प्रिलिम्स फैक्ट्स: 05 अक्तूबर, 2020 | 05 Oct 2020

के-मिसाइल समूह 

K-Missile Group

03 अक्तूबर, 2020 को भारत द्वारा परमाणु सक्षम शौर्य मिसाइल (Shaurya Missile) का सफल परीक्षण किया गया। शौर्य मिसाइल के-मिसाइल समूह (K-Missile Group) से संबंधित है।

प्रमुख बिंदु: 

  • इस मिसाइल को अरिहंत वर्ग (Arihant Class) की परमाणु पनडुब्बी से लॉन्च किया गया है।
  • शौर्य मिसाइल लघु श्रेणी एसएलबीएम के-15 सागरिका (Short Range SLBM K-15 Sagarika) का भूमि संस्करण (Land Variant) है जिसकी रेंज कम-से-कम 750 किलोमीटर है।

के-मिसाइल समूह (K-Missile Group):

  • के-मिसाइल समूह मुख्य रूप से पनडुब्बी द्वारा लॉन्च की गई बैलिस्टिक मिसाइलें (Submarine Launched Ballistic Missiles- SLBM) हैं जिन्हें रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा स्वदेशी तरीके से विकसित किया गया है।
  • इस मिसाइल समूह से संबंधित मिसाइलों का नाम डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के नाम पर रखा गया है जो भारत के मिसाइल एवं अंतरिक्ष कार्यक्रमों के नेतृत्त्वकर्त्ता थे, जिन्होंने भारत के 11वें राष्ट्रपति के रूप में भी कार्य किया है।

के-मिसाइल समूह की शुरुआत: 

  • नौसैनिक प्लेटफॉर्म द्वारा लॉन्च की जाने वाली मिसाइलों का विकास 1990 के दशक के अंत में भारत के परमाणु परीक्षण कार्यक्रम को पूरा करने की दिशा में शुरू हुआ था। 
    • इस कार्यक्रम का उद्देश्य भूमि, समुद्र एवं वायु आधारित प्लेटफॉर्म से परमाणु हथियार लॉन्च करने की क्षमता हासिल करना है।
  • चूँकि इन मिसाइलों को पनडुब्बियों से प्रक्षेपित किया जाता है इसलिये ये भूमि से प्रक्षेपित की जाने वाली मिसाइलों की तुलना में हल्की, छोटी एवं प्रच्छन्न होती हैं।
    • अग्नि मिसाइलें मध्यम एवं अंतरमहाद्वीपीय श्रेणी की परमाणु सक्षम बैलिस्टिक मिसाइलें हैं।
  • जबकि के-मिसाइल समूह से संबंधित ये मिसाइलें मुख्य रूप से पनडुब्बी से प्रक्षेपित की जाने वाली मिसाइलें हैं जिन्हें भारत की अरिहंत श्रेणी के परमाणु संचालित प्लेटफार्मों से प्रक्षेपित किया जा सकता है। साथ ही इसके कुछ भूमि एवं हवाई संस्करण भी DRDO द्वारा विकसित किये गए हैं।
    • भारत ने 3500 किमी. की रेंज वाली कई K-4 मिसाइलों का विकास एवं सफल परीक्षण किया है।
    • के-मिसाइल समूह की अधिकांश मिसाइलों को K-5 और K-6 नाम दिया गया है जिनकी रेंज 5000 से 6000 किमी. के मध्य है।
    • K-15 और K-4 मिसाइलों का विकास एवं परीक्षण वर्ष 2010 की शुरुआत में हुआ था।


ज़ो संक्रमण 

Xoo Infection

हाल ही में भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा स्थापित डीएसटी-इंस्पायर फैकल्टी फेलोशिप (DST-Inspire Faculty Fellowship) के तहत सेंटर फॉर प्लांट मॉलिक्यूलर बॉयोलॉजी (Centre for Plant Molecular Biology- CPMB), उस्मानिया विश्वविद्यालय (हैदराबाद) में कार्यरत एक वैज्ञानिक ने उस प्रणाली की खोज की है जिसके द्वारा ज़ो संक्रमण (Xoo Infection) से निपटा जा सकता है। 

प्रमुख बिंदु:

  • ज़ो (Xoo) जिसे एक्संथोमोनास ओर्यज़ेपीवी ओर्यज़े  (Xanthomonas Oryzaepv. Oryzae) भी कहा जाता है, नामक एक जीवाणु जो चावल में एक गंभीर बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट रोग (Bacterial Leaf Blight Disease) का कारण बनता है।
  • नई प्रणाली के तहत रोग नियंत्रण रणनीतियों का विकास किया जा रहा है जिनका उपयोग एक टीके के रूप में किया जा सकता है जो चावल की प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय करते हैं और रोगजनकों द्वारा बाद के संक्रमण से चावल के पौधों को प्रतिरक्षा प्रदान करते हैं। 
  • एक्संथोमोनास ओर्यज़ेपीवी ओर्यज़े (Xanthomonas Oryzae Pv. Oryzae) जिसे आमतौर पर ज़ो संक्रमण (Xoo Infection) के नाम से भी जाना जाता है, दुनिया भर में चावल की खेती की  उपज को नुकसान पहुँचाता है।

सेल्यूलेज़ (Cellulase) के साथ चावल का उपचार:

  • सेल्यूलेज़ (Cellulase), ज़ो (Xoo) द्वारा स्रावित एक कोशिका भित्ति एंज़ाइम चावल प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं को प्रेरित करता है और ज़ो (Xoo) द्वारा चावल में संक्रमण से बचाता है।

सेल्यूलेज़ (Cellulase):

  • सेल्यूलेज़ मुख्य रूप से कवक, बैक्टीरिया एवं प्रोटोज़ोआंस (Protozoans) द्वारा उत्पादित कई एंज़ाइमों में से एक है जो सेल्युलोसिस (Cellulolysis) को उत्प्रेरित करता है।
  • यह अध्ययन करने के लिये कि वास्तव में यह सेल्यूलेज़ प्रोटीन चावल की प्रतिरक्षा प्रणाली को कैसे प्रेरित करता है, शोधकर्त्ता यह परीक्षण कर रहे हैं कि क्या इस सेल्यूलेज़ प्रोटीन के किसी भी परत से बने पेप्टाइड को चावल प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा पहचाना जा रहा है जो प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं की सक्रियता के लिये अग्रणी है।
  • पहचाने जाने वाले एलिसिटर अणु (पेप्टाइड/शर्करा) का उपयोग चावल की प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय करने और रोगजनकों द्वारा बाद के संक्रमणों से रक्षा करने के लिये एक टीके के रूप में किया जाएगा।

रेज़िस्टेंस जीन या आर जीन

(Resistance genes/R-Genes):

  • रेज़िस्टेंस जीन (R-Genes) पादप जीनोम में वे जीन होते हैं जो आर प्रोटीन का निर्माण करके रोगजनकों के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता को व्यक्त करते हैं।
  • अभी तक रेज़िस्टेंस जीन या आर जीन के माध्यम से चावल के पौधों के प्रतिरोध में सुधार करना इस बीमारी को नियंत्रित करने का सबसे अच्छा तरीका माना जाता है जिसमें प्रजनन तकनीक शामिल है जो श्रमसाध्य एवं समय लेने वाली है।

बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट रोग: 

  • राइस बैक्टीरियल ब्लाइट (Rice Bacterial Blight) जिसे चावल का बैक्टीरियल ब्लाइट भी कहा जाता है, एक खतरनाक बैक्टीरियल रोग है जो चावल की खेती को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।
  • इस महामारी के कारण चावल की फसल को लगभग 75% तक का नुकसान हो सकता है और प्रतिवर्ष लाखों हेक्टेयर चावल इस रोग से संक्रमित होते हैं।
  • इस बीमारी को पहली बार वर्ष 1884-85 में क्यूशू, जापान में देखा गया था किंतु क्संथोमोनास ओर्यज़ेपीवी ओर्यज़े (Xanthomonas Oryzae Pv. Oryzae) के रूप में इसकी आधिकारिक पहचान वर्ष 1911 में हुई थी।


डेयरिंग सिटीज़ 2020

Daring Cities 2020

दिल्ली सरकार के अनुसार, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल 7 अक्तूबर, 2020 को प्रतिष्ठित ’डेयरिंग सिटीज़ 2020’ (Daring Cities 2020) सम्मेलन में बोलने वाले दुनिया भर के पाँच नेताओं में से एक होंगे।

Daring-Cities-2020

प्रमुख बिंदु:

  • इस सम्मेलन को जर्मन सरकार के समर्थन से ICLEI और जर्मनी के सिटी ऑफ बॉन (City of Bonn) द्वारा आयोजित किया जा रहा है। 

आईसीएलईआई - स्थिरता के लिये स्थानीय सरकारें

(ICLEI – Local Governments for Sustainability):

  • यह स्थानीय एवं क्षेत्रीय सरकारों का एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जिसने स्थायी विकास के लिये अपनी प्रतिबद्धता को बनाए रखा है।
  • इस संगठन की स्थापना वर्ष 1990 में की गई थी। 
  • पूर्व में इसे स्थानीय पर्यावरण पहल के लिये अंतर्राष्ट्रीय परिषद (International Council for Local Environmental Initiatives) के रूप में जाना जाता था।
  • इस संगठन की स्थापना सितंबर, 1990 में संयुक्त राष्ट्र में 43 देशों की 200 से अधिक स्थानीय सरकारों ने एक सतत् भविष्य के लिये स्थानीय सरकारों की विश्व काॅन्ग्रेस (World Congress of Local Governments for a Sustainable Future) के उद्घाटन सम्मेलन की गई थी।
  • विशेषकर COVID-19 महामारी के संदर्भ में ‘डेयरिंग सिटीज़’ जलवायु आपातकाल से निपटने वाले शहरी नेताओं के लिये जलवायु परिवर्तन पर एक वैश्विक मंच है।
    • अरविंद केजरीवाल को बोगोटा [कोलंबिया], साओ पोलो [ब्राज़ील], लॉस एंजेल्स [संयुक्त राज्य अमेरिका] और एन्तेबे [युगांडा] के शहरी नेताओं एवं निर्णय निर्माताओं के साथ जलवायु आपातकाल और पर्यावरणीय स्थिरता से निपटने के लिये बहुस्तरीय कार्रवाई पर चर्चा करने के लिये आमंत्रित किया गया है।
    • यह कार्यक्रम इन पाँचों नेताओं को साहसी शहरी नेताओं के रूप में पहचाना है जो संबंधित स्थानीय संदर्भों में ठोस जलवायु कार्रवाई करने के लिये निश्चित की गई सीमाओं से अच्छा कार्य कर रहे हैं।
  • इस सम्मेलन में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दिल्ली में मौजूदा जलवायु आपातकाल, वायु प्रदूषण संकट, पूसा अपघटक (Pusa Decomposer) जैसे हालिया अभिनव समाधानों और दिल्ली में वायु प्रदूषण से निपटने के लिये इलेक्ट्रिक वाहन नीति (EV Policy) पर प्रतिक्रिया व्यक्त करेंगे।


एरिओकौलोन परविसेफालम एवं एरिओकौलोन कारावलेंस 

Eriocaulon Parvicephalum & Eriocaulon Karaavalense

हाल ही में पुणे के अगरकर रिसर्च इंस्टीट्यूट (Agharkar Research Institute) के वैज्ञानिकों ने महाराष्ट्र एवं कर्नाटक के पश्चिमी घाटों में पाइपवर्ट (Pipeworts) की दो नई प्रजातियों एरिओकौलोन परविसेफालम (Eriocaulon Parvicephalum) एवं एरिओकौलोन कारावलेंस (Eriocaulon Karaavalense) की खोज की है।

Eriocaulon-Parvicephalum

प्रमुख बिंदु: 

  • महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग ज़िले से खोजी गई प्रजाति को उसके अत्यंत छोटे आकार के पुष्पक्रम के कारण इसका नाम एरिओकौलोन परविसेफालम (Eriocaulon Parvicephalum) रखा गया है।
    • जबकि दूसरी प्रजाति एरिओकौलोन कारावलेंस (Eriocaulon Karaavalense) को कर्नाटक के कुमटा (Kumta) से खोजा गया है, इसका नाम कर्नाटक के तटीय क्षेत्र ‘कारावली’ के नाम पर रखा गया है।   

पाइपवर्ट (Pipeworts):

Pipeworts

  • पाइपवर्ट (Pipeworts) जिसे एरिओकौलोन (Eriocaulon) के नाम से भी जाना जाता है, वे पौधे हैं जो मानसून के दौरान एक छोटी अवधि में अपना जीवन चक्र पूरा करते हैं। यह भारत के पश्चिमी घाटों में बहुत विविध रूप में पाया जाता है।
  • भारत में पाइपवर्टों की लगभग 111 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इनमें से अधिकांश प्रजातियाँ पश्चिमी घाट एवं पूर्वी हिमालय में पाई जाती हैं और उनमें से लगभग 70% देश के लिये स्थानिक हैं।

पाइपवर्ट की अन्य प्रजातियाँ:

  • पाइपवर्ट की एरिकोकौलोन सिनेरियम (Eriocaulon Cinereum) नामक प्रजाति अपने कैंसर विरोधी, दर्दरोधी  (Analgesic), सूजनरोधी (Anti-inflammatory) एवं कसैले गुणों के लिये प्रसिद्ध है।
  • एरिकोकौलोन क्विनक्वंगुलारे (Eriocaulon Quinquangulare) का उपयोग यकृत रोगों के इलाज के लिये किया जाता है। 
  • एरिकोकौलोन मदईपरेंसे (Eriocaulon Madayiparense) केरल में पाई जाने वाली एक एंटी-बैक्टीरियल  प्रजाति है।

एरिकोकौलोन से संबंधित प्रजातियों की पहचान:

  • एरिकोकौलोन से संबंधित प्रजातियों की पहचान करना बहुत मुश्किल है क्योंकि ये सभी एक जैसी होती हैं यही कारण है कि इनके जीनस को अक्सर 'टैक्सोनोमिस्ट नाइटमेयर' (Taxonomist’s Nightmare) के रूप में जाना जाता है।
    • छोटे फूल एवं बीज के कारण इसकी विभिन्न प्रजातियों के बीच अंतर करना अत्यंत मुश्किल है।

इन प्रजातियों से संबंधित शोध को ‘फाइटोटैक्सा’ (Phytotaxa) और ‘एनलेस बोटानिकी फेनिकी’ (Annales Botanici Fennici) पत्रिकाओं में प्रकाशित किया गया था।