उत्तराखंड में बादल फटने की घटना | 01 Jul 2025

चर्चा में क्यों?

उत्तराखंड के उत्तरकाशी में बादल फटने से भूस्खलन हुआ, प्रमुख तीर्थयात्रा मार्ग बाधित हुए तथा कई श्रमिक लापता हो गए। 

  • बाढ़ और भूस्खलन की आशंका वाले ज़िलों को हाई अलर्ट पर रखा गया है। 

मुख्य बिंदु

  • बादल फटना (Cloudburst):
    • बादल फटना एक अचानक और तीव्र वर्षा की घटना होती है, जिसमें लगभग 10 वर्ग किमी क्षेत्र में एक घंटे से भी कम समय में 10 सेमी से अधिक वर्षा हो जाती है।
    • यह ओलावृष्टि और गरज के साथ भी हो सकती है। बादल फटना विशेष रूप से हिमालयी क्षेत्रों में सामान्य घटना है।
    • स्थानीय प्रकृति के कारण इसकी पहले से भविष्यवाणी करना या पता लगाना कठिन होता है, लेकिन इससे अचानक विनाशकारी वर्षा हो सकती है, जिससे अचानक बाढ़ और भूस्खलन की स्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
  • भूस्खलन (Landslide):
    • परिभाषा: भूस्खलन वह प्रक्रिया है, जिसमें चट्टानों, मिट्टी या मलबे का ढलान की दिशा में गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से नीचे की ओर खिसकना होता है।
    • यह द्रव्यमान क्षरण (mass wasting) का एक रूप है, जिसमें पृथ्वी की सामग्री ढलान पर नीचे की ओर सरकती है।
    • कारण: भारी वर्षा, भूकंप तथा जल रिसाव जैसे प्राकृतिक कारक ढलानों को कमज़ोर करते हैं, जबकि वनों की कटाई और निर्माण कार्यों जैसी मानव गतिविधियाँ इस जोखिम को बढ़ाती हैं।
    • मिट्टी की संरचना और भू-आकृति जैसे भौगोलिक कारक भी ढलान की स्थिरता को प्रभावित करते हैं और भूस्खलन का कारण बन सकते हैं।
  • आकस्मिक बाढ़ (Flash Floods):
    • परिभाषा: 
      • आकस्मिक बाढ़ वह स्थिति होती है, जब तीव्र वर्षा के दौरान या तुरंत बाद जल स्तर में तीव्र वृद्धि होती है।
      • ये अत्यधिक स्थानीयकृत और अल्पकालिक घटनाएँ हैं, जो आमतौर पर वर्षा के 6 घंटे के भीतर घटित होती हैं। 
    • कारण: 
      • आकस्मिक बाढ़ मुख्यतः तीव्र वर्षा के कारण होती है, जो मिट्टी की जल अवशोषण क्षमता और जल निकासी प्रणालियों को प्रभावित करती है।  
      • भारी वर्षा के अतिरिक्त, तापमान में अचानक वृद्धि से होनेवाली शीघ्र हिम पिघलन, बाँध या तटबंध का टूटना, बर्फ या मलबे की रुकावट तथा ग्लेशियर झील का अचानक फटना भी इसके कारण हो सकते हैं।
      • इसके अलावा, शहरीकरण के चलते सड़कों और इमारतों जैसी अवशोषण-रहित सतहों से जल का प्रवाह बढ़ जाता है, जिससे मिट्टी में जल समावेशन कम होकर बाढ़ का खतरा और बढ़ जाता है।