना पॉलिश किये चावल की खपत को बढ़ावा देना।
- पोल्ट्री अंडे की खपत को बढ़ावा देना।
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 3
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) केवल 3 और 4
उत्तर: (a)
प्रश्न.2 राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत किये गए प्रावधानों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
- केवल 'गरीबी रेखा से नीचे (BPL)' की श्रेणी में आने वाले परिवार ही सब्सिडी वाले खाद्यान्न प्राप्त करने के पात्र हैं।
- राशन कार्ड जारी करने के उद्देश्य से घर की सबसे बड़ी महिला, जिसकी आयु 18 वर्ष या उससे अधिक है, घर की मुखिया होगी।
- गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को गर्भावस्था के दौरान और उसके बाद छह महीने तक प्रति दिन 1600 कैलोरी का 'टेक-होम राशन' मिलता है
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) केवल 3
उत्तर: (b)
मेन्स
प्रश्न: खाद्य सुरक्षा बिल से भारत में भूख व कुपोषण के विलोपन की आशा है। उसके प्रभावी कार्यान्वयन में विभिन्न आशंकाओं की समालोचनात्मक विवेचना कीजिये। साथ ही यह भी बताइये कि विश्व व्यापार संगठन (WTO) में इससे कौन-सी चिंताएँ उत्पन्न हो गई हैं? (2013)
सऊदी-पाकिस्तान रक्षा समझौता
प्रिलिम्स के लिये: खाड़ी क्षेत्र, गाज़ा, लाल सागर, I2U2, वेस्ट कोस्ट रिफाइनरी परियोजना।
मेन्स के लिये: भारत के लिये सऊदी-पाकिस्तान रक्षा समझौते के निहितार्थ तथा इसकी चुनौतियों से निपटने हेतु सुझाए गए उपाय।
चर्चा में क्यों?
सऊदी अरब और पाकिस्तान ने सामरिक पारस्परिक रक्षा समझौते (SMDA) पर हस्ताक्षर करके दशकों के अनौपचारिक सैन्य सहयोग को औपचारिक रूप दिया है, यह एक ऐसा समझौता है जो दक्षिण एशिया और खाड़ी क्षेत्र में भारत के राष्ट्रीय हितों को विशेष रूप से प्रभावित कर सकता है।
- इस समझौते में सामूहिक रक्षा खंड, संयुक्त सैन्य तंत्र और खुफिया जानकारी साझा करना शामिल है।
- पाकिस्तान के लिये यह वित्तीय जीवनरेखा और रणनीतिक प्रासंगिकता प्रदान करता है, जबकि सऊदी अरब हेतु यह ईरान, हौथिस और इज़रायल की आक्रामकता जैसे क्षेत्रीय खतरों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है।
सऊदी-पाकिस्तान समझौते के भारत पर क्या प्रभाव होंगे?
- मध्य पूर्व में रणनीतिक चुनौतियाँ: सऊदी-पाकिस्तान रक्षा समझौते ने दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक संबंधों को पुनर्जीवित किया है, जो भारत की खाड़ी कूटनीति के लिये भू-राजनीतिक चुनौती पेश करता है।
- पाकिस्तान, रियाध (Riyadh) के साथ अपने सुदृढ़ होते संबंधों का उपयोग करते हुए, इस्लामी सहयोग संगठन (OIC) में कश्मीर को लेकर भारत-विरोधी विमर्श को प्रोत्साहित कर सकता है, जिससे इस्लामी देशों में भारत की स्थिति और प्रभाव को चुनौती मिल सकती है।
- ऊर्जा सुरक्षा और प्रवासी भारतीयों पर प्रभाव: सऊदी-पाकिस्तान के बीच गहरे रणनीतिक गठबंधन के कारण भारत की ऊर्जा सुरक्षा तथा सऊदी कच्चे तेल पर निर्भरता को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जिससे वाणिज्यिक एवं भू-राजनीतिक संबंध जटिल हो सकते हैं।
