ज़िला दिव्यांगता पुनर्वास केंद्र | 25 Sep 2025
चर्चा में क्यों?
उत्तराखंड ने दिव्यांगजनों को एक ही स्थान पर व्यापक सेवाएँ प्रदान करने के लिये देहरादून के गांधी शताब्दी अस्पताल में अपना पहला आधुनिक, बहुउद्देशीय ज़िला दिव्यांगता पुनर्वास केंद्र (DDRC) शुरू किया।
मुख्य बिंदु
- प्रदान की जाने वाली सेवाएँ: DDRC दिव्यांगता प्रमाण-पत्र, फिजियोथैरेपी, परामर्श, सहायक उपकरण और सरकारी कल्याण योजनाओं तक पहुँच जैसी सेवाएँ प्रदान करता है।
- लाभार्थी सहायता: दिव्यांग व्यक्ति विशिष्ट आईडी , आधार पंजीकरण, मनोवैज्ञानिक परामर्श, कृत्रिम अंग उपकरण, चिकित्सा उपचार और रोज़गार प्रशिक्षण जैसी सेवाओं का लाभ उठा सकते हैं।
- उत्तराखंड की लगभग 20% जनसंख्या किसी न किसी प्रकार की दिव्यांगता से प्रभावित है।
- प्रशासन: यह केंद्रीय समाज कल्याण विभाग की निगरानी में एक नोडल एजेंसी के अधीन कार्य करता है, जिसमें 14 कर्मचारी पद, एक समर्पित परिवहन वाहन और एक हेल्पलाइन शामिल हैं।
- समग्र पुनर्वास: चिकित्सा, सामाजिक, शैक्षिक और मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन के बाद सेवाएँ प्रदान की जाती हैं, जिससे व्यापक पुनर्वास सुनिश्चित होता है।
- स्वावलंबन पर ज़ोर: केंद्र लाभार्थियों में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिये व्यावसायिक प्रशिक्षण, पुनर्वास और स्वरोज़गार योजनाओं पर विशेष ध्यान देता है।
- बहु-विषयक टीम: स्टाफ में फिजियोथैरेपिस्ट, भाषण एवं व्यावसायिक चिकित्सक (speech and occupational therapists) और परामर्शदाता शामिल हैं, जो समग्र देखभाल प्रदान करते हैं।
भारत में दिव्यांगजनों की वर्तमान स्थिति
- जनगणना 2011 के अनुसार, भारत में 2.68 करोड़ दिव्यांग व्यक्ति (PWD) हैं, जो कुल जनसंख्या का 2.21% है।
- दिव्यांगता का प्रसार महिलाओं (1.9%) की तुलना में पुरुषों (2.4%) में अधिक है तथा यह शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक है।
- दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत 21 प्रकार की दिव्यांगताओं (disabilities) को मान्यता दी गई है, जिनमें लोकोमोटर दिव्यांगता, दृश्य दिव्यांग, श्रवण दिव्यांग, भाषण और भाषा दिव्यांगता, बौद्धिक दिव्यांगता, बहु-दिव्यांगता, मस्तिष्क पक्षाघात और बौनापन आदि शामिल हैं।