पर्यावरण संरक्षण (दूषित स्थलों का प्रबंधन) नियम, 2025 | 01 Aug 2025

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत पर्यावरण संरक्षण (प्रदूषित स्थलों के प्रबंधन) नियम, 2025 अधिसूचित किये हैं।

  • ये नियम रासायनिक रूप से दूषित स्थलों की पहचान, मूल्यांकन और सुधार की प्रक्रिया को कानूनी रूप से संहिताबद्ध करते हैं।

पर्यावरण संरक्षण (दूषित स्थलों का प्रबंधन) नियम, 2025 के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?

  • दूषित स्थल उन स्थानों को कहा जाता है जहाँ पूर्व में खतरनाक अपशिष्टों का निस्तारण किया गया हो, जिसके कारण मृदा, भूजल और सतही जल प्रदूषित हो गये हों।
    • उदाहरणों में पुराने लैंडफिल, रिसाव स्थल और रासायनिक अपशिष्ट डंपिंग शामिल हैं।
  • पहचान एवं रिपोर्टिंग तंत्र:
    • ज़िला प्रशासन को संदिग्ध प्रदूषित स्थलों पर अर्धवार्षिक रिपोर्ट राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड या नामित प्राधिकरण को सौंपनी चाहिये।
    • राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों या नामित विशेषज्ञ संस्थाओं को संदिग्ध स्थलों का प्रारंभिक आकलन 90 दिनों के भीतर करना होगा, जिसके पश्चात अगले 90 दिनों में विस्तृत जाँच की जानी चाहिये।
      • यदि किसी स्थल पर वर्ष 2016 के खतरनाक अपशिष्ट नियमों के तहत सूचीबद्ध 189 खतरनाक रसायनों में से कोई भी सुरक्षित सीमा से अधिक मात्रा में मौजूद है, तो उसे आधिकारिक तौर पर दूषित स्थल घोषित कर दिया जाता है।
      • ऐसे स्थलों के नाम और विवरण सार्वजनिक किये जाने चाहिये; प्रवेश पर प्रतिबंध लगाए जाने चाहिये।
  • उपचारात्मक नियोजन: एक संदर्भ संगठन (विशेषज्ञ निकाय) उस स्थल के लिये विशिष्ट उपचार योजना का मसौदा तैयार करेगा।
  • उत्तरदायित्व एवं लागत वसूली: ज़िम्मेदार के रूप में पहचाने गए प्रदूषक (प्रदूषक भुगतान सिद्धांत) सफाई की लागत वहन करेंगे।
    • यदि प्रदूषण करने वाले व्यक्तियों या इकाइयों का पता नहीं चल पाता या वे भुगतान करने में असमर्थ होते हैं, तो केन्द्र और राज्यों के बीच व्यय साझा करना अनिवार्य होता है।
  • आपराधिक दायित्व: प्रदूषण के कारण यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है या पर्यावरण को हानि पहुँचती है, तो भारतीय न्याय संहिता, 2023 के अंतर्गत दंडात्मक कार्रवाई की जायेगी।
  • अपवर्जन: इन नियमों में रेडियोधर्मी अपशिष्ट, खान संचालन, समुद्री तेल प्रदूषण और ठोस अपशिष्ट डंपिंग से होने वाले प्रदूषण को शामिल नहीं किया गया है, क्योंकि ये सभी पहले से ही अलग-अलग विशिष्ट विधियों के अंतर्गत विनियमित हैं।

पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986:

  • वर्ष 1986 का पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (EPA), संसद द्वारा भोपाल गैस त्रासदी की पृष्ठभूमि में पारित किया गया था, जिसने पर्यावरण और जनस्वास्थ्य की सुरक्षा के लिये एक व्यापक कानून की तात्कालिक आवश्यकता को उजागर किया।
  • यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 253 के तहत लागू किया गया था, जो संसद को अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के कार्यान्वयन के लिये कानून बनाने का अधिकार देता है। यह अधिनियम वर्ष 1972 के स्टॉकहोम सम्मेलन में की गई अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के उद्देश्य से लाया गया था।
  • यह अधिनियम केंद्रीय सरकार को पर्यावरणीय प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और उस पर प्रतिक्रिया करने का अधिकार देता है। यह केंद्र को मानक निर्धारित करने, उत्सर्जन को नियंत्रित करने, प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को बंद करने तथा आवश्यक सेवाओं पर नियंत्रण करने की शक्ति प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद 48A राज्य को पर्यावरण, वनों और वन्यजीवों की रक्षा करने का निर्देश देता है, जबकि अनुच्छेद 51A भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य बनाता है कि वह प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार में योगदान दे।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 भारत सरकार को सशक्त करता है कि

  1. वह पर्यावरणीय संरक्षण की प्रक्रिया में लोक सहभागिता की आवश्यकता का और इसे हासिल करने की प्रक्रिया और रीति का विवरण दे।
  2.  वह विभिन्न स्रोतों से पर्यावरणीय प्रदूषकों के उत्सर्जन या विसर्जन के मानक निर्धारित करे।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1और न ही 2

उत्तर: (b)