गोरखपुर में भारत का पहला वन विश्वविद्यालय | उत्तर प्रदेश | 20 Dec 2025
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश सरकार ने गोरखपुर में भारत के पहले समर्पित वन विश्वविद्यालय की स्थापना की घोषणा की, जिसमें लगभग 500 करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा। इसका उद्देश्य वानिकी, वन्यजीव और पर्यावरण शिक्षा और अनुसंधान को बढ़ावा देना है।
मुख्य बिंदु
- स्वीकृति और लागत: राज्य सरकार ने वन विश्वविद्यालय के लिये डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट (DPR) को स्वीकृति दी है, जिसकी अनुमानित लागत 500 करोड़ रुपये है।
- स्थान: यह विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में जटायु संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र के निकट लगभग 125 एकड़ भूमि पर विकसित किया जाएगा।
- शैक्षणिक लक्ष्य: यह विश्वविद्यालय वानिकी, कृषि वानिकी, सामाजिक वानिकी, बागवानी, वन्यजीव अध्ययन, पारिस्थितिकी और पर्यावरण विज्ञान में विशिष्ट डिग्री तथा डिप्लोमा पाठ्यक्रम प्रदान करेगा।
- पाठ्यक्रम और प्रशिक्षण: शैक्षणिक ढाँचा कक्षा आधारित अध्ययन को क्षेत्र-आधारित व्यावहारिक अनुसंधान के साथ एकीकृत करेगा, जिससे छात्रों को वनों और संरक्षण स्थलों में प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त होगा।
- अवसंरचना योजना: परिसर में अलग छात्रावास, कक्षाएँ, प्रयोगशालाएँ, प्रशासनिक ब्लॉक, ऑडिटोरियम और अध्यापकों के लिये आवासीय सुविधाएँ होंगी।
- राष्ट्रीय महत्त्व: यह विश्वविद्यालय वन शिक्षा, संरक्षण अनुसंधान और प्रशिक्षण के लिये राष्ट्रीय केंद्र के रूप में कार्य करेगा, जिससे भारत की पर्यावरण संरक्षण तथा सतत विकास क्षमता में वृद्धि होगी।
- UP ISFR 2023 रिपोर्ट: रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश में भारत में हरित आवरण (वन + वृक्ष आवरण) में दूसरी सबसे अधिक वृद्धि दर्ज की गई, जिसमें 559.19 वर्ग किमी का विस्तार हुआ और कुल हरित आवरण राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का 9.96% तक पहुँच गया।
भेजा-बकौर कोसी पुल परियोजना | राष्ट्रीय करेंट अफेयर्स | 20 Dec 2025
चर्चा में क्यों?
उत्तरी बिहार में निर्माणाधीन 13.3 किलोमीटर लंबा भेजा–बकौर कोसी पुल अब अपने अंतिम चरण में पहुँच चुका है, जिससे बाढ़-प्रभावित क्षेत्रों में कनेक्टिविटी में गुणात्मक सुधार, यात्रा दूरी में कमी और क्षेत्रीय विकास को गति मिलने की संभावना है।
मुख्य बिंदु
- परियोजना स्थान: भेजा–बकौर कोसी पुल का निर्माण बिहार में कोसी नदी पर किया जा रहा है।
- कोसी नदी: कोसी को प्रायः “बिहार का शोक” कहा जाता है। यह नदी तिब्बती पठार से उद्गमित होकर नेपाल से प्रवाहित होती हुई बिहार के कटिहार ज़िले में कुरसेला के पास गंगा नदी में मिल जाती है।
- रणनीतिक संपर्क: इस पुल के चालू होने से यात्रा दूरी में लगभग 44 किलोमीटर की कमी आएगी, जिससे मधुबनी और सुपौल के बीच NH-27 के माध्यम से पटना के साथ सीधा संपर्क स्थापित होगा।
- क्षेत्रीय वाणिज्य: परियोजना से नेपाल और उत्तर-पूर्वी भारत के लिये निर्बाध परिवहन मार्ग उपलब्ध होने की संभावना है, जिससे सीमा-पार व्यापार तथा क्षेत्रीय वाणिज्य को प्रोत्साहन मिलेगा।
- योजना: यह परियोजना सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा भारत माला परियोजना (चरण-I) के अंतर्गत विकसित की जा रही है।
- निवेश: परियोजना की अनुमानित लागत 1101.99 करोड़ रुपए है।
- परियोजना पूर्णता की समयसीमा: इसे वित्त वर्ष 2026–27 के दौरान पूर्ण करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
- धार्मिक और पर्यटन स्थल: पुल के माध्यम से भगवती उच्चैठ, बिदेश्वर धाम, उग्रतारा मंदिर तथा सिंघेश्वर स्थान जैसे प्रमुख धार्मिक एवं पर्यटन स्थलों तक आसान कनेक्टिविटी सुनिश्चित होगी।
- परिवर्तनकारी प्रतीक: यह पुल उत्तरी बिहार में दशकों से चली आ रही बाढ़, भौगोलिक अलगाव और अविकास की स्थिति से निकलकर बेहतर संपर्क, समावेशी विकास तथा क्षेत्रीय एकीकरण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तनकारी प्रतीक है।