FIR तथा सामान्य डायरी | 08 Mar 2024

स्रोत: लाइव लॉ

चर्चा में क्यों? 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने शैलेश कुमार बनाम यूपी राज्य (अब उत्तराखंड राज्य) वर्ष 2024 मामले में पुलिस द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट तथा सामान्य डायरी/रोजनामचा प्रविष्टियों के पंजीकरण के संबंध में कानूनी स्थिति स्पष्ट की है।

  • सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि संज्ञेय अपराध का खुलासा करने वाली जानकारी को पुलिस अधिनियम, 1861 के तहत पुलिस द्वारा रखी गई सामान्य डायरी में दर्ज करने के बजाय निर्दिष्ट FIR बुक में FIR के रूप में दर्ज किया जाना चाहिये।
  • न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सामान्य डायरी प्रविष्टि FIR के पंजीकरण से पहले नहीं हो सकती जब तक कि प्रारंभिक जाँच आवश्यक न समझी जाए।

FIR क्या होती है?

  • प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) एक लिखित दस्तावेज़ है जिसे पुलिस द्वारा तब तैयार किया जाता है जब उन्हें किसी संज्ञेय अपराध के घटित होने के बारे में सूचना प्राप्त होती है।
    • संज्ञेय अपराध वह होता है जिसमें पुलिस बिना वारंट के किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती है।
    • FIR शब्द को भारतीय दंड संहिता (IPC), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973 अथवा किसी अन्य कानून में परिभाषित नहीं किया गया है, किंतु पुलिस नियमों में, CrPC की धारा 154 के तहत दर्ज की गई जानकारी को प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) के रूप में जाना जाता है। 
    • साथ ही इस बात पर भी ज़ोर दिया जाता है कि CrPC की धारा 154 के तहत संज्ञेय अपराध के लिये FIR दर्ज करना अनिवार्य है।
  • FIR दर्ज करने के अपवादित नियम:ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य, (2014) में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय किया कि CrPC की धारा 154 के तहत संज्ञेय अपराधों के लिये FIR दर्ज करना अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त कुछ निम्नलिखित मामलों में FIR दर्ज करने से पूर्व प्रारंभिक जाँच आवश्यक हो सकती है:
    • वैवाहिक/पारिवारिक विवाद
    • वाणिज्यिक अपराध
    • चिकित्सीय लापरवाही से संबंधित मामले
    • भ्रष्टाचार के मामले
    • आपराधिक मामला शुरू होने में देरी वाली स्थितियाँ, उदाहरण के लिये, देरी के कारणों को संतोषजनक ढंग से बताए बिना मामले की रिपोर्ट करने में 3 माह से अधिक का विलंब।
    • प्रारंभिक जाँच 7 दिनों के भीतर पूरी की जानी चाहिये।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी निर्णय किया कि पुलिस को प्रदत्त जानकारी द्वारा किसी संज्ञेय अपराध के घटित होने का खुलासा नहीं होने की दशा में पुलिस FIR दर्ज करने के लिये बाध्य नहीं है।
    • ऐसे मामलों में पुलिस सामान्य डायरी/दैनिकी में जानकारी दर्ज कर सकती है और तदनुसार इत्तिला देने वाले को सूचित कर सकती है।

सामान्य डायरी क्या है?

  • सामान्य डायरी/दैनिकी किसी पुलिस स्टेशन में दैनिक आधार पर घटित होने वाले सभी क्रियाकलापों और घटनाओं का रिकॉर्ड है।
    • पुलिस अधिनियम, 1861 की धारा 44 राज्य सरकार को सामान्य डायरी के स्वरूप और उसके रखरखाव की विधि को निर्धारित करने का अधिकार देती है।
  • सामान्य डायरी में निम्नलिखित विभिन्न विवरण शामिल होते हैं:
    • पुलिस अधिकारियों का आगमन एवं प्रस्थान
    • व्यक्तियों की गिरफ्तारी
    • संपत्ति की ज़ब्ती
    • शिकायतों की प्राप्ति एवं समाधान
    • कोई अन्य जानकारी जिसे पुलिस स्टेशन का प्रभारी अधिकारी दर्ज करना आवश्यक समझे।
  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय: CBI बनाम तपन कुमार सिंह (2003) मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि एक सामान्य डायरी प्रविष्टि को एक उपयुक्त मामले में FIR के रूप में माना जा सकता है, जहाँ यह एक संज्ञेय अपराध के कृत्य का खुलासा करता है।

नोट:

  • केस डायरी एक विशिष्ट मामले के लिये जाँच अधिकारी द्वारा रखी जाती है, जबकि सामान्य डायरी एक पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र के भीतर सभी कानूनी घटनाओं को दर्ज करती है।

पहलू

सामान्य डायरी प्रविष्टि

FIR

उद्देश्य

प्रशासनिक उद्देश्यों या भविष्य के संदर्भ के लिये शिकायतों और घटनाओं को रिकॉर्ड करना 

संज्ञेय अपराध पंजीबद्ध कर विवेचना करना

अपराध की प्रकृति

संज्ञेय और असंज्ञेय दोनों

केवल संज्ञेय अपराधों के लिये

प्रलेखन

आंतरिक पुलिस रिकॉर्ड

सार्वजनिक रिकॉर्ड के लिये

वितरण

शिकायतकर्त्ता या न्यायिक मजिस्ट्रेट को प्रतियाँ प्रदान नहीं की जाती हैं; वरिष्ठ अधिकारियों को भेजी जाती हैं।

शिकायतकर्त्ता, वरिष्ठ अधिकारियों और न्यायिक मजिस्ट्रेट को प्रतियाँ प्रदान की जाती हैं।

न्यायिक निरीक्षण

मजिस्ट्रेट अनुरोध पर सामान्य डायरी का निरीक्षण कर सकता है। 

मजिस्ट्रेट निरीक्षण के लिये FIR की प्रतियाँ प्राप्त करता है।

शिकायतकर्त्ता के हस्ताक्षर की आवश्यकता 

आवश्यक नहीं

आवश्यक

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

भारत के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. न्यायिक हिरासत का अर्थ है कि अभियुक्त संबंधित मजिस्ट्रेट की हिरासत में है और ऐसे अभियुक्त को पुलिस स्टेशन के हवालात में रखा जाता है न कि जेल में।
  2. न्यायिक हिरासत के दौरान, मामले के प्रभारी पुलिस अधिकारी, न्यायालय की अनुमति के बिना संदिग्ध व्यक्ति से पूछताछ नहीं कर सकते।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)