भावांतर योजना | 22 Oct 2025

चर्चा में क्यों?

मध्य प्रदेश में ‘भावांतर’ योजना में किसान पंजीकरण में तीन गुना वृद्धि देखी गई है, जो 9.36 लाख तक पहुँच गई है, जो सरकार की मूल्य संरक्षण पहल में सुदृढ़ भागीदारी और विश्वास को दर्शाता है।

मुख्य बिंदु

  • परिचय: भावांतर योजना एक मूल्य घाटा भुगतान योजना है जिसका उद्देश्य किसानों को वित्तीय नुकसान से बचाने के लिये बाज़ार मूल्यों और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के बीच के अंतर को पाटना है।
    • यह योजना विशेष रूप से मध्य प्रदेश के सोयाबीन और बाजरा किसानों को लक्षित करती है, जिसे अक्सर देश का "सोयाबीन का कटोरा" कहा जाता है।
  • प्रक्रिया: किसानों को बोआई से पहले अपनी व्यक्तिगत जानकारी और फसल क्षेत्र का विवरण राज्य प्राधिकरणों के साथ पंजीकृत करना होता है तथा अपनी उपज को सरकारी अधिसूचित मंडियों में बेचना अनिवार्य होता है।
    • सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)/ मॉडल प्राइस तय करती है और औसत बाज़ार मूल्यों के आधार पर एक मॉडल दर (Model Rate) की गणना करती है। इसके साथ ही किसान द्वारा प्राप्त वास्तविक बिक्री मूल्य को दर्ज किया जाता है।
    • प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) उस अंतर के बराबर होता है, जो MSP/मॉडल प्राइस या मॉडल दर (इनमें से जो अधिक हो) और किसान के वास्तविक बिक्री मूल्य के बीच होता है। यह राशि सीधे किसान के बैंक खाते में जमा की जाती है।
  • लाभ:
    • मूल्य जोखिम से सुरक्षा: किसानों को बाज़ार में मूल्य उतार-चढ़ाव से बचाव प्रदान करती है और उन्हें उचित मूल्य सुनिश्चित करती है।
    • राजकोषीय भार में कमी: इस योजना से खरीद, भंडारण और परिवहन पर होने वाले खर्चों से बचाव होता है।
    • बाज़ार स्वतंत्रता को प्रोत्साहन: किसान अधिसूचित मंडियों में किसी भी खरीदार को अपनी उपज बेच सकते हैं।
    • पारदर्शिता: प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) प्रणाली के माध्यम से भुगतान सीधे और समय पर किसानों को मिलता है, जिससे भ्रष्टाचार की संभावना घटती है
  • चुनौतियाँ:
    • क्रियान्वयन संबंधी बाधाएँ: पंजीकरण, भुगतान में विलंब और तकनीक संबंधी कमियाँ योजना के सुचारु संचालन में बाधा उत्पन्न करती हैं।
    • डेटा की सटीकता: मॉडल दर (Model Rate) वास्तविक बाज़ार मूल्यों को सही रूप से प्रदर्शित नहीं कर पाती, जिससे किसानों को पर्याप्त मुआवज़ा नहीं मिल पाता।
    • व्यापारी मिलीभगत: मंडी व्यापारियों द्वारा कीमतें जानबूझकर कम रखने की आशंका बनी रहती है।
    • सीमित फसल कवरेज: यह योजना प्रायः केवल कुछ तेलबीजों और दलहनों तक ही सीमित रहती है।

सोयाबीन (ग्लाइसिन मैक्स)

  • परिचय: सोयाबीन एक प्रमुख फसल है, जिसे तेल और प्रोटीन के लिये उगाया जाता है। विश्व स्तर पर इसका उत्पादन लगभग 176.6 मिलियन टन है, जो 75.5 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में किया जाता है।
  • उगाने की परिस्थितियाँ: सोयाबीन मुख्यतः वर्षा आधारित (रेनफेड) परिस्थितियों में उगाई जाती है, हालाँकि हाल के वर्षों में पूरक सिंचाई का उपयोग भी बढ़ा है।
    • यह फसल उष्णकटिबंधीय, उपोष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण जलवायु के लिये उपयुक्त है, 35°C से अधिक या 18°C से कम तापमान पर इसकी वृद्धि धीमी पड़ जाती है।
  • मुख्य उत्पादक: भारत में सोयाबीन के प्रमुख उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान हैं।
    वैश्विक स्तर पर सोयाबीन के शीर्ष उत्पादक देश ब्राज़ील, संयुक्त राज्य अमेरिका (अमेरिका) और अर्जेंटीना हैं।