भारत द्वारा श्रीलंका को 450 मिलियन डॉलर की मदद | 25 Dec 2025

स्रोत: द हिंदू

भारत ने चक्रवात दित्वाह के बाद श्रीलंका की पुनर्बहाली में सहायता के लिये 450 मिलियन अमेरिकी डॉलर के पुनर्निर्माण पैकेज की घोषणा की, जिससे हिंद महासागर क्षेत्र में प्रथम प्रतिक्रिया देने वाली भूमिका और मज़बूत हुई।

  • इससे पहले ऑपरेशन सागर बंधु के तहत भारत ने श्रीलंका को मानवीय सहायता, राहत सामग्री और चिकित्सीय मदद प्रदान की, जिसमें कैंडी (Kandy) के पास भारतीय सेना का एक फील्ड अस्पताल (Indian Army Field Hospital) शामिल था, जिसने 8,000 से अधिक लोगों का इलाज किया, जिससे भारत के मज़बूत समर्थन की पुनः पुष्टि हुई।
  • श्रीलंका की नाज़ुक पुनर्निर्माण स्थिति: चक्रवात के आने के समय श्रीलंका अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के समर्थन में अस्थायी राजकोषीय स्थिरता दिखा रहा था।
    • श्रीलंका के वर्ष 2022 के ऋण डिफॉल्ट के बाद लागू किये गए IMF-नेतृत्व वाले कार्यक्रम ने कर वृद्धि, सब्सिडी में कटौती और ऊँची ब्याज दरों जैसे कठोर बचत उपाय लागू किये ताकि कुछ हद तक व्यापक आर्थिक स्थिरता बहाल की जा सके, लेकिन इसका असमान रूप से सबसे अधिक नुकसान गरीबों को हुआ।
    • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने हाल ही में अपने त्वरित वित्तीयन प्रपत्र (Rapid Financing Instrument-RFI) के तहत लगभग 206 मिलियन अमेरिकी डॉलर की आपातकालीन वित्तीय सहायता को मंज़ूरी दी।
      • RFI किसी भी ऐसे IMF सदस्य देश को, जो भुगतान संतुलन की तात्कालिक आवश्यकता का सामना कर रहा हो, शीघ्र वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
      • विश्व बैंक का अनुमान है कि प्रत्यक्ष भौतिक क्षति से 4.1 अरब अमेरिकी डॉलर (जो श्रीलंका की GDP का लगभग 4% है) का नुकसान हुआ है। इस पुनर्बहाली को वर्ष 2004 की सुनामी से भी अधिक चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है।
  • भारत के लिये रणनीतिक महत्त्व: यह पुनर्निर्माण पैकेज वर्ष 2022 में श्रीलंका को दी गई भारत की 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता (क्रेडिट लाइन, करेंसी स्वैप, पेट्रोलियम सपोर्ट) पर आधारित है।
    • भारत ने हिंद महासागर क्षेत्र में, खासकर श्रीलंका के लिये सदैव पहले मदद करने वाले देश के रूप में कार्य किया है, जैसे वर्ष 2021 में MV एक्सप्रेस पर्ल शिप में आग लगने की आपदा के दौरान मदद देना और चक्रवात रोआनू (2016) के दौरान सहायता देना।
    • यह नेबरहुड फर्स्ट तथा सागर पहलों को और मज़बूत करता है एवं जलवायु संकटों के बीच भारत के क्षेत्रीय नेतृत्व को बढ़ाता है।

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