डेली न्यूज़ (08 Aug, 2019)



प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना का दूसरा चरण

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (Pradhan Mantri Kaushal Vikas Yojana-PMKVY) का अगला चरण वर्ष 2020 से वर्ष 2025 के मध्य पूरा किया जाएगा और केंद्र सरकार ने योजना के इस चरण को राज्य सरकारों की बेहतर भागीदारी और अन्य मंत्रालयों में चल रहे समान कार्यक्रमों के साथ मिलाकर और अधिक व्यापक तथा संगठित करने का निर्णय लिया है।

प्रमुख बिंदु :

  • भारत में लगभग सभी मंत्रालयों द्वारा कौशल विकास के अलग-अलग कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, परंतु ये सभी कार्यक्रम किसी एक विशिष्ट क्षेत्र में ही प्रशिक्षित करने का काम करते हैं।
  • कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (Ministry of Skill Development and Entrepreneurship-MSDE) की स्थापना के पश्चात् केंद्र सरकार सभी मंत्रालयों की ऐसी योजनाओं को एक छत के नीचे लाने का प्रयास कर रही है।
  • अनेक मंत्रालयों द्वारा चलाई जा रहीं कौशल विकास परियोजनाएँ संरचना, प्रशिक्षण के घंटे और रोज़गार प्रदान करने की भूमिका जैसे कारकों की दृष्टि से कमोबेश समान ही हैं और इतनी समानताओं के कारण यह प्रश्न उठना अनिवार्य है कि इन्हें एक साथ क्यों न रखा जाए?
  • इसी के साथ PMKVY के अगले चरण में भिन्न-भिन्न मंत्रालयों को भी महत्त्वपूर्ण भूमिका देने पर विचार किया जा रहा है, क्योंकि अलग-अलग योजनाओं के कार्यान्वन से सभी मंत्रालयों ने काफी अनुभव प्राप्त किया है और यह अनुभव एक बड़ी योजना (PMKVY) के कार्यान्वयन में काफी लाभदायक साबित हो सकता है।
  • ज्ञातव्य है कि यह योजना अभी अपने पहले चरण (2016-2020 के बीच) में है और इसके माध्यम से तक़रीबन 10 मिलियन युवाओं को प्रशिक्षित किया जा चुका है।

प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना

(Pradhan Mantri Kaushal Vikas Yojana-PMKVY)

  • क्या है PMKVY?
    • युवाओं को प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से इस योजना का शुभारंभ वर्ष 2015 में किया गया था।
    • यह कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (MSDE) का प्रमुख कार्यक्रम है तथा इसे राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
    • इस योजना ने पिछली मानक प्रशिक्षण आकलन एवं पारितोषिक (Standard Training Assessment and Reward-STAR) योजना का स्थान लिया था।
  • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) के उद्देश्य
    • बड़ी संख्या में भारतीय युवाओं को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना, रोज़गार प्राप्त करने योग्य बनाकर जीविकोपार्जन के लिये सक्षम बनाना और इसके लिये प्रेरित करना।
    • प्रमाणन प्रक्रिया में मानकीकरण को प्रोत्साहन देना और कौशल पंजीकरण की प्रक्रिया की शुरुआत करना।
    • वर्तमान में मौजूद श्रमबल को बढ़ाना और आवश्यकतानुसार लोगों को प्रशिक्षित करना।
  • PMKVY के कार्यान्वयन की चुनौतियाँ
    • निजी क्षेत्र की भागीदारी का अभाव : वर्ल्ड बैंक के एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में केवल 36 प्रतिशत कंपनियाँ ही अपने कर्मचारियों को औपचारिक प्रशिक्षण कार्यक्रम उपलब्ध कराती हैं।
    • इस योजना के उद्देश्य की पूर्ति के लिये कौशल विकास के साथ संबंधित क्षेत्र में रोज़गार का सृजन होना भी आवश्यक है।
    • जुलाई 2015 के बाद से नियोजन के निराशाजनक आँकड़े इस योजना की सफलता पर संदेह उत्पन्न करते हैं।

स्रोत: द हिंदू (बिज़नेस लाइन)


विश्व की 6% भाषाओं का वक्ता है भारत

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2019 को संयुक्त राष्ट्र की स्थानीय भाषा का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित किया गया है। वर्ष 2016 में संयुक्त राष्ट्र के स्थायी मंच पर स्थानीय मुद्दों के संदर्भ में दी गई जानकारी के अनुसार, दुनिया भर में बोली जाने वाली लगभग 6,700 भाषाओं में से 40% गायब होने के कगार पर हैं।

प्रमुख बिंदु

  • प्रशांत द्वीप राष्ट्र के पापुआ न्यू गिनी में दुनिया की सबसे अधिक ’स्वदेशी भाषाएँ (840) बोली जाती है, जबकि भारत 453 भाषाओं के साथ चौथे स्थान पर है।
  • कई भाषाएँ अब लुप्तप्राय (Endangered) हैं और कई भाषाएँ जैसे- तिनिगुआन (कोलम्बियाई मूल) बोलने वाला केवल एक ही मूल वक्ता बचा है।
  • नृवंश-विज्ञान (Ethnologue) जो भाषाओं की एक निर्देशिका है, में दुनिया भर की 7,111 ऐसी भाषाओं को सूचीबद्ध किया गया है जो अभी भी लोगों द्वारा बोली जाती हैं।
  • चीनी, स्पेनिश, अंग्रेज़ी, हिंदी और अरबी दुनिया भर में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाएँ हैं। दुनिया भर में 40% से अधिक लोगों द्वारा इन भाषाओं को बोला जाता है।
  • अमेरिका में 335 भाषाएँ और ऑस्ट्रेलिया में 319 भाषाएँ बोली जाती हैं, ये व्यापक रूप से अंग्रेज़ी बोलने वाले देश हैं।
  • एशिया एवं अफ्रीका में सबसे अधिक देशी भाषाएँ (कुल का लगभग 70%) बोली जाती हैं।

World Language

  • सामान्यतः एक देश में सभी की मातृभाषा एक ही होती है लेकिन देश में स्थानीय लोगों द्वारा विभिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं, इसका तात्पर्य यह है कि देश भर में अधिक भाषाओं का प्रसार किया जाए।
  • नृवंश-विज्ञान (Ethnologue) के अनुसार, 3,741 भाषाएँ ऐसी हैं, जिसे बोलने वाले 1,000 से भी कम हैं। कुछ परिवारों में ही कई भाषाएँ बोली जाती हैं, हालाँकि इनका प्रतिशत बहुत ही कम है।

भाषायी नृविज्ञान

Linguistic anthropology

  • यह मानवशास्त्र की एक महत्त्वपूर्ण शाखा है। इसमें ऐसी भाषाओं का अध्ययन किया जाता है जो वर्तमान में लोगों द्वारा बोली जाती हैं।
  • ऐसी भाषा को समझने के लिये शब्दकोश व व्याकरण का प्रयोग नहीं किया जा सकता है। शोधकर्त्ता को भाषा का अध्ययन करके शब्दकोश व व्याकरण तैयार करना पड़ता है।
  • इसमें भाषाओं की उत्पत्ति, उद्विकास व विभिन्न समकालीन भाषाओं के बीच अंतर का अध्ययन किया जाता है।
  • मानवविज्ञान की शाखा के रूप में भाषायी मानवविज्ञान अपने आप में पूर्ण एवं स्वायत है।
  • संस्कृति का आधार भाषा है। भाषा का अध्ययन कर हम संस्कृति को समझ सकते हैं।
  • इसके अंतर्गत भाषा के निम्न पहलुओं जैसे भाषा की संरचना, शब्दावली, व्याकरण, विभिन्न भाषाओं का अध्ययन करके उन्हे वर्गीकृत करने का प्रयास, भाषा की उत्पत्ति एवं समय के साथ उसमें आए बदलावों का अध्ययन आदि का अध्ययन किया जाता है।

भारत के संदर्भ में

  • अधिकांश भारतीय भाषाएँ उन भाषाओं से व्युत्पन्न हैं जो एशिया के अन्य भागों में भी बोली जाती हैं। उदाहरण के लिये, चीनी-तिब्बती भाषाएँ पूर्वोत्तर भारत, चीन, भूटान, नेपाल और अन्य दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में बोली जाती हैं।
  • हालाँकि एक अंडमानी भाषा परिवार है, जो केवल भारत तक ही सीमित है।
  • यूनेस्को द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, भारत में वर्ष 1950 से लगभग पाँच भाषाएँ विलुप्त हो गई हैं, जबकि 42 गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं।

Language ratio

भाषाओं की संख्या में गिरावट

  • यूनेस्को की 'एटलस ऑफ द वर्ल्ड्स लैंग्वेजेज़ इन डेंजर' (Atlas of the World's Languages in Danger) के अनुसार, वर्ष 1950 से अब तक लगभग 228 भाषाएँ विलुप्त हो चुकी हैं।
  • लगभग 10% भाषाओं को भेद्य (Vulnerable) की श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है, जबकि अन्य 10% 'गंभीर रूप से संकटग्रस्त' (Critically Endangered) हैं।

यूनेस्को द्वारा अपनाए गए मानदंडों के अनुसार, कोई भाषा तब विलुप्त हो जाती है जब कोई भी व्यक्ति उस भाषा को नहीं बोलता है या याद नहीं रखता है। यूनेस्को ने लुप्तप्राय के आधार पर भाषाओं को निम्नलिखित श्रेणियों में वर्गीकृत किया है:-

  • सुभेद्य (Vulnerable)
  • निश्चित रूप से लुप्तप्राय (Definitely Endangered)
  • गंभीर रूप से लुप्तप्राय (Severely Endangered)
  • गंभीर संकटग्रस्त (Critically Endangered)

और पढ़ें…

लुप्तप्राय भाषाओं की सुरक्षा और संरक्षण के लिये योजना

त्रि-भाषा फॉर्मूला

स्रोत: द हिंदू


खाद्य पदार्थो के साथ खिलौनों की पैकेजिंग पर मनाही

चर्चा में क्यों?

FSSAI ने खाद्य पदार्थों और खिलौनों को एक साथ पैक न करने के लिये राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को दिशा-निर्देश जारी किये हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • निर्माताओं द्वारा बच्चों को आकर्षित करने के लिये खाद्य पदार्थों के पैकेट के अंदर खिलौने, टैटू स्टिकर और उपहार रखना आम बात हो गई है।
  • अगर किसी वस्तु को चिप्स के पैकेट के अंदर रखा जाता है, तो बच्चों द्वारा उसे गलती से निगलने की संभावना अधिक होती है।
  • इसलिये भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standards Authority of India- FSSAI) ने इस संबंध में दिशा निर्देश सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को दिये हैं।
  • इसके साथ ही FSSAI ने इस तरह के प्रचारात्मक मुफ्त खिलौनो को अलग से पैक किये जाने की अनुमति दी है, साथ ही इN खिलौनों का रंग भी खाद्य पदार्थ के रंग से अलग होना चाहिये।
  • खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 की धारा 3 (1) zz (xi) के अनुसार, यदि किसी खाद्य पदार्थ की प्रकृति या गुणवत्ता से स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है तो उसे असुरक्षित खाद्य पदार्थ माना जाता है।
  • इस अधिनियम के माध्यम से ऐसे खिलौनों और उपहारों की पैकिंग को हतोत्साहित करने के लिये सभी हितधारकों में जागरूकता का प्रसार किया जा रहा है।

भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण

(Food Safety and Standards Authority of India-FSSAI)

  • केंद्र सरकार ने खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण का गठन किया। इसे 1 अगस्‍त, 2011 को केंद्र सरकार के खाद्य सुरक्षा और मानक विनिमय (पैकेजिंग एवं लेबलिंग) के तहत अधिसूचित किया गया।
  • इसका संचालन भारत सरकार के स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत किया जाता है।
  • इसका मुख्‍यालय दि‍ल्ली में है, जो राज्‍यों के खाद्य सुरक्षा अधिनियम के विभिन्‍न प्रावधानों को लागू करने का काम करता है।
  • FSSAI मानव उपभोग के लिये पौष्टिक खाद्य पदार्थों के उत्पादन, भंडारण, वितरण, बिक्री और आयात की सुरक्षित व्यवस्था सुनिश्चित करने का काम करता है।
  • इसके अलावा यह देश के सभी राज्‍यों, ज़िला एवं ग्राम पंचायत स्‍तर पर खाद्य पदार्थों के उत्पादन और बिक्री के निर्धारित मानकों को बनाए रखने में सहयोग करता है। यह समय-समय पर खुदरा एवं थोक खाद्य-पदार्थों की गुणवत्ता की भी जाँच करता है।

स्रोत: द हिंदू


भारत के लिये वीज़ा नियमों को आसान करेगा न्यूज़ीलैंड

चर्चा में क्यों?

न्यूज़ीलैंड ने भारत के लिये कार्य-वीजा नियमों को आसान करने का आश्वासन दिया है, लेकिन इसके बदले वह अपने डेयरी, शराब और सेब जैसे उत्पादों की भारतीय बाज़ारों तक पहुँच चाहता है।

प्रमुख बिंदु:

  • न्यूजीलैंड क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership- RCEP) संधि के हिस्से के रूप में भारत में अपने डेयरी उत्पादों, सेब, कीवी और शराब के लिये अधिक से अधिक बाजार पहुँच चाहता है।
  • भारतीय कृषि मंत्रालय अधिकांश RCEP सदस्यों के लिये डेयरी क्षेत्र के उदारीकरण के पक्ष में नहीं है, लेकिन वह न्यूज़ीलैंड की मांग पर गंभीरता से विचार कर रहा है क्योंकि न्यूज़ीलैंड ज़्यादातर प्रीमियम उत्पादों का निर्यात करता है जो कि भारत में उत्पादित नहीं होते हैं।
  • भारत में स्किम्ड मिल्क पाउडर (Skimmed Milk Powder) और मिल्क पाउडर का उत्पादन बहुतायत में होता है इसलिये मंत्रालय आयात शुल्क पर टैरिफ हेतु विचार कर सकता है।
  • सेब और शराब जैसी वस्तुओं को भारत में अधिक बाजार पहुँच की उपलब्धता में परेशानी हो सकती है क्योंकि इन वस्तुओं को अर्थव्यवस्था के लिये संवेदनशील माना जाता है।
  • भारत और न्यूज़ीलैंड के बीच डिजिटल व्यापार, द्विपक्षीय व्यापार से व्यापार बातचीत (Bilateral Business to Business Interaction), वित्त, बुनियादी ढाँचे और लघु और मध्यम उद्योग जैसे फोकस के क्षेत्र हैं।

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP)

  • क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) एक प्रस्तावित मेगा मुक्त व्यापार समझौता (Free Trade Agreement-FTA) है, जो आसियान के 10 सदस्य देशों तथा 6 अन्य देशों (ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूज़ीलैंड) के बीच किया जाना है।
  • ज्ञातव्य है कि इन देशों का पहले से ही आसियान से मुक्त व्यापार समझौता है।
  • वस्तुतः RCEP वार्ता की औपचारिक शुरुआत वर्ष 2012 में कंबोडिया में आयोजित 21वें आसियान शिखर सम्मेलन में हुई थी।
  • RCEP को ट्रांस पेसिफिक पार्टनरशिप (Trans Pacific Partnership- TPP) के एक विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।
  • RCEP के सदस्य देशों की कुल जीडीपी लगभग 21.3 ट्रिलियन डॉलर और जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या का 45 प्रतिशत है।
  • सदस्य देश: ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम। इनके अलावा ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूज़ीलैंड सहभागी (Partner) देश हैं।

स्रोत: बिजनेस लाइन


जलियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक (संशोधन) विधेयक, 2019

चर्चा में क्यों?

जलियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक (संशोधन) बिल [Jallianwala Bagh National Memorial (Amendment) Bill] 2019 को राज्यसभा में मंज़ूरी नहीं मिल पाई। विधेयक में जलियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट से न्यासी के रूप में कांग्रेस अध्यक्ष का नाम हटाने का प्रस्ताव है। राज्यसभा में विभिन्न दलों के बीच इस विधेयक पर सहमति नहीं बन पाने के कारण इसे पारित नहीं किया जा सका।

Jallianwala Bagh

विधेयक के प्रमुख बिंदु

  • यह विधेयक जलियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक अधिनियम, 1951 में संशोधन का प्रस्ताव करता है।
  • 1951 का अधिनियम अमृतसर (पंजाब) स्थित जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल, 1919 को मारे गए और घायल हुए लोगों की स्मृति में राष्ट्रीय स्मारक के निर्माण का प्रावधान करता है।
  • इसके अतिरिक्त अधिनियम के तहत राष्ट्रीय स्मारक के प्रबंधन के लिये एक ट्रस्ट भी बनाया गया है।

न्यासियों/ट्रस्टीज़ का संयोजन

  • 1951 के अधिनियम के अंतर्गत स्मारक के ट्रस्टीज़ में निम्नलिखित को शामिल किया गया है:
  1. अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री
  2. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष
  3. संस्कृति मंत्री
  4. लोकसभा में विपक्ष के नेता
  5. पंजाब के गवर्नर
  6. पंजाब के मुख्यमंत्री
  7. केंद्र सरकार द्वारा नामित तीन प्रख्यात व्यक्ति।
  • यह विधेयक इस प्रावधान में संशोधन करता है और ट्रस्टी के रूप में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के नाम को हटाने का प्रावधान करता है।
  • इसके अतिरिक्त विधेयक स्पष्ट करता है कि जब लोकसभा में विपक्ष का कोई नेता नहीं होगा, तो लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को ट्रस्टी बनाया जाएगा।
  • अधिनियम में यह प्रावधान किया गया है कि केंद्र सरकार द्वारा नामित तीन प्रख्यात व्यक्तियों का कार्यकाल पाँच वर्ष का होगा और उन्हें दोबारा नामित किया जा सकता है।
  • यह विधेयक इस बात का प्रावधान करता है कि केंद्र सरकार कोई कारण बताए बिना कार्यकाल समाप्त होने से पहले नामित ट्रस्टी को पद से हटा सकती है।

स्रोत: द हिंदू


जल संकट का सामना कर रहे देशों में भारत 13वें स्थान पर

चर्चा में क्यों?

अमेरिका स्थित विश्व संसाधन संस्थान (World Resources Institute-WRI) द्वारा प्रकाशित आँकड़ों के अनुसार जल संकट से सर्वाधिक ग्रसित विश्व के 17 देशों में भारत 13वें स्थान पर है। WRI द्वारा तैयार इस सूची में देशों की रैंकिंग एक्वेडक्ट टूल के आधार पर की गई है। WRI द्वारा प्रयुक्त एक्वेडक्ट टूल में देशों की रैंकिंग के लिये जल संकट के 13 संकेतकों का प्रयोग किया गया।

एक्वेडक्ट वाटर रिस्क एटलस

(Aqueduct Water Risk Atlas)

  • एक्वेडक्ट ग्लोबल वाटर रिस्क मैपिंग टूल कंपनियों, निवेशकों, सरकारों और अन्य उपयोगकर्त्ताओं को यह समझने में मदद करता है कि विश्व में कहाँ और कैसे जल संकट का विस्तार हो रहा है।
  • एक्वेडक्ट टूल उपयोगकर्त्ताओं को जल संकट को समझने तथा इसके प्रबंधन हेतु स्मार्ट तरीके अपनाने का अवसर प्रदान करता है।

वैश्विक निष्कर्ष

Extremely High Water Stress

  • आधारभूत जल संकट (Baseline Water Stress- BWS): विश्व की कुल जनसंख्या का एक तिहाई भाग चरम स्तर के आधारभूत जल संकट का सामना कर रहा है।
    • इसका तात्पर्य यह है कि सिंचित कृषि, उद्योगों और नगरपालिकाओं द्वारा हर साल औसतन अपनी उपलब्ध आपूर्ति का 80% उपयोग कर लिया जाता है।
    • BWS स्तर, जिसका विकास WRI के एक्वेडक्ट वाटर रिस्क एटलस के एक भाग के रूप में किया गया है, उपयोग किये गये कुल जल (सिंचित कृषि, उद्योग और नगरपालिकाएँ) और नवीकरणीय सतही जल आपूर्ति के मध्य अनुपात को दर्शाता है।
  • जल की मांग में वृद्धि: वर्ष 1960 से लेकर अभी तक जल आपूर्ति की मांग बढ़ने से जल की निकासी दोगुनी हो गई है।
  • जल संकट से ग्रसित देश: जल संकट से ग्रसित 17 में से 12 देश मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के हैं एवं इसका कारण इन देशों की भौगोलिक स्थिति (ऊष्ण तथा शुष्क) के कारण मांग और आपूर्ति में असंतुलन है।
    • विश्व बैंक के अनुसार, जलवायु से संबंधित जल की कमी से इन क्षेत्रों में अधिक आर्थिक नुकसान होने की संभावनाएँ हैं।
  • जल संकट से ग्रसित समुदाय: यहाँ तक कि कम जल तनाव वाले देशों जैसे- दक्षिण अफ्रीका, संयुक्त राज्य अमेरिका, पश्चिमी केप के समुदाय और न्यू मक्सिको भी उच्च स्तर के जल संकट से ग्रसित हो सकते हैं।
  • जल संकट से सर्वाधिक ग्रसित 17 देश इस प्रकार है-क़तर, इजराइल, लेबनान, ईरान, जॉर्डन, लीबिया, कुवैत, सऊदी अरब, इरीट्रिया, संयुक्त अरब अमीरात, सैन मरीनो, बहरीन, भारत, पाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ओमान, बोत्सवाना।

भारत के संदर्भ में

GroundWater Decline

उत्तरी भारत जिसे पहली बार जल संकट की गणना में शामिल किया गया है, भू-जल संकट से अत्यधिक ग्रसित है।

  • चंडीगढ़ सूची में प्रथम स्थान पर है तथा इसके बाद हरियाणा, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, पंजाब, गुजरात, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश और जम्मू-कश्मीर का स्थान आता है।
  • भारत में जल संकट की चुनौती केवल चेन्नई (जो गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है) ही नहीं बल्कि अन्य क्षेत्रों/राज्यों में भी व्याप्त है।
  • भारत एक्वेडक्ट की सूची में जल संकट से सर्वाधिक ग्रसित 17 देशों में से 13वें स्थान पर है।

परिणाम

  • खाद्य असुरक्षा: कृषि क्षेत्र में अत्यधिक जल की आवश्यकता होती है तथा जल खाद्य सुरक्षा की कुंजी है।
  • जल संघर्ष और प्रवासन: जल की कमी से आजीविका का संकट उत्पन्न होगा जो प्रवासन को बढ़ावा देगा।
  • आर्थिक अस्थिरता: विश्व बैंक के अनुसार, जल की कमी के चलते कई देशों की GDP प्रभावित होगी और आर्थिक समस्याओं में भी वृद्धि हो सकती है।

सुझाव

  • दक्ष सिंचाई (Efficient Irrigation): आधारभूत जल संकट (उदाहरण के लिये भूजल का अत्यधिक दोहन या उपयोग) की समस्या के समाधान हेतु देशों को अधिक दक्ष सिंचाई पद्धतियों को अपनाने की आवश्यकता है।
  • जल संरक्षण (Water Conservation): भू जल स्तर को बढ़ने तथा भू जल संकट को दूर करने हेतु नहरों, तालाबों, बाढ़ के मैदानों आदि के द्वारा जल संग्रहण को बढ़ावा देना चाहिये।
  • जल संबंधित डाटा: भारत वर्षा जल, सतही जल और भू-जल स्तर से संबंधित विश्वसनीय और मज़बूत डाटा द्वारा जल संकट की समस्या का समाधान कर सकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


तटीय क्षेत्र प्रबंधन के लिये मसौदा

चर्चा में क्यों?

पर्यावरण मंत्रालय ने एक ऐसी योजना का मसौदा तैयार किया है जो यह सुनिश्चित करेगी कि भविष्य में समुद्री तटों के किनारे स्थित आधारिक संरचना परियोजनाओं (Infrastructure Projects) को मंज़ूरी देने से पूर्व उनका किस प्रकार आकलन किया जाए।

प्रमुख बिंदु :

  • इस मसौदे में तटीय राज्यों के लिये समुद्र के आस-पास वाले क्षेत्रों में परियोजनाओं को स्वीकृति प्रदान करने हेतु दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं।
  • इस मसौदे का मुख्य उद्देश्य एकीकृत तटीय प्रबंधन दृष्टिकोणों (Integrated Coastal Management Approaches) को अपनाने और लागू करने के लिये सामूहिक क्षमता का निर्माण कर तटीय संसाधनों की दक्षता बढ़ाने में भारत सरकार की सहायता करना है।
  • इस संदर्भ में सोसाइटी ऑफ इंटीग्रेटेड कोस्टल मैनेजमेंट (Society of Integrated Coastal Management-SICOM) द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन (Integrated Coastal Zone Management-ICZM) एक ही बार की जाने वाली कार्यवाही नहीं है बल्कि इसे एक सतत् प्रक्रिया के रूप में देखा जाना चाहिये।
  • गौरतलब है कि अब तक भारत के सिर्फ तीन तटीय राज्यों (गुजरात, ओडिशा और पश्चिम बंगाल) ने विश्व बैंक के समर्थन से तटीय क्षेत्रों के प्रबंधन की योजनाएँ तैयार की हैं।

मसौदे में प्रस्तावित गतिविधियाँ :

  • तटीय क्षेत्रों के विकास के लिये प्रस्तावित प्रमुख गतिविधियों में निम्नलिखित कार्य शामिल हैं:
    • मैंग्रोव वनीकरण।
    • समुद्री घास के मैदानों की बहाली जैसी पर्यावरण संरक्षण गतिविधियों को बढ़ावा देना।
    • कछुए जैसे अन्य समुद्री जानवरों को सुरक्षा प्रदान करने के लिये बचाव केंद्रों की स्थापना।
    • पर्यटन के विकास के लिये आधारभूत संरचना का निर्माण।
    • जल निकायों की बहाली की व्यवस्था करना।
    • समुद्र तट की सफाई और विकास का काम।

सोसाइटी ऑफ इंटीग्रेटेड कोस्टल मैनेजमेंट

(Society of Integrated Coastal Management-SICOM)

  • SICOM की स्थापना पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तत्त्वावधान में की गई थी।
  • SICOM के उद्देश्य और कार्य :
    • भारत में तटीय क्षेत्र प्रबंधन से संबंधित गतिविधियों के कार्यान्वयन में सहायता करना।
    • भारत में तटीय क्षेत्रों के प्रबंधन के लिये अनुसंधान और विकास (Research & Development-R&D) को बढ़ावा देना।

स्रोत: द हिंदू


विश्व में भारत दूसरा सबसे बड़ा स्क्रैप आयातक

चर्चा में क्यों?

दक्षिण कोरिया को पछाड़ते हुए भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा स्क्रैप (Scrap) आयातक बन गया है।

प्रमुख बिंदु :

  • भारत में स्क्रैप आयात वर्तमान वित्तीय वर्ष की पहली छमाही में 35% से बढ़कर 3.87 मिलियन टन तक पहुँच गया है।
  • यह दर्शाता है कि भारत में कुशल धातु रीसाइक्लिंग सुविधाओं और प्रौद्योगिकी की कमी के कारण इस्पात के आंतरिक स्क्रैप (भारत में ही मौजूद स्क्रैप, जो पुराने वाहनों और मशीनों से उत्पन्न होता है) का उपयोग नहीं हो रहा है।
  • भारतीय घरेलू इस्पात उद्योग में मंदी और आयातित स्क्रैप धातुओं की सस्ती कीमत के कारण भारत दूसरा सबसे बड़ा स्क्रैप आयातक बन गया।
  • हालाँकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि भारत के आंतरिक स्क्रैप बाज़ार में भी अपार संभावनाएँ हैं। उदाहरण के लिये एक अनुमान के मुताबिक, भारत में वर्ष 2025 तक लगभग 22 मिलियन अप्रचलित वाहन होंगे (वर्तमान में यह संख्या 8.7 मिलियन है)।
  • लेकिन अभी तक भारत में स्क्रैपिंग और रीसाइक्लिंग के संदर्भ में नियमों का अभाव है, जो इस क्षेत्र के विकास में सबसे बड़ी बाधा है।
  • इस प्रकार भारत को एक व्यापक धातु रीसाइक्लिंग और स्क्रैपिंग नीति की आवश्यकता है ताकि भारत के आंतरिक स्क्रैप बाज़ार का सुव्यवस्थित विकास हो सके।
  • सरकार ऑटोमोबाइल उद्योग में आंतरिक स्क्रैप जुटाने को प्रोत्साहित कर सकती है। उदाहरण के लिये यदि कार का खरीदार अपनी पुरानी कार को स्क्रैप करने के लिये दे देता है तो सरकार उसे नई कार के पंजीकरण शुल्क में छूट दे सकती है।

आंतरिक स्क्रैप का उपयोग करने के लाभ :

  • यह भारत के व्यापार संतुलन में सुधार करेगा।
  • आंतरिक स्क्रैप को जुटाने से प्लास्टिक, रबर, कांच, कपड़े, धातु उद्योग और प्रौद्योगिकी क्षेत्र जैसे वर्चस्व वाले उद्योगों में रीसाइक्लिंग से लाखों लोगों को रोज़गार मिलेगा।

तुर्की अभी भी दुनिया का सबसे बड़ा रिसाइकिलर और स्क्रैप आयातक बना हुआ है।

स्रोत: द हिंदू (बिज़नेस लाइन)


मौद्रिक नीति समीक्षा अगस्त 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हुई मौद्रिक नीति समिति की बैठक में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने रेपो दर (Repo Rate) में 35 आधार अंकों अर्थात् 0.35% की कटौती की है। यह लगातार चौथी बार है जब भारतीय रिज़र्व बैंक ने रेपो दर को कम किया है।

प्रमुख निर्णय:

रेपो दर में कमी

  • रेपो दर को 5.75% से कम कर 5.40 % कर दिया गया है। उल्लेखनीय है कि यह पिछले नौ वर्षों के दौरान सबसे कम रेपो दर है।
  • RBI ने वर्ष 2019-20 के लिये अर्थव्यवस्था की विकास दर यानी सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि दर का अनुमान 7% से घटाकर 6.9% कर दिया है।

24 घंटे NEFT की सुविधा

  • मौद्रिक नीति समिति की बैठक में नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर सिस्टम (National Electronic Fund Transfer System- NEFT) बारे में यह घोषणा की गई है कि दिसंबर 2019 से NEFT की सुविधा सप्ताह के सभी दिन 24 घंटे उपलब्ध रहेगी।
    • नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (NEFT) धन प्रेषण या हस्तांतरण का एक लोकप्रिय माध्यम है। इसकी विशेषता यह है कि, इसमें न्यूनतम और अधिकतम राशि की कोई सीमा निर्धारित नहीं है।
    • इस प्रणाली का दोष यह है कि इसके द्वारा धन राशि का हस्तांतरण सभी कार्यदिवसों (माह के दूसरे तथा चौथे शनिवार को छोड़कर) के दौरान एक निर्धारित समय (8 A.M. से 7 P.M. तक) पर ही होता है।

NBFCs के लिये ऋण की उपलब्धता

  • RBI ने बैंकों को यह अनुमति दी है कि बैंक कृषि, सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) जैसे प्राथमिक क्षेत्रों को कर्ज़ उपलब्ध कराने हेतु गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (Non-Banking Financial Companies-NBFCs) को ऋण दें।
    • भारतीय रिज़र्व बैंक ने NBFCs में बैंकों के निवेश की सीमा को 15 प्रतिशत से बढ़ाकर शेयर पूंजी (टियर-1) का 20 प्रतिशत करने की अनुमति दी है।
    • इसके तहत बैंक NBFC को 10 लाख रुपए तक कृषि (निवेश ऋण), सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों को 20 लाख रुपए तथा आवास के लिये प्रति कर्ज़दार 20 लाख रुपए तक (फिलहाल 10 लाख रुपए) के कर्ज़ दे सकेंगे। इस श्रेणी के कर्ज़ को प्राथमिक क्षेत्र के कर्ज़ के अंतर्गत माना जाएगा।

सभी पुनरावृत्तीय बिलों BBPS के तहत कवर करने का निर्णय

  • RBI ने सभी पुनरावृत्तीय बिल भुगतानों को भारत बिल भुगतान प्रणाली (Bharat Bill Payment System- BBPS) के तहत कवर करने का निर्णय लिया है तथा इस संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किये जाएंगे।
    • वर्तमान में BBPS के तहत केवल पाँच क्षेत्रों- डायरेक्ट-टू-होम, बिजली, गैस, टेलिकॉम और पानी के पुनरावृत्तीय बिल भुगतान को कवर किया जाता है।
    • भारत बिल भुगतान प्रणाली की संकल्पना भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा की गई थी और यह राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) द्वारा संचालित है। यह लेन-देन की निश्चितता, विश्वसनीयता और सुरक्षा के साथ पूरे भारत में सभी ग्राहकों को एक अंतर-सुलभ और अंतर-प्रचालनीय (interoperable) "किसी भी समय किसी भी स्थान से" बिल भुगतान की सेवा प्रदान करने वाली वन-स्टॉप प्रणाली है।
    • इसके द्वारा भुगतान के कई तरीके हैं और SMS या रसीद के माध्यम से भुगतान की तत्काल पुष्टि होती है।

मौद्रिक नीति समिति

मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee-MPC) भारत सरकार द्वारा गठित एक समिति है जिसका गठन ब्याज दर निर्धारण को अधिक उपयोगी एवं पारदर्शी बनाने के लिये 27 जून, 2016 को किया गया था। भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम में संशोधन करते हुए भारत में नीति निर्माण को नवगठित मौद्रिक नीति समिति (MPC) को सौंप दिया गया है।

  • वित्त अधिनियम 2016 द्वारा रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया अधिनियम 1934 (RBI अधिनियम) में संशोधन किया गया, ताकि मौद्रिक नीति समिति को वैधानिक और संस्थागत रूप प्रदान किया जा सके।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, मौद्रिक नीति समिति के छह सदस्यों में से तीन सदस्य RBI से होते हैं और अन्य तीन सदस्यों की नियुक्ति केंद्रीय बैंक द्वारा की जाती है।
  • रिज़र्व बैंक का गवर्नर इस समिति का पदेन अध्यक्ष होता है, जबकि भारतीय रिज़र्व बैंक के डिप्टी गवर्नर मौद्रिक नीति समिति के प्रभारी के तौर पर काम करते हैं।

रेपो दर क्या है?

रेपो दर वह दर है, जिस पर बैंक भारतीय रिज़र्व बैंक से ऋण लेते हैं। रेपो दर में कटौती कर RBI बैंकों को यह संदेश देता है कि उन्हें आम लोगों और कंपनियों के लिये ऋण को सस्ता करना चाहिये।

प्रभाव

  • भारतीय के इस निर्णय का प्रभाव यह होगा कि अब बैंकों के पास आसान शर्तों पर कर्ज़ देने के लिये अधिक पैसा होगा। गौरतलब है कि कर्ज़ दरें सस्ती होने से अर्थव्यवस्था कुछ इस तरह से लाभान्वित होती है:
    • मकान, कार या अन्य उपभोक्ता वस्तुओं के लिये कम ब्याज दर पर कर्ज़ उपलब्ध होता है।
    • जब ब्याज की दर कम होती है तो लोग खरीदारी के लिये उत्साहित होते हैं।
    • जब लोग खरीदारी के लिये उत्साहित होते हैं तो बाज़ार में मांग बढ़ती है।
    • जब बाज़ार में माँग बढ़ती है तो अधिक उत्पादन की स्थितियाँ बनती हैं।
    • जब अधिक उत्पादन की परिस्थितियाँ बनती हैं, तब निवेशक नए निवेश के लिये प्रेरित होते हैं।
    • जब निवेश बढ़ता है तो आर्थिक गतिविधियाँ तेज़ होती हैं।
    • जब आर्थिक गतिविधियाँ तेज़ होती हैं तो रोज़गार के अवसर भी बढ़ते हैं।

निष्कर्ष

एक ऐसे समय में जब वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्था की धीमी हो रही रफ्तार के चलते व्यापार युद्ध की संभावनाएँ बढ़ रही हों; घरेलू स्तर पर भी महंगाई की दर काफी नीचे हो; शहरी एवं ग्रामीण दोनों ही बाज़ारों में मांग में कमी हो रही हो; निर्यात तथा आयात दोनों में कमी हो रही हो, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा उठाए गए कदम अर्थव्यवस्था के विकास को गति देने में सहायक हो सकते है बशर्ते बैंकों द्वारा रेपो दर में इस कटौती का लाभ ग्राहकों और उद्योगों को उपलब्ध कराया जाए।

स्रोत: द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस एवं अन्य


ब्राज़ील में वनों की कटाई में वृद्धि

चर्चा में क्यों?

ब्राज़ील के अंतरिक्ष संस्थान द्वारा प्रकाशित आँकड़ों के अनुसार से अमेज़न वनों की कटाई में लगातार वृद्धि हो रही है।

ब्राज़ील में वन कटाई के कारण:

  • ब्राज़ील सरकार की प्रो-एग्रीबिजनेस नीतियों (Pro-Agrobusiness Policies) को वनों की कटाई के लिये मुख्य रूप से ज़िम्मेदार माना जा रहा है।
  • वैश्विक स्तर पर पॉम ऑयल और सोयाबीन की बढ़ती मांग के कारण ब्राज़ील में इनके कृषि क्षेत्र में तेज़ी से प्रसार हो रहा है। गिनीज बुक ऑफ़ रिकॉर्ड के अनुसार, पॉम ऑयल निर्वनीकरण के लिये सर्वाधिक ज़िम्मेदार फसल है।
  • पशुपालन, निर्वनीकरण के लिये दूसरा सबसे प्रमुख कारण है। वैश्विक स्तर पर गोमांस की बढ़ती मांग के कारण ब्राज़ील में इसके उत्पादन पर ज़ोर दिया जा रहा है। अमेरिका के टेक्सास के बाद ब्राज़ील वैश्विक स्तर पर गोमांस के लिये दूसरा सबसे बड़ा उभरता क्षेत्र है।
  • स्थानीय निवासियों द्वारा जंगलों से लकड़ियों की अवैध तस्करी की जाती है जिसके लिये वनों की कटाई की जा रही है। इमारती लकड़ियों की मांग की वजह से भी वनों को नुकसान हो रहा है।
  • ब्राज़ील से पेरू तक जाने वाले इंटरसोनिक एक्सप्रेस वे के कारण वनों की लगातार कटाई हुई है, इस एक्सप्रेस वे के आस-पास औद्यौगीकरण और अवसंरचना के निर्माण से भी वनों का क्षेत्रफल कम हुआ है।
  • सरकार खनन और कृषि व्यवसाय की कंपनियों को अमेज़न सहित पर्यावरण संरक्षित क्षेत्रों में अपनी गतिविधियों का विस्तार करने की नीति के साथ ही पर्यावरण कानूनों को भी कमजोर कर रही है।
  • ब्राज़ील में बढ़ता जनसंख्या दबाव भी वनों के क्षेत्र को सीमित कर रहा है।

नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस रिसर्च के ऑकड़ो के अनुसार, वर्ष 2018, 2017 और 2016 की तुलना में इस वर्ष मई और जुलाई के बीच अधिक वन काटे गए हैं। संस्थान द्वारा वर्ष 2014 से नवीन निगरानी प्रणाली अपनाए जाने के बाद से वन कटाई की दर में यह सबसे बड़ा उछाल है।

वनों की कटाई के प्रभाव:

  • ब्राजील के अमेज़न वर्षा वन पृथ्वी के बड़े पारिस्थितिक नियामक हैं क्योंकि ये वन प्रत्येक वर्ष 2 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करते हैं और पृथ्वी पर उपलब्ध कुल ऑक्सीजन में से 20% ऑक्सीजन छोड़ते हैं।
  • निर्वनीकरण के कारण कार्बन चक्र पर नकारात्मक जैसे गंभीर पर्यावरणीय प्रभाव पड़ेगें साथ ही ग्रीनहाउस गैसों की प्रभावशीलता भी बढ़ जायेगी।
  • ब्राज़ील वैश्विक स्तर पर जैव विविधता का हॉटस्पॉट है। निर्वनीकरण से पौधों और जानवरों का अस्तित्व खतरे में पड़ता है जिसके परिणामस्वरूप जैव विविधता का भी ह्रास होगा।
  • निर्वनीकरण वैश्विक स्तर पर वर्षंण प्रतिरूप को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा।
  • बढ़ती कृषि से वनोन्मूलन के साथ ही मृदा क्षरण भी होगा जिससे दीर्घकालिक स्तर पर कृषि क्षेत्र प्रभावित होगा और अंततः खाद्यान सुरक्षा की भी गंभीर स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।
  • वनों की कटाई से स्थानिक सांस्कृतिक विशेषता प्रभावित होगी क्योंकि ये समुदाय पूरी तरह से इन्ही वनों पर निर्भर होते हैं। ब्राज़ील में कमांझा समुदाय (Kamanjha Community) विशेष रूप से इससे प्रभावित हो रहा है।

सरकार की पर्यावरण नीतियों की पर्यावरण हितैषी गैर-लाभकारी संगठन ( विशेष रूप से SOS माटा अटलांटिका) लगातार आलोचना कर रहे हैं।

SOS माटा अटलांटिका ( SOS Mata Atlantica) एक गैर लाभकारी संगठन है। जो ब्राजील के अटलांटिक वन क्षेत्र के संरक्षण हेतु कार्यरत है।

वन क्षेत्रों के मापन की प्रणाली:

  • वर्ष 2004 से उपग्रह चित्रों के आधार पर वनों की कटाई का अलर्ट डीटर (DETER) नामक निगरानी प्रणाली के माध्यम से जारी किया जा रहा है।
  • डीटर (DETER) प्रणाली के पहले वर्ष 1980 के बाद से ही अमेज़न वर्षा वन, की निगरानी के लिये प्रोड्स (PRODES) नामक अन्य उपग्रह इमेजिंग प्रणाली का प्रयोग किया जा रहा था।

वन संरक्षण के प्रयास:

  • हाल ही में ब्राज़ील ने सोयाबीन के बीजों की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिये अनुसंधान कार्य हेतु वैश्विक स्तर पर वित्त के लिये ग्रीन बाण्ड जारी किया है।
  • रेस्पोंसिबल कमोडिटी फैसिलिटी के तहत ब्राज़ील सरकार द्वारा प्राकृतिक आवासों को बिना हानि पहुँचाए उत्पादन बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है।
  • वनसंरक्षण हेतु वनों के लिये साझेदारी ( Partnership for Forest) कार्यक्रम की मदद ली जा रही है।
  • सतत् मिशन प्रबंधन ( Sustainable Investment Management) वनों को नुकसान पहुँचाने वाले कारको को रोकने के लिये ब्राज़ील के साथ सेराडो मैनिफेस्टो का समर्थन कर रहा है।

हाल ही में अमेज़न वनों की कटाई को रोकने वाली परियोजनाओं को धन आवंटित करने वाले सार्वजनिक अमेज़न फंड की दक्षता पर सवाल उठाए जा रहे हैं। इस फंड में जर्मनी और नॉर्वे दो सबसे ज़्यादा धन देने वाले देश हैं। इसलिये ब्राज़ील सरकार के साथ-साथ वैश्विक समुदाय को भी पृथ्वी का फेफड़ा कहे जाने वाले इस क्षेत्र के लिये गंभीर प्रयास करने चाहिये।

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ट


सरोगेसी विधेयक: संभावनाएँ और चुनौतियाँ

संदर्भ

हाल ही में लोकसभा में पारित हुए सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2019 के विषय में एक बार फिर से चर्चा शुरू हो गई है। इस विधेयक में व्यावसायिक सेरोगेसी (commercial surrogacy) पर प्रतिबंध लगाने, राष्ट्रीय सेरोगेसी बोर्ड व राज्य सेरोगेसी बोर्ड के गठन तथा सरोगेसी की गतिविधियों और प्रक्रिया के विनियमन के लिये उपयुक्त अधिकारियों की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है। सेरोगेसी से संबंधित विभिन्न पक्षों पर गंभीरता से विचार किये जाने की आवश्यता है ताकि इस संवेदनशील मुद्दे के दुरुपयोग को प्रबंधित किया जा सकें।

सरोगेसी क्या है?

  • सरोगेसी एक महिला और एक दंपति के बीच का एक समझौता है, जो अपनी स्वयं की संतान चाहता है।
  • सामान्य शब्दों में सरोगेसी का अर्थ है कि शिशु के जन्म तक एक महिला की ‘किराए की कोख’। प्रायः सरोगेसी की मदद तब ली जाती है जब किसी दंपति को बच्चे को जन्‍म देने में कठिनाई आ रही हो।
  • बार-बार गर्भपात हो रहा हो या फिर बार-बार आईवीएफ तकनीक असफल हो रही हो। जो महिला किसी और दंपति के बच्चे को अपनी कोख से जन्‍म देने को तैयार हो जाती है उसे ‘सरोगेट मदर’ कहा जाता है।
  • भारत में सरोगेसी का खर्चा अन्य देशों से कई गुना कम है और साथ ही भारत में ऐसी बहुत सी महिलाएँ उपलब्ध हैं जो सरोगेट मदर बनने को आसानी से तैयार हो जाती हैं।
  • गर्भवती होने से लेकर डिलीवरी तक महिलाओं की अच्छी तरह से देखभाल तो होती ही है, साथ ही उन्हें अच्छी-खासी धनराशि भी दी जाती है।
  • सरोगेसी की सुविधा कुछ विशेष एजेंसियों द्वारा उपलब्ध करवाई जाती है। इन एजेंसियों को आर्ट क्लीनिक कहा जाता है, जो इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के दिशा-निर्देशों पर अमल करती हैं।

क्यों पड़ी विनियमन की ज़रूरत?

  • भारत विभिन्न देशों की दंपतियों के लिये सरोगेसी केंद्र के तौर पर उभरा है और यहाँ अनैतिक गतिविधियों, सरोगेट माताओं के शोषण, सरोगेसी से पैदा हुए बच्चों को त्यागने और मानव भ्रूणों एवं युग्मकों की खरीद-बिक्री में बिचौलिये के रैकेट से संबंधित घटनाओं की सूचनाएँ मिली हैं।
  • पिछले कुछ वर्षों से भारत में चल रही वाणिज्यिक सरोगेसी की व्यापक निंदा करते हुए प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में अभियान चलाया जा रहा है जिसमें वाणिज्यिक सरोगेसी पर रोक लगाने और नैतिक परोपकारी सरोगेसी को अनुमति दिये जाने की ज़रूरतों को उजागर किया गया है।
  • भारत के विधि आयोग की 228वीं रिपोर्ट में भी उपयुक्त कानून बनाकर वाणिज्यिक सरोगेसी पर रोक लगाने और ज़रूरतमंद भारतीय नागरिकों के लिये नैतिक परोपकारी सरोगेसी की अनुमति की सिफारिश की गई है।

इस कानून की आवश्यकता क्यों पड़ी?

  • यह कानून सरोगेसी का प्रभावी विनियमन, वाणिज्यिक सरोगेसी की रोकथाम और ज़रूरतमंद दंपतियों के लिये नैतिक सरोगेसी की अनुमति सुनिश्चित करेगा।
  • नैतिक लाभ उठाने की चाह रखने वाले सभी भारतीय विवाहित बांझ दंपतियों को इससे फायदा मिलेगा। इसके अलावा सरोगेट माता और सरोगेसी से उत्पन्न बच्चों के अधिकार भी सुरक्षित होंगे।
  • यह कानून देश में सरोगेसी सेवाओं को विनियमित करेगा। हालाँकि मानव भ्रूण और युग्मकों की खरीद-बिक्री सहित वाणिज्यिक सरोगेसी पर निषेध होगा, लेकिन कुछ खास उद्देश्यों के लिये निश्चित शर्तों के साथ ज़रूरतमंद बांझ दंपतियों के लिये नैतिक सरोगेसी की अनुमति दी जाएगी।
  • इस प्रकार यह सरोगेसी में अनैतिक गतिविधियों को नियंत्रित करेगा, सरोगेसी के वाणिज्यिकरण पर रोक लगेगी और सरोगेट माताओं एवं सरोगेसी से पैदा हुए बच्चों के संभावित शोषण पर रोक लगेगी।

कानून की जरुरत

  1. सरोगेसी का मुद्दा जैव नैतिकता से जुडा हुआ है।
  2. बच्चे को गोद लेने और मानव अंगों के प्रत्यारोपण के क्षेत्र में अतीत में जो विनियम बनाए गए, उनके फलस्वरूप बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक लेन-देन को नियंत्रित किया गया। इसी को ध्यान में रखते हुए सेरोगेसी विधेयक को प्रस्तुत किया गया है।
  3. विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि पिछले कुछ वर्षो में भारत विभिन्न देशों के दंपतियों के लिये सरोगेसी के केंद्र के रूप में उभरा है। इसके चलते विशेषकर पिछड़े क्षेत्रों से आने वाली वंचित महिलाओं की दशा अत्यंत दयनीय हो गई विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि पिछले कुछ वर्षो में भारत विभिन्न देशों के दंपतियों के लिये सरोगेसी के केंद्र के रूप में उभरा है। इस कानून से सरोगेसी में अनैतिक गतिविधियों को नियंत्रित करने में तो मदद मिलेगी ही, साथ ही सरोगेसी के कॉमर्शियल होने पर रोक लगेगी। इसके अलावा, सरोगेट मदर्स एवं सरोगेसी से जन्मी संतान के संभावित शोषण पर भी रोक लगेगी।
  4. भारत में सरोगेसी के तेज़ी से बढ़ने का मुख्य कारण इसका सस्ता और सामाजिक रूप से मान्य होना है। इसके अलावा, गोद लेने की जटिल प्रक्रिया के चलते भी सरोगेसी एक पसंदीदा विकल्प के रूप में उभरी है। आज देशभर में गली-नुक्कड़ तक में कृत्रिम गर्भाधान, IVF और सरोगेसी की सुविधा मुहैया कराने वाले क्लीनिक मौजूद हैंl

चुनौतियाँ

  • परिभाषाओं में अस्पष्टता
  1. सरोगेट्स के लिये निकट संबंधी की कसौटी को स्पष्ट नहीं किया गया हैl
  2. सरोगेसी तक पहुँच से विभिन्न समूहों को बाहर कर दिया गया है: केवल एक निश्चित उम्र के शादीशुदा जोड़े ही इसके योग्य होंगेl
  3. ART क्लिनिकों को प्रबंधित करने से पहले सरोगेसी को विनियमित करने की मांग भी उचित प्रतीत नहीं होती है।
  • देश में सहायक प्रजनन तकनीक (Assisted Reproductive Technology-ART) उद्योग में लगभग 25 अरब रुपए का सालाना कारोबार होता है, जिसे विधि आयोग ने ‘स्वर्ण कलश’ की संज्ञा दी है। यदि ART क्लिनिकों के विनियम हेतु कोई स्पष्ट रूपरेखा नहीं बनाई गई तो व्यापारिक सरोगेसी को रोकने के सरकार के प्रयास विफल हो जाएंगे।

फिलहाल भारत में सरोगेसी को नियंत्रित करने के लिये कोई कानून नहीं है और कॉमर्शियल सरोगेसी को तर्कसंगत माना जाता है। किसी कानून के न होने की वज़ह से ही Indian Council for Medical Research (ICMR) ने भारत में ART क्लीनिकों के प्रमाणन, निरीक्षण और नियंत्रण के लिये 2005 में दिशा-निर्देश जारी किये थे। लेकिन इनके उल्लंघन और बड़े पैमाने पर सरोगेट मदर्स के शोषण और जबरन वसूली के मामलों के कारण इसके लिये कानून की ज़रूरत महसूस की गई।

स्रोत: द हिंदू


कृषि क्षेत्रक के NPA में वृद्धि

चर्चा में क्यों?

पिछले कुछ समय से कृषि क्षेत्रक ऋण, गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (Non-Performing Assets-NPA) में परिवर्तित हो रहा है। NPA में यह वृद्धि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के साथ ही निजी क्षेत्र के बैंकों में भी परिलक्षित हो रही है।

प्रमुख बिंदु:

  • पिछले एक वर्ष के दौरान कृषि ऋण में वृद्धि नहीं हुई परंतु इस पोर्टफोलियों के बैड लोन में वृद्धि हो रही है।
  • प्रथम तिमाही में साल-दर-साल आधार पर इस पोर्टफोलियो के तहत गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों में 3 प्रतिशत तक की वृद्धि देखी जा रही है।
  • इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के NPA में 13.08 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान यह वृद्धि 11.60 प्रतिशत थी। SBI के अलावा अन्य कई सार्वजनिक तथा निजी बैंकों के NPA में भी वृद्धि दर्ज़ की गई है।
  • NPA में यह वृद्धि ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव डालेगी।
  • NPA में यह वृद्धि तब है जब कृषि क्षेत्र के ऋण में पिछले एक वर्ष में कोई वृद्धि नही हुई है।
  • इसका कारण राजनीतिक पार्टियों द्वारा कृषि ऋण माफ़ी की घोषणा है।

स्रोत: बिज़नेस लाइन


Rapid Fire करेंट अफेयर्स 8 अगस्त

  • जम्मू-कश्मीर से धारा 370 समाप्त होने के बाद पाकिस्तान ने प्रधानमंत्री इमरान खान की अध्यक्षता में हुई नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल की बैठक में भारत से राजनयिक संबंधों का स्तर घटाने का फ़ैसला किया है। इसके तहत पाकिस्तान भारत में अपने उच्चायुक्त को वापस बुलाया है और पाकिस्तान में भारतीय उच्चायुक्त को वापस भेज रहा है। साथ ही पाकिस्तान ने भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों और समझौतों की समीक्षा करने का निर्णय भी लिया है और इस मामले को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ले जाने की तैयारी कर रहा है। इसके अलावा पाकिस्तान ने भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार निलंबित कर दिया है। ज्ञातव्य है कि पाकिस्तान भारत को ताज़े फल, सीमेंट, खनिज और अयस्क, तैयार चमड़ा, प्रसंस्कृत खाद्य, अकार्बनिक रसायन, कच्चा कपास, मसाले, ऊन, रबड़ उत्पाद, अल्कोहल पेय, चिकित्सा उपकरण, समुद्री सामान, प्लास्टिक, डाई और खेल का सामान निर्यात करता था, जबकि भारत से निर्यात की जाने वाले वस्तुओं में जैविक रसायन, कपास, प्लास्टिक उत्पाद, अनाज, चीनी, कॉफी, चाय, लौह और स्टील के सामान, दवा और तांबा आदि शामिल हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच 2017-18 में केवल 2.4 अरब डॉलर का व्यापार हुआ, जो भारत का दुनिया के साथ कुल व्यापार का 0.31% और पाकिस्तान के ग्लोबल ट्रेड का 3.2% है। कुल द्विपक्षीय व्यापार में करीब 80% हिस्सा पाकिस्तान में भारतीय निर्यात का है। इसके बाद हुए एक नए घटनाक्रम में पाकिस्तान ने समझौता एक्सप्रेस को रद्द करने का ऐलान किया है।
  • विश्व संसाधन संस्थान के ‘एक्वाडक्ट वाटर रिस्क एटलस’ ने 189 देशों तथा उनके राज्यों में जल संकट, सूखे की आशंका और नदियों में बाढ़ की आशंका को लेकर रैंकिंग जारी की है। इस रिपोर्ट में अत्यंत गंभीर जल संकट वाले देशों की सूची में भारत को 13वें स्थान पर रखा गया है और इसकी जनसंख्या इस श्रेणी के अन्य 16 देशों की जनसंख्या से तीन गुना से अधिक है। गंभीर जल संकट का सामना कर रहे इन 17 देशों में से 12 देश पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका के हैं। भारत के बारे में इस रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर भारत में भूजल स्तर गंभीर रूप से नीचे चला गया है और इसे पहली बार जल संकट की गणना में शामिल किया गया है। चेन्नई में हालिया जल संकट ने पूरे विश्व का ध्यान आकर्षित किया है, लेकिन भारत के विभिन्न क्षेत्रों में भी गंभीर जल संकट की स्थिति है। भारत वर्षा, सतह एवं भूजल से जुड़े विश्वसनीय एवं ठोस डेटा की मदद से रणनीतियाँ बनाकर जल संकट का प्रबंधन कर सकता है। इस रिपोर्ट में जल संकट की पहचान करने के लिये 13संकेतकों का इस्तेमाल किया गया, जिनमें भूजल भंडार और उसमें लगातार आ रही कमी प्रमुख थी।
  • भारत की रिलायंस इंडस्ट्रीज (RIL) ने ईंधन के रिटेल कारोबार के लिये ब्रिटेन की दिग्गज पेट्रोलियम कंपनी ब्रिटिश पेट्रोलियम (BP) के साथ एक नया संयुक्त उद्यम बनाने का फैसला किया है। इसके तहत दोनों कंपनियाँ मिलकर देशभर में रिटेल सर्विस स्टेशन नेटवर्क और विमानन ईंधन (ATF) कारोबार स्थापित करेंगी। यह उपक्रम आरआईएल और BP की लंबी अवधि की साझेदारी की अगली कड़ी है। इसकी शुरुआत वर्ष 2011 में हुई थी और वर्ष 2017 में इसका विस्तार हुआ था। दोनों कंपनियों के बीच नए समझौते के तहत अलग-अलग तरह के ईंधन और मोबिलिटी बिज़नेस विकसित करने के लिये एक साथ काम करने के विकल्प तलाशे जाएंगे। गौरतलब है कि ईंधन रिटेलिंग क्षेत्र में BP दुनिया की एक अग्रणी कंपनी है। इस उपक्रम का लक्ष्य अगले पाँच वर्षों में पेट्रोल पंपों की संख्या को 5500 तक पहुँचाना है। संयुक्त उपक्रम में रिलायंस की 51% और BP की 41% हिस्सेदारी होगी रिलायंस और BP के बीच यह तीसरा संयुक्त उपक्रम है। इस संयुक्त उद्यम में रिलायंस का विमानन ईंधन कारोबार भी शामिल होगा, जो देश के 30 हवाई अड्डों पर काम कर रहा है। इससे पहले BP ने वर्ष 2011 में रिलायंस के तेल व गैस क्षेत्रों में 30% हिस्सेदारी खरीदी थी। उसके बाद दोनों कंपनियों ने देश में गैस की सोर्सिंग और मार्केटिंग के लिये समान साझेदारी वाला संयुक्त उपक्रम बनाया था।
  • बिहार के दो मेधावी युवाओं का चयन रूस के कज़ान सिटी में 22 से 27 अगस्त तक होने वाले ‘वर्ल्ड स्किल्स कम्पीटिशन-2019’ के लिये किया गया है। पटना निफ्ट में फैशन टेक्नोलॉजी की छात्रा मेधा देवगन और गोपालगंज के छात्र अंकित आनंद इस छह दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करेंगे। अंकित कर्नाटक में एक फैशन इंस्टीट्यूट के छात्र हैं और इनका चयन भी बिहार कोटे से हुआ है। राष्ट्रीय स्तर पर कौशल प्रतियोगिताओं में कड़ी प्रतिस्पर्द्धा के बीच मेधा और अंकित आनंद का चयन हुआ है। ये दोनों देश भर में चुने गए 48 प्रतिभागियों में शामिल हैं। आपको बता दें कि विश्व स्तरीय कौशल प्रतियोगिता में पहली बार बिहार को प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला है।