संचार साथी ऐप | 03 Dec 2025

स्रोत: IE

दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा सभी नए मोबाइल फोन में संचार साथी ऐप पूर्व-स्थापित करने का निर्देश जारी किये जाने ने उपयोगकर्त्ता की सहमति, गोपनीयता और संवैधानिक वैधता को लेकर गंभीर चिंता उत्पन्न कर दी है।

  • संचार साथी ऐप: जनवरी 2025 में लॉन्च किया गया, यह एक नागरिक-केंद्रित प्लेटफॉर्म है जिसे दूरसंचार विभाग द्वारा मोबाइल सुरक्षा को मज़बूत करने और उपयोगकर्त्ताओं को बढ़ती साइबर धोखाधड़ी से बचाने में मदद करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
  • मुख्य विशेषताएँ: यह उपयोगकर्त्ताओं को IMEI सेवाओं के माध्यम से खोए या चोरी हुए फोन को ट्रैक करने, ब्लॉक करने और ट्रेस करने की सुविधा प्रदान करता है और साथ ही उनके नाम पर सभी मोबाइल कनेक्शनों को सत्यापित करने, किसी भी संदिग्ध या जाली KYC प्रविष्टियों की रिपोर्ट करने की सुविधा प्रदान करता है।
    • चक्षु (Chakshu) फीचर धोखाधड़ी वाले कॉल, SMS, व्हाट्सएप संदेश और डिजिटल अरेस्ट स्कैम की रिपोर्टिंग की सुविधा प्रदान करता है।
    • यह मोबाइल हैंडसेट की प्रामाणिकता की पुष्टि करता है, जिससे बाज़ार में नकली उपकरणों की रोकथाम में मदद मिलती है।
    • इस ऐप के माध्यम से +91 नंबर के रूप में प्रदर्शित अंतरराष्ट्रीय स्पूफ कॉल की भी रिपोर्ट की जा सकती है।
  • प्रभाव:  लॉन्च के बाद से ऐप द्वारा 42 लाख से अधिक चोरी/खोए हुए डिवाइसों को ब्लॉक तथा 26 लाख फोनों का पता लगाया गया है, जिनमें से 7.23 लाख फोन लौटाए जा चुके हैं।
  • गोपनीयता और उपयोगकर्त्ता नियंत्रण: यह ऐप स्वैच्छिक है, जो केवल उपयोगकर्त्ता की सहमति से कार्य करती है तथा किसी भी समय इसे सक्रिय या हटाया जा सकता है।
    • यह रिपोर्टिंग और सत्यापन में नागरिकों को शामिल करके जनभागीदारी को बढ़ावा देता है तथा IT अधिनियम 2000 एवं डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम 2023 का पालन करती है तथा न्यूनतम डेटा (minimal data) एकत्र करती है और केवल कानूनी रूप से आवश्यक होने पर ही इसे साझा करती है।
  • चुनौतियाँ: पूर्व-स्थापना के निर्देश का मूल्यांकन के.एस. पुट्टस्वामी (2017) के फैसले के संदर्भ में किया जा रहा है, जिसमें गोपनीयता के अधिकार की पुष्टि की गई थी और किसी भी सरकारी कार्रवाई के लिये तीन-स्तरीय परीक्षण (वैधता, आवश्यकता और अनुपातिता,) निर्धारित किया गया था।
    • विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि पूर्व-स्थापित ऐप आमतौर पर हटाए नहीं जाते क्योंकि उपयोगकर्त्ता उन्हें कम ही हटाते हैं, जिससे निष्क्रिय निगरानी और फंक्शन क्रीप का खतरा बढ़ जाता है। इनके डिफॉल्ट रूप से मौज़ूद रहने से सूचित सहमति (informed consent) की अवधारणा भी कमज़ोर होती है।

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