सार्वजनिक खरीद नियमों में परिवर्तन | 06 Aug 2020

संदर्भ:   

हाल ही में केंद्र सरकार ने ‘सामान्य वित्तीय नियमावली-2017’ [General Financial Rules (GFR), 2017] में कुछ संशोधन किये हैं। देश की रक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए किये गए इस संशोधन के पश्चात भारत से थल सीमा साझा करने वाले देशों की कंपनियों/नागरिकों को देश में रसद, उपकरण आदि की आपूर्ति हेतु नीलामी प्रक्रिया में शामिल होने से पहले सरकार की मंज़ूरी के साथ कुछ अन्य निर्धारित प्रक्रियाओं से गुजरना होगा। केंद्रीय वित्त मंत्रालय के तहत सक्रिय व्यय विभाग द्वारा भारतीय रक्षा क्षेत्र और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने के लिये GFR के तहत सार्वजनिक खरीद पर एक विस्तृत आदेश जारी किया है।        

  

प्रमुख बिंदु: 

  • इस संशोधन के अनुसार, भारत के साथ थल सीमा साझा करने वाले देशों से संबंधित कंपनियों/नागरिकों को सार्वजनिक खरीद में बोली लगाने का अधिकार तभी दिया जाएगा यदि वे ‘उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग’ (DPIIT) द्वारा गठित पंजीकरण समिति के साथ पंजीकृत हो।    
  • साथ ही उनके लिये विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय से क्रमशः राजनीतिक और सुरक्षा मंजूरी लेनी अनिवार्य होगी।  
  • भारत ‘विश्व व्यापार संघ’ (World Trade Organisation) के ‘सरकारी खरीद पर समझौते’ (Agreement on Government Procurement- AGP) का हिस्सा नहीं है, ऐसे में भारत में सार्वजनिक खरीद प्रक्रिया को राष्ट्रीय कानूनों के तहत विनियमित किया जाता है।
  • यह आदेश सरकार के मंत्रालयों,विभागों और अधीनस्थ निकायों के अलावा सभी स्वायत्त निकायों, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थानों, केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के साथ सार्वजनिक-निजी भागीदारी के तहत चल रहे उस सभी कार्यक्रमों पर लागू होगा, जिन्हें सरकार या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, केंद्र शासित प्रदेशों और इससे जुड़ी एजेंसियों से वित्तीय सहायता प्राप्त हो।

परिवर्तन की आवश्यकता:

  • पूर्व के नियमों के अनुसार, यदि सरकार के किसी विभाग या एजेंसी द्वारा किसी परियोजना के लिये बोलियाँ (Bids) आमंत्रित करती है और इसे विदेशी बोलीदाताओं (कंपनियों/नागरिक) के लिये खोला जाता है, तो इसमें देशों के आधार पर कंपनियों के खिलाफ भेदभाव नहीं किया जा सकता।
  • इसे देखते हुए केंद्र सरकार द्वारा GFR में संशोधन करते हुए नियम-144 (सरकारी खरीद के मूल सिद्धांत) में उप-प्रावधान 11 को जोड़ दिया गया है। इस उप-प्रावधान के अनुसार, राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों को देखते हुए सरकार कुछ देशों को सरकारी खरीद से बाहर रख सकती है या उनपर कुछ प्रतिबंध लागू कर सकती है।
  • केंद्र सरकार ने संविधान के अनुच्छेद-257(1) के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए राज्य सरकारों को सार्वजनिक खरीद के संदर्भ में केंद्र सरकार के आदेश को लागू करने का निर्देश दिया है।  

अनुच्छेद-257(1): 

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 257(1) के अनुसार, प्रत्येक राज्य की कार्यपालिका की शक्ति का प्रयोग इस प्रकार किया जाएगा, जिससे यह संघ (Union) की कार्यपालिका शक्ति के प्रयोग में कोई बाधा न बने या कोई प्रतिकूल प्रभाव न डाले।  
  • साथ ही केंद्र सरकार आवश्यकता अनुरूप राज्य सरकार को इस संबंध में निर्देश दे सकती है।   
  • यदि राज्य सरकार अनुच्छेद 257(1) के तहत केंद्र सरकार द्वारा दिये गए आदेश का पालन करने में असफल रहती है या उसे प्रभावी रूप से लागू कराने में असफल रहता है तो उस स्थिति में राष्ट्रपति को संबंधित राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने का अधिकार है।   

कारण और पृष्ठभूमि:   

  • हाल के कुछ महीनों में वैश्विक स्तर पर चीन के खिलाफ बढ़ते विरोध को देखते हुए केंद्र सरकार का निर्णय सुरक्षा की दृष्टि से तर्कसंगत है।            
  • हालाँकि सामान्य वित्तीय नियमावली में हुए हालिया बदलाओं को मात्र चीनी आक्रामकता की प्रतिक्रिया के रूप में नहीं देखा जा सकता। 
  • सरकार द्वारा आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत स्थानीय उत्पादकों और सेवा प्रदाताओं को प्राथमिकता देने के लिये कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए जा रहे हैं।

पंजीकरण की अनिवार्यता:

  • सार्वजनिक नीलामियों के लिये बोलीदाताओं (Bidders) के लिये पंजीकरण की अनिवार्यता पहले से लागू रही है, जिसे (कुछ मामलों को छोड़कर) देश के साथ थल सीमा साझा कर रहे देशों के लिये बढ़ा दिया गया है और इसमें वर्तमान समय की ज़रूरतों के अनुरूप कुछ अन्य प्रावधान जोड़ दिये गए हैं।
  • विश्व के कई देशों (चीन सहित) में सरकार की परियोजनाओं में भारतीय कंपनियों को शामिल होने से पहले पंजीकरण करना अनिवार्य है।
  • उदाहरण के लिये यूरोपीय संघ के कई देशों में सार्वजनिक खरीद में उन्ही देशों की कंपनियों को शामिल होने की अनुमति मिलती है, जो देश WTO द्वारा निर्धारित AGP का हिस्सा हैं (भारत AGP का हिस्सा नहीं है)।        

पूर्व में लागू प्रतिबंध:  

  • इससे पहले वर्ष 2005 में चीनी कामगारों के व्यवहार से जुड़ी सुरक्षा चिंताओं को रेखांकित किया गया था। इस दौरान कई मामलों में चीनी कामगार पर्यटक वीज़ा पर आकर पूरे देश में कहीं भी आ-जा रहे थे, जिसके कारण सुरक्षा चुनौतियों को देखते हुए सरकार द्वारा चीनी कामगारों के निर्धारित परियोजना से एक सीमित दायरे से बाहर जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
  • साथ ही वर्ष 2010 में चीनी कंपनियों द्वारा निर्मित दूर-संचार उपकरणों पर भी कुछ प्रतिबंध लगाए गए थे, हालाँकि बाद में सरकार से सुरक्षा अनुमति मिलने की शर्त पर इन उपकरणों को भारतीय बाज़ार में लाने की अनुमति दे दी गई थी।
  • हाल ही में सुरक्षा कारणों को देखते हुए सरकार ने चीनी कंपनियों द्वारा निर्मित लगभग 49 मोबाईल एप पर प्रतिबंध लगा दिया था।
  • दूर-संचार क्षेत्र में विश्व की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक चीन की हुआवे (Huawei) नामक कंपनी को अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे देशों में सुरक्षा कारणों को लेकर प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा है।    

छूट:

  • COVID-19 की चुनौती से निपटने के लिये आवश्यक चिकित्सा उपकरणों, दवाओं आदि की खरीद प्रक्रिया पर 31 दिसंबर, 2020 तक यह आदेश नहीं लागू होगा।
  • साथ ही ऐसे देश जो भारत के साथ थल सीमा साझा करते है परंतु उन्हें भारत सरकार से लाइन ऑफ क्रेडिट (Line of Credit) की सुविधा या विकास से जुड़ी सहायता प्राप्त है, उन्हें इस आदेश के तहत पूर्व पंजीकरण की अनिवार्यता से राहत दी गई है।
    • भारत 7 देशों (चीन, नेपाल, भूटान, पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार) के साथ अपनी थल सीमा साझा करता है।  
    • वर्तमान में भारत से थल सीमा साझा कर रहे तीन देशों (बांग्लादेश, नेपाल और म्यांमार) को भारत सरकार से लाइन ऑफ क्रेडिट (Line of Credit) की सुविधा प्राप्त है। 
  • यह आदेश उन मामलों में नहीं लागू होगा जहाँ खरीद के लिये आर्डर दे दिया गया हो, अनुबंध की प्रक्रिया पूरी कर ली गई हो या स्वीकृति पत्र जारी किया जा चुका हो।  

प्रभाव: 

  • सरकार के इस निर्णय के परिणाम स्वरूप बड़ी परियोजनाओं में शामिल होने के लिये भारतीय कंपनियों का आत्मविश्वास बढ़ेगा और उन्हें ऐसे क्षेत्रों की बड़ी और अनुभवी कंपनियों से सीखने का अवसर प्राप्त होगा। 
  • सरकार ने अपने इस कदम से विदेशी कंपनियों को एक कठोर संदेश देने का प्रयास किया है। 
  • सरकार द्वारा अप्रैल 2020 में COVID-19 की चुनौती के बीच चीनी निवेशकों द्वारा भारतीय कंपनियों के ‘अवसरवादी अधिग्रहण’ को रोकने के लिये देश की थल सीमा से सटे देशों द्वारा आने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हेतु सरकार की पूर्व अनुमति की अनिवार्यता लागू की थी। 
  • सरकार के इस आदेश के बाद कई भारतीय कंपनियों में चीनी निवेशकों की हिस्सेदारी में गिरावट देखी गई थी। उदाहरण के लिये- एचडीएफसी हाउसिंग लिमिटेड में बैंक ऑफ चाइना की हिस्सेदारी में कमी। 
  • इससे पहले स्थानीय उत्पादों या सेवा प्रदाताओं को प्राथमिकता देने के प्रयास कुछ चुने हुए क्षेत्रों या उत्पादों तक सीमित रहे हैं, GFR में हुए संशोधनों के पश्चात इसके दायरे को और बढ़ा दिया जाएगा।  

