फेक न्यूज पर अंकुश | 20 Mar 2023

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यह एडिटोरियल 18/02/2023 को इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित “Stronger laws to curb fake news” लेख पर आधारित है। इसमें ‘फेक न्यूज़’ के मुद्दे और इस पर अंकुश के तरीकों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

इंटरनेट युग में फ़र्ज़ी ख़बरों या ‘फेक न्यूज़’ (Fake News) का उभार एक नई सामाजिक बुराई के रूप में हुआ है जो हमें परेशान कर रही है।

  • हाल ही में एक फर्ज़ी वीडियो का प्रसार हुआ जिसमें दिखा कि तमिलनाडु में एक प्रवासी मज़दूर पर हमला किया जा रहा है।
  • मौजूदा स्थिति पर चिंतित तमिलनाडु सरकार ने अपने संदेश में कहा कि जो लोग यह अफवाह फैला रहे हैं कि तमिलनाडु में प्रवासी श्रमिकों पर हमला किया जा रहा है, वे भारतीय राष्ट्र के विरुद्ध हैं और वे देश की अखंडता को हानि पहुँचा रहे हैं।
  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2020 में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 505 के तहत ‘फर्ज़ी/झूठी ख़बर/अफवाह का प्रसार’ करने वाले लोगों के विरुद्ध दर्ज मामलों की संख्या में 214% की वृद्धि हुई।
  • भारत में फेक न्यूज़ के विरुद्ध सुदृढ़ कानूनों की ज़रूरत है, जबकि मीडिया संगठनों द्वारा तथ्य-परीक्षण (fact-checking) को एक नियमित अभ्यास के रूप में अपनाने और अधिक से अधिक जन जागरूकता का सृजन करने की आवश्यकता है।

भारत में फेक न्यूज़ पर अंकुश लगाने की राह की चुनौतियाँ

  • निम्न डिजिटल साक्षरता:
    • भारत की डिजिटल साक्षरता दर (Digital Literacy Rate) अभी भी कम है, जिससे फेक न्यूज़ का प्रसार आसान हो जाता है, क्योंकि लोगों के पास प्रायः समाचार स्रोतों की प्रामाणिकता को सत्यापित करने का कौशल नहीं होता है।
  • राजनीतिक उपयोग:
    • भारत में राजनीतिक उद्देश्यों के लिये, विशेषकर चुनावों के दौरान, फेक न्यूज़ का प्रायः उपयोग किया जाता है। राजनीतिक दल जनमत में हेरफेर के लिये फेक न्यूज़ का उपयोग करते हैं, जिससे उनके प्रसार को नियंत्रित करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • सीमित तथ्य-परीक्षण अवसंरचना:
    • भारत में तथ्य-परीक्षण अवसंरचना सीमित है और कई मौजूदा तथ्य-परीक्षण संगठन (PIB तथ्य-परीक्षण इकाइयाँ) आकार में छोटे हैं तथा वित्तपोषण की कमी का सामना कर रहे हैं।
  • दंड का अभाव:
    • वर्तमान में भारत में फेक न्यूज़ के प्रसार के लिये कठोर दंड का अभाव है, जिससे लोगों को फेक न्यूज़ सृजन और प्रसार से भय दिखाकर रोकना कठिन हो जाता है।
  • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की अस्पष्टता:
    • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तेज़ी से सार्वजनिक विमर्श का प्राथमिक आधार बनते जा रहे हैं, जिन पर मुट्ठी भर लोगों का अत्यधिक नियंत्रण है।
      • भ्रामक सूचनाओं पर अंकुश लगाने में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है सोशल मीडिया मंचों द्वारा पारदर्शिता की कमी।
      • ये मंच कुछ प्रकार की सूचना का खुलासा करते भी हैं तो डेटा को प्रायः इस तरीके से प्रस्तुत नहीं किया जाता है जो आसान विश्लेषण की सुविधा प्रदान करता हो।
  • अनामिकता या पहचान की गुप्तता (Anonymity):
    • पहचान की गुप्तता का सर्वप्रमुख कारण है प्रतिशोधी सरकारों के विरुद्ध सच बोलने में सक्षम होना या ऑनलाइन व्यक्त विचारों को ऑफ़लाइन दुनिया में वास्तविक व्यक्ति से संबद्ध किये जाने से बचना।
      • बिना किसी असुरक्षा के लोगों को अपने विचार साझा कर सकने में मदद करने के बावजूद, यह इस अर्थ में अधिक हानि करता है कि लोग बिना कोई परिणाम भुगते भ्रामक सूचनाओं का प्रसार कर सकते हैं।

इस संबंध में की गई प्रमुख पहलें

  • सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021:
    • सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 प्रस्ताव करता है कि प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) की तथ्य-परीक्षण इकाई द्वारा तथ्य-परीक्षण किये गए और इसमें भ्रामक या झूठे पाए गए कंटेंट को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से हटाना आवश्यक है।
    • इस नियम का उद्देश्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फेक न्यूज़ और भ्रामक सूचनाओं के प्रसार पर अंकुश लगाना है।
  • आईटी अधिनियम 2008:
    • आईटी अधिनियम 2008 की धारा 66D इलेक्ट्रॉनिक संचार से संबंधित अपराधों को नियंत्रित करती है।
    • इसमें संचार सेवाओं या सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से आपत्तिजनक संदेश भेजने वाले व्यक्तियों को दंडित करना शामिल है। इस अधिनियम का उपयोग इलेक्ट्रॉनिक संचार के माध्यम से फेक न्यूज़ फैलाने वाले लोगों को दंडित करने के लिये किया जा सकता है।
  • आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005:
    • आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 और महामारी रोग अधिनियम, 1897 (विशेषकर कोविड-19 के दौरान उपयोगी सिद्ध हुए) ऐसे फेक न्यूज़ या अफ़वाहों के प्रसार को नियंत्रित करते हैं जो नागरिकों में दहशत पैदा कर सकते हैं।
  • भारतीय दंड संहिता, 1860:
    • यह दंगों का कारण बनने वाली फर्ज़ी खबरों और मानहानि का कारण बनने वाली सूचनाओं को नियंत्रित करता है। इस एक्ट का इस्तेमाल उन लोगों को उत्तरदायी ठहराने के लिये किया जा सकता है जो फेक न्यूज़ फैलाकर हिंसा भड़काते हैं या किसी के चरित्र को बदनाम करते हैं।

आगे की राह

  • मीडिया साक्षरता को बढ़ावा देना:
    • फेक न्यूज़ का मुकाबला करने के लिये शिक्षा और जागरूकता महत्त्वपूर्ण साधन हैं। लोगों को यह सिखाया जाना चाहिये कि स्रोतों को को कैसे सत्यापित किया जाए, दावों का या तथ्य-परीक्षण कैसे किया जाए और विश्वसनीय एवं अविश्वसनीय समाचार स्रोतों के बीच के अंतर को कैसे समझें।
  • कानूनों को सशक्त करना:
    • फेक न्यूज़ के विरुद्ध भारत में कुछ कानून मौजूद हैं, लेकिन उन्हें और तत्परता से लागू करने की ज़रूरत है। तेज़ी से विकसित होते ऑनलाइन मीडिया परिदृश्य को संबोधित करने के लिये कानूनों को अद्यतन करते रहने की भी आवश्यकता है।
  • ज़िम्मेदार पत्रकारिता को प्रोत्साहन देना:
    • पत्रकारों को नैतिक मानकों का पालन करने और अपनी रिपोर्टिंग के लिये जवाबदेह होने की आवश्यकता है। मीडिया संगठन ज़िम्मेदार पत्रकारिता और तथ्य-परीक्षण को बढ़ावा देने में प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं।
  • सोशल मीडिया कंपनियों को कार्रवाई के लिये प्रोत्साहित करना:
    • फेक न्यूज़ की पहचान करने तथा उन्हें हटाने के लिये सोशल मीडिया मंचों को और अधिक सक्रिय होने की ज़रूरत है। वे फेक न्यूज़ की पहचान करने के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस साधनों का इस्तेमाल कर सकते हैं और न्यूज़ स्टोरीज़ को सत्यापित करने के लिये तथ्य-परीक्षण संगठनों के साथ मिलकर कार्य कर सकते हैं।
  • तथ्य-परीक्षणकर्त्ता संगठनों को प्रोत्साहित करना:
    • फैक्ट-चेकिंग संगठन समाचारों की पुष्टि करने और लोगों को फेक न्यूज़ के बारे में शिक्षित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इन संगठनों को सरकार और मीडिया द्वारा प्रोत्साहित एवं समर्थित किये जाने की आवश्यकता है।
    • पत्र सूचना कार्यालय (PIB) की तथ्य-परीक्षण इकाई ने नवंबर 2019 में अपनी स्थापना के बाद से अब तक गलत सूचना के 1,160 मामलों का भंडाफोड़ किया है।
  • ज़िम्मेदार सोशल मीडिया उपयोग को प्रोत्साहित करना:
    • व्यक्तियों को अपने सोशल मीडिया उपयोग के लिये ज़िम्मेदारी लेने की आवश्यकता है। उन्हें असत्यापित समाचारों को साझा करने से बचने और ऑनलाइन कंटेंट पर विवेकपूर्ण दृष्टिकोण रखने की आवश्यकता है।
  • आलोचनात्मक सोच की संस्कृति को बढ़ावा देना:
    • स्कूलों में और आम समाज में आलोचनात्मक सोच कौशल को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
    • लोगों को पढ़ी-सुनी गई बातों पर सवाल पूछ सकने और सूचना के विश्वसनीय स्रोतों की तलाश के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: फेक न्यूज़ और दुष्प्रचार के प्रसार को प्रभावी ढंग से रोकने की राह की प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं; इन चुनौतियों के समाधान के लिये कौन-सी रणनीतियाँ और समाधान नियोजित किये जा सकते हैं?

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मुख्य परीक्षा

प्र. "भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" की अवधारणा से आप क्या समझते हैं? क्या इसमें अभद्र भाषा भी शामिल है? भारत में फिल्में अभिव्यक्ति के अन्य रूपों से थोड़े अलग स्तर पर क्यों हैं? चर्चा कीजिये।  (वर्ष 2014)