डेली न्यूज़ (01 Nov, 2025)



वस्त्र प्रतिस्पर्द्धात्मकता में वृद्धि

प्रिलिम्स के लिये: वस्त्र क्षेत्र, MSME, मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, मुक्त व्यापार समझौते (FTA), वस्त्र उद्योग के लिये उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना, पीएम मित्र (मेगा इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल रीजन एंड अपैरल) पार्क, संशोधित प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना (ATUFS), समर्थ (वस्त्र क्षेत्र में क्षमता निर्माण योजना), राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन (NTTM), सर्कुलर इकोनॉमी।

मेन्स के लिये: भारत के वस्त्र उद्योग के लिये 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर की निर्यात क्षमता प्राप्त करने तथा राष्ट्रीय आर्थिक लक्ष्यों के साथ संरेखित करने के लिये आवश्यक स्थिति, वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता चुनौतियाँ और रणनीतिक सुधार।

स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स

चर्चा में क्यों?

सरकार बांग्लादेश, वियतनाम और चीन से बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा के बीच वस्त्र क्षेत्र को वैश्विक मानकों के अनुरूप लाने के लिये एक व्यापक लागत रोडमैप तैयार कर रही है।

भारत के वस्त्र उद्योग की स्थिति क्या है?

  • आर्थिक योगदान: यह भारत की विनिर्माण और निर्यात अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख स्तंभ है, जो सकल घरेलू उत्पाद में 2.3%, औद्योगिक उत्पादन में 13% और कुल निर्यात में 12% का योगदान देता है।
  • निर्यात प्रदर्शन: भारत ने वर्ष 2023-24 में 34.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के वस्त्र निर्यात किये। परिधान का सबसे बड़ा हिस्सा (42%) है, उसके बाद कच्चे/अर्ध-निर्मित माल (34%) और गैर-परिधान निर्मित माल (30%) का स्थान है।
  • रोज़गार सृजन: यह कृषि के बाद दूसरा सबसे बड़ा रोज़गार सृजनकर्ता है। यह 45 मिलियन से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष रोज़गार प्रदान करता है, जिसमें बड़ी संख्या में महिलाएँ और ग्रामीण श्रमिक शामिल हैं।
  • वैश्विक स्थिति: वस्त्र बाज़ार में भारत वैश्विक स्तर पर (2024) 5वें स्थान पर है। घरेलू बाज़ार का आकार वर्ष 2030 तक 174 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 350 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने की आशा है।
  • उत्पादन क्षमता: वार्षिक रूप से लगभग 22,000 मिलियन परिधानों का उत्पादन होता है, जो बड़े पैमाने पर उत्पादन क्षमताओं और निर्यात क्षमता का संकेत देता है।
    • लगभग 80% उत्पादन क्षमता MSME क्लस्टरों में निहित है, जो इसकी समावेशी और विकेन्द्रीकृत प्रकृति को दर्शाता है।

वैश्विक स्तर पर भारत के वस्त्र उद्योग की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को सीमित करने वाले कारक?

  • इनपुट लागत का उच्च होना: क्वालिटी कंट्रोल ऑर्डर (QCOs) के कारण पॉलियेस्टर एवं विस्कोस आयात पर प्रतिबंध लगने से घरेलू सूत उत्पादकों को महँगे स्थानीय पॉलियेस्टर फाइबर (चीन की तुलना में लगभग 33 से 36% अधिक महँगा) पर निर्भर होना पड़ा है।
  • श्रम उत्पादकता का कम होना: बांग्लादेश एवं वियतनाम जैसे प्रतिस्पर्द्धी देशों की श्रम उत्पादकता भारत की तुलना में 20–40% अधिक है, जिससे उनका उत्पादन अधिक कुशल और लागत प्रभावी बनता है।
  • विनियामक और व्यापारिक बाधाएँ: कठोर श्रम विधानों के साथ निर्णायक मुक्त व्यापार समझौतों (विशेष रूप से यूरोपीय संघ के साथ) की अनुपस्थिति के कारण भारत को वह छूट नहीं मिल पाती जो इसके प्रतिस्पर्द्धियों को मिलती है।
  • प्रतिस्पर्द्धियों को अतिरिक्त लाभ: बांग्लादेश को कम मजदूरी के साथ अधिमानी व्यापारिक शर्तों का लाभ मिलता है। वियतनाम में FTAs की उन्नत व्यवस्था एवं चीन तक शुल्क-मुक्त पहुँच की सुविधा के साथ श्रम विनियम अधिक अनुकूल हैं।
  • तकनीकी अंतराल: सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (इस उद्योग में लगभग 80% हिस्सेदारी) के समक्ष आधुनिकीकरण हेतु पूंजी के अभाव तथा पुरानी मशीनरी जैसी समस्याएँ होने से उत्पादकता एवं गुणवत्ता पर नकारात्मक रूप से प्रभाव पड़ता है।
    • MSME ड्वार्फ़िज़्म: इससे वस्त्र उद्योग के कम उत्पादकता वाले चक्र में फँसे रहने से वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा, रोज़गार सृजन तथा नवाचार पर नकारात्मक रूप से प्रभाव पड़ता है।
  • कार्यबल एवं अनुपालन संबंधी समस्याएँ: आधुनिक विनिर्माण (जैसे तकनीकी वस्त्र), डिज़ाइन एवं विपणन हेतु कुशल श्रमिकों के अभाव के साथ पर्यावरणीय विनियमों तथा मानकों के अनुपालन के बोझ से छोटे उद्यमों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।

भारत के वस्त्र उद्योग की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को सुदृढ़ करने हेतु कौन-से सुधार आवश्यक हैं?

सरकार की कार्ययोजना

  • त्रि-चरणीय कार्ययोजना: एक अल्पकालिक (2 वर्ष), मध्यमकालिक (5 वर्ष) तथा दीर्घकालिक योजना तैयार की जाएगी, जिसके माध्यम से लागत का आकलन तथा तुलनात्मक विश्लेषण किया जाएगा।
  • लागत में कमी पर केंद्रित दृष्टिकोण: इस योजना का उद्देश्य कच्चे माल, अनुपालन तथा कराधान से संबंधित व्यय को कम करना एवं विनिर्माण प्रक्रिया में अपव्यय को घटाना होगा।
  • नवाचार को प्रोत्साहन: एक विशेष समिति का गठन किया जाए]गा जो निम्नलिखित बिंदुओं पर कार्य करेगी—
    • तकनीकी वस्त्रों तथा धारणीय सामग्रियों में अनुसंधान एवं विकास (R&D) को सुदृढ़ करना।
    • ब्रांडिंग एवं डिज़ाइन में नवाचार का समावेशन करना।
    • नवोन्मेषी स्टार्ट-अप्स तथा डिज़ाइनरों को प्रोत्साहित करना।
  • दीर्घकालिक दृष्टिकोण: वर्ष 2030 तक 100 अरब अमेरिकी डॉलर के वस्त्र निर्यात का लक्ष्य प्राप्त करना। नवयुगीन वस्त्रों के लिये वैश्विक नवाचार केंद्रों एवं डिज़ाइन हाउसों की स्थापना करना।

आवश्यक सुधार

  • लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता में वृद्धि: बंदरगाहों का आधुनिकीकरण किया जाए, प्रलेखन की प्रक्रिया को सरल बनाया जाए तथा औद्योगिक गलियारों अथवा अनुदानों के माध्यम से वस्त्र इकाइयों के लिये सुलभ एवं विश्वसनीय ऊर्जा उपलब्ध कराई जाए। कपास एवं कृत्रिम रेशों पर आयात शुल्क को युक्तिसंगत बनाया जाए।
  • व्यापार एवं विनियामक सुधार: यूरोपीय संघ (EU) जैसे प्रमुख मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) को प्राथमिकता दी जाए। सीजनल आवश्यकताओं के अनुरूप श्रम विधानों में अनुकूलन लाया जाए। उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन योजना की प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित किया जाए तथा वस्त्र क्षेत्र हेतु वस्तु एवं सेवा कर (GST) प्रणाली को स्थिर रखा जाए।
    • चार श्रम संहिताएँमज़दूरी संहिता (2019), औद्योगिक संबंध संहिता (2020), सामाजिक सुरक्षा संहिता (2020) तथा व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यदशाएँ संहिता (2020)—को वस्त्र क्षेत्र की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप और अधिक सरल बनाया जाना चाहिये।
  • उत्पादकता एवं नवाचार में वृद्धि: 20–40% उत्पादकता अंतराल को दूर करने के लिये कौशल विकास में निवेश किया जाए। तकनीकी धारणीय वस्त्रों के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास (R&D) को प्रोत्साहित किया जाए। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को स्वचालन तथा कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) जैसे- उद्योग 4.0 उन्नयन हेतु ऋण-सुलभता प्रदान की जाए।
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार, धारणीय स्रोत-सामग्री की वैश्विक प्रवृत्ति के कारण आगामी वर्षों में वस्त्र उद्योग की लागत में वृद्धि संभावित है।
  • धारणीयता एवं ब्रांडिंग पर ध्यान केंद्रित करना: हरित ऊर्जा, जल पुनर्चक्रण तथा चक्रीय अर्थव्यवस्था आदि मॉडलों के माध्यम से धारणीय स्रोत-सामग्री को प्रोत्साहन दिया जाए। नवाचार-आधारित ब्रांडिंग को प्रोत्साहन दिया जाए तथा वैश्विक बाज़ारों के लिये “इंडिया हैंडलूम” एवं “इंडिया क्राफ्ट” जैसी सशक्त पहचान विकसित की जाए।

निष्कर्ष

एक व्यापक लागत रोडमैप जो कि लघु, मध्यम और दीर्घ अवधि को शामिल करता है, भारत के वस्त्र क्षेत्र को पुनर्जीवित कर सकता है, जिससे इनपुट तथा अनुपालन लागत में कमी आएगी, उत्पादकता में वृद्धि होगी, अनुसंधान एवं विकास और स्थिरता को बढ़ावा मिलेगा साथ ही FTA सुरक्षित होंगे। बुनियादी ढाँचे, व्यापार, श्रम, वित्त और नवाचार में समन्वित सुधार वर्ष 2030 तक $100 बिलियन के निर्यात और प्रतिस्पर्द्धा के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये आवश्यक हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:
प्रश्न: "महत्त्वपूर्ण आर्थिक योगदान के बावजूद भारत का वस्त्र क्षेत्र प्रतिस्पर्द्धात्मकता के संकट का सामना कर रहा है।" इस स्थिति के लिये ज़िम्मेदार संरचनात्मक बाधाओं का विश्लेषण कीजिये तथा आवश्यक रणनीतिक सुधारों का सुझाव दीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

प्रश्न: वैश्विक वस्त्र बाज़ार में भारत की रैंक क्या है?
भारत वैश्विक वस्त्र बाज़ार में पाँचवें स्थान पर है। वर्ष 2023–24 में भारत ने 34.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के वस्त्रों का निर्यात किया।

प्रश्न: भारत के औद्योगिक उत्पादन में वस्त्र उद्योग का कितना हिस्सा है?
वस्त्र उद्योग भारत के कुल औद्योगिक उत्पादन का 13% योगदान देता है। यह क्षेत्र भारत के GDP में लगभग 2.3% का योगदान करता है।

प्रश्न: वर्ष 2030 तक भारत के घरेलू वस्त्र बाज़ार का अनुमानित आकार क्या है?
अनुमान है कि वर्ष 2030 तक भारत का घरेलू वस्त्र बाज़ार 350 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगा।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रीलिम्स 

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. पिछले दशक में भारत-श्रीलंका व्यापार मूल्य में लगातार वृद्धि हुई है।  
  2.  "कपड़ा और कपड़े से निर्मित वस्तुएँ" भारत व बांग्लादेश के बीच व्यापार की एक महत्त्वपूर्ण वस्तु है।  
  3.  नेपाल पिछले पांँच वर्षों में दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार देश रहा है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b) 

मेन्स 

प्रश्न. भारत में अत्यधिक विकेंद्रीकृत सूती वस्त्र उद्योग के लिये कारकों का विश्लेषण कीजिये। (2013)


नाबालिगों के संपत्ति का अधिकार बरकरार

स्रोत: IE

चर्चा में क्यों?

के.एस. शिवप्पा बनाम श्रीमती के. नीलाम्मा केस 2025 में, सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने फैसला दिया कि वयस्क होने के बाद, कोई व्यक्ति अपने अभिभावक द्वारा न्यायालय की मंज़ूरी के बिना की गई संपत्ति की बिक्री को या तो मुकदमा दायर करके या स्पष्ट और असंदिग्ध आचरण, जैसे उस संपत्ति को दोबारा खुद बेच देने के माध्यम से भी उस लेनदेन को अस्वीकार कर सकता है।

नाबालिग की संपत्ति बेचने के बारे में कानून क्या कहता है?

  • मामले की पृष्ठभूमि: पिता ने प्राकृतिक अभिभावक (नेचुरल गार्डियन) के रूप में कार्य करते हुए, कानून द्वारा अपेक्षित ज़िला न्यायालय की मंज़ूरी प्राप्त किये बिना अपने नाबालिग बेटों के नाम पर खरीदे गए भूमि के हिस्सों को बेच दिया।
    • वयस्क होने के बाद, पुत्रों ने संपत्तियों को पुनः बेच दिया, जिसके परिणामस्वरूप मूल खरीदारों और बाद के क्रेताओं के बीच कानूनी विवाद उत्पन्न हो गए।
  • कानूनी ढाँचा: अभिभावकों द्वारा अवयस्कों के लिये अर्जित संपत्ति से संबंधित कानून तीन प्रमुख विधानों के अंतर्गत निर्धारित किये जाते हैं:
    • भारतीय संविदा अधिनियम, 1872: केवल पूर्ण आयु प्राप्त और स्वस्थ मस्तिष्क वाले व्यक्ति ही संविदा करने के पात्र होते हैं। अवयस्कों द्वारा की गईं संविदाएँ शुरू से ही शून्य मानी जाती हैं।
      • एक वैध संविदा के लिये सहमति, वैध उद्देश्य, वैध प्रतिफल और सक्षम पक्षों का होना आवश्यक है - जिसमें अंतिम शर्त विशेष रूप से तब महत्त्वपूर्ण होती है जब अवयस्क का प्रतिनिधित्व उसका अभिभावक करता है।
  • हिंदू अप्राप्तवयता और संरक्षकता अधिनियम, 1956: प्राकृतिक अभिभावक को अवयस्क के हित में ही कार्य करना चाहिये। अभिभावक न्यायालय की अनुमति के बिना अवयस्क की स्थावर संपत्ति को बेच, बंधक रख या पट्टे पर नहीं दे सकता।
    • बिना अनुमति की गई कोई भी बिक्री अवयस्क के विकल्प पर शून्यकरणीय होती है।
    • संरक्षक और प्रतिपाल्‍य अधिनियम, 1890: अभिभावक न्यायालय की अनुमति के बिना संरक्ष्य की संपत्ति का निपटान नहीं कर सकता।
    • परिसीमा अधिनियम, 1963: यह किसी व्यक्ति को वयस्क होने के बाद ऐसी संपत्ति अंतरण को चुनौती देने या रद्द करने के लिये 3 वर्ष का समय देता है।
  • हालिया सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: 
    • दो प्रकार की अस्वीकृति (Repudiation): न्यायालय ने माना कि कोई व्यक्ति किसी विलुप्त्य (voidable) लेन-देन को दो तरीकों से अस्वीकार कर सकता है या तो उसे निरस्त करने के लिये वाद (सूट) दायर करके, या फिर अपने स्पष्ट आचरण (unequivocal conduct) के माध्यम से उसका प्रतिषेध करके।
    • आचरण के रूप में वैध उपकरण: यदि कोई व्यक्ति वयस्कता प्राप्त करने के बाद तीन वर्ष की सीमा अवधि के भीतर संपत्ति को किसी नए खरीदार को पुनः बेच देता है तो यह कार्य मूल अनधिकृत विक्रय की वैध अस्वीकृति (valid repudiation) मानी जाएगी।
    • पावर ऑफ अटॉर्नी: यदि वादी (plaintiff) स्वयं गवाही देने से मना करता है तो उसका प्रतिनिधि (proxy) उन मुख्य तथ्यों पर गवाही नहीं दे सकता जो केवल वादी को ही ज्ञात हैं। अतः पावर ऑफ अटॉर्नी धारक मुख्य पक्ष (principal) के स्थान पर गवाही नहीं दे सकता।
  • महत्त्व: यह निर्णय भारतीय संपत्ति कानून में अवयस्कों की सुरक्षा को सुदृढ़ करता है, अब्दुल रहमान बनाम सुखदयाल सिंह, 1905 के पूर्ववर्ती निर्णय की पुष्टि करता है और परिसीमन अधिनियम, 1963 के अंतर्गत ऐसी अस्वीकृति के लिये तीन वर्ष की सीमा अवधि को स्पष्ट करता है।

निष्कर्ष

सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय नाबालिगों के संपत्ति अधिकारों को महत्त्वपूर्ण रूप से सशक्त बनाता है। आचरण के माध्यम से अनुबंध अस्वीकरण को मान्यता देकर, यह वयस्कों के लिये बिना अनुमति बेची गई संपत्ति को पुनः प्राप्त करने की प्रक्रिया को सरल बनाता है। साथ ही यह अभिभावक के न्यासीय कर्त्तव्य को सुनिश्चित करता है और पीड़ित पक्ष पर औपचारिक मुकदमेबाज़ी का बोझ कम करता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: यह चर्चा कीजिये कि के.एस. शिवप्पा बनाम के. नीलाम्मा (2025) का निर्णय नाबालिग के संपत्ति अधिकारों के संरक्षण को कैसे सशक्त बनाता है और इसका अभिभावकता कानून पर क्या प्रभाव पड़ता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

 1. नाबालिग द्वारा किये गए अनुबंध की कानूनी स्थिति क्या है?

भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 के अनुसार, नाबालिगों द्वारा किये गए अनुबंध शुरू से ही शून्य माने जाते हैं।

2. किसी व्यक्ति के लिये अपने अभिभावक द्वारा की गई संपत्ति हस्तांतरण को चुनौती देने की समय-सीमा क्या है?

सीमितीकरण अधिनियम, 1963 के अनुसार, वयस्कता प्राप्त करने की तिथि से तीन वर्ष की अवधि के भीतर ऐसे हस्तांतरण को चुनौती दी जा सकती है।

3. सर्वोच्च न्यायालय ने इस निर्णय के माध्यम से किस पूर्व निर्णय की पुनः पुष्टि की?

न्यायालय ने अब्दुल रहमान बनाम सुखदयाल सिंह (1905) मामले में स्थापित उस सिद्धांत की पुनः पुष्टि की, जिसमें आचरण के माध्यम से अनुबंध अस्वीकरण को मान्यता दी गई थी।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs) 

प्रीलिम्स

प्रश्न. भारत में संपत्ति के अधिकार की क्या स्थिति है? (2021)

(a) केवल नागरिकों के लिये उपलब्ध विधिक अधिकार
(b) किसी भी व्यक्ति के लिये उपलब्ध विधिक अधिकार
(c) केवल नागरिकों के लिये उपलब्ध मौलिक अधिकार
(d) न तो मौलिक अधिकार और न ही कानूनी अधिकार

उत्तर: (b)

प्रश्न. भारत के संविधान के उद्देश्यों में से एक के रूप में 'आर्थिक न्याय' का किसमें उपबंध किया गया है? (2013) 

(a) उद्देशिका और मूल अधिकार
(b) उद्देशिका और राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व
(c) मूल अधिकार और राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व
(d) उपर्युक्त में से किसी में नहीं 

उत्तर: (b)


मेन्स: 

प्रश्न. कोहिलो केस में क्या अभिनिर्धारित किया गया था? इस संदर्भ में क्या आप कह सकते हैं कि न्यायिक पुनर्विलोकन संविधान के बुनियादी अभिलक्षणों में प्रमुख महत्त्व का है? (2016) 

प्रश्न: कृषि विकास में भूमि सुधारों की भूमिका पर चर्चा कीजिये। भारत में भूमि सुधारों की सफलता के लिये उत्तरदायी कारकों की पहचान कीजिये। (2016)

प्रश्न. भूमि अर्जन, पुनरुद्धार और पुनर्वासन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 पहली जनवरी, 2014 से प्रभावी हो गया है। इस अधिनियम के लागू होने से कौन-से महत्त्वपूर्ण मुद्दों का समाधान निकलेगा? भारत में उद्योगीकरण और कृषि पर इसके क्या परिणाम होंगे?