पारसनाथ पहाड़ी | झारखंड | 12 May 2025
चर्चा में क्यों?
झारखंड उच्च न्यायालय द्वारा पारसनाथ पहाड़ी पर मांसाहारी भोजन, पशु हानि और पर्यटन पर प्रतिबंध लगाने के आदेश के बाद, संथाल समूह मरंग बुरु संवता सुसार बैसी (MBSSSB) ने आदिवासियों के लिये पहाड़ी के धार्मिक महत्त्व का संदर्भ देते हुए अपने पारंपरिक शिकार अनुष्ठान को जारी रखने की घोषणा की।
मुख्य बिंदु
- अनुष्ठान के बारे में:
- प्रतीकात्मक शिकार मारंग बुरु के जंगलों में होता है, जहाँ संथाल प्रतीकात्मक रूप से शिकार करते हुए (जानवरों को मारे बिना) एक रात बिताते हैं, जिसके बाद पास के गाँव में दो दिनों की जनजातीय सभा होती है।
- इस कार्यक्रम का उपयोग सामुदायिक स्तर के मामलों को संबोधित करने के लिये किया जाता है और आदिवासी समुदाय के लिये इसका दीर्घकालिक धार्मिक महत्त्व है।
- न्यायालय का आदेश:
- राज्य उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को पारसनाथ पहाड़ी पर कुछ गतिविधियों पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के प्रतिबंध को लागू करने का निर्देश दिया।
- इस पहाड़ी को वर्ष 2019 में पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया गया था और मंत्रालय के आदेश में मांसाहारी भोजन, जानवरों को नुकसान पहुँचाने और अत्यधिक पर्यटन पर प्रतिबंध लगाया गया।
- मंत्रालय के ज्ञापन में क्षेत्र में धार्मिक इको-पर्यटन को बढ़ावा देने की राज्य सरकार की योजना पर भी रोक लगा दी गई है, जिसका जैन समुदाय ने कड़ा विरोध किया है।
- एक सदी पुराना विवाद:
- पारसनाथ पहाड़ी (मरांग बुरु) पर जैन और आदिवासी समुदायों के बीच पूजा के अधिकार को लेकर संघर्ष एक सदी से अधिक समय से जारी है।
- 1911 की जनगणना में श्वेतांबर जैन संप्रदाय द्वारा दायर एक कानूनी मामले का दस्तावेज़ीकरण किया गया, जो प्रिवी काउंसिल तक पहुँचा, जहाँ आदिवासियों के प्रथागत अधिकारों को बरकरार रखा गया।
पारसनाथ पहाड़ियाँ
- पारसनाथ पहाड़ियाँ झारखंड के गिरिडीह ज़िले में स्थित पहाड़ियों की एक शृंखला है।
- इस पहाड़ी की सबसे ऊँची चोटी 1350 मीटर है। यह जैनियों के सबसे महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थलों में से एक है। वे इसे सम्मेद शिखर कहते हैं।
- पहाड़ी का नाम 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ (Parshvanatha) के नाम पर रखा गया है।
- बीस जैन तीर्थंकरों ने इस पहाड़ी पर मोक्ष प्राप्त किया। उनमें से प्रत्येक के लिये पहाड़ी पर एक तीर्थ (गुमती या तुक) है।
- माना जाता है कि पहाड़ी पर स्थित कुछ मंदिर 2,000 वर्ष से अधिक पुराने हैं।
- संथाल समुदाय इसे देवता की पहाड़ी मारंग बुरु कहते हैं। वे बैसाख (मध्य अप्रैल) में पूर्णिमा के दिन शिकार उत्सव मनाते हैं।
संथाल जनजाति
- गोंड और भील के बाद यह भारत में तीसरी सबसे बड़ी अनुसूचित जनजाति है, जो अपने शांतिपूर्ण स्वभाव के लिये जानी जाती है। वे मूल रूप से खानाबदोश थे और बिहार तथा ओडिशा के संथाल परगना में बसने से पहले छोटा नागपुर पठार में निवास करते थे।
- ये झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में निवास करते हैं तथा कृषि, औद्योगिक श्रम, खनन एवं उत्खनन जैसे कार्यों में शामिल हैं।
- वे एक स्वायत्त आदिवासी धर्म में आस्था रखते हैं और पवित्र उपवनों के रूप में प्रकृति की उपासना करते हैं। उनकी भाषा को संथाली कहा जाता है जिसकी अपनी लिपि है जिसे 'OL चिकी' कहा जाता है जो आठवीं अनुसूची में अनुसूचित भाषाओं की सूची में शामिल है।
- उनके कलारूप, जैसे- फूटा कच्चा पैटर्न की साड़ी और पोशाक आदि लोकप्रिय हैं। वे कृषि और उपासना से संबंधित विभिन्न त्योहारों तथा अनुष्ठानों को मनाते हैं। संथाल घर, जिन्हें 'Olah' के नाम से जाना जाता है, बाहरी दीवारों पर बहुरंगी चित्रों से सुसज्जित अपने बड़े आकार, सफाई और आकर्षक रूप के कारण आसानी से पहचाने जा सकते हैं।