यौन अपराधों के लिये मृत्युदंड | 09 Jan 2021

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में यौन अपराधों के मामलों में मृत्युदंड के प्रावधान व इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ:

महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन अपराध मानवता के विरुद्ध सबसे जघन्य अपराधों में से एक है। ऐसे में इस तरह की चुनौतियों को दूर करना जनता के हित में होता है और यौन अपराधों पर नियंत्रण के लिये मृत्युदंड की मांग को बढ़ावा देता है।

इसी संदर्भ में 10 दिसंबर, 2020 को मानवाधिकार दिवस के अवसर पर महाराष्ट्र मंत्रिमंडल द्वारा ‘शक्ति विधेयक’ को मंजूरी दी गई है, जो बलात्कार के गैर-घातक मामलों (वैवाहिक दुष्कर्म को छोड़कर) में कठोर और अनिवार्य दंड के दायरे को बढ़ाता है, जिसमें मृत्युदंड भी शामिल है। शक्ति विधेयक ऐसे समय में आया है जब देश के अन्य कई राज्यों में यौन अपराधों में मृत्युदंड देने के लिये विधायी प्रस्ताव लाए गए हैं। उदाहरण के लिये आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2020 में दिशा विधेयक (वर्तमान में राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिये लंबित) पारित किया गया, यह विधेयक वयस्क महिलाओं से बलात्कार के मामलों में मृत्युदंड का प्रावधान करता है। हालाँकि मृत्युदंड के प्रावधान को लाया जाना ही अंतिम समाधान नहीं है बल्कि यह गंभीर मुख्य समस्याओं और दीर्घकालिक समाधानों से हमारा ध्यान हटाता है। साथ ही यह संकेत देता है कि ऐसे अपराधों का मुख्य कारण कठोर दंड प्रावधानों का न होना है।

यौन अपराधों के लिये मृत्युदंड से जुड़ी चुनौतियाँ:

  • पीड़ितों को अधिक नुकसान पहुँचने की संभावना: महिला अधिकार समूहों का तर्क है कि यौन अपराधों में कमी लाने के लिये मृत्युदंड का प्रावधान एक प्रतिक्रियावादी और लोकलुभावन समाधान है।
    • इसके अलावा बाल-अधिकार कार्यकर्त्ता इस बात पर ज़ोर देते हैं कि गैर-घातक बलात्कार के लिये मृत्युदंड का प्रावधान किये जाने से बलात्कार के अपराधियों द्वारा पीड़ितों को गवाही देने से रोकने के लिये उनकी हत्या भी की जा सकती है।
  • मृत्युदंड और पूर्वाग्रह की समस्या: कठोर दंड के प्रावधानों को लागू किया जाना न्यायाधीशों और पुलिस के मन से प्रणालीगत पूर्वाग्रहों को दूर नहीं करता है।
    • सामान्यतः पुलिस शिकायत दर्ज करने से इनकार कर सकती है या ऐसे मामलों में अपराधियों को बरी भी कर सकती है जिनमें वह मामले को अनिवार्य न्यूनतम कार्रवाई के लिये "गंभीर" नहीं मानती।
  • अपराध सिद्धि की निम्न दर: राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (National Crime Record Bureau-NCRB) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, यौन अपराध के 93.6% मामलों में पीड़ित का कोई करीबी (रिश्ते या सहकर्मी आदि के संदर्भ में) ही अपराधी होता है।
    • ऐसे में यौन अपराधों के लिये मृत्युदंड का प्रावधान शिकायतकर्त्ताओं को शिकायत दर्ज करने से रोक सकता है।
  • न्याय मिलने में देरी: किसी भी मामले में मृत्युदंड के निष्पादन की प्रक्रिया अपील के कई चरणों और क्षमादान प्राप्त करने के विकल्पों के बाद शुरू होती है।
    • प्रतिवादी को सभी कानूनी उपायों के प्रयोग के लिये दिये जाने वाले समय के कारण न्यायिक प्रक्रिया के पूरे होने और फैसला आने में काफी समय लग जाता है।
    • इसके कारण तत्काल प्रतिशोध की घटनाओं में वृद्धि भी देखी जा सकती है, उदाहरण के लिये वर्ष 2019 के अंत में हैदराबाद में सामूहिक बलात्कार और हत्या के संदिग्धों की न्यायेतर हत्या।
  • प्रतिगामी कदम: वर्ष 2012 के निर्भया मामले के बाद गठित जस्टिस वर्मा समिति (Justice Verma Committee) ने यौन हिंसा पर कई सिफारिशें प्रस्तुत कीं, साथ ही समिति ने ऐसे अपराधों को रोकने में मृत्युदंड के हतोत्साही या निवारक प्रभाव को "एक मिथक" बताया था।
    • इस रिपोर्ट में समिति ने कहा कि गैर-घातक मामलों में मृत्युदंड को लागू करना एक प्रतिगामी कदम होगा।

शक्ति विधेयक से जुड़े अन्य मामले:

  • इस विधेयक में महिला विरोधी एक अन्य बात दिखाई देती है कि यह विधेयक वयस्क अपराधी और पीड़ित के मामले में सकारात्मक सहमति के मानक से परे है।
    • महिला आंदोलनों के व्यापक प्रयासों के बाद सकारात्मक सहमति के मानकों को स्थापित किया जा सका, जो महिला द्वारा शब्दों, संकेत, मौखिक या गैर-मौखिक संचार के किसी भी रूप में स्पष्ट स्वैच्छिक सहमति पर आधारित है।
  • इससे बिलकुल पीछे हटते हुए विधेयक यह निर्धारित करता है कि मान्य सहमति को "पक्षों के आचरण" और " परिस्थितियों" के आधार पर परिकल्पित किया जा सकता है।
  • बलात्कार से जुड़े मामलों की सुनवाई अभी भी स्त्री विद्वेष की धारणाओं से प्रेरित होती है, जिसमें ऐसे अपराधों का सामना करने के दौरान पीड़ित के चोटिल होने, अनिवार्य रूप से विरोध करने, और शारीरिक रूप से व्यथित होने की उम्मीद जताई जाती है।
  • अतः इस विधेयक की अस्पष्ट व्याख्या ऐसे अपराधों का सामना कर चुके लोगों से केवल एक विशेष तरीके से जवाब देने की अपेक्षा करते हुए खतरनाक संभावनाएँ प्रस्तुत करता है।

आगे की राह:

  • न्याय वितरण प्रणाली की कमियों को दूर करना: न्याय वितरण प्रणाली की सबसे गंभीर कमी और चुनौती पुलिस में शिकायत दर्ज कराना है। अतः आपराधिक न्याय प्रणाली को अपना ध्यान सज़ा सुनाने और उसके निष्पादन से हटाकर मामलों की रिपोर्टिंग, जाँच तथा पीड़ित-सहायता तंत्र के विभिन्न चरणों पर केंद्रित किये जाने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में निम्नलिखित उपायों को सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है:
    • पीड़ित बिना किसी भय के मामले की रिपोर्ट दर्ज करा सके।
    • पुलिस द्वारा मामले की विधिवत जाँच की जाए।
    • केस की सुनवाई के दौरान पीड़ित की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
    • जहाँ तक संभव हो गवाही की आसान और शीघ्र व्यवस्था करना।
    • वर्तमान में उपलब्ध संसाधनों की तुलना में अधिक संसाधनों का आवंटन और कानूनों का अधिक मज़बूती से कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जाना।
  • व्यापक स्तर पर संवेदनशीलता: मृत्युदंड के दायरे में विस्तार के बावजूद समाज में पूर्वाग्रहों को दूर करने के लिये बहुत ही कम प्रयास किये गए हैं।
    • यौन अपराधों के खिलाफ समाज में व्याप्त पूर्वाग्रहों को संबोधित करने के लिये न्याय प्रणाली में शामिल लोगों और उससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण समाज में संवेदीकरण को बढ़ावा दिये जाने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष:

  • महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों से निपटने के लिये मात्र सज़ा बढ़ाए जाने की बजाय, व्यापक सामाजिक सुधार, शासन के निरंतर प्रयासों और जाँच तथा रिपोर्टिंग तंत्र को मज़बूत करने की आवश्यकता है।

अभ्यास प्रश्न: यौन अपराध के मामलों में पीड़ितों की वास्तविक ज़रूरतों को पूरा करने में मृत्युदंड के प्रावधान की भूमिका बहुत ही सीमित होती है और इसके कई विकृत परिणामों की संभावना भी बनी रहती है, ऐसे में इस प्रावधान पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये।