क्षेत्रीय परिषद | 24 Jun 2025

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय गृहमंत्री एवं सहकारिता मंत्री ने उत्तर प्रदेश के वाराणसी में मध्य क्षेत्रीय परिषद की 25वीं बैठक की अध्यक्षता की, जिसका आयोजन उत्तर प्रदेश सरकार के सहयोग से अंतर-राज्य परिषद सचिवालय द्वारा किया गया।

क्षेत्रीय परिषदें क्या हैं?

  • परिचय: क्षेत्रीय परिषदें वैधानिक निकाय हैं (संवैधानिक नहीं), जिनकी स्थापना राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के तहत राज्यों के बीच सहकारी कार्य को बढ़ावा देने और एक स्वस्थ अंतर-राज्यीय तथा केंद्र-राज्य वातावरण बनाने के लिये एक उच्च-स्तरीय सलाहकार मंच के रूप में की गई है।
  • क्षेत्रीय परिषदों का विचार पहली बार पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग (फज़ल अली आयोग, 1953) की रिपोर्ट पर चर्चा के दौरान प्रस्तावित किया गया था।
  • राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 की धारा 15 से 22 के अंतर्गत पाँच क्षेत्रीय परिषदों की स्थापना की गई।
  • उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के लिये एक अलग परिषद है, जिसे पूर्वोत्तर परिषद कहा जाता है। इसकी स्थापना वर्ष 1972 में, पूर्वोत्तर परिषद अधिनियम, 1972 के अंतर्गत की गई थी।
  • संघटन:

क्षेत्रीय परिषद

राज्य

उत्तरी क्षेत्रीय परिषद

हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, दिल्ली, चंडीगढ़

मध्य क्षेत्रीय परिषद

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड

पूर्वी क्षेत्रीय परिषद

बिहार, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, सिक्किम

पश्चिमी क्षेत्रीय परिषद

राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, दादरा और नगर हवेली, दमन एवं दीव

दक्षिणी क्षेत्रीय परिषद

आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, पुदुचेरी

  • संगठनात्मक संरचना:
  • अध्यक्ष: सभी पाँच क्षेत्रीय परिषदों के लिये केंद्रीय गृहमंत्री अध्यक्ष होते हैं। वे पूर्वोत्तर परिषद (NEC) के पदेन अध्यक्ष भी होते हैं।
  • उपाध्यक्ष: किसी एक सदस्य राज्य के मुख्यमंत्री होते हैं, जिन्हें वार्षिक क्रमानुसार के आधार पर चुना जाता है।
  • सदस्य: इसके सदस्यों में सदस्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री, उपराज्यपाल या प्रशासक शामिल होते हैं।
  • इसके अतिरिक्त, प्रत्येक सदस्य राज्य से राज्यपाल दो मंत्रियों को परिषद के सदस्य के रूप में नामित करता है।
  • सलाहकार: नीति आयोग (पूर्व में योजना आयोग) से एक नामित व्यक्ति, सदस्य राज्यों के मुख्य सचिव और विकास आयुक्त।
  • प्रत्येक क्षेत्रीय परिषद में एक स्थायी समिति होती है, जिसमें सदस्य राज्यों के मुख्य सचिव शामिल होते हैं। राज्य द्वारा प्रस्तावित मुद्दों पर सबसे पहले इस समिति द्वारा चर्चा की जाती है और फिर अनसुलझे मामलों को आगे के विचार-विमर्श के लिये पूर्ण क्षेत्रीय परिषद के समक्ष रखा जाता है।
  • उद्देश्य और कार्य: क्षेत्रीय परिषदें दो या अधिक राज्यों या केंद्र और राज्यों से जुड़े मुद्दों पर बातचीत तथा समन्वय के लिये एक संरचित मंच के रूप में कार्य करती हैं एवं आपसी समझ व सहयोग को बढ़ावा देती हैं। 
  • यद्यपि ये परामर्शदात्री प्रकृति के हैं, तथापि ये सहकारी संघवाद के प्रमुख साधन बन गये हैं तथा पिछले ग्यारह वर्षों में इनकी 61 बैठकें हो चुकी हैं।
  • वे निम्नलिखित विषयों पर चर्चा करते हैं और संबोधित करते हैं:
  • यौन अपराधों की त्वरित जाँच और फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (FTSC) के कार्यान्वयन जैसे मुद्दे।
  • हर गाँव में भौतिक बैंकिंग के माध्यम से वित्तीय समावेशन
  • आपातकालीन प्रतिक्रिया सहायता प्रणाली (ERSS-112) का क्रियान्वयन।
  • पोषण, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, शहरी नियोजन और सहकारी क्षेत्र के विकास जैसे क्षेत्रीय मुद्दे।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:  

प्रश्न. निम्नलिखित में से किस निकाय/किन निकायों का संविधान में उल्लेख नहीं है? (2013)  

  1. राष्ट्रीय विकास परिषद
  2. योजना आयोग
  3. क्षेत्रीय परिषदें

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d)1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न: केंद्र सरकार ने केंद्र-राज्य संबंधों के क्षेत्र में हाल ही में क्या बदलाव किये हैं? संघवाद को मज़बूत करने के लिये तथा केंद्र और राज्यों के बीच संबंध मज़बूत करने के लिये उपाय सुझाइये। (2024)