उपभोक्ता आहार पर महामारी का प्रभाव

प्रीलिम्स के लिये

COVID-19, खाद्य सुरक्षा

मेन्स के लिये

उपभोक्ता आहार पर COVID-19 का प्रभाव, COVID-19 और खाद्य सुरक्षा

चर्चा में क्यों?

न्यूयॉर्क स्थित टाटा-कॉर्नेल इंस्टीट्यूट फॉर एग्रीकल्चर एंड न्यूट्रिशन (Tata-Cornell Institute for Agriculture and Nutrition) के एक हालिया अध्ययन के अनुसार, कोरोना काल के दौरान भारत में आम लोगों की खाद्य आदतें (Food Habits) विविध एवं पोषक आहार से हटकर स्टेपल आहार (Staple Foods) जैसे- गेहूं और चावल आदि की ओर स्थानांतरित हो सकती हैं।

प्रमुख बिंदु

  • इस अध्ययन के दौरान अध्ययनकर्त्ताओं ने 1 मार्च, 2020 से 31 मई, 2020 के दौरान भारत के 11 टियर-1 और टियर-2 शहरों में अनाज (गेहूं और चावल) और गैर-अनाज (प्याज़, टमाटर, आलू, दाल और अंडे) की कीमतों का बीते वर्ष की कीमतों के साथ विश्लेषण किया।
  • अध्ययन के दौरान यह सामने आया कि देश में लागू किये गए लॉकडाउन के बाद दोनों ही समूहों (अनाज और गैर-अनाज) की कीमतों में वर्ष 2019 की अपेक्षा बढ़ोतरी दर्ज की गई, किंतु यह बढ़ोतरी अनाज की अपेक्षा गैर-अनाज समूह में काफी अधिक थी।
    • हालाँकि लॉकडाउन की समाप्ति के बाद से अनाज, अंडे, आलू, प्याज़ और टमाटर आदि की कीमतें तो स्थिर हो गईं, किंतु प्रोटीन युक्त दालों की कीमतें अभी भी उच्च बनी हुई हैं।

महामारी-जनित लॉकडाउन और खाद्य कीमतें

  • अध्ययन के मुताबिक, लॉकडाउन अवधि के दौरान गेहूं और चावल की खुदरा कीमतें बीते वर्ष की अपेक्षा या तो स्थिर रहीं या फिर उससे भी कम रहीं।
  • बीते वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष लॉकडाउन की अवधि के दौरान देश के कई शहरों में आलू की कीमतों में 30-90 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली, हालाँकि मई माह के पहले सप्ताह में कीमतें स्थिर हो गईं।
  • देश के अधिकांश शहरों में प्याज की कीमतों में 200-250 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली, कई शहरों में यह बढ़ोतरी इससे भी अधिक थी, हालाँकि अप्रैल के अंत तक प्याज की कीमतें भी स्थिर हो गई हैं।
  • अध्ययन के अनुसार, देश में अंडों की कीमतों में पूर्णतः विपरीत प्रवृत्ति देखने को मिली, और लॉकडाउन के शुरुआती दौर में इसकी कीमतें काफी नीचे गिर गईं, हालाँकि मार्च का अंत आते-आते इसकी कीमतों में भी बढ़ोतरी दर्ज की जाने लगी और आगामी 2 माह में यह पूर्णतः स्थिर हो गईं।
    • अध्ययनकर्त्ताओं का मानना है कि शुरुआत में अंडों की कीमतों में कमी का मुख्य कारण है कि लोगों में यह भय था कि कोरोना वायरस (COVID-19) मुर्गियों और मांसाहारी भोजन से भी प्रसारित हो सकता है।
  • लॉकडाउन की अवधि के दौरान दाल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी दर्ज की गई है, और इनकी कीमतों में अभी भी बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है।

प्रभाव

  • रिपोर्ट में कहा गया है कि अनाज (गेहूं और चावल) की कीमतों में अपेक्षाकृत स्थिरता और प्रोटीन युक्त दालों आदि की कीमतों में बढ़ोतरी आम उपभोक्ताओं खासतौर पर भारत के मध्यम और निम्न आय वाले वर्ग के खपत निर्णय (Consumption Decisions) को प्रभावित करेगी।
  • इस प्रकार देश के आम उपभोक्ता अनाज आधारित कम प्रोटीन युक्त भोजन की ओर प्रेरित हो सकते हैं। 
  • पौष्टिक भोजन की अपेक्षाकृत उच्च कीमतें भारत के आम लोगों खास तौर पर गरीब और संवेदनशील वर्ग पोषक के समक्ष तत्वों से युक्त भोजन ग्रहण करने में बड़ी चुनौती उत्पन्न करेगा।
  • नतीजतन, लोगों के आहार में खाद्य पौष्टिक युक्त पदार्थों का अनुपात कम हो जाएगा और लोगों इसकी पूर्ति के लिये इसे कम पौष्टिक वाले भोजन के साथ प्रतिस्थापित करेंगे।
    • इससे देश भर में महिलाओं एवं बच्चों की स्थिति बिगड़ने की संभावना और अधिक बढ़ जाएगी, साथ ही इसका मुख्य प्रभाव देश के पिछड़े क्षेत्रों में देखने को मिलेगा।

सुझाव

  • रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि सरकार नीतिगत हस्तक्षेप के माध्यम से भोजन में प्रोटीन की आवश्यकता को पूरा करने के लिये दालों आदि की कीमतों में वृद्धि को स्थिर करने का प्रयास कर सकती हैं, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि कोई भी व्यक्ति आवश्यक प्रोटीन के अभाव वाला भोजन ग्रहण करने के लिये मज़बूर न हो।
  • रिपोर्ट के अंतर्गत आवश्यक वस्तु अधिनियम में सरकार के हालिया संशोधन की आलोचना की गई है, जिसके द्वारा सरकार ने अनाज, खाद्य तेल, तिलहन, दलहन, प्याज़ और आलू सहित कृषि खाद्य पदार्थों को आवश्यक वस्तु अधिनियम के प्रावधानों से मुक्त करने की घोषणा की थी। 

स्रोत: द हिंदू