डेली न्यूज़ (12 Oct, 2022)



सत्रिया नृत्य

Satriya-dance


भारत का पहला 24x7 सौर ऊर्जा संचालित गाँव

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का पहला सौर ऊर्जा संचालित गाँव, ग्राउंड माउंटेड सोलर पावर प्लांट, रूफटॉप सोलर सिस्टम, बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम (BESS)।

मेन्स के लिये:

अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ और भारत की सौर ऊर्जा क्षमता।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने गुजरात के मेहसाणा ज़िले के एक गाँव मोढेरा को भारत का पहला सौर ऊर्जा संचालित गाँव घोषित किया।

भारत का पहला सौर ऊर्जा संचालित गाँव:

  • मोढेरा गाँव: मोढेरा अपने सूर्य मंदिर, संरक्षित प्राचीन स्थल के लिये प्रसिद्ध है, जो पुष्पावती नदी पर स्थित है। इसे चालुक्य वंश के राजा भीम प्रथम ने 1026-27 इस्वी में बनवाया था।
  • मंदिर में 3-डी प्रोजेक्शन सुविधा मिलेगी जो पर्यटकों को मोढेरा के इतिहास के बारे में जानकारी प्रदान करेगी।
  • सौर ऊर्जा उत्पादन: सौर ऊर्जा उत्पादन में सौर ऊर्जा गाँव आत्मनिर्भर होगा, क्योंकि यह गाँव के घरों पर लगाए गए 1000 सौर पैनलों का उपयोग करेगा, जिससे ग्रामीणों के लिये चौबीसों घंटे बिजली पैदा होगी।
    • इसे ग्राउंड माउंटेड सोलर पावर प्लांट और आवासीय एवं सरकारी भवनों पर 1300 से अधिक रूफटॉप सोलर सिस्टम के माध्यम से विकसित किया गया है, जो सभी बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम (BESS) के साथ एकीकृत हैं।
      • BESS एक प्रकार की ऊर्जा भंडारण प्रणाली है जो बिजली के रूप में ऊर्जा को स्टोर और वितरित करने के लिये बैटरी का उपयोग करती है।
  • लाभ:
    • यह परियोजना प्रदर्शित करेगी कि कैसे भारत की अक्षय ऊर्जा कौशल ज़मीनी स्तर पर लोगों को सशक्त बना सकती है।
      • गाँव के लोग बिजली के लिये भुगतान नहीं करेंगे, बल्कि वे इसे बेचना शुरू कर सकते हैं और सौर पैनल द्वारा उत्पादित ऊर्जा को सरकारी ग्रिड को बेचकर धन कमा सकते हैं।
      • यह परियोजना ग्रामीण स्तर पर रोज़गार पैदा करेगी और अंततः जीवन स्तर में सुधार होगा।
    • इससे क्षेत्र में विभिन्न कल्याणकारी परियोजनाओं के सतत् कार्यान्वयन को बढ़ावा मिलेगा।
      • क्षेत्र के निवासी अपने बिजली बिलों का 60-100% बचा सकेंगे।
    • इससे उन ग्रामीण महिलाओं और लड़कियों के कठिन परिश्रम में कमी आएगी जो लंबी दूरी से ईंधन की लकड़ी के संग्रह करने और रसोई में खाना पकाने में लगी हुई हैं।
      • यह फेफड़ों और आँखों की बीमारियों के जोखिम को भी कम करेगा।

भारत में सौर ऊर्जा की स्थिति:

  • परिचय: पिछले 8 वर्षों में स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता में 19.3 गुना वृद्धि हुई है और यह 56.6 GW है।
    • इसके अलावा भारत ने वर्ष 2022 के अंत तक 175 गीगावाट (GW) अक्षय ऊर्जा क्षमता हासिल करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है, जिसे वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया है। यह अक्षय ऊर्जा के लिये दुनिया की सबसे बड़ी योजना है।
    • भारत नई सौर ऊर्जा क्षमता के मामले में एशिया में दूसरा और विश्व स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा बाज़ार है। यह पहली बार जर्मनी (59.2 GW) को पछाड़ते हुए कुल स्थापित क्षमता (60.4 GW) के क्षेत्र में चौथे स्थान पर है।
    • जून 2022 तक राजस्थान और गुजरात बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा उत्पादन के मामले शीर्ष राज्य थे, जिनकी स्थापित क्षमता क्रमशः 53% एवं 14% थी, इसके बाद महाराष्ट्र (9%) का स्थान है।
  • संबंधित पहलें:
    • सौर पार्क योजना: सौर पार्क योजना कई राज्यों में लगभग 500 मेगावाट (MW) क्षमता वाले कई सोलर पार्क बनाने की योजना है।
    • रूफटॉप सौर योजना: रूफटॉप सौर योजनका उद्देश्य घरों की छत पर सोलर पैनल लगाकर सौर ऊर्जा का दोहन करना है।
    • अटल ज्योति योजना (अजय): अजय योजना सितंबर 2016 में उन राज्यों में सौर स्ट्रीट लाइटिंग (SSL) प्रणाली की स्थापना के लिये शुरू की गई थी, जहाँ 50% से कम घरों में ग्रिड आधारित बिजली का उपयोग शामिल है (2011 की जनगणना के अनुसार)।
    • राष्ट्रीय सौर मिशन: यह भारत की ऊर्जा सुरक्षा चुनौती को संबोधित करते हुए पारिस्थितिक रूप से सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार और राज्य सरकारों की एक प्रमुख पहल है।
    • सृष्टि योजना: भारत में रूफटॉप सौर ऊर्जा परियोजनाओं को बढ़ावा देने के लिये सोलर ट्रांसफिगरेशन ऑफ इंडिया (सृष्टि) योजना का कार्यान्वयन किया जा रहा है।

 भारत में सौर ऊर्जा से संबंधित चुनौतियाँ:

  • आयात पर अधिक निर्भरता: भारत के पास पर्याप्त मॉड्यूल और PV सेल निर्माण क्षमता का अभाव है।
    • वर्तमान सौर मॉड्यूल निर्माण क्षमता प्रतिवर्ष 15 GW तक सीमित है, जबकि घरेलू उत्पादन केवल 3.5 GW के आसपास है।
      • इसके अलावा मॉड्यूल निर्माण क्षमता के 15 GW में से केवल 3-4 GW मॉड्यूल तकनीकी रूप से प्रतिस्पर्द्धी और ग्रिड-आधारित परियोजनाओं में परिनियोजन के योग्य हैं।
  • कच्चे माल की आपूर्ति: सिलिकॉन वेफर, सबसे महँगा कच्चा माल है, जो भारत में निर्मित नहीं होता है।
    • यह वर्तमान में 100% सिलिकॉन वेफर्स और लगभग 80% सेल का आयात करता है।
      • इसके अलावा विद्युत प्रवाह के लिये चाँदी और एल्युमीनियम धातु के पेस्ट जैसे अन्य प्रमुख कच्चे माल का भी लगभग 100% आयात किया जाता है।
  • सौर PV सेल की अक्षमताएँ: उपयोगिता-पैमाने पर सौर PV क्षेत्र को भूमि की लागत, उच्च पारेषण और वितरण हानि एवं अन्य अक्षमताओं व ग्रिड एकीकरण की समस्या जैसी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • जैवविविधता से संबंधित मुद्दे: स्थानीय समुदायों और जैवविविधता संरक्षण मानदंडों के मामले में भी संघर्ष की स्थिति है।
  • मूल्य निर्धारण का मुद्दा: हालाँकि भारत ने उपयोगिता-पैमाना सेक्टर में कम लागत में सौर ऊर्जा उत्पादन का रिकॉर्ड स्थापित किया है, इसके परिणामस्वरूप भी अंतिम उपयोगकर्त्ताओं के लिये बिजली की कीमतों में कमी नहीं आई है।

आगे की राह

  • भारत सौर फोटोवोल्टिक (PV) मॉड्यूल के निर्माण में काफी प्रगति कर रहा है, लेकिन इसे एक विनिर्माण केंद्र बनने के लिये और अधिक नीतिगत उपायों की आवश्यकता होगी। अल्पावधि में, इसमें उचित परीक्षण के माध्यम से प्रशिक्षित श्रम, प्रक्रिया को सीखने और मूल कारणों का विश्लेषण प्रदान करने के लिये उद्योग के साथ सहयोग करना शामिल हो सकता है, तथा दीर्घावधि में यह भारत में स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के विकास में सहायक हो सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

  1. अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में लॉन्च किया गया था।
  2. इस गठबंधन में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश शामिल हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: a

  • भारत और फ्राँस ने विकासशील देशों में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) किया है। इसे नवंबर 2015 में पेरिस में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री और फ्राँसिसी राष्ट्रपति द्वारा लॉन्च किया गया था। इसका सचिवालय गुरुग्राम, भारत में स्थित है। अतः कथन 1 सही है।
  • प्रारंभ में ISA सदस्यता उन राष्ट्रों के लिये खुली थी जो पूरी तरह या आंशिक रूप से कर्क रेखा और मकर रेखा (उष्ण क्षेत्र) के बीच आते थे।
  • वर्ष 2018 में ISA की सदस्यता के लिये संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश आमंत्रित थे। हालाँकि संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश इसके सदस्य नहीं हैं। अतः कथन 2 सही नहीं है।
  • वर्तमान में 80 देशों ने ISA फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर कर इसकी पुष्टि की है, जबकि 98 देशों ने ISA फ्रेमवर्क समझौते पर सिर्फ हस्ताक्षर किये हैं। अतः विकल्प (a) सही उत्तर है।

मेन्स:

प्रश्न. भारत में सौर ऊर्जा की अपार संभावनाएँ हैं, हालाँकि इसके विकास में क्षेत्रीय विविधताएँ हैं। विस्तृत चर्चा कीजिये। (2020)

स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स


जयप्रकाश नारायण और नानाजी देशमुख की जयंती

प्रिलिम्स के लिये:

जयप्रकाश नारायण और उनका योगदान, भूदान आंदोलन, नानाजी देशमुख और उनका योगदान।

मेन्स के लिये:

स्वतंत्रता के बाद जयप्रकाश नारायण और नानाजी देशमुख की भूमिका तथा भूदान आंदोलन में उनका योगदान।

चर्चा में क्यों?

भारत के प्रधानमंत्री ने लोकनायक जयप्रकाश नारायण और नानाजी देशमुख को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की।

लोकनायक जयप्रकाश नारायण:

  • परिचय:
    • जन्म: 11 अक्तूबर, 1902 को बिहार के सिताबदियारा में हुआ।
    • विचारधारा: इनकी विचारधारा मार्क्सवादी और गांधीवादी थी
    • स्वतंत्रता संग्राम में योगदान:
      • वर्ष 1929 में वह भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस में शामिल हो गए।
        • वर्ष 1932 में उन्हें सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण एक वर्ष के लिये जेल में डाल दिया गया था।
        • वर्ष 1939 में उन्हें द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटेन की ओर से भारतीयों की भागीदारी का विरोध करने के लिये फिर से जेल में डाल दिया गया था, लेकिन वे बच निकले।
      • उन्होंने कॉन्ग्रेस पार्टी के भीतर एक वामपंथी समूह, कॉन्ग्रेस सोशलिस्ट पार्टी (1934) के गठन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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  • स्वतंत्रता के बाद की भूमिका:
    • वर्ष 1948 में उन्होंने कॉन्ग्रेस पार्टी छोड़ दी और कॉन्ग्रेस विरोधी अभियान शुरू किया।
      • वर्ष 1952 में उन्होंने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (PSP) का गठन किया।
    • वर्ष 1954 में उन्होंने अपना जीवन विनोबा भावे के भूदान यज्ञ आंदोलन को समर्पित कर दिया, इस आंदोलन के तहत उनकी मांग भूमिहीनों को भूमि पुनर्वितरण की थी।
    • वर्ष 1959 में उन्होंने गाँव, ज़िला, राज्य और संघ परिषदों (चौखंबा राज) के चार-स्तरीय पदानुक्रम के माध्यम से "भारतीय राजनीति के पुनर्निर्माण" के लिये तर्क प्रस्तुत किया।
    • संपूर्ण क्रांति: इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा चुनावी कानूनों के उल्लंघन का दोषी पाए जाने के कारण उन्होंने इंदिरा गांधी शासन के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्त्व किया।
      • उन्होंने वर्ष 1974 में सामाजिक परिवर्तन के एक कार्यक्रम की वकालत की जिसे 'संपूर्ण क्रांति' कहा गया, यह सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार के खिलाफ था।
      • संपूर्ण क्रांति में राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक व आध्यात्मिक सात क्रांतियाँ शामिल हैं।
      • इसका उद्देश्य मौजूदा समाज में बदलाव लाना था जो सर्वोदय (गांधीवादी दर्शन- सभी के लिये प्रगति) के आदर्शों के अनुरूप हो।
  • भारत रत्न से सम्मानित: जयप्रकाश नारायण को "स्वतंत्रता संग्राम और गरीबों एवं दलितों के उत्थान में अमूल्य योगदान" के लिये मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, भारत रत्न (1999) से सम्मानित किया गया।

नानाजी देशमुख:

  • परिचय:
    • जन्म: इनका जन्म 11 अक्तूबर, 1916 को महाराष्ट्र के हिंगोली ज़िले में हुआ था।
    • वे लोकमान्य तिलक और उनकी राष्ट्रवादी विचारधारा तथा डॉ केशव बलिराम हेडगेवार (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ-RSS के संस्थापक व सरसंघ-प्रमुख) से प्रभावित थे।
    • आंदोलनों में भागीदारी: उन्होंने आचार्य विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया।
    • जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति के आंदोलन के पीछे देशमुख मुख्य ताकत थे।

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  • सामाजिक सक्रियता: वह स्वास्थ्य, शिक्षा और ग्रामीण आत्मनिर्भरता पर ध्यान देने वाले समाज सुधारक थे।
    • उन्होंने चित्रकूट में चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय की स्थापना की, यह भारत का पहला ग्रामीण विश्वविद्यालय था और इसके कुलाधिपति के रूप में कार्य किया।
    • उन्होंने गरीबी विरोधी और न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम की दिशा में काम किया।
  • चुनावी राजनीति: वह जनता पार्टी के मुख्य वास्तुकारों में से एक थे।
    • उन्होंने वर्ष 1977 के लोकसभा चुनाव में बलरामपुर (UP) लोकसभा क्षेत्र से जीत हासिल की।
    • राष्ट्र के लिये उनकी सेवाओं के सम्मान में उन्हें 1999 में राज्यसभा केलिये नामित किया गया था।
  • मृत्यु: 27 फरवरी, 2010।
  • पुरस्कार: उन्हें वर्ष 1999 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।
    • 2019 में भारत के राष्ट्रपति ने राष्ट्र हेतु उनकी सेवाओं के लिये उन्हें (मरणोपरांत) भारत रत्न से सम्मानित किया।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारत में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण

प्रिलिम्स के लिये:

पंचायती राज संस्थान, 73वाँ और 74वाँ संवैधानिक संशोधन

मेन्स के लिये:

भारत में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण

चर्चा में क्यों?

भारत में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण को सुविधाजनक बनाने के लिये 73वें और 74वें संवैधानिक संशोधन अधिनियमों को पारित किये हुए लगभग 30 वर्ष हो गए हैं, लेकिन इस दिशा में वास्तविक प्रगति बहुत कम हुई है।

लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण:

  • विषय:
    • लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण राज्य के संसाधनों और कार्यों पर अधिकार को केंद्र से निचले स्तरों पर निर्वाचित अधिकारियों को स्थानांतरित करने की प्रक्रिया है ताकि शासन में अधिक प्रत्यक्ष नागरिक भागीदारी को प्रोत्साहित किया जा सके।
    • भारतीय संविधान द्वारा परिकल्पित हस्तांतरण केवल प्रत्योजन नहीं है।
    • इसका तात्पर्य यह है कि निर्धारित शासनिक कार्यों को कानून द्वारा औपचारिक रूप से स्थानीय सरकारों को सौंपा जाता है, वित्तीय अनुदान और कर संबंधी उचित अंतरण द्वारा उनकी सहायता की जाती है तथा कर्मचारियों की सुविधा प्रदान की जाती है ताकि उनके पास अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा करने के लिये आवश्यक साधन हों।
  • संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
    • स्थानीय सरकार, जिसमे पंचायत भी शामिल हैं, संविधान के अनुसार राज्य का विषय है, परिणामस्वरूप पंचायतों को शक्ति और अधिकार का हस्तांतरण राज्यों के विवेक पर छोड़ दिया गया है।
    • संविधान कहता है कि पंचायतों और नगरपालिकाओं को हर पाँच साल में चुना जाएगा तथा राज्यों को कानून के माध्यम से कार्यों एवं ज़िम्मेदारियों को हस्तांतरित करने का आदेश दिया जाएगा।
    • भारत में संवैधानिक रूप से पंचायती राज संस्थानों (PRIs) की स्थापना करके 73 वें और 74वें संशोधनों ने पंचायतों एवं नगरपालिकाओं को निर्वाचित स्थानीय सरकारों के रूप में स्थापित करना अनिवार्य कर दिया।
      • इन संशोधनों के द्वारा संविधान में दो नए भाग जोड़े गए, अर्थात् भाग IX शीर्षक "पंचायत" (73 वें संशोधन द्वारा) और भाग IXA शीर्षक "नगर पालिका" (74 वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया)।
    • 11वीं अनुसूची में पंचायतों की शक्तियाँ, अधिकार और ज़िम्मेदारियाँ शामिल हैं।

    • 12वीं अनुसूची में नगर पालिकाओं की शक्तियाँ, अधिकार और ज़िम्मेदारियाँ शामिल हैं।

    • अनुच्छेद 40: ग्राम पंचायत का गठन

स्थानीय निकायों की प्रमुख उपलब्धियाँ:

  • महिला प्रतिनिधित्त्व में बढ़ोतरी:
    • 73वें संशोधन अधिनियम के लागू होने के बाद से निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों का अनुपात लगातार बढ़ रहा है।
    • वर्तमान में भारत में 1 मिलियन निर्वाचित प्रतिनिधियों के साथ 260,512 पंचायतें हैं, जिनमें 1.3 मिलियन महिलाएँ हैं।
    • जबकि संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व केवल 7-8% है। निर्वाचित स्थानीय प्रतिनिधियों में से 49% (ओडिशा जैसे राज्यों में यह 50% को पार कर गया है) महिलाएँ हैं।
  • विभिन्न राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा का निर्माण:
    • 73वें और 74वें संशोधनों के पारित होने से हस्तांतरण (3 एफ: कोष, कार्य और पदाधिकारी) के संबंध में विभिन्न राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा पैदा हुई है।
    • उदाहरण:
      • केरल ने अपने 29 कार्य पंचायतों को हस्तांतरित कर दिये हैं।
      • केरल से प्रेरित राजस्थान ने स्वास्थ्य, शिक्षा, महिला और कृषि जैसे कई प्रमुख विभाग पंचायती राज संस्थानों (PRI) को हस्तांतरित किये हैं।
      • इसी तरह बिहार ने "पंचायत सरकार" के विचार को प्रस्तुत किया है और ओडिशा जैसे राज्यों ने महिलाओं के लिये 50% सीटें बढ़ाई हैं।

भारत में स्थानीय निकायों की समस्या:

  • अपर्याप्त निधि: स्थानीय सरकारों को दिया जाने वाला धन उनकी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये अपर्याप्त होता है।
    • कई प्रकार की शर्तें धन के उपयोग को बाधित करती हैं, जिसमें आवंटित बजट खर्च करने में अनम्यता भी शामिल है।
    • स्थानीय सरकारों की अपने स्वयं के करऔर उपयोगकर्त्ता शुल्कों को बढ़ाने के लिये निवेश क्षमता बहुत कम है।
  • अवसंरचनात्मक चुनौतियाँ:
    • कुछ ग्राम पंचायतों (GPs) के पास अपना भवन नहीं है और वे स्कूलों, आँगनवाड़ी केंद्रों तथा अन्य स्थानों के साथ जगह साझा करते हैं।
      • कुछ के पास अपना भवन है लेकिन शौचालय, पेयजल और बिजली कनेक्शन जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।
    • ग्राम पंचायतों में इंटरनेट कनेक्शन होने के बावजूद कई मामलों में वे काम नहीं कर रहे हैं। किसी भी डेटा प्रविष्टि उद्देश्यों के लिये पंचायत अधिकारियों को ब्लॉक विकास कार्यालयों का दौरा करना पड़ता है जिससे काम में देरी होती है।
  • कर्मचारियों की कमी:
    • स्थानीय सरकारों के पास बुनियादी कार्य करने के लिये भी कर्मचारी नहीं हैं।
    • इसके अलावा अधिकांश कर्मचारियों को उच्च स्तर के विभागों द्वारा काम पर रखा जाता है, जिनको स्थानीय सरकारों में प्रतिनियुक्ति पर रखा जाता है, इसलिये वे ज़िम्मेदारी महसूस नहीं करते हैं और एकीकृत विभागीय प्रणाली के हिस्से के रूप में कार्य करते हैं।
  • असामयिक और विलंबित चुनाव:
    • राज्य अक्सर चुनावों को स्थगित कर देते हैं और स्थानीय सरकारों के लिये पंचवर्षीय चुनावों के संवैधानिक जनादेश का उल्लंघन करते हैं।
  • स्थानीय सरकार की निम्न भूमिका:
    • स्थानीय सरकारें स्थानीय विकास के लिये नीति बनाने वाले निकाय के बजाय केवल कार्यान्वयन मशीनरी के रूप में कार्य कर रही हैं। प्रौद्योगिकी-सक्षम योजनाओं ने उनकी भूमिका को और कम कर दिया है।
  • भ्रष्टाचार:
    • आपराधिक तत्त्व और ठेकेदार स्थानीय सरकार के चुनावों की ओर आकर्षित होते हैं, जो अपने पास उपलब्ध अत्यधिक धन के कारण जनता को लुभाते हैं। इस प्रकार भ्रष्टाचार की शृंखला का निर्माण होता है, जिसमें सभी स्तरों पर निर्वाचित प्रतिनिधियों एवं अधिकारियों के बीच भागीदारी शामिल होती है।
    • हालाँकि यह साबित करने के लिये कोई सबूत नहीं है कि विकेंद्रीकरण के कारण भ्रष्टाचार बढ़ा है।

आगे की राह

  • ग्राम सभाओं का पुनरुद्धार:
    • शहरी क्षेत्रों में ग्राम सभाओं और वार्ड समितियों को वास्तविक रूप में लोगों की भागीदारी के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये पुनर्जीवित करना होगा।
  • संगठनात्मक संरचना को सुदृढ़ बनाना:
    • पर्याप्त जनशक्ति के साथ स्थानीय सरकार के संगठनात्मक ढाँचे को मज़बूत करना होगा।
    • पंचायतों के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिये सहायक और तकनीकी कर्मचारियों की भर्ती तथा नियुक्ति के लिये गंभीर प्रयास किये जाने चाहिये।
  • कराधान हेतु व्यापक तंत्र:
    • स्थानीय स्तर पर कराधान के लिये एक व्यापक तंत्र तैयार किया जाना चाहिये। स्थानीय कराधान के बिना ग्राम पंचायतों को जवाबदेह नहीं ठहराया जा सकता है।
  • वित्तपोषण:
    • पंचायती राज मंत्रालय को यह सुनिश्चित करने के लिये वित्त आयोग के अनुदानों और व्यय की निगरानी करनी चाहिये ताकि अनुदानों की प्राप्ति में देरी न हो।
      • यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि अनुदानों का उचित और प्रभावी तरीके से उपयोग किया जाए।
    • पंचायतों को भी नियमित रूप से स्थानीय लेखापरीक्षा के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये ताकि वित्त आयोग के अनुदान के मामले में देरी न हो।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष प्रश्न  

प्रश्न. संविधान (73वाँ संशोधन) अधिनियम, 1992, जिसका उद्देश्य देश में पंचायती राज संस्थाओं को बढ़ावा देना है, निम्नलिखित में से किसका प्रावधान करता है? (2011)

  1. ज़िला योजना समितियों का गठन।
  2. राज्य चुनाव आयोग सभी पंचायत चुनाव कराएंगे।
  3. राज्य वित्त आयोगों की स्थापना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • नगरपालिकाओं से संबंधित 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के अनुच्छेद 243ZD में प्रावधान है कि प्रत्येक राज्य ज़िला स्तर पर ज़िला योजना समिति का गठन करेगा, जो समग्र रूप से ज़िले के लिये विकास योजना प्रस्तावित करके पंचायतों और नगरपालिकाओं द्वारा तैयार विकास योजनाओं के समेकन हेतु ज़िम्मेदार होगी। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के अनुच्छेद 243K में कहा गया है कि पंचायतों के सभी चुनावों के लिये निर्वाचक नामावली तैयार करने और उसके संचालन का अधीक्षण, निर्देशन एवं नियंत्रण राज्य चुनाव आयोग में निहित होगा। अत: कथन 2 सही है।
  • 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 का अनुच्छेद 243I कहता है कि प्रत्येक पाँचवें वर्ष की समाप्ति पर राज्यपाल पंचायतों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा के लिये एक राज्य वित्त आयोग का गठन करेगा। यह राज्य और पंचायतों के मध्य करों, शुल्क, टोल तथा शुल्क की शुद्ध आय के वितरण एवं संभावित आवंटन/ विनियोग व राज्य की संचित निधि से पंचायतों को सहायता अनुदान के संबंध में राज्यपाल से सिफारिश करेगा। अत: कथन 3 सही है। अतः विकल्प (c) सही है।

प्रश्न. पंचायती राज व्यवस्था का मूल उद्देश्य निम्नलिखित में से किसे सुनिश्चित करना है? (2015)

  1. विकास में जन भागीदारी
  2. राजनीतिक जवाबदेही
  3. लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण
  4. वित्त का संग्रहण

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: c

व्याख्या:

  • पंचायती राज व्यवस्था का मौलिक उद्देश्य विकास और लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण में लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करना है। अतः कथन 1 और 3 सही हैं।
  • पंचायती राज संस्थाओं की स्थापना स्वतः ही राजनीतिक उत्तरदायित्व की ओर नहीं ले जाती है। अत: कथन 2 सही नहीं है।
  • वित्त का संग्रहण पंचायती राज का मूल उद्देश्य नहीं है, हालाँकि यह वित्त और संसाधनों को ज़मीनी स्तर पर हस्तांतरित करता है। अत: कथन 4 सही नहीं है। अतः विकल्प (c) सही है।

प्रश्न: स्थानीय स्वशासन को एक अभ्यास के रूप में सर्वोत्तम रूप से समझाया जा सकता है। (2017)

(a) संघवाद
(b) लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण
(c) प्रशासनिक प्रतिनिधिमंडल
(d) प्रत्यक्ष लोकतंत्र

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • लोकतंत्र का अर्थ है सत्ता का विकेंद्रीकरण और लोगों को अधिक से अधिक शक्ति प्रदान करना। स्थानीय स्वशासन को विकेंद्रीकरण एवं सहभागी लोकतंत्र के साधन के रूप में देखा जाता है।
  • सामुदायिक विकास कार्यक्रम (1952) और राष्ट्रीय विस्तार सेवा (1953) के कामकाज की जाँच करने तथा उन्हें बेहतर कामकाज हेतु उपाय सुझाने के लिये भारत सरकार ने जनवरी 1957 में बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में एक समिति गठित की।
  • समिति ने नवंबर 1957 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की और 'लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण' की योजना की स्थापना की सिफारिश की, जिसे अंततः पंचायती राज या स्थानीय स्वशासन की इकाई के रूप में जाना जाने लगा। अतः विकल्प (b) सही है।

मेन्स:

प्रश्न. स्थानीय सरकार के एक भाग के रूप में भारत में पंचायत प्रणाली के महत्त्व का आकलन कीजिये। विकास परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये पंचायतें सरकारी अनुदानों के अलावा किन स्रोतों की तलाश कर सकती हैं? (2018)

स्रोत: द हिंदू


बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना में संशोधन

प्रिलिम्स के लिये:

महिलाओं और लड़कियों के लिये सरकारी योजनाएँ, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना (BBBP), STEM में महिलाएँ, STEM, महिला और बाल विकास मंत्रालय (MW&CD)

मेन्स के लिये:

STEM में लड़कियों, महिलाओं से संबंधित मुद्दों, महिलाओं और आत्मनिर्भर भारत के लिये गैर-पारंपरिक आजीविका।

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार ने अपनी प्रमुख योजना 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' (BBBP Scheme) के जनादेश का विस्तार करते हुए लड़कियों को गैर-पारंपरिक आजीविका (NTL) विकल्पों में शामिल करने की घोषणा की।

  • लड़कियों के लिये गैर-पारंपरिक आजीविका में कौशल हेतु राष्ट्रीय सम्मेलन में महिला और बाल विकास मंत्रालय (MW&CD) ने लड़कियों को सशक्त बनाने के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने हेतु विभिन्न विभागों के बीच अभिसरण के महत्त्व पर ज़ोर दिया है।

BBBP योजना:

  • परिचय:
    • इस योजना को प्रधानमंत्री ने 22 जनवरी, 2015 को लिंग चयनात्मक गर्भपात (Sex Selective Abortion) और गिरते बाल लिंग अनुपात (Declining Child Sex Ratio) को संबोधित करने के उद्देश्य से शुरू किया था,
    • यह महिला और बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा मानव संसाधन विकास मंत्रालय की एक संयुक्त पहल है।
  • मुख्य उद्देश्य:
    • लिंग आधारित चयन की रोकथाम।
    • बालिकाओं के अस्तित्व और सुरक्षा को सुनिश्चित करना।
    • बालिकाओं के लिये शिक्षा की उचित व्यवस्था तथा उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना।
    • बालिकाओं के अधिकारों की रक्षा करना।
  • BBBP के तहत अभिनव हस्तक्षेप: जिन नवाचारों ने लड़कियों के लिये एक सकारात्मक पारिस्थितिकी तंत्र/सक्षम वातावरण बनाया है, उनमें शामिल हैं:
    • गुड्डी-गुड्डा बोर्ड: सार्वजनिक रूप से जन्म सांख्यिकी (लड़कों की संख्या की तुलना में जन्मीं  लड़कियों की संख्या) का प्रदर्शन। उदाहरण: जलगाँव ज़िले, महाराष्ट्र ने डिजिटल गुड्डी-गुड्डा डिस्प्ले बोर्ड स्थापित किये हैं।
    • लिंग संबंधी रूढ़ियों को तोड़ना और पुत्र-केंद्रित अनुष्ठानों को चुनौती देना:
    • बालिकाओं के जन्म का उत्सव, बालिकाओं के लिये विशेष दिन समर्पित करना, बालिकाओं के पोषण एवं देखभाल का प्रतीक वृक्षारोपण अभियान। उदाहरण: कुड्डालोर (तमिलनाडु), बेटियों के साथ सेल्फी (जींद ज़िला, हरियाणा)।

BBBP योजना में संशोधन:

  • संशोधित BBBP योजना के कुछ नए उद्देश्यों में शामिल हैं:
  • योजना में अन्य बदलाव:
    • MW&CD ने लड़कियों को सशक्त बनाने के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा (व्यावसायिक सहित) प्रदान करने हेतु विभिन्न विभागों के बीच अभिसरण पर भी ज़ोर दिया।
    • MW&CD और कौशल विकास एवं उद्यमिता तथा अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालयो के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किशोर अपनी शिक्षा पूरी करें, कौशल का निर्माण करें और विभिन्न प्रकार के व्यवसायों में कार्यबल में प्रवेश करें।
    • बड़े मिशन शक्ति के तहत गठित MW&CD के सचिव की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय समिति राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के साथ BBBP योजना के कार्यान्वयन की समीक्षा करेगी।

गैर-पारंपरिक आजीविका (Non-Traditional Livelihoods-NTL):

"गैर-पारंपरिक आजीविका" (NTLs) क्षेत्र और नौकरियाँ, जहाँ महिलाओं की भागीदारी ऐतिहासिक रूप से कम या अनुपस्थित रही है। उदाहरण के लिये STEM विषयों में लिंग-आधारित वर्गीकरण के कारण महिलाओं की इस क्षेत्र में निम्न भागीदारी देखी जा सकती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

Q. समय और स्थान के विरुद्ध भारत में महिलाओं के लिये निरंतर चुनौतियाँ क्या हैं? (2019)

Q. भारत में महिला सशक्तीकरण के लिये जेंडर बजटिंग की ज़रूरत है। भारतीय संदर्भ में जेंडर बजटिंग की आवश्यकताएँ और स्थिति क्या हैं? (2016)

स्रोत: द हिंदू


श्री महाकाल लोक गलियारा

प्रिलिम्स के लिये:

श्री महाकाल लोक गलियारा, उज्जैन का महाकाल मंदिर, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, मंदिर वास्तुकला।

मेन्स के लिये:

भारत की मंदिर वास्तुकला, श्री महाकाल लोक गलियारा और इसका महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने मध्य प्रदेश के उज्जैन में 'श्री महाकाल लोक' गलियारा/कॉरिडोर के पहले चरण का उद्घाटन किया।

  • वाराणसी में विश्वनाथ मंदिर और उत्तराखंड में केदारनाथ मंदिर के बाद महाकाल मंदिर का विकास इस कड़ी में तीसरा 'ज्योतिर्लिंग' स्थल है।
  • 800 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाला महाकाल कॉरिडोर, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से चार गुना बड़ा है।

श्री महाकाल लोक कॉरिडोर/गलियारा

  • परिचय:
    • महाकाल महाराज मंदिर परिसर विस्तार योजना उज्जैन ज़िले में महाकालेश्वर मंदिर और उसके आसपास के क्षेत्र के विस्तार, सौंदर्यीकरण एवं भीड़भाड़ को कम करने की एक योजना है।
    • योजना के तहत लगभग 2.82 हेक्टेयर के महाकालेश्वर मंदिर परिसर को बढ़ाकर 47 हेक्टेयर किया जा रहा है, जिसे उज्जैन ज़िला प्रशासन द्वारा दो चरणों में विकसित किया जाएगा।
      • इसमें 17 हेक्टेयर की रुद्रसागर झील शामिल होगी।
    • इस परियोजना से शहर में वार्षिक रूप से ग्राहकों की संख्या मौजूदा 1.50 करोड़ से बढ़कर लगभग तीन करोड़ होने की उम्मीद है।
  • पहला चरण:
    • विस्तार योजना के पहले चरण के पहलुओं में से एक आगंतुक प्लाज़ा है जिसमें दो प्रवेश द्वार या द्वार हैं अर्थात् नंदी द्वार और पिनाकी द्वार।
      • आगंतुक प्लाज़ा में एक बार में 20,000 तीर्थयात्री ठहर सकते हैं।
    • शहर में आगंतुकों के प्रवेश और मंदिर तक उनकी आवाजाही को ध्यान में रखते हुए भीड़भाड़ को कम करने के लिये एक संचलन योजना भी विकसित की गई है।
    • एक 900 मीटर पैदल यात्री गलियारे का निर्माण किया गया है, जो प्लाज़ा को महाकाल मंदिर से जोड़ता है, जिसमें शिव विवाह, त्रिपुरासुर वध, शिव पुराण और शिव तांडव स्वरूप जैसे भगवान शिव से संबंधित कहानियों को दर्शाते 108 भित्ति चित्र एवं 93 मूर्तियाँ हैं।
      • इस पैदल यात्री गलियारे के साथ 128 सुविधा केंद्र, भोजनालय और शॉपिंग जॉइंट, फूलवाला, हस्तशिल्प स्टोर आदि भी हैं।
  • दूसरा चरण:
    • इसमें मंदिर के पूर्वी और उत्तरी मोर्चों का विस्तार शामिल है।
      • इसमें उज्जैन शहर के विभिन्न क्षेत्रों का विकास भी शामिल है, जैसे महाराजवाड़ा, महल गेट, हरि फाटक ब्रिज, रामघाट अग्रभाग और बेगम बाग रोड।
        • महाराजवाड़ा में भवनों का पुनर्विकास कर महाकाल मंदिर परिसर से जोड़ा जाएगा, जबकि एक विरासत धर्मशाला और कुंभ संग्रहालय बनाया जाएगा।
    • दूसरे चरण को सिटी इनवेस्टमेंट्स टू इनोवेट, इंटीग्रेट एंड सस्टेन (CITIIS) प्रोग्राम के तहत एजेंस फ्रैन्काइज़ डी डेवलपमेंट (AFD) से फंडिंग के साथ विकसित किया जा रहा है।

श्री महाकाल लोक कॉरिडोर का महत्त्व:

  • अपार सांस्कृतिक मान्यताएँ: माना जाता है कि मंदिर महाकालेश्वर द्वारा शासित है, जिसका अर्थ है 'समय के भगवान' यानी भगवान शिव। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, मंदिर का निर्माण भगवान ब्रह्मा द्वारा किया गया था और वर्तमान में यह पवित्र क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित है।
  • दक्षिण की ओर मुख वाला ज्योतिर्लिंग: उज्जैन में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग शिव के सबसे पवित्र निवास माने जाने वाले 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर भारत में 18 महा शक्तिपीठों में से एक के रूप में प्रतिष्ठित है।
    • यह दक्षिण की ओर मुख वाला एकमात्र ज्योतिर्लिंग है, जबकि अन्य सभी का मुख पूर्व की ओर है। ऐसा इसलिये है क्योंकि मृत्यु की दिशा दक्षिण मानी जाती है।
      • दरअसल, अकाल मृत्यु से बचने के लिये लोग महाकालेश्वर की पूजा करते हैं।
    • पुराणों के अनुसार, भगवान शिव ने प्रकाश के एक अंतहीन स्तंभ के रूप में विश्व को वेधित किया, जिसे ज्योतिर्लिंग कहा जाता है।
      • महाकाल के अलावा इनमें गुजरात में सोमनाथ और नागेश्वर, आंध्र प्रदेश में मल्लिकार्जुन, मध्य प्रदेश में ओंकारेश्वर, उत्तराखंड में केदारनाथ, महाराष्ट्र में भीमाशंकर, त्र्यंबकेश्वर और घृष्णेश्वर मंदिर, वाराणसी में विश्वनाथ, झारखंड में बैद्यनाथ और तमिलनाडु में रामेश्वरम शामिल हैं।
  • प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख: महाकाल मंदिर का उल्लेख कई प्राचीन भारतीय काव्य ग्रंथों में मिलता है। चौथी शताब्दी में रचित मेघदूतम (पूर्व मेघ) के प्रारंभिक भाग में कालिदास महाकाल मंदिर का विवरण देते हैं।
    • इसका वर्णन पत्थर की नींव के साथ लकड़ी के खंभों पर बने छत के ऊपर शिखर वाले मंदिर के रूप में मिलता है। गुप्त काल से पूर्व मंदिरों पर कोई शिखर या शीर्ष नहीं होता था।
  • मंदिर का विनाश और पुनर्निर्माण: मध्यकाल में इस्लामी शासक यहाँ पूजा करने वाले पुजारियों को दान देते थे।
    • 13वीं शताब्दी में उज्जैन पर अपने आक्रमण के दौरान तुर्क शासक शम्स-उद-दीन इल्तुतमिश द्वारा मंदिर परिसर को नष्ट कर दिया गया था।
    • वर्तमान पाँच मंज़िला संरचना का निर्माण 1734 में मराठा सेनापति रानोजी शिंदे द्वारा मंदिर वास्तुकला की भूमिजा, चालुक्य और मराठा शैलियों में किया गया था।

उज्जैन शहर का ऐतिहासिक महत्त्व:

  • उज्जैन शहर हिंदू धर्मग्रंथों की शिक्षा के प्राथमिक केंद्रों में से एक था, जिसे छठी और सातवीं शताब्दी ईसा पूर्व में अवंतिका कहा जाता था।
  • बाद में ब्रह्मगुप्त और भास्कराचार्य जैसे खगोलविद एवं गणितज्ञ उज्जैन में बस गए।
    • 18वीं शताब्दी में महाराजा जय सिंह द्वितीय द्वारा यहाँ एक वेधशाला का निर्माण किया गया था, जिसे वेद शाला या जंतर मंतर के रूप में जाना जाता है, जिसमें खगोलीय घटनाओं को मापने के लिये 13 वास्तुशिल्प उपकरण शामिल हैं।
  • इसके अलावा चौथी शताब्दी में प्रतिपादित सूर्य सिद्धांत, जो भारतीय खगोल विज्ञान पर उपलब्ध ग्रंथों में से एक है, के अनुसार उज्जैन भौगोलिक रूप से एक ऐसे स्थान पर स्थित है, जहाँ  देशांतर रेखा को शून्य मध्याह्न और कर्क रेखा काटती हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न  

प्रश्न. मुरैना के पास स्थित चौसठ योगिनी मंदिर के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. यह कच्छपघात राजवंश के शासनकाल के दौरान बनाया गया एक गोलाकार मंदिर है।
  2. यह भारत में निर्मित एकमात्र गोलाकार मंदिर है।
  3. यह क्षेत्र में वैष्णव पंथ को बढ़ावा देने के लिये था।
  4. इसके डिज़ाइन ने एक लोकप्रिय धारणा को जन्म दिया है कि भारतीय संसद भवन के पीछे इसकी प्रेरणा थी।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 4
(d) केवल 2, 3 और 4

उत्तर: C

व्याख्या:

  • चौसठ योगिनी मंदिर ग्वालियर से 40 किलोमीटर दूर मुरैना ज़िले में पढौली के पास मितोली गाँव में स्थित है। भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण ने मंदिर को प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक घोषित किया है।।
  • 1323 ईस्वी के एक शिलालेख के अनुसार, मंदिर का निर्माण कच्छपघात राजा देवपाल (शासनकाल वर्ष 1055-1075) द्वारा किया गया था। ऐसा कहा जाता है कि यह मंदिर सूर्य के गोचर के आधार पर ज्योतिष एवं गणित की शिक्षा प्रदान करने का स्थान था। अत: कथन 1 सही है।
  • चौसठ योगिनी मंदिर को इकत्तरसो महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। लगभग सौ फीट ऊँची एक अलग पहाड़ी पर स्थित इस गोलाकार मंदिर से नीचे खेतों का शानदार दृश्य देखा जा सकता है और यह भारत के बहुत कम ऐसे मंदिरों में से एक है। इस मंदिर का नाम इसकी कोशिकाओं के अंदर शिव लिंगों के कारण रखा गया है। यह चौंसठ योगिनियों को समर्पित एक योगिनी मंदिर है। अतः कथन 2 और 3 सही नहीं हैं।
  • यह बाहरी रूप से गोलाकार है, इसकी त्रिज्या 170 फीट की है और इसके आंतरिक भाग के भीतर 64 छोटे-छोटे कक्ष हैं। मुख्य केंद्रीय मंदिर के भीतर स्लैब कवरिंग है जिनमें वर्षा जल को बड़े भूमिगत भंडारण में ले जाने के लिये छिद्र हैं। बारिश के पानी को स्टोरेज तक ले जाने वाली पाइप लाइनें भी देखी जा सकती हैं।
  • कई जिज्ञासु पर्यटकों ने इस मंदिर की तुलना भारतीय संसद भवन से की है क्योंकि शैली में दोनों ही गोलाकार हैं। कई लोगों का यह भी मानना है कि यह मंदिर संसद भवन की प्रेरणा था। अतः कथन 4 सही है।

अतः विकल्प C सही उत्तर है।


प्रश्न. शैलकृत स्थापत्य प्रारंभिक भारतीय कला एवं इतिहास के ज्ञान के अति महत्त्वपूर्ण स्रोतों में से एक का प्रतिनिधित्व करता है। विवेचना कीजिये। (मेन्स-2020)

मंदिर वास्तुकला: नागर शैली

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस