भारत में रेबीज़ | 27 Dec 2025
चर्चा में क्यों?
वन हेल्थ (One Health) द्वारा हाल ही में किये गए एक अध्ययन ने भारत में रेबीज़ पर फिर से ध्यान आकर्षित किया है, जिसमें यह बताया गया है कि भारत अकेले वैश्विक रेबीज़ मृत्यु का लगभग एक-तिहाई हिस्सा है, जबकि यह रोग पूरी तरह से रोकने योग्य है।
सारांश
- भारत वैश्विक रेबीज़ मृत्यु का लगभग एक-तिहाई हिस्सा है, जो मुख्यतः कुत्तों के काटने के कारण होता है और बच्चों एवं गरीब समुदायों को अधिक प्रभावित करता है, जबकि यह रोग पूरी तरह से रोकने योग्य है।
- राष्ट्रीय कार्यक्रमों और वन हेल्थ (One Health) दृष्टिकोण के बावजूद, देरी से उपचार, अधूरी वैक्सीनेशन, RIG की कमी और कमज़ोर कुर्तों की संख्या नियंत्रण जैसी प्रणालीगत कमियों के कारण मृत्यु की घटनाएँ जारी रहती हैं।
भारत में रेबीज़ पर अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- वैश्विक भार में सर्वोच्च: प्रतिवर्ष विश्व में लगभग 59,000 रेबीज़ से होने वाली मृत्यु में से करीब 20,000 भारत में होती हैं, जो किसी एक देश के लिये सबसे अधिक है। यह रोग भारत में स्थायी (Endemic) है।
- मुख्य स्रोत: मुक्त घूमते कुत्ते मुख्य वाहक हैं और भारत में प्रति वर्ष लगभग 2 करोड़ कुत्ते के काटने के मामले दर्ज होते हैं।
- गरीबी की बीमारी के रूप में रेबीज़: पीड़ितों का अधिकांश हिस्सा गरीब और हाशिये पर रहने वाले समुदायों से है, जो ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहाँ मुक्त घूमते कुत्तों की संख्या अधिक होती है और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच सीमित होती है।
- मृत्यु केवल चिकित्सकीय ज्ञान की कमी के कारण नहीं होती, बल्कि देरी से उपचार, अधूरी वैक्सीनेशन, और रेबीज़ इम्युनोग्लोबुलिन (RIG) की अनुपलब्धता के कारण होती है।
- कुत्ते के काटने के शिकार लोगों में 20% से अधिक को कोई एंटी-रेबीज़ वैक्सीन (ARV) नहीं मिलती। लगभग आधे लोग वैक्सीनेशन कोर्स पूरा नहीं करते, जिससे मृत्यु दर का जोखिम तीव्र रूप से बढ़ जाता है।
- RIG की कमी: RIG जीवनरक्षक है, लेकिन यह दुर्लभ और महँगा (₹5,000–₹20,000) है और अक्सर सार्वजनिक अस्पतालों में उपलब्ध नहीं होता।
- बच्चों पर असमान प्रभाव: लगभग 40% रेबीज़ मामलों में 15 वर्ष से कम आयु के बच्चे शामिल हैं, जो अधिक संपर्क और देरी से उपचार प्राप्त करने को दर्शाता है।
- कुत्तों की संख्या नियंत्रण उपाय: वर्तमान पकड़-नसबंदी-टीकाकरण–मुक्त करने की रणनीतियों का प्रभाव सीमित है, क्योंकि कुत्तों की संख्या का वार्षिक टर्नओवर उच्च (~40%) होता है।
- वर्ष 2025 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों को सार्वजनिक संस्थानों से आवारा कुत्तों को हटाने का निर्देश दिया, जिससे इसकी व्यवहार्यता और पशु कल्याण को लेकर व्यापक बहस शुरू हुई।
- उन्मूलन संभव है, किंतु अभी तक नहीं हुआ है: अध्ययन का निष्कर्ष है कि मानव रेबीज़ मृत्यु पूर्णतः रोकी जा सकती है; इसके बावजूद निरंतर मृत्यु दर वैज्ञानिक सीमाओं के बजाय सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था में प्रणालीगत विफलताओं को दर्शाती है।
रेबीज़ के बारे में प्रमुख तथ्य क्या हैं?
- परिचय: रेबीज़ रेबीज़ वायरस के कारण होता है, जो रैबडोविरिडे परिवार (Rhabdoviridae family) के लिसावायरस वंश (Lyssavirus genus) से संबंधित एक न्यूरोट्रोपिक वायरस (neurotropic virus) है, जो केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को संक्रमित करता है।
- वैश्विक भार: रेबीज़ से प्रतिवर्ष लगभग 59,000 मौतें होती हैं। इनमें से लगभग 40 प्रतिशत पीड़ित 15 वर्ष से कम आयु के बच्चे होते हैं।
- रोग की प्रकृति: रेबीज़ एक वायरल, ज़ूनोटिक और उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग है।
- यह एक बार नैदानिक लक्षण प्रकट होने पर 100% घातक होता है।
- संक्रमण का मुख्य स्रोत: कुत्तों के काटने या खरोंचने से मानव रेबीज़ के लगभग 99% मामले होते हैं। अन्य स्तनधारी भी रेबीज़ वायरस के वाहक हो सकते हैं, परंतु अधिकांश क्षेत्रों में वन्यजीवों से मनुष्यों में संक्रमण के मामले अत्यंत दुर्लभ हैं।
- संक्रमण: रेबीज़ का प्रसार संक्रमित लार के माध्यम से काटने, खरोंच लगने या क्षतिग्रस्त त्वचा अथवा श्लेष्मा झिल्ली (mucosa) के संपर्क से होता है। मानव-से-मानव संक्रमण की आज तक कभी पुष्टि नहीं हुई है।
- रोकथाम एवं उपचार: समय पर पोस्ट-एक्सपोज़र प्रोफिलैक्सिस (PEP) दिये जाने पर रेबीज़ से होने वाली मृत्यु पूर्णतः रोकी जा सकती है।
- PEP में शामिल हैं:
- साबुन और पानी से घाव की तत्काल एवं अच्छी तरह सफाई (लगभग 15 मिनट तक)
- रेबीज़ वैक्सीन का पूर्ण कोर्स
- गंभीर संपर्क की स्थिति में रेबीज़ इम्युनोग्लोबुलिन (RIG) या मोनोक्लोनल एंटीबॉडी
- PEP में शामिल हैं:
- लक्षण: रेबीज़ की ऊष्मायन अवधि सामान्यतः 2–3 महीने होती है। हालाँकि यह एक सप्ताह से लेकर एक वर्ष तक भी हो सकती है।
- दो रूप: उग्र रेबीज़ (हाइड्रोफोबिया, मतिभ्रम, अत्यधिक उत्तेजना, शीघ्र मृत्यु) और पक्षाघाती रेबीज़ (क्रमिक पक्षाघात, अक्सर गलत निदान)।
- एक बार नैदानिक लक्षण प्रकट हो जाने पर रेबीज़ लगभग 100% घातक होता है।
- आर्थिक प्रभाव: रेबीज़ की वैश्विक आर्थिक लागत का अनुमान लगभग 8.6 अरब अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष है, जिसमें स्वास्थ्य देखभाल व्यय, आजीविका की हानि और सामाजिक आघात शामिल हैं। निर्धन परिवारों के लिये पोस्ट-एक्सपोज़र प्रोफिलैक्सिस (PEP) का खर्च आर्थिक रूप से अत्यंत विनाशकारी सिद्ध हो सकता है।
- सर्वाधिक प्रभावी नियंत्रण रणनीति: कुत्तों का सामूहिक टीकाकरण मानव रेबीज़ रोकने का सबसे लागत-प्रभावी तरीका है। आवारा कुत्तों का उन्मूलन (कुलिंग) प्रभावी नहीं माना जाता है।
- वैश्विक लक्ष्य: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और उसके साझेदारों का लक्ष्य वन हेल्थ दृष्टिकोण के माध्यम से वर्ष 2030 तक कुत्तों से फैलने वाले रेबीज़ के कारण होने वाली मानव मृत्यु को समाप्त करना है। यह दृष्टिकोण मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य और सामुदायिक जागरूकता को आपस में जोड़ता है।
भारत में रेबीज़ नियंत्रण के लिये भारत की पहलें
- राष्ट्रीय रेबीज़ नियंत्रण कार्यक्रम (NRCP): पूरे भारत में पशु (कुत्ता) के काटने के मामलों पर निगरानी रखना, रोकथाम और प्रबंधन को सुदृढ़ करके रेबीज़ से होने वाली मृत्यु को कम करने का लक्ष्य रखता है।
- एकीकृत स्वास्थ्य सूचना मंच (IHIP): राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पशु के काटने के मामलों तथा रेबीज़ से संबंधित मृत्यु की वास्तविक समय (रीयल-टाइम) रिपोर्टिंग और निगरानी के लिये एक डिजिटल प्लेटफॉर्म।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM): टीकों की उपलब्धता, प्रशिक्षण, सूचना-शिक्षा-संचार (IEC) गतिविधियों और एंटी-रेबीज़ अवसंरचना के लिये राज्यों को वित्तीय एवं परिचालन सहायता प्रदान करता है।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों में जीवनरक्षक एंटी-रेबीज़ वैक्सीन (ARV) और रेबीज़ इम्युनोग्लोबुलिन (RIG) की निःशुल्क उपलब्धता सुनिश्चित करता है।
- राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (NCDC) की रेबीज़ संबंधी गतिविधियाँ: जागरूकता सृजन, प्रयोगशालाओं को सुदृढ़ करने तथा दिशानिर्देशों और प्रशिक्षण सामग्री के विकास में सहायता करता है।
- ज़ूनोटिक रोगों की रोकथाम एवं नियंत्रण हेतु राष्ट्रीय ‘वन हेल्थ’ कार्यक्रम: मानव और पशु-चिकित्सा स्वास्थ्य प्रणालियों का एकीकरण करता है, जिससे पशुओं में रेबीज़ का बेहतर निदान तथा समन्वित रोग नियंत्रण संभव हो सके।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. भारत में रेबीज़ को एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या क्यों माना जाता है?
भारत में प्रतिवर्ष वैश्विक स्तर पर होने वाली लगभग 59,000 रेबीज़ मृत्यु में से करीब 20,000 मृत्यु होती हैं। इसका मुख्य कारण कुत्तों के काटने की अधिक घटनाएँ, उपचार में देरी तथा टीकों और रेबीज़ इम्युनोग्लोबुलिन (RIG) तक अपर्याप्त पहुँच है।
2. भारत में रेबीज़ नियंत्रण से संबंधित कौन-सा कार्यक्रम है?
राष्ट्रीय रेबीज़ नियंत्रण कार्यक्रम (NRCP) राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत निगरानी, रोकथाम, निःशुल्क उपचार और क्षमता निर्माण पर केंद्रित है।
3. रेबीज़ लगभग हमेशा घातक क्यों होता है?
जब रेबीज़ वायरस केंद्रीय तंत्रिका तंत्र तक पहुँच जाता है और लक्षण प्रकट हो जाते हैं तो यह रोग 100% घातक होता है तथा इसका कोई प्रभावी उपचार उपलब्ध नहीं है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विदत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रश्न. निम्नलिखित रोगों पर विचार कीजिये: (2014)
- डिप्थीरिया
- चेचक
- मसूरिका
उपर्युक्त रोगों में से कौन-सा/से रोग का भारत में उन्मूलन किया गया है?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) 1, 2 और 3
(d) कोई नहीं
उत्तर: (b)
प्रश्न. 'रिकॉम्बिनेंट वेक्टर वैक्सीन' के संबंध में हाल के घटनाक्रमों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
- इन टीकों के विकास में जेनेटिक इंजीनियरिंग का प्रयोग किया जाता है।
- बैक्टीरिया और वायरस का उपयोग वेक्टर के रूप में किया जाता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2
उत्तर: (c)