सार्वजनिक खरीद और बोली प्रक्रिया में सुधार:

  • हाल के वर्षों में सरकार द्वारा सार्वजनिक खरीद में पारदर्शिता और कई अन्य बड़े सुधार लाने के प्रयास किये गए हैं।
  • इस दिशा में सरकार द्वारा शुरू की गई ‘गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस’ (Government e-Marketplace-GeM) काफी सफल रही है।

स्थानीय उद्यमों की क्षमता और आत्मनिर्भर भारत:

  • सार्वजनिक खरीद में स्थानीय कंपनियों को प्राथमिक देने के निर्णय के साथ सरकार को कुछ अन्य प्रयास भी करने होंगे जिससे स्थानीय कंपनियों को इसका अधिकतम लाभ मिल सके।
    • सरकारी अनुमति, कर निर्धारण आदि प्रक्रियाओं को आसान बनाते हुए ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस को बढ़ावा देना।
    • स्थानीय उद्यमों के लिये आसान दरों पर ऋण की उपलब्धता सुनिश्चित करना।            

आगे की राह:   

  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और विदेशी निवेश के मामले में भारत द्विपक्षीय सहयोग और पारदर्शिता का पक्षधर रहा है।  
  • पिछले कुछ वर्षों में चीन ने सैन्य आक्रामकता के साथ आर्थिक और अन्य रणनीतिक क्षेत्रों के माध्यम से अन्य देश में अपना हस्तक्षेप बढ़ाने का प्रयास किया है, ऐसे में सरकार की परियोजनाओं में चीनी कंपनियों की अपेक्षा भारतीय कंपनियों को प्राथमिकता देने का निर्णय देश हित में है।   
  • हाल ही में देश में अधिकांश बैंकों के द्वारा दिए जा रहे ऋण पर ब्याज की दरों में काफी गिरावट देखने को मिली है साथ ही बैंकिग क्षेत्र में पर्याप्त तरलता भी उपलब्ध है ऐसे में वर्तमान में स्थानीय कंपनियों को वित्तीय बाधाओं का सामना नहीं करना पड़ेगा।
  • देश में चीनी कंपनियों के हस्तक्षेप को कम करने में निजी क्षेत्र भी योगदान देना चाहिये और कंपनियों को चीन पर निर्भरता को कम करते हुए आगे बढ़ने के लिये अपनी क्षमता में विकास करना चाहिये।  
  • साथ ही चीनी कंपनियों को भी देश सरकार के नियमों का पालन करते हुए अपनी व्यावसायिक गतिविधियों को अधिक पारदर्शी और उत्तरदायी बनाना चाहिये।     

निष्कर्ष: पिछले कुछ वर्षों में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी सैनिकों की आक्रामकता में वृद्धि के साथ ही भारतीय बाज़ार में चीनी कंपनियों की सक्रियता भी बढ़ी है और बहुत ही कम समय में विभिन्न क्षेत्रों (सार्वजनिक क्षेत्र सहित) में चीनी कंपनियों ने भारत में अपनी पकड़ मज़बूत कर ली है। भारतीय बाज़ार में चीनी कंपनियों की बढ़ती पकड़ सुरक्षा की दृष्टि से एक चिंता का विषय है। ऐसे में सरकार द्वारा सार्वजनिक खरीद में चीनी कंपनियों पर कानूनी सख्ती बढ़ाने से चीनी कंपनियों के हस्तक्षेप को सीमित करने के साथ सरकार की बड़ी परियोजनाओं में स्थानीय कंपनियों को भी लाभ होगा। हालाँकि भारतीय बाज़ार चीनी कंपनियों के हस्तक्षेप को कम करने के लिये सरकार की पहल पर सहयोग करते हुए निजी क्षेत्र तथा नागरिकों को भी स्थानीय निर्माताओं/सेवा प्रदाताओं को प्राथमिकता देनी चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा सार्वजनिक खरीद के संदर्भ में सामान्य वित्तीय नियमावली-2017’ में किये गए संशोधनों की समीक्षा करते हुए भारतीय बाज़ार में बढ़ते चीनी हस्तक्षेप और भारतीय कंपनियों पर इसके प्रभावों की चर्चा कीजिये।