डेली न्यूज़ (03 Sep, 2020)



संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की जीत

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, यूएनएससी 1267 प्रतिबंध समिति

मेन्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और भारत, पाकिस्तान तथा आतंकवाद से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council- UNSC) ने पाकिस्तान द्वारा दो भारतीय नागरिकों को ‘यूएनएससी 1267 प्रतिबंध समिति’ (UNSC 1267 Sanctions Committee) के तहत आतंकवादी घोषित किये जाने के प्रयास को रद्द कर दिया है।

प्रमुख बिंदु:

  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की इस समिति ने 2 सितंबर, 2020 को ‘अंगारा अप्पाजी’ और ‘गोविंद पटनायक’ नामक दो भारतीय नागरिकों को आतंकवादी घोषित किये जाने की पाकिस्तान की मांग को रद्द कर दिया है।
  • पाकिस्तान ने इन दो भारतीय नागरिकों पर एक चार सदस्यीय अफगानिस्तान आधारित ‘भारतीय आतंकी सिंडिकेट’ (Indian Terror Syndicate) का हिस्सा होने का आरोप लगाया था। 
  • पाकिस्तान के अनुसार, ये भारतीय नागरिक प्रतिबंधित आतंकी समूहों ‘तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान’ (Tehreek e Taliban Pakistan- TTP) और ‘जमात-उल-अहरार’ (Jamaat-Ul-Ahrar- JuA) को पाकिस्तान में हमले करने के लिये संगठित कर रहे थे।
  • UNSC में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, जर्मनी और बेल्जियम ने इन दो भारतीयों को आतंकवादी घोषित किये जाने पर रोक लगा दी है। 

पूर्व प्रयास:  

  • इससे पहले पाकिस्तान द्वारा दो अन्य भारतीयों (वेणुमाधव डोंगरा और अजॉय मिस्त्री) को इस समिति के तहत आतंकवादी घोषित किये जाने की मांग की गई थी।   
  • हालाँकि वेणुमाधव डोंगरा के नाम पर अमेरिका द्वारा 19 जून तथा अजॉय मिस्त्री के नाम पर 16 जुलाई को अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, जर्मनी एवं बेल्जियम द्वारा रोक लगा दी गई थी।  
    • गौरतलब है कि अमेरिका, ब्रिटेन और फ्राँस ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’  के स्थाई सदस्य हैं जबकि जर्मनी तथा बेल्जियम अस्थाई सदस्य हैं।
  • पूर्व में इन्हीं पाँच देशों ने पाकिस्तान को ‘अंगारा अप्पाजी’ और ‘गोविंद पटनायक’ पर लगाए गए आरोपों के संदर्भ में साक्ष्य प्रस्तुत करने की मांग करते हुए इनके नामों पर अस्थाई रोक लगा दी थी। 
  • पाकिस्तान ने हाल ही में दावा किया कि उसने संयुक्त राष्ट्र  महासचिव की ‘आतंकवादी गतिविधियों के कारण अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को खतरा’ नामक रिपोर्ट पर सुरक्षा परिषद की खुली बहस में एक बयान दिया था, जिसमें उसने भारत पर "चार प्रकार के आतंकवाद" का आरोप लगाया था।
  • हालाँकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद अध्यक्ष ने पाकिस्तान के पत्र का संज्ञान लेने से इनकार कर दिया था, क्योंकि पाकिस्तान UNSC का सदस्य नहीं है।  

कारण:   

  • भारतीय अधिकारियों के अनुसार, पाकिस्तान का यह कदम एक बड़ी रणनीति का हिस्सा है जिसके माध्यम से वह वर्ष 2021-22 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के कार्यकाल के शुरू होने से पहले विवाद फैलाने का प्रयास कर रहा है।
  • साथ ही पाकिस्तान इन प्रयासों के माध्यम से भारत द्वारा मई 2019 में ‘यूएनएससी 1267 प्रतिबंध समिति’ के तहत ‘जैश-ए-मोहम्मद’ प्रमुख मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी नामित करने में सफल होने का बदला लेना चाहता है।

प्रभाव:

  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत को पाकिस्तान के प्रस्ताव के खिलाफ मिला इन पाँच देशों का समर्थन सुरक्षा परिषद और वैश्विक राजनीति में भारत की मज़बूत होती पहुँच का संकेत है।
  • पाकिस्तान द्वारा भारतीय नागरिकों पर लगाए गए आरोपों के रद्द होने से विश्व के समक्ष उसकी छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

चुनौतियाँ:

  • पाकिस्तान द्वारा भारतीय नागरिकों पर लगाए गए आरोपों को रद्द करने में अमेरिका, ब्रिटेन और फ्राँस प्रमुख थे जो इस बात का संकेत है कि सुरक्षा परिषद के अन्य दो स्थायी सदस्यों चीन और रूस ने पाकिस्तान के प्रस्ताव को रोकने का प्रयास नहीं किया।

‘यूएनएससी 1267 प्रतिबंध समिति’

(UNSC 1267 Sanctions Committee): 

  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की ‘1267  प्रतिबंध समिति’ को ‘अल कायदा प्रतिबंध समिति’ (Al Qaida Sanctions Committee) या ‘आईएसआईएल (दा'एश)’ [ISIL (Da'esh)]  के नाम से भी जाना जाता है।
  • इस समिति की स्थापना संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव-1267 (वर्ष 1999) के आधार पर की गई थी।
  • इस समिति में UNSC  के सभी 15 सदस्य शामिल होते हैं और सर्वसम्मति से अपना निर्णय लेते हैं।
  • यह समिति UNSC प्रस्ताव के मानदंडों के अनुरूप संबंधित व्यक्तियों और समूहों को चिन्हित करने तथा उन पर प्रतिबंधों के कार्यान्वयन की देखरेख का कार्य करती है।
  • यह समिति प्रतिबंधों के कार्यान्वयन पर सुरक्षा परिषद को वार्षिक रिपोर्ट देती है। 

आगे की राह: 

  • UNSC में पाकिस्तान के प्रस्ताव के खिलाफ भारत को अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, जर्मनी और  बेल्जियम जैसे देशों का समर्थन मिलना भारतीय विदेशी नीति की एक बड़ी सफलता है, हालाँकि भारत को अधिक-से-अधिक देशों के बीच अपनी पहुँच को मज़बूत करने का प्रयास करना चाहिये। 
  • अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध तथा भारतीय सीमा पर चीन की बढ़ती आक्रामकता के बीच भारत तथा अमेरिका के संबंध और अधिक मज़बूत हुए हैं
  • हालाँकि वर्तमान स्थिति में भारत को अमेरिका और रूस के साथ संबंध संतुलन को बनाए रखने पर विशेष ध्यान देना होगा।

स्रोत: द हिंदू


मिशन कर्मयोगी

प्रिलिम्स के लिये

राष्ट्रीय सिविल सेवा क्षमता विकास कार्यक्रम 

मेन्स के लिये

एक लोकतंत्र में सिविल सेवक की भूमिका

चर्चा में क्यों?

2 सितंबर, 2020 को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने "मिशन कर्मयोगी" (Mission Karmayogi) राष्ट्रीय सिविल सेवा क्षमता विकास कार्यक्रम (National Programme for Civil Services Capacity Building- NPCSCB) को शुरू करने की मंज़ूरी प्रदान की है।

प्रमुख बिंदु

लक्ष्य:

  • भारतीय सिविल सेवकों को और भी अधिक रचनात्मक, सृजनात्मक, विचारशील, नवाचारी, अधिक क्रियाशील, प्रगतिशील, ऊर्जावान, सक्षम, पारदर्शी और प्रौद्योगिकी समर्थ बनाते हुए भविष्य के लिये तैयार करना है।
  • इस कार्यक्रम के माध्यम से विशिष्ट भूमिका-दक्षताओं से युक्त सिविल सेवक उच्चतम गुणवत्ता मानकों वाली प्रभावकारी सेवा प्रदायगी सुनिश्चित करने में समर्थ होंगे। 

उद्देश्य:

  • कार्य संस्कृति में परिवर्तन को व्यवस्थित रूप से जोड़कर, सार्वजनिक संस्थानों का सुदृढ़ीकरण कर और सिविल सेवा क्षमता के निर्माण के लिये आधुनिक प्रौद्योगिकी को अपनाकर सिविल सेवा क्षमता में रूपांतरणकारी बदलाव करना ताकि नागरिकों को प्रभावकारी रूप से सेवाएँ मुहैया कराना सुनिश्चित किया जा सके।

मुख्य विशेषताएँ

  • इस कार्यक्रम को एकीकृत सरकारी ऑनलाइन प्रशिक्षण-आईगॉट कर्मयोगी प्लेटफार्म की स्थापना करके कार्यान्वित किया जाएगा। इस कार्यक्रम के मुख्य  मार्गदर्शक सिद्धांत निम्नानुसार होंगे:
    1. ‘नियम आधारित’ मानव संसाधन प्रबंधन से ‘भूमिका आधारित’ प्रबंधन के परिवर्तन को सहयोग प्रदान करना। सिविल सेवकों को उनके पद की आवश्यकताओं के अनुसार आवंटित कार्य को उनकी क्षमताओं के साथ जोड़ना।
    2. ‘ऑफ साइट सीखने की पद्धति’ को बेहतर बनाते हुए ‘ऑन साइट सीखने की पद्धति’ पर बल देना।
    3. शिक्षण सामग्री, संस्थानों तथा कार्मिकों सहित साझा प्रशिक्षण अवसंरचना परितंत्र का निर्माण करना।
    4. सिविल सेवा से संबंधित सभी पदों को भूमिकाओं, गतिविधियों तथा दक्षता के ढाँचे (Framework of Roles, Activities and Competencies-FRAC) संबंधी दृष्टिकोण के साथ अद्यतन करना और प्रत्येक सरकारी निकाय में चिन्हित FRAC के लिये प्रासंगिक अधिगम विषय-वस्तु का सृजन करना और प्रदान करना।
    5. सभी सिविल सेवकों को आत्म-प्रेरित एवं अधिदेशित सीखने की प्रक्रिया पद्धति में अपनी व्यवहारात्मक, कार्यात्मक और कार्यक्षेत्र से संबंधित दक्षताओं को निरंतर विकसित एवं सुदृढ़ करने का अवसर उपलब्ध कराना।
    6. प्रत्येक कर्मचारी के लिये वार्षिक वित्तीय अंशदान के माध्यम से सीखने की प्रक्रिया के साझा एवं एक समान परिवेश तंत्र के सृजन और साझाकरण के लिये अपने-अपने संसाधनों को सीधे तौर पर निवेश करने हेतु सभी केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों तथा उनके संगठनों को समर्थ बनाना।
    7. सार्वजनिक प्रशिक्षण संस्थानों, विश्वविद्यालयों, स्टार्ट-अप और एकल विशेषज्ञों सहित सीखने की प्रक्रिया संबंधी सर्वोत्तम विषय-वस्तु् के निर्माताओं को प्रोत्साहित करना और साझेदारी करना।
    8. क्षमता विकास, विषय-वस्तु निर्माण, उपयोगकर्ता फीडबैक और दक्षताओं की मैपिंग एवं नीतिगत सुधारों के लिये क्षेत्रों की पहचान संबंधी विभिन्न-पक्षों के संबंध में आईगॉट-कर्मयोगी द्वारा प्रदान किये गए आँकड़ों का विश्लेषण करना।

आईगॉट- कर्मयोगी प्लेटफॉर्म (iGOT-Karmayogi):

  • यह भारत में दो करोड़ से भी अधिक कार्मिकों की क्षमताओं को बढ़ाने के लिये व्यापक और अत्याधुनिक संरचना सुलभ कराएगा।
  • इस प्लेटफॉर्म का विषय-वस्तु (कंटेंट) के संदर्भ में एक आकर्षक एवं विश्व स्तरीय बाज़ार के रूप में विकसित होने की उम्मीद है जहाँ सावधानीपूर्वक व्यवस्थित और पुनरीक्षित डिजिटल ई–लर्निंग सामग्री उपलब्ध कराई जाएगी।
  • क्षमता विकास के अलावा, सेवा मामलों जैसे कि परिवीक्षा अवधि के बाद पुष्टीकरण या स्थायीकरण, तैनाती, कार्य निर्धारण और रिक्तियों की अधिसूचना इत्यादि को अंतत: प्रस्तावित दक्षता या योग्यता संरचना के साथ एकीकृत कर दिया जाएगा।
  • राष्ट्रीय सिविल सेवा क्षमता विकास कार्यक्रम (NPCSCB) को निम्नलिखित संस्थागत ढाँचे के साथ शुरू किया जाएगा:

1. प्रधानमंत्री की सार्वजनिक मानव संसाधन परिषद:

  • प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में चयनित केंद्रीय मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, प्रख्यात सार्वजनिक मानव संसाधन पेशेवरों, विचारकों, वैश्विक विचारकों और लोक सेवा प्रतिनिधियों वाली एक सार्वजनिक मानव संसाधन परिषद शीर्ष निकाय के तौर पर कार्य करेगी जो सिविल सेवा-सुधार कार्य और क्षमता विकास को कार्यनीतिक दिशा प्रदान करेगी।

2. क्षमता विकास आयोग:

  • एक क्षमता विकास आयोग स्थापित करने का प्रस्ताव है ताकि सहयोगात्मक और सह-साझाकरण के आधार पर क्षमता विकास परिवेश या व्यवस्था के प्रबंधन और नियमन में एकसमान दृष्टिकोण सुनिश्चित किया जा सके।
  • आयोग की भूमिका निम्नानुसार होगी-
    • वार्षिक क्षमता विकास योजनाओं का अनुमोदन करने में PM सार्वजनिक मानव संसाधन परिषद की सहायता करना।
    • सिविल सेवा क्षमता विकास से जुड़े सभी केंद्रीय प्रशिक्षण संस्थानों का कार्यात्मक पर्यवेक्षण करना।
    • आंतरिक एवं बाह्य संकाय और संसाधन केंद्रों सहित साझा शिक्षण संसाधनों को सृजित करना।
    • हितधारक विभागों के साथ क्षमता विकास योजनाओं के कार्यान्वयन का समन्वय और पर्यवेक्षण करना।
    • प्रशिक्षण एवं क्षमता विकास, शिक्षण शास्त्र और पद्धति के मानकीकरण पर सिफारिशें पेश करना।
    • सभी सिविल सेवाओं में करियर के मध्‍य में सामान्य प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिये मानदंड निर्धारित करना।
    • सरकार को मानव संसाधन के प्रबंधन और क्षमता विकास के क्षेत्रों में आवश्यक नीतिगत उपाय सुझाना। 

3. डिजिटल परिसंपत्तियों के स्वामित्व तथा प्रचालन, ऑनलाइन प्रशिक्षण हेतु एक प्रौद्योगिकीय प्लेटफार्म-विशेष प्रयोजन कंपनी:

  • कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 8 के अधीन NPCSCB के लिये पूर्ण स्वामित्व वाली विशेष प्रयोजन कंपनी की स्थापना की जाएगी।
  • SPV एक ‘गैर-लाभ अर्जक’ कंपनी होगी जो आईगॉट- कर्मयोगी प्लेटफॉर्म का स्वामित्व रखेगी और प्रबंधन करेगी। SPV विषय-वस्तु बाज़ार का निर्माण और संचालन करेगी और यह विषय-वस्तु वैधीकरण, स्वतंत्र निरीक्षण आकलन एवं टेलीमिट्री डेटा उपलब्धता से संबंधित आईगॉट-कर्मयोगी प्लेटफॉर्म की प्रमुख व्यावसायिक सेवाओं का प्रबंधन भी करेगी। यह भारत सरकार की ओर से सभी बौद्धिक संपदा अधिकारों का स्वामित्व रखेगी। 
  • प्रमुख कार्य-निष्पादन संकेतकों का डैशबोर्ड अवलोकन सृजित करने के लिये आईगॉट– कर्मयोगी प्लेटफार्म के सभी उपयोगकर्ताओं (यूज़र) के कार्य-निष्पादन मूल्यांकन हेतु एक समुचित निगरानी और मूल्यांकन रूपरेखा भी बनाई जाएगी।

4. कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में समन्वयन इकाई:

  • कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक समन्वय इकाई गठित की जाएगी जिसमें चुनिंदा सचिव और कैडर को नियंत्रित करने वाले अधिकारी शामिल होंगे।

वित्तीय निहितार्थ:

  • लगभग 46 लाख केंद्रीय कर्मचारियों को शामिल करने के लिये वर्ष 2020-2021 से लेकर 2024-25 तक (5 वर्षों की अवधि के दौरान) 510.86 करोड़ रुपए का व्यय किया जाएगा।

स्रोत: PIB


उप-श्रेणीकरण की अवधारणा और उप-श्रेणीकरण आयोग

प्रिलिम्स के लिये

आरक्षण का उप-वर्गीकरण, OBC की केंद्रीय सूची, OBC आरक्षण

मेन्स के लिये

OBC का उप-श्रेणीकरण उसका महत्त्व और आवश्यकता, भारत में OBC समुदाय का प्रतिनिधित्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने एक मामले की सुनवाई करते हुए अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के आरक्षण के उप-श्रेणीकरण पर कानूनी बहस को पुनः शुरू कर दिया है। जहाँ एक ओर SC और ST के आरक्षण पर सर्वोच्च न्यायालय में बहस हो रही है, वहीं लगभग तीन वर्ष पूर्व गठित एक आयोग अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के उप-श्रेणीकरण का भी परीक्षण कर रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के उप-श्रेणीकरण का परीक्षण करने हेतु गठित आयोग के कार्यकाल को 6 माह के लिये बढ़ा दिया था।

 अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) का उप-श्रेणीकरण

  • नियमों के अनुसार, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को केंद्र सरकार के तहत नौकरियों और शिक्षा में 27 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है।
  • उप-श्रेणीकरण का प्रश्न इस धारणा से उत्पन्न होता है कि OBC की केंद्रीय सूची में शामिल 2,600 से अधिक समुदायों में से केवल कुछ ही संपन्न समुदाय इस 27 प्रतिशत आरक्षण का लाभ प्राप्त कर पाए हैं।
  • जब सरकार ने देश के अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिये आरक्षण की व्यवस्था की थी तो अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के भी अंदर आने वाले कुछ कमज़ोर वर्गों के लिये किसी भी प्रकार की कोई विशिष्ट व्यवस्था नहीं की गई थी, जिसका परिणाम यह हुआ कि अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) का आरक्षण केवल कुछ खास और सामाजिक-आर्थिक रूप से संपन्न समुदायों तक ही सीमित हो कर रह गया।
  • दरअसल अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में इतने अधिक समुदाय (2,600 से अधिक) होने के कारण उनके बीच सामाजिक-आर्थिक अंतराल होना स्वाभाविक है। अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में ऐसे कई समुदाय हैं जो इस वर्ग के तहत आने वाले कुछ अन्य समुदायों की अपेक्षा सामाजिक-आर्थिक तौर पर अधिक संपन्न और उन्नत हैं।
  • यही कारण है कि देश में OBC के उप-श्रेणीकरण अर्थात् सभी तक आरक्षण का लाभ पहुँचाने के लिये OBC के भीतर भी कुछ श्रेणियाँ बनाने की मांग बीते कई वर्षों से की जा रही है।

उप-श्रेणीकरण के परीक्षण हेतु आयोग

  • अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के उप-श्रेणीकरण के परीक्षण हेतु सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति जी. रोहिणी की अध्यक्षता में गठित इस आयोग ने 11 अक्तूबर, 2017 से कार्य करना शुरू किया था।
  • इस आयोग का गठन शुरुआत में 12 सप्ताह के कार्यकाल के लिये किया गया था, जिसे बाद में कई बार विस्तारित किया गया। आँकड़े बताते हैं कि नवंबर 2019 तक सरकार ने वेतन और अन्य खर्चों समेत आयोग पर 1.70 करोड़ रुपए खर्च किये हैं।

आयोग के विचारार्थ विषय (TOR)

आयोग का गठन मुख्यतः तीन विचारार्थ विषयों के साथ किया गया था, किंतु 22 जनवरी, 2020 को आयोग का चौथा विचारार्थ विषय शामिल किया गया।

  • अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की केंद्रीय सूची में शामिल जातियों/समुदाओं के बीच आरक्षण के लाभ के असमान वितरण की जाँच करना।
  • OBC के भीतर उप-श्रेणीकरण के लिये वैज्ञानिक दृष्टिकोण से एक तंत्र, क्रियाविधि, मापदंड और पैरामीटर आदि का निर्माण करना।
  • OBC की केंद्रीय सूची में संबंधित जातियों/समुदायों/उप-जातियों की पहचान करना और उन्हें संबंधित उप-श्रेणी में वर्गीकृत करना।
  • OBC की केंद्रीय सूची में मौजूद विभिन्न प्रविष्टियों का अध्ययन करना और किसी भी पुनरावृत्ति, अस्पष्टता या विसंगति और वर्तनी या प्रतिलेखन की त्रुटियों में सुधार की सिफारिश करना।

आयोग का अब तक का कार्य

  • 30 जुलाई, 2019 को सरकार को लिखे अपने पत्र में आयोग ने कहा था उसने इस संबंध में अपनी रिपोर्ट का मसौदा तैयार कर लिया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि इस रिपोर्ट के व्यापक राजनीतिक परिणाम हो सकते हैं और इसे न्यायिक समीक्षा का भी सामना करना पड़ सकता है।
  • आयोग का वर्तमान कार्यकाल 31 जनवरी, 2021 को समाप्त हो रहा है यानी यदि कार्यकाल का विस्तार नहीं किया गया तो आयोग 31 जनवरी, 2021 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।

आयोग के समक्ष चुनौतियाँ

  • आयोग के समक्ष एक सबसे बड़ी चुनौती यह है कि नौकरियों और दाखिलों में OBC समुदाय के प्रतिनिधित्त्व की तुलना करने के लिये आयोग के पास OBC समुदाय की आबादी से संबंधी आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, इस संबंध में सामाजिक-आर्थिक और जाति आधारित जनगणना (Socio Economic and Caste Census-SECC) के आँकड़ों को विश्वसनीय नहीं माना जा सकता है।
  • हालाँकि 31 अगस्त, 2018 को तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने घोषणा की थी कि वर्ष 2021 की जनगणना में OBC से संबंधित डेटा एकत्रित किया जाएगा, किंतु इसके बाद से अब तक इस दिशा में कोई घोषणा नहीं हुई है।

आयोग का अब तक का अध्ययन

  • वर्ष 2018 में आयोग ने विगत पाँच वर्षों में OBC कोटे के तहत दी गईं 1.3 लाख केंद्रीय नौकरियों और विगत तीन वर्षों में देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों, IITs, NITs, IIMs और AIIMS समेत विभिन्न केंद्रीय उच्च शिक्षा संस्थानों में OBC कोटे के लिये गए दाखिले के आँकड़ों का विश्लेषण किया था और विश्लेषण में सामने आया था कि
    • 24.95 प्रतिशत नौकरियाँ और सीटें सिर्फ 10 OBC समुदायों के पास ही हैं;
    • 983 OBC समुदायों यानी कुल OBC समुदायों के 37 प्रतिशत समुदायों का नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में शून्य प्रतिनिधित्त्व है;
    • 994 OBC उप-जातियों का नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में कुल 2.68 प्रतिशत का प्रतिनिधित्त्व है;
    • 97 प्रतिशत नौकरियाँ और शैक्षणिक संस्थानों की सीटें OBC की केंद्रीय सूची में शामिल 25 प्रतिशत जातियों/समुदायों/उप-जातियों के पास हैं;

केंद्रीय नौकरियों में OBC भर्ती का स्तर 

  • कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के पास मौजूद आँकड़ों के अनुसार, केंद्र सरकार की ग्रुप-A की सेवाओं में OBC का प्रतिनिधित्त्व 13.01 प्रतिशत, ग्रुप-B में 14.78 प्रतिशत, ग्रुप-C (सफाई कर्मचारियों के अतिरिक्त) में 22.65 प्रतिशत और ग्रुप-C (सफाई कर्मचारी) में 14.46 प्रतिशत है।
  • आँकड़े से पता चला कि 95.2 प्रतिशत प्रोफेसर, 92.9 प्रतिशत एसोसिएट प्रोफेसर और 66.27 प्रतिशत सहायक प्रोफेसर सामान्य श्रेणी से थे, इसमें जिसमें SC, ST और OBC समुदाय के वे लोग भी शामिल हैं, जो आरक्षण की सीमा में नहीं आते हैं।
    • इस प्रकार उच्च शिक्षण संस्थानों में SC, ST और OBC समुदाय का प्रतिनिधित्त्व काफी कम है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन कार्यों में अधिक भाषाओं के प्रयोग की आवश्यकता

प्रिलिम्स के लिये:

राजभाषा अधिनियम-1963, राजभाषा पर समिति, राजभाषा संबंधी संवैधानिक प्रावधान, आठवीं सूची में शामिल भाषाएँ

मेन्स के लिये:

शासन कार्यों में अधिक भाषाओं को शामिल करने की आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश ने शासन कार्यों में हिंदी और अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओं को भी शामिल किये जाने की आवश्यकता बताई है। 

प्रमुख बिंदु:

  • सरकार को अन्य भाषाओं को शासन कार्यों में शामिल करने के लिये ‘राजभाषा अधिनियम’ (Official Languages Act)- 1963 में संशोधन करने की आवश्यकता होगी।
  • हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने ‘पर्यावरणीय प्रभाव आकलन’ (Environment Impact Assessment-EIA) अधिसूचना- 2020 का अनुवाद, संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल सभी 22 भाषाओं में अनुवाद करने का निर्णय दिया था।
  • भारत संघ द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय की वैधता को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी।

जम्मू और कश्मीर में नवीन आधिकारिक भाषाएँ:

  • हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जम्मू और कश्मीर में आधिकारिक भाषाओं के रूप में उर्दू और अंग्रेजी के अलावा हिंदी, कश्मीरी और डोगरी को मान्यता देने वाले विधेयक को मंज़ूरी दे दी है।
  • इससे पहले राज्य में केवल अंग्रेजी और उर्दू को आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त थी। 
    • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि जम्मू-कश्मीर को दो भागों में विभक्त करने वाले जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक- 2019 को 5 अगस्त को राज्यसभा में पेश किया था। इसमें लद्दाख को अलग कर केंद्रशासित क्षेत्र बनाया गया था। 

राजभाषा अधिनियम-1963:

  • राजभाषा अधिनियम, 1963 ( वर्ष 1967 में संशोधन) निम्नलिखित उद्देश्यों के लिये उपयोग की जाने वाली भाषाओं को निर्धारित करता है:
    • संघ के आधिकारिक उद्देश्य के लिये भाषा;
    • संसदीय कार्यवाही के लिये भाषा;
    • केंद्रीय और राज्य अधिनियमों के लिये भाषा;  
    • उच्च न्यायालयों में निश्चित उद्देश्य के लिये भाषा।

राजभाषा पर समिति:

  • समिति का यह कर्तव्य होगा कि वह संघ के आधिकारिक उद्देश्यों के लिये हिंदी के उपयोग में हुई प्रगति की समीक्षा करे तथा आवश्यक सिफारिशों के साथ इसे राष्ट्रपति को एक रिपोर्ट सौंपे। 
  • राष्ट्रपति द्वारा रिपोर्ट को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा तथा इसे सभी राज्य सरकारों को भेजा जाएगा। 
  • राजभाषा समिति में तीस सदस्य शामिल होते हैं।  जिनमें से 20 सदस्य लोक सभा से तथा दस सदस्य राज्य सभा से होते हैं।  
  • सदस्यों का चुनाव 'आनुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल हस्तांतरणीय मत प्रणाली' के माध्यम से किया जाता है। 

संवैधानिक प्रावधान:

  • भारतीय संविधान के भाग-17 में अनुच्छेद 343 से 351 तक राजभाषा से संबंधित उपबंध शामिल किये गए हैं। राजभाषा के उपबंध चार शीर्षकों; संघ की भाषा, क्षेत्रीय भाषाएँ, न्यायपालिका एवं विधि के पाठ एवं अन्य विशेष निर्देशों की भाषा के रूप में शामिल किये गए हैं।

संघ की भाषा:   

  • संविधान लागू होने के पंद्रह वर्षों (वर्ष 1950 से 1965 के बीच की अवधि) के बाद भी हिंदी के अलावा अंग्रेजी भाषा का प्रयोग आधिकारिक रूप से जारी रहेगा। इसमें निम्नलिखित कार्य शामिल हैं:
    • संघ के सभी आधिकारिक उद्देश्यों के लिये भाषा। 
    • संसदीय कार्यवाही संचालन की भाषा। 

क्षेत्रीय भाषा:

  • संविधान में राज्यों के लिये किसी विशेष भाषा का उल्लेख नहीं किया गया। किसी राज्य की विधायिका उस राज्य मे एक या अधिक भाषा अथवा हिंदी का चुनाव ‘आधिकारिक भाषा’ के रूप में कर सकती है।
  • राज्यों द्वारा आधिकारिक भाषा का चुनाव संविधान की आठवी अनुसूची में उल्लिखित भाषाओं तक सीमित नहीं है। 
  • केंद्र तथा राज्यों अथवा दो या अधिक राज्यों के बीच संवाद के रूप में अंग्रेजी अथवा हिंदी (हिंदी के प्रयोग के लिये सहमति आवश्यक) का प्रयोग किया जा सकेगा। 

न्यायपालिका की भाषा एवं विधि पाठ:

  • जब तक संसद अन्यथा उपबंध नहीं करती है:
    • न्यायपालिका (सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय) की कार्यवाही अंग्रेजी में होगी। 
    • केंद्र स्तर पर विधेयकों, अधिनियम, अध्यादेश, नियमों, उप-नियमों की का आधिकारिक पाठ अंग्रेजी में होगा।
  • हालाँकि राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से हिंदी अथवा किसी अन्य राजभाषा को उच्च न्यायालय की कार्यवाही की भाषा का दर्जा दे सकता है। हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय में हिंदी के प्रयोग के लिये ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की गई है। 

विशेष निर्देश: 

  • संविधान में भाषायी अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा तथा हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिये कुछ विशिष्ट निर्देश यथा- भाषायी अल्पसंख्यकों की शिकायतों का निवारण, मातृभाषा में शिक्षा आदि दिये गए हैं। 

आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाएँ: 

  • संविधान की आठवीं सूची में 22 भाषाएँ (मूल रूप से 14) शामिल हैं।  ये हैं- असमिया, बंगाली (बांग्ला), बोडो, डोगरी (डोंगरी), गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मैतेई (मणिपुरी), मराठी, नेपाली, ओडिया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलुगु और उर्दू।

भारत में भाषायी विविधता:

  • यूनेस्को’ ने भारत को सबसे अधिक भाषाई रूप से विविध देशों में से एक के रूप में मान्यता दी है। जिसमें 22 अनुसूचित भाषाएँ, सैकड़ों स्थानीय भाषाएँ और बोलियाँ शामिल हैं। 
  • भाषा केवल संचार का एक साधन नहीं है, बल्कि वे भारत की समृद्ध संस्कृति, विरासत और परंपराओं का प्रतीक हैं। 

Linguistic-Map

आगे की राह:

  • सरकार को लोगों की आकांक्षाओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिये। लोगों पर किसी एक भाषा को जबरदस्ती थोपने के किसी भी प्रयास को रोका जाना चाहिये।
  • आधिकारिक कार्यों में आठवीं अनुसूची में शामिल अधिक-से-अधिक भाषओं के प्रयोग को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये तथा स्थानीय भाषाओं में अनुवाद करने की दिशा में व्यापक मानव-कौशल को प्रोत्साहन देना चाहिये। 
  • कृत्रिम बुद्धिमता जैसी उन्नत तकनीकों का उपयोग प्राचीन क्षेत्रीय ग्रंथों के अनुवाद और डिजिटलीकरण के लिये किया जा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


चीन द्वारा अपने प्रभुत्त्व विस्तार हेतु गैर-सैन्य रणनीति का प्रयोग

प्रिलिम्स के लिये: 

डीओडी चीन सैन्य शक्ति रिपोर्ट-2020, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना

मेन्स के लिये:

वैश्विक शांति और चीन सैन्य शक्ति में वृद्धि, चीन-अमेरिका विवाद, हिंद-प्रशांत क्षेत्र से संबंधित मुद्दे   

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिकी कांग्रेस के रक्षा विभाग से प्रकाशित एक वार्षिक रिपोर्ट में चीन द्वारा अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा और अपने प्रभुत्त्व विस्तार हेतु सैन्य अड्डों के विस्तार तथा गैर-सैन्य रणनीतियों के प्रयोग की बात कही गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • अमेरिकी रक्षा विभाग द्वारा जारी ‘डीओडी चीन सैन्य शक्ति रिपोर्ट-2020’ (DOD China Military Power Report-2020) के अनुसार, चीनी नेताओं द्वारा चीन के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिये सशस्त्र संघर्ष जैसी रणनीति का उपयोग किया जाता है। 
    • रिपोर्ट में इस संदर्भ में  भारत और भूटान सीमा पर चीन के विवाद का उदाहरण दिया गया है।  
  • रिपोर्ट के अनुसार, चीन अपनी सैन्य शक्ति के प्रभाव को अधिक दूरी तक स्थापित करने के लिये देश के बाहर मज़बूत सैन्य अड्डों को स्थापित करने की कोशिश कर रहा है। 
  •  इस रिपोर्ट में कई सैन्य आधुनिकीकरण क्षेत्रों में चीनी सेना को अमेरिकी सेना के बराबर (कम-से-कम) ही उन्नत बताया गया है, जिसमें जहाज़ निर्माण (Shipbuilding), भूमि आधारित पारंपरिक बैलिस्टिक और क्रूज़ मिसाइल तथा एकीकृत वायु रक्षा प्रणाली आदि शामिल हैं।
  • रिपोर्ट के अनुसार, चीन अपनी पहल/उपक्रमों की आलोचनाओं को नियंत्रित करने के लिये बहुपक्षीय संगठनों का भी उपयोग करता है।

 गैर-युद्ध सैन्य गतिविधियों का प्रयोग:  

  • इस रिपोर्ट में गैर-युद्ध सैन्य गतिविधियों (Non War Military Activities- NWMA) को चीनी सेना द्वारा प्रयोग किये जाने वाले दो प्रकार (दूसरा युद्ध) के सैन्य अभियानों का हिस्सा बताया गया है।
  • रिपोर्ट के अनुसार,  NWMA के तहत विशेष तौर पर ऐसी गतिविधियों/ऑपरेशन को शामिल किया जा सकता है जिसमें चीनी सेना अपने देश की संप्रभुता और राष्ट्रीय हितों की रक्षा हेतु दूसरे देशों या इकाइयों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष से नीचे रहते हुए धमकियों या हिंसा का प्रयोग करती है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, चीन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका और उसके सहयोगियों तथा अन्य देशों के साथ ऐसी गतिविधियों में शामिल रहा है।
  • चीन द्वारा ऐसी रणनीति के प्रयोग का उदाहरण दक्षिण और पूर्वी चीन सागर में अपने क्षेत्रीय और समुद्री दावों के साथ-साथ भारत और भूटान के साथ चीन की सीमा पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। 
  • रिपोर्ट में वर्ष 2009 में अमेरिका के निगरानी जहाज़ ‘यूएसएनएस इंपेकेबल’ (USNS Impeccable) के साथ गतिरोध और वर्ष 2012 के ‘स्कारबोरो रीफ गतिरोध’ (Scarborough Reef standoff) में  ‘पीपुल्स आर्म्ड फोर्सेस मैरीटाइम मिलिशिया’ (People’s Armed Forces Maritime Militia- PAFMM)  की भूमिका को रेखांकित किया गया है। 

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चीनी सेना का विस्तार:

  • रिपोर्ट में इस बात की भी संभावना व्यक्त की गई है कि  चीन अपनी थल , वायु और नौसैनिक सेनाओं को अतिरिक्त सैन्य रसद सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिये ‘जिबूती’ (Djibouti) के अतिरिक्त अन्य नये विदेशी सैन्य अड्डों की स्थापना की योजना बना रहा है।   
  • चीन द्वारा सैन्य अड्डे की स्थापना हेतु म्यांमार, थाईलैंड, सिंगापुर, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, श्रीलंका, संयुक्त अरब अमीरात, केन्या, सेशेल्स, तंजानिया, अंगोला और ताजिकिस्तान जैसे देशों के चुनाव की संभावना व्यक्त की गई है।

विकास योजनाओं और आर्थिक प्रभाव का प्रयोग:

  • रिपोर्ट के अनुसार, ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना’ (Belt and Road’ initiative- BRI) के माध्यम से अन्य देशों में भी (चीन के अतिरिक्त) चीन की सैन्य पहुँच का विस्तार होगा।
    • रिपोर्ट के अनुसार, चीन कई अन्य मामलों में दूसरे देशों का समर्थन प्राप्त करने के लिये BRI और अन्य परियोजनाओं से उन देशों पर प्राप्त अपने आर्थिक प्रभाव का उपयोग करता है।  उदाहरण के लिये-उइगर मुस्लिमों (Uighur Muslim) के संदर्भ में कई मुस्लिम और गैर-मुस्लिम देशों ने चीन सरकार की हिंसक कार्रवाई को अनदेखा किया है।
  • साथ ही चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) में शामिल देशों में भी अपने घरेलू नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम 'बाइडू' (BeiDou) के उपयोग को बढ़ावा दे रहा है

बहुपक्षीय संगठनों का प्रयोग:  

  • रिपोर्ट के अनुसार, चीन बहुपक्षीय अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का प्रयोग अपने राजनीतिक प्रभाव को मज़बूत और नए अवसरों को उत्पन्न करने, अपने विकास के हितों को आगे करने तथा ऐसे रणनीतिक संदेशों को बढ़ावा देने के लिये करता है जो इसे एक जिम्मेदार विश्व स्तरीय राष्ट्र के रूप में चित्रित करते हैं।
  • इस संदर्भ में रिपोर्ट में ‘ब्रिक्स’ (BRICS) और ‘शंघाई सहयोग संगठन’ ( Shanghai Cooperation Organization- SCO) का उदाहरण दिया गया है।  

भारत चीन विवाद:  

  •  इस रिपोर्ट में वर्ष 2019 के दौरान भारत-चीन सीमा पर विवादित क्षेत्र में द्विपक्षीय सैन्य गतिविधियों  का जिक्र है जिसमें दोनों देशों ने तनाव को बढ़ने से रोके रखा।
    • गौरतलब है कि इस रिपोर्ट में वर्ष 2019 की गतिवधियों की चर्चा की गई है अतः इसमें वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन के हालिया तनाव को शामिल नहीं किया गया है।

निष्कर्ष:   

  • यह रिपोर्ट हाल के वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न क्षेत्रों में चीन की बढ़ती आक्रामकता से जुड़े तथ्य प्रस्तुत करती है
  • पिछले कुछ वर्षों में चीन की गैर-सैन्य गतिविधियों के तहत दक्षिण चीन सागर में इंडोनेशिया और फिलीपींस सहित अन्य आसियान (ASEAN) देशों की समुद्री सीमा के साथ प्रशांत महासागर में इक्वाडोर के समुद्री क्षेत्र में चीनी मछुआरों की सक्रियता में वृद्धि देखने को मिली है।
  • इसके साथ ही चीन BRI परियोजना के साथ अन्य विकास योजनाओं के लिये भी कई देशों को ऋण उपलब्ध करा कर वहाँ की स्थानीय राजनीति में अपने हस्तक्षेप को बढ़ाया है या कई मामलों में परियोजनाओं को अपने नियंत्रण में ले लिया है, श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर चीन का कब्जा इसका एक प्रमुख उदाहरण है।
  • वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीन विवाद के साथ भूटान सीमा पर चीन का हस्तक्षेप क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता को दर्शाता है।   

आगे की राह:

  • हिंद-महासागर क्षेत्र के साथ ही विश्व के अन्य हिस्सों में चीन की बढ़ती सैन्य और गैर-सैन्य गतिविधियाँ क्षेत्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शांति एवं स्थिरता की स्थापना के संदर्भ में एक बड़ी चिंता का विषय है।
  • दक्षिण चीन सागर में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप को नियंत्रित करने के लिये क्षेत्र के देशों को साथ मिलकर सहयोग बढ़ाना चाहिये तथा ‘संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि’ (UN Convention on the Law of the Sea-UNCLOS), 1982 के तहत सभी देशों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिये।
  • हिंद महासागर में चीन के हस्तक्षेप को नियंत्रित करने के लिये भारत को अमेरिका, रूस ऑस्ट्रेलिया आदि देशों के सहयोग से अपनी नौसैनिक गतिविधियों में वृद्धि करनी चाहिये।
  • हाल के वर्षों में चीन द्वारा सैन्य हथियारों के विकास को नियंत्रित करने के लिये चीन को ‘नई सामरिक शस्त्र न्यूनीकरण संधि’ (Strategic Arms Reduction Treaty-START) जैसी शस्त्र नियंत्रण संधि में शामिल किया जाना चाहिये, साथ ही वैश्विक शांति और स्थिरता को बनाए रखने के लिये चीन को भी इस पहल में अपना सहयोग देना चाहिये।  

स्रोत:  द हिंदू


COVID-19 के आर्थिक प्रभाव का मूल्यांकन: DSGE मॉडल

प्रिलिम्स के लिये

डायने मिक स्टोकैस्टिक जनरल इक्विलिब्रियम मॉडल

मेन्स के लिये 

COVID-19 का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले COVID-19 और लॉकडाउन के संभावित प्रभावों का एक अस्थायी और अनुमानित मूल्यांकन प्रदान करने के लिये ‘डायनेमिक स्टोकैस्टिक जनरल इक्विलिब्रियम’ (Dynamic Stochastic General Equilibrium- DSGE) मॉडल का उपयोग कर रहा है।

प्रमुख बिंदु

DSGE मॉडल:

  • DSGE मॉडलिंग समष्टि अर्थव्यवस्था अर्थात् मैक्रो इकॉनॉमिक्स में प्रयुक्त होने वाली एक विधि है जो आर्थिक विकास और व्यापार चक्र एवं आर्थिक नीति के प्रभावों को समझाने के लिये एप्लाइड जनरल इक्विलिब्रियम थ्योरी (General Equilibrium Theory) तथा आर्थिक सिद्धांतों पर आधारित इकोनोमेट्रिक मॉडल (Econometric Model) के माध्यम से आर्थिक घटनाओं को स्पष्ट करती है।
    • इकोनोमेट्रिक, आर्थिक संबंधों को अनुभवजन्य सामग्री प्रदान करने के लिये आर्थिक आँकड़ों हेतु सांख्यिकीय विधियों का अनुप्रयोग है।
    • जनरल इक्विलिब्रियम थ्योरी एक व्यापक आर्थिक सिद्धांत है जो यह बताता है कि अर्थव्यवस्था में बाज़ार के साथ मांग और आपूर्ति किस प्रकार गतिशील रूप से कार्य करती है और अंततः कीमतों के संतुलन यानी इक्विलिब्रियम में परिणत हो जाती है।
  • RBI ने लोगों, फर्मों और सरकार को अर्थव्यवस्था के तीन मुख्य वाहक माना है।
  • लॉकडाउन के कारण, लोगों को घर पर रहना पड़ता है, जिससे फर्मों में श्रम की आपूर्ति कम हो जाती है और गैर-आवश्यक वस्तुओं की अनुपलब्धता के कारण खपत और आय में गिरावट आती है।

DSGE मॉडल के अंतर्गत संभावित स्थिति:

  • पहला परिदृश्य लॉकडाउन-I, इसने श्रम आपूर्ति और इसकी उत्पादकता को कम करके अर्थव्यवस्था के आपूर्ति पक्ष को बुरी तरह से प्रभावित किया।
  • दूसरा परिदृश्य यानी लॉकडाउन-II, इसमें सीमांत लागत में वृद्धि हुई यानी किसी एक वस्तु या सेवा की एक और इकाई के उत्पादन में लगने वाली अतिरिक्त लागत।
    • पहले और दूसरे दोनों परिदृश्यों में मुद्रास्फीति की दर में कटौती होने की संभावना है।
    • पहले परिदृश्य में उत्पादन में हुई कटौती कम गंभीर है, लेकिन कोरोना वायरस के संक्रमण में हुई वृद्धि के कारण मांग में अधिक संकुचन दिखाई देता है।
    • दूसरे परिदृश्य में, कंपनियाँ उत्पादन पर अंकुश लगाएंगी क्योंकि लाभ प्रभावित होगा, मज़दूरी में कम वृद्धि होगी और अर्थव्यवस्था एक बड़े संकुचन के दौर से गुजरेगी।
    • हालाँकि लॉकडाउन के दौरान महामारी की चपेट में आए लोगों के ठीक होने की दर तीव्र है क्योंकि लॉकडाउन के अनुपालन के चलते लोग एक दूसरे के संपर्क में अधिक नहीं आ पाए।
  • RBI ने उपरोक्त दोनों परिदृश्यों के लिये DSGE मॉडल की जाँच यह मानकर की है कि: 
    • अगस्त 2020 की दूसरी छमाही में COVID-19 संक्रमण अपने चरम पर रहा।
    • जब अर्थव्यवस्था सबसे बुरी तरह प्रभावित होती है, तो उत्पादन अंतराल (वास्तविक और संभावित उत्पादन के बीच का अंतर) संभावित उत्पादन के लगभग 12% तक कम हो जाता है।
  • दोनों लॉकडाउन की स्थितियों में, 2020-21 की अप्रैल-जून की तिमाही में आर्थिक गतिविधियाँ निचले स्तर पर पहुँच गई और फिर इसमें सुधार देखने को मिला।
  • तीसरे परिदृश्य में जब सरकार लॉकडाउन लागू नहीं करती है, महामारी बहुत व्यापक रूप धारण करते हुए तेज़ी से फैलती है और जनवरी 2021 की दूसरी छमाही में अर्थव्यवस्था की विकास दर बहुत धीमी गति से रिकवरी करती है।
    • यह स्थिति लगातार श्रम की कमी का कारण बनेगी और आपूर्ति के प्रभावित होने से मुद्रास्फीति बढ़ेगी और उत्पादन में कमी आएगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस