उत्तर प्रदेश में बनेंगे चार आधुनिक बचाव केंद्र | 25 Jun 2025

चर्चा में क्यों?

उत्तर प्रदेश सरकार  मानव और बड़े मांसाहारी जीवों के बीच बढ़ते टकराव को देखते हुए चार आधुनिक बचाव केंद्रों की स्थापना कर रही है।

मुख्य बिंदु

बचाव केंद्रों के बारे में

  • वन एवं वन्यजीव विभाग मानव-वन्यजीव संघर्षों, विशेष रूप से बाघ, तेंदुआ और सियार जैसे बड़े मांसाहारी जानवरों के संघर्षों को कम करने और उनसे निपटने के लिये चार आधुनिक बचाव केंद्र स्थापित कर रहा है।
  • ये बचाव केंद्र रणनीतिक रूप से प्रमुख क्षेत्रों में स्थापित किये जाएंगे: पश्चिमी उत्तर प्रदेश, तराई, अवध और बुंदेलखंड, ताकि मानव बस्तियों में भटक कर आने वाले जंगली जानवरों को सुरक्षित आश्रय प्रदान किया जा सके।
  • इन केंद्रों के लिये जिन विशिष्ट स्थानों का चयन किया गया है, उनमें हस्तिनापुर वन्यजीव अभयारण्य (मेरठ), पीलीभीत टाइगर रिज़र्व, सोहागीबरवा वन्यजीव अभयारण्य (महराजगंज) तथा रानीपुर वन्यजीव अभयारण्य (चित्रकूट) शामिल हैं।
  • राज्य सरकार ने इन बचाव केंद्रों की स्थापना के लिये 57.2 करोड़ रुपए आवंटित किये हैं, जो इस पहल के महत्त्व को दर्शाता है।

मानव-वन्यजीव संघर्ष

  • परिचय:
    • मानव-वन्यजीव संघर्ष उन स्थितियों को संदर्भित करता है जहाँ मानव गतिविधियों, जैसे कि कृषि, बुनियादी ढाँचे का विकास अथवा संसाधन निष्कर्षण, में वन्यजीवों के साथ संघर्ष की स्थिति होती है, परिणामस्वरूप मानव एवं वन्यजीवों दोनों के लिये नकारात्मक परिणाम सामने आते हैं।
  • प्रभाव: 
    • आर्थिक क्षति: मानव-वन्यजीव संघर्ष के परिणामस्वरूप लोगों, विशेष रूप से किसानों और पशुपालकों की आर्थिक क्षति हो सकती है। वन्यजीव फसलों को नष्ट कर सकते हैं, बुनियादी ढाँचे को नुकसान पहुँचा सकते हैं तथा पशुधन को हानि पहुँचा सकते हैं जिससे वित्तीय कठिनाई हो सकती है।
    • मानव सुरक्षा के लिये खतरा: जंगली जानवर मानव सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न कर सकते हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ मानव और वन्यजीव सह-अस्तित्व में रहते हैं। शेर, बाघ और भालू जैसे बड़े शिकारियों के हमलों के परिणामस्वरूप गंभीर चोट या मृत्यु हो सकती है। 
    • पारिस्थितिक क्षति: मानव-वन्यजीव संघर्ष पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। उदाहरण के लिये, यदि मानव शिकारी-जीवों को मारते हैं तो शिकार प्रजातियों की आबादी में वृद्धि हो सकती है, जो पारिस्थितिक असंतुलन का कारण बन सकती है। 
    • संरक्षण चुनौतियाँ: मानव-वन्यजीव संघर्ष भी संरक्षण प्रयासों के लिये एक चुनौती उत्पन्न कर सकता है, क्योंकि इससे वन्यजीवों की नकारात्मक धारणा हो सकती हैं तथा संरक्षण उपायों को लागू करना कठिन हो सकता है। 
    • मनोवैज्ञानिक प्रभाव: मानव-वन्यजीव संघर्ष का लोगों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी हो सकता है, विशेष रूप से उन लोगों पर जिन्होंने हमलों या संपत्ति के नुकसान का अनुभव किया है। यह भय, चिंता और आघात का कारण बन सकता है।
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष से निपटने के लिये सरकारी उपाय:
    • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: यह अधिनियम गतिविधियों, शिकार पर प्रतिबंध, वन्यजीव आवासों की सुरक्षा और प्रबंधन तथा संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना आदि के लिये कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
    • जैविक विविधता अधिनियम, 2002: भारत, जैविक विविधता पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन का एक हिस्सा है। यह सुनिश्चित करता है कि जैविक विविधता अधिनियम वनों और वन्यजीवों से संबंधित मौजूदा कानूनों का उल्लंघन करने के बजाय पूरक है।
    • राष्ट्रीय वन्यजीव कार्य योजना (2002-2016): यह संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क को मज़बूत करने और बढ़ाने, लुप्तप्राय वन्यजीवों तथा उनके आवासों के संरक्षण, वन्यजीव उत्पादों में व्यापार को नियंत्रित करने एवं अनुसंधान, शिक्षा व प्रशिक्षण पर केंद्रित है।
    • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA): यह अपनी विकास योजनाओं और परियोजनाओं में आपदा की रोकथाम या इसके प्रभावों को कम करने के उपायों को एकीकृत करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों या विभागों द्वारा पालन किये जाने वाले दिशा-निर्देश निर्धारित करता है।