डेली न्यूज़ (10 Nov, 2021)



भारत की पनडुब्बी क्षमता

प्रिलिम्स के लिये:

डीज़ल इलेक्ट्रिक पनडुब्बियाँ, प्रथम विश्व युद्ध, स्कॉर्पीन पनडुब्बी, P-75

मेन्स के लिये:

भारतीय पनडुब्बी क्षमता एवं उनके आधुनिकीकरण से संबंधित चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत अपनी पनडुब्बियों के बेड़े के आधुनिकीकरण के मामले में पहले से ही एक दशक पीछे है, जबकि चीन अपनी बड़ी नौसेना और अति विशिष्ट पनडुब्बी क्षमताओं में आगे बढ़ गया है।

प्रमुख बिंदु

  • भारत में पनडुब्बियों की संख्या:
    • वर्तमान में भारत में 15 पारंपरिक डीज़ल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियाँ हैं, जिन्हें एसएसके ( SSK) के रूप में वर्गीकृत किया गया है और एक परमाणु बैलिस्टिक पनडुब्बी है, जिसे एसएसबीएन (SSBN) के रूप में वर्गीकृत किया गया है। भारत की अधिकांश पनडुब्बियाँ 25 वर्ष से अधिक पुरानी हैं, जिनमें से कई का जीर्णोद्धार किया जा रहा है।
  • पनडुब्बियों का वर्गीकरण:
  • डीज़ल इलेक्ट्रिक पनडुब्बियाँ (SSK):
    • डीज़ल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियाँ परिचालन हेतु डीज़ल इंजनों द्वारा चार्ज की गईं इलेक्ट्रिक मोटरों का उपयोग करती हैं। इन इंजनों को संचालित करने के लिये हवा और ईंधन की आवश्यकता होती है, इसलिये उन्हें बार-बार सतह पर आना पड़ता है, जिससे उनका पता लगाना आसान हो जाता है।
    • एसएसके पनडुब्बियों में से चार शिशुमार श्रेणी (Shishumar Class) की पनडुब्बियाँ हैं, जिन्हें वर्ष 1980 के दशक में जर्मनी के सहयोग से भारत लाया और बनाया गया।
    • किलो श्रेणी या सिंधुघोष श्रेणी की आठ पनडुब्बियाँ हैं, जिन्हें वर्ष 1984 और वर्ष 2000 के बीच रूस (पूर्व सोवियत संघ सहित) से खरीदा गया था।
    • तीन कलवरी श्रेणी की स्कॉर्पीन पनडुब्बी (P-75) हैं, जिसका निर्माण फ्राँस के नेवल ग्रुप के सहयोग से भारत के मझगांव डॉक पर किया गया है।
  • परमाणु शक्ति आक्रामक पनडुब्बी (SSN):
    • SSN अनिश्चित काल तक समुद्र के भीतर रहकर कार्य कर सकते हैं; यह केवल चालक दल की सहनशक्ति या खाद्य आपूर्ति की कमी से प्रभावित हो सकती है। ये पनडुब्बियाँ टॉरपीडो, एंटी-शिप क्रूज़ मिसाइल और लैंड-अटैक क्रूज़ मिसाइल जैसे कई सामरिक हथियारों से भी लैस हैं।
    • भारत अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, फ्रांँस और चीन के साथ छह देशों में एसएसएन है।
    • भारत द्वारा आईएनएस चक्र 2 एसएसएन पनडुब्बी रूस से वर्ष 2022 तक लीज़ पर ली गई है।
  • परमाणु शक्ति बैलिस्टिक मिसाइलयुक्त पनडुब्बी (SSBN):
    • यह एक धीमी गति से चलने वाला 'बॉम्बर' या बमबारी करने वाला यंत्र और परमाणु हथियारों के लिये एक गोपनीय ‘लॉन्च प्लेटफॉर्म’ है।
    • अरिहंत और निर्माणाधीन तीन एसएसबीएन सामरिक बल कमान (SFC) का हिस्सा हैं।
  • भारत की आधुनिकीकरण योजना:
    • 30-वर्षीय योजना: वर्ष 1999 में सुरक्षा पर कैबिनेट समिति द्वारा अनुमोदित स्वदेशी पनडुब्बी निर्माण के लिये 30-वर्षीय योजना (2000-30) निर्मित की गई, जिसके तहत एक विदेशी मूल उपकरण निर्माता (OEM) के सहयोग से भारत में निर्मित दो उत्पादन श्रेणियों की छह पनडुब्बियों के निर्माण की परिकल्पना की गई थी। 
      • इन परियोजनाओं को P-75 और P-75I के नाम से जाना जाता था।
      • यह अनुमान लगाया गया था कि भारत को 2012-15 तक 12 नई पनडुब्बियाँ मिल जाएंगी। इसके बाद भारत वर्ष 2030 तक अपने 12 बेड़े निर्मित करेगा, जिससे बेड़ों (Fleet) की संख्या 24 हो जाएगी तथा पुरानी पनडुब्बियों को सेवामुक्त कर दिया जाएगा।
      • लेकिन P-75 के अनुबंध पर फ्रांँस की DCNS के साथ वर्ष 2005 में ही हस्ताक्षर किये गए थे। वर्तमान में यह अनुबंध नौसेना समूह के साथ किया गया है।
    • P-75: निर्माणाधीन छह पनडुब्बियों में से P-75 के तहत अब तक तीन कलवरी श्रेणी की स्कॉर्पीन पनडुब्बियों की डिलीवरी की गई है।
    • P-75I: अभी इसका संचालन शेष है; इस संबंध में प्रस्ताव जुलाई 2021 में जारी किया गया था।
      • यह स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप मॉडल के तहत भारत का पहली पनडुब्बी होगी, जिसे वर्ष 2015 में लाया गया था।
  • भारतीय नौसेना निर्माण के लिये चुनौतियाँ:
    • चीन की नौसेना शक्ति:
      • इस तथ्य के बावजूद कि समुद्र ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जिसमें भारत चीन को उसके प्राकृतिक भौगोलिक लाभों को देखते हुए रोक सकता है, भारतीय समुद्र के बेड़े में अपेक्षित क्षमता की कमी बनी हुई है। 
      • चीन के पास पहले से ही 350 युद्धपोतों के साथ दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना है, जिसमें 50 पारंपरिक और 10 परमाणु पनडुब्बी शामिल हैं।
    • आधुनिकीकरण में भारत की देरी:
      • उदाहरण: P-75 हेतु किये गए अनुबंध पर हस्ताक्षर करने में देरी।
    • भारतीय नौसेना की अनिवार्यताओं में कमी:
      • भारतीय नौसेना की अन्य महत्वपूर्ण कमियाँ हैं, जिनमें आवश्यक क्षमताएँ शामिल हैं, जैसे-"दुश्मन की पनडुब्बियों का पता लगाने हेतु उन्नत टोड ऐरे सोनार (ATAS), एवं उन्हें अप्रभावी करने के लिये भारी वज़न वाले टॉरपीडो और विभिन्न वायु रक्षा प्रणालियाँ, जो न केवल उनकी उत्तरजीविता हेतु बल्कि उनकी समग्र आक्रामक क्षमता हेतु भी महत्वपूर्ण हैं।
    • समझौता रद्द करना:
      • भारत ने असंबद्ध भ्रष्टाचार घोटाले के परिणामस्वरूप ‘फिनमेकैनिका’ की सहायक कंपनी WASS द्वारा निर्मित भारी वज़न वाले ब्लैक शार्क टॉरपीडो का एक सौदा रद्द कर दिया, जिसमें फिनमेकैनिका, ऑगस्टा-वेस्टलैंड की एक अन्य सहायक कंपनी शामिल थी।
    •  AIP सिस्टम का धीमी गति से विकास:
      • वायु स्वतंत्र प्रणोदन (Air Independent Propulsion -AIP) प्रणाली पनडुब्बियों की गोपनीयता बनाए रखती है साथ ही लंबे समय तक पानी के भीतर रहने की अनुमति देती है।
      • हालाँकि रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा स्वदेशी AIP प्रणाली के विकास में देरी हुई है।
    • नौसेना पर सरकार का कम ध्यान:
      • भारतीय बजट का अधिकांश हिस्सा सेना पर केंद्रित है, जिसमें वायु सेना दूसरे स्थान पर है और नौसेना तीसरे स्थान पर है।
      •  नौसैनिक क्षमता निर्माण समयावधि के दौरान पूंजी-गहन साबित होने की  समस्या भारत को अपनी नौसेना क्षमताओं के विकास की गति में वृद्धि से रोकता है, यहाँ तक ​​कि चीन जैसे प्रतियोगी अधिक तेज़ी से आगे बढ़ते हैं।

आगे की राह

  • जब तक नौसैनिक कौशल में अंतर को जल्दी से कम नहीं किया जाएगा, तब तक हिंद महासागर पर चीन के प्रभुत्व का मुकाबला करने में भारत की अक्षमता बनी रहेगी।
  • अगर भारत को क्वाड (भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान) और उसकी इंडो-पैसिफिक महत्त्वाकांक्षाओं पर बात करनी है, तो रक्षा क्षेत्र में आधुनिकीकरण की देरी को जल्दी से दूर करना चाहिये।
  • भारत को अपनी संबंधित क्षमताओं में गिरावट को रोकने के लिये अपनी निर्णय लेने की प्रक्रियाओं और अपनी जटिल अधिग्रहण प्रक्रिया को बदलने की आवश्यकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


ग्लोबल रेज़िलिएंस इंडेक्स इनिशिएटिव

प्रिलिम्स के लिये

ग्लोबल रेज़िलिएंस इंडेक्स इनिशिएटिव

मेन्स के लिये 

‘ग्लोबल रेज़िलिएंस  इंडेक्स इनिशिएटिव’ का महत्त्व और उद्देश्य

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दस संगठनों के एक वैश्विक गठबंधन ने ‘ग्लोबल रेज़िलिएंस इंडेक्स इनिशिएटिव’ (GRII) लॉन्च किया है।

प्रमुख बिंदु

  • ग्लोबल रेज़िलिएंस इंडेक्स इनिशिएटिव:
    • इसे ‘कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़-26’ के ‘एडॉप्शन डे’ (8 नवंबर 2021) के अवसर पर लॉन्च किया गया था, यह दुनिया का पहला क्यूरेटेड, ओपन-सोर्स रेफरेंस इंडेक्स होगा।
    • इसे जलवायु जोखिमों के प्रति लचीलापन का आकलन करने हेतु एक सार्वभौमिक मॉडल के रूप में लॉन्च किया गया है।
    • यह उभरते और विकासशील देशों में आबादी को सूचित करने और उनकी रक्षा करने के लिये जलवायु एवं प्राकृतिक खतरों के जोखिमों से संबंधित डेटा प्रदान करेगा, जो जलवायु के प्रति लचीले विकास पर पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिये आवश्यक निवेश को जुटाने हेतु एक आधार प्रदान करेगा।
    • इसका उपयोग सभी आर्थिक और भौगोलिक क्षेत्रों में समग्र जोखिम प्रबंधन में किया जा सकता है।
  • उद्देश्य: यह दो तात्कालिक लक्ष्यों को प्राप्त करना चाहता है।
    • पहला, बीमा जोखिम मॉडलिंग सिद्धांतों का उपयोग करके वैश्विक जोखिम डेटा प्रदान करना।
    • दूसरा, निम्नलिखित साझा मानकों और उपयोगों के लिये सुविधाएँ प्रदान करना:
  • भागीदार और समर्थक: ‘ग्लोबल रेज़िलिएंस इंडेक्स इनिशिएटिव’ को बीमा क्षेत्र और भागीदार संस्थानों से आंशिक वित्त पोषण के साथ शुरू किया गया है। अन्य भागीदार संस्थानों में शामिल हैं:
  • आवश्यकता:
    • वर्ष 2020 में वैश्विक स्तर पर प्राकृतिक आपदाओं के कारण लगभग 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ। वर्ष 1970 के बाद से, जलवायु संबंधी आपदाओं में 2 मिलियन से अधिक लोग मारे गए हैं।
    • लगभग सभी देशों ने हाल के वर्षों में किसी न किसी रूप में जलवायु परिवर्तन के कठोर प्रभाव को महसूस किया है।
      • जलवायु व्यवधान के प्रति रेज़िलिएंस सिस्टम और अर्थव्यवस्थाएँ लाखों लोगों की जान और आजीविका बचा सकती हैं।
  • महत्त्व
    • इस जोखिम विश्लेषण के परिणाम बीमा सुरक्षा अंतराल को पाटने में मदद करेंगे और जहाँ उन्हें इसकी सबसे अधिक ज़रूरत है वहाँ प्रत्यक्ष निवेश और सहायता प्रदान करेंगे।
    • यह वैश्विक आर्थिक क्षेत्रों को जलवायु लचीलेपन के निर्माण के मूल्य और कुछ न करने की लागत को समझने में मदद करेगा, साथ ही यह जलवायु संकट में योगदान देने वाले आपातकाल को संबोधित करेगा।
    • यह परिसंपत्ति मालिकों को खतरों और आपदा की स्थिति में पोर्टफोलियो जोखिमों की तुलना करने में सक्षम करेगा, साथ ही देशों को राष्ट्रीय अनुकूलन निवेश को प्राथमिकता देने में मदद करेगा।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


लियोनिड उल्का बौछार

प्रिलिम्स के लिये:

उल्का बौछार, उल्कापिंड, धूमकेतु

मेन्स के लिये:

लियोनिड उल्का बौछार के कारण

चर्चा में क्यों?

वार्षिक लियोनिड्स उल्का बौछार (Leonids Meteor Shower) की शुरूआत  हो गई है और 6 से 30 नवंबर के मध्य यह सक्रिय रहेगी तथा 17 नवंबर को इसकी चरम अवस्था की संभावना व्यक्त की गई है।

प्रमुख बिंदु

  • उल्का: यह एक अंतरिक्षीय चट्टान या उल्कापिंड है जो पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है।
    • उल्कापिंड अंतरिक्ष में मौजूद वह वस्तुएँ हैं जिनका आकार धूल के कण से लेकर एक छोटे क्षुद्रग्रहों के बराबर होता है।
      • इनका निर्माण अन्य बड़े निकायों, जैसे- धूमकेतु, क्षुद्रग्रह, ग्रह एवं उपग्रह से टूटने या विस्फोट के कारण होता हैं।
    • जब उल्कापिंड तेज़ गति से पृथ्वी के वायुमंडल (या किसी अन्य ग्रह, जैसे- मंगल) में प्रवेश करते हैं तो इनमें तीव्र ज्वाला उत्पन्न होती है, इसलिये इन्हें टूटा हुआ तारा (shooting Stars) कहा जाता है।
      • फायर बॉल्स (Fireballs) में तीव्र विस्फोट के साथ प्रकाश एवं रंग उत्सर्जित होता है जो उल्का की रेखा/पूंछ की तुलना में देर तक दिखता है, क्योंकि फायर बॉल्स का निर्माण उल्का के बड़े कणों से मिलकर होता है।
    • जब कोई उल्कापिंड वायुमंडल को पार करते हुए ज़मीन से टकराता है, तो उसे ‘उल्कापिंड’ (Meteorite) कहा जाता है।
  • उल्का बौछार:
    • जब पृथ्वी पर एक साथ कई उल्का पिंड पहुँचते हैं या गिरते हैं तो इसे उल्का बौछार (Meteor Shower) कहा जाता है।
      • पृथ्वी और दूसरे ग्रहों की तरह धूमकेतु भी सूर्य की परिक्रमा करते हैं। ग्रहों की लगभग गोलाकार कक्षाओं के विपरीत, धूमकेतु की कक्षाएँ सामान्यत: एकांगी (lopsided) होती हैं।
      • जैसे-जैसे धूमकेतु सूर्य के करीब आता है, उसकी बर्फीली सतह गर्म होकर धूल एवं चट्टानों (उल्कापिंड) के बहुत सारे कणों को मुक्त करती है।
      • यह धूमकेतु का मलबा धूमकेतु के मार्ग के साथ बिखर जाता है विशेष रूप से आंतरिक सौर मंडल (जिसमें बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल ग्रह शामिल हैं) में।
      • फिर, प्रत्येक वर्ष कई बार जब पृथ्वी सूर्य के चारों ओर अपनी यात्रा करती है, तो इसकी कक्षा एक धूमकेतु की कक्षा को पार करती है, जिसका अर्थ है कि पृथ्वी धूमकेतु के मलबे के एक समूह का सामना करती है।
    • उल्का पिंडों का नाम उस नक्षत्र के नाम पर रखा गया है जहाँ उल्का पिंड आते हुए प्रतीत होते हैं। उदाहरण के लिये, ओरियोनिड्स उल्का बौछार (Orionids Meteor Shower), जो प्रत्येक वर्ष में होती है तथा 'ओरियन द हंटर' (Orion the Hunter) नक्षत्र के निकट उत्पन्न होती है।
  • लियोनिड बौछार:
    • इस उल्का बौछार का निर्माण करने वाला मलबा लियो नक्षत्र में 55P/टेम्पेल-टटल (55P/Tempel-Tuttle) नामक एक छोटे धूमकेतु से निकलता है, जिसे सूर्य की परिक्रमा करने में 33 वर्ष लगते हैं।
    • लियोनिड्स को एक प्रमुख बौछार माना जाता है जिसमें सबसे तीव्र गति वाली उल्काएँ होती हैं।
    • लियोनिड्स को फायर बॉल्स (Fireballs) और ‘अर्थग्रेज़र’ (Earthgrazer) उल्का भी कहा जाता है।
      • फायर बॉल्स  का निर्माण उनके चमकीले रंगों और ‘अर्थग्रेज़र’ के कारण होता है  क्योंकि वे क्षितिज के करीब रेखाएँ खींचते हैं।
    • लियोनिड की बौछार प्रत्येक 33 वर्षों में उल्कापिंड में बदल जाती है और जब ऐसा होता है तो प्रत्येक घंटे सैकड़ों से हजारों उल्काएँ देखी जा सकती हैं। अंतिम लियोनिड उल्का बौछार/तूफान वर्ष 2002 में आया था।
      • एक उल्का तूफान में प्रति घंटे कम-से-कम 1,000 उल्काएँ होने की संभावना रहती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


राष्ट्रीय कानूनी सेवा दिवस

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय,वैकल्पिक विवाद समाधान, लोक अदालत  

मेन्स के लिये:

भारत में मुफ्त कानूनी सेवाएँ प्रदान करने के लिये कानूनी सेवा संस्थान एवं कानूनी सेवा प्राधिकरणों के उद्देश्य

चर्चा में क्यों? 

सभी नागरिकों के लिये उचित और निष्पक्ष न्याय प्रक्रिया सुनिश्चित करने हेतु जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर वर्ष 9 नवंबर को राष्ट्रीय कानूनी सेवा दिवस (National Legal Services Day- NLSD) मनाया जाता है।

प्रमुख बिंदु 

  • NLSD के बारे में:
    • वर्ष 1995 में पहली बार NLSD को भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समाज के गरीब और कमज़ोर वर्गों को सहायता प्रदान करने के लिये शुरू किया गया था।
    • सिविल, आपराधिक और राजस्व न्यायालयों, न्यायाधिकरणों या अर्द्ध-न्यायिक कार्य करने वाली किसी अन्य प्राधिकरण के समक्ष उपस्थित मामलों में मुफ्त कानूनी सेवाएंँ प्रदान की जाती हैं।
    • इस दिवस को देश के नागरिकों को कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम के तहत विभिन्न प्रावधानों और वादियों के अधिकारों से अवगत कराने हेतु मनाया जाता है। इस दिन प्रत्येक कानूनी क्षेत्राधिकार में सहायता शिविर, लोक अदालत और कानूनी सहायता कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।
  • संवैधानिक प्रावधान:
    • अनुच्छेद 39A कहता है, राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि विधिक तंत्र इस प्रकार काम करे जिससे समान अवसर के आधार पर न्याय सुलभ हो और विशिष्टतया यह सुनिश्चित करने के लिये कि आर्थिक या किसी अन्य निर्योग्यता के कारण कोई नागरिक न्याय प्राप्त करने के अवसर से वंचित न रह जाए, निःशुल्क विधिक सहायता की व्यवस्था करेगा।
    • अनुच्छेद 14 और 22(1) भी राज्य के लिये कानून के समक्ष समानता और सभी के लिये समान अवसर के आधार पर न्याय को बढ़ावा देने वाली कानूनी व्यवस्था सुनिश्चित करना अनिवार्य बनाते हैं।
  • कानूनी सेवा प्राधिकरणों के उद्देश्य:
    • मुफ्त कानूनी सहायता और सलाह प्रदान करना।
    • कानूनी जागरूकता फैलाना।
    • लोक अदालतों का आयोजन करना।
    • वैकल्पिक विवाद समाधान (Alternative Dispute Resolution- ADR) तंत्र के माध्यम से विवादों के निपटारे को बढ़ावा देना। विभिन्न प्रकार के ADR तंत्र हैं- मध्यस्थता, सुलह, न्यायिक समझौता जिसमें लोक अदालत के माध्यम से निपटान या मध्यस्थता शामिल है।
    • अपराध पीड़ितों को मुआवज़ा प्रदान करना।
  • मुफ्त कानूनी सेवाएँ प्रदान करने के लिये कानूनी सेवा संस्थान:
    • राष्ट्रीय स्तर:
      • राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA)- इसका गठन कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत किया गया था। भारत के मुख्य न्यायाधीश इसके मुख्य संरक्षक हैं।
    • राज्य स्तर:
      • राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण-  इसकी अध्यक्षता राज्य उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश करते हैं, जो इसके मुख्य संरक्षक होते हैं।
    • ज़िला स्तर:
      • ज़िला विधिक सेवा प्राधिकरण: ज़िले का ज़िला न्यायाधीश इसका पदेन अध्यक्ष होता है।
    • तालुका/उप-मंडल स्तर:
      • तालुका/उप-मंडल विधिक सेवा समिति: इसकी अध्यक्षता एक वरिष्ठ सिविल जज करते हैं।
    • उच्च न्यायालय: उच्च न्यायालय कानूनी सेवा समिति
    • सर्वोच्च न्यायालय: सर्वोच्च न्यायालय कानूनी सेवा समिति।
  • निःशुल्क कानूनी सेवाएंँ प्राप्त करने के लिये पात्र व्यक्ति:
    • महिलाएंँ और बच्चे
    • अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्य
    • औद्योगिक कामगार
    • सामूहिक आपदा, हिंसा, बाढ़, सूखा, भूकंप, औद्योगिक आपदा के शिकार।
    • दिव्यांग व्यक्तियों
    • हिरासत में उपस्थित व्यक्ति
    • वे व्यक्ति जिनकी वार्षिक आय संबंधित राज्य सरकार द्वारा निर्धारित राशि से कम है, अगर मामला सर्वोच्च न्यायालय से पहले किसी अन्य अदालत के समक्ष है, यदि मामला  5 लाख रुपए से कम का है तो वह सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष जाएगा। 
    • मानव तस्करी के शिकार या बेगार में संलग्न लोग।

स्रोतइंडियन एक्सप्रेस 


सेवा-निर्यात को बढ़ाना

प्रीलिम्स के लिये:

मर्चेंडाइज़ एक्सपोर्ट्स फ्रॉम इंडिया स्कीम, सकल मूल्य वर्द्धित, स्किल इंडिया कार्यक्रम,क्रय प्रबंधक सूचकांक

मेन्स के लिये: 

निर्यात को बढ़ावा देने हेतु प्रोत्साहन योजनाएँ एवं उनका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने घोषणा की कि वह वर्ष 2030 तक 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के सेवा निर्यात लक्ष्य प्राप्त करने की योजना पर काम कर रहा है। यह लक्ष्य भारत द्वारा पिछले वित्तीय वर्ष (FY 2020) के निर्यात का लगभग पाँच गुना है।

प्रमुख बिंदु

  • भारत का सेवा क्षेत्र:
    • डेटा विश्लेषण: भारत दुनिया का सातवाँ सबसे बड़ा सेवा निर्यातक देश है।
      • वित्त वर्ष 2011 में सेवा क्षेत्र का हिस्सा कुल सकल मूल्य वर्द्धित (जीवीए) का 54% था।
      • सेवा क्षेत्र भारत के आर्थिक विकास का एक प्रमुख संकेतक है, जो लगभग 26 मिलियन लोगों को रोज़गार प्रदान करता है और भारत के कुल वैश्विक निर्यात में लगभग 40% का योगदान देता है।
      • सेवा क्षेत्र भी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का सबसे बड़ा प्राप्तकर्त्ता रहा है, जो वर्ष 2000 और वर्ष 2021 के बीच कुल प्रवाह का 53% है।
    • विस्तार: भारत के सेवा क्षेत्र में व्यापार, होटल और रेस्तराँ, परिवहन, भंडारण और संचार, वित्तपोषण, बीमा, रियल एस्टेट, व्यावसायिक सेवाएँ, समुदाय, सामाजिक और व्यक्तिगत सेवाएँ और निर्माण से जुड़ी सेवाओं जैसी विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ शामिल हैं।
  • महत्त्व: 
    • सेवा व्यापार में अधिशेष ने लंबे समय से भारत के व्यापारिक ‘शिपमेंट’ में भारी घाटे को कम कर दिया है।
      • नवीनीकृत गतिविधियों के केंद्रण और लक्षित सरकारी हस्तक्षेप के माध्यम से सेवा व्यापार अधिशेष वित्तीय वर्ष 2021 में 89 बिलियन डॉलर से अधिक बढ़ सकता है और व्यापारिक निर्यात के कारण होने वाले घाटे को लगभग समाप्त कर सकता है।
    • यह क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के 'असेंबली अर्थव्यवस्था' से 'ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था' में संक्रमण को बढ़ावा दे रहा है।
      • स्किल इंडिया कार्यक्रम में वर्ष 2022 तक 40 करोड़ से अधिक युवाओं को बाज़ार से संबंधित कौशल में पर्याप्त प्रशिक्षण प्रदान करने की परिकल्पना की गई है।
  • क्रय प्रबंधक सूचकांक (PMI) विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में व्यावसायिक गतिविधि का एक संकेतक है।

Advantage-India

  • सेवाओं के निर्यात प्रोत्साहन योजनाएंँ:
    • विविधीकरण सेवा क्षेत्र: प्रमुख सूचना प्रौद्योगिकी और आईटी-सक्षम सेवाओं (ITeS) से बाहर उच्च विकास वाले क्षेत्रों में अवसरों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। उदाहरण: 
      • घरेलू कानूनी सेवा क्षेत्र की शुरुआत  से भारतीय वकीलों का लाभ होगा क्योंकि उन्हें यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे देशों में बड़े अवसर मिलेंगे।.
      •  इसके अलावा, उच्च शिक्षा, आतिथ्य और चिकित्सा पर्यटन जैसे संभावित क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
    • सेवाओं में FTA: सेवा क्षेत्र का समर्थन करने हेतु सरकार प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं (यूके, यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त अरब अमीरात सहित) के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) के माध्यम से बाज़ार पहुँच के अवसरों का सक्रिय रूप से विश्लेषण कर रही है।
    • फाइन ट्यूनिंग एसईआईएस योजना: सरकार एक ऐसे कार्यक्रम पर कार्यरत है जो सर्विस एक्सपोर्ट्स फ्रॉम इंडिया स्कीम (SEIS) को उसके मौज़ूदा स्वरूप में बदल सकता है।
      • सरकार के अनुसार, सेवा उद्योग को सरकारी सब्सिडी जैसे सहारे से दूर रहने की आवश्यकता है। 
      • यह कंपनियों को प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित करेगा।
      • साथ ही सब्सिडी राशि का उपयोग उन लोगों के लिये किया जा सकता है जिन्हें इसकी अधिक आवश्यकता है।

सर्विस एक्सपोर्ट्स फ्रॉम इंडिया स्कीम

  • इसे भारत की विदेश व्यापार नीति 2015-2020 के तहत अप्रैल 2015 में 5 वर्षों के लिये पेश किया गया था।
    • इससे पहले, इस योजना को वित्तीय वर्ष 2009-2014 के लिये भारत योजना (SFIS  योजना) से सेवा के रूप में नामित किया गया था।
  • इस योजना के तहत सरकार ‘ड्यूटी-क्रेडिट स्क्रिप’ के रूप में अर्जित शुद्ध विदेशी मुद्रा पर 3-5% प्रोत्साहन देती है। स्क्रिप का उपयोग आयतित माल पर मूल और अतिरिक्त सीमा शुल्क के भुगतान के लिये किया जा सकता है।

आगे की राह:

  • सेवाओं में उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना: सरकार को उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना के अनुरूप सेवा क्षेत्र के विकास हेतु कुछ विचार करना चाहिये।
  • वैश्विक मूल्य शृंखलाओं का हिस्सा बनना: भारत को वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में खुद को एम्बेड करने का प्रयास करना चाहिये।
    • यदि भारत एक प्रमुख निर्यातक बनना चाहता है, तो उसे अपने तुलनात्मक लाभ के क्षेत्रों में अधिक विशेषज्ञता हासिल करनी चाहिये और महत्वपूर्ण मात्रा में विस्तार हासिल करना चाहिये।
  • B2B मॉडल: एक गतिशील बिज़नेस 2 बिज़नेस (B2B) पोर्टल विकसित करना, जिसका इस्तेमाल सेवा प्रदाता विदेशों के बाज़ारों तक पहुंचने के लिये कर सकते हैं।
  • विदेश व्यापार नीति (FTP): जब तक सरकार योजना-आधारित निर्यात प्रोत्साहनों की घोषणा करके आगामी विदेश व्यापार नीति (FTP) में इस क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित नहीं करती है और अल्पावधि में मौजूदा योजनाओं को जारी रखते हुए अंतरिम राहत प्रदान नहीं करती है, तब तक यह क्षेत्र गति खो देगा। 2021-22 के पहले पाँच महीनों में इसने गति पकड़ी है।

स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस


विधिक माप विज्ञान (पैक किये गए उत्पाद) नियम 2011

प्रिलिम्स के लिये 

विधिक माप विज्ञान (पैक किये गए उत्पाद) नियम, 2011

मेन्स के लिये 

संशोधित प्रावधान और उनका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

उपभोक्ता मामलों के विभाग ने उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिये ‘विधिक माप विज्ञान (पैक किये गए उत्पाद) नियम 2011’ के नियम-5 को समाप्त कर दिया है।

  • यह नियम 5 विभिन्न प्रकार की वस्तुओं के पैक आकार को निर्धारित करते हुए अनुसूची-II को परिभाषित करता है।

प्रमुख बिंदु

  • संशोधन के विषय में
    • ‘अधिकतम खुदरा मूल्य’ की घोषणा:
      • भारतीय मुद्रा में ‘अधिकतम खुदरा मूल्य’ (MRP) की घोषणा पूर्व-पैक वस्तुओं और निर्माण की तारीख पर सभी करों सहित अनिवार्य कर दी गई है।
    • यूनिट बिक्री मूल्य का नया प्रावधान:
      • अब मात्रा को संख्या या इकाई या टुकड़े या जोड़ी या सेट या ऐसे किसी अन्य शब्द के रूप में व्यक्त किया जा सकता है, जो पैकेज में मात्रा का प्रतिनिधित्व करता है।
        • यह खरीद के समय वस्तुओं की कीमतों की तुलना करना आसान बनाएगा।
        • इससे पूर्व संख्या के आधार पर बेची जाने वाली वस्तुओं के लिये ‘U’ और ‘N’ प्रतीक का प्रयोग किया जाता था।
  • विधिक माप विज्ञान (पैक किये गए उत्पाद) नियम 2011:
    • यह भारत में पहले से पैकिंग की गई वस्तुओं को नियंत्रित करता है और अन्य बातों के साथ-साथ ऐसी वस्तुओं की बिक्री से पहले कुछ लेबलिंग आवश्यकताओं को अनिवार्य करता है।
    • विधिक माप विज्ञान अधिनियम, 2009 (Legal Metrology Act, 2009) का मुख्य उद्देश्य वज़न एवं माप के मानकों को स्थापित करना और लागू करना, वज़न, माप एवं अन्य वस्तुओं में व्यापार तथा वाणिज्य जिन्हें तौल, माप या संख्या में बेचा या वितरित किया जाता है और कोई अन्य मामला जो इनसे संबंधित हो को विनियमित करना है।
      • अधिनियम के अनुसार, केंद्र सरकार अंतर-राज्यीय व्यापार और वाणिज्य से संबंधित कर्तव्यों का पालन करने के लिये कानूनी माप विज्ञान के निदेशक की नियुक्ति कर सकती है।
      • राज्य सरकार अंतर-राज्यीय व्यापार और वाणिज्य से संबंधित कर्तव्यों का पालन करने के लिये कानूनी माप विज्ञान नियंत्रक नियुक्त कर सकती है
  • संबंधित पहलें:

स्रोत: पी.आई.बी.