भारतीय कृषि | 10 Jun 2025

यह एडिटोरियल 03/06/2025 को द फाइनेंशियल एक्सप्रेस में प्रकाशित “Irrigation and cropping must be in sync” पर आधारित है। यह लेख बुनियादी ढाँचे पर आधारित कृषि नीतियों और किसानों के वास्तविक समय, आवश्यकता-आधारित निर्णयों के बीच असमानता को सामने लाता है, एक समुत्थानशील और समावेशी कृषि क्षेत्र बनाने के लिये विकेंद्रीकृत, उत्तरदायी सुधारों की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय कृषि क्षेत्र, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान), प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMBVY), मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY), ई-राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (E-NAM), राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन, डिजिटल कृषि मिशन, कृषि में राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (NEGP-A)

मेन्स के लिये:

भारत में कृषि सुधारों को आगे बढ़ाने वाले प्रमुख कारक, भारत में कृषि उत्पादकता और स्थिरता में बाधा डालने वाले प्रमुख मुद्दे।

भारत की कृषि नीति  लंबे समय से इस धारणा पर कार्य करती रही है कि बुनियादी ढाँचे-आधारित विकास—विशेष रूप से बड़े और लंबे समय में पूरे होने वाले सिंचाई परियोजनाओं के जरिये, कृषि पद्धतियों में बदलाव लाया जा सकता है। हालाँकि, हाल के ज़मीनी स्तर के साक्ष्य दिखाते हैं कि किसान फसल चक्र, सिंचाई और आदानों के उपयोग जैसे निर्णय तात्कालिक जरूरतों, जलवायु परिवर्तनशीलता और स्थानीय संसाधनों के आधार पर लेते हैं। इससे टॉप-टू-डाउन योजना और जमीनी स्तर के अनुकूलनशील निर्णय-निर्माण के बीच एक अंतर सामने आता है। एक अधिक समुत्थानशील और समावेशी कृषि प्रणाली बनाने के लिये, भारत को रीयल-टाइम सहायता, विकेंद्रीकृत योजना और ऐसे समुत्थानशील नीतिगत उपायों पर ध्यान देना होगा जो कृषि चक्र और जोखिमों के साथ तालमेल बिठा सकें।

भारत में कृषि सुधारों को आगे बढ़ाने वाले प्रमुख कारक क्या हैं? 

  • तकनीकी उन्नति और डिजिटल कृषि: AI, GIS, ड्रोन और रिमोट सेंसिंग जैसी डिजिटल कृषि प्रौद्योगिकियों में उन्नति उत्पादकता, संसाधन प्रबंधन और बाज़ार पहुँच में सुधार करके इस क्षेत्र में क्रांति ला रही है। 
    • ये प्रौद्योगिकियाँ परिशुद्ध खेती को संभव बनाती हैं, जिससे लागत कम होती है और उत्पादन की गुणवत्ता बढ़ती है। 
    • कृषि में राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (NEGP-A) का शुभारंभ और डिजिटल कृषि मिशन जैसी पहल तकनीक अपनाने में सहायता कर रही हैं। 
      • इसके अतिरिक्त, कृषि प्रौद्योगिकी निवेश में वृद्धि, जिसके वर्ष 2025 तक 30-35 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है, बढ़ती हुई प्रौद्योगिकी-संचालित कृषि पारिस्थितिकी तंत्र को दर्शाती है।
  • जलवायु समुत्थानशील और जल प्रबंधन: जलवायु परिवर्तन के प्रति भारत की बढ़ती संवेदनशीलता के मद्देनजर जलवायु-अनुकूल फसलों और जल-कुशल सिंचाई प्रणालियों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। 
    • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अंतर्गत प्रति बूंद अधिक फसल पहल, जो 95 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र को कवर करती है, सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों को बढ़ावा देती है तथा जल उपयोग दक्षता को बढ़ाती है।
    • वर्ष 2015-2021 के बीच सिंचाई तीव्रता 144.2% से बढ़कर 154.5% हो गई है, यह फोकस सतत् विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
      • वित्त वर्ष 2025 में इस पहल के तहत राज्यों को 21,968 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं, जिससे महत्त्वपूर्ण जल संरक्षण सुनिश्चित हुआ है। 
  • उच्च मूल्य वाली फसलों और संबद्ध क्षेत्रों में विविधीकरण: बागवानी, पशुधन और मत्स्य पालन की ओर विविधीकरण ने कृषि विकास को पर्याप्त गति प्रदान की है, क्योंकि इन उत्पादों की मांग घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ी है। 
    • वित्त वर्ष 2013 से वित्त वर्ष 2023 तक 13.67% की सीएजीआर के साथ मत्स्य पालन ऐसे विविधीकरण की सफलता को दर्शाता है। 
    • प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना (6,000 करोड़ रुपये का लक्ष्य) जैसी योजनाओं के माध्यम से संबद्ध क्षेत्रों में सरकार के निवेश ने इन क्षेत्रों के किसानों को सशक्त बनाया है। 
      • वित्त वर्ष 2024 में भारत का समुद्री खाद्य निर्यात 29.7% बढ़कर 60,523 करोड़ रुपए हो गया, जो इस क्षेत्र की बढ़ती वैश्विक उपस्थिति को दर्शाता है। 
  • ऋण और वित्तीय सहायता तक बेहतर पहुँच: किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) जैसी योजनाओं के कारण संस्थागत ऋण तक पहुँच में काफी सुधार हुआ है, जो किसानों को इनपुट और परिचालन के लिये समय पर वित्तीय सहायता प्राप्त करने में सहायता करता है। 
    • वित्त वर्ष 22 में कृषि क्षेत्र को संस्थागत ऋण के रूप में  18.6 लाख करोड़ रुपए मंजूर किए गए, जिससे किसानों की वित्तीय क्षमता में वृद्धि हुई।
    • पीएम-किसान योजना ने भी किसानों को प्रत्यक्ष रूप से 3.7 लाख करोड़ रुपए वितरित किये हैं, जिससे वित्तीय सहायता संरचना मज़बूत हुई है। 
      • ऐसे उपाय वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देते हैं, जिससे किसानों को उत्पादकता बढ़ाने के लिये बेहतर प्रौद्योगिकियों और पद्धतियों को अपनाने में मदद मिलती है।
  • बुनियादी ढाँचे का विकास और भंडारण क्षमता: कृषि बुनियादी ढाँचे का विकास, विशेष रूप से भंडारण और परिवहन में, फसल-उपरांत नुकसान को कम करने और किसानों के लिये बेहतर बाज़ार पहुँच सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • कृषि अवसंरचना कोष (AIF) ने अवसंरचना परियोजनाओं को समर्थन देने के लिये ₹10,000 करोड़ के ऋण को मंजूरी दी है।
    • वित्त वर्ष 2025 में भारत का कुल खाद्यान्न उत्पादन 347.44 मिलियन टन तक पहुँचने की उम्मीद है, जो बुनियादी ढाँचे में निवेश के सकारात्मक प्रभाव को दर्शाता है।
  • बाज़ार सुधार और डिजिटल प्लेटफॉर्म: ई-राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (ई-नाम) की स्थापना किसानों के लिये मूल्य निर्धारण, पारदर्शिता और बाज़ार तक पहुँच में सुधार लाने में महत्त्वपूर्ण रही है। 
    • 1.74 करोड़ किसानों और 2.39 लाख व्यापारियों की भागीदारी के साथ, ई-नाम ने ग्रामीण उत्पादकों और शहरी बाज़ारों के बीच के अंतर को कम करने में मदद की है। 
    • एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड सुनिश्चित करने के सरकार के कदम से खाद्यान्न वितरण भी सुव्यवस्थित हुआ है और एकीकृत कृषि बाज़ार प्रणाली बनी है। 
      • ये सुधार बिचौलियों पर निर्भरता को कम करते हैं, किसानों के लिये उचित मूल्य सुनिश्चित करते हैं, जो उनकी आय में सुधार के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • सतत् और जैविक खेती: जैविक और सतत् कृषि पद्धतियों की बढ़ती मांग के साथ, सरकार ने किसानों को जैविक खेती की ओर रुख करने के लिये प्रोत्साहन प्रदान किया है। 
    • भारत का जैविक खाद्य बाज़ार वित्त वर्ष 2022-27 के बीच 25.25% की CAGR से बढ़ने की उम्मीद है।
    • राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA)  जैसी पहल अधिक सतत् कृषि पद्धतियों पर ज़ोर देती हैं।
    • इसके अतिरिक्त, भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान के नेतृत्व में मिलेट क्रांति, भारत को श्री अन्न उत्पादन में वैश्विक नेता के रूप में स्थापित कर रही है।

भारत में कृषि उत्पादकता और स्थिरता में बाधा डालने वाले प्रमुख मुद्दे क्या हैं?  

  • अपर्याप्त जल प्रबंधन और सिंचाई अवसंरचना: भारत का कृषि क्षेत्र अपर्याप्त जल प्रबंधन और असंगत सिंचाई अवसंरचना के कारण गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है। 
    • प्रति बूंद अधिक फसल पहल जैसे सरकारी प्रयासों के बावजूद, जल की कमी एक सतत् समस्या बनी हुई है, विशेष रूप से वर्षा पर निर्भर क्षेत्रों में। 
    • सिंचाई कवरेज सकल फसल क्षेत्र के 49.3% से बढ़कर 55% हो गया है, फिर भी झारखंड जैसे राज्यों में महत्त्वपूर्ण अंतर बना हुआ है। 
    • जल संसाधनों का यह असमान वितरण कृषि उत्पादकता को प्रभावित (विशेषकर सूखाग्रस्त क्षेत्रों में) करता है।
  • जलवायु परिवर्तन और मौसम संबंधी अनिश्चितता: जलवायु परिवर्तन कृषि उत्पादकता को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर रहा है, अनियमित वर्षा पैटर्न और बढ़ते तापमान से फसल की उत्पादकता को खतरा उत्पन्न हो रहा है। 
    • किसानों को अप्रत्याशित मौसम की दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ता है, जिससे पारंपरिक कृषि पद्धतियाँ कम विश्वसनीय हो जाती हैं। 
    • वर्तमान में, केवल चरम मौसम की घटनाओं के कारण होने वाली वार्षिक औसत फसल हानि भारत के सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 0.25 प्रतिशत के बराबर है। 
    • इसका असर चावल जैसी फसलों पर भी पड़ सकता है। उदाहरण के लिये भारत में तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि और वर्षा में 2 मिमी की कमी से चावल की उत्पादकता में 3 से 15% की कमी आ सकती है।
  • छोटी भूमि जोत और खंडित कृषि: भारत में छोटी भूमि जोतों का प्रभुत्व अकुशल कृषि पद्धतियों और सीमित पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं को जन्म देता है।
    • भारत में 96% भूमि जोत सीमांत या छोटी होने के कारण किसानों को उन्नत प्रौद्योगिकी और मशीनीकरण में निवेश करने में कठिनाई होती है। 
    • जैसे-जैसे भूमि का आकार घटता है, उत्पादन की प्रति इकाई लागत बढ़ती है, जिससे उत्पादकता कम होती जाती है। 
    • उदाहरण के लिये वर्ष 2047 तक औसत कृषि आकार घटकर 0.6 हेक्टेयर रह जाने की उम्मीद है, जिससे आधुनिक कृषि तकनीकों को लागू करना चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।
  • आधुनिक प्रौद्योगिकी और नवाचार तक पहुँच का अभाव: उन्नत कृषि प्रौद्योगिकियों की उपलब्धता के बावजूद, उनके दोहन की गति मंद है, विशेष रूप से छोटे किसानों के बीच। 
    • डिजिटल प्लेटफॉर्म, ड्रोन और AI-संचालित कृषि तकनीकों तक पहुँच में अंतर उत्पादकता में सुधार में बाधा डालता है। 
    • सरकार के डिजिटल कृषि मिशन ने कई तकनीक आधारित योजनाएँ शुरू की हैं, लेकिन 30% किसान अभी भी ऐसी तकनीकों का उपयोग नहीं कर रहे हैं। 
      • तकनीक अपनाने की धीमी गति, विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में, उत्पादन बढ़ाने और स्थिरता प्राप्त करने के लिये भारत की कृषि क्षमता को सीमित करती है।
  • अकुशल कृषि नीतियाँ और बाज़ार विनियमन: यद्यपि कृषि उत्पादकता को बढ़ावा देने के लिये कई नीतियाँ शुरू की गई हैं, लेकिन उनके कार्यान्वयन में अक्सर सामंजस्य का अभाव रहता है और वे किसानों की स्थानीय आवश्यकताओं को पूरा नहीं करती हैं। 
