डेली न्यूज़ (16 Jul, 2025)



भारत में दहेज मृत्यु

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, दहेज हत्या, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, सुकन्या समृद्धि योजना

मेन्स के लिये:

भारत में दहेज मृत्यु, भारतीय न्याय संहिता के अंतर्गत दहेज से संबंधित कानूनी प्रावधान

स्रोत: TH

चर्चा में क्यों?

उत्तर प्रदेश, चंडीगढ़ और तमिलनाडु जैसे राज्यों में दहेज से संबंधित मृत्यु में वृद्धि इस गैरकानूनी प्रथा की लगातार बढ़ती को दर्शाती है। महिलाओं को अब भी दहेज के लिये उत्पीड़न, मारपीट और आत्महत्या जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है, जबकि जाँच प्रक्रियाएँ लंबी होती हैं तथा दोषियों को सजा मिलना दुर्लभ बना हुआ है।

दहेज मृत्यु और क्रूरता 

  • दहेज मृत्यु: भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita - BNS) की धारा 80 के अनुसार, यदि किसी महिला की शादी के 7 वर्षों के भीतर जलने, चोट लगने या किसी अन्य अप्राकृतिक परिस्थिति में मृत्यु हो जाती है और मृत्यु से पहले उसे दहेज के लिये प्रताड़ित या परेशान किया गया हो, तो इसे दहेज मृत्यु माना जाएगा।
    • सजा: न्यूनतम 7 वर्ष का कारावास, जो आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है।
  • क्रूरता: बीएनएस की धारा 86 के तहत क्रूरता को किसी भी जानबूझकर किये गए आचरण के रूप में परिभाषित किया गया है, जो किसी महिला को आत्महत्या करने के लिये प्रेरित कर सकता है या उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुँचा सकता है। 
  • इसमें उसे या उसके परिवार को धन या संपत्ति की अवैध मांगों को पूरा करने के लिये मज़बूर करने के उद्देश्य से किया गया उत्पीड़न, या ऐसी मांगों को पूरा करने में विफलता के कारण किया गया उत्पीड़न भी शामिल है।

भारत में दहेज से संबंधित मृत्यु के क्या कारण हैं?

  • सांस्कृतिक अधिकार और गहराई से जमी परंपराएँ: दहेज, भले ही वर्ष 1961 से दहेज निषेध अधिनियम के तहत अवैध घोषित है, फिर भी इसे आज भी एक सामाजिक प्रथा के रूप में देखा जाता है।
    • कई परिवार इसे विवाह का अनिवार्य हिस्सा मानते हैं और अक्सर इसे “उपहार” के रूप में छिपाया जाता है। समाज के कुछ वर्गों में, किसी लड़की की अहमियत उसके जीवन की उपलब्धियों से नहीं, बल्कि वह कितना दहेज लेकर आई, इससे तय की जाती है।
    • सांस्कृतिक और सामाजिक दबाव के कारण परिवार बढ़ती दहेज मांगों को पूरा करने के लिये मज़बूर हो जाते हैं, जिससे उत्पीड़न, हिंसा और यहाँ तक कि मौतें भी होती हैं।
  • भारत में दहेज समस्या की व्यापकता: वर्ष 2017 से 2022 के बीच, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार भारत में प्रत्येक वर्ष औसतन 7,000 दहेज से संबंधित हत्याएँ दर्ज हुईं।
    • NCRB के आँकड़ें अपवादित हैं, क्योंकि दहेज से होने वाली अनेक मौतें रिपोर्ट ही नहीं की जातीं, जो इस समस्या की गंभीरता को रेखांकित करता है।
    • विश्व बैंक द्वारा वर्ष 1960 से 2008 तक ग्रामीण भारत में किये गए एक अध्ययन में, 40,000 शादियों में से 95% में दहेज दिया गया था। यह दर्शाता है कि यह प्रथा आज भी कितनी गहराई तक फैली हुई है।
  • लैंगिक भेदभाव और पितृसत्तात्मक प्रथाएँ: दहेज का इस्तेमाल अक्सर महिलाओं पर नियंत्रण स्थापित करने के लिये किया जाता है, जिन्हें शादी के बाद बोझ समझा जाता है। पति और ससुराल वालों द्वारा अतिरिक्त दहेज की माँग पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण में निहित है जो महिलाओं को एक वस्तु के रूप में देखते हैं।
  • हिंसा का सामान्यीकरण: भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 80 और 85 जैसे कानून दहेज से संबंधित मृत्यु और उत्पीड़न को अपराध की श्रेणी में रखते हैं। फिर भी, दहेज प्रथा ने कई घरों में दुर्व्यवहार को सामान्य बना दिया है। ऐसी हिंसा अक्सर दर्ज नहीं की जाती, इसे निजी पारिवारिक मामला मानकर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
    • वर्ष 2017 और 2022 के बीच, भारत भर में 6,100 से अधिक हत्याओं का मुख्य कारण दहेज था। 
    • इनमें से 60% से अधिक मामले पश्चिम बंगाल, ओडिशा और बिहार से सामने आए। झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा जैसे राज्यों को मिलाकर ये आठ राज्य इस अवधि में 80% दहेज हत्याओं के लिये ज़िम्मेदार थे।
    • कानूनों की सही जानकारी का अभाव और उनका प्रभावी क्रियान्वयन न होना महिलाओं के लिये हिंसात्मक रिश्तों से बाहर निकलना और भी कठिन बना देता है।
  • आर्थिक कारकों की भूमिका: बढ़ते आर्थिक दबाव दहेज की बढ़ती माँग में योगदान करते हैं। बढ़ता उपभोक्तावाद, सोशल मीडिया का प्रभाव और 'भव्य शादी' की चाहत दहेज की अपेक्षाओं के लिये अनुकूल माहौल बनाती है।

न्यायिक हस्तक्षेप:

  • संजय कुमार जैन बनाम दिल्ली राज्य (2011): सर्वोच्च न्यायालय ने दहेज प्रथा को भारतीय समाज पर एक अभिशाप बताया और दहेज हत्या के बढ़ते खतरे को खत्म करने के लिये कड़े प्रयास करने का आह्वान किया।
  • के. प्रेमा एस. राव बनाम यदला श्रीनिवास राव (2003): सर्वोच्च न्यायालय ने ज़ोर देकर कहा कि कड़े कानून तभी प्रभावी होंगे जब उनका गंभीरता से पालन किया जाएगा। इसने अदालतों और प्रवर्तन एजेंसियों से दहेज विरोधी कानून के उद्देश्य को पूरा करने के लिये दृढ़ता से कार्य करने का आग्रह किया।
  • सतवीर सिंह एवं अन्य बनाम पंजाब राज्य (1998): पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने दहेज को एक कलंक और सामाजिक बुराई बताया तथा दहेज से संबंधित मृत्यु को रोकने के लिये सामाजिक सोच में बदलाव और मज़बूत कानूनों की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया।
  • एस. गोपाल रेड्डी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (1996): सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में स्पष्ट किया कि दहेज निषेध अधिनियम का उद्देश्य न केवल दहेज प्राप्त करने वालों को, बल्कि दहेज मांगने वालों को भी दंडित करना है। दहेज को विवाह के बदले में "लेन-देन" (quid pro quo) के रूप में लेना या देना अवैध है और यह समाज में गहराई से फैले लिंग भेदभाव को दर्शाता है।

भारत में दहेज से संबंधित मामलों के समक्ष कानूनी और न्यायिक चुनौतियाँ कौन-सी हैं?

  • अपर्याप्त जाँच और धीमी प्रतिक्रिया: प्रत्येक वर्ष दहेज हत्या के 7,000 मामलों में से केवल 4,500 मामलों में ही आरोप पत्र दाखिल हो पाते हैं। 
    • बाकी मामलों में जाँच में देरी, लापरवाही, साक्ष्य की कमी या झूठी शिकायतों के कारण कार्रवाई आगे नहीं बढ़ पाती।
    • वर्ष 2022 में दहेज से संबंधित 67% से अधिक मौतों की जाँच छह महीने से अधिक समय से लंबित थी, जो प्रणालीगत देरी को दर्शाता है।
  • न्यायिक बाधाएँ: चार्जशीट दाखिल होने के बाद भी 90% से अधिक मामलों में अदालती कार्यवाही में देरी होती है। प्रत्येक वर्ष औसतन केवल 100 दोषसिद्धियों के साथ, ये मामले वर्षों तक लंबित रहते हैं, जिससे अपराधियों में दंड से बच निकलने की भावना बढ़ती है।
  • पुलिस और न्यायपालिका के बीच समन्वय का अभाव: पुलिस अक्सर छोटे शहरों या गांवों में दहेज संबंधी शिकायतों को “मध्यस्थता” के माध्यम से सुलझाने की कोशिश करती है।
    • इसके अलावा, चार्जशीट दाखिल करने की धीमी गति (70% मामलों में दो महीने या उससे अधिक समय के बाद) और अदालतों में कार्यवाही की देरी, एक ऐसी व्यवस्था बनाती है जहाँ न्याय केवल विलंबित नहीं बल्कि कई बार निषेध हो जाता है।
  • कम रिपोर्ट करना और पीड़ित को दोषी ठहराना: दहेज से जुड़ी कई मौतों की रिपोर्ट ही नहीं की जाती, क्योंकि पीड़ितों और उनके परिवारों को सामाजिक कलंक, कानूनी जानकारी की कमी और समाज व परिवार के दबाव का सामना करना पड़ता है।
    • कई महिलाएँ इस डर से शिकायत दर्ज नहीं करातीं कि उन्हें परिवार से निकाल दिया जाएगा और पीड़ित परिवार अक्सर सघन सामाजिक ढाँचे वाले समुदायों में न्याय के लिये आगे आने से हिचकिचाते हैं।

दहेज संबंधी हिंसा के चक्र को समाप्त करने हेतु के क्या किया जा सकता है?

  • आर्थिक सशक्तीकरण: महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना दहेज हिंसा के चक्र को तोड़ने की कुंजी है। बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 और शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 जैसे कानूनों को सख्ती से लागू किया जाना चाहिये ताकि लड़कियाँ स्कूल में बनी रहें और बाल विवाह से बचें।
  • दहेज रिपोर्टिंग को आसान और सुरक्षित बनाना: टेक्नोलॉजी आधारित प्लेटफॉर्म (जैसे ऐप्स, व्हाट्सऐप हेल्पलाइन) का उपयोग करके गुमनाम शिकायतों की सुविधा दी जा सकती है तथा पुलिस की प्रतिक्रिया को ट्रैक किया जा सकता है। परिवार या समुदाय के अंदर से आने वाले व्हिसलब्लोअर्स को कानूनी गोपनीयता और सुरक्षा दी जानी चाहिये, जिससे रिपोर्टिंग को सुरक्षित बनाने से अधिक महिलाएँ आगे आने का साहस करेंगी।
  • कानून प्रवर्तन को मजबूत करना: दहेज संबंधी मामलों को अधिक संवेदनशीलता और तत्परता से निपटाने के लिये पुलिस को प्रशिक्षित किया जाना चाहिये। समय पर जाँच और आरोपियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
    • दहेज की शिकायतों को शुरू से ही आपराधिक मामलों के रूप में दर्ज और जाँच किया जाना चाहिये। इन मामलों को गंभीरता से लेना यह स्पष्ट संदेश देता है कि दहेज से जुड़ा उत्पीड़न कोई समझौते योग्य विषय नहीं, बल्कि एक अपराध है।
  • महिलाओं के लिये वास्तविक "एक्सिट पाथवे" बनाना: बिना सहारे के दुर्व्यवहार से बाहर निकलना संभव नहीं है। प्रत्येक ज़िले में परामर्श, क़ानूनी सहायता और रोज़गार सहायता सहित उचित आश्रयों की आवश्यकता है। जो महिलाएँ बाहर निकलती हैं, उन्हें सीधे नकद या आय सहायता मिलनी चाहिये, ताकि जीवनयापन अगला संघर्ष न बन जाए।
  • न्यायिक सुधार और मामलों की त्वरित सुनवाई: दहेज हत्या के मामलों के लिये समर्पित फास्ट-ट्रैक अदालतों की स्थापना से मुकदमों में तेजी आएगी और न्याय प्रणाली में देरी कम होगी। 
  • जागरूकता और कानूनी सहायता में वृद्धि: दहेज उत्पीड़न के पीड़ितों को कानूनी सहायता और परामर्श तक आसान पहुँच प्रदान की जानी चाहिये।
    • दहेज के नकारात्मक प्रभावों को लक्षित करने वाले सामाजिक जागरूकता अभियान समय के साथ सामाजिक दृष्टिकोण को बदलने में मदद कर सकते हैं, जिससे दहेज से संबंधित हिंसा में कमी आ सकती है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: "कानूनी रूप से निषिद्ध होने के बावजूद, भारत में दहेज प्रथा अब भी फल-फूल रही है।" इसके पीछे सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक कारणों की विवेचना कीजिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स:

  1. महिलाएँ जिन समस्याओं का सार्वजनिक एवं निजी दोनों स्थलों पर सामना कर रही हैं, क्या राष्ट्रीय महिला आयोग उनका समाधान निकालने की रणनीति बनाने में सफल रहा है? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क प्रस्तुत कीजिये। (2017)
  2. हम देश में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के मामलों में वृद्धि देख रहे हैं। इसके खिलाफ मौजूदा कानूनी प्रावधानों के बावजूद ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। इस खतरे से निपटने के लिये कुछ अभिनव उपाय सुझाइये। (2014)


सतत् विकास के वित्तपोषण हेतु सेविला प्रतिबद्धता

प्रिलिम्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP), लिंग आधारित हिंसा, सतत्् विकास लक्ष्य, संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक मामलों का विभाग (UNDESA), संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद (ECOSOC), UNCTAD

मेन्स के लिये:

जलवायु वित्त और इसका महत्त्व, महिलाओं पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

स्पेन के सेविला शहर में आयोजित विकास के लिये वित्तपोषण पर चौथा अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (FfD4) सेविला प्रतिबद्धता (Sevilla Commitment) के साथ संपन्न हुआ। इस प्रतिबद्धता में सतत् विकास वित्त को बढ़ावा देने, वैश्विक ऋण संकट का समाधान करने, और बढ़ते ऋण एवं आर्थिक अस्थिरता के बीच अंतरराष्ट्रीय वित्तीय ढांचे में सुधार के लिये उठाए जाने वाले कदमों की रूपरेखा प्रस्तुत की गई है।

सेविला प्रतिबद्धता क्या है?

  • सेविला प्रतिबद्धता: सेविला प्रतिबद्धता (Sevilla Commitment) एक व्यापक ढाँचा है जिसे FfD4 सम्मेलन के दौरान विकसित और अंगीकृत किया गया। इसका उद्देश्य विकासशील देशों में सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) को हासिल करने हेतु हर वर्ष 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की वित्तीय कमी को दूर करना है।
    • विकास के लिये वित्तपोषण पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (FfD) एक संयुक्त राष्ट्र (UN)-प्रायोजित मंच है जिसे हर दशक में एक बार आयोजित किया जाता है। यह सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग (UNDESA) और संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद (ECOSOC) द्वारा आयोजित किया जाता है।
    • यह घरेलू संसाधन जुटाने और कर प्रणालियों को मज़बूत करने, सामाजिक सुरक्षा, डिजिटल अर्थव्यवस्थाओं और जलवायु अनुकूलन तक पहुँच का विस्तार करने पर केंद्रित है।
    • यह लैंगिक समानता को प्राथमिकता देने, 60 से अधिक पहलें महिलाओं के सशक्तीकरण, महिला वित्त पोषण और अवैतनिक देखभाल कार्य के पुनर्वितरण पर केंद्रित हैं
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य वित्तीय प्रवाह और नीतियों को आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय लक्ष्यों के साथ संरेखित करना, ऋण स्थिरता सुनिश्चित करना, जलवायु वित्त का विस्तार करना तथा 2030 एजेंडा और SDG को आगे बढ़ाना है।
  • कार्यान्वयन तंत्र: सेविला प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन (Sevilla Platform for Action), जिसमें 130 पहलें शामिल हैं — सेविला प्रतिबद्धता के कार्यान्वयन तंत्र के रूप में कार्य करता है।
  • प्रमुख घटक:
    • निवेश को उत्प्रेरित करना: सार्वजनिक-निजी भागीदारी और मिश्रित वित्त मॉडल के माध्यम से सतत् विकास वित्तपोषण को बढ़ावा देना।
    • ऋण संकट का समाधान: डेब्ट स्वैप (Debt Swaps), पॉज क्लॉज़ (Pause Clauses) और विकास हेतु ऋण विनिमय (Debt-for-Development Swaps) जैसे उपकरणों का प्रस्ताव, जिससे निम्न-आय वाले देशों पर ऋण का बोझ कम किया जा सके।
    • वैश्विक वित्तीय संरचना में सुधार: अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली को पुनर्गठित करने का आह्वान किया गया है ताकि इसे अधिक न्यायसंगत, समावेशी और विकासशील देशों की आवश्यकताओं के प्रति उत्तरदायी बनाया जा सके।
      • ये सभी उपाय अदीस अबाबा एक्शन एजेंडा (2015) के अनुरूप हैं और वैश्विक असमानता को दूर करने के लिये वित्त, निवेश और ऋण राहत में त्वरित सुधार की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।

विकास प्रक्रिया के लिये वित्तपोषण का विकास

  • विकास के लिये एजेंडा (1997): संयुक्त राष्ट्र महासभा ने विकास के लिये एजेंडा अपनाया, जिसमें सतत् विकास प्राप्त करने में वित्तपोषण चुनौतियों का समाधान करने के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की आवश्यकता का प्रस्ताव रखा गया।
  • मॉन्टेरी सहमति (मेक्सिको), 2002: पहला FfD सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसने विकास वित्त पर वैश्विक सहयोग की नींव रखी, जिसमें गरीबी उन्मूलन, सतत् आर्थिक विकास और घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय संसाधनों को जुटाने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
  • दोहा घोषणा (कतर), 2008: वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान दूसरा FfD सम्मेलन आयोजित हुआ। इसमें मोंटेरे सहमति की फिर से पुष्टि की गई और समावेशी तथा स्थिर अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली की तात्कालिक आवश्यकता पर बल दिया गया।
  • अदीस अबाबा एक्शन एजेंडा (इथियोपिया), 2015: तीसरे FfD सम्मेलन के दौरान, वैश्विक वित्तीय रणनीतियों को 2030 सतत् विकास एजेंडा और SDGs के साथ संरेखित किया गया।

सेविला प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन (FfD4) के तहत शुरू की गई प्रमुख पहलें क्या हैं?

  • ऋण पहल: 
    • विकास केंद्र के लिये ऋण स्वैप (स्पेन और विश्व बैंक के नेतृत्व में): तकनीकी क्षमता और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाकर ऋण स्वैप को बढ़ाने और ऋण सेवा बोझ को कम करने के लिये शुरू किया गया।
    • विकास के लिये ऋण विनिमय कार्यक्रम (इटली के नेतृत्व में): 230 मिलियन यूरो के अफ्रीकी ऋण को विकास परियोजनाओं के लिये निवेश में परिवर्तित करना, सतत्् वित्तपोषण को बढ़ावा देना।
    • ऋण "पॉज क्लॉज़" गठबंधन (Debt "Pause Clause" Alliance): बहुपक्षीय विकास बैंक (MDBs) और उनके साझेदार देशों के नेतृत्व में गठित यह पहल, ऋण समझौतों में संकट-प्रेरित "पॉज क्लॉज़" को शामिल करने का लक्ष्य रखती है। इसका उद्देश्य है कि आपातकालीन परिस्थितियों (जैसे प्राकृतिक आपदा या वैश्विक संकट) में ऋण भुगतान को अस्थायी रूप से निलंबित किया जा सके।
    • ऋण पर सेविला फोरम: स्पेन के नेतृत्व और संयुक्त राष्ट्र के सहयोग से शुरू किया गया यह मंच, विकासशील देशों के बीच ज्ञान साझा करने, समन्वय और समावेशी ऋण पुनर्गठन प्रयासों के लिये एक मंच प्रदान करता है।
  • निवेश पहल: 
    • ग्लोबल सॉलिडेरिटी लेवी गठबंधन (Coalition for Global Solidarity Levies) – (फ्राँस, केन्या और बारबाडोस के नेतृत्व में) यह पहल प्रीमियम श्रेणी की हवाई यात्रा और प्राइवेट जेट्स पर कर लगाने का प्रस्ताव रखती है, ताकि जलवायु कार्रवाई और सतत् विकास के लिये धन एकत्र किया जा सके।
    • स्केल्ड प्लेटफॉर्म (जर्मनी, कनाडा, फ्राँस, यूके, डेनमार्क, दक्षिण अफ्रीका के नेतृत्व में): इसका उद्देश्य अनुकरणीय और प्रभावोन्मुख वित्तपोषण साधनों का विकास करके मिश्रित वित्त को बढ़ाना है।
    • FX EDGE टूलबॉक्स (इंटर-अमेरिकन डेवलपमेंट बैंक और डेल्टा के नेतृत्व में): यह पहल मुद्रा जोखिम प्रबंधन उपकरण प्रदान करती है, ताकि विकासशील देशों में स्थानीय मुद्रा में ऋण को बढ़ावा मिल सके।
    • उच्च निवल संपत्ति वाले व्यक्तियों के प्रभावी कराधान की पहल (ब्राज़ील और स्पेन के नेतृत्व में): इसका उद्देश्य उच्च निवल संपत्ति वाले व्यक्तियों को सार्वजनिक वित्त में उचित योगदान करने के लिये प्रोत्साहित करके प्रगतिशील कराधान सुनिश्चित करना है।

विकासशील देशों में संप्रभु ऋण से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • ऋण बोझ: संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष फिलेमोन यांग के अनुसार, 3.3 अरब लोग ऐसे देशों में रहते हैं जहाँ ऋण चुकाने पर होने वाला खर्च स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे आवश्यक क्षेत्रों में सार्वजनिक व्यय से भी अधिक है।
  • आवर्ती राजकोषीय मांगें: विकासशील देश एक तरफ तो ऋण चुकाने और दूसरी तरफ जलवायु अनुकूलन, बुनियादी ढाँचे और सार्वजनिक सेवाओं जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के वित्तपोषण के बीच फंसे हुए हैं। इससे उनका समग्र विकास बाधित हो रहा है।
  • विकास और जलवायु न्याय के मुद्दे के रूप में ऋण: उच्च ब्याज दरें और वित्त तक सीमित पहुँच के कारण देशों को ऋण चुकौती और जलवायु अनुकूलन में निवेश के बीच कठोर विकल्प चुनने के लिये बाध्य होना पड़ता है। 
    • इसका सबसे अधिक प्रभाव उन देशों पर पड़ता है जो जलवायु परिवर्तन के लिये सबसे कम ज़िम्मेदार हैं, लेकिन उसके प्रभावों के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील हैं।

जलवायु वित्त से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: जलवायु वित्त से संबंधित चुनौतियाँ

एक समतापूर्ण एवं समावेशी वैश्विक वित्तपोषण प्रणाली सुनिश्चित करने के लिये क्या उपाय किये जाने चाहिये?

  • ऋण से अनुदान की ओर बदलाव: विकासशील और जलवायु-संवेदनशील देशों को अनुदान-आधारित या अत्यधिक रियायती जलवायु वित्त के लिये प्राथमिकता दी जानी चाहिये। 
    • ऋण बोझ बढ़ाए बिना सहायता प्रदान करने के लिये "ऋण-बदले-जलवायु" (Debt-for-Climate Swaps) और "हानि एवं क्षति सुविधा" (Loss-and-Damage Facilities) जैसे तंत्रों को बढ़ावा देना चाहिये।
  • क्रेडिट रेटिंग प्रणाली में सुधार: क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों को अधिक पारदर्शी और उत्तरदायी बनाया जाना चाहिये और उनकी पद्धतियों में जलवायु सहनशीलता (Climate Resilience) से संबंधित संकेतकों को शामिल किया जाना चाहिये।
    • ऋण राहत ढाँचे में भाग लेने वाले देशों को ऐसे दंडात्मक डाउनग्रेड से नहीं गुजरना चाहिये जो उनके भविष्य के उधारी विकल्पों को सीमित कर दे।
  • लिंग-संवेदनशील बजट को लागू करना: सरकारों को सार्वजनिक व्यय को ट्रैक करना, रिपोर्ट करना और लिंग समानता एवं सामाजिक समावेशन लक्ष्यों के साथ संरेखित करना चाहिये। 
    • इसमें बाल देखभाल, वृद्ध देखभाल, और मातृ स्वास्थ्य सेवाओं जैसे केयर इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश बढ़ाना शामिल है, ताकि समावेशी और सतत् आर्थिक वृद्धि सुनिश्चित की जा सके।
  • एक संप्रभु ऋण समाधान तंत्र का निर्माण: G20 का क्रेडिटर-प्रधान कॉमन फ्रेमवर्क पर्याप्त नहीं है। इसके परे जाकर, संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में एक बहुपक्षीय सार्वभौमिक ऋण समाधान तंत्र की आवश्यकता है, जो समयबद्ध, न्यायसंगत और समावेशी पुनर्संरचना सुनिश्चित कर सके, विशेषकर उन देशों के लिये जो गंभीर ऋण संकट से जूझ रहे हैं।

निष्कर्ष:

FfD4 सेविला सम्मेलन ने सतत् विकास के प्रति वैश्विक प्रतिबद्धता की फिर से पुष्टि की है, लेकिन यह इरादा तभी सार्थक होगा जब उसे संरचनात्मक कार्यवाही में बदला जाए। यदि वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में प्रणालीगत सुधार नहीं होते, तो जलवायु-संवेदनशील और ऋण-संकटग्रस्त देश ऋण, आपदा और वंचना के दुष्चक्र में फँसे रहेंगे।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

विकासशील देशों को रियायती जलवायु वित्त प्राप्त करने में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है? इन चुनौतियों से निपटने के लिये वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर किन नीतिगत उपायों की आवश्यकता है? चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)   

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. वर्ष 2015 में पेरिस में UNFCCC बैठक में हुए समझौते के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (वर्ष 2016)

  1. समझौते पर संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों द्वारा हस्ताक्षर किये गए थे और यह वर्ष 2017 में लागू हुआ था।  
  2. समझौते का उद्देश्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को सीमित करना है ताकि इस सदी के अंत तक औसत वैश्विक तापमान में वृद्धि पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2ºC या 1.5ºC से अधिक न हो।  
  3. विकसित देशों ने ग्लोबल वार्मिंग में अपनी ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी को स्वीकार किया और विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करने हेतु वर्ष 2020 से सालाना 1000 अरब डॉलर की मदद के लिये प्रतिबद्ध हैं।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: b


मेन्स:

प्रश्न. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के पार्टियों के सम्मेलन (COP) के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं? (वर्ष 2021)