समावेशी भविष्य के लिये शहरी भारत का पुनः विन्यास | 21 Nov 2025
यह एडिटोरियल 20/11/2025 को द बिज़नेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित “Why designing with people in mind is now essential for India's urban future” पर आधारित है। इस लेख में भारत के तेजी से बढ़ते शहरी भविष्य की तस्वीर पेश की गई है, जिसमें तर्क दिया गया है कि इस अवसर का लाभ उठाने के लिये अधोगामी योजना से समुत्थानशील, मानव केंद्रित, जलवायु-अनुकूल डिज़ाइन के अंगीकरण की आवश्यकता है। यह इस बात पर बल देता है कि वास्तविक आवश्यकताओं तथा नागरिकों के वास्तविक अनुभवों के अनुरूप डिज़ाइन को नागर तथा शासन-प्रणाली की एक मूलभूत क्षमता बनाया जाये।
प्रिलिम्स के लिये: स्मार्ट सिटी मिशन, AMRUT (अटल कायाकल्प और शहरी परिवर्तन मिशन), विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व, राष्ट्रीय शहरी डिजिटल मिशन (NUDM), डिजिटल इंडिया, प्रधानमंत्री आवास योजना, NITI आयोग, नगरीय ऊष्मा द्वीप (UHI) प्रभाव, SDG 11 (सतत् शहर एवं संतुलित समुदाय)
मेन्स के लिये: भारत के सतत् शहरी परिवर्तन को प्रेरित करने वाले प्रमुख विकास, भारत के शहरी विकास परिदृश्य के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ
भारत का शहरी प्रक्षेप पथ एक निर्णायक चुनौती प्रस्तुत करता है: अनुमान है कि वर्ष 2036 तक, शहरों में 60 करोड़ लोगों के निवास की संभावना है और ये सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 70 प्रतिशत सृजन में योगदान करेंगे, किंतु यह विस्तार अब भी बिना किसी स्पष्ट डिज़ाइन या प्रणालीगत उद्देश्य के जारी है। विकसित देशों को विरासत में मिली व्यवस्थाओं को पुनर्गठित करने की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जबकि भारत के पास यह दुर्लभ अवसर है कि वह वर्ष 2050 तक जिन अवसंरचनाओं पर निर्भर रहेगा उनका प्रथम रूप स्वयं निर्मित कर सकता है, परंतु यह तभी संभव है जब यह अपने दृष्टिकोण की मूलभूत रूप से पुनर्कल्पना करे। तत्काल आवश्यकता सख्त, अधोगामी की योजना से पुनरावृत्त, मानव-केंद्रित डिज़ाइन के दृष्टिकोण में परिवर्तन की है— एक ऐसा दृष्टिकोण जिसमें निर्णय लेने से पहले समस्याओं का अवलोकन किया जाए, बुनियादी अवसंरचनाओं को वास्तविकताओं के साथ जोड़ा जाए, जलवायु अनुकूलन को एकीकृत किया जाए और जो डिज़ाइन को विशेषज्ञों तक सीमित क्षेत्र न मानकर शासन, बजट निर्माण एवं नीतिनिर्धारण के प्रत्येक स्तर पर संस्थागत नागरिक क्षमता के रूप में विकसित करता हो।
भारत के सतत् शहरी परिवर्तन को प्रेरित करने वाले प्रमुख विकास क्या हैं?
- प्रमुख मिशन-स्मार्ट सिटीज़ पहल: स्मार्ट सिटीज़ मिशन (SCM) एक डेटा-संचालित दृष्टिकोण का नेतृत्व कर रहा है, जो एकीकृत प्रौद्योगिकी के माध्यम से शहरी शासन और सेवा वितरण में परिवर्तन ला रहा है। यह समग्र विकास, केवल बुनियादी अवसंरचना से आगे बढ़कर, नागरिक-केंद्रित समाधानों की ओर अग्रसर, समुत्थानशील और कुशल शहरी प्रणालियों का निर्माण करता है।
- वर्ष 2025 के आरंभ तक, सभी 100 स्मार्ट शहरों में एकीकृत कमांड और नियंत्रण केंद्र (ICCC) कार्यरत रहे, जो सूचित निर्णय लेने के लिये AI और IoT का उपयोग कर रहे थे।
- स्मार्ट शहरों ने क्षेत्र-आधारित विकास परियोजनाएँ, रेट्रोफिटिंग, पुनर्विकास एवं ग्रीनफील्ड मॉडल लागू किये हैं , जिनमें पैदल चलने की सुविधा, ऊर्जा-कुशल भवन, खुले स्थान और मिश्रित उपयोग योजना पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
- सतत् शहरी गतिशीलता क्रांति: गंभीर शहरी भीड़भाड़ और वायु प्रदूषण से निपटने के लिये निजी वाहनों से न्यून कार्बन उत्सर्जन, जन-परिवहन समाधानों की ओर स्थानांतरित करने हेतु एक सुदृढ़ नीतिगत प्रयास किया जा रहा है ।
