डेली अपडेट्स

मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की आवश्यकता | 10 Oct 2020 | सामाजिक न्याय

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की आवश्यकता से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ 

मानसिक स्वास्थ्य जीवन की गुणवत्ता का मुख्य निर्धारक होने के साथ सामाजिक स्थिरता का भी आधार होता है। जिस समाज में मानसिक रोगियों की संख्या अधिक होती है वहाँ की व्यवस्था व विकास पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अभी हाल ही में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation-CBI) के महानिदेशक और नगालैंड राज्य के पूर्व राज्यपाल अश्विनी कुमार ने अवसाद से ग्रसित होने के कारण आत्महत्या कर ली। विगत कुछ वर्षों में मानसिक तनाव के कारण आत्महत्या या अन्य सामाजिक अपराधों की प्रवृत्ति में भी वृद्धि हुई है।

वैश्विक महामारी COVID-19 के दौरान इस समस्या में तीव्र वृद्धि देखने को मिली है। हाल ही में लैंसेट (Lancet)  द्वारा भारत में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति पर एक रिपोर्ट जारी की गई, रिपोर्ट में यह उल्लेख किया गया है कि वर्ष  201 7 तक भारत में 197.3 मिलियन लोग मानसिक विकारों से ग्रस्त थे, जो भारत की कुल जनसँख्या का 14.3 प्रतिशत था। विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-WHO) द्वारा जारी एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 तक भारत की लगभग 20 प्रतिशत आबादी मानसिक रोगों से पीड़ित होगी। 

इस आलेख में मानसिक स्वास्थ्य, भारत में मानसिक स्वास्थ्य की वर्तमान स्थिति, मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियाँ, समाज में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति अवधारणा तथा सरकार के प्रयासों का विश्लेषण किया जाएगा।

मानसिक स्वास्थ्य से तात्पर्य

भारत में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति 

मानसिक विकार के कारण  

मानसिक स्वास्थ्य के प्रति समाज की अवधारणा 

मानसिक विकार से संबंधित चुनौतियाँ

बजटीय व्यय की कमी

सरकार  द्वारा किये गए प्रयास 

आगे की राह 

प्रश्न-  भारत में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति का वर्णन कीजिये। क्या सामाजिक रूढ़िवादिता और पूर्वाग्रह इस समस्या को और जटिल बना रहे हैं। परीक्षण कीजिये।