प्रथम आयुष विश्वविद्यालय | उत्तर प्रदेश | 02 Jul 2025
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने उत्तर प्रदेश के पहले आयुष विश्वविद्यालय 'महायोगी गुरु गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय' का गोरखपुर में उद्घाटन किया।
- उन्होंने इस क्षेत्र की आध्यात्मिक तथा ऐतिहासिक विरासत पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह परमहंस योगानंद की जन्मस्थली भी है।
मुख्य बिंदु
गोरखपुर की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत:
- नाथ परंपरा:
- श्री आदिनाथ, मत्स्येन्द्रनाथ तथा गुरु गोरखनाथ की शिक्षाओं पर आधारित नाथ परंपरा की उत्पत्ति गोरखपुर में हुई।
- समय के साथ यह आध्यात्मिक परंपरा संपूर्ण भारत में फैली तथा विश्व के अनेक देशों तक पहुँची, जिससे विविध योगिक एवं तप साधना पद्धतियों पर व्यापक प्रभाव पड़ा।
- भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका:
- गोरखपुर का महत्त्व केवल आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि उसका भारत के स्वतंत्रता आंदोलनों से भी गहरा संबंध रहा है।
- 18वीं शताब्दी में साधुओं के नेतृत्व में हुए विद्रोहों से लेकर 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम तक, यह क्षेत्र निरंतर प्रतिरोध का केंद्र बना रहा।
- बाबू बंधू सिंह तथा राम प्रसाद बिस्मिल जैसे महान स्वतंत्रता सेनानियों का बलिदान इस पवित्र भूमि से गहराई से जुड़ा है, जो इसके साहस तथा देशभक्ति की परंपरा को उजागर करता है।
- गुरु गोरखनाथ के बारे में:
- गोरखनाथ, जिनका काल संभवतः 11वीं शताब्दी ईस्वी के आसपास माना जाता है, एक प्रख्यात हिंदू योगी और कानफटा योगियों के आध्यात्मिक प्रवर्तक माने जाते हैं। यह संप्रदाय हठ योग का अभ्यास करने वाले तपस्वियों के रूप में प्रसिद्ध है।
- कनफटा योगी, हठ योग के सिद्धांतों के अनुरूप शारीरिक अनुशासन तथा आध्यात्मिक निपुणता दोनों पर ज़ोर देते हैं। हठ योग, जो गोरखनाथ की शिक्षाओं से निकटता से जुड़ा है, एक ऐसी दार्शनिक एवं आध्यात्मिक प्रणाली है, जो आध्यात्मिक पूर्णता के मार्ग में शरीर पर नियंत्रण को माध्यम बनाती है।
- यह विचारधारा तप को गहन योगिक अनुशासन के साथ संयोजित करती है, जो कर्मकांडीय अथवा विशुद्ध भक्ति परंपराओं से भिन्न मानी जाती है।
परमहंस योगानंद के बारे में:
- परिचय
- परमहंस योगानंद (1893–1952) पश्चिमी दुनिया में स्थायी निवास स्थापित करने वाले पहले भारतीय योग गुरु थे।
- उन्होंने 20वीं सदी के प्रारंभ में पश्चिमी समाज को भारतीय आध्यात्मिक दर्शन से परिचित कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- एक स्थायी आध्यात्मिक विरासत:
- हालाँकि उनकी प्रारंभिक उपस्थिति ने पश्चिम में गहरा सांस्कृतिक प्रभाव डाला, किंतु योगानंद की स्थायी विरासत उनके द्वारा प्रेरित आध्यात्मिक जागृति में निहित है।
- उन्होंने वर्ष 1952 में अपने निधन तक सतत् रूप से व्याख्यान देना, लेखन करना तथा क्रिया योग, ध्यान और सार्वभौमिक आध्यात्मिकता के समन्वय को बढ़ावा देना जारी रखा।
- वर्ष 1946 में प्रकाशित उनकी मौलिक कृति 'योगी की आत्मकथा' ने पश्चिमी दुनिया में आध्यात्मिक क्रांति को जन्म दिया, जो आज भी प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है।

जयपुर में वर्षा जल संचयन | राजस्थान | 02 Jul 2025
चर्चा में क्यों?
