राष्ट्रीय शरणार्थी कानून की आवश्यकता | 24 Aug 2022

यह एडिटोरियल 22/08/2022 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित “Rohingya row shows why we need a national refugee law” लेख पर आधारित है। यह भारत में शरणार्थियों की स्थिति और वर्तमान में जारी रोहिंग्या संकट के बारे में चर्चा की गई है।

भारत में शरणार्थी आगमन वर्ष 1947 में देश के विभाजन के साथ शुरू हुआ और वर्ष 2010 के आरंभ तक भारतीय भू-भाग में शरणार्थियों की संख्या लगभग 450,000 तक पहुँच गई थी।

भारत वर्ष 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी अभिसमय (Refugee Conference) या इसके वर्ष 1967 के प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है। चूँकि भारत में कोई शरणार्थी कानून मौजूद नहीं है इसलिये देश में शरणार्थियों के प्रति व्यवहार में कोई एकरूपता भी नहीं है।

हालाँकि शरणार्थी का प्रश्न मानवाधिकारों और मानवीय कानून के बड़े प्रश्न के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय कानून के अन्य क्षेत्रों, जैसे राज्य के उत्तरदायित्व और शांति बनाए रखने के साथ अटूट रूप से जुड़ा हुआ है।

शरणार्थियों के प्रबंधन के लिये भारत में विद्यमान वर्तमान विधायी ढाँचा

  • भारत सभी विदेशियों (चाहे वे अवैध अप्रवासी हों, शरणार्थी/शरण की मांग करने वाले हों या वीजा परमिट की समय-सीमा समाप्त होने के बाद भी देश में निवास करने वाले लोग हों) के साथ निम्नलिखित कानूनों के अनुसार कार्रवाई करता है:
    • विदेशी अधिनियम, 1946: इसकी धारा 3 के तहत केंद्र सरकार को अवैध विदेशी नागरिकों का पता लगाने, उन्हें हिरासत में लेने और उन्हें निर्वासित करने का अधिकार है।
    • पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 [Passport (Entry into India) Act, 1920]: इसकी धारा 5 के तहत, सक्षम प्राधिकारी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 258 (1) के तहत किसी अवैध विदेशी व्यक्ति को बलपूर्वक बाहर निकाल सकते हैं।
    • विदेशी पंजीकरण अधिनियम, 1939 (Registration of Foreigners Act of 1939): इसके अंतर्गत एक अनिवार्य आवश्यकता लागू है जिसके तहत भारत आने वाले सभी विदेशी नागरिकों (विदेशी भारतीय नागरिकों को छोड़कर) को दीर्घावधिक वीजा (180 दिनों से अधिक) पर भारत आने के 14 दिनों के भीतर एक पंजीकरण अधिकारी के समक्ष स्वयं को पंजीकृत कराना होगा।
    • नागरिकता अधिनियम, 1955 (Citizenship Act, 1955): इसमें नागरिकता का त्याग, नागरिकता पर्यवसान और नागरिकता से वंचित किये जाने संबंधी प्रावधान किये गए हैं।
  • इसके अलावा, नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आने वाले हिंदू, ईसाई, जैन, पारसी, सिख और बौद्ध प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करने का उद्देश्य रखता है।
  • भारत ने शरणार्थी होने का दावा करने वाले विदेशी नागरिकों के साथ व्यवहार करते समय सभी संबंधित एजेंसियों द्वारा अनुपालन हेतु एक मानक संचालन प्रक्रिया (Standard Operating Procedure- SOP) स्थापित की है।
  • भारत का संविधान भी मानव के जीवन, स्वतंत्रता और गरिमा का सम्मान करता है।
    • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग बनाम अरुणाचल प्रदेश राज्य (1996) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया था कि भारतीय नागरिकों के लिये सभी मौलिक अधिकार उपलब्ध हैं तथापि समता का अधिकार और जीवन का अधिकार विदेशी नागरिकों को भी प्राप्त है।

भारत में शरणार्थियों की स्थिति

  • अपनी स्वतंत्रता के बाद से भारत ने पड़ोसी देशों से शरणार्थियों के विभिन्न समूहों को स्वीकार किया है, जिनमें शामिल हैं:
    • वर्ष 1947 में विभाजन के कारण पाकिस्तान से आने वाले शरणार्थी।
    • वर्ष 1959 में भारत आने वाले तिब्बती शरणार्थी।
    • 1960 के दशक की शुरुआत में पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) से आए चकमा और हाजोंग।
    • वर्ष 1965 और 1971 में आए अन्य बांग्लादेशी शरणार्थी।
    • 1980 के दशक में श्रीलंका से आए तमिल शरणार्थी।
    • हाल के समय म्याँमार से आए रोहिंग्या शरणार्थी।

शरणार्थियों और प्रवासियों के बीच अंतर

  • शरणार्थी (Refugees) अपने मूल देश से बाहर रहने को विवश ऐसे लोग हैं जो अपने मूल देश में उत्पीड़न, सशस्त्र संघर्ष, हिंसा या गंभीर सार्वजनिक अव्यवस्था के परिणामस्वरूप जीवन, शारीरिक अखंडता या स्वतंत्रता पर गंभीर खतरे का सामना करते हैं और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा की आवश्यकता महसूस करते हैं।
    • प्रवासी (Migrants) वे लोग होते हैं जो कार्य या अध्ययन के लिये अथवा विदेशों में रह रहे अपने परिवार से जुड़ने के लिये अपना मूल देश छोड़ देते हैं।
  • किसी व्यक्ति के ‘शरणार्थी’ के रूप में चिह्नित होने के लिये सुपरिभाषित और विशिष्ट आधार सुनिश्चित किये गए हैं जिनकी पुष्टि करनी होती है।
  • प्रवासी की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत कोई कानूनी परिभाषा नहीं है।

भारत ने शरणार्थी अभिसमय, 1951 पर हस्ताक्षर क्यों नहीं किये हैं?

  • शरणार्थी की परिभाषा पर असहमति: शरणार्थी अभिसमय, 1951 के अनुसार शरणार्थियों को ऐसे लोगों के रूप में परिभाषित किया गया है जो अपने नागरिक और राजनीतिक अधिकारों से वंचित हैं, लेकिन आर्थिक अधिकारों से नहीं।
    • यदि आर्थिक अधिकारों के उल्लंघन को भी शरणार्थी की परिभाषा में शामिल कर लिया जाए तो यह स्पष्ट रूप से विकसित देशों पर एक बड़े बोझ का निर्माण करेगा।
  • यूरोप की केंद्रीयता: भारत मानता है कि शरणार्थी अभिसमय, 1951 मुख्यतः यूरोप पर केंद्रित (eurocentric) है और यह दक्षिण एशियाई देशों की परवाह नहीं करता है। साथ ही, भारत द्वारा यह आशंका भी व्यक्त की गई है कि यह देश की सुरक्षा और घरेलू कानूनों को प्रभावित करेगा।

भारत में शरणार्थियों के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ

  • भय और असुरक्षा: शरणार्थियों को समाज में अधिक महत्त्व नहीं दिया जाता है। स्थानीय निवासियों द्वारा उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता है जिससे उनमें भय और असुरक्षा की भावना विकसित हो जाती है।
    • स्थानीय निवासियों द्वारा प्रायः इसी भूमि का नागरिक न होने के आधार पर शारीरिक और भावनात्मक रूप से उनका शोषण किया जाता है।
  • बुनियादी सुविधाओं से वंचित: उन्हें भोजन, आश्रय और रोज़गार जैसी जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की प्राप्ति के लिये भी संघर्ष करना पड़ता है।
    • उन्हें बिना किसी उच्च सामाजिक स्थिति या विशेषाधिकार के न्यूनतम वेतन पर काम करने के लिये विवश किया जाता है।
  • उनकी सुरक्षा के लिये सुपरिभाषित ढाँचे का अभाव: शरणार्थियों पर भारत की तदर्थ प्रशासनिक नीति ने भ्रम का माहौल उत्पन्न किया है।
    • जागरूकता की कमी और भ्रामक सूचना शरणार्थी समुदायों के बीच असुरक्षा और पृथकता की भावना पैदा करती है।
  • पहचान की लंबी प्रक्रिया: शरणार्थियों के लिये संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त (UNHCR) शरणार्थी स्थिति निर्धारण प्रक्रिया के माध्यम से एक शरणार्थी कार्ड जारी करता है, लेकिन इस प्रक्रिया में अत्यधिक समय लगता है और पहचान व मूल्यांकन में 20 माह तक का समय लग सकता है।
    • उस अवधि के भीतर यदि कोई शरणार्थी पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया जाता है तो उन्हें UNHCR तक कोई पहुँच प्रदान किये बिना हिरासत में रखे जाने और निर्वासित किये जाने जैसी कार्रवाई से गुज़रना पड़ता है।
  • अप्रवासियों के रूप में गलत पहचान: पिछले कुछ दशकों में पड़ोसी देशों से बहुत से लोग अवैध रूप से भारत में आ बसे हैं। वे राज्य के उत्पीड़न के कारण नहीं, बल्कि बेहतर आर्थिक अवसरों का लाभ उठाने के लिये आए हैं।
    • इस तरह के उदाहरण विश्व में अन्य स्थानों पर भी मिलते हैं। जैसे मेक्सिको के कुल प्रवासियों में से 98% ने संयुक्त राज्य अमेरिका का रुख किया है जहाँ उनकी संख्या 9 मिलियन से भी अधिक (पंजीकृत तथा गैर-पंजीकृत) है।
    • यह सच है कि भारत में अधिकांश चर्चाएँ अवैध अप्रवासियों के बारे में होती हैं शरणार्थियों के बारे में नहीं, लेकिन ये दोनों श्रेणियाँ एक दूसरे से संबद्ध हो जाने की प्रवृत्ति रखती हैं।

आगे की राह

  • न्यायसंगत और प्रभावी पंजीकरण प्रक्रिया: पंजीकरण और पहचान में मानकों को बढ़ाने या बनाए रखने के दौरान शरणार्थियों की स्थिति निर्धारित करने वाली प्रक्रियाओं को अधिक न्यायसंगत और प्रभावी बनाया जाना चाहिये।
  • बुनियादी सुविधाओं में सुधार: आवश्यक सेवाओं तथा ज़रूरतों की पूर्ति को ध्यान में रखना चाहिये।
    • इनमें शिक्षा तक पहुँच में सुधार लाना, विशेष आवश्यकता वाले लोगों के लिये कार्यक्रमों को बढ़ावा देना और स्वास्थ्य सुविधाओं को बनाए रखना शामिल हैं।
  • स्थानीय निवासियों में जागरूकता का प्रसार: शरणार्थियों को आश्रय प्रदान करने और उन्हें अस्थायी आजीविका प्रदान कर उनकी आत्मनिर्भरता क्षमता में सुधार लाने हेतु सामुदायिक भागीदारी आवश्यक है जिसके लिये लोगों को जागरूक किया जाना चाहिये।
  • महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना: हमारे संविधान में निहित मूल कर्तव्य के अनुरूप शरणार्थी महिलाओं एवं बच्चों को अधिकारियों तथा स्थानीय लोगों की हिंसा तथा उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिये।
    • अनुच्छेद 51A (e) प्रत्येक नागरिक से महिलाओं की गरिमा के विरुद्ध अपमानजनक अभ्यासों के त्याग की अपेक्षा रखता है।
  • भावनात्मक समर्थन: एक व्यक्ति ऐसी परिस्थितियों के कारण शरणार्थी बनता है जो उस व्यक्ति के नियंत्रण से बाहर होती हैं।
    • वह मानवाधिकारों के उल्लंघन, सामाजिक-आर्थिक एवं राजनीतिक असुरक्षा की स्थिति में उत्पीड़न के भय से अपना देश, अपनी भूमि छोड़ने को विवश होता है। ऐसे परिदृश्य में हमें वित्तीय सहायता के अलावा समावेशिता और भावनात्मक समर्थन प्रदान करने का लक्ष्य रखना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘भारत में शरणार्थी मानव अधिकारों और मानवीय कानून के वृहत प्रश्न से अटूट रूप से जुड़े हुए हैं।’’ विवेचना कीजिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)

प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये:   (2016)

समाचारों में कभी-कभी उल्लिखित समुदाय : किसके मामले में

  1. कुर्द :     बांग्लादेश
  2. मधेसी :    नेपाल
  3. रोहिंग्या :  म्याँमार

उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (c)