भारत में ऑनर किलिंग | 21 Aug 2025
प्रिलिम्स के लिये: खाप पंचायत, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, अनुच्छेद 21
मेन्स के लिये: जाति-आधारित हिंसा को जारी रखने में परिवार और समुदाय की भूमिका, मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के रूप में ऑनर किलिंग
चर्चा में क्यों?
भारत में जाति व्यवस्था समाज में गहनता से समाहित है और ऑनर किलिंग का प्रयोग तेज़ी से जातिगत पदानुक्रम को लागू करने के साधन के रूप में किया जा रहा है, विशेष रूप से अंतर्जातीय विवाहों के खिलाफ।
- तमिलनाडु एवं अन्य राज्यों में हुई हालिया घटनाएँ इस बात पर प्रकाश डालती हैं कि कैसे परिवार और समुदाय ऐसी हिंसा को वैध ठहराते हैं तथा संवैधानिक मूल्यों को कमज़ोर करते हैं।
ऑनर किलिंग क्या है?
- परिचय: ऑनर किलिंग हिंसा का वह रूप है, जो प्रायः हत्या के रूप में सामने आता है और अधिकतर मामलों में परिवार के सदस्य ही इसे अंजाम देते हैं। इसका शिकार वे युगल बनते हैं जिन्हें यह माना जाता है कि उन्होंने जाति, समुदाय या लैंगिक मानदंडों की अवहेलना कर परिवार का अपमान किया है। इसमें जाति-अंतर्विवाह (Caste endogamy) और गोत्र-बहिर्विवाह (Gotra exogamy) जैसे नियमों का उल्लंघन भी शामिल है।
- ऑनर किलिंग से निपटने में कानून की भूमिका:
- संवैधानिक सुरक्षा: अनुच्छेद 14 (समता का अधिकार), अनुच्छेद 15 (भेदभाव को प्रतिबंधित करने का अधिकार), अनुच्छेद 19 (संगम या संघ बनाने की स्वतंत्रता) तथा अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) ऑनर किलिंग के खिलाफ संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करते हैं।
- सांविधिक प्रावधान: ऑनर किलिंग को भारतीय दंड संहिता (अब भारतीय न्याय संहिता) के अंतर्गत हत्या की श्रेणी में रखा गया है।
- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 ने अंतर्जातीय और सगोत्र विवाह की अनुमति दी तथा जाति-अंतर्विवाह विवाह प्रथाओं को चुनौती दी।
- विशेष विवाह अधिनियम, 1954 खाप पंचायतों के विरोध का सामना करने वाले अंतर्जातीय विवाहों को मान्यता देता है।
- न्यायिक दृष्टांत (Judicial Precedents):
- लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2006): सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि अंतर्जातीय विवाह वैध है और निर्देश दिया कि पुलिस को ऐसे दंपत्तियों की सुरक्षा करनी चाहिये।
- अरुमुगम सर्वई बनाम तमिलनाडु राज्य (2011): सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि खाप पंचायतें अवैध हैं। अंतर्जातीय दंपत्तियों के विरुद्ध जारी आदेशों को रद्द किया जाना चाहिये।
- विकास यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2016): सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि सम्मान के नाम पर महिलाओं की साथी चुनने की स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं किया जा सकता।
- शक्ति वाहिनी बनाम भारत संघ (2018): सर्वोच्च न्यायालय ने ऑनर क्राइम की परिभाषा को विस्तृत किया और माना कि व्यक्तिगत चुनाव गरिमा (अनुच्छेद 19 व 21) का हिस्सा है।
- न्यायालय ने राज्यों को निर्देश दिया कि वे सुरक्षित आश्रय गृह स्थापित करें, जातिगत सभाओं पर निगरानी रखें और लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों को उत्तरदायी ठहराएँ।
- शफीन जहान बनाम अशोकन के.एम. एवं अन्य (2018): अनुच्छेद 21 के तहत सर्वोच्च न्यायालय ने किसी व्यक्ति के अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने के अधिकार को बरकरार रखा।
- ऑनर किलिंग के परिणाम: यह मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन है, जो सीधे तौर पर अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 19 जैसे मौलिक अधिकारों पर आघात करता है।
- ये लैंगिक अन्याय को बनाए रखते हैं, क्योंकि महिलाएँ असमान रूप से इसका शिकार बनती हैं, साथ ही जातिगत पदानुक्रम को मिटाने के बजाय और मज़बूत करते हैं।
- ऐसे अपराध लोकतंत्र और विधि के शासन को कमज़ोर करते हैं, क्योंकि समानांतर जातीय परिषदें संवैधानिक न्यायालयों की सत्ता को चुनौती देती हैं।
- विधिक और राजनीतिक निहितार्थों से परे, ऑनर किलिंग से गहरा मनोवैज्ञानिक आघात पहुँचता है, जिससे युवाओं में जाति या धर्म से बाहर विवाह करने के प्रति भय, असुरक्षा तथा झिझक उत्पन्न होती है।
- यह न केवल सामाजिक प्रगति को रोकता है बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार निगरानी को भी आकर्षित करता है, जिससे वैश्विक स्तर पर भारत की छवि धूमिल होती है।
भारत में ऑनर किलिंग को बढ़ावा देने वाले कारक कौन-से हैं?
