छत्तीसगढ़ में फ्लाई ऐश के बढ़ते दुष्प्रभाव | 21 Nov 2025

चर्चा में क्यों?

छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने कोरबा जैसे ज़िलों में ताप विद्युत संयंत्रों और कोयला खदानों से निकलने वाली फ्लाई ऐश के कारण लगातार बने हुए पर्यावरणीय तथा जन-सुरक्षा खतरों पर गंभीर चिंता व्यक्त की है।

मुख्य बिंदु

  • फ्लाई ऐश के बारे में:
    • फ्लाई ऐश कोयला दहन से उत्पन्न एक सूक्ष्म-कणीय अवशेष है; इसमें सिलिका, एल्युमिना, आयरन ऑक्साइड तथा भारी धातुएँ होती हैं।
    • यह औद्योगिक उप-उत्पाद के रूप में वर्गीकृत है तथा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के फ्लाई ऐश उपयोग दिशानिर्देशों के तहत विनियमित किया जाता है।
    • इसका मुख्य रूप से सीमेंट, ईंटों, खदान बैकफिलिंग, सड़क निर्माण और भूमि सुधार में उपयोग किया जाता है।
    • अप्रबंधित फ्लाई ऐश से श्वसन संबंधी समस्याएँ, भू-जल प्रदूषण तथा मृदा की उर्वरता में कमी होती है।
    • भारत का लक्ष्य 100% फ्लाई ऐश का उपयोग करना है, लेकिन छत्तीसगढ़ सहित कई राज्य इस लक्ष्य को पूरा नहीं कर पा रहे हैं।
  • कोरबा माइंस:
    • छत्तीसगढ़ में कोरबा ज़िले को इसके विशाल कोयला भंडार तथा ताप विद्युत संयंत्रों की सघनता के कारण “भारत की विद्युत राजधानी” के रूप में जाना जाता है।
    • इसमें कोरबा कोलफील्ड स्थित है, जिसका संचालन मुख्य रूप से SECL (साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड) द्वारा किया जाता है तथा यह गेवरा, दीपका और कुसमुंडा जैसी प्रमुख खदानों के साथ भारत के सबसे बड़े ओपन-कास्ट कोयला-खनन समूहों में से एक है।
    • गेवरा खदान उत्पादन की दृष्टि से एशिया की सबसे बड़ी कोयला खदानों में से एक है, जिससे कोरबा भारत की घरेलू कोयला आपूर्ति में महत्त्वपूर्ण योगदानकर्त्ता बन गया है तथा यह कई राज्य और केंद्रीय विद्युत संयंत्रों के लिये एक प्रमुख आपूर्तिकर्त्ता है।
    • इस क्षेत्र के कोयले में उच्च राख सामग्री (30–40%) पाई जाती है, जिसके परिणामस्वरूप फ्लाई ऐश का उत्पादन भी अत्यधिक होता है। इससे वायु प्रदूषण, धूल-उत्सर्जन, भूमि-क्षरण तथा भारी वाहनों की निरंतर आवाजाही के कारण सड़कों की दुर्दशा जैसी समस्याएँ बनी रहती हैं।