महिलाओं में पोषण | 28 May 2022

यह एडिटोरियल 26/05/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Diversifying Plates for Girls” लेख पर आधारित है। इसमें समाज में विकसित हो रही महिला-केंद्रित मुद्दों, वर्तमान परिदृश्य और इसमें सुधार के उपायों के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

विभिन्न अध्ययनों के अनुसार किशोरावस्था जीवन का वह चरण है जो पोषकता के दृष्टिकोण से विशिष्ट मांग रखता है। यद्यपि इस अवस्था के दौरान किशोर लड़के और लड़कियाँ दोनों ही भावनात्मक परिवर्तनों का सामना करते हैं, लेकिन लड़कियों को लड़कों की तुलना में अधिक शारीरिक आवश्यकताओं का सामना करना पड़ता है और इसलिये उन्हें स्थूल एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों को अधिक मात्रा में ग्रहण की आवश्यकता होती है।

  • समाज में महिलाओं के साथ पारंपरिक रूप से भेदभाव किया जाता रहा है और उन्हें राजनीतिक एवं परिवार-संबंधी निर्णयों से बाहर रखा जाता है। परिवार के भरण-पोषण में उनके दैनिक योगदान के बावजूद उनकी राय को शायद ही कभी महत्त्व दिया जाता है और उनके अधिकार सीमित हैं।
  • समाज वस्तुतः कई महिला अधिकारों को चिह्नित भी करता है, जिसमें राजनीतिक भागीदारी, पारिवारिक भत्ता और व्यवसाय स्थापित करने जैसे अधिकार शामिल हैं। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता और सूचना का अभाव महिलाओं की स्वतंत्रता और सशक्तिकरण के मार्ग में वास्तविक बाधाएँ बनी हुई हैं।

महिला-संबंधी विभिन्न मुद्दे

  • कन्या शिशु हत्या और भ्रूण हत्या:
    • वैश्विक स्तर पर कन्या भ्रूण हत्या के उच्चतम दर वाले देशों में भारत एक है।
    • पुत्र को जन्म की प्रबल इच्छा, दहेज की प्रथा और उत्तराधिकारी की पितृवंशीय आवश्यकता के कारण कन्या भ्रूण हत्या को बल मिलता है।
    • वर्ष 2011 की जनगणना में 0-6 वर्ष आयु वर्ग में 914 का न्यूनतम लिंगानुपात दर्ज किया गया जहाँ एक दशक में बालिकाओं की संख्या 3 मिलियन तक कम हो गई (वर्ष 2001 में8 मिलियन से घटकर वर्ष 2011 में 75.8 मिलियन)।
  • बाल विवाह:
    • भारत में हर वर्ष 18 साल से कम आयु की कम से कम5 मिलियन लड़कियों का विवाह कर दिया जाता है जो भारत को विश्व में सर्वाधिक बाल वधुओं वाला देश बनाता है। बाल वधुओं की कुल वैश्विक संख्या का एक तिहाई भारत में मौजूद है। वर्तमान में देश की 15-19 आयु वर्ग की लगभग 16% किशोरियों का विवाह हो चुका है।
    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के आँकड़ों के अनुसार देश में बाल विवाह की दर में कमी तो आई है, लेकिन यह मामूली ही है (वर्ष 2015-16 में 27% से घटकर वर्ष 2019-20 में 23%)।
  • शिक्षा:
    • बालिकाएँ समय-पूर्व स्कूल छोड़ देती हैं और घरेलू कार्यों में संलग्न और प्रोत्साहित की जाती हैं।
      • ‘इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन वीमन’ के एक अध्ययन में पाया गया है कि स्कूल प्रणाली से बाहर मौजूद बालिकाओं के विवाह की संभावना4 गुना अधिक होती है या स्कूल में नामांकित बालिकाओं की तुलना में उनका विवाह पहले ही तय हो चुका होता है।
  • स्वास्थ्य और मृत्यु दर:
    • भारत में बालिकाओं को अपने घरों के अंदर और बाहर समुदायों में, दोनों ही जगह भेदभाव का सामना करना पड़ता है। भारत में असमानता का अर्थ है बालिकाओं के लिये असमान अवसर।
    • पाँच वर्ष से कम आयु की बालिकाओं की मृत्यु दर बालकों की तुलना में3% अधिक है। वैश्विक स्तर पर बालकों के लिये यह आँकड़ा 14% अधिक है।
  • कुपोषण:
    • बालकों और बालिकाओं दोनों के कुपोषित होने की संभावना लगभग एक सी ही होती है। लेकिन बालिकाओं के लिये पौष्टिकता ग्रहण, गुणवत्ता और मात्रा दोनों ही मामले में अपेक्षाकृत कम है। कच्ची आयु में गर्भधारण और बार-बार गर्भधारण के अतिरिक्त बोझ के कारण भी बालिकाओं का स्वास्थ्य प्रभावित होता है।
    • समाज की पितृसत्तात्मक प्रवृत्ति के कारण बालकों को अपेक्षाकृत अधिक पौष्टिक भोजन दिया जाता है क्योंकि उन्हें परिवार का कमाऊ भविष्य माना जाता है, विशेष रूप से यदि परिवार गरीब हो और सभी बच्चों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने की स्थिति में नहीं हो।
    • प्रजनन काल के दौरान महिलाओं की खराब पोषण स्थिति बच्चों के अल्पपोषण के लिये ज़िम्मेदार है।
  • घरेलू हिंसा: समानता, विकास एवं शांति की उपलब्धि के साथ-साथ महिलाओं एवं बालिकाओं के मानवाधिकारों की पूर्ति के लिये महिला-विरुद्ध हिंसा एक बाधा बनी हुई है।
  • घरेलू असमानता: घरेलू संबंध दुनिया भर में और विशेष रूप से भारत में असीम रूप से कम लेकिन उल्लेखनीय तरीकों से लैंगिक पूर्वाग्रह प्रदर्शित करते हैं। तथाकथित कार्य विभाजन द्वारा घरेलू कार्य, बच्चों की देखभाल और सेवा संबंधी कार्य महिलाओं पर अधिक लाद दिये गए हैं।

महिला स्वास्थ्य की वर्तमान स्थिति

  • एनीमिया के जोखिम में वृद्धि: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के आँकड़े (2019-20) NFHS-4 की तुलना में किशोर लड़कियों में एनीमिया में 5% वृद्धि की पुष्टि करते हैं।
  • महामारी-पूर्व की स्थिति: व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण, 2019 से पता चलता है कि महामारी के पहले भी किशोरों के बीच विविध खाद्य समूहों की खपत कम थी।
  • महामारी के बाद की स्थिति: कोविड-19 ने विशेष रूप से महिलाओं, किशोरों और बच्चों के बीच आहार विविधता की स्थिति को और बदतर कर दिया है।
  • ‘टाटा-कॉर्नेल इंस्टीट्यूट फॉर एग्रीकल्चर एंड न्यूट्रिशन’ के एक अध्ययन के अनुसार, कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान भारत में महिलाओं की आहार विविधता में 42% की गिरावट आई जहाँ उन्होंने फल, सब्जियों और अंडे का कम सेवन किया।
  • पोषण सेवाओं की आपूर्ति में कमी: लॉकडाउन के कारण मध्याह्न भोजन कार्यक्रम भी प्रभावित हुआ और किशोर लड़कियों के लिये स्कूलों में साप्ताहिक आयरन फोलिक एसिड सप्लीमेंट (WIFS) और पोषण शिक्षा में रुकावट आई।
    • स्कूल नहीं जाने वाली किशोरियों को पोषण सेवाएँ प्रदान करने में निहित चुनौतियों से यह स्थिति और जटिल बनी, जिससे बदतर पोषण परिणामों के प्रति उनकी संवेदनशीलता और बढ़ गई।
  • आहार विविधता की आवश्यकता: किशोरावस्था एक अवसर की खिड़की होती है जहाँ विशेष रूप से बालिकाओं के लिये पोषण संबंधी कमियों को दूर करने के लिये और शरीर में बेहद आवश्यक पोषक तत्वों की पुनःपूर्ति के लिये आहार विविधता अभ्यासों का निर्माण किया जा सकता है।
  • सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी: वर्तमान में 80% किशोर सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के कारण ‘गुप्त भूख’ (Hidden Hunger) से पीड़ित हैं। बालिकाओं में यह प्रवृत्ति और अधिक प्रचलित है जहाँ वे पहले से ही कई पोषण अभावों से पीड़ित हैं।
    • न केवल आयरन और फोलिक एसिड की कमी बल्कि विटामिन B12, विटामिन D और जिंक की कमी को दूर करने के लिये मौजूद पहलों को सशक्त करने की आवश्यकता है।

NFHS-5 के महिला-केंद्रित निष्कर्ष

  • अल्पायु में विवाह:
    • अल्पायु में विवाह के राष्ट्रीय औसत में गिरावट आई है।
    • NFHS-5 के अनुसार, सर्वेक्षण में शामिल3% महिलाओं का विवाह 18 वर्ष की कानूनी आयु प्राप्त करने से पहले हो गया था जो कि NFHS-4 में रिपोर्ट किये गए 26.8% की तुलना में कम है।
    • पुरुषों के लिये अल्पायु में विवाह का यह आँकड़ा7% (NFHS-5) और 20.3% (NFHS-4) है।
    • उच्चतम उछाल:
      • पंजाब, पश्चिम बंगाल, मणिपुर, त्रिपुरा और असम में यह दर बढ़ी है।
      • त्रिपुरा में उच्चतम उछाल प्रकट हुई है, जहाँ यह आँकड़ा महिलाओं के लिये1% (NHFS-4) से बढ़कर 40.1% और पुरुषों के लिये 16.2% से बढ़कर 20.4% हो गया।
    • अल्पायु में विवाह की उच्चतम दर:
      • बिहार और पश्चिम बंगाल अल्पायु में विवाह की उच्चतम दर प्रदर्शित करने वाले राज्य हैं।
    • अल्पायु में विवाह की न्यूनतम दर:
      • जम्मू-कश्मीर, लक्षद्वीप, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, गोवा, नगालैंड, केरल, पुडुचेरी और तमिलनाडु अल्पायु विवाह की न्यूनतम दर प्रदर्शित करते हैं।
  • अल्पायु/किशोरावस्था में गर्भधारण: अल्पायु में गर्भधारण की दर9% से घटकर 6.8% हो गई है।
  • महिलाओं के विरुद्ध घरेलू हिंसा:
    • समग्र रूप से घरेलू हिंसा वर्ष 2015-16 में2% से मामूली रूप से घटकर वर्ष 2019-21 में 29.3% हो गई है।
    • राज्यवार उच्चतम और न्यूनतम स्तर:
      • महिलाओं के विरुद्ध घरेलू हिंसा 48% के आँकड़े के साथ सर्वाधिक कर्नाटक में दर्ज की गई, जिसके बाद बिहार, तेलंगाना, मणिपुर और तमिलनाडु का स्थान रहा।
  • महिला सशक्तिकरण: महिला सशक्तिकरण संकेतकों ने अखिल भारतीय स्तर पर और चरण-II के सभी राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में उल्लेखनीय सुधार दिखाया है।
    • अखिल भारतीय स्तर पर महिलाओं द्वारा बैंक खातों के संचालन में NFHS-4 और NFHS-5 के बीच महत्त्वपूर्ण प्रगति (53% से बढ़कर 79%) दर्ज की गई है।
    • दूसरे चरण के प्रत्येक राज्य और केंद्रशासित प्रदेश में 70% से अधिक महिलाओं के पास सक्रिय बैंक खाते मौजूद हैं।
  • एनीमिया: भारत के सभी राज्यों में एनीमिया की स्थिति बदतर हुई है (महिलाओं के लिये1 से बढ़कर 57% और पुरुषों के लिये 22.7 से बढ़कर 25%)। ज्ञात हो कि 20-40% एनीमिया को मध्यम माना जाता है।
    • केरल (39.4%) के अतिरिक्त अन्य सभी राज्य ‘गंभीर’ श्रेणी में शामिल हैं।

