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राज्यसभा की भूमिका | 21 May 2020 | भारतीय राजनीति

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में राज्यसभा की भूमिका व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ 

यह सर्वविदित है कि लोकतांत्रिक सरकारें शक्ति संतुलन के सिद्धांत पर आधारित हैं, लिहाजा लोकतांत्रिक संसदीय व्यवस्था में दो सदनों का होना अहम है एक सदन लोकप्रिय इच्छा का प्रतीक (लोकसभा) होता है वहीं दूसरा सदन किसी तरह की भीड़तंत्र वाली मानसिकता को रोकने (राज्यसभा) का काम करता है। राज्यसभा या राज्यपरिषद (Council of States) भारतीय संसद का दूसरा सदन है, जिसकी स्थापना मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार, 1919 के आधार पर की गई

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 79 के अनुसार, संघ के लिये एक संसद होगी, जो राष्ट्रपति और दो सदनों से मिलकर बनेगी। भारतीय संविधान, लोकसभा और राज्यसभा को कुछ अपवादों को छोड़कर कानून निर्माण की शक्तियों में समान अधिकार देता है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद-80, राज्यसभा के गठन का प्रावधान करता है। राज्यसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 हो सकती है, परंतु वर्तमान में यह संख्या 245 है। इनमें से 12 सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा से संबंधित क्षेत्रों से मनोनीत किया जाता है। यह एक स्थायी सदन है अर्थात् राज्यसभा का विघटन कभी नहीं होता है। राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष होता है। जबकि राज्यसभा के एक-तिहाई सदस्यों का चुनाव हर दूसरे वर्ष में किया जाता है।

इस आलेख में संविधान सभा में राज्यसभा को लेकर पक्ष-विपक्ष की बहस, राज्यसभा की भूमिका तथा उससे संबंधित मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की जाएगी।

संविधान सभा में राज्यसभा के पक्ष में तर्क

राज्यसभा के विपक्ष में तर्क

राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन 

एकल संक्रमणीय मत 

राज्यसभा के सदस्यों की अर्हता

राज्यसभा की शक्तियाँ एवं कार्य

राज्यसभा से संबंधित मुद्दे

आगे की राह

निष्कर्ष

भारतीय राजनीति में उतार-चढ़ाव के बावजूद राज्यसभा राजनीतिक, सामाजिक मूल्यों तथा सांस्कृतिक विविधता का पोषण करने वाली एक संस्था बनी हुई है। इसके अलावा लोक सभा के साथ यह संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य जैसे मूल्यों का ध्वजवाहक भी है। इस प्रकार राज्यसभा को लोकतंत्र की 'विघटनकारी' शाखा के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये बल्कि भारतीय लोकतंत्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका को बनाए रखने के लिये राज्यसभा को सक्षम बनाने के प्रयास किये जाने चाहिये। 

प्रश्न- भारतीय लोकतंत्र की संघीय व्यवस्था में राज्यसभा की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।