- परिवार की भूमिका: परिवार परंपरागत रूप से जातिगत मानदंडों को लागू करने का प्रमुख माध्यम रहा है।
- शहरीकरण, शिक्षा और आधुनिक विचारों के संपर्क के बावजूद, जाति आज भी बनी हुई है क्योंकि परिवार-केंद्रित समाजीकरण अनुष्ठानों, विवाह व्यवस्थाओं, रीति-रिवाजों तथा विरासत में मिले पूर्वाग्रहों के माध्यम से होता है।
- बच्चे बचपन से ही जातिगत सीमाओं को आत्मसात कर लेते हैं, जिससे उनके सामाजिक संबंध, विवाह संबंधी निर्णय और ‘सम्मान’ की धारणाएँ प्रभावित होती हैं।
- परिवारों के माध्यम से जाति का यह प्रवर्तन, अंतर्जातीय संबंधों को हिंसक प्रतिक्रिया के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील बना देता है।
- सामुदायिक प्रवर्तन और सामाजिक दबाव: समुदाय और अनौपचारिक निकाय, जैसे खाप पंचायतें, प्रायः जाति-अंतर्विवाह के नियमों को चुनौती देने वालों के खिलाफ हिंसा को स्वीकृति देते हैं या मौन समर्थन प्रदान करते हैं।
- सामाजिक मानदंड और साथियों का दबाव इस विचार को और मज़बूत करता है कि जातिगत नियमों के उल्लंघन को दंडित किया जाना चाहिये।
- सामाजिक प्रगति का विरोधाभास: तमिलनाडु, तेलंगाना, महाराष्ट्र और केरल जैसे वे राज्य, जहाँ दलित सशक्तीकरण अपेक्षाकृत अधिक है, वहाँ अंतर्जातीय विवाह भी अधिक दर्ज होते हैं तथा साथ ही ऑनर किलिंग की घटनाएँ भी अधिक सामने आती हैं।
- यह हिंसा उन प्रदेशों में ज़्यादा दिखाई देती है जहाँ जातिगत व्यवस्था को अस्थिरता का अनुभव होता है, न कि उन प्रदेशों में जहाँ यह व्यवस्था सबसे अधिक स्थायी और गहरी है।
- ऑनर किलिंग प्रायः तब होती है जब वंचित समुदाय, विशेष रूप से दलित, शिक्षा, रोज़गार और सामाजिक गतिशीलता के माध्यम से सशक्त होते हैं। अंतर्जातीय संबंध, विशेषकर दलित पुरुषों और प्रभुत्वशाली जातियों की महिलाओं के बीच, स्थापित जातिगत पदानुक्रम को चुनौती देते हैं तथा इसी के परिणामस्वरूप हिंसा होती है।
- विरोधाभासी सार्वजनिक और निजी दृष्टिकोण: तमिलनाडु जैसे क्षेत्रों में जातिगत हिंसा का सार्वजनिक रूप से विरोध किया जाता है, किंतु निजी दृष्टिकोण और सोशल मीडिया पर प्राय: जातिगत नियंत्रण तथा हिंसा का महिमामंडन किया जाता है।
- डिजिटल मंचों की गुमनामी जातिगत गौरव को बढ़ावा देती है और विरासत में मिली सामाजिक शक्ति खोने के भय को और प्रबल करती है, जिससे अंतर्जातीय विवाहों के प्रति वैमनस्यता को बढ़ावा मिलता है।
- कमज़ोर कानूनी प्रवर्तन: खाप (उत्तर भारत) और कट्टा (दक्षिण भारत) स्वयंभू ग्राम सभाएँ हैं जिन पर प्रभावशाली जाति के पुरुषों का प्रभुत्व होता है। ये परिषदें परंपरा का हवाला देकर हिंसा का सहारा लेते हैं और पितृसत्तात्मक व्यवस्था को मज़बूती प्रदान करते हैं।
- ऑनर किलिंग को भारत में एक अलग अपराध के रूप में मान्यता नहीं दी गई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) इसे ‘हत्या’ के अंतर्गत दर्ज करता है, जिससे इसकी पहचान और वर्गीकरण कठिन हो जाता है।
भारत में बदलती सामाजिक गतिशीलता का भविष्य में जाति व्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?