    • उदाहरण के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रणाली, हालाँकि किसानों की आय की रक्षा करने के लिये बनाई गई थी, लेकिन सभी फसलों को इसमें शामिल नहीं किये जाने तथा इसके खराब क्रियान्वयन के कारण इसकी आलोचना की गई है। 
    • ई-नाम मंच, जिसका उद्देश्य बेहतर मूल्य प्राप्ति सुनिश्चित करना है, अभी तक केवल 1.74 करोड़ किसानों को ही इससे जोड़ा जा सका है, जिससे कई किसान औपचारिक बाज़ार प्रणाली से बाहर रह गए हैं। 
      • यह खंडित नीति दृष्टिकोण कृषि बाज़ारों के सुचारू संचालन में बाधा डालता है तथा उन्हें अकुशल और अपारदर्शी बनाता है।
  • मृदा क्षरण और सीमित सतत् प्रथाएँ: रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग और जैविक प्रथाओं पर अपर्याप्त ध्यान देने के कारण भारत में मृदा की गुणवत्ता में कमी आ रही है। 
    • 30% से अधिक भारतीय मृदा क्षरित हो जाने के कारण कृषि स्थायित्व खतरे में है, जिसके परिणामस्वरूप फसल की पैदावार में गिरावट आ रही है। 
    • राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (NMSA) जैसी योजनाओं के बावजूद, वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 5% से भी कम भारतीय किसान सतत् कृषि पद्धतियों को अपना पाए हैं। 
      • रासायनिक निविष्टियों पर निर्भरता के कारण मृदा क्षरण हो रहा है, जिसके लिये दीर्घावधि मृदा स्वास्थ्य बहाली प्रक्रियाओं में गहन निवेश की आवश्यकता है, साथ ही पर्याप्त धन उपलब्ध नहीं है।
  • अपर्याप्त भंडारण और कटाई के बाद का बुनियादी ढाँचा: भारत में कटाई के बाद होने वाली हानि खराब भंडारण और अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे के कारण चिंताजनक रूप से अधिक बनी हुई है। 
    • कुशल शीत भंडारण और परिवहन नेटवर्क के अभाव में, लगभग 40 % खाद्यान्न बर्बाद हो जाता है, जो लगभग 92,000 करोड़ रुपए/वर्ष के बराबर है। 
      • यह सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 1% के बराबर है जो भारत में खाद्यान्न की बर्बादी के रूप में नष्ट हो जाता है। 
    • कृषि अवसंरचना कोष (AIF) जैसी योजनाओं के तहत अधिक भंडारण क्षमता बनाने पर सरकार के फोकस से कुछ परिणाम सामने आए हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी काफी कमी है। 
      • उदाहरण के लिये खरीफ फसल की खरीद 467.9 मिलियन टन (2004-14) से बढ़कर 787.1 मिलियन टन (2015-25) हो गई है, लेकिन अपर्याप्त भंडारण के कारण अभी भी नुकसान हो रहा है।
  • ऋण और वित्तीय सहायता तक सीमित पहुँच: हालाँकि किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) और पीएम-किसान जैसी पहलों ने कुछ वित्तीय राहत प्रदान की है, लेकिन समय पर और पर्याप्त ऋण तक पहुँच कई किसानों के लिये बाधा बनी हुई है। 
    • कई किसान अभी भी ऋण के अनौपचारिक स्रोतों पर निर्भर हैं, जो प्रायः शोषणकारी होते हैं।
      • RBI की एक हालिया रिपोर्ट में ग्रामीण भारत में अनौपचारिक वित्त के फलते-फूलते स्वरूप पर प्रकाश डाला गया है, जहाँ 31% ऋण अनौपचारिक माध्यमों से प्राप्त किये जाते हैं।

Government_Initiatives_Related_to_Agriculture

कृषि उत्पादकता और प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है? 

  • कृषि मशीनीकरण में तेजी लाना: भारत को सब्सिडीयुक्त पहुँच, कस्टम हायरिंग केंद्रों और किसान उत्पादक संगठनों के माध्यम से कृषि मशीनरी को व्यापक रूप से अपनाने को प्राथमिकता देनी चाहिये। 
    • दलवई समिति के निष्कर्ष दर्शाते हैं कि मशीनीकरण से खेती की लागत में 25% की कमी आ सकती है तथा उत्पादकता में 20% की वृद्धि हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप कृषि आय में 25-30% की पर्याप्त वृद्धि हो सकती है। 
    • यह दोहरा लाभ कृषि दक्षता और किसान समृद्धि दोनों को बढ़ाने के लिये मशीनीकरण को एक महत्त्वपूर्ण मार्ग बनाता है।
  • जलवायु-अनुकूल कृषि को बढ़ावा देना: भारत को जलवायु-अनुकूल फसल किस्मों के विकास तथा संवर्द्धन पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, जो सूखा, बाढ़ और उच्च तापमान जैसी चरम मौसम स्थितियों का सामना कर सकें। 
    • मौसम पूर्वानुमान उपकरणों और वास्तविक समय पर निर्णय लेने के लिये AI-संचालित मॉडल जैसी सतत् कृषि तकनीकों के उपयोग को प्रोत्साहित करने से किसानों को बदलते जलवायु पैटर्न के अनुरूप अपनी प्रथाओं को अनुकूलित करने में मदद मिल सकती है। 
    • वर्ष 2024 में फसलों की 109 उच्च उपज देने वाली, जलवायु अनुकूल और जैव-सशक्त किस्मों को जारी करना सही दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। 
    • एमकिसान, किसान सुविधा और पूसा कृषि जैसे मौजूदा डिजिटल प्लेटफार्मों का उपयोग किसानों को फसल की किस्मों, उपलब्ध सब्सिडी और तकनीकी मार्गदर्शन के बारे में जानकारी प्रसारित करने के लिये किया जाना चाहिये।
  • स्मार्ट प्रौद्योगिकियों के साथ सिंचाई बुनियादी ढाँचे का पुनरुद्धार: यद्यपि सिंचाई बुनियादी ढाँचे में प्रगति हुई है, भारत को स्मार्ट, अधिक सतत् सिंचाई प्रणालियों की ओर बढ़ना होगा। 
    • ड्रिप सिंचाई और सेंसर आधारित सिंचाई प्रबंधन जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों में निवेश से जल उपयोग में उल्लेखनीय कमी लाई जा सकती है तथा दक्षता में भी सुधार किया जा सकता है। 
    • इसके अतिरिक्त, कृषि-IoT-आधारित प्रणालियों को एकीकृत करने से मिट्टी की नमी के स्तर पर वास्तविक समय के आँकड़ों, स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये अति-स्थानीय मौसम पूर्वानुमान और फसल की जल आवश्यकताओं का पता चलता है, जिससे सिंचाई कार्यक्रम को अनुकूलित किया जा सकता है, अपव्यय को कम किया जा सकता है साथ ही जल संसाधनों का संरक्षण किया जा सकता है।
  • कृषि अनुसंधान एवं विकास (R & D) को मज़बूत करना: भारत को कृषि अनुसंधान में निवेश बढ़ाना चाहिये तथा आनुवंशिकी, कीट प्रबंधन और सतत् कृषि तकनीकों में नवाचारों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। 
    • डिजिटल प्लेटफार्मों और विस्तार सेवाओं के माध्यम से किसानों तक अनुसंधान निष्कर्षों की पहुँच को बढ़ाना, अत्याधुनिक अनुसंधान को व्यावहारिक ज़मीनी अनुप्रयोगों में परिवर्तित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से बाज़ार पहुँच बढ़ाना: E-NAM जैसे डिजिटल कृषि बाज़ारों की पहुँच और दक्षता का विस्तार पारदर्शी मूल्य निर्धारण, बिचौलियों को खत्म करने तथा बाज़ार पहुँच का विस्तार करके किसानों को सशक्त बना सकता है।
    • ट्रेसिबिलिटी के लिये ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी में और अधिक निवेश से उचित मूल्य निर्धारण सुनिश्चित हो सकता है तथा शोषण कम हो सकता है। 
    • इसके अतिरिक्त, प्रत्यक्ष किसान-उपभोक्ता संपर्क को सुविधाजनक बनाने के लिये मोबाइल-आधारित प्लेटफार्मों को मज़बूत किया जाना चाहिये (विशेष रूप से जल्दी खराब होने वाले सामानों के लिये), जो फसल के बाद होने वाले नुकसान को कम कर किसानों की सौदेबाजी की शक्ति को बढ़ा सकता है।
  • उच्च मूल्य वाली फसलों में विविधीकरण को प्रोत्साहित करना: पारंपरिक अनाज और दालों पर निर्भरता कम करने के लिये, भारत को फलों, सब्जियों, मसालों और जड़ी-बूटियों जैसी उच्च मूल्य वाली फसलों की खेती को प्रोत्साहित करना चाहिये, जिनकी घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उच्च मांग है। 
    • MSP व्यवस्था का पुनर्गठन करके फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना चाहिये, ताकि किसानों को गेंहूँ और चावल से आगे बढ़ने के लिये प्रोत्साहित किया जा सके तथा एकल कृषि से जुड़े जोखिम को कम करते हुए उच्च लाभ प्राप्त करने में उनकी मदद की जा सके। 
    • इस बदलाव को नीतिगत उपायों द्वारा समर्थित किया जा सकता है, जिसमें इनपुट के लिये सब्सिडी, गुणवत्ता वाले बीजों तक बेहतर पहुँच और बाज़ार संपर्क सहायता शामिल है।
  • एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन के माध्यम से मृदा स्वास्थ्य में सुधार: मृदा क्षरण भारत की कृषि उत्पादकता के लिये एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। 
    • इससे निपटने के लिये, सरकार को एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन (IANM) प्रथाओं को प्रोत्साहित करना चाहिये, जिसमें जैविक उर्वरकों, जैव-उर्वरकों और रासायनिक उर्वरको को संतुलित तरीके से संयोजित किया जाए। 
    • कम्पोस्ट, हरी खाद और फसल चक्र के उपयोग को प्रोत्साहित करने से मिट्टी की उर्वरता बहाल हो सकती है, जल धारण क्षमता में सुधार हो सकता है तथा रासायनिक इनपुट पर निर्भरता कम हो सकती है, जिससे उत्पादकता में सतत् वृद्धि सुनिश्चित हो सकती है।
  • कृषि अवसंरचना में सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना: कृषि अवसंरचना, जैसे शीत भंडारण सुविधाएँ, खाद्य प्रसंस्करण इकाइयाँ और गोदाम नेटवर्क विकसित करने में निजी क्षेत्र की भागीदारी से फसल-पश्चात मूल्य शृंखला में उल्लेखनीय सुधार हो सकता है। 
    • सरकार को सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को सुविधाजनक बनाना चाहिये, जिससे बुनियादी ढाँचे में निजी निवेश को प्रोत्साहन मिल सके तथा छोटे किसानों के लिये समान लाभ सुनिश्चित हो सके। 
      • ये साझेदारियाँ परिवहन लागत और फसल-उपरांत नुकसान को कम करने के लिये रसद सुधार पर भी ध्यान केंद्रित कर सकती हैं।
  • किसान उत्पादक संगठनों (FPO) को मज़बूत करना: किसान उत्पादक संगठन (FPO) किसानों की बाज़ार, प्रौद्योगिकी और वित्त तक पहुँच बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। 
    • FPO को मज़बूत करके, किसान आधारित अर्थव्यवस्था, बेहतर संवाद और ऋण तक बेहतर पहुँच से लाभान्वित हो सकते हैं। 
    • इसके अतिरिक्त, डिजिटल उपकरणों और क्षमता निर्माण कार्यक्रमों के साथ FPO को सशक्त बनाने से वे सामूहिक कृषि प्रथाओं को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने तथा अपनी उपज को अधिक संरचित और लाभदायक तरीके से विपणन करने में सक्षम होंगे।
  • ग्रामीण उद्यमिता और कृषि-तकनीक स्टार्टअप को सुविधाजनक बनाना: ग्रामीण उद्यमिता को प्रोत्साहित करना तथा कृषि-तकनीक स्टार्टअप को बढ़ावा देना, कृषि पद्धतियों, उत्पाद विकास और सेवा वितरण में नवाचार को बढ़ावा दे सकता है। 
    • सरकार द्वारा कृषि-तकनीक के लिये समर्पित इन्क्यूबेशन केंद्र स्थापित किये जाने चाहिये है, जो इच्छुक उद्यमियों को प्रशिक्षण, वित्त पोषण और मार्गदर्शन प्रदान करेंगे। 
    • इस तरह की पहल से प्रौद्योगिकी अंतर को कम किया जा सकता है, विशेष रूप से स्वचालित खेती, ड्रोन सेवाओं और AI-आधारित विश्लेषण जैसे क्षेत्रों में, साथ ही रोज़गार उत्पन्न करने और ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने में भी मदद मिलेगी।
      • उदाहरण के लिये, एंबीटैग एक स्वदेशी तापमान डेटा लॉगर है जिसे कोल्ड चेन प्रबंधन के लिये IIT रोपड़ द्वारा विकसित किया गया है। 
  • सतत् और जैविक कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना: वैश्विक बाज़ार के रुझान और बढ़ती उपभोक्ता मांग के साथ संतुलन स्थापित करने हेतु भारत को जैविक इनपुट पर सब्सिडी जैसे प्रोत्साहन और प्रमाणन प्रक्रियाओं को सुविधाजनक बनाकर जैविक खेती को बड़े पैमाने पर अपनाने पर जोर देना चाहिये।
    • शून्य-बजट प्राकृतिक खेती (ZBNF) जैसी प्राकृतिक कृषि पद्धतियों के लिये समर्थन बढ़ाया जाना चाहिये, जिसमें मृदा स्वास्थ्य में सुधार, रसायनों पर निर्भरता कम करने तथा जैविक उपज के लिये प्रीमियम मूल्य प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये। 
    • सब्सिडी और प्रमाणन सहायता के माध्यम से जैविक खेती को बढ़ावा देते हुए, भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि इस बदलाव से उत्पादकता बनी रहे, ताकि श्रीलंका के मामले में देखी गई बाधाओं को रोका जा सके।

निष्कर्ष: 

भारतीय कृषि को वास्तव में पुनर्जीवित करने के लिये, नीति को दीर्घकालिक बुनियादी ढाँचे से आगे बढ़कर किसानों की तात्कालिक और स्थानीय ज़रूरतों के साथ संतुलन स्थापित करना होगा। जलवायु-अनुकूल पद्धतियों, डिजिटल समाधानों और विविध मूल्य शृंखलाओं को बढ़ावा देकर, सुधार उत्पादकता और समुत्थानशीलता बढ़ा सकते हैं। FPO, कृषि-तकनीक और समावेशी ऋण प्रणालियों को मज़बूत करने से छोटे किसानों को सशक्त बनाया जा सकेगा। भारत के खाद्य और आय सुरक्षा लक्ष्यों को सुरक्षित करने के लिये एक उत्तरदायी, तकनीक-सक्षम और सतत् दृष्टिकोण महत्त्वपूर्ण है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: 

Q. पर्याप्त सार्वजनिक निवेश और विभिन्न योजनाओं के बावजूद, भारतीय कृषि को संरचनात्मक बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। चर्चा कीजिये। 

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक:

प्रश्न. जलवायु-अनुकूल कृषि (क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये-

  1. भारत में ‘जलवायु-स्मार्ट ग्राम (क्लाइमेट-स्मार्ट विलेज)’ दृष्टिकोण, अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान कार्यक्रम-जलवायु परिवर्तन, कृषि एवं खाद्य सुरक्षा (सी.सी.ए.एफ.एस.) द्वारा संचालित परियोजना का एक भाग है। 
  2. सी.सी.ए.एफ.एस. परियोजना, अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान हेतु परामर्शदात्री समूह (सी.जी.आई.ए.आर.) के अधीन संचालित किया जाता है, जिसका मुख्यालय प्राँस में है।  
  3. भारत में स्थित अंतर्राष्ट्रीय अर्धशुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (आई.सी.आर.आई.एस.ए.टी.), सी.जी.आई.ए.आर. के अनुसंधान केंद्रों में से एक है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2            
(b)  केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर:(d)


प्र. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2014)

     कार्यक्रम/परियोजना                                             मंत्रालय

  1. सूखा-प्रवण क्षेत्र कार्यक्रम                                 -  कृषि मंत्रालय
  2. मरुस्थल विकास कार्यक्रम                                -  पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
  3. वर्षापूरित क्षेत्रों हेतु राष्ट्रीय जल संभरण विकास परियोजना - ग्रामीण विकास मंत्रालय

उपर्युक्त में से कौन-सा/से युग्म सही सुमेलित है/हैं?

(A) केवल 1 और 2
(B) केवल 3
(C) 1, 2 और 3
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं

उत्तर: D


प्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से किसे कृषि में सार्वजनिक निवेश माना जा सकता है? (2020) 

  1. सभी फसलों की कृषि उपज के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करना 
  2. प्राथमिक कृषि ऋण समितियों का कंप्यूटरीकरण 
  3. सामाजिक पूंजी का विकास 
  4. किसानों को मुफ्त बिजली की आपूर्ति 
  5. बैंकिंग प्रणाली द्वारा कृषि ऋण की छूट 
  6. सरकारों द्वारा कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं की स्थापना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1, 2 और 5 
(b) केवल 1, 3, 4 और 5 
(c) केवल 2, 3 और 6 
(d) 1, 2, 3, 4, 5 और 6 

उत्तर: C


मुख्य:

Q. भारतीय कृषि की प्रकृति की अनिश्चितताओं पर निर्भरता के मद्देनज़र, फसल बीमा की आवश्यकता की विवेचना कीजिये और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पी० एम० एफ० बी० वाइ०) की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिये। (2016)

Q. प्भारत में स्वतंत्रता के बाद कृषि क्षेत्र में हुई विभिन्न प्रकार की क्रांतियों की व्याख्या कीजिये। इन क्रांतियों ने भारत में गरीबी उन्मूलन और खाद्य सुरक्षा में किस प्रकार मदद की है?  (2017)