सावलकोट जलविद्युत परियोजना | 23 Sep 2025
पहलगाम आतंकी हमले (2025) के बाद सिंधु जल संधि (IWT) के निलंबन के पश्चात् चिनाब नदी पर लंबित सावलकोट जलविद्युत परियोजना को जम्मू-कश्मीर (J&K) के लिये रणनीतिक और ऊर्जा महत्त्व की परियोजना मानते हुए तीव्र गति से मंज़ूरी प्रदान करने की प्रक्रिया शुरू की गई है।
- सावलकोट जलविद्युत परियोजना: यह 1,856 मेगावाट की "रन-ऑफ-द-रिवर" (जिसमें नदी के प्राकृतिक प्रवाह का उपयोग किया जाता है और बहुत कम या नगण्य जल भंडारण होता है) जलविद्युत परियोजना है, जो जम्मू-कश्मीर के रामबन ज़िले में चिनाब नदी (IWT के अंतर्गत पश्चिमी नदी) पर स्थित है।
- इस परियोजना की शुरुआत वर्ष 1984 में हुई थी और वर्षों से यह कई तरह की देरी का सामना करती रही है
- इसे राष्ट्रीय महत्त्व की परियोजना घोषित किया गया है, जिसमें एक कंक्रीट ग्रेविटी डैम और जलाशय का निर्माण शामिल है।
- परियोजना शुरू होने के बाद सावलकोट से प्रतिवर्ष 7,000 मिलियन यूनिट से अधिक बिजली उत्पादन होने की उम्मीद है, जिससे यह भारत की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं में से एक बन जाएगी।
- रणनीतिक महत्त्व: IWT (सिंधु जल संधि) के निलंबन की स्थिति में इस परियोजना को चिनाब नदी की जलविद्युत क्षमता का उपयोग करने और IWT की पश्चिमी नदियों पर भारत के नियंत्रण को मज़बूत करने के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण जा रहा है। यह जल संसाधनों के इष्टतम उपयोग और ऊर्जा सुरक्षा को सुदृढ़ करने की दृष्टि से एक रणनीतिक प्राथमिकता है
- चिनाब नदी पर जलविद्युत परियोजनाएँ: चिनाब नदी पर किश्तवाड़ में 390 मेगावाट की दुलहस्ती परियोजना, रामबन में 890 मेगावाट की बगलिहार परियोजना और रियासी में 690 मेगावाट की सलाल परियोजना स्थित है। ये परियोजनाएँ क्षेत्र की ऊर्जा आपूर्ति में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं।
सिंधु जल संधि (IWT)
- यह संधि 1960 में कराची में हस्ताक्षरित हुई थी और इसकी मध्यस्थता विश्व बैंक द्वारा की गई थी। IWT के तहत पूर्वी नदियाँ (रावी, ब्यास, सतलुज) भारत को और पश्चिमी नदियाँ (सिंधु, झेलम, चिनाब) पाकिस्तान को आवंटित की गईं, जिससे पाकिस्तान को लगभग 80% जल प्राप्त होता है।
- भारत पश्चिमी नदियों का उपयोग सीमित, गैर-उपभोगी उद्देश्यों के लिये कर सकता है, जैसे—जलविद्युत उत्पादन, नौवहन और सिंचाई, बशर्ते संधि की शर्तों का पालन किया जाए।
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