- इसमें बड़े पैमाने पर सार्वजनिक परिवहन का विस्तार और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी पर ध्यान केंद्रित करना शामिल है। इसका लक्ष्य सुरक्षित, कुशल और समावेशी परिवहन प्रणालियों का निर्माण करना है।
- मेट्रो रेल नेटवर्क में उल्लेखनीय रूप से विस्तार हुआ है, जो अब 23 भारतीय शहरों में 1,013 किलोमीटर से अधिक लंबा है , जबकि वर्ष 2014 में यह केवल 248 किलोमीटर था।
- PM-eBus सेवा योजना का लक्ष्य हरित सार्वजनिक परिवहन बेड़े में 10,000 ई-बसें तैनात करना है।
- अमृत और संरक्षण के माध्यम से जल सुरक्षा: AMRUT (अटल कायाकल्प और शहरी परिवर्तन मिशन) और इसके अनुवर्ती AMRUT 2.0 के तहत दीर्घकालिक शहरी जल सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये सार्वभौमिक जल आपूर्ति एवं कुशल सीवेज प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
- जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न जल संकट के प्रति शहरों को समुत्थानशील बनाने के लिये यह बुनियादी अवसंरचना उन्नयन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- AMRUT पहल के तहत पहले ही 4,429 MLD की महत्त्वपूर्ण सीवेज शोधन क्षमता स्थापित की जा चुकी है ।
- मध्य प्रदेश के खंडवा जैसे शहर-स्तरीय सफलताओं को 'कैच द रेन' पहल के तहत 1.29 लाख से अधिक जल संरक्षण संरचनाओं के साथ लक्ष्य से अधिक सफलता के लिये 2 करोड़ रुपये का प्रोत्साहन दिया गया।
- चक्रीय अर्थव्यवस्था और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन: शहरी अपशिष्ट की विशाल चुनौती से निपटने के लिये स्रोत पृथक्करण, सामग्री पुनर्प्राप्ति और वेस्ट-टू-वेल्थ बनाने वाली प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देकर चक्रीय अर्थव्यवस्था मॉडल पर तीव्रता से ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
- ई-अपशिष्ट और प्लास्टिक के लिये सख्त विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) मानदंड औपचारिक पुनर्चक्रण चैनलों को बढ़ावा दे रहे हैं।
- भारत वार्ड या ज़ोन स्तर पर विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना को बढ़ावा दे रहा है, जिससे विशाल, दूरस्थ लैंडफिल पर निर्भरता कम हो रही है।
- यह रणनीति परिवहन लागत को कम करती है, लंबी दूरी की यात्रा के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करती है तथा अपशिष्ट प्रबंधन में स्थानीय समुदाय के स्वामित्व को प्रोत्साहित करती है।
- हरित भवन और ऊर्जा दक्षता अधिदेश: ऊर्जा कुशल निर्माण के लिये अधिदेश और ग्रीन बिल्डिंग मूवमेंट का उदय, तेज़ी से बढ़ते निर्माण क्षेत्र के पर्यावरणीय प्रभाव को कम कर रहा है।
- ये पहल कम परिचालन लागत, बेहतर निवासी स्वास्थ्य और शहरी निर्मित वातावरण में न्यूनतम कार्बन उत्सर्जन सुनिश्चित करती हैं।
- भारत में हरित भवन अवसंरचनाओं से पारंपरिक संरचनाओं की तुलना में 20-30% ऊर्जा बचत प्राप्त किया जा सकता है।
- भारत विश्व स्तर पर अग्रणी स्थान पर है, जहाँ वर्ष 2023 तक 7 बिलियन वर्ग फुट से अधिक हरित भवन का निर्माण हुआ, जो LEED जैसे प्रमाणनों और नई हरित भवन नीतियों के लिये सरकार के प्रयासों से प्रेरित है।
- डिजिटल गवर्नेंस और नागरिक सहभागिता: डिजिटल प्लेटफॉर्म, भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी और ई-गवर्नेंस समाधानों को अपनाने से पारदर्शिता बढ़ रही है, सेवा वितरण में सुधार हो रहा है तथा शहरी नियोजन में महत्त्वपूर्ण नागरिक भागीदारी को बढ़ावा मिल रहा है।
- यह बदलाव अपारदर्शी, केंद्रीकृत योजना से हटकर विकेन्द्रीकृत, इंटरैक्टिव मॉडल की ओर ले जाता है।
- भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों और डेटा विश्लेषण का उपयोग परिसंपत्ति मानचित्रण और बुनियादी ढांचे की निगरानी के लिए तेजी से किया जा रहा है।
- राष्ट्रीय शहरी डिजिटल मिशन (NUDM) और डिजिटल इंडिया जैसी प्रमुख राष्ट्रीय पहलें इसकी रीढ़ हैं, जो साझा डिजिटल बुनियादी अवसंरचना एवं प्लेटफॉर्म-आधारित शहरी सेवाओं का निर्माण करती हैं।
- एक सहभागी उदाहरण में, पुणे के निवासी अब एक समर्पित मोबाइल ऐप्लीकेशन के माध्यम से वास्तविक काल में गड्ढों की मरम्मत पर नज़र रख सकते हैं, जो बेहतर सार्वजनिक उत्तरदायित्व को दर्शाता है।
- किफायती और जलवायु-अनुकूल आवास: प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) जैसी योजनाओं के माध्यम से ‘सभी के लिये आवास’ पर सरकार का ध्यान अब किफायती आवास परियोजनाओं में प्रमुख धारणीयता और जलवायु-अनुकूलन सुविधाओं को एकीकृत करता है।
- इससे आवास की कमी और पर्यावरणीय आघात के प्रति सुभेद्यता की दोहरी चुनौती का समाधान होता है।
- नवंबर, 2024 तक, PMAY-U ने 1.18 करोड़ घरों को मंजूरी दी है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि प्रारंभिक योजना चरणों से ही समुत्थानशील डिज़ाइन सुविधाओं को एकीकृत किया जाए, जो सुभेद्यता की स्थिति के प्रति एक बड़ा कदम है।
भारत के शहरी विकास परिदृश्य के समक्ष कौन-सी प्रमुख चुनौतियाँ हैं?
- शहरी स्थानीय निकायों (ULB) की वित्तीय बाधाएँ: शहरी स्थानीय निकाय (ULB) वित्तीय रूप से कमज़ोर हैं, उनके पास आवश्यक सेवाओं एवं बड़े पैमाने पर बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिये आवश्यक वित्तीय स्वायत्तता और सुदृढ़ राजस्व स्रोत का अभाव है।
- राज्य और केंद्रीय अनुदानों पर उनकी भारी निर्भरता तथा स्वयं के स्रोतों से प्राप्त राजस्व संग्रहण की खराब स्थिति, प्रभावी शासन एवं सेवा विस्तार के लिये उनकी क्षमता को गंभीर रूप से सीमित कर देती है।
- वर्ष 2002 से, नगर निगमों का वित्त सकल घरेलू उत्पाद का केवल 1% ही रहा है। नगर निकाय शहरी निवेश में 45% का योगदान करते हैं, जबकि शेष का प्रबंधन अर्द्ध-सरकारी एजेंसियों द्वारा किया जाता है।
- केंद्रीय और राज्य अंतरण में 37% से 44% तक की वृद्धि के बावजूद, नगरपालिकाओं की वित्तीय स्थिति अभी भी खराब बनी हुई है।
- वर्ष 2010 और 2018 के दौरान कर राजस्व में केवल 8% की वृद्धि हुई, अनुदान में 14% एवं गैर-कर राजस्व में 10.5% की वृद्धि हुई।
- अनियोजित शहरी विस्तार और नियोजन विफलताएँ: अधिकांश भारतीय शहरों में खंडित, अनियोजित शहरी विस्तार की विशेषता है, जो प्रायः मास्टर प्लान को प्रभावी ढंग से लागू करने में विफलता या आधुनिक नियोजन कार्यढाँचे की पूर्ण अनुपस्थिति के कारण होता है।
- इसके परिणामस्वरूप भूमि का अकुशल उपयोग, अनधिकृत कॉलोनियों का विस्तार तथा केंद्रीय शहर के बुनियादी अवसंरचना पर असंगत बोझ पड़ता है।
- NITI आयोग के अनुसार, भारत में लगभग 65% शहरी बस्तियों या जनगणना कस्बों के पास कोई 'मास्टर प्लान' नहीं है, जिसके कारण अलग-अलग और असंगत तरीके से किये गये सुधार या हस्तक्षेप, अव्यवस्थित निर्माण और पर्यावरण प्रदूषण को बढ़ावा मिला है।
- रणनीतिक दूरदर्शिता की यह कमी अनौपचारिक बस्तियों के उदय में योगदान करती है, जहाँ भारत की झुग्गी आबादी अभी भी 236 मिलियन (वर्ष 2020) होने का अनुमान है, जो एक गंभीर आवास और नियोजन संकट का संकेत देता है।
- तीव्र पर्यावरण प्रदूषण और संसाधन तनाव: भारतीय शहर वायु एवं जल प्रदूषण के खतरनाक स्तर से जूझ रहे हैं, साथ ही संसाधनों पर तनाव बढ़ रहा है, विशेष रूप से जल की कमी, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण और भी बढ़ गई है।