राजस्थान के जयपुर ज़िले के कूकस क्षेत्र में 15 करोड़ लीटर जल संरक्षण क्षमता विकसित किये जाने के पश्चात वर्षा जल संचयन और सिंचाई परियोजना का उद्घाटन किया गया।
नोट: राजस्थान का 80% क्षेत्र भूजल की कमी से जूझ रहा है; 50% पेयजल और 60% सिंचाई तेज़ी से घटते जलभृतों (aquifers) पर निर्भर है।
- अत्यधिक निष्कर्षण के कारण लवणता, फ्लोराइड और नाइट्रेट संदूषण बढ़ जाता है, जिससे कई क्षेत्रों में गंभीर स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न हो रहें हैं।
मुख्य बिंदु
- छोटे किसानों के लिये प्रत्यक्ष लाभ:
- इस परियोजना से 6,000 से अधिक ग्रामीणों, मुख्यतः छोटे किसानों तथा पशुपालकों को सीधा लाभ प्राप्त होगा।
- इसके परिणामस्वरूप प्रतिवर्ष 5 करोड़ रुपए तक कृषि आय में वृद्धि तथा 10,000 से अधिक ग्रामीण परिवारों के लिये दीर्घकालिक पेयजल सुरक्षा सुनिश्चित होने की संभावना है।
- ये तालाब प्रत्येक खेत से प्रत्यक्ष वर्षा जल संग्रहण के लिये विकसित किये गए हैं और अनेक तालाब वर्तमान मानसून के दौरान भरने भी लगे हैं।
- मानसून की समाप्ति तक इस क्षेत्र के तालाब वर्षा आधारित खेतों के लिये स्थायी जल स्रोत बनने की उम्मीद है।
- इससे न केवल तेज़ी से घटते भूजल स्रोतों पर निर्भरता कम होगी, बल्कि यह टिकाऊ कृषि को भी सशक्त रूप से बढ़ावा देगा।
- रणनीतिक साझेदारी:
- इस परियोजना को एटॉमिक पावर एवोल्यूशन अवेयरनेस फाउंडेशन तथा हीरो मोटोकॉर्प की कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) शाखा ‘Hero We Care’ के बीच सहयोग से संचालित किया जा रहा है।
- यह परियोजना कूकस क्षेत्र में क्रियान्वित हो रही है, जहाँ कछेरावाला नदी सूख चुकी है और 200 से अधिक कुएँ व हैंडपंप अनुपयोगी हो चुके हैं।
- इस क्षेत्र में भूमिगत जल स्तर घटकर 1,000 फीट तक पहुँच चुका है, जिससे सतही जल संरक्षण अत्यंत आवश्यक हो गया है।
- जल संरक्षण से संबंधित भारत की पहलें:
जल संचयन प्रणाली
- जल संचयन प्रणाली एक ऐसी प्रौद्योगिकी या संरचना है, जिसे वर्षा जल, सतही अपवाह अथवा अन्य जल स्रोतों को कृषि, घरेलू उपयोग तथा भूजल पुनर्भरण जैसे विभिन्न उद्देश्यों के लिये संगृहीत, भंडारित एवं प्रयुक्त करने हेतु विकसित की जाती है।
- यह एक स्थायी जल प्रबंधन पद्धति है, जिसका उद्देश्य जल संरक्षण को बढ़ावा देना तथा जल की कमी की समस्या को दूर करना है।
प्रकार:
- वर्षा जल संचयन (RWH): छत संग्रहण एवं भूमिगत भंडारण जैसी विधियों के माध्यम से वर्षा जल को एकत्र कर संगृहीत किया जाता है।
- भूजल पुनर्भरण प्रणालियाँ: पुनर्भरण कुओं जैसी तकनीकों के माध्यम से वर्षा जल को ज़मीन में रिसाकर भूजल स्तर को बनाए रखने तथा सुधारने में सहायक होती हैं।
- सतही जल संचयन: तालाबों एवं जलाशयों के माध्यम से भूमि या खुले खेतों से वर्षा जल एकत्र कर सिंचाई तथा अन्य उपयोगों में प्रयुक्त किया जाता है।
- शहरी जल संचयन: शहरों में छतों तथा सतहों से वर्षा जल को संगृहीत किया जाता है ताकि नगरपालिका जल प्रणालियों पर दबाव कम हो तथा तूफानी जल का प्रबंधन किया जा सके।
नव्या पहल | उत्तर प्रदेश | 02 Jul 2025
चर्चा में क्यों?
किशोरियों को सशक्त बनाने के लिये उत्तर प्रदेश के सोनभद्र ज़िले में 'नव्या – युवा किशोरियों के लिये व्यावसायिक प्रशिक्षण के माध्यम से आकांक्षाओं का पोषण' कार्यक्रम प्रारंभ किया गया।
मुख्य बिंदु
- सशक्तीकरण के लिये नव्या पहल:
- नव्या, कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय तथा महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की एक संयुक्त पहल है।
- इसे 19 राज्यों के 27 आकांक्षी ज़िलों में क्रियान्वित किया जाएगा ताकि हाशिये पर स्थित तथा वंचित क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जा सके।
- यह एक पायलट पहल है जिसका उद्देश्य 16–18 वर्ष की आयु वर्ग की किशोरियों को, जो कक्षा 10 की न्यूनतम शैक्षिक योग्यता रखती हैं, मुख्यतः गैर-पारंपरिक रोजगार भूमिकाओं में व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करना है।
- यह पहल विकसित भारत@2047 विज़न के अनुरूप है तथा महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास को बढ़ावा देती है।
- यह एक कुशल, आत्मनिर्भर और समावेशी कार्यबल के निर्माण हेतु सरकार की प्रतिबद्धता को मज़बूत करती है और युवा लड़कियों को सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन के वाहक के रूप में स्थापित करती है।
- यह कार्यक्रम प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) तथा अन्य प्रमुख कौशल विकास योजनाओं पर आधारित होगा।
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY):
- भारत सरकार द्वारा वर्ष 2015 में कौशल भारत मिशन की शुरुआत की गई थी, जिसके तहत प्रमुख योजना प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) को क्रियान्वित किया गया है।
- इस योजना का उद्देश्य भारतीय युवाओं को बेहतर आजीविका और समाज में सम्मान दिलाने के लिये उन्हें व्यावसायिक प्रशिक्षण एवं प्रमाणन प्रदान करना है।
- PMKVY का कार्यान्वयन कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय (MSDE) के मार्गदर्शन में राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) द्वारा किया जाता है।