AI वेब क्रॉलर पर प्रतिबंध
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
एक ऐतिहासिक कदम के तहत, प्रमुख अमेरिकी और ब्रिटिश प्रकाशकों ने अपनी सामग्री/विषयवस्तु के अनधिकृत उपयोग को रोकने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) वेब क्रॉलरों को प्रतिबंधित करना शुरू कर दिया है।
- इसने भारत में सहमति-आधारित कॉपीराइट संरक्षण और न्यायसंगत राजस्व साझा व्यवस्था की मांग को पुनः तेज़ कर दिया है, जिससे डिजिटल शासन, कॉपीराइट प्रवर्तन और नैतिक AI उपयोग से जुड़े प्रमुख प्रश्नों पर चिंताएँ उठी हैं।
AI वेब क्रॉलर क्या है?
- परिचय: AI वेब क्रॉलर एक प्रकार का स्वचालित सॉफ्टवेयर या बॉट होता है, जो विशेष रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता मॉडलों, जैसे कि लार्ज लैंग्वेज मॉडल (LLM), के प्रशिक्षण में सहायक सामग्री एकत्र करने या AI सहायक के लिये तात्कालिक सूचना प्राप्ति हेतु इंटरनेट से विषयवस्तु स्कैन और संग्रह करता है।
- प्रकार:
- मॉडल प्रशिक्षण क्रॉलर: जनरेटिव AI मॉडलों के प्रशिक्षण हेतु वेबसाइट डेटा एकत्र करता है।
- उदाहरण: GPTBot (OpenAI), Amazonbot (Amazon), GoogleOther (Google)।
- लाइव रिट्रीवल क्रॉलर: ये बॉट वेबसाइटों से वास्तविक समय में डेटा प्राप्त करते हैं ताकि उपयोगकर्त्ता की पूछताछ के दौरान पूर्व-प्रशिक्षित मॉडलों को पूरक जानकारी प्रदान की जा सके, जिससे AI खोज उपकरणों में अद्यतन और संदर्भित उत्तर सुनिश्चित हो सकें।
- इसे Bing, ChatGPT आदि जैसे AI प्लेटफॉर्म द्वारा अद्यतन जानकारी प्राप्त करने हेतु उपयोग किया जाता है।
- मॉडल प्रशिक्षण क्रॉलर: जनरेटिव AI मॉडलों के प्रशिक्षण हेतु वेबसाइट डेटा एकत्र करता है।
- चिंताएँ:
- नियामक ढाँचे का अभाव: वर्तमान में भारत में ऐसा कोई नियामक ढाँचा नहीं है जो AI कंपनियों द्वारा वेब सामग्री तक सुलभता और उसके उपयोग की निगरानी कर सके।
- इससे ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जहाँ बड़ी तकनीकी कंपनियाँ भारतीय विषयवस्तु का बिना किसी सहमति या निगरानी के मुक्त रूप से लाभ उठा रही हैं, जबकि छोटे प्रकाशकों के पास ऐसी पहुँच की निगरानी या उसे सीमित करने के लिये कोई प्रभावी साधन नहीं है।
- कॉपीराइट प्रवर्तन: समाचार लेखों, ब्लॉगों और शैक्षणिक विषयवस्तु का उपयोग लार्ज लैंग्वेज मॉडल (LLM) के प्रशिक्षण के लिये बिना अनुमति या पारिश्रमिक के किया जा रहा है।
- भारत का कॉपीराइट अधिनियम, 1957 कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) से संबंधित विशेष मामलों, जैसे कि AI-जनित व्युत्पन्न (Derivative) कृतियों या प्रशिक्षण डेटा अधिकारों को संबोधित करने के लिये सक्षम नहीं है।
- भारतीय संदर्भ में ‘उचित उपयोग’ और ‘बिना लाइसेंस प्रशिक्षण’ के बीच कोई स्पष्ट व्याख्या उपलब्ध नहीं है।
- भारत में ऐसा कोई डेटा संरक्षण कानून नहीं है जो गैर-व्यक्तिगत डेटा पर केंद्रित हो, जबकि AI प्रशिक्षण के लिये अधिकांशतः इसी प्रकार के डेटा पर LLM निर्भर रहते हैं।
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का नैतिक उपयोग: AI डेवलपर्स प्रायः यह खुलासा नहीं करते कि वे किस डेटा का उपयोग करते हैं, जिससे मूल रचनाकारों को न तो श्रेय मिलता है और न ही कोई प्रतिफल।
- इसके अतिरिक्त, बिना जाँचे-परखे या पुराने सामग्री पर AI को प्रशिक्षित करने से पूर्वाग्रह उत्पन्न हो सकते हैं और यह गलत या हानिकारक परिणाम दे सकता है, जिससे AI प्रणालियों में जनसामान्य का विश्वास कमज़ोर पड़ता है।
- ये चुनौतियाँ इस तर्क पर बल देती हैं कि भारत में सहमति-आधारित और अधिकार-सम्मानित डिजिटल इकोसिस्टम की स्थापना अत्यंत आवश्यक है।
- नियामक ढाँचे का अभाव: वर्तमान में भारत में ऐसा कोई नियामक ढाँचा नहीं है जो AI कंपनियों द्वारा वेब सामग्री तक सुलभता और उसके उपयोग की निगरानी कर सके।
- वैश्विक रूपरेखा और भारत की आगामी दिशा: यूरोपीय संघ का AI अधिनियम, 2024 अब कॉपीराइटयुक्त डेटा पर AI प्रशिक्षण से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने लगा है।
- अमेरिका में प्रकाशक या तो AI कंपनियों के साथ लाइसेंसिंग समझौते कर रहे हैं या फिर उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर रहे हैं।
- भारत इन उदाहरणों का अध्ययन कर एक ऐसा भारतीय मॉडल विकसित कर सकता है जो नवाचार और रचनाकारों के अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करे।
- इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) तथा सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (I&B) को मिलकर ‘अनधिकृत डेटा स्क्रैपिंग’ की कानूनी परिभाषा तय करनी चाहिये और रचनाकारों के अधिकारों की रक्षा हेतु एक सहमति-आधारित AI लाइसेंसिंग ढाँचा स्थापित करना चाहिये।
- साथ ही, इन मंत्रालयों को क्लाउडफ्लेयर जैसे प्लेटफॉर्म्स के साथ मिलकर भारतीय प्रकाशकों को डिजिटल सामग्री की सुरक्षा के लिये AI बॉट-ब्लॉकिंग टूल्स उपलब्ध कराने चाहिये, ताकि तकनीकी सुरक्षा उपाय भी सुनिश्चित किये जा सकें।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत की कॉपीराइट व्यवस्था के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) वेब क्रॉलर्स द्वारा उत्पन्न चुनौतियों की जाँच कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)मेन्सप्रश्न. वैश्वीकृत संसार में, बौद्धिक सम्पदा अधिकारों का महत्त्व हो जाता है और वे मुकद्दमेबाज़ी का एक स्रोत हो जाते हैं। कॉपीराइट, पेटेंट और व्यापार गुप्तियों के बीच मोटे तौर पर विभेदन कीजिये। (2014) |
भारत में अभिरक्षा में यातना
प्रिलिम्स के लिये:अनुसूचित जाति (SC), अनुच्छेद 21, अनुच्छेद 20(1), अनुच्छेद 20(3), मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR), नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय वाचा, आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय वाचा, UNCAT, NHRC। मेन्स के लिये:भारत में अभिरक्षा में यातना की स्थिति, अभिरक्षा में यातना को रोकने हेतु आवश्यक उपाय। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
तमिलनाडु में हुई अभिरक्षा में मृत्यु ने एक बार फिर अभिरक्षा में यातना के मुद्दे को प्रमुखता से उजागर कर दिया है।
अभिरक्षा में यातना क्या है?
- परिचय: अभिरक्षा/हिरासत में यातना (Custodial Torture) का तात्पर्य उन व्यक्तियों को शारीरिक या मानसिक पीड़ा पहुँचाने से है, जो पुलिस या किसी अन्य प्राधिकरण की अभिरक्षा में होते हैं।
- यह मानवाधिकारों और मानवीय गरिमा का गंभीर उल्लंघन है तथा प्रायः अभिरक्षा में मृत्यु का कारण बनता है — यानी जब कोई व्यक्ति अभिरक्षा में रहते हुए मर जाता है।
- अभिरक्षा में यातना के प्रकार:
- शारीरिक यातना (Physical Torture): मारपीट, बिजली के झटके देना, दम घोंटना, यौन हिंसा, जबरन तनावपूर्ण स्थिति में रखना और चिकित्सकीय देखभाल से वंचित करना।
- मानसिक प्रताड़ना (Psychological Torture): धमकियाँ, अपमान, नींद से वंचित करना, एकांत कारावास और मृत्युदंड की धमकी (Mock executions)।
- अत्यधिक दबाव डालकर निरुद्धों से अपराध स्वीकार करवाना।
- भारत में अभिरक्षा में यातना:
- अभिरक्षा में मृत्यु: वर्ष 2016 से 2022 के बीच, तमिलनाडु (दक्षिणी राज्यों में सबसे अधिक) ने 490 अभिरक्षा में मृत्यु की रिपोर्ट की, जबकि पूरे देश में यह आँकड़ा 11,656 रहा। उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 2,630 मृत्यु दर्ज की गईं।
- निवारक निरोध कानून (Preventive Detention Law) का दुरुपयोग: वर्ष 2022 में, तमिलनाडु ने निवारक कानूनों के तहत 2,129 लोगों को अभिरक्षा में लिया, जो पूरे भारत की कुल संख्या का लगभग आधा है।
- अनुसूचित जातियों (SC) पर अत्यधिक यातना: तमिलनाडु में अनुसूचित जातियों की जनसंख्या केवल 20% होने के बावजूद अभिरक्षा में लिये गए लोगों में उनका अनुपात 38.5% रहा, जो उनके खिलाफ अभिरक्षा में अत्यधिक हिंसा को दर्शाता है।
अभिरक्षा में यातना के विरुद्ध संवैधानिक और विधिक सुरक्षा उपाय क्या हैं?
संवैधानिक प्रावधान
- अनुच्छेद 14: अनुच्छेद 14 विधि के समक्ष समता सुनिश्चित करता है तथा यह पुष्टि करता है कि विधि प्रवर्तन एजेंसियों या अधिकारियों सहित कोई भी विधि से ऊपर नहीं है।
- अनुच्छेद 21: अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है, जिसमें यातना तथा अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या दंड से स्वतंत्रता भी शामिल है।
- अनुच्छेद 20(1): अनुच्छेद 20(1) यह प्रावधान करता है कि किसी भी व्यक्ति को ऐसे कार्य के लिये दोषी नहीं ठहराया जा सकता, जो उस समय विधि के तहत अपराध नहीं था जब वह किया गया था। यह अत्यधिक या भूतलक्षी दंड को प्रतिबंधित करता है।
- अनुच्छेद 20(3): अनुच्छेद 20(3) किसी भी व्यक्ति को स्वयं के विरुद्ध साक्ष्य देने के लिये विवश किये जाने से सुरक्षा प्रदान करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि किसी आरोपी से यातना या दबाव द्वारा स्वीकारोक्ति नहीं करवाई जा सके।
विधिक प्रावधान
- भारतीय न्याय संहिता (2023) की धारा 120: यह उन व्यक्तियों को दंडित करती है जो किसी संस्वीकृति या जानकारी प्राप्त करने के लिये जानबूझकर हिंसा या प्रपीड़न के माध्यम से चोट या गंभीर चोट पहुँचाते हैं।
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS, 2023) की धारा 35: यह प्रावधान करता है कि गिरफ्तारी और अभिरक्षा केवल वैध कारणों तथा प्रलेखित प्रक्रिया के अनुसार ही की जानी चाहिये।
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम (2023) की धारा 22: यह ऐसे सभी स्वीकारोक्तियों को अमान्य घोषित करता है जो उत्प्रेरणा, धमकी, प्रपीड़न या किसी वादे के तहत की गई हों।
अंतर्राष्ट्रीय प्रावधान
- संयुक्त राष्ट्र चार्टर, 1945: यह प्रावधान करता है कि कैदियों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार किया जाए तथा यह सुनिश्चित करता है कि उनके मूलभूत अधिकार और स्वतंत्रताएँ नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध (ICCPR) के तहत सुरक्षित रहें (भारत इसका हस्ताक्षरकर्त्ता है)।
- मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (1948): यह व्यक्तियों को यातना, क्रूर व्यवहार और जबरन गायब किये जाने (Enforced disappearances) से संरक्षण प्रदान करती है तथा सम्मान व सुरक्षा के अधिकार की गारंटी देती है।
पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक कीजिये: यातना और अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या दंड के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCAT), 1984
अभिरक्षा में यातना पर अंकुश लगाने में क्या चुनौतियाँ हैं?
- विशिष्ट यातना-विरोधी कानून का अभाव: भारत ने वर्ष 1997 में UNCAT पर हस्ताक्षर तो किये हैं, लेकिन अब तक उसे अनुमोदित नहीं किया है।
- हालाँकि मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 जैसे कुछ कानूनों में यातना को अप्रत्यक्ष रूप से संबोधित किया गया है, लेकिन यातना को अपराध घोषित करने वाला कोई स्वतंत्र, विशिष्ट कानून नहीं है। इससे वर्तमान प्रावधान अस्पष्ट, अपर्याप्त और कड़ी सज़ा से रहित रहते हैं।
- कमज़ोर प्रवर्तन और दंड से मुक्ति: वर्ष 2017 से 2022 के बीच अभिरक्षा में मृत्यु के 345 न्यायिक जाँच मामलों में केवल 123 गिरफ्तारियाँ और 79 चार्जशीट दाखिल हुईं, लेकिन एक भी दोषसिद्धि (Conviction) नहीं हुई।
- अवैध अभिरक्षा, यातना या मृत्यु से जुड़े 74 मानवाधिकार उल्लंघन मामलों में पुलिस के विरुद्ध केवल 3 दोषसिद्धि दर्ज की गई।
- अधिभारित संस्थाएँ: मानवाधिकार आयोग (NHRC/SHRC) के पास बाध्यकारी शक्तियों का अभाव है और वे सरकारी वित्त पोषण पर निर्भर हैं, जिससे उनकी प्रभावशीलता सीमित हो जाती है।
- जेलों में अत्यधिक भीड़भाड़ (130% क्षमता पर) और स्वतंत्र निगरानी की कमी अनेक राज्यों में प्रभावी पुलिस शिकायत प्राधिकरण का अभाव, ऐसे हालात उत्पन्न करते हैं जो उत्पीड़न और अमानवीय व्यवहार को बढ़ावा देते हैं।
- पीड़ितों में प्रतिहिंसा का भय: पीड़ित प्रायः प्रताड़ना की शिकायत दर्ज कराने से बचते हैं क्योंकि उन्हें प्रतिहिंसा का भय, कानूनी सहायता का अभाव और शिकायत दर्ज करते समय धमकियों का सामना करना पड़ता है।
- हाशिये पर मौजूद समूह (दलित, अल्पसंख्यक, आदिवासी) विशेष रूप से असुरक्षित हैं क्योंकि पीड़ित संरक्षण और मुआवज़ा तंत्र अपर्याप्त हैं।
- न्यायिक और प्रणालीगत विफलताएँ: लंबी न्यायिक प्रक्रियाएँ, अत्यधिक भारग्रस्त न्यायालयों, साक्षियों को डराए जाने और त्वरित न्यायालयों की अपर्याप्तता के कारण अभिरक्षा में मृत्यु के मामलों में न्याय में देरी होती है।
- इसके अतिरिक्त, डी.के. बसु दिशानिर्देशों (1996) जिनमें गिरफ्तारी मेमो, चिकित्सकीय परीक्षण और कानूनी सहायता की अनिवार्यता शामिल है - का कमज़ोर अनुपालन, साथ ही मजिस्ट्रेटी जाँचों की अक्षमता, प्रणालीगत विफलता और जवाबदेही लागू करने या पुलिस व्यवस्था में सुधार लाने की राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी को दर्शाता है।
अभिरक्षा में यातना रोकने के लिये मुख्य सिफारिशें
- भारत का विधि आयोग: अपनी 273वीं रिपोर्ट (2017) में भारत के विधि आयोग ने UNCAT 1984, की पुष्टि करने तथा उसके प्रावधानों को लागू करने हेतु एक विशिष्ट कानून बनाने की सिफारिश की, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यातना को दंडनीय अपराध घोषित करना अत्यंत आवश्यक है।
- आयोग ने सरकार के विचारार्थ एक मसौदा यातना निवारण विधेयक, 2017 भी प्रस्तुत किया।
- न्यायिक निर्णय:
- डी.के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य मामला, 1997: इस निर्णय में अभिरक्षा में यातना की रोकथाम और गिरफ्तारी तथा अभिरक्षण में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये दिशानिर्देश निर्धारित किये गए।
- इसने यह पुष्टि की कि यद्यपि पुलिस को जाँच करने का अधिकार है, लेकिन उन्हें थर्ड डिग्री तरीकों के प्रयोग की अनुमति नहीं है, और यदि किसी लोक सेवक द्वारा अभिरक्षा में हिंसा की जाती है, तो राज्य को भी उत्तरदायी ठहराया जाता है।
- उत्तर प्रदेश राज्य बनाम राम सागर यादव मामला, 1985: अभिरक्षा में यातना की घटनाओं में दोषमुक्ति सिद्ध करने की ज़िम्मेदारी संबंधित पुलिस अधिकारी पर होती है।
- नंबी नारायणन मामला, 2018: इस निर्णय में झूठे अभियोजन और अभिरक्षा में हुए दुरुपयोग से उत्पन्न गंभीर मानसिक प्रभावों पर बल दिया गया।
- डी.के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य मामला, 1997: इस निर्णय में अभिरक्षा में यातना की रोकथाम और गिरफ्तारी तथा अभिरक्षण में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये दिशानिर्देश निर्धारित किये गए।
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC): NHRC ने सिफारिश की कि ज़िला मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षक को अभिरक्षा में यातना की किसी भी घटना की सूचना 24 घंटे के भीतर महासचिव को देनी चाहिये।
- अनुपालन में विफलता को घटना को छिपाने या दबाने के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है।
भारत में अभिरक्षा में यातना की समस्या के समाधान हेतु क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- कानूनी ढाँचे को सुदृढ़ बनाना: यातना निवारण हेतु एक व्यापक कानून बनाया जाए, जिसमें स्पष्ट दंडात्मक प्रावधान तथा पीड़ितों के लिये मुआवज़े की व्यवस्था हो, और जो UNCAT मानकों के अनुरूप हो।
- भारत को UNCAT की पुष्टि भी करनी चाहिये, जिससे यातना के अंत के प्रति उसकी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धता मज़बूत हो।
- संस्थागत जवाबदेही सुनिश्चित करना: अभिरक्षा में यातना में शामिल पुलिसकर्मियों के विरुद्ध त्वरित और पारदर्शी कार्रवाई की जाए। पुलिस अभिरक्षा और संवेदनशील पूछताछ से संबंधित मामलों के निपटान के लिये ज़िला स्तर पर विशेष इकाइयों की स्थापना की जाए।
- पुलिस संरचना में सुधार: पुलिस विभाग में कानून प्रवर्तन और पूछताछ के कार्यों को अलग किया जाए, ताकि हितों का टकराव कम हो और अभिरक्षा में दुरुपयोग की घटनाएँ कम हों।
- पुलिस कर्मियों को वैध पूछताछ विधियों तथा यातना के दुष्परिणामों के बारे में मानवाधिकार प्रशिक्षण दिया जाए। न्यायिक मजिस्ट्रेटों को निष्पक्ष रिमांड प्रक्रिया और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों पर प्रशिक्षण दिया जाए।
- स्वतंत्र निगरानी व्यवस्था: न्यायिक मजिस्ट्रेटों को अभिरक्षा से संबंधित प्रक्रियाओं और पूछताछों की निगरानी अनिवार्य रूप से सौंपी जाए। अभिरक्षा में यातना और मृत्यु की शिकायतों के निपटारे हेतु स्वतंत्र जाँच एजेंसियों की स्थापना की जाए, ताकि निष्पक्ष और प्रभावी जवाबदेही सुनिश्चित हो सके।
निष्कर्ष
अभिरक्षा में यातना भारत में एक गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन बनी हुई है, जिसे कानूनी खामियों, संस्थागत दंडमुक्ति और प्रणालीगत विफलताओं ने और भी गंभीर बना दिया है। इस समस्या को समाप्त करने के लिये कानूनों को सशक्त बनाना (जैसे कि BNS/BNSS सुधार, UNCAT की पुष्टि), स्वतंत्र निगरानी सुनिश्चित करना, तथा पुलिस की जवाबदेही तय करना अत्यंत आवश्यक है। तत्काल कार्रवाई के बिना अभिरक्षा में मृत्यु और यातनाएँ अनियंत्रित रूप से जारी रहेंगी।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: "संवैधानिक सुरक्षा उपायों के बावजूद, भारत में अभिरक्षा में यातना संस्थागत दंडमुक्ति के कारण बनी हुई है।" इस कथन का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये एवं सुधारों का सुझाव दीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्सप्रश्न. यद्यपि मानवाधिकार आयोगों ने भारत में मानव अधिकारों के संरक्षण में काफी हद तक योगदान दिया है, फिर भी वे ताकतवर और प्रभावशालियों के विरुद्ध अधिकार जताने में असफल रहे हैं। इनकी संरचनात्मक और व्यावहारिक सीमाओं का विश्लेषण करते हुए सुधारात्मक उपायों के सुझाव दीजिए। (2021) प्रश्न. भारत में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एन.एच.आर.सी.) सर्वाधिक प्रभावी तभी हो सकता है, जब इसके कार्यों को सरकार की जवाबदेही को सुनिश्चित करने वाले अन्य यांत्रिकत्वों (मकैनिज़्म) का पर्याप्त समर्थन प्राप्त हो। उपरोक्त टिप्पणी के प्रकाश में, मानव अधिकार मानकों की प्रोन्नति करने और उनकी रक्षा करने में, न्यायपालिका और अन्य संस्थाओं के प्रभावी पूरक के तौर पर, एन.एच.आर.सी. की भूमिका का आकलन कीजिये। (2014) |
कृषि वानिकी को बढ़ावा हेतु नियम
प्रिलिम्स के लिये:कृषि वानिकी, जलवायु परिवर्तन, कार्बन पृथक्करण, 2030 तक भूमि क्षरण तटस्थता, संधारणीय कृषि, कृषि वानिकी पर उप-मिशन (SMAF), राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति (NAP) मेन्स के लिये:कृषि वानिकी- आदर्श नियम, महत्व और चुनौतियाँ |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने कृषि भूमि पर वृक्षों की कटाई हेतु आदर्श नियम जारी किये हैं जिनका उद्देश्य अनुमोदन का सरलीकरण करना, कृषि वानिकी को बढ़ावा देना, ग्रामीण क्षेत्रों में आय वर्द्धन करना तथा प्राकृतिक वनों पर दबाव को कम करना है।
- इन नियमों में पारदर्शिता और निगरानी के लिये रिमोट सेंसिंग तथा इमेज रिकग्निशन के साथ एक डिजिटल पोर्टल अनिवार्य किया गया है। यह UNFCCC, CBD के तहत भारत की प्रतिबद्धताओं के अनुरूप है और SDG 2, 13 और 15 की प्राप्ति में सहायक है।
कृषि वानिकी को बढ़ावा देने के लिये पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी आदर्श नियमों की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- सरलीकृत विनियम: कृषि भूमि पर वृक्ष पंजीकरण, कटाई और प्रकाष्ठ (इमारती लकड़ी) के परिवहन के लिये एक समान प्रक्रियाएँ निर्धारित की गई हैं जिसमें विधिक स्पष्टता को लेकर राज्य की परस्पर विरोधी नियमों को रद्द कर दिया गया।
- NTMS पोर्टल: केंद्रीकृत राष्ट्रीय प्रकाष्ठ प्रबंधन प्रणाली (National Timber Management System-NTMS) किसानों को अपने बागानों का पंजीकरण कराने, वृक्षों की कटाई हेतु परमिट के लिये आवेदन करने और जियो-टैग्ड डेटा, KML फाइलों तथा फोटो का उपयोग करके आवेदनों को ट्रैक करने की सुविधा प्रदान करती है।
- वृक्ष-आधारित वर्गीकरण: 10 से अधिक वृक्षों की कटाई हेतु पैनलबद्ध एजेंसियों द्वारा भौतिक सत्यापन की आवश्यकता होगी, जबकि 10 या इससे कम वृक्षों के बारे में किसान स्वतःकृत अनापत्ति पत्र (NOC) के लिये NTMS पोर्टल पर स्वयं घोषणा कर सकेंगे।
- संस्थागत तंत्र:
- कृषि वानिकी को बढ़ावा देने हेतु वर्ष 2016 की काष्ठ आधारित उद्योग दिशा-निर्देश के अंतर्गत राज्य स्तरीय समिति (SLC)।
- अनुपालन के उद्देश्य से सूचीबद्ध एजेंसियों की निगरानी हेतु प्रभागीय वन अधिकारियों (DFO) का नियोजन।
- प्रौद्योगिकी-संचालित अनुवीक्षण: रियल टाइम अनुवीक्षण और पारदर्शिता के लिये रिमोट सेंसिंग, इमेज रिकग्निशन और डिजिटल साधनों का उपयोग।
- बाज़ार संबद्धता: स्थानीय स्रोतों से प्राप्त काष्ठ के उपयोग को बढ़ावा दिया जाता है, जिससे आयात कम होता है। किसानों की आय बढ़ाने के लिये उच्च मूल्य वाली प्रजातियों (जैसे, सागौन, नीलगिरी, चिनार) की कृषि को बढ़ावा दिया जाता है।
कृषि वानिकी क्या है?
- कृषि वानिकी (वृक्षों और फसलों की संयुक्त कृषि) एक भूमि उपयोग प्रणाली है, जिसमें कृषि उत्पादकता, आजीविका और पर्यावरणीय संधारणीयता में सुधार के लिये एक ही भूमि क्षेत्र पर फसलों और/या पशुधन के साथ वृक्षों का रोपण किया जाता है।
- वृक्षों को कृषि के साथ एकीकृत कर, इससे भूमि का बेहतर उपयोग सुनिश्चित होता है तथा पर्यावरण-अनुकूल विधियों से ग्रामीण आजीविका को बढ़ावा मिलता है।
- राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति, 2014 के माध्यम से भारत में कृषि वानिकी को औपचारिक रूप से बढ़ावा दिया गया।
- भारत में कृषि वानिकी 28.4 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में विस्तृत है, जो देश के कुल भूमि क्षेत्र का 8.65% है।
पहलू |
सामाजिक वानिकी (Social Forestry) |
कृषि वानिकी (Agroforestry) |
परिभाषा |
स्थानीय समुदाय की आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु पारंपरिक वनों के बाहर वानिकी। |
एक ही भूमि पर वृक्षों का फसलों और/या पशुधन के साथ एकीकरण। |
प्रमुख उद्देश्य |
ग्रामीण और वंचित समुदायों की ईंधन, चारा और लकड़ी जैसी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति। |
कृषि उत्पादकता, आजीविका और पर्यावरणीय स्थिरता में सुधार। |
लक्षित समूह |
सामूहिक/सामुदायिक लाभ पर केंद्रित, विशेषकर निर्धन और सीमांत लोग। |
मुख्यतः व्यक्तिगत किसानों को बेहतर भूमि उपयोग के माध्यम से लाभ। |
उदाहरण |
ग्राम की सामुदायिक भूमि, परती भूमि, सड़कों के किनारे वृक्षारोपण। |
निजी खेतों/फार्म्स में फसलों के साथ फलदार वृक्ष/चारा उगाना। |
नीतिगत समर्थन |
सामुदायिक वनीकरण कार्यक्रमों और संयुक्त वन प्रबंधन के माध्यम से समर्थन। |
राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति, 2014 द्वारा संस्थागत समर्थन। |
- घटक:
- कृषि भूमि और खेतों में वृक्ष रोपण, जो चारा, ईंधन, लकड़ी, फल या आय का स्रोत प्रदान करते हैं।
- वृक्ष और फसलों का संयोजन, जैसे कोको, कॉफी, ऑयल पाम और रबर।
- वन्य क्षेत्रों में या उनके निकट कृषि करना, जिससे वन समीप भूमि का सतत् रूप से प्रबंधन करने में मदद मिलती है।
- कृषि वानिकी के प्रकार:
- फार्म वानिकी: इसका आशय किसानों द्वारा अपनी भूमि पर वृक्षों की खेती से है जो प्रायः वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिये होती है।
- कृषि कार्यों के साथ वानिकी को एकीकृत करने के लिये राष्ट्रीय कृषि आयोग (NCA) (1976) द्वारा प्रोत्साहन प्रदान किया गया।
- विस्तरण वानिकी: हरित आवरण का विस्तार करने के लिये गैर-वनीय, अवक्रमित क्षेत्रों में वृक्षारोपण करना।
- मिश्रित वानिकी: इसमें बंजर भूमि या गांव की सार्वजनिक भूमि पर ईंधन, चारा और फलों के वृक्षों का संयोजन शामिल है।
- वातरोधक: पवन, सूर्यप्रकाश और मृदा अपरदन से सुरक्षा के लिये वृक्ष/झाड़ियों की कतारें।
- रेखीय वृक्षारोपण (लीनियर स्ट्रिप प्लान्टेशन): सड़कों, नहरों और रेलवे लाइनों के किनारे रोपित किये जाने वाले तेज़ी से बढ़ने वाले वृक्ष।
- फार्म वानिकी: इसका आशय किसानों द्वारा अपनी भूमि पर वृक्षों की खेती से है जो प्रायः वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिये होती है।
कृषि वानिकी के प्रमुख लाभ क्या हैं?
- आर्थिक योगदान: कृषि वानिकी से भारत की काष्ठ ईंधन की लगभग आधी आवश्यकताएँ, लघु काष्ठ की दो-तिहाई मांग, कागज़ की लुगदी के लिये कच्चे माल का 60% और हरे चारे की लगभग 9-11% मांग की पूर्ति होती है।
- यह फल, चारा, ईंधन, फाइबर, उर्वरक और लकड़ी जैसे विविध उत्पादों के माध्यम से ग्रामीण आजीविका की दृष्टि से सशयक है, जिससे आय, खाद्य सुरक्षा और फसल विफलता के प्रति अनुकूलन क्षमता बढ़ती है।
- पर्यावरणीय लाभ:
- कार्बन पृथक्करण और जलवायु शमन: पर्याप्त समर्थन के साथ कृषि वानिकी से वर्ष 2030 तक 2.5 बिलियन टन से अधिक CO2 समतुल्य कार्बन को संग्रहित किया जा सकता है। एकीकृत वनरोपण और पुनर्वनीकरण (ARR) परियोजनाएँ कार्बन सिंक के रूप में प्रमुख भूमिका निभाने, भूमि पुनरुद्धार तथा जलवायु अनुकूलन का समर्थन करने और वर्ष 2070 तक भारत के शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने में निर्णायक हैं।
- मृदा उर्वरता में सुधार: कृषि वानिकी प्रणालियों के तहत नाइट्रोजन फिक्सिंग पेड़ प्रतिवर्ष लगभग 50-100 किलोग्राम नाइट्रोजन/हेक्टेयर/वर्ष संग्रह करने में सक्षम हैं। पत्तियों के अपघटन से ह्यूमस बनता है, पोषक तत्वों का पुनर्चक्रण होता है और मृदा के स्वास्थ्य में सुधार होता है जिससे रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता कम होती है और जैविक खेती को बढ़ावा मिलता है।
- पारिस्थितिकी स्थिरता: कृषि वानिकी से मृदा स्वास्थ्य, जल प्रतिधारण, पोषक चक्रण एवं जैवविविधता में सुधार होता है जिससे कृषि रसायनों पर निर्भरता कम होती है।
- इससे विविध प्रजातियों को आश्रय मिलने के साथ एकीकृत कीट प्रबंधन में सहायता मिलती है, जिससे प्राकृतिक रूप से कीट नियंत्रण के साथ पारिस्थितिकी स्थिरता के माध्यम से जलवायु अनुकूलन को बढ़ाता मिलता है।
- वैश्विक प्रतिबद्धताओं हेतु समर्थन: कृषि वानिकी से भारत के अंतर्राष्ट्रीय लक्ष्यों (जैसे वर्ष 2030 तक 2.5-3 बिलियन टन CO2-समतुल्य अतिरिक्त कार्बन सिंक का निर्माण करना और 26 मिलियन हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में भूमि क्षरण तटस्थता प्राप्त करना) में योगदान मिलता है।
- यह 17 सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) में से 9 के अनुरूप भी है।
- नवीकरणीय ऊर्जा का संवर्द्धन: कृषि वानिकी बायोमास आधारित धारणीय ऊर्जा के उत्पादन के साथ स्वच्छ एवं नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों में योगदान देने पर केंद्रित है।
कृषि वानिकी से संबंधित सरकार की प्रमुख पहल क्या हैं?
- राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति (NAP), 2014: भारत समर्पित कृषि वानिकी नीति अपनाने वाला पहला देश बन गया है, जो निजी और सामुदायिक भूमि पर एकीकृत कृषि-वानिकी प्रणालियों को बढ़ावा देता है।
- इसके तहत मंत्रिस्तरीय अभिसरण, सरलीकृत कटाई और पारगमन नियम, संस्थागत समर्थन (जैसे, CAFRI) और अनुसंधान-विस्तार संबंधों का आह्वान किया गया है।
- इस नीति द्वारा कृषि वानिकी उप-मिशन (SMAF) का आधार तैयार हुआ तथा ASEAN, रवांडा, नेपाल और इथियोपिया में इसी प्रकार की नीतियों को प्रेरणा मिली।
- कृषि वानिकी उप-मिशन (SMAF), 2016: राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (NMSA) के तहत शुरू किये गए SMAF का उद्देश्य पौधों की खरीद, वृक्षारोपण, संरक्षण और विस्तार हेतु प्रोत्साहन (विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसानों को) प्रदान करके कृषि भूमि पर वृक्षारोपण को बढ़ावा देना है।
- अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (AICRP), 1983: यह ICAR द्वारा शुरू किया गया एक राष्ट्रीय अनुसंधान नेटवर्क है जो भारत के विविध कृषि-जलवायु क्षेत्रों के अनुकूल कृषि वानिकी प्रणालियों के विकास और सुधार पर केंद्रित है।
- GROW: नीति आयोग द्वारा शुरू की गई GROW (ग्रीनिंग एंड रेस्टोरेशन ऑफ वेस्टलैंड विद एग्रो फॉरेस्ट्री) का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर बंजर भूमि का पुनरुद्धार करने के साथ पेरिस समझौते के तहत भारत के 2.5-3 बिलियन टन CO2-समतुल्य कार्बन सिंक लक्ष्य में योगदान करना है।
- यह राष्ट्रीय, राज्य और ज़िला स्तर पर हस्तक्षेप का मार्गदर्शन करने के क्रम में भुवन पोर्टल पर रिमोट सेंसिंग, GIS और कृषि वानिकी उपयुक्तता सूचकांक (ASI) का उपयोग करने पर केंद्रित है।
कृषि वानिकी नीति के प्रभावी उपयोग में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- विनियामक एवं संस्थागत विखंडन: विभिन्न राज्यों में वृक्षों की कटाई और परिवहन नियमों में भिन्नता, साथ ही वानिकी, कृषि एवं ग्रामीण विकास विभागों के बीच समन्वय की कमी, नीति के एकरूप क्रियान्वयन में बाधा बनती है।
- जागरूकता एवं तकनीकी क्षमता की कमी: किसान नीति के लाभों, पारिस्थितिकीय महत्त्व और सर्वोत्तम प्रथाओं के प्रति जागरूक नहीं हैं।
- प्रशिक्षित विस्तार कर्मचारियों की कमी तथा प्रजातियों के चयन, वृक्षारोपण तकनीक और एकीकृत कीट प्रबंधन पर वैज्ञानिक ज्ञान तक सीमित पहुँच के कारण इसे अपनाना कठिन हो गया है।
- वित्तीय और बाज़ार से जुड़ी बाधाएँ: उच्च प्रारंभिक निवेश, दीर्घ निर्माण अवधि, बीमा और कृषि वानिकी-विशिष्ट ऋण योजनाओं का अभाव इसे वित्तीय रूप से जोखिमपूर्ण बनाता है।
- लकड़ी-आधारित उद्योगों से कमज़ोर जुड़ाव और मूल्य सुनिश्चितता की अनुपस्थिति लाभप्रदता को घटाती है।
- डिजिटल और निगरानी अंतराल: कम डिजिटल साक्षरता और सीमित कनेक्टिविटी, नेशनल टिम्बर मैनेजमेंट सिस्टम (NTMS) के उपयोग को सीमित करती हैं।
- वास्तविक समय में निगरानी की कमी से छोटे किसानों के लिये निगरानी, पारदर्शिता और अनुपालन प्रभावित होता है।
- अनुसंधान एवं अवधारणा संबंधी बाधाएँ: क्षेत्र-विशिष्ट अनुसंधान एवं विकास (R&D), वृक्ष-फसल मॉडल और जलवायु-अनुकूल प्रजातियों पर अध्ययन की कमी, साथ ही किसानों का जोखिम से बचने का व्यवहार और लाभ को लेकर अनिश्चितता, उनके आत्मविश्वास तथा बड़े पैमाने पर अपनाने को प्रभावित करते हैं।
कृषि वानिकी नीति के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु क्या उपाय किये जाने चाहिये?
- विनियामक सुधार: वृक्ष की कटाई और परिवहन नियमों के लिये एक समान राष्ट्रीय ढाँचा तैयार किया जाए और राज्यों में नीति के एकरूप क्रियान्वयन हेतु पूर्ण रूप से क्रियाशील राज्य स्तरीय समितियों (SLC) के माध्यम से समन्वय को मज़बूत किया जाए।
- जागरूकता एवं क्षमता निर्माण: कृषि विज्ञान केंद्र (KVK), ICAR एवं वन विभागों के माध्यम से स्थानीय स्तर पर जागरूकता तथा प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किये जाएँ, ताकि किसानों और विस्तार कार्यकर्त्ताओं को नीति के लाभ, जलवायु-अनुकूलन मॉडल व एकीकृत कीट प्रबंधन के विषय में शिक्षित किया जा सके।
- वित्तीय और बाज़ार समर्थन: कृषि वानिकी-विशेष ऋण व बीमा योजनाएँ लागू की जाएँ,
सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा दिया जाए तथा लकड़ी-आधारित उद्योगों के साथ बाय-बैक व्यवस्था (Buy-back arrangements) स्थापित की जाए ताकि लाभप्रदता बढ़े और वित्तीय जोखिम कम हो। - डिजिटल पहुँच और निगरानी: ग्रामीण डिजिटल अवसंरचना का विस्तार किया जाए ताकि नेशनल टिम्बर मैनेजमेंट सिस्टम (NTMS) पोर्टल का उपयोग बढ़ सके और वास्तविक समय में निगरानी, ट्रेसबिलिटी एवं अनुपालन के लिये GIS, रिमोट सेंसिंग तथा AI आधारित उपकरणों का एकीकरण किया जाए।
- अनुसंधान और प्रदर्शन: उत्पादक एवं जलवायु-संवेदनशील प्रजातियों पर क्षेत्र-विशिष्ट अनुसंधान एवं विकास (R&D) में निवेश किया जाएँ तथा मॉडल कृषि वानिकी फार्म स्थापित किये जाएँ ताकि सर्वोत्तम प्रथाओं का प्रदर्शन हो, जोखिम की धारणा कम हो और किसानों का आत्मविश्वास बढ़े।
निष्कर्ष
मॉडल नियम जलवायु-अनुकूल कृषि, ग्रामीण आय सृजन और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के एक उपकरण के रूप में कृषिवानिकी को मुख्यधारा में लाने के लिये एक रूपांतरणकारी दृष्टिकोण प्रदान करते हैं। भारत के कृषि और पर्यावरण परिदृश्य में इनकी पूर्ण क्षमता को साकार करने के लिये, संस्थागत समन्वय, डिजिटल सशक्तीकरण और बाज़ार विकास के माध्यम से कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियों का समाधान करना अत्यंत आवश्यक होगा।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. कृषि-वानिकी में भारत की लकड़ी की आवश्यकताओं को पूरा करने, ग्रामीण आय को बढ़ाने और पारिस्थितिक संतुलन को बढ़ावा देने की क्षमता है। इसके कार्यान्वयन में आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये और एक व्यवहार्य कार्य योजना का सुझाव दीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. जलवायु-अनुकूल कृषि (क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर:(d) प्र. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2014)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से युग्म सही सुमेलित है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: d प्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से किसे कृषि में सार्वजनिक निवेश माना जा सकता है? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 5 उत्तर: c मेन्स:प्रश्न. भारतीय कृषि की प्रकृति की अनिश्चितताओं पर निर्भरता के मद्देनज़र, फसल बीमा की आवश्यकता की विवेचना कीजिये और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पी० एम० एफ० बी० वाइ०) की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिये। (2016) प्रश्न. भारत में स्वतंत्रता के बाद कृषि क्षेत्र में हुई विभिन्न प्रकार की क्रांतियों की व्याख्या कीजिये। इन क्रांतियों ने भारत में गरीबी उन्मूलन और खाद्य सुरक्षा में किस प्रकार मदद की है? (2017) |