- अनियमित औद्योगिक उत्सर्जन, यातायात भीड़भाड़ तथा अकुशल अपशिष्ट प्रबंधन पद्धतियाँ शहरी पर्यावरण में गिरावट एवं गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिमों में योगदान करती हैं।
- कई प्रमुख शहरों, विशेषकर दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) चरम मौसम के दौरान प्रायः 'गंभीर' श्रेणी को पार कर जाता है, जिसमें पार्टिकुलेट मैटर (PM2.5) का स्तर सुरक्षित सीमा से काफी ऊपर होता है।
- इसके अलावा, वर्तमान सरकारी अनुमानों के अनुसार, भारत में प्रत्येक वर्ष लगभग 65 मिलियन टन अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जिसमें से 62 मिलियन टन से अधिक नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (MSW) है, जिसमें जैविक अपशिष्ट तथा कागज़, प्लास्टिक, लकड़ी और कांच जैसी पुनर्चक्रण योग्य सामग्री शामिल है।
- हालाँकि, इस अपशिष्ट का केवल 75-80% ही एकत्र किया जाता है और केवल 22-28% का ही वैज्ञानिक रूप से प्रसंस्करण या शोधन किया जाता है, जबकि शेष कचरा कूड़ेदानों में फेंक दिया जाता है।
- वर्ष 2031 तक नगरीय ठोस अपशिष्ट उत्पादन बढ़कर 165 मिलियन टन हो जाने की उम्मीद है तथा वर्ष 2050 तक यह 436 मिलियन टन तक पहुँच सकता है।
- खंडित शासन और संस्थागत क्षमता अंतराल: शहरी शासन एजेंसियों (ULB, राज्य स्तरीय अर्द्ध-सरकारी संस्थाएँ और विशेष प्रयोजन वाहन) की बहुलता से ग्रस्त है, जिनके अधिकार क्षेत्र एक-दूसरे से परस्पर अध्यारोपित होते हैं, जिसके कारण अकुशल समन्वय, खंडित नीति का कार्यान्वयन होता है तथा जवाबदेही में कमी आती है।
- यह संस्थागत जटिलता कुशल परियोजना निष्पादन और सेवा वितरण में गंभीर बाधा डालती है।
- स्वायत्तता का मुख्य मुद्दा स्पष्ट है, क्योंकि नगर सरकारों में प्रायः तीन ‘F’— Functions, Finances और Functionaries ( अर्थात् कार्य, वित्त और प्रशासनिक कार्यप्रणाली) का अभाव होता है तथा कई आवश्यक सेवाओं का प्रबंधन राज्य-नियंत्रित अर्द्ध-सरकारी संस्थाओं द्वारा किया जाता है।
- इसका एक आवर्ती उदाहरण नगरपालिकाओं (जैसे: दिल्ली में MCD) की इस अक्षमता में देखा जा सकता है कि वे मानसून के दौरान सड़कों पर जलभराव या ठोस अपशिष्ट निपटान जैसी समस्याओं का प्रभावी प्रबंधन नहीं कर पातीं। इन मुद्दों की जिम्मेदारी प्रायः नगरपालिका निकाय राज्य के लोक निर्माण विभाग (PWD) तथा जल बोर्ड या विकास प्राधिकरण जैसी विशिष्ट राज्य-नियंत्रित एजेंसियों के बीच विभाजित रहती है, जिसके परिणामस्वरूप जिम्मेदारी एक-दूसरे पर डालने की प्रवृत्ति तथा समाधान में विलंब देखा जाता है।
- जलवायु सुभेद्यता और आपदा जोखिम: भारतीय शहर बाढ़, हीट-वेव्स और चक्रवातों जैसी चरम मौसमी घटनाओं के प्रति तीव्रता से सुभेद्य होते जा रहे हैं, यह जोखिम अकुशल बुनियादी अवसंरचना की योजना, प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियों पर अतिक्रमण एवं नगरीय ऊष्मा द्वीप (UHI) प्रभाव से बढ़ जाता है।
- यह आँकड़ा वर्ष 2030 तक बढ़कर 5 बिलियन डॉलर हो जाएगा।
- UHI प्रभाव अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। वर्ष 2023 के एक अध्ययन में पाया गया कि मुंबई और दिल्ली जैसे महानगरों में तीव्र कंक्रीटकरण एवं हरित आवरण में कमी के कारण औसत ग्रीष्मकालीन तापमान पहले ही खतरनाक स्तर तक पहुँच चुका है, जो निरंतर बढ़ ही रहा है।
- शहरी नियोजन में जलवायु-अनुकूलन को एकीकृत करना एक अनिवार्य, अपर्याप्त वित्त पोषण वाली आवश्यकता है।
भारत के सतत् शहरी विकास की दिशा में त्वरित संक्रमण के लिये कौन-कौन से उपाय लागू किये जा सकते हैं?
- इंटीग्रेटेड ब्लू–ग्रीन शहरी योजना: सतत् शहरी विकास को त्वरित करने के लिये आवश्यक है कि ब्लू-ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर, शहरी आर्द्रभूमियाँ, हरित गलियारे और पारगम्य सतहों को मास्टर प्लान में समाहित किया जाए, न कि उन्हें बाद में जोड़े जाने वाले अतिरिक्त तत्त्वों की तरह देखा जाए।
- शहरों को खंडित या औपचारिक हरियाली-सज्जा से आगे बढ़कर पारिस्थितिकी-आधारित अनुकूलन की ओर बढ़ना चाहिये, जिसमें प्राकृतिक जल-धाराओं एवं जैवविविधता नोड्स को ज़ोनिंग मानकों में सम्मिलित किया जाना चाहिये। इससे जल-निकासी अधिक जलवायु-सहिष्णु बनेगी, हीट-मिटिगेशन संभव होगा और साथ ही जैवविविधता का पुनरुत्थान भी सुनिश्चित होगा।
- ऐसी योजना को शहरी उपविधियों में संहिताबद्ध किया जाना चाहिये, ताकि नई परियोजनाओं के लिये अनिवार्य पारिस्थितिकीय ऑडिट लागू हो सकें। समय के साथ, यह शहरों को प्रकृति-सकारात्मक नगरीय प्रणालियों में बदल देती है, जो पर्यावरणीय स्थिरता के लिये अभिकल्पित होती हैं।
- भारत के शहरी परिवर्तन को एक बहु-माध्यमीय गतिशीलता कार्यढाँचा अपनाना चाहिये, जो मेट्रो नेटवर्क, ई-बसेज़, साइकिल लेन और पैदल-चलन क्षेत्रों को एकीकृत रूप से समन्वित करे।
- यह एकीकृत टिकटिंग प्लेटफॉर्म, मोबिलिटी-एज़-ए-सर्विस (MaaS) प्रणालियों और फर्स्ट–लास्ट माइल माइक्रो-मोबिलिटी हबों की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
- स्थानीय निकायों को अपनी मुख्य सड़कों (आर्टेरियल रोड्स) को कम्प्लीट-स्ट्रीट सिद्धांतों के अनुसार पुनः डिज़ाइन करना चाहिये, ताकि कार-केंद्रित मानकों से हटकर अधिक समावेशी और लोगों को प्राथमिकता देने वाला ढाँचा विकसित किया जा सके।
- शहरी माल ढुलाई क्षेत्रों (Urban Freight Zones) एवं ईवी- लॉजिस्टिक्स कॉरिडोर (EV-ready Logistics Corridors) की स्थापना से कम-कार्बन परिवहन को और अधिक सशक्त किया जा सकता है। यह सभी उपाय मिलकर गतिशीलता को बिखरे हुए साधनों से बदलकर एक निर्बाध, कम-उत्सर्जन वाली गतिशीलता पारिस्थितिकीय तंत्र में परिवर्तित करते हैं।
- परिपत्र शहरी संसाधन प्रबंधन: शहरों को सामग्री, जल और ऊर्जा के लिये संरचित सर्कुलर प्रोटोकॉल की आवश्यकता है ताकि रैखिक (लिनियर) खपत को कम किया जा सके।
- शहरी स्थानीय निकाय ‘सर्कुलर डिस्ट्रिक्ट’ स्थापित कर सकते हैं, जहाँ निर्माण सामग्री, ग्रे-वॉटर (घरेलू जल) और जैविक अपशिष्ट का पुनःचक्रण किया जाता है, पुनः उपयोग किया जाता है तथा शहर की प्रणाली में पुनः प्रवाहित किया जाता है।
- इस चक्र को स्थायी बनाने के लिये अनिवार्य सामग्री पुनःप्राप्ति सुविधाएँ, विकेंद्रीकृत बायोमेथेनाइज़ेशन और ग्रे-वॉटर पुनःप्राप्ति संयंत्र स्थापित किये जा सकते हैं।
- संपूर्ण जीवनचक्र की ज़ीम्मेदारी सुनिश्चित करने के लिये भवन संहिता में चक्रीय मानकों को शामिल करना चाहिये। यह संसाधन-कुशल और पुनर्योजी शहरी संरचना को बढ़ावा देता है।
- सतत् शहरीकरण के लिये क्लाइमेट-स्मार्ट शहरी प्रशासन आवश्यक है, जहाँ नगर पालिका के बजट, ऑडिट और भूमि उपयोग के निर्णय अनुकूलन संबंधी मापदंडों के अनुरूप हों।
- शहरों को क्लाइमेट बजटिंग, ग्रीन म्युनिसिपल बॉन्ड्स तथा अनुकूलन और शमन के परिणामों से जुड़े प्रदर्शन-आधारित जलवायु वित्त को अपनाना चाहिये। शहरी डेटा सिस्टम को मज़बूत करना बाढ़, हीट-वेव और प्रदूषण के लिये पूर्वानुमान आधारित शासन को सक्षम कर सकता है।
- प्रशिक्षित शहरी जलवायु अधिकारियों की एक टीम का निर्माण संस्थागत निरंतरता सुनिश्चित करता है। समय के साथ शहर पूर्वसूचक, वित्तीय रूप से सशक्त और जलवायु-शासन वाली संस्थाओं में विकसित होते हैं।
- डिजिटल ट्विन-सक्षम शहरी प्रबंधन: डिजिटल ट्विन का उपयोग करके, जो शहर की प्रणालियों की वर्चुअल प्रतिकृतियाँ हैं, योजना, आपदा प्रतिक्रिया एवं बुनियादी ढाँचे के अनुकूलन में क्रांति लाई जा सकती है।
- नगरपालिकाएँ विभिन्न परिदृश्यों के तहत यातायात प्रवाह, जल निकासी क्षमता, हीट आइलैंड और उपयोगिता नेटवर्क का अनुकरण कर सकती हैं।
- यह साक्ष्य-आधारित ज़ोनिंग, जोखिम-संवेदनशील भूमि उपयोग नियमावली और त्वरित आपातकालीन प्रतिक्रियाओं को सक्षम बनाता है।
- एक इंटीग्रेटेड सेंसर इकोसिस्टम भौतिक और डिजिटल स्तरों के बीच वास्तविक काल प्रतिक्रिया चक्र सुनिश्चित करता है।
- ऐसा स्मार्ट शासन शहरों को पूर्वानुमान करने योग्य डेटा-निर्देशित शहरी प्रणालियों में रूपांतरित कर देता है।
- नगरपालिकाएँ विभिन्न परिदृश्यों के तहत यातायात प्रवाह, जल निकासी क्षमता, हीट आइलैंड और उपयोगिता नेटवर्क का अनुकरण कर सकती हैं।
- समान्वित शहरी सामाजिक अवसंरचना समूह: सतत् विकास में मानव-केंद्रित समावेशन को प्राथमिकता देनी चाहिये, जिससे स्वास्थ्य, शिक्षा, देखभाल सुविधाओं और सार्वजनिक स्थानों के ऐसे घनिष्ठ रूप से एकीकृत समूह बनें, जिन तक अभिगम्यता केवल 15 मिनट में संभव हो।
- शहर समुदाय-केंद्रित सेवा हब के आसपास भूमि को पुनर्गठित कर सकते हैं, जिससे आवागमन की चुनौतियाँ कम हों और सामाजिक समानता बढ़े।
- किराये के आवास, कर्मचारी हॉस्टल और लैंगिक-संवेदनशील डिज़ाइन को मज़बूत करना शहरी जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाता है।
- स्थानीय आवाज़ों को सशक्त बनाने के लिये भागीदारी योजना मंचों को शामिल करना ज़रूरी है। यह शहरों के बीच समानता एवं जन-केंद्रित शहरी ढाँचों के साथ संरेखित करता है।
- नवीकरणीय-एकीकृत उपयोगिता वास्तुकला: शहरी उपयोगिताओं को वितरित, अनुकूलनशील एवं नवीकरणीय-समेकित प्रणालियों में विकसित होना चाहिये, जिससे केंद्रीय ग्रिड पर निर्भरता कम हो।
- छतों पर स्थापित सौर ऊर्जा प्रणाली, शहरी माइक्रोग्रिड और ऊर्जा-संग्रहण नोड्स को स्मार्ट मीटरों के साथ एकीकृत किया जा सकता है ताकि मांग के अनुसार गतिशील प्रबंधन संभव हो सके। जल आपूर्ति संस्थाओं को सौर ऊर्जा से चलने वाली पंप प्रणाली एवं ऊर्जा-दक्ष लाइनों को अपनाना चाहिये। वेस्ट-टू-एनर्जी मॉड्यूल नवीकरणीय ऊर्जा आपूर्ति को पूर्ण कर सकते हैं।
- इस तरह की विकेंद्रीकृत स्वच्छ उपयोगिता संरचना विश्वसनीयता को बढ़ाती है और शहरों को कम-कार्बन, आत्म-निर्भर शहरी ऊर्जा पारिस्थितिकीय तंत्र की ओर ले जाती है।
- महानगरीय नियोजन एवं क्षेत्रीय शासन प्राधिकरण स्थापित करना: महानगरीय योजना प्राधिकरण (MPA) की स्थापना को अनिवार्य किया जाना चाहिये, जिन्हें वैधानिक समर्थन प्राप्त हो और साथ ही जिनका अधिकार क्षेत्र नगरपालिका सीमाओं से परे विस्तारित हो कर आसपास के उप-शहरी क्षेत्रों एवं जनगणना नगरों को समग्र रूप से शामिल करें।
