माइक्रोमीटियोराइड्स और ऑर्बिटल डेब्रिस | 26 Dec 2025

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

माइक्रोमीटियोराइड्स और ऑर्बिटल डेब्रिस (MMOD) से उत्पन्न खतरे ने अंतरिक्ष मलबे द्वारा चीन के शेनझोउ-20 कैप्सूल को नुकसान पहुँचाए जाने के बाद पुन: ध्यान आकर्षित किया है। गगनयान सहित मानव अंतरिक्ष उड़ानों के विस्तार के साथ उच्च-वेग वाले मलबे से अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा अब अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो गई है।

माइक्रोमीटियोराइड्स और ऑर्बिटल डेब्रिस (MMOD) क्या हैं?

  • परिचय: माइक्रोमीटियोरॉइड्स प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले अत्यंत सूक्ष्म कण होते हैं, जिनका आकार कुछ माइक्रोमीटर से लेकर लगभग 2 मिमी तक होता है। ये मुख्यतः क्षुद्रग्रहों की टक्करों और धूमकेतुओं से उत्पन्न होते हैं।
    • ये अत्यंत उच्च वेग (11–72 किमी/सेकंड) से गति करते हैं, जिससे कक्षीय गति पर धूल के आकार के कण भी इतनी गतिज ऊर्जा ले जाते हैं कि वे अंतरिक्ष यान के ऑनबोर्ड प्रणालियों को गंभीर या विनाशकारी क्षति पहुँचा सकते हैं।
    • वहीं ऑर्बिटल डेब्रिस/कक्षीय मलबा, जिसे स्पेस जंक भी कहा जाता है, पृथ्वी की कक्षा में मौजूद मानव-निर्मित वस्तुओं से बना होता है जो अब किसी उपयोग में नहीं हैं, जैसे निष्क्रिय उपग्रह, रॉकेट के टुकड़े, टक्करों से उत्पन्न मलबा तथा उपग्रह-रोधी परीक्षणों के अवशेष।
      • ये सामान्यतः लगभग 10 किमी/सेकंड की गति से चलते हैं और टकराव की स्थिति में गंभीर क्षति पहुँचाने में सक्षम होते हैं।
      • बढ़ता हुए मलबे का घनत्व केसलर सिंड्रोम (Kessler Syndrome) नामक एक अनियंत्रित टकराव शृंखला का खतरा बढ़ाता है, जो कुछ कक्षाओं को अनुपयोगी बना सकता है।
  • वितरण: कक्षीय मलबा मुख्यतः 200 किमी से 2,000 किमी की ऊँचाई के बीच स्थित निम्न पृथ्वी कक्षा (LEO) में केंद्रित है। LEO में लगभग 10 सेमी से बड़े 34,000 के आसपास ट्रैक योग्य मलबा पिंड तथा 1 मिमी से अधिक आकार के 128 मिलियन से भी अधिक मलबे के कण पाए जाते हैं।
    • माइक्रोमीटियोराइड्स (सूक्ष्म उल्कापिंड) पूरे अंतरिक्ष में मौजूद हैं, लेकिन पृथ्वी के निकट गुरुत्वाकर्षण के कारण उनकी घनता थोड़ी अधिक होती है। ये पृथ्वी की कक्षा में कार्यरत अंतरिक्ष यानों पर प्रतिवर्ष अरबों सूक्ष्म टकराव उत्पन्न करते हैं।
  • अंतरिक्ष मलबे (Space Debris) प्रबंधन हेतु वैश्विक तंत्र: 
    • आउटर स्पेस ट्रिटी 1967 (भारत इसका हस्ताक्षरकर्त्ता है): इस संधि का अनुच्छेद VI राज्यों को सभी राष्ट्रीय अंतरिक्ष गतिविधियों के लिये ज़िम्मेदार बनाता है, जिसमें निजी गतिविधियाँ भी शामिल हैं, लेकिन इसके पालन के लिये सख्त कार्यान्वयन तंत्र नहीं है।
    • अंतर्राष्ट्रीय जिम्मेदारी पर संधि 1972 (भारत इसका हस्ताक्षरकर्त्ता है): यह पृथ्वी पर अंतरिक्ष वस्तुओं के नुकसान के लिये पूर्ण ज़िम्मेदारी निर्धारित करता है, जिसमें लापरवाही का कोई प्रमाण प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन प्रवर्तन क्षमता अप्रभावी है।
    • स्वैच्छिक UN दिशा-निर्देश (Deorbiting Guidelines): UN के स्वैच्छिक दिशा-निर्देश (Deorbiting Guidelines) उपग्रहों को 25 वर्षों के भीतर कक्षा से बाहर करने की अनुशंसा करते हैं, लेकिन केवल लगभग 30% उपग्रह इस सलाह का पालन करते हैं।
    • इंटर-एजेंसी स्पेस डेब्री कोऑर्डिनेशन कमिटी (IADC): यह NASA, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और ISRO जैसी एजेंसियों को एक साथ लाकर तकनीकी मानक विकसित करती है।
  • भारत के अंतरिक्ष मलबा न्यूनीकरण उपाय: भारत ने डेब्रिस फ्री स्पेस मिशन्स (DFSM) पहल शुरू की है, जिसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक सभी भारतीय अंतरिक्ष कार्यकर्त्ताओं (सार्वजनिक और निजी) के लिये शून्य-मलबा अंतरिक्ष मिशन प्राप्त करना है।

गगनयान क्रू की MMOD से सुरक्षा

  • गगनयान मिशन एक स्वतंत्र मानव अंतरिक्ष उड़ान है, जिसमें आपात परिस्थितियों में अंतरिक्ष स्टेशन से डॉकिंग का विकल्प नहीं है, इसलिये यान के भीतर सुरक्षा अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
    • चूँकि मिशन की अवधि एक सप्ताह से कम है, इसलिये बड़े, सूचीबद्ध अंतरिक्ष मलबे से उत्पन्न जोखिम अत्यंत कम हैं तथापि छोटे, उच्च-वेग वाले सूक्ष्म उल्कापिंडों तथा कक्षीय मलबे से सुरक्षा अभी भी आवश्यक है।
  • इसके अनुरूप, इसरो ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत MMOD (सूक्ष्म उल्कापिंड एवं कक्षीय मलबा) सुरक्षा मानकों को अपनाया है, जिनमें व्हिपल शील्ड (Whipple shields) जैसी निष्क्रिय सुरक्षा प्रणालियाँ सम्मिलित हैं, जिन्हें कड़े मानव-रेटिंग मानकों की पूर्ति हेतु डिज़ाइन किया गया है। इन शील्डों का सत्यापन उन्नत सिमुलेशन उपकरणों तथा DRDO की टर्मिनल बैलिस्टिक्स रिसर्च लेबोरेटरी में किये गए हाइपर-वेलोसिटी इम्पैक्ट परीक्षणों के माध्यम से किया जाता है, जहाँ प्रक्षेप्य 5 कि.मी. प्रति सेकंड तक की गति से दागे जाते हैं।
    • भौतिक (व्हिपल) शील्डिंग: उपग्रहों में व्हिपल शील्ड का उपयोग किया जाता है, जिसमें एक बाहरी बंपर परत तथा एक आंतरिक पश्च भित्ति होती है, जिनके बीच पर्याप्त दूरी रखी जाती है।
    • बंपर आने वाले मलबे को विखंडित कर देता है, जिससे पश्च भित्ति तक पहुँचने से पहले ही उसकी ऊर्जा विस्तृत क्षेत्र में फैल जाती है।
      • यह विखंडन एवं प्रसार प्रभाव ऊर्जा को कम कर देता है, जिसके परिणामस्वरूप पश्च भित्ति बिना विफल हुए आघात को अवशोषित कर लेती है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. सूक्ष्म उल्कापिंड एवं कक्षीय मलबा (MMOD) क्या है?
सूक्ष्म उल्कापिंड प्राकृतिक रूप से उत्पन्न उच्च-वेग वाले अंतरिक्ष कण होते हैं, जबकि कक्षीय मलबा पृथ्वी की कक्षा में स्थित निष्क्रिय मानव-निर्मित वस्तुओं, जैसे उपग्रहों और रॉकेट अवशेषों से संबंधित होता है।

2. मलबे का आकार छोटा होने के बावजूद MMOD को खतरनाक क्यों माना जाता है?
अत्यधिक उच्च वेगों (72 कि.मी. प्रति सेकंड तक) के कारण, मिलीमीटर आकार के कण भी अंतरिक्ष यान प्रणालियों को गंभीर या विनाशकारी क्षति पहुँचा सकते हैं।

3. केसलर सिंड्रोम क्या है?
यह टक्करों की एक शृंखला की स्थिति को संदर्भित करता है, जिसमें मलबे की आपसी टक्करों से और अधिक मलबा उत्पन्न होता है, जिससे कुछ कक्षाएँ संभावित रूप से अनुपयोगी हो सकती हैं।

4. अंतरिक्ष मलबे के प्रबंधन हेतु वैश्विक तंत्र कौन-से हैं?
इनमें बाह्य अंतरिक्ष संधि (1967), दायित्व अभिसमय (1972) तथा इंटर-एजेंसी स्पेस डेब्रिस कोऑर्डिनेशन कमेटी द्वारा जारी तकनीकी दिशा-निर्देश शामिल हैं, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र की बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग पर समिति द्वारा अपनाया गया है। हालाँकि ये अधिकांशतः बाध्यकारी नहीं हैं।