- बदलती सामाजिक गतिशीलता: दक्षिण कोरिया और जापान जैसे देशों में विवाह दर में गिरावट तथा परिवार संरचना के बदलते स्वरूप अब शहरी भारत में भी दिखाई देने लगे हैं।
- शहरी युवा पारंपरिक पारिवारिक दायित्वों की अपेक्षा व्यक्तिगत विकास, आत्मनिर्भरता और भावनात्मक सुख-समृद्धि को अधिक प्राथमिकता देने लगे हैं।
- जाति व्यवस्था के भावी निहितार्थ: भारत की जाति व्यवस्था एक निर्णायक दौर से गुजर रही है, जहाँ एक ओर हिंसक प्रतिक्रियाएँ हैं तो दूसरी ओर लोकतांत्रिक प्रतिरोध भी उभर रहा है।
- जैसे-जैसे परिवार का प्रभाव कमज़ोर होता है, वैसे-वैसे जातिगत मानदंडों और सम्मान-आधारित अपेक्षाओं का पालन चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है, जिससे धीरे-धीरे उस सांस्कृतिक ढाँचे का क्षरण हो रहा है जो जाति को बनाए रखता है।
- इसके लिये पारदर्शी संवाद, वैकल्पिक आख्यान और सामाजिक प्राथमिकताओं में बदलाव आवश्यक है, जो संस्थानों तथा सामाजिक मूल्यों पर जाति के प्रभुत्व को कमज़ोर कर सकते हैं।
ऑनर किलिंग से निपटने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- स्वतंत्र कानून बनाना: ऑनर किलिंग को लेकर एक अलग राष्ट्रीय कानून बनाया जाए, जिसे सामान्य हत्या के कानूनों से अलग रखा जाए, ताकि त्वरित और लक्षित कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित की जा सके।
- अपराधियों के खिलाफ गवाही देने वालों के लिये गवाह संरक्षण कार्यक्रम लागू किए जाएँ और पुलिस अधिकारियों व न्यायाधीशों को ऑनर किलिंग, जातिगत हिंसा तथा लैंगिक संवेदनशीलता पर प्रशिक्षण दिया जाए।
- ऑनर किलिंग से जुड़े मामलों की शीघ्र सुनवाई के लिये विशेष फास्ट-ट्रैक कोर्ट की स्थापना की जाए, ताकि समय पर न्याय मिल सके।
- आश्रय गृह: विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में पीड़ितों और ऑनर किलिंग के खतरे में पड़े व्यक्तियों के लिये अधिक आश्रय गृह तथा सहायक तंत्र स्थापित किये जाएँ।
- जन-जागरूकता अभियान: धार्मिक व जातिगत प्रतिनिधियों सहित सामुदायिक अभिकर्त्ताओं को साथ लेकर, ऑनर-आधारित हिंसा के दुष्परिणामों पर जागरूकता फैलाने और सामाजिक बदलाव को बढ़ावा देने हेतु अभियान चलाए जाएँ।
- शैक्षिक कार्यक्रम: विद्यालयों और महाविद्यालयों में लैंगिक समानता, मानवाधिकार तथा ऑनर-आधारित हिंसा के परिणामों पर शिक्षा दी जाएँ, ताकि पारंपरिक व कठोर मानसिकताओं को चुनौती दी जा सके।
- डिजिटल वैकल्पिक आख्यान: सोशल मीडिया का उपयोग कर सकारात्मक अभियान चलाए जाएँ, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता, समानता और प्रेम का समर्थन करें।
निष्कर्ष
ऑनर किलिंग से निपटने के लिये कानूनी, सामाजिक और सांस्कृतिक सुधारों के साथ-साथ सामुदायिक भागीदारी की भी आवश्यकता है। शिक्षा, आर्थिक अवसरों और कानूनी सुरक्षा के माध्यम से व्यक्तियों, विशेषकर महिलाओं को सशक्त बनाना हिंसा के चक्र को तोड़ने तथा समानता को बढ़ावा देने की कुंजी है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. “भारत में ऑनर किलिंग व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर जाति-आधारित नियंत्रण की निरंतरता को दर्शाती है।” संवैधानिक सुरक्षा उपायों के संदर्भ में चर्चा कीजिये। |
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UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
मेन्स
प्रश्न. “जाति व्यवस्था नई-नई पहचानों और सहचारी रूपों को धारण कर रही है। अतः भारत में जाति व्यवस्था का उन्मूलन नहीं किया जा सकता है।” टिप्पणी कीजिये। (2018)
प्रश्न. खाप पंचायतें संविधानेतर प्राधिकरणों के तौर पर प्रकार्य करने, अक्सर मानवाधिकार उल्लंघनों की कोटि में आने वाले निर्णयों को देने के कारण खबरों में बनी रही हैं। इस संबंध में स्थिति को ठीक करने के लिये विधानमंडल, कार्यपालिका और न्यायपालिका द्वारा की गई कार्रवाइयों पर समालोचनात्मक चर्चा कीजिये। (2015)