प्रीलिम्स फैक्ट्स: 25 जून, 2020 | 25 Jun 2020

आषाढ़ी बीज

Ashadhi Bij

23 जून, 2020 को प्रधानमंत्री ने कच्छी नव वर्ष (Kutchi New Year), ‘अषाढ़ी बीज’ (Ashadhi Bij) के अवसर पर लोगों को शुभकामनाएँ दी।

प्रमुख बिंदु: 

  • हिंदू कैलेंडर के अनुसार, कच्छी नव वर्ष ‘अषाढ़ी बीज’ को आषाढ़ मास में शुक्ल पक्ष के दूसरे दिन मनाया जाता है।
  • यह हिंदू नव वर्ष गुजरात के कच्छ क्षेत्र में कच्छी समुदाय द्वारा मनाया जाता है। 
  • आषाढ़ी बीज एक परंपरागत ‘वर्षा आगमन का उत्सव’ है।
  • आषाढ़ी बीज के दौरान स्थानीय किसान यह अनुमान लगाते हैं कि वातावरण में नमी का स्तर कितना है जिसके आधार पर वे सबसे अनुकूल फसल की बुवाई कर सकें।
    • उल्लेखनीय है कि गुजरात में कच्छ का क्षेत्र अधिकतर एक रेगिस्तानी क्षेत्र है इसलिये यहाँ रहने वाले निवासियों के लिये वर्षा की महत्ता अधिक है।     
  • आषाढ़ी बीज का यह उत्सव भारत में मुख्य रूप से दो स्थानों (उत्तर प्रदेश के  वाराणसी में विश्वनाथ मंदिर में और गुजरात के उमरेठ (Umreth) में मुलेश महादेव (Mulesh Mahadev) मंदिर में) पर मनाया जाता था।

कच्छ का रण (Rann of Kutch):

  • कच्छ का रण ‘साल्ट मार्शेस’ (Salt Marshes) या रेह भूमि का एक बड़ा क्षेत्र है जो भारत एवं पाकिस्तान की सीमा पर फैला हुआ है।
  • यह अधिकतर गुजरात (मुख्य रूप से कच्छ ज़िले में) और सिंध (पाकिस्तान) के कुछ हिस्सों में अवस्थित है। 
  • यह महान रण (Great Rann) एवं छोटे रण (Little Rann) में विभाजित है।
  • ‘कच्छ का रण’ भारत-मलायन क्षेत्र (Indo-Malayan Region) का एकमात्र बड़ा बाढ़कृत घास का मैदान है।
  • इस क्षेत्र में एक ओर रेगिस्तान है जबकि दूसरी ओर समुद्र विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों के अनुकूल है जिसमें मैंग्रोव एवं रेगिस्तानी वनस्पति (Desert Vegetation) शामिल हैं।

फिशिंग कैट

Fishing Cat

हाल ही में ओडिशा के वन विभाग ने केंद्रपाड़ा (Kendrapara) ज़िले के भीतरकनिका नेशनल पार्क (Bhitarkanika National Park) में फिशिंग कैट (Fishing Cat) के लिये दो वर्षीय संरक्षण परियोजना (Conservation Project) की शुरूआत की।

fishing-cat

प्रमुख बिंदु:

  • फिशिंग कैट (Fishing Cat), एक प्रकार की मछली पकड़ने वाली बिल्लियाँ हैं। इस प्रजाति को IUCN की रेड लिस्ट में 'लुप्तप्राय' (Endangered) श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है। इसका मतलब यह है कि यह प्रजाति विलुप्त होने के एक उच्च खतरे का सामना कर रही है।   
  • हालाँकि फिशिंग कैट (Fishing Cat) एक प्रसिद्ध प्रजाति नहीं है और इन्हें मगरमच्छों जैसा दर्ज़ा भी नहीं दिया गया है किंतु इसके संरक्षण का एक मुख्य उद्देश्य इस प्रजाति को लेकर लोगों में जागरूकता पैदा करना है।
  • इस ‘संरक्षण परियोजना’ को वन विभाग (ओडिशा) द्वारा वित्त पोषित किया जाएगा।
  • वर्ष 2019 में भीतरकनिका नेशनल पार्क में एक ‘स्तनधारी जनगणना’ (Mammal Census) के दौरान केवल 20 फिशिंग कैट को देखा गया था किंतु यह जनगणना दिन में की गई थी इसलिये पार्क में फिशिंग कैट की आबादी पर कोई सटीक पारिस्थितिक डेटा उपलब्ध नहीं है।

अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय कानूनों के तहत संरक्षण स्थिति:

  • फिशिंग कैट को ‘लुप्तप्राय प्रजाति के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन’ (United Nations Convention on International Trade in Endangered Species- CITES) के अनुच्छेद-IV की परिशिष्ट-II में सूचीबद्ध किया गया है।
  • इस प्रजाति को भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 (Indian Wildlife (Protection) Act, 1972) की पहली अनुसूची के तहत भी वर्गीकृत किया गया है।

खाद्य संग्रहण:

  • फिशिंग कैट अपने भोजन के लिये भीतरकनिका नेशनल पार्क के जल निकायों में मछली एवं क्रस्टेशियंस (Crustaceans) का शिकार करती हैं। ये अपने झुके हुए पँजों से शिकार को पकड़ने के लिये जल निकायों में गोता लगाती हैं।
    • ये वनों के पास के गाँवों में पशुधन एवं मुर्गियों का शिकार भी करती हैं।

खतरा: 

  • भीतरकनिका क्षेत्र में झींगा माफियाओं ने आर्द्र भूमि एवं मैंग्रोव वनों को झींगा क्षेत्र में परिवर्तित करके जलीय पारिस्थितिकी को नष्ट कर दिया है। जिससे फिशिंग कैट्स के निवास स्थान के लिये भी संकट उत्पन्न हो रहा है।   

रेंगने वाले जीवों की जनगणना (Reptile Census):

  • गौरतलब है कि इसी तरह की संरक्षण परियोजना हाल ही में भीतरकनिका नेशनल पार्क में खारे जल के मगरमच्छों के लिये संपन्न की गई थी। जनवरी 2020 की रेंगने वाले जीवों की जनगणना (Reptile Census) के अनुसार, भीतरकनिका (पश्चिम बंगाल के सुंदरबन के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा मैंग्रोव वन क्षेत्र) 1757 खारे पानी के मगरमच्छों का निवास स्थान है।

श्वे तेल एवं गैस परियोजना

Shwe Oil & Gas Project

प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने ओएनजीसी विदेश लिमिटेड (ONGC Videsh Ltd- OVL) द्वारा म्यांमार में श्वे तेल एवं गैस परियोजना (Shwe Oil & Gas Project) के ब्लाक A-1 एवं A-3 में 121.27 मिलियन डॉलर (लगभग 909 करोड़ रुपए) के अतिरिक्त निवेश को मंज़ूरी दी।

प्रमुख बिंदु:

  • ओएनजीसी विदेश लिमिटेड (ONGC Videsh Ltd- OVL) दक्षिण कोरिया, भारत एवं म्यांमार की तेल एवं गैस क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों के एक संकाय के रूप में वर्ष 2002 से ही म्यांमार में श्वे तेल एवं गैस परियोजना के उत्खनन एवं विकास से जुड़ी हुई है। 

श्वे गैस क्षेत्र: 

  • श्वे गैस क्षेत्र अंडमान सागर (Andaman Sea) में एक प्राकृतिक गैस क्षेत्र है। इसे वर्ष 2004 में दाईवू (Daewoo) जो दक्षिण कोरियाई कंपनी है, द्वारा खोजा एवं विकसित किया गया था।

श्वे तेल एवं गैस परियोजना:

  • म्यांमार में श्वे गैस परियोजना बंगाल की खाड़ी के रखाइन अपतटीय क्षेत्र के ब्लॉक A-1 एवं A-3 में अवस्थित है।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम ‘गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड’ (GAIL) भी इस परियोजना में एक निवेशक के तौर पर शामिल है। OVL ने 31 मार्च, 2019 तक इस परियोजना में 722 मिलियन डॉलर का निवेश किया है।
  • श्वे तेल एवं गैस परियोजना से पहली बार गैस की प्राप्ति जुलाई 2013 में हुई थी। यह परियोजना वित्त वर्ष 2014-15 से ही सकारात्मक नकदी प्रवाह सृजित कर रही है।

गौरतलब है कि पूर्वी एशियाई देशों की तेल एवं गैस उत्खनन तथा विकास परियोजनाओं में भारतीय पीएसयू की भागीदारी भारत की लुक ईस्ट पॉलिसी/एक्ट ईस्ट पॉलिसी का एक हिस्सा है।


कालाज़ार

Kala-azar

लीशमैनियासिस (Leishmaniasis) एक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारी है। यह लीशमैनिया (Leishmania) नामक एक परजीवी के कारण होता है जो रेत मक्खियों (Sand Flies) के काटने से फैलता है।

  • मानव शरीर में आंत की लीशमैनियासिस को आमतौर पर भारत में कालाज़ार (Kala-azar) के रूप में जाना जाता है।

प्रमुख बिंदु:

  • लीशमैनियासिस की चपेट में भारत सहित लगभग 100 देश हैं। लीशमैनियासिस के निम्नलिखित तीन मुख्य रूप हैं: 
    1. आंत का (Visceral) लीशमैनियासिस: यह शरीर के कई अंगों को प्रभावित करती है और यह रोग का सबसे गंभीर रूप है। 
    2. त्वचीय (Cutaneous) लीशमैनियासिस: यह बीमारी त्वचा के घावों का कारण बनता है और यह बीमारी का आम रूप है। 
    3. श्लेष्मत्वचीय (Mucocutaneous) लीशमैनियासिस: इस बीमारी में त्वचा एवं श्लैष्मिक घाव होते हैं।
  • लीशमैनियासिस के इलाज के लिये उपलब्ध एकमात्र दवा मिल्टेफोसिन (Miltefosine) इस बीमारी के लिये ज़िम्मेदार परजीवी (लीशमैनिया) के अंदर इसके संचयन में कमी के कारण उभरते औषधि प्रतिरोध की वजह से तेज़ी से अपनी प्रभावशीलता खो रही है जो परजीवी को मारने के लिये आवश्यक है।  
  • ट्रांसपोर्टर प्रोटीन (Transporter Protein) के रूप में विख्यात विशिष्ट प्रकार के प्रोटीन अणु इस परजीवी के शरीर में एवं उसके बाहर मिल्टेफोसिन को ले जाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। 
  • लीशमैनिया परजीवी एक कोशिकीय होता है। ‘P4ATPase-CDC50’ नामक प्रोटीन परजीवी द्वारा दवा के सेवन के लिये ज़िम्मेदार है और पी-ग्लाइकोप्रोटीन (P-glycoprotein) नामक एक अन्य प्रोटीन इस दवा को परजीवी के शरीर के भीतर से बाहर फेंकने के लिये ज़िम्मेदार है।
  • P4ATPase-CDC50’ प्रोटीन की गतिविधि में कमी और पी-ग्लाइकोप्रोटीन प्रोटीन की गतिविधि में वृद्धि से परजीवी के शरीर में कम मात्रा में मिल्टेफोसिन दवा जमा होती है। ऐसे में इस दवा के लिये औषधि प्रतिरोध की स्थिति बनती है।