- इन MPA को संपूर्ण कार्यात्मक आर्थिक क्षेत्र में एकीकृत क्षेत्रीय स्थानिक योजना, अवसंरचना समन्वय एवं जलवायु अनुकूलन रणनीतियों हेतु विशिष्ट अधिकार प्रदान किये जाने चाहिये।
- यह खंडित शासन को दूर करता है तथा एक एकीकृत कमांड संरचना बनाता है जो क्षेत्रीय स्तर पर जल आपूर्ति, मास ट्रांज़िट और अपशिष्ट प्रबंधन जैसे मुद्दों का समग्र रूप से प्रबंधन कर सके।
निष्कर्ष:
भारत का एक सतत् शहरी भविष्य, खंडित, प्रतिक्रियात्मक विकास से एकीकृत, जलवायु-अनुकूल और मानव-केंद्रित शहरीकरण की ओर बढ़ने पर निर्भर करता है, जो सशक्त संस्थानों एवं डिज़ाइन-आधारित शासन द्वारा संचालित हो। शहरी प्रणालियों में चक्रीयता, स्वच्छ गतिशीलता, डिजिटल बुद्धिमत्ता और समावेशी सेवा वितरण को शामिल करके, भारत तीव्र शहरीकरण को एक दीर्घकालिक विकासात्मक परिसंपत्ति में बदल सकता है। यह समग्र प्रक्षेपवक्र सतत् विकास लक्ष्यों— SDG 11 (सतत् शहर एवं संतुलित समुदाय), SDG 9 (उद्योग, नवाचार एवं बुनियादी सुविधाएँ), SDG 13 (जलवायु-परिवर्तन कार्रवाई) एवं SDG 6 (स्वच्छ जल और साफ-सफाई) को गति देता है और शहरी विकास को वैश्विक संधारणीयता प्रतिबद्धताओं के साथ संरेखित करता है।
|
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत के शहरी विकास के लिये शीर्ष-स्तरीय, बुनियादी अवसंरचना पर आधारित नियोजन से हटकर मानव-केंद्रित, जलवायु-अनुकूल और डिज़ाइन-संचालित शहरीकरण की आवश्यकता है। भारत को सतत् और समतामूलक शहरी विकास की ओर ले जाने के लिये आवश्यक प्रमुख परिवर्तनों पर चर्चा कीजिये। |
1. भारत की वर्तमान शहरी विकास-प्रक्रिया को अस्थिर क्यों माना जाता है?
भारत का तेज़ी से बढ़ता शहरीकरण किसी सुव्यवस्थित डिज़ाइन, आधुनिक नियोजन प्रणाली या जलवायु-संवेदनशील प्रशासन के बिना आगे बढ़ रहा है। इसके परिणामस्वरूप अनियोजित अस्थिर, बुनियादी अवसंरचना की कमी और पर्यावरणीय दबाव बढ़ रहे हैं, जिससे वर्तमान विकास पैटर्न व्यापक सुधारों के बिना अस्थिर हो जाते हैं।
2. “भारत का शहरी रूपांतरण (अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन) अवसर पुराने राष्ट्रों की तुलना में विशिष्ट क्यों है?”
जिन देशों पर पुरानी अवसंरचना का बोझ है, उनके विपरीत भारत वर्ष 2050 के लिये ‘प्रथम-संस्करण’ प्रणालियाँ विकसित कर सकता है, जो शुरुआत से ही जलवायु-अनुकूलन, डिजिटल शासन एवं मानव-केंद्रित डिज़ाइन को समाहित करने की अनुमति देती हैं।
3. टॉप-डाउन योजना से मानव-केंद्रित डिज़ाइन की ओर परिवर्तन क्यों महत्त्वपूर्ण है?
अधोगामी योजना में लोगों के वास्तविक अनुभवों की अनदेखी होती है तथा कठोर व असंगत अवसंरचना को जन्म देती है। इसके विपरीत, मानव-केंद्रित डिज़ाइन व्यवहारगत अंतर्दृष्टियों, सामुदायिक आवश्यकताओं और क्रमिक निर्णय-निर्माण को सम्मिलित करता है, जिससे शहर लोगों के लिये पहले और बेहतर ढंग से कार्य कर पाते हैं।
4. भारत के सतत् शहरी परिवर्तन को आगे बढ़ाने वाले मुख्य विकासात्मक कारक क्या हैं?
मुख्य कारकों में स्मार्ट गवर्नेंस, विस्तारित सार्वजनिक परिवहन, जल सुरक्षा सुधार, सर्कुलर इकानॅमी के अभ्यास, हरित भवन, डिजिटल प्लेटफॉर्म एवं जलवायु-अनुकूलन किफायती आवास शामिल हैं।
5. भारत के शहरी शासन में सबसे बड़ी संरचनात्मक चुनौती क्या है?
विखंडित शासन व्यवस्था और कमज़ोर शहरी स्थानीय निकाय (ULBs) जवाबदेही एवं समन्वय को सीमित करते हैं। कई एजेंसियों के अतिव्यापन अधिकार समेकित योजना और प्रभावी सेवा-प्रदान को बाधित करते हैं।
6. जलवायु परिवर्तन भारतीय शहरों के लिये जोखिमों को किस प्रकार बढ़ाता है?
जलवायु परिवर्तन हीट वेव, बाढ़, चक्रवात और जल संकट को बढ़ा देता है। अतिक्रमित ड्रेनेज सिस्टम, घटता हरित आवरण एवं घनी आबादी वाले इलाके शहरी हीट आइलैंड प्रभाव को और बढ़ा देते हैं, जिससे संवेदनशीलता में वृद्धि होती है।
7. शहरी संसाधनों के चक्रीय प्रबंधन की ज़रूरत क्यों है?
शहर अत्यधिक मात्रा में कचरा उत्पन्न करते हैं तथा उच्च स्तरीय सामग्री एवं जल का उपभोग करते हैं। सर्कुलर सिस्टम—जैसे पुन: उपयोग लूप, विकेन्द्रीकृत प्रसंस्करण और ग्रे-वाटर पुनः प्राप्ति पारिस्थितिकीय दबाव को कम करते हैं और संसाधन दक्षता बढ़ाते हैं।
8. इंटीग्रेटेड ब्लू-ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर शहरी अनुकूलन को कई तरीकों से बेहतर बना सकती है:
शहरी क्षेत्रों में आर्द्रभूमियों, नदी गलियारों एवं पारगम्य सतहों को पुनर्स्थापित करके, शहर बाढ़ को कम कर सकते हैं, हीट आइलैंड प्रभाव को घटा सकते हैं, भूमिगत जल को पुनर्भरित कर सकते हैं, और जैव-विविधता को बढ़ावा दे सकते हैं, साथ ही पर्यावरणीय स्थिरता को भी सुनिश्चित कर सकते हैं।
9. महानगर-स्तरीय नियोजन प्राधिकरण आवश्यक क्यों हैं?
शहरी समस्याएँ नगरपालिका की सीमाओं के बाहर फैल जाती हैं। महानगरीय योजना प्राधिकरण एकीकृत क्षेत्रीय निगरानी प्रदान करते हैं, जिससे भूमि उपयोग, परिवहन नेटवर्क, जल प्रणाली और आपदा प्रबंधन का समन्वित संचालन संभव होता है।
10. ये सुधार भारत की वैश्विक स्थिरता संबंधी प्रतिबद्धताओं में किस प्रकार योगदान देते हैं?
जलवायु अनुकूलन, सतत् गतिशीलता, सर्कुलर इकॉनमी और समावेशी अवसंरचना को बढ़ावा देने वाले उपाय सीधे तौर पर SDG 11, SDG 9, SDG 13 एवं SDG 6 को आगे बढ़ाते हैं, जिससे भारत की शहरी विकास प्रक्रिया अंतर्राष्ट्रीय स्थिरता लक्ष्यों के अनुरूप होती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न 1. भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार निम्नलिखित में से कौन-सा एक कथन सही है? (2019)
(a) अपशिष्ट उत्पादक को पाँच कोटियों में अपशिष्ट अलग-अलग करने होंगे।
(b) ये नियम केवल अधिसूचित नगरीय स्थानीय निकायों, अधिसूचित नगरों तथा सभी औद्योगिक नगरों पर ही लागू होंगे।
(c) इन नियमों में अपशिष्ट भराव स्थलों तथा अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाओं के लिये सटीक और ब्यौरेवार मानदंड उपबंधित हैं।
(d) अपशिष्ट उत्पादक के लिये यह आज्ञापक होगा कि किसी एक ज़िले में उत्पादित अपशिष्ट, किसी अन्य ज़िले में न ले जाया जाए।
उत्तर: (c)
मेन्स
प्रश्न 1. कई वर्षों से उच्च तीव्रता की वर्षा के कारण शहरों में बाढ़ की बारंबारता बढ़ रही है। शहरी क्षेत्रों में बाढ़ के कारणों पर चर्चा करते हुए इस प्रकार की घटनाओं के दौरान जोखिम कम करने की तैयारियों की क्रियाविधि पर प्रकाश डालिये। (2016)
प्रश्न 2. क्या कमज़ोर और पिछड़े समुदायों के लिये आवश्यक सामाजिक संसाधनों को सुरक्षित करने के द्वारा, उनकी उन्नति के लिये सरकारी योजनाएँ, शहरी अर्थव्यवस्थाओं में व्यवसायों की स्थापना करने में उनको बहिष्कृत कर देती हैं? (2014)