आगे की राह

  • बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिये एकीकृत प्रयास: NFHS के निष्कर्ष बालिकाओं की शिक्षा में मौजूद अंतराल को दूर करने और महिलाओं की खराब स्वास्थ्य स्थिति को संबोधित करने की तत्काल आवश्यकता की ओर ध्यान दिलाते हैं।
    • वर्तमान परिदृश्य में सभी स्वास्थ्य संस्थानों, शिक्षाविदों और स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संबद्ध अन्य भागीदारों की ओर से एकीकृत और समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है ताकि इन सेवाओं को सुलभ, किफायती और स्वीकार्य बनाया जा सके, विशेष रूप से उन लोगों के लिये जो आसानी से इसका वहन नहीं कर सकते।
  • महिलाओं के बीच प्रौद्योगिकी-आधारित सेवाओं को बढ़ावा देना: अगले कुछ वर्षों में मोबाइल प्रौद्योगिकी, बैंकिंग, शिक्षा और महिला आर्थिक सशक्तिकरण का संयोजन अनौपचारिक भेदभावपूर्ण मानदंडों को संबोधित कर सकने के लिये महत्त्वपूर्ण चालक होगा।
    • यद्यपि मोबाइल, इंटरनेट और बैंकिंग सुविधाओं का उपयोग करने वाली महिलाओं का प्रतिशत बढ़ा है, फिर भी यह अभी पुरुषों के बराबर नहीं है।
    • महिलाओं के बीच ऐसी सुविधाओं के उपयोग को बढ़ावा देने और उन्हें सहज करने पर पर्याप्त बल दिया जाना चाहिये क्योंकि ऐसे संसाधनों की उपलब्धता और उपयोग भी महिलाओं के सशक्तिकरण का एक संकेतक है।
  • विभिन्न मुद्दों को एक साथ सुलझाने की ज़रूरत: महिलाओं के विरुद्ध अपराध को केवल न्यायालय में नहीं सुलझाया जा सकता। आवश्यकता एक व्यापक दृष्टिकोण और पूरे पारितंत्र में बदलाव लाने की है।
    • विधि निर्माताओं, पुलिस अधिकारियों, फोरेंसिक विभाग, अभियोजकों, न्यायपालिका, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग, गैर-सरकारी संगठनों और पुनर्वास केंद्रों सहित सभी हितधारकों को एक साथ मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है।
  • भेदभावपूर्ण सामाजिक मानदंडों को संबोधित करना: महिलाओं को सशक्त बनाने और लैंगिक न्याय सुनिश्चित करने के लिये बाल विवाह और पक्षपातपूर्ण लिंग चयन जैसे हानिकारक अभ्यासों को संबोधित करना अनिवार्य है।
    • असमान शक्ति संबंधों, संरचनात्मक असमानताओं और भेदभावपूर्ण मानदंडों, दृष्टिकोण एवं व्यवहार को रूपांतरित करने की दिशा में कार्य कर महिलाओं और बालिकाओं के महत्त्व को संवृद्ध करने की आवश्यकता है।
    • इसके साथ ही, सकारात्मक पुरुषत्व और लैंगिक-समानता मूल्यों को बढ़ावा देने के लिये पुरुषों और बालकों के साथ विशेष रूप से उनके आरंभिक वर्षों में संलग्न होना महत्त्वपूर्ण है।
  • विविध आहार स्रोतों और पोषण परामर्श के समावेशन की आवश्यकता: WIFS के सेवा वितरण की निरंतरता के साथ ही सरकार की स्वास्थ्य और पोषण नीतियों को विविधिकृत आहार और शारीरिक गतिविधियों के दृढ़ अनुपालन पर बल देने की आवश्यकता है। इसमें स्थानीय स्तर पर उत्पादित फल एवं सब्जियाँ, मौसमी आहार और मोटे अनाज को संलग्न करना शामिल है।
    • इसे आगे सामुदायिक कार्यकर्ताओं द्वारा घरों के दौरे के माध्यम से किशोर लड़कियों के लिये प्रभावशील पोषण परामर्श, स्वस्थ आदतों एवं आहारों को बढ़ावा देने के लिये स्कूलों में एक सुदृढ़ पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण और समुदाय आधारित आयोजनों एवं ‘ग्रामीण स्वास्थ्य, स्वच्छता एवं पोषाहार दिवसों’ या पोषण पखवाड़े के माध्यम से वर्चुअल परामर्श एवं व्यापक पोषण परामर्श द्वारा पूरकता प्रदान किये जाने की आवश्यकता है।
  • नीतिगत हस्तक्षेपों में सुधार: हाल ही में महिलाओं के लिये विवाह की कानूनी आयु को 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष करने जैसे सुधारात्मक कदम स्वागतयोग्य हैं। महिला केंद्रित नीति निर्माण के साथ एक एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है जहाँ महिलाओं को निष्क्रिय लाभार्थी के रूप में नहीं देखा जाए, बल्कि समाज के लिये संभावनाशील योगदानकर्ता के रूप में देखा जाए।

निष्कर्ष

सभी नीतियों और हस्तक्षेपों के साथ ही यह सुनिश्चित करना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है कि बालिकाएँ स्कूल में बनी रहें या औपचारिक शिक्षा पूरी करें, उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जाए और उनके स्वास्थ्य एवं पोषण को प्राथमिकता दी जाए। तभी ऐसे उपाय बालिकाओं को उनके पोषण और स्वास्थ्य परिणामों में सुधार के अवसर प्रदान कर सकते हैं।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘समाज में महिलाओं के साथ पारंपरिक रूप से भेदभाव किया जाता रहा है और उन्हें राजनीतिक एवं परिवार संबंधी निर्णयों से बाहर रखा जाता है। महिला-विषयक विभिन्न चिंताओं में से उनके अपर्याप्त पोषण का विषय भी एक प्रमुख चिंता है।’’ व्याख्या कीजिये।