- इसके अतिरिक्त सऊदी अरब में भारत के 2.6 मिलियन प्रवासी, जो धन प्रेषण का एक प्रमुख स्रोत हैं, क्षेत्रीय राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव से प्रभावित हो सकते हैं।
- आतंकवाद-रोधी प्रयासों पर दबाव: अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को आतंकवाद के मुद्दे पर अलग-थलग करने के भारत के प्रयासों पर असर पड़ सकता है, क्योंकि सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच गहराती रणनीतिक साझेदारी सऊदी अरब के साथ भारत के बढ़ते आतंकवाद-रोधी सहयोग को प्रभावित कर सकती है। इससे भारत की कूटनीतिक पहलों के लिये रियाध का समर्थन सीमित हो सकता है।
- उन्नत तकनीकों में अस्थिरता बढ़ाने वाली हथियारों की दौड़ को बढ़ावा: सऊदी अरब का वित्तीय समर्थन पाकिस्तान को अपनी सैन्य क्षमता को तेज़ी से आधुनिक बनाने में सक्षम बना सकता है, जिससे वह लड़ाकू ड्रोन, हाइपरसोनिक मिसाइलें और साइबर युद्ध तकनीकों में निवेश कर सकेगा। इसके लिये वह तुर्की और चीन जैसे साझेदारों का सहारा ले सकता है, जिन पर भारत का प्रभाव सीमित है।
- इससे नई दिल्ली पर अपनी पश्चिमी सीमा पर तकनीकी रूप से उन्नत प्रतिद्वंद्वी का मुकाबला करने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), अंतरिक्ष और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध जैसे क्षेत्रों में तेज़, और महंगी हथियारों की दौड़ में शामिल होने का दबाव बढ़ गया है।
भारत के लिये सऊदी अरब का महत्त्व
- ऊर्जा सुरक्षा: सऊदी अरब एक रणनीतिक ऊर्जा साझेदार है जो भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं के लिये महत्त्वपूर्ण कच्चे तेल के सबसे बड़े आपूर्तिकर्त्ताओं में से एक है।
- आर्थिक साझेदारी: भारत सऊदी अरब का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जबकि भारत के लिये सऊदी अरब पाँचवें स्थान पर है।
- सऊदी अरब में 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर के भारतीय निवेश (अगस्त 2023 तक) के साथ, यह संबंध भारत के आर्थिक विकास और विविधीकरण का एक प्रमुख स्तंभ है।
- सामरिक एवं रक्षा सहयोग: भारत और सऊदी अरब संयुक्त सैन्य अभ्यास जैसे कि EX-SADA TANSEEQ (भूमि) और अल मोहेद अल हिंदी (नौसेना) के माध्यम से रक्षा संबंधों को मज़बूत कर रहे हैं, जिससे अंतर-संचालन, विश्वास तथा क्षेत्रीय सुरक्षा सहयोग में वृद्धि होगी।
- भू-राजनीतिक लाभ और संपर्क: भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEC) के लिये सऊदी समर्थन महत्त्वपूर्ण है, जो चीनी प्रभाव का मुकाबला करने और क्षेत्रीय संपर्क बढ़ाने हेतु एक प्रमुख पहल है।
- प्रवासी और सॉफ्ट पावर: 2.6 मिलियन की संख्या वाला भारतीय समुदाय महत्त्वपूर्ण सॉफ्ट पावर और विप्रेषण प्रदान करता है, जबकि योग जैसे सांस्कृतिक आदान-प्रदान लोगों के बीच संबंधों को मज़बूत करते हैं।
- भविष्योन्मुखी सहयोग: हरित ऊर्जा (सौर, हाइड्रोजन) और प्रौद्योगिकी (AI, फिनटेक) में भारत की पहल सऊदी विज़न 2030 के अनुरूप है, जो हाइड्रोकार्बन से आगे दीर्घकालिक एवं सतत् सहयोग की नींव रखती है।
भारत सऊदी-पाकिस्तान समझौते के प्रभाव को कैसे संभाल सकता है?
