प्रोटेक्टेड प्लैनेट रिपोर्ट, 2020

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रोटेक्टेड प्लैनेट रिपोर्ट (Protected Planet Report), 2020 ने वर्ष 2010 में हुए जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Convention on Biological Diversity) में देशों द्वारा सहमत महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों की दिशा में हुई प्रगति को रेखांकित किया।

जैव विविधता पर सम्मेलन

  • यह जैव विविधता के संरक्षण के लिये कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि है जिसे वर्ष 1993 में लागू किया गया था।
  • भारत सहित लगभग सभी देशों ने इसकी पुष्टि की है (अमेरिका ने इस पर हस्ताक्षर किये हैं लेकिन पुष्टि नहीं की है)।
  • सीबीडी सचिवालय मॉन्ट्रियल, कनाडा में स्थित है और यह संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme) के अंतर्गत संचालित है।
  • इस सम्मेलन का एक पूरक समझौता जिसे कार्टाजेना प्रोटोकॉल (COP5, वर्ष 2000 में अपनाया गया) के रूप में जाना जाता है, इसका उद्देश्य आधुनिक प्रौद्योगिकी के परिणामस्वरूप ऐसे सजीव परिवर्तित जीवों (LMO) का सुरक्षित अंतरण, प्रहस्तरण और उपयोग सुनिश्चित करना है जिनका मानव स्वास्थ्य को देखते हुए जैव विविधता के संरक्षण एवं सतत् उपयोग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
  • नागोया प्रोटोकॉल (COP10) को आनुवंशिक संसाधनों तक पहुँच और उनके उपयोग से होने वाले लाभों का उचित तथा न्यायसंगत बँटवारा (Access to Genetic Resources and the Fair and Equitable Sharing of Benefits Arising from their Utilization) के लिये नागोया, जापान में अपनाया गया था।
  • COP-10 ने जैव विविधता को बचाने के लिये सभी देशों द्वारा कार्रवाई हेतु दस वर्ष की रूपरेखा को भी अपनाया।
    • जिसे आधिकारिक तौर पर "वर्ष 2011-2020 के लिये जैव विविधता रणनीतिक योजना" के रूप में जाना जाता है, इसने 20 लक्ष्यों का एक सेट प्रदान किया, जिसे सामूहिक रूप से जैव विविधता हेतु आइची लक्ष्य (Aichi Targets for Biodiversity) के रूप में जाना जाता है।

प्रमुख बिंदु

प्रोटेक्टेड प्लैनेट रिपोर्ट के विषय में:

  • यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme- UNEP), विश्व संरक्षण निगरानी केंद्र (World Conservation Monitoring Centre) और प्रकृति के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय संघ (International Union for the Conservation of Nature- IUCN) द्वारा नेशनल जियोग्राफिक सोसाइटी (एक वैश्विक गैर-लाभकारी संस्था) के समर्थन से जारी की जाती है।
  • इसे दो वर्ष में एक बार जारी किया जाता है जिसके अंतर्गत पूरे विश्व में आरक्षित और संरक्षित क्षेत्रों की स्थिति का आकलन किया जाता है।
  • संरक्षित क्षेत्रों के अलावा अन्य प्रभावी क्षेत्र-आधारित संरक्षण उपायों (Other Effective Area-based Conservation Measure- OECM) पर डेटा शामिल करने वाली शृंखला में यह रिपोर्ट पहली है।
    • ओईसीएम उन क्षेत्रों को कहा जाता है जो संरक्षित क्षेत्रों के बाहर इन-सीटू के अंतर्गत संरक्षण प्राप्त करते हैं।
  • इस रिपोर्ट का वर्ष 2020 का संस्करण आईची जैव विविधता लक्ष्य 11 की स्थिति पर अंतिम रिपोर्ट प्रदान करता है और भविष्य का मूल्यांकन करता है कि विश्व वर्ष 2020 के बाद के वैश्विक जैव विविधता ढाँचे को अपनाने के लिये कहाँ तक तैयार है?
    • आइची जैव विविधता लक्ष्य 11 का उद्देश्य वर्ष 2020 तक 17% भूमि और अंतर्देशीय जल पारिस्थितिकी तंत्र तथा इसके 10% तटीय जल एवं महासागरों का संरक्षण करना है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष:

