सामरिक पेट्रोलियम भंडार: महत्त्व व चुनौतियाँ | 29 Jun 2020

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में सामरिक पेट्रोलियम भंडार के महत्त्व, चुनौतोयाँ व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

वैश्विक महामारी COVID-19 से उपजे संकट से निपटने के लिये लागू किये गए लॉकडाउन के कारण पेट्रोलियम उत्पादों की मांग में कमी के चलते मई, 2019 की तुलना में मई, 2020 में भारत में कच्चे तेल का उत्पादन 7.1 प्रतिशत तक गिर गया है। हालाँकि वित्त वर्ष 2012-13 के बाद से प्रत्येक वर्ष कच्चे तेल का घरेलू उत्पादन घट रहा है। वार्षिक कच्चे तेल का उत्पादन वित्त वर्ष 2012-13 में 38,089.7 हजार मीट्रिक टन (Thousand Metric Tonnes) से घटकर वित्त वर्ष 2019-20 में 32,169.3 हजार मीट्रिक टन हो गया है।

वस्तुतः भारत ने कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के मद्देनज़र अपने सामरिक तेल भंडार में वृद्धि की है और वर्ष के अंत तक इसके बढ़ने की उम्मीद है, किंतु इसके बावजूद वित्तीय वर्ष 2020 में देश का तेल आयात बिल 100 बिलियन डॉलर के आसपास रह सकता है, जो कि वित्तीय वर्ष 2019 के तेल आयात बिल (111.9 बिलियन डॉलर) से कम है।
इस आलेख में सामरिक तेल भंडार की आवश्यकता, ऊर्जा के प्रमुख व वैकल्पिक स्रोत, सामरिक तेल भंडार के मामले में भारत की स्थिति व इसके प्रभाव के संदर्भ में व्यापक चर्चा की जाएगी।

पृष्ठभूमि

  • वर्ष 1990 में पश्चिमी एशिया में जब खाड़ी युद्ध हुआ था तो उस समय भारत के समक्ष कच्चे तेल को लेकर एक बहुत बड़ा संकट आ गया था।
  • उस समय भारत के पास बस केवल इतना ही तेल शेष था जिससे मात्र कुछ दिन ही दैनिक कार्य किये जा सकते थे। उस समय तो किसी प्रकार से संकट टल गया था परंतु आज भी इस प्रकार के संकट की आशंका बनी हुई है।
  • भारत की ऊर्जा मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन (fossil fuels) पर पूर्णतया निर्भर है। ईंधन का 80 प्रतिशत आयात विशेषकर पश्चिम एशिया से किया जाता है। यदि किसी कारण से पश्चिम एशिया में युद्ध की पृष्ठभूमि बन जाए तो आपूर्ति का संकट तो आएगा ही, देश का चालू खाता घाटा (Current Account Deficit) भी बड़े पैमाने पर बढ़ सकता है।
  • इन तथ्यों को ध्यान में रखकर तत्कालीन सरकार ने वर्ष 1998 में सामरिक पेट्रोलियम भंडारण की नीति को अनुमति दी थी।
  • हाल ही में ‘वेस्ट टेक्सस इंटरमीडिएट’ (West Texas Intermediate- WTI) क्रूड ऑयल की कीमत नकारात्मक रही जो इस ओर संकेत करता है कि देशों के पास तेल को भंडारित करने के लिये पर्याप्त भंडारण क्षमता की कमी है।

वेस्ट टेक्सस इंटरमिडिएट

  • वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) 'ब्रेंट' और 'दुबई क्रूड' के साथ तेल मूल्य निर्धारण के तीन मुख्य बेंचमार्क में से एक है।
  • अमेरिका में कच्चे तेल का उत्पादन मुख्यतः टेक्सस (Texas), नार्थ डेकोटा (North Dakota) और लुसियाना (Louisiana) राज्य में होता है।
  • ईंधन के रूप में खनिज तेल के प्रयोग के अतिरिक्त वायदा बाज़ार (Future Market) में एक कमोडिटी (Commodity) के रूप में इसका व्यापार भी किया जाता है।
  • WTI के फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट (Future Contract) का व्यापार ‘न्यूयार्क मर्चेंटाइल एक्सचेंज’ (New York Mercantile Exchange- NYMEX) में किया जाता है और WTI की कीमत को अमेरिकी तेल बाज़ार में बेंचमार्क (Benchmark) के रूप में देखा जाता है।

सामरिक पेट्रोलियम भंडार से तात्पर्य?

  • पहली बार तेल के संकट के बाद सामरिक भंडार की इस अवधारणा को वर्ष 1973 में संयुक्त राज्य अमेरिका में लाया गया था।
  • पृथ्वी की सतह के नीचे गहरी गुफाओं में भंडारण की अवधारणा को पारंपरिक रूप से एक ऊर्जा सुरक्षा उपाय के रूप में लाया गया है जो भविष्य में हमले या आक्रमण के कारण तेल की आपूर्ति में कमी आने पर सहायक हो सकती हैं।
  • यह भूमिगत भंडारण, पेट्रोलियम उत्पादों के भंडारण की अब तक की सबसे अच्छी आर्थिक विधि है, क्योंकि भूमिगत सुविधा भूमि के बड़े स्तर की आवश्यकता को नियंत्रित करती है, कम वाष्पीकरण सुनिश्चित करती है, क्योंकि गुफाओं का निर्माण समुद्र तल से बहुत नीचे किया जाता है, इसलिये कच्चे तेल का निर्वहन जहाज़ो से करना आसान होता है।

पेट्रोलियम निष्कर्षण व शोधन

  • पेट्रोलियम धरातल के नीचे स्थित अवसादी परतों के बीच पाया जाने वाला संतृप्त हाइड्रोकार्बन का काले-भूरे रंग का तैलीय द्रव है, जिसका प्रयोग वर्तमान में ईंधन के रूप में किया जाता है। पेट्रोलियम को ‘जीवाश्म ईंधन’ भी कहते हैं, क्योंकि इसका निर्माण धरातल के नीचे उच्च ताप व दाब की परिस्थितियों में मृत जीव-जंतुओं व वनस्पतियों के जीवाश्मों के रासायनिक रूपान्तरण से होता है।
  • विश्व में सबसे पहले पेट्रोलियम कुएँ की खुदाई संयुक्त राज्य अमेरिका के पेंसिलवेनिया राज्य में स्थित ‘टाइटसविले’ स्थान पर की गई थी। ‘ड्रिलिंग’ से प्राप्त होने वाले पेट्रोलियम को 'कच्चा तेल’ (Crude Oil) कहा जाता है।
  • कच्चे तेल को रिफाइनरियों में प्रसंस्कृत किया जाता है। पेट्रोलियम से ही पेट्रोल, मिट्टी के तेल, विभिन्न हाइड्रोकार्बन, ईंथर, प्रकृतिक गैस आदि को प्राप्त किया जाता है।
  • पेट्रोलियम से इसके अवयवों को अलग करने की विधि ‘प्रभावी आसवन विधि’ (Fractional Distillation Method) कहा जाता है। इसे ‘पेट्रोलियम शोधन’ (Petroleum Refining) कहा जाता है।

भारत के सामरिक पेट्रोलियम भंडार

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  • भारत के सामरिक कच्चे तेल के भंडार वर्तमान में विशाखापत्तनम (आंध्र प्रदेश), मंगलौर (कर्नाटक) और पाडुर (कर्नाटक) में स्थित हैं।
  • इनके अलावा सरकार ने चंदीखोल (ओडिशा) और पादुर (कर्नाटक) में दो अतिरिक्त सुविधाएँ स्थापित करने की घोषणा की थी।

सामरिक पेट्रोलियम भंडार की क्षमता

  • वर्तमान में भारत आपातकालीन आवश्यकताओं के लिये तेल भंडारण करता है। वर्तमान में ‘सामरिक पेट्रोलियम भंडार कार्यक्रम’ (Strategic Petroleum Reserves programme- SPRP) के तहत भारत 87 दिनों तक आवश्यकता पूर्ति की भंडारण क्षमता रखता है।
  • इसमें से लगभग 65 दिनों की आवश्यकता पूर्ति को तेल प्रसंस्करण इकाइयाँ जबकि शेष भंडार ‘भारतीय सामरिक पेट्रोलियम भंडार लिमिटेड’ (Indian Strategic Petroleum Reserves Limited- ISPRL) द्वारा बनाए गए भूमिगत भंडार के रूप में अनुरक्षित किया जाता है। भूमिगत भंडार की वर्तमान क्षमता 10 दिनों के तेल आयात के बराबर है।

पेट्रोलियम भंडारण के लाभ

  • कच्चे तेल के ऐसे भूमिगत भंडारण के कई लाभ हैं। पहला लाभ तो यह है कि किसी युद्ध या आपदा की स्थिति में देश की ऊर्जा सुरक्षा अचानक खतरे में नहीं पड़ती है।
  • वर्ष 1991 में खाड़ी युद्ध के समय इस प्रकार के सामरिक पेट्रोलियम भंडार संयुक्त राज्य अमेरिका के लिये काफी लाभदायक सिद्ध हुए थे।
  • दूसरा लाभ यह है कि कच्चे तेल की कीमतें अचानक बहुत ज्यादा होने पर इस रिज़र्व स्टॉक के इस्तेमाल से देश में तेल की कीमतें काबू में रखी जा सकती हैं।
  • इसके अलावा भूमिगत भंडारण कच्चे तेल को रखने का सबसे कम व्यय वाला तरीका है।
  • चूँकि भंडार काफी गहराई में होता है, इसलिये बड़े पैमाने पर ज़मीन के अधिग्रहण और सुरक्षा इंतजाम की जरूरत नहीं पड़ती।

भारत में तेल भंडारण से जुड़ी समस्याएँ

  • तेल भंडार में पारदर्शिता के अभाव के कारण तेल को समय पर उपयोग करने में अनेक अड़चनें हैं जिससे SPR तेल की कीमत सामान्यत: बहुत अधिक रहती है। वास्तव में निजी रिफाइनरियों के पास पर्याप्त ‘सामरिक पेट्रोल भंडार’ होते हैं परंतु इनके द्वारा यह भंडारण किस रूप में (क्रूड या रिफाइंड) तथा कहाँ किया जाता है, इस संबंध में पूरी तरह पारदर्शिता का अभाव रहता है।
  • दूसरा मुद्दा रिफाइनरी की धारिता से संबंधित है। भारत में SPR तेल रिफाइनरियों, केंद्र सरकार, राज्य सरकारों के नियंत्रण में है। हालाँकि स्टॉक रखने वाली अधिकांश रिफाइनरी सार्वजनिक रूप से स्वामित्व वाली कंपनियां हैं।
  • भारत तेल भंडारण के लिये ओमान जैसे देशों में सामरिक तेल भंडार स्थापित कर सकता है, हालाँकि इन स्थानों के साथ भू-राजनीतिक जोखिम भी हो सकते हैं।

समाधान के प्रयास

  • भारत के अन्य रणनीतिक भंडार (यथा विदेशी मुद्रा भंडार) जिसमें स्पष्ट प्रक्रियाओं, प्रोटोकॉल तथा आँकड़ों को जारी करने की आवश्यकता होती है, उसी SPR भंडारण के लिये भी स्पष्ट सार्वजनिक तथा संसदीय जाँच की आवश्यकता होनी चाहिये।
  • SPR संबंधी सूचना के बारे में गोपनीयता के बजाय इसे समय पर और विश्वसनीय रूप से उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिये।
  • SPR पर अलग-अलग इकाइयों का नियंत्रण होने के कारण, इन तेल भंडारों को समय पर उपयोग करने में बाधा उत्पन्न होती है इससे तेल की गतिशीलता प्रक्रिया काफी अस्पष्टता तथा जटिल बन जाती है। अत: SPR के संबंध में विभिन्न इकाइयों की भूमिका और प्रक्रिया में स्पष्टता होनी चाहिये।
  • आपात स्थितियों में जोखिमों को कम करने के लिये भारत को अपने SPR धारिता में विविधता लानी चाहिये। यह विविधता भौगोलिक स्थान (तेल घरेलू या विदेश में भंडारण), भंडारण स्थान (भूमिगत या अधितल) और उत्पाद के स्वरूप (क्रूड ऑयल या परिष्कृत ऑयल) पर आधारित हो सकती है।
  • स्वामित्त्व में विविधता भी एक महत्त्वपूर्ण कदम हो सकता है। यह सार्वजनिक ISPRL के माध्यम से या निजी तेल कंपनियों के माध्यम से अथवा विदेशी कंपनियों के स्वामित्त्व में हो सकता है।

आगे की राह

  • भारत को वर्तमान समय में वैश्विक स्तर पर तेल की कम कीमतों का लाभ उठाना चाहिये तथा भारत की ऊर्जा सुरक्षा की दिशा में तेल खरीदने और अपनी ‘सामरिक पेट्रोलियम भंडार’ (Strategic Petroleum Reserves- SPR) को भरने के सुअवसर के रूप में देखना चाहिये।
  • भारतीय सामरिक पेट्रोलियम भंडारण की प्रक्रियाओं, प्रोटोकॉल और तथ्यों को अधिक सार्वजनिक किये जाने और उनकी संसदीय जाँच करने की आवश्यकता होती है।

प्रश्न- सामरिक पेट्रोलियम भंडार से आप क्या समझते हैं। सामरिक पेट्रोलियम भंडार से संबंधित चुनौतियों का उल्लेख करते हुए इसके महत्त्व को रेखांकित कीजिये।