- कूटनीति पर ज़ोर: भारत को सुनिश्चित करना चाहिये कि सऊदी अरब के साथ उसके संबंध पाकिस्तान की दृष्टि से नहीं, बल्कि आर्थिक हितों से परिभाषित हों। इसमें ऊर्जा सुरक्षा, निवेश संबंध (जैसे वेस्ट कोस्ट रिफाइनरी परियोजना) और नवीकरणीय ऊर्जा, प्रौद्योगिकी तथा वित्त से जुड़े भविष्य उन्मुख परियोजनाओं में उसकी भूमिका पर बल दिया जाना चाहिये।
- व्यावहारिक पुनः-संलग्नता को क्रियान्वित करना: सऊदी-पाकिस्तान समझौता ईरान को भारत के लिये एक सामरिक साझेदार के रूप में स्थापित करता है, जिससे नई दिल्ली को चाबहार बंदरगाह का पूर्ण उपयोग करने और अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) को तीव्र करने की आवश्यकता है। इससे अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक सीधा एवं सुरक्षित मार्ग सुनिश्चित होगा तथा पाकिस्तान के पश्चिमी मोर्चे का संतुलन किया जा सकेगा।
- लुक वेस्ट नीति को सुदृढ़ करना: भारत को अपनी खाड़ी रणनीति में विविधता लानी चाहिये, जिसके लिये उसे व्यापार समझौतों, LNG आपूर्ति तथा रक्षा सहयोग के माध्यम से संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और कतर के साथ संबंध गहरे करने होंगे, साथ ही क्षेत्रीय संतुलन सुनिश्चित करने के लिये ईरान के साथ व्यावहारिक संबंध बनाए रखने होंगे।
- इसके अतिरिक्त, I2U2 जैसे लघुपक्षीय ढाँचे का लाभ उठाने से भारत की भूमिका एक स्थिर और गैर-खतरनाक साझेदार के रूप में मज़बूत होती है।
निष्कर्ष
सऊदी-पाकिस्तान समझौता पश्चिम एशिया में बहुध्रुवीयता की ओर एक महत्त्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है, जो अविश्वसनीय अमेरिकी गारंटियों से बचाव के लिये प्रेरित है। भारत के लिये, अपने महत्त्वपूर्ण हितों की रक्षा और नए रणनीतिक परिदृश्य में आगे बढ़ने के लिये कुटिल कूटनीति, रियाद के साथ आर्थिक जुड़ाव तथा एक विविध क्षेत्रीय रणनीति की आवश्यकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. सऊदी-पाकिस्तान समझौता खाड़ी में भारत के हितों और प्रभाव को किस प्रकार प्रभावित करता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन 'खाड़ी सहयोग परिषद' का सदस्य नहीं है? (2016)
(a) ईरान
(b) ओमान
(c) सऊदी अरब
(d) कुवैत
उत्तर: (a)
मेन्स
प्रश्न. भारत की ऊर्जा सुरक्षा का प्रश्न भारत की आर्थिक प्रगति का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग है। पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के ऊर्जा नीति सहयोग का विश्लेषण कीजिये। (2017)
भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग
प्रिलिम्स के लिये: भारत का सर्वोच्च न्यायालय, NAMASTE, सफाईमित्र सुरक्षा चैलेंज, स्वच्छता अभियान ऐप, राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग
मेन्स के लिये: मैनुअल स्कैवेंजिंग के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियाँ और उनके समाधान के लिये उठाए गए कदम। हाथ से मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने हेतु अतिरिक्त उपायों की आवश्यकता।
चर्चा में क्यों?
भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) नेने दिल्ली के लोक निर्माण विभाग (PWD) पर 5 लाख रुपये का ज़ुर्माना लगाया है, क्योंकि उसकी परिसर के बाहर मजदूरों को बिना सुरक्षात्मक उपकरणों के सीवर की सफाई करते हुए पाया गया।
- न्यायालय ने इसे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2023 के ऐतिहासिक निर्णय (डॉ. बलराम सिंह बनाम भारत संघ) में जारी निर्देशों का उल्लंघन माना, जिसका उद्देश्य मैनुअल स्कैवेंजिंग और खतरनाक सीवर सफाई की अमानवीय तथा जाति-आधारित प्रथा को समाप्त करना था।
डॉ. बलराम सिंह बनाम भारत संघ, 2023 मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश क्या हैं?
- ताज़ा और विश्वसनीय सर्वेक्षण: राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में मैनुअल स्कैवेंजरों की पहचान के लिये एक व्यापक राष्ट्रीय सर्वेक्षण किया जाए।
- उन्मूलन उपाय: सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई का पूर्ण मशीनीकरण करने का आदेश दिया गया है। सीवर में मानव प्रवेश केवल असाधारण मामलों में ही संभव है जहाँ यांत्रिक सफाई संभव न हो।
- सुरक्षात्मक उपकरण और सुरक्षा: किसी भी कर्मचारी को उचित सुरक्षात्मक उपकरण के बिना नालियों, सेप्टिक टैंकों या सीवर में नहीं भेजा जाएगा। सुरक्षात्मक उपकरणों के अभाव को अनुच्छेद 21 और 23 का उल्लंघन माना जाएगा।
- पुनर्वास एवं मुआवज़ा: सीवर या सेप्टिक टैंक कार्य में मरने वाले व्यक्तियों के परिवारों के पुनर्वास को संवैधानिक अधिकार माना जाएगा।
- मृत या विकलांग श्रमिकों के आश्रितों को मुआवजा बढ़ाया जाना चाहिये तथा शीघ्र वितरित किया जाना चाहिये।
- नमस्ते (मशीनीकृत स्वच्छता पारिस्थितिकी तंत्र के लिये राष्ट्रीय कार्रवाई) जैसी योजनाओं के तहत पुनर्वास को व्यापक सामाजिक सुरक्षा उपायों के साथ एकीकृत करें। मैनुअल स्कैवेंजरों के बच्चों के लिये छात्रवृत्ति और शैक्षिक अवसर प्रदान करें।
- जागरूकता और रिपोर्टिंग: इस प्रथा के विरुद्ध जन जागरूकता अभियान चलाए जाए। मृत्यु, पुनर्वास की स्थिति और मुआवज़े के वितरण को ट्रैक करने के लिये एक केंद्रीकृत ऑनलाइन पोर्टल बनाया
- कल्याणकारी कानूनों का कार्यान्वयन: मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोज़गार का निषेध और उनका पुनर्वास (PEMSR) अधिनियम, 2013 का पूर्ण प्रवर्तन सुनिश्चित करना।
मैनुअल स्कैवेंजिंग क्या है?
- परिचय: PEMSR अधिनियम, 2013 के अनुसार, यह अस्वास्थ्यकर शौचालयों, खुली नालियों, गड्ढों, रेलवे पटरियों या किसी अन्य अधिसूचित स्थान से मानव मल को मैन्युअल रूप से साफ करने, ले जाने, निपटाने या संभालने की प्रथा है।
- कानूनी ढाँचा: मैनुअल स्कैवेंजर्स का रोज़गार और शुष्क शौचालय का निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993 के बाद से भारत में इसे आधिकारिक तौर पर प्रतिबंधित कर दिया गया है।
- मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोज़गार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 मैनुअल स्कैवेंजरों के नियोजन पर प्रतिबंध लगाता है, उनका पुनर्वास सुनिश्चित करता है, तथा प्रत्येक अपराध को संज्ञेय और गैर-ज़मानती बनाता है।
- वर्तमान स्थिति (2024): देश के 766 ज़िलों में से 732 ज़िलों ने स्वयं को मैनुअल स्कैवेंजिंग-मुक्त घोषित कर दिया है, फिर भी वर्ष 2024 तक भारत में लगभग 58,000 मैनुअल स्कैवेंजरों की पहचान की गई है।
- भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग के जारी रहने के कारण:
- जाति-आधारित भेदभाव: ऐतिहासिक रूप से दलित समुदायों से जुड़ा हुआ है, जिससे यह एक वंशानुगत व्यवसाय बन गया है।
- गहरी जड़ें जमाए बैठी अस्पृश्यता और जातिगत पूर्वाग्रह समुदायों को इस व्यवसाय में फँसे रहने के लिये मज़बूर करते हैं।
- गरीबी और विकल्पों का अभाव: कई श्रमिकों के पास आजीविका का कोई अन्य स्रोत नहीं है।
- अपूर्ण मशीनीकरण: सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के लिये मशीनें अभी भी व्यापक रूप से उपलब्ध या सुलभ नहीं हैं, खासकर छोटे शहरों में।
- कानूनों का खराब प्रवर्तन: वर्ष 1993 और 2013 के अधिनियमों के बावजूद, ज़मीनी स्तर पर कार्यान्वयन कमज़ोर है।
- ठेकेदार प्रणाली: श्रमिकों को अक्सर जवाबदेही को दरकिनार करते हुए ठेकेदारों के माध्यम से अनौपचारिक रूप से काम पर रखा जाता है।
- सर्वेक्षणों और आँकड़ों में अंतराल: असंगत और कम रिपोर्ट किये गए सर्वेक्षणों के कारण समस्या का कम आकलन होता है, जिससे इसका वास्तविक स्तर छिप जाता है।
- जाति-आधारित भेदभाव: ऐतिहासिक रूप से दलित समुदायों से जुड़ा हुआ है, जिससे यह एक वंशानुगत व्यवसाय बन गया है।
मैनुअल स्कैवेंजिंग के उन्मूलन के लिये भारत की क्या पहल हैं?
- सफाईमित्र सुरक्षा चुनौती
- स्वच्छता अभियान ऐप
- राष्ट्रीय गरिमा अभियान
- राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग
- स्वच्छता उद्यमी योजना (SUY)
- पूर्व शिक्षण की मान्यता (RPL)
- NAMASTE (मशीनीकृत स्वच्छता पारिस्थितिकी तंत्र के लिये राष्ट्रीय कार्रवाई)
- तकनीकी पहल:
- बैंडिकूट रोबोट: स्वायत्त या दूरस्थ रूप से सीवर लाइनों की सफाई, निरीक्षण और अवरोध हटाने का कार्य करता है।
- एँडोबोट और स्वस्थ AI: यह जल संदूषण, अपव्यय एवं सीवर ओवरफ्लो का पता लगाने तथा उसे कम करने के लिये पाइपलाइनों के प्रबंधन पर केंद्रित है।
- रोबो-ड्रेन सिस्टम: यह भूमिगत सीवरों की सफाई के लिये स्वचालित रोबोटिक प्रौद्योगिकी है।
- वैक्यूम ट्रक: इसके तहत मानव प्रवेश के बिना सीवेज अपशिष्ट को साफ करने के लिये शक्तिशाली पंपों का उपयोग करना शामिल है।
मैनुअल स्कैवेंजरों के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- स्वास्थ्य जोखिम: मानव मल और हाइड्रोजन सल्फाइड जैसी ज़हरीली गैसों के संपर्क में आने से मैनुअल स्कैवेंजर हेपेटाइटिस, टेटनस, हैजा और दम घुटने जैसी बीमारियों (Asphyxiation) के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
- सामाजिक कलंक: उन्हें ‘अछूत’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है और वे गहरे जातिगत भेदभाव का सामना करते हैं, जो सामाजिक बहिष्करण तथा प्रणालीगत हाशिएकरण को मज़बूत करता है।
- आर्थिक चुनौतियाँ: न्यूनतम मज़दूरी से भी कम वेतन मिलने तथा प्रायः दैनिक मज़दूरी या संविदात्मक आधार पर कार्य करने के कारण, उनके पास नौकरी की सुरक्षा, सामाजिक संरक्षण और वैकल्पिक आजीविका के विकल्पों का अभाव है, जिसके कारण वे गरीबी में फँसे रहते हैं।
- दोहरा भेदभाव: महिलाओं को जाति और लैंगिक आधारित शोषण का सामना करना पड़ता है, जिसमें यौन उत्पीड़न, दुर्व्यवहार एवं आर्थिक असमानता शामिल है।
- मनोवैज्ञानिक मुद्दे: निरंतर सामाजिक कलंक, कठोर कार्य परिस्थितियाँ तथा हाशिये पर रहने से दुश्चिंता, अवसाद और कम आत्मसम्मान पैदा होता है।
- मादक द्रव्यों का सेवन: कई लोग तनाव, अपमान और शारीरिक कठिनाई से निपटने के लिये शराब या नशीली दवाओं का सहारा लेते हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य तथा कल्याण पर और अधिक प्रभाव पड़ता है।
भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग को समाप्त करने हेतु क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?
- स्वच्छता कार्य का मशीनीकरण: सीवर, सेप्टिक टैंक, नालियों, अपशिष्ट उठाने, कीचड़ प्रबंधन तथा ठोस एवं चिकित्सा अपशिष्ट निपटान की 100% मशीनीकृत सफाई को बढ़ावा देना।
- स्वच्छता प्रतिक्रिया इकाइयों (SRU) को मशीनीकृत सफाई के लिये मशीनों, वाहनों और उपकरणों से सुसज्जित करना। मशीनीकृत संचालन के लिये पेशेवर रूप से कुशल जनशक्ति को प्रशिक्षित करना।
- संस्थागत ढाँचा: स्वच्छता और मशीनीकरण की निगरानी के लिये प्रत्येक ज़िले में एक उत्तरदायी स्वच्छता प्राधिकरण की नियुक्ति करना। प्रत्येक नगरपालिका में सीवर और सेप्टिक टैंकों में रुकावटों की सूचना देने के लिये 24x7 हेल्पलाइन के साथ SRU स्थापित करना।
- कानूनों का सख्त पालन: PEMSR अधिनियम, 2013 को कड़ाई से लागू करना, उल्लंघनकर्त्ताओं के लिये कड़े दंड तय करना, सीवर में होने वाली मृत्यु को जानलेवा हत्याकांड के रूप में मानना और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुसार मुआवजा सुनिश्चित करना।
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने वर्ष 2013 के अधिनियम के तहत सफाई कर्मचारियों और मैनुअल स्कावेंजर्स के बीच अंतर बनाए रखने की सिफारिश की है। आयोग ने डी-स्लेजिंग मार्केट को सूचीबद्ध और विनियमित करने की भी सिफारिश की है।
- वित्तीय सहायता एवं प्रोत्साहन: स्वच्छता श्रमिकों, आश्रितों और शहरी निकायों को स्वच्छता उपकरण तथा वाहन खरीदने के लिये स्वच्छता उद्यमी योजना (SUY) के अंतर्गत रियायती ऋण प्रदान करना।
- स्थायी आजीविका को समर्थन देने के लिये स्वच्छता संबंधी परियोजनाओं हेतु मैनुअल स्कैवेंजर्स के पुनर्वास हेतु स्वरोजगार योजना (SRMS) की पहुँच का विस्तार करना।
- सतत् आजीविका: पीएम-दक्ष के तहत मैनुअल स्कैवेंजरों को अपशिष्ट प्रबंधन और मशीन संचालन में प्रशिक्षित करना, साथ ही मनरेगा के तहत शहरी निकायों में प्राथमिकता के आधार पर नियुक्ति करना।
- स्वास्थ्य जाँच: सभी शहरी स्थानीय निकायों (ULB) में सफाई कर्मचारियों के लिये नियमित स्वास्थ्य जाँच आयोजित करना, जिसमें निर्धारित उपचार और रोकथाम प्रोटोकॉल के साथ-साथ श्वसन तथा त्वचा संबंधी बीमारियों पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. कानूनी सुरक्षा उपायों के अस्तित्व के बावजूद भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग को समाप्त करने में चुनौतियों की समालोचनात्मक जाँच कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न. 'राष्ट्रीय गरिमा अभियान' एक राष्ट्रीय अभियान है, जिसका उद्देश्य है: (2016)
(a) बेघर एवं निराश्रित व्यक्तियों का पुनर्वास और उन्हें आजीविका के उपयुक्त स्रोत प्रदान करना।
(b) यौनकर्मियों को उनके अभ्यास से मुक्त करना और उन्हें आजीविका के वैकल्पिक स्रोत प्रदान करना।
(c) हाथ से मैला ढोने की प्रथा को खत्म करना और हाथ से मैला ढोने वालों का पुनर्वास करना।
(d) बंधुआ मज़दूरों को मुक्त करना और उनका पुनर्वास करना।
उत्तर: (c)
मेन्स
प्रश्न. निरंतर उत्पन्न किये जा रहे, फेंके गए ठोस कचरे की विशाल मात्राओं का निस्तारण करने में क्या-क्या बाधाएँ हैं? हम अपने रहने योग्य परिवेश में जमा होते जा रहे ज़हरीले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से किस प्रकार हटा सकते हैं? (2018)
प्रश्न. "जल, सफाई एवं स्वच्छता की आवश्यकता को लक्षित करने वाली नीतियों के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये लाभार्थी वर्गों की पहचान को प्रत्याशित परिणामों के साथ जोड़ना होगा।" 'वाश' योजना के संदर्भ में इस कथन का परीक्षण कीजिये। (2017)