डेली न्यूज़ (08 Sep, 2022)



गैस मूल्य निर्धारण फॉर्मूला की समीक्षा

प्रिलिम्स के लिये:

गैस मूल्य निर्धारण फॉर्मूला, रूस-यूक्रेन, मुद्रास्फीति का वर्तमान तंत्र।

मेन्स के लिये:

गैस मूल्य निर्धारण फॉर्मूला की समीक्षा।

चर्चा में क्यों?

पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने घरेलू स्तर पर उत्पादित गैस के मौजूदा मूल्य निर्धारण फार्मूले की समीक्षा के लिये प्रसिद्ध ऊर्जा विशेषज्ञ किरीट पारिख की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है।

गैस-मूल्य निर्धारण फॉर्मूला समीक्षा की आवश्यकता:

  • ऊँची कीमतें:
    • वर्तमान रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण वैश्विक कीमतों में उछाल आने से स्थानीय गैस की कीमतें रिकॉर्ड उच्च स्तर पर हैं तथा आगे और बढ़ने की आशंका है।
    • वैश्विक प्राकृतिक गैस की कीमतों में उछाल ने ऊर्जा और औद्योगिक लागतों को बढ़ा दिया तथा मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के प्रयासों की विफलता से चिंताएँ बढ रही है।
      • देश लगातार सात महीनों से भारतीय रिज़र्व बैंक के 2% -6% के टॉलरेंस बैंड से ऊपर की मुद्रास्फीति से जूझ रहा है।
  • वर्तमान फॉर्मूला अदूरदर्शी:
    • वर्तमान फॉर्मूला "अदूरदर्शी" है और यह गैस उत्पादकों को प्रोत्साहन नहीं देता है।
    • भारत में, इसके ऊर्जा मिश्रण में गैस की हिस्सेदारी 6% है, जबकि वैश्विक औसत 23% है।
    • इसका उद्देश्य अगले कुछ वर्षों में इस संख्या को 15% तक बढ़ाना है।
  • कम मूल्य निर्धारण उत्पादकों को दंडित करता है:
    • भारतीय गैस कीमत भारत में LNG आयात की कीमत तथा बेंचमार्क वैश्विक गैस दरों के औसत पर निर्धारित की जाती है।
    • भारत द्वारा इसका कम मूल्य निर्धारित किया जा रहा है।
    • मौजूदा कीमतों पर उत्पादक दंडित होते हैं और कुछ हद तक उपभोक्ता उत्पादक को दोष देता है।

भारत में गैस बाज़ार का परिदृश्य:

  • भारत में कुल खपत 175 मिलियन स्टैंडर्ड क्यूबिक मीटर प्रतिदिन (MMSCMD) है।
    • इसमें से 93 MMCMD घरेलू उत्पादन के माध्यम से और 82 MMCMD द्रवीकृत प्राकृतिक गैस (Liquefied Natural Gas-LNG) आयात के माध्यम से पूरा किया जाता है। गैस की खपत सीधे आपूर्ति की उपलब्धता से संबंधित है।
  • देश में खपत होने वाली प्राकृतिक गैस में से लगभग 50% LNG का आयात किया जाता है।
  • उर्वरक क्षेत्र गैस का सबसे बड़ा उपभोक्ता है, जो खपत का एक तिहाई हिस्सा है, इसके बाद शहरी गैस वितरण (23%), विद्युत (13%), रिफाइनरी (8%) और पेट्रोकेमिकल्स (2%) का स्थान आता है।
  • कई उद्योगों को डर है कि अगर अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में LNG (आयातित गैस) की कीमतें 45 अमेरिकी डॉलर प्रति मैट्रिक मिलियन ब्रिटिश थर्मल यूनिट (Metric Million British Thermal Unit- mmBtu) के दायरे में बनी रहीं तो दुनिया के तीसरे सबसे बड़े ऊर्जा उपभोक्ता को मौजूदा स्तरों से प्राकृतिक गैस की खपत में गिरावट देखने को मिल सकती है।

भारत में वर्तमान गैस मूल्य निर्धारण:

  • परिचय:
    • भारत में प्रशासित मूल्य तंत्र (Administered Price Mechanism- APM) के तहत गैस की कीमत, सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है।
      • इस प्रणाली के तहत, तेल और गैस क्षेत्र को चार चरणों- उत्पादन, शोधन, वितरण और विपणन में नियंत्रित किया जाता है। ।
    • गैर-प्रशासित मूल्य तंत्र या मुक्त बाज़ार गैस को आगे दो श्रेणियों - अर्थात् संयुक्त उद्यम क्षेत्रों से घरेलू रूप से उत्पादित गैस और आयातित LNG में विभाजित किया गया है।
      • प्राकृतिक गैस का मूल्य निर्धारण उत्पादन साझाकरण अनुबंध (Production Sharing Contract- PSC) प्रावधानों के अनुसार नियंत्रित होता है।
      • जबकि टर्म कॉन्ट्रैक्ट के तहत LNG की कीमत LNG विक्रेता और खरीदार के मध्य बिक्री और खरीद समझौता (Sale and Purchase Agreement- SPA) द्वारा नियंत्रित होता है, स्पॉट कार्गो पारस्परिक रूप से सहमत वाणिज्यिक शर्तों पर खरीदे जाते हैं।
    • इसके अलावा विभिन्न क्षेत्रों के लिये अलग-अलग मूल्य निर्धारण मौज़ूद है। विद्युत और उर्वरक जैसे सब्सिडी वाले क्षेत्रों को अन्य क्षेत्रों की तुलना में अपेक्षाकृत कम कीमत मिलती है।
    • इसके अलावा, देश के अन्य हिस्सों की तुलना में उत्तर पूर्वी राज्यों को अपेक्षाकृत सस्ती कीमतों पर गैस मिलने के साथ देश में क्षेत्र विशिष्ट मूल्य निर्धारण मौजूद है।
      • भारतीय बाज़ार में गैस आपूर्ति के एक बड़े हिस्से का मूल्य निर्धारण नियंत्रित है और बाज़ार संचालित नहीं है क्योंकि कीमत बदलने से पहले सरकार की मंज़ूरी आवश्यक है।
  • मुद्दे:
    • नियंत्रित मूल्य निर्धारण के परिणामस्वरूप विदेशी अभिकर्त्ताओं की सीमित भागीदारी के मामले में इस क्षेत्र में निवेश को हतोत्साहित किया जा सकता है, जिनके पास गहरे जल के E&D गतिविधियों के संदर्भ में आवश्यक प्रौद्योगिकी तक पहुँच है।
    • इसके अलावा नियंत्रित मूल्य निर्धारण वैश्विक ऊर्जा बाज़ारों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये उपभोक्ता क्षेत्रों (बिजली / उर्वरक / घरेलू) की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बाधित करता है क्योंकि इससे मांग पक्ष में ऊर्जा दक्षता में कम निवेश होता है।

आगे की राह

  • चूँकि देश में कई मूल्य निर्धारण व्यवस्थाएँ मौजूद हैं, विभिन्न स्रोतों से गैस एकत्रित करने की नीति निर्माताओं द्वारा विचार-विमर्श किया गया है।
  • विद्युत और उर्वरक ग्राहकों के अलग स्रोत के साथ क्षेत्रीय स्रोत पर विचार किया जा रहा। ग्राहक समूहों और संबंधित प्रशासनिक मुद्दों के बीच क्रॉस सब्सिडी से बचने के मद्देनजर अलग स्रोत पर विचार किया गया।
  • रंगराजन समिति ने निष्पक्ष और एक-समान गैस मूल्य निर्धारण का प्रस्ताव दिया है।
  • घरेलू गैस मूल्य निर्धारण विधि गैस आयात के लिये वेल-हेड पर वॉल्यूम-वेटेड एवरेज का 12 महीने का ट्रेलिंग एवरेज और यूएस हेनरी हब, यूके एनबीपी और जापानी क्रूड कॉकटेल कीमतों का वॉल्यूम-वेटेड एवरेज होना चाहिये।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स


भारत की जलवायु प्रतिज्ञा

प्रिलिम्स के लिये:

पेरिस समझौता, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (COP-26), राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC), यूरोपीय संघ (EU), जलवायु परिवर्तन।

मेन्स के लिये:

पेरिस जलवायु समझौता और उसके प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक अध्ययन में पेरिस समझौते के लिये भारत की अद्यतन जलवायु प्रतिज्ञा को अनुपालन में पाँचवांँ और महत्त्वाकाँक्षा में चौथा स्थान दिया गया है।

Climate-Targets

अध्ययन की मुख्य विशेषताएँ:

  • परिचय:
    • यह अध्ययन वैज्ञानिक पत्रिका ‘नेचर क्लाइमेट चेंज’ (Nature Climate Change) में प्रकाशित हुआ था।
    • इसमें आठ देश भारत, अमेरिका, चीन, ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरब, रूस, ऑस्ट्रेलिया और ब्राज़ील और यूरोपीय संघ शामिल हैं।
    • पेरिस समझौते के लगभग सभी हस्ताक्षरकर्त्ताओं ने जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Conference on Climate Change- COP 26) के 26वें सत्र के दौरान अपनी जलवायु प्रतिज्ञाओं/प्रतिबद्धताओं का अद्यतन किया।
  • परिणाम:
    • यूरोपीय संघ (European Union-EU) इसमें शीर्ष पर था, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका अनुपालन में अंतिम स्थान पर और महत्त्वाकांक्षा में दूसरे स्थान पर था।
      • अनुपालन: अनुपालन श्रेणी में, यूरोपीय संघ ने अग्रणी स्थान हासिल किया जिसके बाद चीन, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, भारत, रूस, सऊदी अरब, ब्राज़ील और अमेरिका का स्थान रहा।
    • महत्त्वाकांक्षा:
      • महत्त्वाकांक्षा श्रेणी में, यूरोपीय संघ के बाद चीन, दक्षिण अफ्रीका, भारत, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका और सऊदी अरब का स्थान है।
  • मानदंड:
  • सांख्यिकीय विश्लेषण:
    • स्थिर शासन वाले राष्ट्रों में साहसिक और अत्यधिक विश्वसनीय प्रतिज्ञाओं की संभावना अधिक होती है।
    • इसके अलावा चीन और अन्य गैर-लोकतंत्र भी अपनी प्रतिबद्धताओं को पूर्ण करने की संभावना रखते हैं।
      • इन देशों की प्रशासनिक और राजनीतिक प्रणालियाँ उन्हें जटिल राष्ट्रीय नीतियों को लागू करने में सक्षम बनाती हैं।
  • भारत का प्रदर्शन:

    • भारत को अनुपालन में पाँचवाँ और महत्वाकांक्षा में चौथा स्थान प्राप्त है।

पेरिस समझौता:

  • परिचय:
    • पेरिस समझौते (जिसे कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज 21 या COP 21 के रूप में भी जाना जाता है) को वर्ष 2015 में अपनाया गया था।

      • इसने क्योटो प्रोटोकॉल का स्थान लिया जो जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये पहले का समझौता था।

    • पेरिस समझौता एक वैश्विक संधि है जिसमें लगभग 200 देश, ग्रीन हाउस गैसों (GHGs) के उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण करने के लिये सहयोग करने पर सहमत हुए हैं।
      • यह पूर्व-उद्योग स्तरों की तुलना में ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे, अधिमानतः 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का प्रयास करता है।
  • कार्य:
    • ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती के अलावा पेरिस समझौते में प्रत्येक पाँच वर्ष में उत्सर्जन में कटौती के लिये प्रत्येक देश के योगदान की समीक्षा करने की आवश्यकता का उल्लेख किया गया है ताकि वे संभावित चुनौती के लिये तैयार हो सकें। वर्ष 2020 तक, देशों NDCs के रूप में ज्ञात जलवायु कार्रवाई के लिये अपनी योजनाएँ प्रस्तुत की थी।
    • दीर्घकालिक रणनीतियाँ: दीर्घकालिक लक्ष्य की दिशा में प्रयासों को उचित ढंग से तैयार करने के लिये पेरिस समझौता देशों को वर्ष 2020 तक दीर्घकालिक कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन विकास रणनीति (LT-LEDS) तैयार करने एवं प्रस्तुत करने के लिये आमंत्रित करता है।
    • दीर्घकालिक कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन विकास रणनीतियांँ (LT-LEDS) NDC के लिये दीर्घकालिक क्षितिज प्रदान करती हैं परंतु NDC की तरह वे अनिवार्य नहीं हैं।
  • प्रगति रिपोर्ट:
    • पेरिस समझौते के साथ देशों ने उन्नत पारदर्शिता ढाँचा (ETF) स्थापित किया। वर्ष 2024 से शुरू होने वाले ETF के तहत, देश जलवायु परिवर्तन शमन, अनुकूलन उपायों और प्रदान या प्राप्त समर्थन में की गई कार्रवाइयों एवं प्रगति पर पारदर्शी रूप से रिपोर्ट करेंगे।
      • इसमें प्रस्तुत रिपोर्टों की समीक्षा के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रक्रियाओं का भी प्रावधान है।
      • ETF के माध्यम से एकत्र की गई जानकारी वैश्विक स्टॉकटेक में उपलब्ध होगी जो दीर्घकालिक जलवायु लक्ष्यों की दिशा में सामूहिक प्रगति का आकलन करेगी।

आगे की राह

  • इस दीर्घकालिक तापमान लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये देशों को सदी के मध्य तक जलवायु-तटस्थ विश्व निर्माण के लिये जल्द से जल्द ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी हेतु वैश्विक शिखर पर पहुँचने का लक्ष्य रखना चाहिये।
  • मध्यम अवधि के डीकार्बोनाइज़ेशन के लिये स्पष्ट मार्ग के साथ विश्वसनीय अल्पकालिक प्रतिबद्धताओं की आवश्यकता है, जो वायु प्रदूषण जैसी कई चुनौतियों को ध्यान में रखता है, साथ ही विकास के लिये अधिक रक्षात्मक विकल्प हो सकता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ):

प्रश्न. वर्ष 2015 में पेरिस में UNFCCC बैठक में हुए समझौते के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)

  1. समझौते पर संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों द्वारा हस्ताक्षर किये गए थे और यह वर्ष 2017 में लागू हुआ था।
  2. समझौते का उद्देश्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को सीमित करना है ताकि इस सदी के अंत तक औसत वैश्विक तापमान में वृद्धि पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस या 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक न हो।
  3. विकसित देशों ने ग्लोबल वार्मिंग में अपनी ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी को स्वीकार किया और विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करने हेतु वर्ष 2020 से सालाना 1000 अरब डॉलर की मदद के लिये प्रतिबद्ध हैं।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: b

व्याख्या:

  • पेरिस समझौते को दिसंबर 2015 में पेरिस, फ्राँस में COP21 में पार्टियों के सम्मेलन (COP) द्वारा संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) के माध्यम से अपनाया गया था।
  • समझौते का उद्देश्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को सीमित करना है ताकि इस सदी के अंत तक औसत वैश्विक तापमान में वृद्धि पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस या 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक न हो। अत: कथन 2 सही है।
  • पेरिस समझौता 4 नवंबर, 2016 को लागू हुआ, जिसमें वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को अनुमानित 55% तक कम करने के लिये अभिसमय हेतु कम-से-कम 55 पार्टियों ने अनुसमर्थन, अनुमोदन या परिग्रहण स्वीकृति प्रदान की थी। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • इसके अतिरिक्त समझौते का उद्देश्य अपने स्वयं के राष्ट्रीय लक्ष्यों के अनुरूप जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिये देशों की क्षमता को मज़बूत करना है।
  • पेरिस समझौते के लिये सभी पक्षों को राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) के माध्यम से अपने सर्वोत्तम प्रयासों को आगे बढ़ाने और आने वाले वर्षों में इन प्रयासों को मज़बूत करने की आवश्यकता है। इसमें यह भी शामिल है कि सभी पक्ष अपने उत्सर्जन और उनके कार्यान्वयन प्रयासों पर नियमित रूप से रिपोर्ट करें।
  • समझौते के उद्देश्य को प्राप्त करने की दिशा में सामूहिक प्रगति का आकलन करने और पार्टियों द्वारा आगे की व्यक्तिगत कार्रवाइयों को सूचित करने के लिये प्रत्येक 5 साल में एक वैश्विक समालोचना भी होगी।
  • वर्ष 2010 में कानकुन समझौतों के माध्यम से विकसित देशों को विकासशील देशों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये वर्ष 2020 तक प्रतिवर्ष संयुक्त रूप से 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाने के लक्ष्य हेतु प्रतिबद्ध किया।
  • इसके अलावा वे इस बात पर भी सहमत हुए कि वर्ष 2025 से पहले पेरिस समझौते के लिये पार्टियों की बैठक के रूप में सेवारत पार्टियों का सम्मेलन प्रतिवर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर से एक नया सामूहिक मात्रात्मक लक्ष्य निर्धारित करेगा। अत: कथन 3 सही नहीं है।

अतः विकल्प (b) सही है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


मूलभूत शिक्षण सर्वेक्षण

प्रिलिम्स के लिये:

NCERT, सर्वेक्षण मे प्रवृत्तियाँ, सरकार की पहल।

मेन्स के लिये:

भारत में शिक्षा की स्थिति, सरकार की पहल।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय और राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) द्वारा संयुक्त रूप से राष्ट्रव्यापी मूलभूत शिक्षण सर्वेक्षण (Foundational Learning Survey-FLS) किया गया।

  • दिल्ली के तीसरी कक्षा के 50% से अधिक बच्चों के पास या तो "सीमित" मूलभूत संख्यात्मक कौशल है या "सबसे बुनियादी ज्ञान और कौशल की कमी" है।
  • राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (National Achievement Survey-NAS) में भी दिल्ली को उन पाँच राज्यों में शामिल किया गया है, जहाँ कक्षा III के स्तर पर गणित और भाषा दोनों में सबसे कम औसत अंक हैं।

मूलभूत शिक्षण सर्वेक्षण (FLS):

  • परिचय:
    • मूलभूत शिक्षण सर्वेक्षण (FLS) का उद्देश्य 22 भारतीय भाषाओं में समझ के साथ पढ़ने के लिये मानक स्थापित करना है।
  • पृष्ठभूमि:
    • FLS 2022 में निपुण (NIPUN) भारत मिशन के तहत फाउंडेशनल लिटरेसी एंड न्यूमेरसी (FLN) के प्रयासों को मज़बूत करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में शुरू किया गया था।
  • नमूने का आकार:
    • देश के 10,000 स्कूलों में कक्षा III के 86,000 बच्चों के बीच मूलभूत शिक्षण सर्वेक्षण किया गया।
      • दिल्ली में नमूना आकार 515 स्कूलों के 2,945 छात्रों का था।
  • वर्गीकरण:
    • बच्चों के प्रदर्शन के आधार पर उन्हें चार श्रेणियों में रखा गया था:
      • जिनके पास सबसे बुनियादी ज्ञान और कौशल की कमी थी
      • जिनके पास सीमित ज्ञान और कौशल है
      • जिन्होंने पर्याप्त ज्ञान और कौशल विकसित किया है
      • जिन्होंने बेहतर ज्ञान विकसित किया है
  • निष्कर्ष:
    • राष्ट्रीय:
      • कुल आँकड़े:
        • 11% छात्रों के पास सबसे बुनियादी ज्ञान और कौशल की कमी है।
        • 37% छात्रों के पास सीमित ज्ञान और कौशल है।
      • भाषा:
        • अंग्रेज़ी:
          • 15% छात्रों में बुनियादी कौशल की कमी पाई गई।
          • 30% के पास सीमित कौशल था।
          • 21% के पास पर्याप्त कौशल था।
          • 34% के पास बेहतर कौशल था।
        • हिंदी:
          • 21% सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले वर्ग के अंतर्गत आते हैं।
          • 32% के पास सीमित कौशल था।
      • राज्य: संख्यात्मकता के आधार पर तमिलनाडु (29%) में छात्रों की अधिकतम संख्या थी, जो सबसे बुनियादी ग्रेड-स्तरीय कार्यों को पूरा नहीं कर सके, इसके बाद जम्मू और कश्मीर (28%), असम, छत्तीसगढ़ तथा गुजरात (18%) थे।
  • निष्कर्षों का आधार:
    • FLS के निष्कर्ष प्रत्येक व्यक्तिगत प्रतिभागी के साक्षात्कार पर आधारित हैं।
      • जबकि राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण ने बहुविकल्पीय प्रश्नों के आधार पर सीखने के परिणामों का मूल्यांकन किया।

शिक्षा क्षेत्र के लिये सरकार की पहलें:

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT):

  • परिचय:
    • राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) भारत सरकार द्वारा वर्ष 1961 में स्थापित एक स्वायत्त संगठन है जो स्कूली शिक्षा में गुणात्मक सुधार के लिये नीतियों और कार्यक्रमों पर केंद्र तथा राज्य सरकारों को सहायता और सलाह देता है।
  • संघटक इकाइयाँ:
    • NCERT की प्रमुख घटक इकाइयाँ जो देश के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित हैं:
      • राष्ट्रीय शिक्षा संस्थान (National Institute of Education-NIE)
      • केंद्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी संस्थान (Central Institute of Educational Technology-CIET))
      • पंडित सुंदरलाल शर्मा केंद्रीय व्यावसायिक शिक्षा संस्थान (Pandit Sundarlal Sharma Central Institute of Vocational Education-PSSCIVE)
      • क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान (Regional Institute of Education -RIE)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जेंडर स्नैपशॉट 2022

प्रिलिम्स के लिये:

जेंडर स्नैपशॉट 2022, सतत् विकास लक्ष्य-5।

मेन्स के लिये:

महिलाओं से संबंधित मुद्दे, लैंगिक-अंतर, संबंधित चुनौतियाँ और आगे की राह।

 चर्चा में क्यों?

हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र (UN) महिला और संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक तथा सामाजिक मामलों के विभाग (UN DESA) द्वारा "सतत् विकास लक्ष्यों पर प्रगति (SDG): द जेंडर स्नैपशॉट 2022" नामक रिपोर्ट जारी की गई।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

  • रिपोर्ट में कहा गया है कि सतत् विकास लक्ष्य -5 (SDG-5) या लैंगिक समानता हासिल करना वर्ष 2030 तक प्रगति की मौजूदा गति से पूरा नहीं होगा।
  • वर्ष 2022 के अंत तक 368 मिलियन पुरुषों और लड़कों की तुलना में लगभग 383 मिलियन महिलाएँ और लड़कियाँ अत्यधिक गरीबी (एक दिन में 1.90 अमेरिकी डॉलर से भी कम) में जी रही होंगी।
  • प्रगति की मौजूदा दर पर पूर्ण लैंगिक समानता हासिल करने में लगभग 300 वर्ष लगेंगे।
  • वर्ष 2030 तक बाल विवाह को समाप्त करने के लिये पिछले दशक की प्रगति की तुलना में अगले दशक की प्रगति 17 गुना तेज़ होनी चाहिये।
    • सबसे गरीब ग्रामीण परिवारों और संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों की लड़कियों को सबसे ज़्यादा नुकसान होने की आशंका है।
  • वर्ष 2021 में, युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में लगभग 38% महिला-प्रधान परिवारों ने मध्यम या गंभीर खाद्य असुरक्षा जबकि 20% पुरुष-प्रधान परिवारों ने इसका अनुभव किया।
  • वैश्विक स्तर पर महामारी के कारण वर्ष 2020 में महिलाओं की आय में अनुमानित 800 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ।
  • वर्ष 2021 के अंत तक पहले से कहीं अधिक लगभग 44 मिलियन महिलाओं और लड़कियों को जबरन विस्थापित किया गया।
  • 2 अरब से अधिक 15-49 प्रजनन आयु महिलाएंँ और लड़कियांँ सुरक्षित गर्भपात तक पहुंँच पर कुछ प्रतिबंधों वाले देशों और क्षेत्रों में रहती हैं।

SDG

चुनौतियांँ:

  • COVID-19 महामारी और उसके बाद हिंसक संघर्ष, जलवायु परिवर्तन और महिलाओं के यौन तथा प्रजनन स्वास्थ्य एवं अधिकारों के खिलाफ प्रतिक्रिया जैसी वैश्विक चुनौतियाँ लैंगिक असमानताओं को और बढ़ा रही हैं।
  • यूक्रेन पर आक्रमण और युद्ध, विशेष रूप से महिलाओं तथा बच्चों के बीच खाद्य सुरक्षा और भी बदतर होती जा रही है।
  • दुनिया के अधिकांश हिस्सों में अभी भी कानूनी प्रणालियाँ सभी क्षेत्रों में महिलाओं के अधिकारों की समान सुरक्षा सुनिश्चित नहीं करती हैं जैसे कि विवाह और परिवार में महिलाओं के अधिकार को सीमित करना, काम पर असमान वेतन एवं लाभ तथा भूमि के स्वामित्व व नियंत्रण के असमान अधिकार आदि और दुर्भाग्य से यह आने वाली पीढ़ियों को सामना करना पड़ सकता है।

आगे की राह:

  • आँकड़ों से पता चलता है कि आय, सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य में वैश्विक संकट से उनका जीवन बदतर हो गया है। हम इस प्रवृत्ति को ठीक करने में जितना अधिक समय लेंगे, उतना ही हमें इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।
    • लैंगिक समानता सभी सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये नींव है और यह बेहतर निर्माण के केंद्र में होना चाहिये।
  • व्यापक वैश्विक संकट SDG की उपलब्धि को संकट में डाल रहे हैं, दुनिया के सबसे कमज़ोर जनसंख्या समूहों, विशेष रूप से महिलाओं और लड़कियों में असमान रूप से प्रभावित हुए हैं।
    • लैंगिक समानता एजेंडे में सहयोग, साझेदारी और निवेश, जिसमें वैश्विक एवं राष्ट्रीय वित्त पोषण में वृद्धि शामिल है, पाठ्यक्रम को सही करने तथा लैंगिक समानता को पटरी पर लाने के लिये आवश्यक है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ):

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन विश्व के देशों को 'वैश्विक लैंगिक अंतर सूचकांक ' रैंकिंग प्रदान करता है? (2017)

(a) विश्व आर्थिक मंच
(b) संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद
(c) संयुक्त राष्ट्र महिला
(d) विश्व स्वास्थ्य संगठन

उत्तर: a

व्याख्या:

  • वैश्विक लैंगिक अंतर सूचकांक, विश्व आर्थिक मंच द्वारा प्रकाशित की जाती है। अत: विकल्प a सही है।
  • वैश्विक लैंगिक अंतर सूचकांक, जिसे लैंगिक समानता को मापने के लिये डिज़ाइन किया गया है, चार प्रमुख क्षेत्रों में महिलाओं और पुरुषों के बीच गणना किये गए लैंगिक अंतर के अनुसार देशों को रैंक करता है। इसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, अर्थव्यवस्था और राजनीति जैसे मानकों पर लैंगिक समानता की स्थिति को मापा जाता है।
  • वैश्विक लैंगिक अंतर सूचकांक 2021 ने 156 देशों को चार विषयगत आयामों में लैंगिक समानता की दिशा में उनकी प्रगति पर आकलन किया: आर्थिक भागीदारी और अवसर, शैक्षिक प्राप्ति, स्वास्थ्य और उत्तरजीविता, एवं राजनीतिक अधिकारिता। इसके अलावा इस वर्ष के संस्करण में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से संबंधित कौशल लैंगिक अंतराल का अध्ययन किया गया।
  • वैश्विक लैंगिक अंतर सूचकांक -2021 में भारत 140वें स्थान पर है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारत में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र और संबंधित पहल।

मेन्स के लिये:

भारत में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र, चुनौतियाँ और संभावनाएँ।

चर्चा में क्यों?

भारत में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के वर्ष 2025 तक बढ़कर 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।

  • हेल्थकेयर/स्वास्थ्य सेवा पिछले दो वर्षों में नवाचार और प्रौद्योगिकी पर अधिक केंद्रित हो गया है और 80% स्वास्थ्य सेवा सिस्टम आने वाले पाँच वर्षों में डिजिटल स्वास्थ्य सेवा  क्षेत्र में अपने निवेश को बढ़ाने का लक्ष्य बना रहे हैं।

भारत में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र

  • परिचय:
    • स्वास्थ्य सेवाओं में अस्पताल, चिकित्सा उपकरण, नैदानिक परीक्षण, आउटसोर्सिंग, टेलीमेडिसिन, चिकित्सा पर्यटन, स्वास्थ्य बीमा और चिकित्सा उपकरण शामिल हैं।
    • भारत की स्वास्थ्य सेवा वितरण प्रणाली को दो प्रमुख घटकों में वर्गीकृत किया गया है - सार्वजनिक और निजी।
      • सरकार (सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली) प्रमुख शहरों में सीमित माध्यमिक और तृतीयक देखभाल संस्थानों को शामिल करती है और ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों (Primary Healthcare Centres-PHC) के रूप में बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करती है।
      • निजी क्षेत्र, महानगरों या टियर-I और टियर-II शहरों में अधिकांश माध्यमिक, तृतीयक और चतुर्थक देखभाल संस्थान केंद्रित है।
  • बाज़ार सांख्यिकी:
    • भारतीय स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में तीन गुना वृद्धि दर्ज करने की उम्मीद है, जो वर्ष 2016-22 के बीच 22% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़कर वर्ष 2016 में 372 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगी, जो वर्ष 2016 में 110 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी।
    • वर्ष 2022 के आर्थिक सर्वेक्षण में, स्वास्थ्य सेवा पर भारत का सार्वजनिक व्यय वर्ष 2021-22 में सकल घरेलू उत्पाद का 2.1% था, जो वर्ष 2020-21 में 1.8% और 2019-20 में 1.3% है।
    • वित्तीय वर्ष 2021 में, स्वास्थ्य बीमा कंपनियों द्वारा अंडरराइट की गई सकल प्रत्यक्ष प्रीमियम आय 13.3% से बढ़कर 58,572.46 करोड़ रुपए (USD 7.9 बिलियन) हो गई।
    • 2020 में भारतीय चिकित्सा पर्यटन बाज़ार का मूल्य 2.89 बिलियन अमेरिकी डॉलर था और इसके 2026 तक 13.42 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
    • टेलीमेडिसिन के भी वर्ष 2025 तक 5.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।

स्वास्थ्य क्षेत्र के साथ चुनौतियाँ:

  • अपर्याप्त पहुँच:
    • चिकित्सा पेशेवरों की कमी, गुणवत्ता आश्वासन की कमी, अपर्याप्त स्वास्थ्य खर्च और सबसे महत्त्वपूर्ण अपर्याप्त शोध निधि जैसी बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं तक अपर्याप्त पहुँच।
    • प्रमुख चिंताओं में से प्रशासन का अपर्याप्त वित्तीय आवंटन है।
  • कम बजट:
    • स्वास्थ्य सेवा पर भारत का सार्वजनिक व्यय वर्ष 2021-22 में सकल घरेलू उत्पाद का केवल 2.1% है जबकि जापान, कनाडा और फ्राँस अपने सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 10% सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा पर खर्च करते हैं।
      • यहाँ तक कि बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों की GDP का 3% से अधिक हिस्सा सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली का है।
  • निवारक देखभाल की कमी:
    • भारत में निवारक देखभाल को कम करके आँका गया है, इस तथ्य के बावजूद कि यह दुख और वित्तीय नुकसान के मामले में रोगियों के लिये विभिन्न प्रकार की कठिनाइयों को कम करने में काफी फायदेमंद साबित हुआ है।
  • चिकित्सा अनुसंधान की कमी:
    • भारत में अनुसंधान एवं विकास और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के नेतृत्व वाली नई परियोजनाओं पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है।
  • नीति निर्माण:
    • प्रभावी और कुशल स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने में नीति निर्धारण निस्संदेह महत्त्वपूर्ण है। भारत में मुद्दा मांग के बजाय आपूर्ति का है और नीति निर्धारण मदद कर सकता है।
  • पेशेवरों की कमी:
    • भारत में, डॉक्टरों, नर्सों और अन्य स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी है।
    • एक मंत्री द्वारा संसद में प्रस्तुत किये गए एक अध्ययन के अनुसार, भारत में 600,000 डॉक्टरों की कमी है।
  • संसाधनों की कमी:
    • डॉक्टर चरम परिस्थितियों में काम करते हैं जिसमें भीड़भाड़ वाले बाहरी रोगी विभाग, अपर्याप्त स्टाफ, दवाएँ और बुनियादी ढाँचे शामिल हैं।

भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र की क्षमता:

  • भारत का प्रतिस्पर्धात्मक लाभ अच्छी तरह से प्रशिक्षित चिकित्सा पेशेवरों के अपने बड़े पूल में निहित है। भारत एशिया और पश्चिमी देशों में अपने साथियों की तुलना में लागत प्रतिस्पर्धी भी है। भारत में सर्जरी की लागत अमेरिका या पश्चिमी यूरोप की तुलना में लगभग दसवाँ हिस्सा है।
  • इस क्षेत्र में तेज़ी से वृद्धि के लिये भारत के पास सभी आवश्यक सामग्री है, जिसमें एक बड़ी आबादी, एक मजबूत फार्मा और चिकित्सा आपूर्ति शृंखला, 750 मिलियन से अधिक स्मार्टफोन उपयोगकर्त्ता तक आसान पहुँच के साथ विश्व स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप पूल और वैश्विक स्वास्थ्य समस्याओं को हल करने के लिये नवीन तकनीकी उद्यमी शामिल हैं।
  • देश में उत्पाद विकास और नवाचार को बढ़ावा देने हेतु चिकित्सा उपकरणों का तेज़ी से नैदानिक परीक्षण करने के लिये लगभग 50 क्लस्टर होंगे।
  • जीवन प्रत्याशा, स्वास्थ्य समस्याओं के प्रभाव में बदलाव, वरीयताओं में बदलाव, बढ़ते मध्यम वर्ग, स्वास्थ्य बीमा में वृद्धि, चिकित्सा सहायता, बुनियादी ढाँचे के विकास और नीति समर्थन तथा प्रोत्साहन इस क्षेत्र को आगे बढ़ाएंँगे।
  • वर्ष 2021 तक भारतीय स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र भारत के सबसे बड़े नियोक्ताओं में से एक है क्योंकि इसमें कुल 4.7 मिलियन लोग कार्यरत हैं। इस क्षेत्र ने वर्ष 2017-22 के बीच भारत में 2.7 मिलियन अतिरिक्त नौकरियाँ पैदा की हैं (प्रति वर्ष 500,000 से अधिक नई नौकरियाँ)।

स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र से संबंधित पहल:

आगे की राह

  • भारत की बड़ी आबादी के कारण बोझ से दबे सरकारी अस्पतालों के बुनियादी ढाँचे में सुधार की तत्काल आवश्यकता है।
  • सरकार को निजी अस्पतालों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है, क्योंकि ये महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करते हैं।
  • क्योंकि कठिनाइयाँ गंभीर हैं और केवल सरकार द्वारा ही इसका समाधान नहीं किया जा सकता है, निजी क्षेत्र को भी इसमें शामिल होना चाहिये।
  • स्वास्थ क्षेत्र की क्षमताओं और दक्षता में सुधार के लिये अधिक चिकित्सा कर्मियों को शामिल किया जाना चाहिये।
  • स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार हेतु प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाना चाहिये।
    • अस्पतालों और क्लीनिकों में चिकित्सा गैजेट, मोबाइल स्वास्थ्य ऐप, पहनने योग्य और सेंसर तकनीक के कुछ उदाहरण हैं जिन्हें इस क्षेत्र में शामिल किया जाना चाहिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ):

प्रिलिम्स:

प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन' के उद्देश्य हैं? (2017)

  1. गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं में कुपोषण के बारे में ज़ागरूकता पैदा करना।
  2. छोटे बच्चों, किशोरियों और महिलाओं में एनीमिया के मामलों को कम करना।
  3. बाजरा, मोटे अनाज और बिना पॉलिश किये चावल की खपत को बढ़ावा देना।
  4. पोल्ट्री अंडे की खपत को बढ़ावा देना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a)  केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 3
(c) केवल 1, 2 और 4
(d)  केवल 3 और 4

उत्तर: A

व्याख्या:

  • राष्ट्रीय पोषण मिशन (पोषण अभियान) महिला और बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है, जो आंँगनवाड़ी सेवाओं, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, स्वच्छ-भारत मिशन आदि जैसे विभिन्न कार्यक्रमों के साथ अभिसरण सुनिश्चित करता है।
  • राष्ट्रीय पोषण मिशन (एनएनएम) का लक्ष्य 2017-18 से शुरू होकर अगले तीन वर्षों के दौरान 0-6 वर्ष के बच्चों, किशोरियों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं की पोषण स्थिति में समयबद्ध तरीके से सुधार करना है। अतः कथन 1 सही है।
  • एनएनएम का लक्ष्य स्टंटिंग, अल्पपोषण, एनीमिया (छोटे बच्चों, महिलाओं और किशोर लड़कियों के बीच) को कम करना और बच्चों के जन्म के समय कम वज़न की समस्या को कम करना है। अत: कथन 2 सही है।
  • एनएनएम के तहत बाजरा, बिना पॉलिश किये चावल, मोटे अनाज और अंडों की खपत से संबंधित ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। अत: कथन 3 और 4 सही नहीं हैं।

अतः विकल्प (a) सही है।


मेन्स:

प्रश्न. "एक कल्याणकारी राज्य की नैतिक अनिवार्यता होने के अलावा प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना सतत् विकास के लिये एक आवश्यक पूर्व शर्त है" विश्लेषण कीजिये। (मेन्स-2021)

स्रोत: पी.आई.बी.


इंटरनेशनल डे ऑफ क्लीन एयर फॉर ब्लू स्काई

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम, PM10, PM2.5, UNEP।

मेन्स के लिये:

इंटरनेशनल डे ऑफ क्लीन एयर फॉर ब्लू स्काई, इसका महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change-MoEF&C) ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के तहत वायु गुणवत्ता में सुधार के लिये जागरूकता बढ़ाने और कार्यों को सुविधाजनक बनाने हेतु 'स्वच्छ वायु दिवस (Clean air day)' के रूप में ‘इंटरनेशनल डे ऑफ क्लीन एयर फॉर ब्लू स्काई’ का आयोजन किया।

  • अपने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के लिये चुने गए 131 में से 20 शहरों ने अपने वर्ष 2017 के स्तर की तुलना में वर्ष 2021-22 में राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर को प्राप्त किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • थीम :
    • वायु, हम साझा करते हैं ( The Air We Share)।
    • यह वायु प्रदूषण से निपटने के लिये शमन नीतियों और कार्यों के अधिक कुशल कार्यान्वयन के लिये तत्काल तथा रणनीतिक अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सहयोग की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
  • परिचय:
    • अपने 74वें सत्र के दौरान संयुक्त राष्ट्र महासभा में 19 दिसंबर, 2019 को इंटरनेशनल डे ऑफ क्लीन एयर फॉर ब्लू स्काई आयोजित करने का एक प्रस्ताव अपनाया।
    • संकल्प ने संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) को अन्य संबंधित हितधारकों के सहयोग से दिवस के पालन को सुविधाजनक बनाने के लिये प्रोत्साहित किया।
    • प्रस्ताव के पारित कराने हेतु जलवायु और स्वच्छ वायु गठबंधन ने UNEP और कोरिया गणराज्य के साथ मिलकर प्रयास किया।
  • महत्त्व:
    • संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों के साथ शिखर सम्मेलन की मेजबानी करके इंटरनेशनल डे ऑफ क्लीन एयर फॉर ब्लू स्काई मनाता है।
    • उपस्थित लोगों ने अपने दृष्टिकोण रखे और दुनिया भर में वायु प्रदूषण तथा वायु गुणवत्ता के प्रभावों पर चर्चा की।

 NCAP के प्रमुख निष्कर्ष:

  • इन 131 शहरों में से 95 ने वायु गुणवत्ता में सुधार दिखाया है।
    • वाराणसी में वायु गुणवत्ता के स्तर में 53% का सबसे उल्लेखनीय सुधार दर्ज किया गया।
    • वर्ष 2017 में वाराणसी में PM10 की वार्षिक औसत सांद्रता 244 थी, जो वर्ष 2021 में गिरकर 144 हो गई।
  • सभी महानगरों, दिल्ली, बंगलुरु, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता और हैदराबाद में PM10 ने वर्ष 2017 की तुलना में वर्ष 2021-22 में वायु गुणवत्ता में महत्वपूर्ण सुधार दिखाया है।
    • सुधार वाले अन्य प्रमुख शहरों में नोएडा, चंडीगढ़, नवी मुंबई, पुणे, गुवाहाटी आदि शामिल हैं।
  • लेकिन इसी अवधि में 27 शहरों में वायु गुणवत्ता में गिरावट देखी गई है।
    • उनमें से छत्तीसगढ़ के ज़िला कोरबा शामिल है, जहाँ 10 तापीय कोयला विद्युत संयंत्र हैं।
  • राज्यों में, मध्य प्रदेश का प्रदर्शन सबसे खराब रहा है, क्योंकि NCAP के लिये केंद्र द्वारा चुने गए राज्य के सात शहरों में से छह ने वायु गुणवत्ता में गिरावट देखी गई है।
    • ये शहर हैं- भोपाल, देवास, इंदौर, जबलपुर, सागर, उज्जैन और ग्वालियर।
  • पश्चिम बंगाल में हावड़ा और दुर्गापुर; महाराष्ट्र में औरंगाबाद और ठाणे; बिहार में गया; गुजरात में राजकोट और वडोदरा; भुवनेश्वर (ओडिशा); पटियाला (पंजाब) और जम्मू में भी वायु गुणवत्ता में गिरावट देखी गई है।

NCAP

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs):

प्रश्न. निम्नलिखित कथनो पर विचार कीजिये: (2017)

  1. अल्पजीवी जलवायु प्रदूषकों को न्यूनीकृत करने हेतु जलवायु एवं स्वच्छ वायु गठबंधन (CCAC), G20 की एक अनोखी पहल है।
  2. CCAC मीथेन, ब्लैक कार्बन एवं हाइड्रोफ्लोरोकार्बनों पर ध्यान केंद्रित करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: b

  • बांग्लादेश, कनाडा, घाना, मैक्सिको, स्वीडन और संयुक्त राज्य अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के साथ मिलकर इन प्रदूषकों को एक सामूहिक चुनौती के रूप में स्वीकारने के लिये पहला प्रयास शुरू किया तथा यह मीथेन, ब्लैक कार्बन एवं हाइड्रोफ्लोरोकार्बनों पर ध्यान केंद्रित करता है। CCAC विश्व के 65 देशों (भारत सहित), 17 अंतर-सरकारी संगठनों, 55 व्यावसायिक संगठनों, वैज्ञानिक संस्थाओं और कई नागरिक समाज संगठनों की एक स्वैच्छिक साझेदारी है। अत: कथन 1 नहीं और 2 सही है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस