डेली न्यूज़ (02 Jul, 2020)



अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के लिये फैलोशिप कार्यक्रम

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय चिकित्सा विज्ञान अकादमी,राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड

मेन्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के लिये फैलोशिप कार्यक्रम 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) द्वारा अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के लिये फैलोशिप कार्यक्रम (Fellowship Programme for International Students- FPIS) हेतु गुड क्लीनिकल प्रैक्टिस गाइडलाइंस हैंडबुक और प्रॉस्पेक्टस (Prospectus) जारी किये गए हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • सार्क देशों के साथ- साथ अन्य देशों के छात्रों के लिये कॉमन फेलोशिप प्रवेश परीक्षा के माध्यम से डॉक्टर ऑफ मेडिसिन (MD)/मास्टर इन सर्जरी (MS) के बाद के स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय फैलोशिप कार्यक्रम (FPIS) शुरू किया जा रहा है
    • FPIS,  राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड (National Board Of Examination- NBE) का कार्यक्रम है
    • यह कार्यक्रम अंतर्राष्ट्रीय चिकित्सा क्षेत्र में देश की प्रतिष्ठा को शीर्ष पर लेकर जाएगा।
  • राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड (National Board Of Examination- NBE) के प्रमुख डिप्लोमैट्स ऑफ नेशनल बोर्ड (Diplomates of National Board- DNB) में, आधुनिक चिकित्सा के विषय और उप-विशेषज्ञताएँ शामिल हैं।
    • इसमें वृहत् रूप से DNB, निजी और सरकारी संस्थानों में उप-विशेषज्ञताओं में सुपर स्पेशलिटीज़ और फैलोशिप कार्यक्रम शामिल हैं।
  • गुड क्लीनिकल प्रैक्टिस गाइडलाइंस हैंडबुक, DNB रेज़ीड़ेंट को मार्गदर्शक बिंदु प्रदान करने का एक प्रयास है

राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड:

  • NBE, की स्थापना वर्ष 1975 में राष्ट्रीय चिकित्सा विज्ञान अकादमी के एक विंग के रूप में, हुई थी।
    • इसका कार्य राष्ट्रीय स्तर पर स्नातकोत्तर चिकित्सा परीक्षाओं को आयोजित कराना है। 
  • वर्ष 1982 में इसे स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्था के रूप में पंजीकृत किया गया था।
  • इसका उद्देश्य अखिल भारतीय स्तर पर आधुनिक चिकित्सा के क्षेत्र में उच्च मानक स्नातकोत्तर परीक्षाओं का आयोजन करना, पात्रता के लिये बुनियादी प्रशिक्षण आवश्यकताओं को तैयार करना, स्नातकोत्तर प्रशिक्षण के लिये पाठ्यक्रम विकसित करना और जिन संस्थानों में इसका प्रशिक्षण दिया जाता है उन्हें मान्यता प्रदान करना है। 
  • इसके अंतर्गत नामांकित छात्रों को डिप्लोमैट्स ऑफ नेशनल बोर्ड कहा जाता है।

राष्ट्रीय चिकित्सा विज्ञान अकादमी

(National Academy Of Medical Science-NAMS):

  • इसे सोसायटी पंजीकरण अधिनियम XXI, 1860 के तहत 21 अप्रैल, 1961 को 'भारतीय चिकित्सा विज्ञान अकादमी' के रूप में पंजीकृत किया गया था।
    • इस अधिनियम के तहत वैज्ञानिक शैक्षणिक, धर्मार्थ एवं कल्याणार्थ हेतु निर्मित समितियों के पंजीकरण एवं प्रत्येक पाँच वर्ष बाद पंजीकृत समितियों के नवीनीकरण का कार्य किया जाता है।
    • भारत में सोसायटी पंजीकरण अधिनियम के तहत सोसायटी पंजीकरण और संचालन के लिये कुछ प्रक्रियाओं को पूरा करना होता है।
  • इसका उद्घाटन 19 दिसंबर 1961 को नई दिल्ली में भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा किया गया था।
  • 16 नवंबर, 1976 को भारत सरकार द्वारा स्थापित एक कार्यकारी समूह की सिफारिशों पर अकादमी का पुन: नाम राष्ट्रीय चिकित्सा विज्ञान अकादमी (भारत) किया गया। 

स्रोत: PIB


‘एक्सीलेरेट विज्ञान’ योजना

प्रीलिम्स के लिये:

‘एक्सीलेरेट विज्ञान’ योजना, अभ्यास और सम्मोहन कार्यक्रम 

मेन्स के लिये:

‘एक्सीलेरेट विज्ञान’ योजना

चर्चा में क्यों?

देश में वैज्ञानिक शोध को बढ़ावा देने के लिये 'विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग' (Department of Science and Technology- DST) के तहत सांविधिक निकाय 'विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड' (Science and Engineering Research Board- SERB) द्वारा ‘एक्सीलेरेट विज्ञान’ (Accelerate Vigyan) योजना की शुरुआत की गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • योजना के माध्यम से विज्ञान के क्षेत्र में करियर बनाने के इच्छुक छात्रों को शोध, इंटर्नशिप, क्षमता निर्माण कार्यक्रमों और कार्यशालाओं से संबंधित एकल राष्ट्रीय मंच प्रदान किया जाएगा।
  • SERB की स्थापना संसद के अधिनियम के माध्यम से 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान की गई थी, जो विज्ञान और इंजीनियरिंग में बुनियादी अनुसंधान को बढ़ावा देने तथा वित्तीय सहायता प्रदान करने का कार्य करता है। 

‘एक्सीलेरेट विज्ञान’ (Accelerate Vigyan) योजना:

 उद्देश्य:

  • योजना का मुख्य उद्देश्य वैज्ञानिक अनुसंधान को प्रोत्साहित करना और वैज्ञानिक श्रमशक्ति तैयार करना है, ताकि अनुसंधान-आधारित करियर और ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था का निर्माण हो सके।
  • राष्ट्रीय स्तर पर अनुसंधान क्षमता, सलाह, प्रशिक्षण और कार्यशालाओं की पहचान करने वाले तंत्र को आरंभ करना तथा मज़बूती प्रदान करना।

दृष्टिकोण:

  • योजना का मूल दृष्टिकोण अनुसंधान के आधार को विस्तृत करना है।

योजना के लक्ष्य:

  • योजना के तीन व्यापक लक्ष्य निम्नलिखित हैं:
    • वैज्ञानिक कार्यक्रमों का सामेकन करना;
    • हाई-एंड अनुसंधान कार्यशालाओं की शुरुआत करना:
    • जिन लोगों की अनुसंधान कार्यशालाओं तक पहुँच न हो उनके लिये अनुसंधान इंटर्नशिप के अवसर पैदा करना। 

योजना के प्रमुख घटक:

‘एक्सीलेरेट विज्ञान’ योजना के 2 प्रमुख घटक (Component) हैं:

1. अभ्यास (ABHYAAS)
2. सम्मोहन (SAMMOHAN)

1. ‘अभ्यास‘ (ABHYAAS) घटक:

  • अभ्यास’ (ABHYAAS)’; ‘एक्सीलेरेट विज्ञान’ योजना का एक प्रमुख घटक है, जिसका लक्ष्य स्नातकोत्तर (Post-Graduate) एवं पीएचडी के छात्रों को उनके संबंधित विषयों में कौशल विकास को प्रोत्साहित करना है।
  • इस कार्यक्रम के दो उप-घटक ‘कार्यशाला’ (KARYASHALA) और ‘वृत्तिका’ (VRITIKA) हैं:
  • ‘कार्यशाला’ (KARYASHALA):
    • यह एक हाई-एंड वर्कशॉप के रूप में कार्य करेगी। 
  • ‘वृत्तिका’ (VRITIKA):
    • यह रिसर्च इंटर्नशिप कार्यक्रम है। 
    • हाल ही में ‘कार्यशाला’ और ‘वृत्तिका’ घटकों के तहत शीतकालीन सत्र (दिसंबर 2020 से जनवरी 2021) के लिये आवेदन आमंत्रित किये गए हैं।

2. सम्मोहन (SAMMOHAN) घटक:

  • 'सम्मोहन' घटक कार्यक्रम के 2 उप-घटक संयोजिका (SAONJIKA) और संगोष्ठी (SANGOSHTI) हैं।
  • संयोजिका (SAONJIKA):
    • इसका उद्देश्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में क्षमता निर्माण गतिविधियों को सूचीबद्ध करना है।
  • संगोष्ठी (SANGOSHTI):
    • संगोष्टी, SERB का पूर्व में संचालित किया जा रहा कार्यक्रम है।

मिशन मोड के तहत कार्यान्वयन:

  • ‘एक्सीलेरेट विज्ञान’ योजना को मिशन मोड के तहत कार्यान्वित किया जाएगा।
    • मिशन मोड परियोजनाओं को एक तय समय सीमा में पूरा करना होता है तथा प्राप्त किये गए लक्ष्यों के परिणामों के मापन के स्पष्ट मानक होते हैं
  • विभिन्न मंत्रालयों/विभागों तथा कुछ अन्य सदस्यों को मिलाकर एक ‘अंतर मंत्रालयी निरीक्षण समिति’ (Inter-Ministerial Overseeing Committee- IMOC) का गठन किया गया है। 
    • IMOC योजना को कार्यान्वित करने में SERB की सहायता और समर्थन प्रदान करेगा।

योजना का महत्त्व:

  • योजना के अंतर्गत विभिन्न विषयों पर केंद्रित उच्च स्तरीय कार्यशालाओं का आयोजन किया जाएगा, जिससे आगामी पाँच वर्षों में करीब 25 हज़ार स्नातकोत्तर एवं पीएचडी छात्रों को आगे बढ़ने के अवसर मिल सकते हैं।
  • योजना देश के प्रमुख वैज्ञानिक संस्थानों एवं प्रयोगशालाओं को एक साथ मिलकर कार्य करने का अवसर प्रदान करती है।
  • भारत में शैक्षणिक प्रयोगशालाएँ बहुत खराब स्थिति में है। योजना के तहत सुरक्षित वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं के निर्माण पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।

निष्कर्ष:

  • प्रशिक्षित मानव संसाधन तैयार करने की की दिशा में शुरू की गई ‘एक्सीलेरेट विज्ञान’ योजना देश में क्षमता निर्माण की दृष्टि से सभी हितधारकों के लिये महत्त्वपूर्ण हो सकती है। यह योजना देश के वैज्ञानिक समुदाय की सामाजिक ज़िम्मेदारी को प्रोत्साहित करने का भी एक प्रयास है।

स्रोत: पीआईबी


अटॉर्नी जनरल: शक्तियाँ और सीमाएँ

प्रीलिम्स के लिये

अटॉर्नी जनरल

मेन्स के लिये

संघीय कार्यपालिका के एक अंग के रूप में अटॉर्नी जनरल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने अटॉर्नी जनरल (Attorney General-AG) के रूप में वरिष्ठ अधिवक्ता के. के. वेणुगोपाल (K.K. Venugopal) के कार्यकाल को एक वर्ष के लिये बढ़ा दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि 30 जून, 2017 को के.के. वेणुगोपाल को 3 वर्ष के कार्यकाल के लिये भारत का 15वाँ अटॉर्नी जनरल (AG) नियुक्त किया गया था, उनका पहला कार्यकाल बीते दिनों 30 जून, 2020 को समाप्त हो गया था।
    • 15वें अटॉर्नी जनरल (AG) के रूप में इनकी नियुक्ति पूर्व अटॉर्नी जनरल (AG) मुकुल रोहतगी के स्थान पर की गई थी। 
  • के. के. वेणुगोपाल के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (Solicitor-General) तुषार मेहता के कार्यकाल का भी तीन वर्ष के लिये विस्तार किया गया है।

के. के. वेणुगोपाल के बारे में

  • के. के. वेणुगोपाल का जन्म वर्ष वर्ष 1931 में हुआ था और उन्होंने एक अधिवक्ता के तौर पर अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 1954 में की थी।
  • गौरतलब है कि के. के. वेणुगोपाल को एक अधिवक्ता के तौर पर 50 से भी अधिक वर्षों का अनुभव है और उन्हें  संवैधानिक मामलों का विशेषज्ञ माना जाता है।

अटॉर्नी जनरल संवैधानिक प्रावधान

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 76 के अनुसार, भारत का अटॉर्नी जनरल (AG) भारत का सबसे बड़ा कानून अधिकारी होता है।
  • भारत सरकार के मुख्य कानून सलाहकार होने के नाते अटॉर्नी जनरल सभी कानूनी मामलों पर केंद्र सरकार को सलाह देने का कार्य करता है।
  • इसके अतिरिक्त भारत का अटॉर्नी जनरल सर्वोच्च न्यायालय में केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्त्व भी करता है।

अटॉर्नी जनरल की नियुक्ति

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 76 के अनुसार, अटॉर्नी जनरल (AG) की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। 
  • अटॉर्नी जनरल के रूप में नियुक्त होने के लिये उन योग्यताओं का होना अनिवार्य है, जो उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश की नियुक्ति के लिये आवश्यक है। 
  • सरल शब्दों में कहें तो अटॉर्नी जनरल के रूप में नियुक्त होने के लिये आवश्यक है कि वह व्यक्ति भारत का नागरिक हो, उसे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य करने का पाँच वर्षों का अनुभव हो या किसी उच्च न्यायालय में वकालत का 10 वर्षों का अनुभव हो अथवा राष्ट्रपति के मतानुसार वह न्यायिक मामलों का योग्य व्यक्ति हो।
  • गौरतलब है कि संविधान में अटॉर्नी जनरल के कार्यकाल के संबंध में कोई निश्चित व्याख्या नहीं दी गई है, हालाँकि राष्ट्रपति द्वारा कभी भी उन्हें इस पद से हटाया जा सकता है। इसके अलावा अटॉर्नी जनरल किसी भी समय राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा सौंप कर पदमुक्त हो सकता है।
    • संविधान निर्माण की बहस के दौरान एक सदस्य द्वारा इस ओर ध्यान इंगित किया गया था कि प्रधानमंत्री के इस्तीफे के साथ उनके अटॉर्नी जनरल का कार्यकाल भी समाप्त हो जाना चाहिये, क्योंकि उसकी नियुक्ति सरकार की सिफारिशों के आधार पर की जाती है, हालाँकि इस संशोधन प्रस्ताव को मूल संविधान में शामिल नहीं किया गया था।
  • संविधान में अटॉर्नी जनरल का पारिश्रमिक निर्धारित नहीं किया गया है, संविधान के अनुच्छेद 76 के अनुसार, अटॉर्नी जनरल के पारिश्रमिक का निर्धारण राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है।

अटॉर्नी जनरल- कार्य और शक्तियाँ

  • भारत सरकार को विधि संबंधी ऐसे विषयों पर सलाह देना, जो राष्ट्रपति द्वारा सौंपे गए हों।
  • विधिक स्वरूप वाले ऐसे अन्य कर्त्तव्यों का पालन करना, जो राष्ट्रपति द्वारा सौंपे गए हों।
    • उच्चतम न्यायालय में भारत सरकार से संबंधित मामलों में सरकार का प्रतिनिधित्त्व करना।
    • भारत सरकार से संबंधित किसी मामले में उच्च न्यायालय में सुनवाई का अधिकार।
  • संविधान अथवा किसी अन्य विधि द्वारा प्रदान किये गए कृत्यों का निर्वहन करना।

अटॉर्नी जनरल- अधिकार

  • केंद्र सरकार के कानूनी सलाहकार के रूप में भारत के अटॉर्नी जनरल को भारत के किसी भी क्षेत्र में किसी भी अदालत में सुनवाई का अधिकार होता है।
  • वहीं अटॉर्नी जनरल को संसद के दोनों सदनों में बोलने अथवा कार्यवाही में भाग लेने या दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में मताधिकार के बिना भाग लेने का भी अधिकार होता है।
    • एक संसद सदस्य की तरह अटॉर्नी जनरल को सभी भत्ते और विशेषाधिकार मिलते हैं।

अटॉर्नी जनरल- सीमाएँ

  • अटॉर्नी जनरल (AG) भारत सरकार के विरुद्ध कोई सलाह या विश्लेषण नहीं कर सकता है।
  • जिस मामले में उसे भारत सरकार की ओर से पेश होना है, वह उस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता है।
  • भारत सरकार की अनुमति के बिना वह किसी आपराधिक मामले में किसी व्यक्ति का बचाव नहीं कर सकता है।
  • भारत सरकार की अनुमति के बिना वह किसी परिषद या कंपनी के निदेशक का पद ग्रहण नहीं कर सकता है।

स्रोत: द  हिंदू


गोल्ड नैनोपार्टिकल्स

प्रीलिम्स के लिये:

नैनोटेक्नोलॉजी, नैनोपार्टिकल

मेन्स के लिये:

गोल्ड नैनोपार्टिकल्स का विभिन्न क्षेत्रों में महत्त्व 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारतीय शोधकर्त्ताओं ने ‘साइक्रोटॉलरेंट अंटार्कटिक बैक्टीरिया’ (Psychrotolerant Antarctic Bacteria) का प्रयोग करते हुए  पर्यावरण अनुकूल तरीके से, गैर विषैले तथा कम लागत वाले गोल्ड नैनोपार्टिकल्स अर्थात सोने के नैनोकणों (Gold Nanoparticles- GNPs) को सफलतापूर्वक संश्लेषित किया गया है।

GNP-Inhibit

प्रमुख बिंदु:

  • यह अध्ययन जर्नल ऑफ प्रिपेरेटिव बायोकैमिस्ट्री एंड बायोटेक्नोलॉजी (Journal of Preparative Biochemistry & Biotechnology) में प्रकाशित हुआ है।
  • शोधकर्त्ताओं ने नियंत्रित वातावरणीय दशाओं में 20 से 30 नैनो मीटर के गोलाकार गोल्ड नैनोपार्टिकल्स को संश्लेषित किया है। 
  • शोध के दौरान ‘सल्फेट रीडयूसिंग बैक्टीरिया’ (Sulphate Reducing Bacteria-SRB) पर गोल्ड नैनोपार्टिकल्स के जीनोटॉक्सिसिटी (Genotoxicity) प्रभाव को देखा गया। 
    • जीनोटॉक्सिसिटी द्वारा ऐसे रासायनिक एजेंटस को वर्णित किया जाता है जो DNA की आनुवंशिक जानकारी (Genetic Information of DNA) को उत्परिवर्तन द्वारा नष्ट करने में सक्षम है। 
    • सल्फेट रीडयूसिंग बैक्टीरिया या सल्फर को कम करने वाले बैक्टीरिया सल्फेट/सल्फर की खपत कर ऊर्जा प्राप्त करते हैं।
  • शोध में देखा गया कि गोल्ड नैनोपार्टिकल्स ‘सल्फेट रीडयूसिंग बैक्टीरिया' की वृद्धि को रोकने तथा इसकी कोशिका के DNA की आनुवंशिक जानकारी को नष्ट करने में सक्षम है और बैक्टीरियारोधी गुण प्रदर्शित करता है।
  • गौरतलब है कि शोधकर्त्ताओं ने ‘साइक्रोटॉलरेंट अंटार्कटिक बैक्टीरिया’ का उपयोग करके गोल्ड आयन को GNPs में बदलने के लिये पर्यावरणीय रूप से स्वीकार्य हरित रसायन प्रक्रियाओं का सहारा लिया है।
    • साइक्रोटॉलरेंट सूक्ष्मजीवों की वृद्धि 20-40 डिग्री सेंटीग्रेड पर सबसे अच्छी होती है हालाँकि ये कम तापमान को भी सहन करने में सक्षम होते हैं।

नैनोटेक्नोलॉजी और नैनोपार्टिकल

  • नैनोटेक्नोलॉजी: नैनोटेक्नोलॉजी एक ऐसी तकनीक है जिसके तहत 1 नैनोमीटर (nm) से लेकर 100 नैनोमीटर तक के आकार की सीमा तक नियंत्रित बदलाव के माध्यम से नई एवं अभिनव सामग्रियाँ विकसित की जाती हैं। 
  • नैनोपार्टिकल: नैनोपार्टिकल वो पदार्थ हैं जो 100 नैनोमीटर से कम आकार के होते हैं। नैनोपार्टिकल का सतह-आयतन अनुपात उच्च होता है। 

गोल्ड नैनोपार्टिकल एवं इनका महत्त्व

  • गोल्ड नैनोपार्टिकल को ‘थोक सोने’ (1064° सेल्सियस) की तुलना में बहुत कम तापमान (300° सेल्सियस) पर पिघलाया जा सकता है।  
    • गोल्ड नैनोपार्टिकल में पारंपरिक थोक सोने की तुलना में अधिक सौर विकिरण अवशोषित करने की क्षमता पाई गई है, जो फोटोवोल्टिक सेल निर्माण उद्योग में उपयोग के लिये बेहतर साबित हो सकती है।
  • इनमें विशेष प्रकाशीय गुण भी विद्यमान होते है। जैसे- 100nm से अधिक आकार के गोल्ड नैनोपार्टिकल कण पानी में नीले या बैंगनी रंग का प्रभाव उत्पन्न करते हैं, जबकि 100 nm आकर के कण सोने के कोलाइडल कणों के साथ लाल रंग के दिखाई देते हैं। 
    • इस प्रकार चिकित्सीय इमेजिंग के निर्माण में इनका उपयोग किया जा सकता है। 
  • गोल्ड नैनोपार्टिकलस में अद्वितीय भौतिक रासायनिक गुण भी पाये जाते हैं।
    • उनकी जैव-रासायनिकता, उच्च सतही क्षेत्र, स्थिरता और गैर-विषाक्तता (नॉनटॉक्सीसिटी) उन्हें चिकित्सीय उपयोग में विभिन्न अनुप्रयोगों के लिये उपयुक्त बनाती है जिसमें बीमारियों का पता लगाना और उनका निदान करना, बायो-लेबलिंग तथा लक्षित दवा वितरण इत्यादि शामिल हैं।
  • ये कण पेप्टाइड्स, प्रोटीन, प्लाज्मिड डीएनए और कीमोथेरेप्यूटिक एजेंटों से बनी विभिन्न दवाओं को स्थानांतरित करने में भी सक्षम हैं जिनके प्रयोग से मानव शरीर की कोशिकाओं को उपचारित किया जा सकता है।
  • इन गोल्ड नैनोपार्टिकल्स का उपयोग समग्र चिकित्सीय एजेंट नैदानिक ​​परीक्षणों यथा कैंसर-रोधी, विषाणु-रोधी, मधुमेह-रोधी और कोलेस्ट्रॉल कम करने वाली दवाओं इत्यादि में किया जा सकता है।
  • गोल्ड नैनोपार्टिकलस को इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग में भी उपयोगी पाया जाता है। वैज्ञानिकों द्वारा 'नॉमफेट' नाम का एक ट्रांज़िस्टर बनाया है।
    • जिसका पूरा नाम ‘नैनोपार्टिकल ऑर्गेनिक मैमोरी फील्ड-इफेक्ट ट्रांज़िस्टर’ (Nanoparticle Organic Memory Field-Effect Transistor) है।
    • इसे विकसित करने के लिये कमरे के तापमान पर उत्प्रेरक के रूप में मैंगनीज़ ऑक्साइड में गोल्ड नैनोपार्टिकलस को अंतःस्थापित (Embedding) किया गया, ताकि हवा में वाष्पशील कार्बनिक यौगिक को तोड़ा जा सके तथा कार्बनिक अणुओं के साथ गोल्ड नैनोपार्टिकलस को संयोजित किया जा सके।
  • नॉमफेट न्यूरॉन से न्यूरॉन की ओर जाने वाले सिग्नल की गति एवं शक्ति की भिन्नता/प्लास्टिसिटी के रूप में पहचाने जाने वाले ‘मानव सूत्रयुग्मन’ (Human Synapse) की नकल कर सकने में सक्षम हैं।

स्रोत:पीआइबी


सेंट्रल ज़ू अथॉरिटी का पुनर्गठन

प्रीलिम्स के लिये

सेंट्रल ज़ू अथॉरिटी

मेन्स के लिये

सेंट्रल ज़ू अथॉरिटी के कार्य और भारतीय के चिड़ियाघरों को नियंत्रित करने में इसकी भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने ‘सेंट्रल ज़ू अथॉरिटी’ (Central Zoo Authority-CZA) का पुनर्गठन करते हुए, इसमें स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर (दिल्ली) के एक विशेषज्ञ और एक आणविक जीवविज्ञानी (Molecular Biologist) को शामिल किया है।

प्रमुख बिंदु

  • पुनर्गठन के बाद स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर (दिल्ली) के निदेशक पी. एस. एन. राव (P.S.N. Rao) तथा कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केंद्र (The Centre for Cellular & Molecular Biology-CCMB) के वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक कार्तिकेयन वासुदेवन (Karthikeyan Vasudevan) को ‘सेंट्रल ज़ू अथॉरिटी’ (CZA) के नए सदस्यों के रूप में शामिल किया गया है।

स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर 

  • स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर (School of Planning and Architecture) की शुरुआत वर्ष 1941 में दिल्ली पॉलिटेक्निक (Delhi Polytechnic) के आर्किटेक्चर विभाग के रूप में की गई थी।
  • कुछ समय पश्चात् इसे वर्ष 1955 में स्थापित स्कूल ऑफ टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से एकीकृत कर दिया गया और वर्ष 1955 में इसका नाम बदलकर स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर कर दिया गया।
  • इसके अंतर्गत मानव आवास और पर्यावरण के विभिन्न पहलुओं में विभिन्न स्तरों पर प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।

जानवरों को लेकर चिंता

  • विदित हो कि 01 जून से ‘सेंट्रल ज़ू अथॉरिटी’ (CZA) ने चिड़ियाघर को आगंतुकों के लिये खोलने की अनुमति दे दी थी।
  • हालाँकि इसके बावजूद जानवरों और चिड़ियाघर के कर्मचारियों की सुरक्षा को मद्देनज़र रखते हुए देश के अधिकांश चिड़ियाघरों ने अब तक आगंतुकों के लिये इन्हें नहीं खोला है।
  • ध्यातव्य है कि मई माह में दुनिया भर के कई जानवरों के कोरोना वायरस (COVID-19) से संक्रमित होने के बाद से जानवरों खासकर चिड़ियाघर घर में रहने वाले जानवरों में संक्रमण को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही थी।
  • ‘सेंट्रल ज़ू अथॉरिटी’ (CZA) ने भी निगरानी बढ़ाने और जानवरों की सुरक्षा का ध्यान रखने समेत कई अन्य परामर्श जारी किये थे।
  • CZA द्वारा दिये गए दिशा-निर्देशों के अनुसार, चिड़ियाघर के कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने का कार्य भी किया जा रहा है, ताकि वे मौजूदा महामारी के दौरान जानवरों को सुरक्षित करने के लिये सही कदम उठा सकें।

सेंट्रल ज़ू अथॉरिटी

(Central Zoo Authority-CZA)

  • सेंट्रल ज़ू अथॉरिटी (CZA), एक सांविधिक निकाय (statutory body) है जिसका मुख्य उद्देश्य भारत में जानवरों के रख-रखाव और स्वास्थ्य देखभाल के लिये न्यूनतम मानकों तथा मानदंडों को लागू करना है।
    • सांविधिक निकाय के रूप में इसकी स्थापना वर्ष 1992 में की गई थी। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1991 में इस निकाय की स्थापना के लिये वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम को संशोधित किया गया था।
  • इस प्राधिकरण का मुख्य लक्ष्य  देश की समृद्ध जैव विविधता के संरक्षण में राष्ट्रीय प्रयास को और मज़बूत करना है, विशेष रूप से पशुओं के संबंध में। 
  • ध्यातव्य है कि भारत में चिड़ियाघरों को वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के अनुसार विनियमित तथा राष्ट्रीय चिड़ियाघर नीति, 1992 द्वारा निर्देशित किया जाता हैं। 
  • गौरतलब है कि भारतीय और विदेशी चिड़ियाघरों के बीच जानवरों के आदान-प्रदान के लिये भी सेंट्रल ज़ू अथॉरिटी (CZA) के अनुमोदन की आवश्यकता होती है।

‘सेंट्रल ज़ू अथॉरिटी’ की संरचना

  • सेंट्रल ज़ू अथॉरिटी के अंतर्गत एक अध्यक्ष के अतिरिक्त 10 सदस्य और एक सदस्य-सचिव शामिल होता है। इसमें से कुछ सदस्य पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में कार्यरत अधिकारी होते हैं, जबकि शेष गैर-सरकारी सदस्य वन्यजीव संरक्षणवादी या सेवानिवृत्त वन अधिकारी होते हैं।
  • इस प्राधिकरण की अध्यक्षता पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री द्वारा की जाती है।

स्रोत: द  हिंदू


विशेष तरलता योजना

प्रीलिम्स के लिये:

विशेष तरलता योजना के प्रमुख प्रावधान 

मेन्स के लिये:

वर्तमान आर्थिक संदर्भ  में विशेष तरलता योजना की महत्ता  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार द्वारा  ‘स्पेशल पर्पज़ व्हीकल’ ( Special Purpose Vehicle- SPV) के माध्यम से ‘गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों’ (Non-Banking Finance Companies- NBFCs) और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों (Housing Finance Companies- HFCs) के लिये एक ‘विशेष तरलता योजना’ (Special Liquidity Scheme ) की शुरुआत की गई है। 

प्रमुख बिंदु:

  • इस योजना को वित्तीय क्षेत्र में तरलता की स्थिति में सुधार करने तथा किसी भी संभावित प्रणालीगत जोखिम से बचने के उद्देश्य से शुरु किया गया है। 
  • सरकार द्वारा मई, 2020 में गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों के लिये 3000 करोड़ रुपए की ‘विशेष तरलता योजना’ की घोषणा की गई थी। 
  • इस योजना के क्रियान्वयन के लिये भारतीय स्टेट बैंक की सहायक कंपनी ‘भारतीय स्टेट बैंक कैपिटल मार्केट्स लिमिटेड’ (SBICAP) द्वारा  ‘SLS ट्रस्ट’ नाम से ‘स्पेशल पर्पज़ व्हीकल’ को स्थापित किया गया है।  
  •  इस ‘स्पेशल पर्पज़ व्हीकल’ के माध्यम से ही गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों को विशेष तरलता योजना से जोड़ने का कार्य किया जाएगा। 

‘स्पेशल पर्पज़ व्हीकल’:

  • ‘स्पेशल पर्पज़ व्हीकल’ पात्र  NBFCs और HFCs  से अल्पकालिक दस्तावज़ों/कागज़ों की खरीदेगा जिनमें  केवल ‘गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर’ (Non-convertible debentures- NCDs) तथा ‘वाणिज्यिक पत्र’ (Commercial paper- CP) को ही खरीदा जाएगा।
  • ‘स्पेशल पर्पज़ व्हीकल’ के द्वारा खरीदे गए दस्तावज़ों की शर्त यह होगी कि इनकी परिपक्वता अवधि तीन माह से अधिक न हो तथा इनकी रेटिंग इन्वेस्टमेंट ग्रेड की होनी चाहिये।
  • 30 सितंबर, 2020 के बाद जारी किये गए किसी भी दस्तावेज़ के लिये यह सुविधा उपलब्ध नहीं होगी क्योंकि ‘स्पेशल पर्पज़ व्हीकल’ 30 सितंबर, 2020 के बाद नई खरीद करने के लिये बंद हो जाएगा।

NBFCs एवं HFCs के लिये निर्धारित मानदंड: 

  • इस योजना का लाभ केवल NBFCs और HFCs को ही मिलेगा। कोर इन्वेस्टमेंट कंपनियों (Core Investment Companies)  तथा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों Non-Banking Financial Companies-NBFC) को इस  योजना से बाहर रखा गया है।
  • इस योजना के माध्यम से केवल वे ही कंपनियाँ धन जुटाने की पात्र है जो निम्नलिखित व्यापक शर्तों को पूरा करती हैं-
    • पिछले दो वित्तीय वर्षों (2017-2018 और 2018-2019) में कंपनी किसी एक वर्ष  में मुनाफे में रही हो। 
    • रेटिंग एजेंसी ( Rating Agency) द्वारा इन्वेस्टमेंट ग्रेड की रेटिंग मिली हो। 
    • 31 मार्च, 2021 तक गैर-निष्पादित परिसंपत्ति 6 ​​प्रतिशत से अधिक न हो।
    • 1 अगस्त, 2018 से पिछले एक वर्ष के दौरान किसी भी बैंक द्वारा उसके उधार के लिये एसएमए -1 या एसएमए -2 श्रेणी के तहत रिपोर्ट नहीं की गई हो।

योजना का महत्त्व:

  • इसके माध्यम से NBFCs, HFCs तथा म्युचुअल फंड में चल रही तरलता की कमी को दूर किया जा सकेगा।
  • तरलता की कमी दूर होने पर निवेशकों का बाज़ार की तरफ रुझान बढ़ेगा।

स्रोत: पीआईबी


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 02 जुलाई, 2020

65 और उससे अधिक उम्र वाले लोगों के लिये डाक मतपत्र

देश भर में कोरोना वायरस (COVID-19) के बढ़ते मामलों के बीच वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा को मद्देनज़र रखते हुए विधि एवं न्याय मंत्रालय (Ministry of Law and Justice) ने लोकसभा और विधानसभा चुनावों में डाक मतपत्र (Postal Ballot) के लिये मतदाताओं की आयु सीमा में कटौती कर दी है। संशोधित नियमों के अनुसार, अब 65 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लोगों को भी डाक मतपत्र से मतदान का विकल्प मिलेगा। इसके अतिरिक्त निर्वाचन आयोग के सुझावों पर नियमों में बदलाव करते हुए मंत्रालय ने एक अस्थायी व्यवस्था के तौर पर ‘COVID-19 के संदिग्धों या संक्रमितों’ को भी डाक मतपत्र सुविधा का लाभ उठाने की अनुमति प्रदान की है। गौरतलब है कि जल्द ही बिहार में विधानसभा चुनावों का आयोजन होने वाला है और अनुमान के अनुसार, बिहार के मतदाताओं को इस संशोधित नियम का लाभ सबसे पहले प्राप्त होगा। विधि एवं न्याय मंत्रालय ने अक्तूबर 2019 में ‘निर्वाचनों के संचालन नियम, 1961’ (Conduct of Election Rules, 1961) में संशोधन करते हुए और दिव्यांगों तथा 80 वर्ष अथवा इससे अधिक उम्र के लोगों को लोकसभा और विधानसभा चुनावों में डाक मतपत्र से मतदान की अनुमति प्रदान की थी। देश के प्रत्येक नागरिक का यह दायित्त्व होता है कि वह एक जीवंत लोकतंत्र सुनिश्चित करने के लिये देश की चुनाव प्रक्रिया में भाग ले, हालाँकि कभी-कभी किसी व्यक्ति विशिष्ट के लिये प्रत्यक्ष रूप से इस प्रक्रिया में भाग लेना संभव नहीं हो पाता, इस कारणवश निर्वाचन आयोग ऐसे व्यक्ति को मतदान के लिये डाक मतपत्र की सुविधा उपलब्ध कराता है। 

ऑपरेशन समुद्र सेतु

भारतीय नौसेना (Indian Navy) द्वारा ‘ऑपरेशन समुद्र सेतु’ (Operation Samudra Setu) के लिये तैनात किये गए INS जलाश्‍व (INS Jalashwa) ने 01 जुलाई, 2020 को लगभग 687 भारतीय नागरिक के साथ तूतीकोरिन बंदरगाह (Tuticorin Port) में प्रवेश किया, जिसके साथ ही भारतीय नौसेना के जहाज़ों के माध्यम से ईरान से वापस लाए गए भारतीय नागरिकों की कुल संख्या 920 तक पहुँच गई है। भारतीय नौसेना के अनुसार, ‘ऑपरेशन समुद्र सेतु’ के तहत भारतीय नागरिकों को वापस लाने की प्रक्रिया के तहत COVID-19 ​​से संबंधित समस्त सुरक्षा संबंधी उपायों का सख्ती से पालन किया जा रहा है। गौरतलब है कि इस सफल निकासी के साथ ही भारतीय नौसेना अब तक महामारी के दौरान मालदीव, श्रीलंका और ईरान से कुल 3992 भारतीय नागरिकों को वापस लेकर आई है। यह संपूर्ण कार्य भारतीय नौसेना के ‘ऑपरेशन समुद्र सेतु’ के तहत किया गया है। विदित हो कि ‘ऑपरेशन समुद्र सेतु’ को भारतीय नौसेना द्वारा COVID-19 महामारी के दौरान विदेशों से भारतीय नागरिकों को वापस लाने हेतु लॉन्च किया गया था। INS जलाश्‍व, नौसेना का सबसे बड़ा एम्फिबियस प्लेटफॉर्म है और यह विशाखापत्तनम में पूर्वी नौसेना कमान मुख्यालय के अंतर्गत आता है।

नाडा एप (NADA App)

नेशनल एंटी-डोपिंग एजेंसी (National Anti-Doping Agency-NADA) ने हाल ही में खिलाड़ियों को खेल, निषिद्ध पदार्थों और डोप-परीक्षण से संबंधित विभिन्न पहलुओं की जानकारी प्रदान करने के लिये एक मोबाइल एप्लिकेशन लॉन्च किया है। यह एप खिलाड़ियों को प्रतिबंधित दवाओं एवं उनके प्रयोग से बचने की जानकारी प्रदान करेगा, इस एप के माध्यम से खिलाड़ी खेलों के विभिन्न पहलुओं खासकर प्रतिबंधित दवाओं का प्रयोग न करने को लेकर जागरूक हो सकेंगे। इस एप को लॉन्च करते हुए केंद्रीय मंत्री किरन रीजीजू (Kiren Rijiju) ने कहा कि यह मोबाइल एप्लिकेशन स्वच्छ खेल अभ्यास की दिशा में एक ‘महत्त्वपूर्ण कदम’ है। सामान्य दवाओं के संबंध में विस्तृत जानकारी प्रदान करने के अलावा, यह एप खिलाड़ियों को अंतर्राष्ट्रीय खेल में डोपिंग से संबंधित नियमों में होने वाले बदलावों के बारे में भी सूचित करेगा। इस एप के प्रयोग से खिलाड़ी स्वयं ही प्रतिबंधित पदार्थ का पता लगा सकते हैं और इस कार्य के लिये उन्हें किसी पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं होगी। नेशनल एंटी-डोपिंग एजेंसी (NADA) भारत में खेलों में डोपिंग कंट्रोल प्रोग्राम की मॉनिटरिंग के लिये एक राष्ट्रीय संगठन है, जिसकी स्थापना सोसाइटीज़ रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1860 के तहत वर्ष 2005 में की गई थी। 

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (Indira Gandhi National Centre for the Arts-IGNCA) देश भर में उन कलाकारों के कार्य को रेखांकित करने की योजना बना रहा है, जिन्होंने COVID-19 महामारी के दौरान आम जनता के मनोबल को बढ़ाने की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किया है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA) के अनुसार, कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के दौरान देश भर के विभिन्न कलाकारों ने आम लोगों का मनोबल बढ़ाते हुए एक मूक COVID योद्धा (Silent COVID Warrior) के रूप में कार्य किया है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA) की स्थापना वर्ष 1987 में संस्कृति मंत्रालय के अधीन कला के क्षेत्र में अनुसंधान, शैक्षिक उद्यम तथा प्रचार-प्रसार करने वाली एक स्वायत्त संस्था के रूप में की गई थी। ध्यातव्य है कि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA) कला, विशेष रूप से लिखित, मौखिक और दृश्यात्मक स्रोत सामग्रियों के लिये एक प्रमुख केंद्र के रूप में कार्य करता है। इसके अतिरिक्त यह कला, मानविकी तथा संस्कृति से संबंधित अनुसंधान संचालित करने का कार्य भी करता है।