अवैध रेत खनन | राजस्थान | 06 Sep 2025
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र और राजस्थान सरकार को नोटिस जारी कर राज्य में व्यापक स्तर पर अवैध नदी रेत खनन और परिवहन संबंधी आरोपों पर स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
मुख्य बिंदु
- रेत खनन के बारे में:
- रेत खनन का अर्थ प्राकृतिक बालू और उसके स्रोतों (खनिज युक्त बालू तथा एग्रीगेट्स सहित) को प्राकृतिक पर्यावरण (स्थलीय, नदीय, तटीय या समुद्री) से निकालने की प्रक्रिया से है, जिसका उपयोग खनिज, धातु, क्रश्ड स्टोन, रेत और बजरी प्राप्त करने में किया जाता है।
- अवैध नदी रेत खनन से तात्पर्य नदी तल, तटों और बाढ़क्षेत्रों से अनधिकृत एवं अनियमित निष्कर्षण से है।
- रेत का स्रोत:
- भारत में रेत के प्राथमिक स्रोतों में नदी बाढ़ के मैदान, तटीय रेत, पैलियो-चैनल रेत तथा कृषि क्षेत्रों से प्राप्त रेत शामिल हैं।
- अवैध रेत खनन में योगदान देने वाले कारक:
- विनियमन का अभाव और कमज़ोर प्रवर्तन अनियंत्रित अवैध रेत खनन को बढ़ावा देता है।
- शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि के कारण निर्माण उद्योग की उच्च माँग से नदी-तल तथा तटीय क्षेत्रों पर दबाव बढ़ रहा है।
- भ्रष्टाचार और रेत माफिया का प्रभाव, अधिकारियों की मिलीभगत के साथ, अवैध खनन गतिविधियों को बनाए रखता है
- स्थायी विकल्पों का अभाव: निर्मित रेत (एम-रेत) का सीमित उपयोग तथा पर्यावरण-अनुकूल विकल्पों के अपर्याप्त प्रचार से नदी-तल की रेत पर निर्भरता बढ़ जाती है।
- रेत खनन के प्रभाव:
- कटाव और आवास विघटन: अनियमित रेत खनन से नदी तल बदल जाता है, जिससे कटाव बढ़ जाता है, चैनल आकारिकी में बदलाव होता है और जलीय आवासों में व्यवधान होता है।
- बाढ़ और अवसादन: रेत की कमी से बाढ़ का जोखिम बढ़ता है, अवसाद का भार बढ़ता है तथा प्रवाह-पैटर्न में परिवर्तन होता है, जिससे जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को हानि पहुँचती है।
- भूजल ह्रास: गहरे गड्ढों के निर्माण से भूजल स्तर नीचे चला जाता है, जिससे पेयजल कुओं पर प्रभाव पड़ता है और जल-संकट की स्थिति उत्पन्न होती है।
- जैवविविधता की हानि: इससे जलीय और तटीय प्रजातियों की क्षति होती है तथा इसका प्रभाव मैंग्रोव वनों तक व्याप्त हो जाता है।
- रेत खनन से संबंधित विनियम:
- खनिज एवं खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 (MMDR Act, 1957): इस अधिनियम के अंतर्गत रेत को लघु खनिज (Minor Mineral) के रूप में वर्गीकृत किया गया है तथा इसकी प्रशासनिक ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों को सौंपी गई है।
- सस्टेनेबल सैंड माइनिंग मैनेजमेंट (SSMG) दिशा-निर्देश, 2016: पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने वर्ष 2016 में इन दिशा-निर्देशों को जारी किया, जिनका उद्देश्य वैज्ञानिक एवं पर्यावरण-अनुकूल रेत खनन पद्धतियों को बढ़ावा देना है।
- पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA): भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया है कि सभी रेत खनन गतिविधियों के लिये, यहाँ तक कि 5 हेक्टेयर से छोटे क्षेत्रों में भी, पूर्व अनुमोदन आवश्यक है।