  • संरक्षित क्षेत्र में वृद्धि:
    • 82% देशों और क्षेत्रों ने वर्ष 2010 से संरक्षित क्षेत्र तथा अन्य प्रभावी क्षेत्र-आधारित संरक्षण उपायों (OECM) के अपने हिस्से में वृद्धि की है।
    • लगभग 21 मिलियन वर्ग किमी को कवर करने वाले संरक्षित क्षेत्रों को वैश्विक नेटवर्क से जोड़ा गया है।
  • ओईसीएम में वृद्धि:
    • चूँकि ओईसीएम पहली बार वर्ष 2019 में दर्ज किये गए थे, इसलिये इन क्षेत्रों ने वैश्विक नेटवर्क में 1.6 मिलियन वर्ग किमी. और जोड़ा है।
    • केवल पाँच देशों और क्षेत्रों तक सीमित होने के बावजूद ओईसीएम पर उपलब्ध आँकड़े बताते हैं कि वे कवरेज और कनेक्टिविटी में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
    • पिछले दशक में संरक्षित क्षेत्रों और ओईसीएम द्वारा कवर किये गए क्षेत्र का 42% हिस्सा जोड़ा गया था।
  • प्रमुख जैव विविधता क्षेत्र:
    • ये ऐसे क्षेत्र हैं जो स्थलीय, मीठे पानी और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की जैव विविधता में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
    • औसतन इसका 62.6% या तो पूरी तरह या आंशिक रूप से संरक्षित क्षेत्रों और ओईसीएम के साथ ओवरलैप की स्थिति में है।
    • संरक्षित क्षेत्रों और ओईसीएम के भीतर प्रत्येक केबीए का औसत प्रतिशत स्थल, जल और समुद्र (राष्ट्रीय जल के भीतर) के लिये क्रमशः 43.2%, 42.2% और 44.2% है।
    • वर्ष 2010 के बाद से प्रत्येक मामले में 5% अंक या उससे कम की वृद्धि हुई है, जो समुद्री और तटीय क्षेत्रों में सबसे बड़ी वृद्धि है।

चुनौतियाँ: 

  • ये आकलन  संरक्षित क्षेत्रों द्वारा कवर किये गए क्षेत्र के केवल 18.29% के आधार पर किये गए हैं जो कई मानकों को पूरा नहीं करते हैं।
  • संरक्षित क्षेत्रों और ओईसीएम को परिदृश्यों तथा समुद्री परिदृश्यों एवं विकास क्षेत्रों में एकीकृत करना, जैव विविधता की दृढ़ता सुनिश्चित करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है।
    • प्रगति को सुविधाजनक बनाने के लिये एकीकृत भूमि-उपयोग और समुद्री स्थानिक योजना हेतु मापने योग्य लक्ष्यों की आवश्यकता है।
  • प्रभावी संरक्षण में शासन का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। संरक्षित क्षेत्रों और ओईसीएम दोनों में विभिन्न प्रकार की (सरकारी, निजी, स्वदेशी लोगों तथा स्थानीय समुदायों की) शासन व्यवस्थाएँ हो सकती हैं।
    • संरक्षित क्षेत्रों और ओईसीएम के लिये शासन की विविधता तथा गुणवत्ता पर डेटा अभी भी कम है।
    • नया मार्गदर्शन और बेहतर रिपोर्टिंग स्वदेशी लोगों, स्थानीय समुदायों तथा निजी अभिनेताओं सहित विविध समूहों के संरक्षण प्रयासों को बेहतर ढंग से पहचानने एवं समर्थन करने के नए अवसर प्रदान कर सकती है।

भारत में संरक्षित क्षेत्र

  • संरक्षित क्षेत्र भूमि या समुद्र के वे क्षेत्र हैं जिन्हें जैव विविधता और सामाजिक-पर्यावरणीय मूल्यों के संरक्षण के लिये सुरक्षा के कुछ मानक दिये गए हैं। इन क्षेत्रों में मानव हस्तक्षेप तथा संसाधनों का दोहन सीमित है।
  • भारत के पास 903 संरक्षित क्षेत्रों का एक नेटवर्क है जो इसके कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 5% कवर करता है।
  • भारत में आईसीयूएन द्वारा परिभाषित निम्नलिखित प्रकार के संरक्षित क्षेत्र हैं:
    • राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य, बायोस्फीयर रिज़र्व, आरक्षित और संरक्षित वन, संरक्षण भंडार तथा सामुदायिक भंडार, निजी संरक्षित क्षेत्र।

आगे की राह

  • आरक्षित और संरक्षित क्षेत्रों के लिये आईयूसीएन की ग्रीन लिस्ट जैसे वैश्विक मानकों के अधिक से अधिक उपयोग से कमज़ोरियों को दूर करने में मदद मिलेगी।
  • जलवायु परिवर्तन और अन्य वैश्विक चुनौतियों के लिये प्रकृति-आधारित समाधान के रूप में आरक्षित तथा संरक्षित क्षेत्रों की भूमिका की बढ़ती मान्यता एवं कई सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goal) को साकार करने में उनका योगदान अधिक प्रभावी राष्ट्रीय व वैश्विक नेटवर्क में निवेश हेतु एक मज़बूत औचित्य प्रदान करता है।
  • ओईसीएम की आगे की पहचान और मान्यता कनेक्टिविटी, पारिस्थितिक प्रतिनिधित्व, शासन की विविधता और कवरेज (जैव विविधता तथा पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों सहित) सहित सभी मानदंडों पर बेहतर प्रदर्शन हेतु महत्त्वपूर्ण योगदान देने की संभावना है।
  • एक प्रभावी आरक्षित तथा संरक्षित क्षेत्र का वैश्विक नेटवर्क आने वाली पीढ़ियों एवं पृथ्वी के स्वास्थ्य की सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

स्रोत: डाउन टू अर्थ