भारत में जनजातियों के अधिकार | 23 Jul 2022

यह एडिटोरियल 22/07/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Madam President: On Droupadi Murmu’s election as India’s 15th President” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के 15वें राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मू के निर्वाचन और भारत में जनजातियों के अधिकारों के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

भारत के 15वें राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मू का निर्वाचन सांकेतिक रूप से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। वे इस पद को धारण करने वाली आदिवासी/जनजाति पृष्ठभूमि की पहली व्यक्ति होंगी।

  • सुश्री मुर्मू का चुनाव जनजाति सशक्तीकरण की यात्रा में मील का पत्थर है। औपनिवेशिक भारत में जनजाति वर्ग के दो व्यक्तियों को पहली बार विधायी निकायों के लिये चुने जाने के 101 वर्ष बाद देश के सर्वोच्च पद पर इस वर्ग के व्यक्ति का निर्वाचन हुआ है।
  • हालाँकि भारतीय गणराज्य के संस्थापकगण जनजातीय लोगों की गैर-लाभपूर्ण स्थिति से पूर्णतः परिचित थे और उन्होंने संविधान की पाँचवीं एवं छठी अनुसूचियों जैसे विशेष प्रावधान किये, लेकिन उन्हें प्राप्त सुरक्षा उपायों के व्यवस्थित क्षरण, पुलिस द्वारा उनके उत्पीड़न एवं दमन और राज्य द्वारा जनजातीय स्वायत्तता के प्रति एक सामान्य असहिष्णुता के संबंध में जनजातीय कार्यकर्ताओं के बीच चिंता की वृद्धि हो रही है।

अनुसूचित जनजाति के रूप में किसी समुदाय के चिह्नित होने के लिये कौन-सी आवश्यक विशेषताएँ होनी चाहिये?

  • लोकुर समिति (वर्ष 1965) के अनुसार, उनमें पाँच आवश्यक विशेषताएँ होनी चाहिये:
    • आदिम लक्षणों के संकेत
    • विशिष्ट संस्कृति
    • बड़े पैमाने पर समुदाय के साथ संपर्क करने में संकोच
    • भौगोलिक अलगाव
    • पिछड़ापन

अनुसूचित जनजातियों के लिये भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त आधारभूत सुरक्षा उपाय कौन से हैं?

  • भारत का संविधान ‘जनजाति’ (Tribe) शब्द को परिभाषित करने का प्रयास नहीं करता है, यद्यपि ‘अनुसूचित जनजाति’ (Scheduled Tribe) शब्द को संविधान में अनुच्छेद 342 के माध्यम से शामिल किया गया था।
    • यह निर्धारित करता है कि ‘‘राष्ट्रपति, लोक अधिसूचना द्वारा, उन जनजातियों या जनजाति समुदायों अथवा जनजातियों या जनजाति समुदायों के भागों या उनमें के समूहों को विनिर्दिष्ट कर सकेगा, जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिये अनुसूचित जनजातियाँ समझा जाएगा।’’
    • संविधान की पाँचवीं अनुसूची अनुसूचित क्षेत्रों वाले प्रत्येक राज्य में एक जनजाति सलाहकार परिषद (Tribes’ Advisory Council) की स्थापना का प्रावधान करती है।
  • शैक्षिक और सांस्कृतिक सुरक्षा उपाय:
    • अनुच्छेद 15(4): अन्य पिछड़े वर्गों (इसमें अनुसूचित जनजाति शामिल हैं) की उन्नति के लिये विशेष प्रावधान 
    • अनुच्छेद 29: अल्पसंख्यकों (इसमें अनुसूचित जनजाति शामिल हैं) के हितों का संरक्षण 
    • अनुच्छेद 46: राज्य, जनता के दुर्बल वर्गों के, विशिष्टतया, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शैक्षिक और आर्थिक हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि करेगा और सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से उनकी रक्षा करेगा। 
    • अनुच्छेद 350: विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति के संरक्षण का अधिकार
  • राजनीतिक सुरक्षा उपाय: 
    • अनुच्छेद 330: अनुसूचित जनजातियों के लिये लोकसभा में सीटों का आरक्षण 
    • अनुच्छेद 337: राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जनजातियों के लिये सीटों का आरक्षण
    • अनुच्छेद 243: पंचायतों में अनुसूचित जनजातियों के लिये सीटों का आरक्षण।
  • प्रशासनिक सुरक्षा उपाय:
    • अनुच्छेद 275: यह अनुसूचित जनजातियों के कल्याण को बढ़ावा देने और उन्हें एक बेहतर प्रशासन प्रदान करने के लिये केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार को विशेष निधि प्रदान करने का प्रावधान करता है।

अनुसूचित जनजातियों के लिये हाल में सरकार द्वारा की गई पहलें:

भारत में जनजातियों के समक्ष विद्यमान समस्याएँ:

  • प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण खोना: जैसे-जैसे भारत का औद्योगीकरण हुआ और जनजातीय आबादी वाले क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधनों की खोज की गई, जनजातीय अधिकारों को क्षीण किया गया और प्राकृतिक संसाधनों पर राज्य के नियंत्रण ने जनजातीय नियंत्रण को प्रतिस्थापित कर दिया।
    • संरक्षित वनों और राष्ट्रीय वनों की अवधारणा के प्रचलन में आने के साथ, जनजातीय लोगों ने स्वयं को अपने सांस्कृतिक जड़ों से उखड़ा हुआ अनुभव किया और उनके पास आजीविका का कोई सुरक्षित साधन नहीं रहा।
  • शिक्षा की कमी: जनजातीय क्षेत्रों में अधिकांश विद्यालयों में आधारभूत संरचना की कमी है और वहाँ न्यूनतम शिक्षण सामग्री और यहाँ तक कि न्यूनतम स्वच्छता प्रावधान भी उपलब्ध नहीं हैं।
    • शिक्षा से तत्काल आर्थिक लाभ न होने के कारण जनजातीय माता-पिता अपने बच्चों को लाभकारी रोज़गार में लगाना अधिक पसंद करते हैं।
    • अधिकांश जनजातीय शिक्षा कार्यक्रम आधिकारिक/क्षेत्रीय भाषाओं में तैयार किये गए हैं, जो आदिवासी छात्रों के लिये अपरिचित और दुर्बोध हैं।
  • विस्थापन और पुनर्वास: बड़े इस्पात संयंत्रों, बिजली परियोजनाओं और बड़े बांधों जैसे प्रमुख क्षेत्रों की विकास प्रक्रिया के लिये सरकार द्वारा जनजातीय भूमि के अधिग्रहण से जनजातीय आबादी का बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ है। 
    • छोटानागपुर क्षेत्र, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाकों को सबसे अधिक हानि हुई है। 
    • इन जनजातीय लोगों का शहरी क्षेत्रों की ओर प्रवास उनके लिये मनोवैज्ञानिक समस्याओं का कारण बनता है क्योंकि वे शहरी जीवन शैली और मूल्यों से अच्छी तरह से समायोजित करने में सक्षम नहीं हैं।
  • स्वास्थ्य और पोषण की समस्याएँ: आर्थिक पिछड़ेपन और असुरक्षित आजीविका के कारण, जनजातीय लोगों को मलेरिया, हैजा, डायरिया और पीलिया जैसे रोगों के प्रसार संबंधी स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
    • वे लौह तत्व की कमी एवं एनीमिया, उच्च शिशु मृत्यु दर आदि कुपोषणजनित समस्याओं के भी शिकार हैं।
  • लैंगिक मुद्दे: प्राकृतिक पर्यावरण का ह्रास, विशेष रूप से वनों के विनाश और तेज़ी से सिकुड़ते संसाधन आधार के कारण महिलाओं की स्थिति पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ा है।
    • खनन, उद्योग और व्यावसायीकरण के लिये जनजातीय क्षेत्रों के खुलने से जनजाति समूह के पुरुष और महिलाएँ बाज़ार अर्थव्यवस्था के क्रूर संचालन के अधीन आ गए हैं जहाँ उपभोक्तावाद और महिलाओं के वस्तुकरण (commoditization of women) की वृद्धि हो रही है।
  • अस्मिता का क्षरण: आदिवासियों की पारंपरिक संस्थाएँ और कानून आधुनिक संस्थानों के साथ संघर्ष की स्थिति में आ रहे हैं जो आदिवासियों में अपनी अस्मिता (Identity) को बनाए रखने के बारे में आशंका को जन्म दे रहा है।
    • जनजातीय बोलियों और भाषाओं का विलुप्त होना चिंता का एक अन्य कारण है क्योंकि यह आदिवासी अस्मिता के क्षरण का संकेत देता है।

भारत में जनजातियों को सशक्त बनाने के लिये क्या किया जाना चाहिये?

  • स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार: दूरस्थ जनजातीय आबादी तक पहुँच में सुधार के लिये मोबाइल चिकित्सा शिविर एक प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं।
    • गर्भवती जनजातीय महिलाओं के लिये स्वास्थ्य सुविधाओं तक प्रसूति देखभाल हेतु पहुँच के लिये आपातकालीन परिवहन का प्रावधान उनकी प्रमुख आवश्यकताओं में से एक है।
    • जनजातीय समुदायों के स्वास्थ्य कार्यकर्ता स्वास्थ्य सुविधाओं और जनजातीय समुदायों के बीच रोगियों के मार्गदर्शन, चिकित्सकों के नुस्खे समझाने, कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाने में रोगियों की मदद करने और उन्हें निवारक एवं प्रोत्साहक स्वास्थ्य व्यवहारों के बारे में परामर्श देने के विषय में एक कड़ी बन सकते हैं।
  • खाद्य और पोषण सुविधा में सुधार: आसान मानदंडों के साथ बड़े पैमाने पर लघु आंगनवाड़ियों (Mini-Anganwadis) का गठन और जनजातीय क्षेत्रों में ग्राम अनाज बैंकों (Village Grain Banks) का विस्तार कुछ ऐसी रणनीतियाँ हैं जिन्हें जनजातीय क्षेत्रों में अब तक ‘पहुँच से बाहर’ के लोगों तक पहुँचने के लिये अपनाया जा सकता है।
  • रोज़गार और आय सृजन: जनजातीय क्षेत्रों के लिये रोज़गार और आय सृजन के अवसर सुनिश्चित किये जाने चाहिये। उन्हें भुगतेय रोज़गार या स्वरोज़गार के अवसर प्रदान कर उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार लाना और इस प्रकार उन्हें गरीबी और ऋणग्रस्तता की बेड़ियों से मुक्त किया जाना आवश्यक कदम होगा।
    • स्वरोज़गार उपक्रमों के लिये माइक्रो-क्रेडिट का विस्तार करने और कार्य अवसरों की अनुपलब्धता पर मनरेगा जैसी अन्य योजनाओं का कार्यान्वयन करने के भी प्रयास किये जाने चाहिये।
    • लघु वनोपजों (Minor forest produce) के संग्रहण और उनके विपणन को भी प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
  • जल संसाधनों का प्रबंधन: जनजातीय क्षेत्रों में राष्ट्रीय जल नीति का अधिक प्रभावी कार्यान्वयन किये जाने की आवश्यकता है ताकि सिंचाई सुविधाओं के विस्तार और पेयजल के प्रावधान (वाटरशेड प्रबंधन, वर्षा जल संचयन और जल बचत पद्धतियों पर विशेष बल देते हुए) को कवर किया जा सके।
    • प्रभावी जल संसाधन प्रबंधन और जल संसाधनों को प्रदूषण से बचाने के लिये ग्रामीण और जनजातीय आबादी के बीच जन शिक्षा और जन जागरूकता का प्रसार भी आवश्यक है।
  • जनजातीय महिलाओं का सशक्तीकरण: जनजातीय महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिये प्रभावी उपाय किये जाने चाहिये। इसके लिये निम्नलिखित कदम उठाये जा सकते हैं:
    • संयुक्त वन प्रबंधन और पंचायती राज संस्थाओं में उनकी नेतृत्वकारी भूमिका को बढ़ावा देना; 
    • महिला संगठनों के माध्यम से सामाजिक जागरूकता और पीड़ित महिलाओं के पुनर्वास के लिये व्यापक अभियान के साथ-साथ जादू-टोना की संदिग्ध महिलाओं को पीड़ित करने के अभ्यास पर रोक के लिये कानूनी एवं प्रशासनिक उपाय करना।
  • जनजातीय आबादी का समावेशन:
    • औषधीय पौधों की खेती: जेनेरिक दवाओं के निर्यात में भारत विश्व में शीर्ष स्थान रखता है। जनजाति समूह के लोगों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये कि वे स्व-उपभोग के साथ-साथ बिक्री के लिये जंगल से औषधीय पौधों की पहचान एवं संग्रहण के साथ ही उपयुक्त पादप प्रजातियों की खेती के लिये सरकार के साथ सहयोग करें।
      • भारत सरकार ने इस व्यापार का लाभ उठाने का निर्णय लिया है और इसके लिये एक राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड (National Medicinal Plant Board) की स्थापना की है।
    • अवसंरचना विकास: सरकार जनजातीय समूहों के साथ उनके स्थानीय क्षेत्रों में आधारभूत संरचनाओं के विकास के लिये सहयोग कर सकती है।
      • मेघालय को इसके ‘लिविंग रूट ब्रिज़’ (Living root bridge) के लिये जाना जाता है। ये पुल पारंपरिक रूप से प्रशिक्षित खासी और जयंतिया जनजाति के लोगों द्वारा बनाए जाते हैं, जिन्होंने मेघालय के घने वन से प्रवाहित जलधाराओं के उभरे हुए किनारों पर इन पुलों का निर्माण करने की कला में महारत हासिल कर रखी है।
    • सामाजिक समावेशन: जनजातीय लोगों द्वारा अनुभव किया जाने वाला सामाजिक बहिर्वेशन मुख्य रूप से सामाजिक और संस्थागत स्तर पर भेदभाव के कारण होता है। इसने उनके अलगाव, शर्म और अपमान की स्थिति उत्पन्न की है और परिणामतः जनजातियों के बीच आत्म-बहिर्वेशन को अवसर दिया है।
      • जनजातीय लोगों की क्षमता और गरिमा की पहचान करने के लिये देश की गैर-आदिवासी आबादी के बीच जागरूकता की अत्यंत आवश्यकता है ताकि देश की एकता एवं अखंडता और बंधुत्व की भावना को सुनिश्चित किया जा सके।

अभ्यास प्रश्न: भारत में जनजातीय आबादी की स्थिति पर प्रकाश डालें। उनके सशक्तीकरण के लिये कुछ समाधान प्रस्तुत करें।