भारत-यूरोपीय संघ (EU) की रणनीतिक साझेदारी का भविष्य | 16 Jun 2025

यह संपादकीय 16/06/2025 को द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित "यूरोप का पुनः सैन्यीकरण: भारत को निर्यात और संयुक्त अनुसंधान के अवसरों का लाभ उठाना चाहिये" पर आधारित है। यह लेख भारत-यूरोपीय संघ की विकसित होती रणनीतिक साझेदारी को रेखांकित करता है, जहाँ यूक्रेन युद्ध के बाद यूरोप की रक्षा पहल भारत के बढ़ते रक्षा निर्यात के साथ मेल खाती है, जिससे सहयोग के नये आयाम खुलते हैं।

प्रारंभिक परीक्षा:

भारत और यूरोपीय संघ, गुटनिरपेक्ष आंदोलन, भारत-यूरोपीय संघ रणनीतिक साझेदारी, G-20, संयुक्त राष्ट्र, विश्व व्यापार संगठन, भारत-यूरोपीय संघ स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु साझेदारी, व्यापार और आर्थिक साझेदारी समझौता, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद 

मुख्य परीक्षा:

भारत-यूरोपीय संघ रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ाने वाली प्रमुख शक्तियाँ, भारत और यूरोपीय संघ के बीच टकराव के प्रमुख क्षेत्र।  

भारत और यूरोपीय संघ अपनी रणनीतिक साझेदारी में एक परिवर्तनकारी अवस्था देखी जा रही है, जो उच्च स्तरीय राजनयिक आदान-प्रदान और यूक्रेन संघर्ष के बाद यूरोप की तत्काल रक्षा तत्परता लक्ष्यों द्वारा संचालित है। यूरोपीय संघ के महत्त्वाकांक्षी संयुक्त श्वेत पत्र में वर्ष 2030 तक रक्षा निवेश में 800 बिलियन यूरो का लक्ष्य रखा गया है, जो भारत के बढ़ते रक्षा निर्यात के लिये अभूतपूर्व अवसर प्रस्तुत करता है, जो हाल ही में रिकॉर्ड 2.76 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया है। भारत की बढ़ती रक्षा क्षमता और यूरोप की रणनीतिक स्वायत्तता आकांक्षाओं का यह अभिसरण दोनों पक्षों को वैश्विक सहयोग की गतिशीलता को नया आकार देने की स्थिति में लाता है।

समय के साथ भारत-यूरोपीय संघ के संबंध कैसे विकसित हुए?

  • प्रारंभिक राजनयिक जुड़ाव (1947-1990 का दशक):  यूरोपीय आर्थिक समुदाय (EEC) और यूरोपीय संघ के साथ भारत के संबंध वर्ष 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद औपचारिक राजनयिक मान्यता के साथ शुरू हुए। 
    • शीत युद्ध के काल में भारत की विदेश नीति मुख्यतः गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के साथ जुड़ी हुई थी और CEE देशों के साथ उसके संबंध मुख्यतः संप्रभुता, उपनिवेशवाद-विरोध और वैश्विक शांति में साझा हितों से प्रेरित थे। 
    • भारत ने पश्चिमी ब्लॉक और पूर्वी यूरोप के समाजवादी राज्यों दोनों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखे। 
  • शीत युद्धोत्तर संक्रमण (1990-2000 का दशक): शीत युद्ध की समाप्ति और वर्ष 1990 के दशक के प्रारंभ में सोवियत संघ के विघटन ने वैश्विक भूराजनीति में बदलाव को चिह्नित किया और भारत ने अधिक आर्थिक उदारीकरण और वैश्विक अर्थव्यवस्था में एकीकरण की दिशा में अपनी विदेश नीति को पुनः उन्मुख करना आरंभ कर दिया।
    • वर्ष 1990 के दशक में भारत ने CEE देशों के साथ आर्थिक कूटनीति पर अधिक ध्यान देना शुरू किया। 
    • यह परिवर्तन भारत द्वारा सोवियत संघ जैसे पारंपरिक साझेदारों से परे अपने व्यापार और निवेश संबंधों में विविधता लाने के प्रयासों के कारण हुआ। 
    • यद्यपि आर्थिक साझेदारी स्थापित करने में रुचि थी, लेकिन राजनीतिक संबंध गौण बने रहे, क्योंकि भारत ने अपनी "पूर्व की ओर देखो" नीति और दक्षिण-दक्षिण सहयोग पर ध्यान केंद्रित किया।
  • भारत-यूरोपीय संघ रणनीतिक साझेदारी (2000 से वर्तमान तक): 2000 के दशक में भारत और यूरोपीय संघ के संबंधों में महत्त्वपूर्ण बदलाव आया, विशेष रूप से 2004 में भारत-EU रणनीतिक साझेदारी की स्थापना के बाद।
    • इस अवधि में भारत का मध्य एवं पूर्वी यूरोपीय (CEE) देशों के साथ संबंध अधिक क्षेत्रीय दृष्टिकोण से विकसित हुआ, जिसमें रक्षा, ऊर्जा और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा मिला।
      • पोलैंड, हंगरी और चेक गणराज्य जैसे देश भारत के लिये प्रमुख व्यापार और निवेश साझेदार के रूप में उभरे, विशेष रूप से उद्योग, प्रौद्योगिकी और ऊर्जा क्षेत्रों में।
  • 2010 के बाद: संबंधों का विस्तार और विविधीकरण: 2010 के दशक में भारत की विदेश नीति ने विविधीकरण और बहुपक्षीयता की ओर रुख किया, जिससे भारत और CEE देशों के साथ-साथ EU के साथ संबंधों को वैश्विक रणनीति के हिस्से के रूप में शामिल किया गया।
    • EU के भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदार बनने के साथ, भारत ने व्यक्तिगत CEE देशों के साथ संबंधों का लाभ उठाकर यूरोप में अपना आर्थिक प्रभाव बढ़ाने का प्रयास किया। 
    • भारत और EU ने जलवायु परिवर्तन, साइबर सुरक्षा, आतंकवाद विरोधी कार्रवाई और सतत् विकास जैसे वैश्विक मुद्दों पर सहयोग बढ़ाया। 2016 में दोनों ने ‘स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु साझेदारी’ शुरू की, जो स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों, नवीकरणीय ऊर्जा निवेश और जलवायु अनुकूलन उपायों पर केंद्रित है।
  • हालिया घटनाक्रम और भविष्य की संभावनाएं: हाल के वर्षों में भारत और EU के संबंध अधिक रणनीतिक और बहुआयामी साझेदारी में बदल गये हैं।
    • G20, संयुक्त राष्ट्र (UN), और विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसे बहुपक्षीय मंचों पर भारत की बढ़ती भूमिका ने EU की भारत में साझेदारी की रुचि को और सशक्त किया है।
    • भारत ने CEE देशों के साथ रक्षा और सुरक्षा सहयोग को मज़बूत किया है, विशेष रूप से रूस पर निर्भरता कम करने के दृष्टिकोण से।
      • EU की "भूराजनीतिक रणनीति" और चीन के प्रभाव को संतुलित करने की मंशा ने भारत को EU की इंडो-पैसिफिक रणनीति में एक महत्त्वपूर्ण साझेदार के रूप में स्थापित किया है। 

भारत-यूरोपीय संघ सामरिक साझेदारी को आगे बढ़ाने वाली प्रमुख शक्तियाँ कौन-सी हैं?

  • भूराजनीतिक बदलाव और साझा रणनीतिक हित: चीन के आक्रामक रुख और अमेरिकी विदेश नीति की अनिश्चितता जैसे वैश्विक कारकों ने भारत और EU को आपसी रणनीतिक साझेदारी मज़बूत करने की दिशा में प्रेरित किया है।
    • दोनों पक्ष चीन के उदय और रूस की गतिविधियों को लेकर चिंतित हैं (हालाँकि दृष्टिकोण में कुछ अंतर है)।
    • EU जहाँ चीन को एक प्रणालीगत प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखता है, वहीं भारत इंडो-पैसिफिक में चीन के प्रभाव को संतुलित करने हेतु एक विश्वसनीय साझेदार के रूप में उभर रहा है।
    • उदाहरणस्वरूप, 2023 में भारत ने EU के इंडो-पैसिफिक ओशंस इनिशिएटिव (IPOI) और समुद्री सुरक्षा रणनीति में भागीदारी की, जो साझा रणनीतिक प्राथमिकताओं को दर्शाता है।
      • यह साझेदारी दोनों के बीच संयुक्त सुरक्षा ढाँचे के बढ़ते महत्त्व को रेखांकित करती है।
  • डिजिटल परिवर्तन और तकनीकी सहयोग: भारत का तीव्र डिजिटल परिवर्तन यूरोपीय संघ के साथ उसके संबंधों के लिये एक प्रमुख उत्प्रेरक बन गया है, क्योंकि दोनों ही देश डिजिटल समावेशन को बढ़ावा देते हुए तकनीकी संप्रभुता को मज़बूत करना चाहते हैं। 
    • डेटा संरक्षण और विनियामक ढाँचे पर ज़ोर देने वाले यूरोपीय संघ और इंडिया स्टैक जैसे विशाल डिजिटल बुनियादी ढाँचे के साथ भारत, डिजिटल शासन को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में साझा कार्य का एक उदाहरण है।
    • वर्ष 2022 में शुरू की गई भारत-यूरोपीय संघ व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद (TTC) डिजिटल शासन, AI और साइबर सुरक्षा की चुनौतियों के प्रबंधन में संयुक्त प्रयास का एक उदाहरण है। 
      • वैश्विक स्तर पर 50% डिजिटल लेन-देन भारत की UPI प्रणाली के माध्यम से होने के कारण, EU भारत को फिनटेक क्षेत्र में अग्रणी मानता है। 
  • जलवायु परिवर्तन और हरित संक्रमण सहयोग: भारत और यूरोपीय संघ दोनों ही जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिये प्रतिबद्ध हैं, जिसमें शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने और सतत् ऊर्जा समाधानों का समर्थन करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। 
    • यूरोपीय संघ की महत्त्वाकांक्षी ग्रीन डील भारत के सतत् विकास उद्देश्यों के अनुरूप है तथा यह स्वच्छ ऊर्जा, हरित प्रौद्योगिकियों और जलवायु वित्तपोषण पर सहयोग के लिये एक मंच प्रदान करती है। 
    • वर्ष 2021 में, हरित हाइड्रोजन और ऊर्जा-कुशल समाधानों पर ज़ोर देते हुए भारत-यूरोपीय संघ स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु साझेदारी को सुदृढ़ किया गया।
      • संयुक्त अनुसंधान एवं विकास के माध्यम से भारत के इस्पात क्षेत्र को कार्बन मुक्त बनाने में सहायता करने की यूरोपीय संघ की प्रतिबद्धता, उत्सर्जन कम करने पर साझा दृष्टिकोण का उदाहरण है। 
  • सुरक्षा और रक्षा सहयोग: भारत-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा परिदृश्य तेजी से महत्त्वपूर्ण हो गया है, भारत और यूरोपीय संघ दोनों समुद्री सुरक्षा और आतंकवाद-रोध को प्राथमिकता दे रहे हैं। 
    • वैश्विक सुरक्षा गतिशीलता में बदलाव के कारण भारत ने अपनी रक्षा साझेदारियों में विविधता ला दी है, जिसमें उन्नत प्रौद्योगिकी और सैन्य सहयोग प्रदान करने में यूरोपीय संघ ने प्रमुख भूमिका निभाई है। 
      • वर्ष 2023 में एक उल्लेखनीय विकास अदन की खाड़ी में इसी प्रकार के अभियानों के बाद गिनी की खाड़ी में संयुक्त नौसैनिक अभ्यास था। 
    • वित्त वर्ष 2024-25 में भारत का रक्षा निर्यात लगभग 2.76 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ जाने के साथ, यूरोपीय संघ को रक्षा प्रौद्योगिकी और उपकरण सह-उत्पादन में एक महत्त्वपूर्ण भागीदार के रूप में देखा जा रहा है।
  • बढ़ता व्यापार और निवेश: भारत और यूरोपीय संघ दोनों अपने आर्थिक संबंधों को मज़बूत करना चाहते हैं। 
    • यूरोपीय संघ भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक है, जबकि भारत यूरोपीय वस्तुओं और सेवाओं के लिये एक महत्त्वपूर्ण बाज़ार बनता जा रहा है। 
    • प्रस्तावित भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौता (FTA) जैसे व्यापार समझौते इन संबंधों को बढ़ाने का केंद्र बिंदु हैं।
      • भारत-यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ ने मार्च 2024 में  एक व्यापार और आर्थिक साझेदारी समझौते (TEPA) पर हस्ताक्षर किये, जो महत्त्वपूर्ण प्रगति का संकेत है।

भारत और यूरोपीय संघ के बीच टकराव के प्रमुख क्षेत्र कौन से हैं? 

  • व्यापार बाधाएँ और एफटीए पर धीमी प्रगति: भारत और यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार समझौते (FTA) की वार्ता कई व्यापार बाधाओं के कारण बाधित हुई है।
    • भारत को यूरोपीय संघ द्वारा लगाए गए गैर-टैरिफ अवरोधों (NTBs) का सामना करना पड़ रहा है, विशेष रूप से श्रम और पर्यावरण मानकों के संबंध में। 
    • पिछले दशक में यूरोपीय संघ और भारत के बीच वस्तुओं के व्यापार में लगभग 90% की वृद्धि हुई है, फिर भी भारत यूरोपीय संघ का नौवाँ सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जो यूरोपीय संघ के कुल व्यापार का मात्र 2.2% है , जो व्यापार प्रवाह में असंतुलन का संकेत देता है जिसे एफटीए के माध्यम से संबोधित करने की आवश्यकता है।
  • पर्यावरणीय मानक बनाम आर्थिक विकास: यूरोपीय संघ की कठोर पर्यावरणीय नीतियाँ, जैसे कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM), भारत के औद्योगिक विकास में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं।
    • भारत के इस्पात क्षेत्र को यूरोपीय संघ द्वारा लगाए गए कार्बन टैरिफ के कारण बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। 
    • वर्ष 2023 में, यूरोपीय संघ द्वारा वनों की कटाई-मुक्त उत्पाद विनियमन लागू करने से भारत के लगभग 1.3 बिलियन डॉलर मूल्य के निर्यात पर प्रभावित हो सकता है, जिसमें पाम ऑयल और कोको जैसी वस्तुएँ भी शामिल हैं। 
  • वैश्विक संघर्ष के प्रति भिन्न दृष्टिकोण: रूस-यूक्रेन संघर्ष पर भारत का तटस्थ रुख यूरोपीय संघ के साथ टकराव का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत रहा है। 
    • जबकि यूरोपीय संघ यूक्रेन की संप्रभुता का समर्थन करता है, भारत कूटनीति पर जोर देता है तथा रूस के खिलाफ प्रतिबंध लगाने से परहेज करता है। 
    • भारतीय विदेश मंत्री का यह वक्तव्य, "कहीं न कहीं यूरोप को इस मानसिकता से बाहर निकलना होगा कि यूरोप की समस्याएँ विश्व की समस्याएँ हैं, लेकिन विश्व की समस्याएं यूरोप की समस्याएं नहीं हैं," वैश्विक मुद्दों के प्रति व्यापक, अधिक समावेशी दृष्टिकोण की आवश्यकता पर भारत के दृष्टिकोण को दर्शाता है। 
  • बौद्धिक संपदा और डेटा अभिशासन तनाव: भारत के डिजिटल क्षेत्र को यूरोपीय संघ के कड़े बौद्धिक संपदा (IP) कानूनों और डेटा गोपनीयता नियमों, विशेष रूप से सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन के कारण काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है । 
    • यूरोपीय संघ की नियामक बाधाओं ने भारतीय प्रौद्योगिकी कंपनियों के यूरोपीय बाजारों में प्रवेश को धीमा कर दिया है। 
    • इसके अलावा, इसके बौद्धिक संपदा नियम भारतीय दवा निर्यात को भी प्रभावित करते हैं, विशेष रूप से जेनेरिक दवाओं के निर्यात को, जो भारत के दवा व्यापार का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। 
  • वैश्विक शासन प्राथमिकताओं में भिन्नता: भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) जैसी वैश्विक संस्थाओं में सुधार का प्रबल समर्थक रहा है तथा अपने लिये स्थायी सीट चाहता है, जबकि यूरोपीय संघ, हालाँकि कुछ सुधारों का समर्थक है, परन्तु वह हमेशा भारत के विशिष्ट सुधार एजेंडे के साथ संरेखित नहीं रहा है।
    • भारत का बढ़ता वैश्विक प्रभाव यूरोपीय संघ की स्थिति के विपरीत है, जिसके कारण कभी-कभी वैश्विक शासन के लिये भिन्न दृष्टिकोण सामने आते हैं।

यूरोप के साथ संबंध सुदृढ़ करने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?

  • भारत को यूरोपीय संघ (EU) के साथ एक संतुलित एवं व्यावहारिक मुक्त व्यापार समझौता (FTA) करने के लिए विशेष रूप से गैर-शुल्कीय बाधाओं, कृषि और सेवाओं से संबंधित नियामक मानकों में लचीलापन अपनाते हुए वार्ताओं को गति प्रदान करनी चाहिये।
    • भारत को स्थिरता एवं श्रम संबंधी मानकों को चरणबद्ध ढंग से लागू करने का प्रस्ताव रखना चाहिये, ताकि वह अपनी प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता बनाए रखते हुए धीरे-धीरे EU मानकों के अनुरूप हो सके।
    • यह रणनीति भारतीय वस्तुओं एवं सेवाओं के लिए यूरोपीय बाज़ार तक आसान पहुँच सुनिश्चित करेगी तथा दीर्घकालिक आर्थिक स्थायित्व एवं द्विपक्षीय संबंधों की मजबूती में सहायक होगी।
  • प्रौद्योगिकी साझेदारी और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र पर बल:भारत को कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), क्वांटम कंप्यूटिंग और साइबर सुरक्षा जैसी उभरती एवं संवेदनशील प्रौद्योगिकियों में EU के साथ सहयोग को तीव्र करना चाहिये।
    • EU के साथ एक मजबूत नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करके, भारत अपने प्रौद्योगिकी क्षेत्र की प्रगति का लाभ उठाते हुए डिजिटल आधारभूत संरचना को सुदृढ़ कर सकता है और वैश्विक प्रौद्योगिकी शासन में योगदान दे सकता है।
    • प्रमुख क्षेत्रों में संयुक्त अनुसंधान केंद्रों और नवाचार हब की स्थापना आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ भारत की प्रौद्योगिकीय संप्रभुता को भी सुदृढ़ करेगी और EU-भारत रणनीतिक साझेदारी को नया आयाम देगी।
  • हरित परिवर्तन एवं संयुक्त जलवायु कार्रवाई पहल को बढ़ावा देना: संबंधों को मजबूत करने के लिये, भारत को स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों, नवीकरणीय ऊर्जा निवेश तथा जलवायु लचीलापन परियोजनाओं में सहयोग को गहरा करके यूरोपीय संघ के साथ संयुक्त जलवायु कार्रवाई का नेतृत्व करना चाहिये। 
    • यूरोपीय संघ के ग्रीन डील के साथ तालमेल स्थापित करके, भारत अत्याधुनिक हरित प्रौद्योगिकी तथा ग्रीन क्लाइमेट फंड जैसे वित्तीय तंत्रों तक पहुँच प्राप्त कर सकता है, जिससे अपने जलवायु लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में सहायता मिलेगी।
    • यह सहयोग यूरोपीय संघ को शून्य उत्सर्जन (net-zero emissions) प्राप्त करने में सहयोग देगा, साथ ही भारत को अपनी विकासात्मक तथा सतत् प्राथमिकताओं को संबोधित करने में भी सक्षम बनाएगा।
  • एक समग्र प्रवासन एवं गतिशीलता ढाँचा विकसित करना: भारत को यूरोपीय संघ के साथ एक दूरदर्शी प्रवासन एवं गतिशीलता समझौते पर बातचीत करनी चाहिये, जो श्रम बाज़ार की आवश्यकताओं के साथ  भारत की जनसांख्यिकीय विशेषताओं के बीच संतुलन स्थापित करे। 
    • कुशल भारतीय श्रमिकों, पेशेवरों एवं छात्रों के लिये समझौते सुनिश्चित करके भारत, यूरोप की कौशल की कमी को दूर करने में सहायता प्रदान कर सकता है, साथ ही अपने विदेशी मुद्रा प्रेषण स्रोतों को भी सशक्त बना सकता है।
    • योग्यताओं की पारस्परिक मान्यता, वीजा जारी करने में सरलता तथा अस्थायी श्रमिकों की आवाजाही में वृद्धि के लिये एक संरचित ढाँचे की स्थापना आर्थिक सहयोग को मज़बूत करेगी और साथ ही  सामाजिक-सांस्कृतिक संबंधों को भी प्रगाढ़ बनाएगी।
  • यूरोपीय संघ के साथ ऊर्जा एवं संपर्क पहलों का समेकन करना: भारत को यूरोपीय संघ के साथ ऊर्जा अवसंरचना, विशेषकर नवीकरणीय ऊर्जा, स्मार्ट ग्रिड्स तथा भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) जैसे क्षेत्रीय संपर्क परियोजनाओं को शीघ्र गति देने में सहयोग को गहरा करना चाहिये।
    • ऊर्जा सुरक्षा के क्षेत्र में यूरोपीय संघ (EU) के साथ सहयोग करते हुए, भारत सीमापार ऊर्जा ढाँचे के विकास एवं हरित हाइड्रोजन को बढ़ावा देने जैसे उपायों के माध्यम से अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है, साथ ही यूरोप की ऊर्जा संक्रमण प्रक्रिया में भी योगदान दे सकता है।
    • ये प्रयास भारत की यूरोप के साथ कनेक्टिविटी को भी विस्तार देंगे तथा ऊर्जा सुरक्षा के क्षेत्र में भारत की भूमिका को एक रणनीतिक साझेदार के रूप में और अधिक सशक्त करेंगे।
  • संयुक्त रक्षा औद्योगिक सहयोग को बढ़ावा: भारत को यूरोपीय संघ के साथ मज़बूत रक्षा औद्योगिक सहयोग की दिशा में प्रयास करना चाहिये, विशेष रूप से एयरोस्पेस, रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स तथा साइबर क्षमताओं जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में सह-उत्पादन एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर ज़ोर देना चाहिये।
    • एक ऐसा मंच बनाकर जो रक्षा अनुसंधान एवं विकास (R&D) सहयोगों को प्रोत्साहित करे और संयुक्त रक्षा खरीद प्रक्रियाओं को सरल बनाए, भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि उसकी रक्षा उद्योग को उन्नत तकनीकों तक पहुँच मिले। साथ ही, यह यूरोपीय संघ (EU) की रक्षा पहलों में भी योगदान देगा।
    • यह दृष्टिकोण विशेषकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की भूमिका को EU की रक्षा रणनीति में एक साझेदार के रूप में सुदृढ़ करेगा।
  • सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग: भारत को अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को सुरक्षित रखते हुए, EU के साथ रक्षा एवं सुरक्षा मामलों में घनिष्ठ सहयोग करना चाहिये।
    • संयुक्त सैन्य अभ्यासों, समुद्री सुरक्षा पहलों और साझा सुरक्षा खतरों पर खुफिया जानकारी साझा कर रक्षा सहयोग को प्रगाढ़ किया जा सकता है।
    • एक व्यापक सुरक्षा समझौते की स्थापना से भारत EU की हिंद-प्रशांत रणनीति में एक प्रमुख साझेदार की भूमिका निभा सकेगा, जो भू-राजनीतिक हितों और नियम-आधारित वैश्विक व्यवस्था दोनों को संतुलित करेगा।

निष्कर्ष: 

भारत-EU रणनीतिक साझेदारी एक निर्णायक मोड़ पर है, जिसे साझा भू-राजनीतिक हितों, आर्थिक सहयोग और तकनीकी नवाचार की गति प्राप्त है। जैसे-जैसे दोनों पक्ष वैश्विक चुनौतियों की जटिलताओं से जूझ रहे हैं, उनके सहयोग की यह प्रगति क्षेत्रीय और वैश्विक परिदृश्यों को पुनः परिभाषित करने की सामर्थ्य रखती है। रक्षा, व्यापार और जलवायु कार्यवाही जैसे क्षेत्रों में संबंधों को सुदृढ़ करके, भारत और यूरोपीय संघ एक समावेशी समृद्धि और सुरक्षा के भविष्य की नींव रख सकते हैं।

दृष्टि मेंस प्रश्न: 

Q. भारत-यूरोपीय संघ संबंधों में प्रमुख प्रेरक कारक तथा टकराव के क्षेत्रों का परीक्षण कीजिये। वर्तमान वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत यूरोपीय संघ के साथ अपनी साझेदारी को किस प्रकार सशक्तीकरण कर सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स:

Q. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023)

यूरोपीय संघ का 'स्थिरता एवं संवृद्धि समझौता (स्टेबिलिटी ऐंड ग्रोथ पैक्ट)' ऐसी संधि है, जो

  1. यूरोपीय संघ के देशों के बजटीय घाटे के स्तर को सीमित करती है
  2.  यूरोपीय संघ के देशों के लिये अपनी आधारिक संरचना सुविधाओं को आपस में बाँटना सुकर बनाती है
  3.  यूरोपीय संघ के देशों के लिये अपनी प्रौद्योगिकियों को आपस में बाँटना सुकर बनाती है

उपर्युक्त में से कितने कथन सही है?

(a) केवल एक
(b) केवल दो
(c) सभी तीन
(d) कोई भी नहीं

व्याख्या: (a)