डीपफेक | 16 Jul 2025

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों? 

डेनमार्क ने एक ऐतिहासिक कॉपीराइट संशोधन का प्रस्ताव रखा है, जिसमें किसी व्यक्ति की आवाज़, चेहरा और समानता (likeness) की बिना अनुमति के डिपफेक साझा करने पर प्रतिबंध लगाने की बात कही गई है। यह संशोधन व्यक्तिगत पहचान की सुरक्षा के उद्देश्य से लाया गया है।

  • प्रस्तावित कानून वास्तविक डिपफेक को कॉपीराइट उल्लंघन के रूप में मानता है और व्यक्तियों को अपनी डिजिटल समानता (Digital Likeness) पर मृत्यु के 50 वर्षों तक अधिकार प्रदान करता है। साथ ही, यह कानून ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स को ऐसे कंटेंट को हटाने के लिये बाध्य करता है, यदि वे ऐसा नहीं करते, तो उन्हें दंड का सामना करना पड़ेगा।

डीपफेक क्या हैं?

  • डिपफेक एक प्रकार का कृत्रिम मीडिया (वीडियो, चित्र या ऑडियो) है जिसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से डिजिटल रूप से इस तरह बदला जाता है कि ऐसा लगे जैसे किसी व्यक्ति ने कुछ कहा या किया हो, जबकि वास्तव में उसने ऐसा नहीं किया। यह तकनीक वास्तविक वीडियो, ऑडियो या छवियों में हेरफेर करती है, जिससे नकली सामग्री बनाई जाती है जो वास्तविक जैसी प्रतीत होती है।
  • प्रयुक्त प्रौद्योगिकी: डिपफेक तकनीक डीप लर्निंग पर आधारित होती है, जो कि मशीन लर्निंग (Machine Learning) का एक हिस्सा है और मशीन लर्निंग स्वयं AI का उपसमूह है।
    • इन्हें जेनरेटिव एडवर्सेरियल नेटवर्क (GAN) का उपयोग करके बनाया जाता है, जहाँ दो न्यूरल नेटवर्क (एक जनरेटर और एक डिस्क्रिमिनेटर) नकली सामग्री बनाने और उसे परिष्कृत करने के लिये एक साथ कार्य करते हैं।
      • GAN चेहरे, आवाज़ या गतिविधियों को फिर से बनाने के लिये वास्तविक डेटा का उपयोग करते हैं। एक जनरेटर नकली सामग्री का निर्माण करता है और एक विभेदक उसे पहचानने की कोशिश करता है। जनरेटर तब तक सुधार करता है जब तक वह विभेदक को मूर्ख नहीं बना लेता,
      • नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (NLP) का उपयोग आवाज की नकल (Voice Cloning) के लिये किया जाता है। लिप-सिंकिंग तकनीक की मदद से डिपफेक ऑडियो को वीडियो से मिलाया जाता है ताकि व्यक्ति बोलता हुआ दिखे।
  • सामान्य प्रकार:
    • फेस स्वैप: किसी वीडियो में एक व्यक्ति के चेहरे की जगह किसी और का चेहरा लगाना।
    • वॉइस क्लोनिंग: किसी की आवाज़ की हूबहू नकल करके कुछ भी कहलवाना।
    • सोर्स वीडियो मैनिपुलेशन: किसी व्यक्ति को ऐसा दिखाना कि वह कुछ कह या कर रहा है, जबकि उसने ऐसा कुछ नहीं किया।
  • पहचान (डिटेक्शन):
    • संकेत:
      • अस्वाभाविक पलक झपकाना
      • चेहरे का बिगड़ना
      • ऑडियो और वीडियो का मेल न खाना
      • रोशनी में विसंगतियाँ
    • उपकरण: Adobe, Microsoft, Sensity AI और अन्य कंपनियों ने डिपफेक पहचानने के लिये विशेष सॉफ्टवेयर का निर्माण  किया है।
  • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म भी अब हानिकारक डिपफेक को चिह्नित करने या हटाने की प्रक्रिया शुरू कर चुके हैं।

भारत डीपफेक का किस प्रकार सामना करता है?

  • भारत में डिपफेक के लिये कोई विशेष कानून नहीं है, लेकिन कई मौजूदा कानून आंशिक सुरक्षा प्रदान करते हैं:
  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (“आईटी अधिनियम”): आईटी अधिनियम की धारा 66D, डिजिटल माध्यमों से छद्मवेश और धोखाधड़ी को लक्षित करती है।
    • इसके अलावा, आईटी अधिनियम की धारा 67, 67A और 67B के अनुसार यदि डिपफेक सामग्री अश्लील हो या उसमें यौन स्पष्टता (sexually explicit content) हो, तो इन धाराओं के तहत प्रकाशन या प्रसारण करने वालों पर कार्रवाई की जा सकती है।
  • सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021: ये नियम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को यह जिम्मेदारी देते हैं कि यदि किसी छवि, आवाज़ या कंटेंट को मोर्फ किया गया है या किसी की पहचान चुराई गई है, तो सूचना मिलने पर तुरंत उसे हटाएँ। ऐसा न करने पर प्लेटफॉर्म अपनी "सेफ हार्बर" सुरक्षा (जिसके अंतर्गत वे तीसरे पक्ष की सामग्री के लिए कानूनी रूप से जिम्मेदार नहीं होते) खो सकते हैं।
  • कॉपीराइट अधिनियम, 1957: यदि डीपफेक कॉपीराइट वाली छवियों या वीडियो का बिना अनुमति के उपयोग करते हैं, तो कॉपीराइट अधिनियम, 1957 लागू हो सकता है। यह अधिनियम किसी भी ऐसी सामग्री के अनधिकृत उपयोग पर रोक लगाता है जिस पर किसी व्यक्ति का विशेष अधिकार हो।
  • भारतीय कंप्यूटर आपात प्रतिक्रिया दल (CERT-In): CERT-In ने डिपफेक खतरों को लेकर सलाह और दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिनका पालन करके व्यक्ति और संस्थान अपनी सुरक्षा कर सकते हैं।
  • भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C): I4C देशभर की कानून प्रवर्तन एजेंसियों को डिपफेक सहित साइबर अपराधों से निपटने में सहायता करता है।
  • न्यायिक हस्तक्षेप:
    • अनिल कपूर का मामला (2023): दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक एकतरफा, सर्वव्यापी निषेधाज्ञा (ex-parte, omnibus injunction) जारी की, जिसमें अनिल कपूर के नाम, छवि, शैली (जैसे संवाद या हावभाव) का AI या मोर्फिंग के जरिये व्यावसायिक लाभ के लिये उपयोग करने से रोका गया।
      • न्यायालय ने कहा कि उनके व्यक्तित्व अधिकार (personality rights) केवल उनके लिये नहीं, बल्कि उनके परिवार और मित्रों की गरिमा के लिये भी सुरक्षित होने चाहिये।
    • श्री शिवाजी राव गायकवाड़ (रजनीकांत) बनाम मेसर्स वर्षा प्रोडक्शंस (2015): मद्रास उच्च न्यायालय ने एक सेलिब्रिटी के रूप में उनके व्यक्तित्व अधिकारों को मान्यता देते हुए, फिल्म मैं हूँ रजनीकांत में रजनीकांत के नाम, छवि, व्यंग्यचित्र और संवाद शैली के उपयोग पर रोक लगाने का आदेश दिया।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. विकास की वर्तमान स्थिति के साथ कृत्रिम बुद्धिमत्ता निम्नलिखित में से क्या प्रभावी ढंग से कर सकता है? (2020)

  1. औद्योगिक इकाइयों में बिजली की खपत को कम करना  
  2. सार्थक लघु कथाएँ और गीत की रचना  
  3. रोग निदान  टेक्स्ट-टू-स्पीच रूपांतरण  
  4. विद्युत ऊर्जा का वायरलेस संचरण

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2, 3 और 5 
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 2, 4 और 5 
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (b)