नीलगिरि तहर | 06 Aug 2025
स्रोत: द हिंदू
केरल और तमिलनाडु में संयुक्त रूप से किये गए जनगणना में कुल 2,668 नीलगिरी तहर दर्ज किये गए, जिनमें से 1,365 केरल में और 1,303 तमिलनाडु में पाए गए।
नीलगिरि तहर (Nilgiritragus hylocrius)
- परिचय: वरयाडू या नीलगिरी आइबेक्स के नाम से भी जाना जाने वाला यह एक कप्रीन खुरधारी जीव है, जो केवल पश्चिमी घाटों में पाया जाता है, विशेष रूप से तमिलनाडु (जहाँ यह राज्य पशु है) और केरल में।
- यह प्रजाति 1,200 से 2,600 मीटर की ऊँचाई पर स्थित पर्वतीय घास के मैदानों और शोला वनों में पाई जाती है तथा पश्चिमी घाट की घास वाली ढलानों और चट्टानों पर पाई जाती है।
- केरल में एराविकुलम राष्ट्रीय उद्यान (ENP) में सबसे अधिक संख्या में होते हैं, जबकि पलानी हिल्स, श्रीविल्लिपुत्तूर, मेघमलाई और अगस्तियार पर्वतमाला में कम संख्या में पक्षी पाए जाते हैं।
- व्यवहार एवं जीवन चक्र: यह एक दिवाचर (दिन में सक्रिय) प्रजाति है, जिसकी औसत आयु लगभग 3 से 3.5 वर्ष होती है, हालाँकि अनुकूल परिस्थितियों में यह प्रजाति 9 वर्ष तक जीवित रह सकती है।
- खतरे: आवास क्षरण (निर्वनीकरण, जलविद्युत परियोजनाएँ, एकसांस्कृतिक वनरोपण), पशुओं के साथ प्रतिस्पर्द्धा, शिकार और स्थानीय स्तर पर विलुप्ति (जैसे कि कर्नाटक के उच्च भूमि क्षेत्र)।
- पारिस्थितिक महत्त्व: यह बाघ और तेंदुए के लिये प्रमुख शिकार प्रजाति है और नीलगिरी लंगूर व लायन-टेल्ड मेकाक जैसे स्थानिक प्रजातियों के साथ सह-अस्तित्व में रहती है; साथ ही यह पर्वतीय चरागाह के स्वास्थ्य का सूचक है।
- संरक्षण स्थिति:
- IUCN स्थिति: संकटग्रस्त
- WPA, 1972: अनुसूची-I
और पढ़ें: नीलगिरि तहर