पामीर-कराकोरम विसंगति | 20 Dec 2025
वैज्ञानिक ताजिकिस्तान के कॉन-चुकुर्बाशी आइस कैप से गहरी बर्फ की कोर का विश्लेषण कर रहे हैं ताकि पामीर–कराकोरम एनॉमली को वैज्ञानिक रूप से समझाया जा सके, जहाँ ग्लेशियर वैश्विक तापमान वृद्धि के बावजूद स्थिर रहे हैं या बढ़े हैं।
पामीर-काराकोरम एनॉमली
- परिचय: पामीर–कराकोरम एनॉमली उस असामान्य स्थिरता या हल्की वृद्धि को दर्शाता है जो कराकोरम और पामीर पर्वत शृंखलाओं के कुछ हिस्सों के ग्लेशियरों में 1900 के अंत से देखी जा रही है, जबकि हिमालय, आल्प्स, एंडीज़ और रॉकी पर्वतों के ग्लेशियर वैश्विक तापमान के कारण सिकुड़ रहे हैं।
- प्रस्तावित कारण:
- सर्दियों में बढ़ी हुई वर्षा: अधिक बर्फबारी ग्लेशियरों को पुनः भरती है, जिससे गर्मियों में पिघलने का प्रभाव संतुलित होता है।
- उच्च और खड़ी भू-आकृति: पर्वत बर्फ को छाया प्रदान करते हैं और उच्च ऊँचाई वाले संचयन क्षेत्रों का निर्माण करते हैं।
- जलवायु परिवर्तन: यहाँ नमी भारतीय मानसून के बजाय पश्चिमी विक्षोभ से अधिक प्रभावित होती है।
- गर्मी में बादलों का आवरण: संभावित रूप से सौर विकिरण और पिघलने को कम करता है।
- सुरक्षात्मक मलबे की परत: नीचे के ग्लेशियर बर्फ को पिघलने से बचाती है।
- भौगोलिक क्षेत्र: मुख्य रूप से कराकोरम रेंज (विशेषकर गिलगित-बाल्टिस्तान, लद्दाख के कुछ हिस्से)। यह पश्चिमी पामीर पर्वतों (ताजिकिस्तान, अफगानिस्तान) तक फैला हुआ है।
- हाल की खोज: सैटेलाइट एल्टिमीट्री (जैसे ICESat-2) और गुरुत्वाकर्षण डेटा (GRACE) का उपयोग कर वैज्ञानिक जॉंचों ने दिखाया है कि यह एनॉमली कमज़ोर हुई है। हालाँकि मैदान आधारित बर्फ कोर के सबूतों का विश्लेषण अभी जारी है।
- भारत के लिये महत्त्व: कराकोरम के ग्लेशियर सिंधु नदी और इसकी सहायक नदियों को पोषित करते हैं और उनकी सापेक्ष स्थिरता लद्दाख और जम्मू-कश्मीर में नदियों के प्रवाह को अधिक विश्वसनीय बनाए रखने में मदद करती है।
कराकोरम रेंज
- परिचय: कराकोरम रेंज एशिया के केंद्र में स्थित है और यह एक जटिल पर्वत प्रणाली का हिस्सा है, जिसमें पश्चिम में हिंदू कुश, उत्तर-पश्चिम में पामीर, उत्तर-पूर्व में कुनलून पर्वत और दक्षिण-पूर्व में हिमालय शामिल हैं।
- भौगोलिक विस्तार: यह रेंज अफगानिस्तान, चीन, भारत, पाकिस्तान और ताजिकिस्तान में फैली हुई है।
- सबसे ऊँचा शिखर: सबसे ऊँचा शिखर K2 (8,611 मीटर, जिसे माउंट गॉडविन-ऑस्टेन भी कहा जाता है) है, जो माउंट एवरेस्ट (8,849 मीटर) के बाद पृथ्वी का दूसरा सबसे ऊँचा पर्वत है।