अलगावादियों द्वारा दक्षिण यमन में स्व-शासन की घोषणा | 28 Apr 2020

प्रीलिम्स के लिये:

यमन संकट, अरब स्प्रिंग 

मेन्स के लिये:

यमन संकट का भारत पर प्रभाव 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यमन के ‘सदर्न ट्रांज़िशनल काउंसिल’ (Southern Transitional Council- STC) अलगाववादी समूह ने घोषणा की है कि वह अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों में स्व-शासन स्थापित करेगा।

मुख्य बिंदु:

  • STC ने अपनी सेनाओं को दक्षिणी बंदरगाह ‘अदन’ (Aden) के लिये रवाना किया है। 
  • STC सऊदी अरब के नेतृत्व वाले गठबंधन के प्रमुख समूहों में से एक है जो हूती (Houthi) विद्रोहियों के खिलाफ लड़ रहा है।
  • सऊदी अरब के नेतृत्त्व वाले गठबंधन ने COVID-19 महामारी के चलते संयुक्त राष्ट्र की पहल पर एक तरफ  युद्ध विराम की घोषणा की थी तथा उसे पुन: एक महीने के लिये और बढ़ा दिया लेकिन हूती विद्रोहियों ने इस बात को स्वीकार नहीं किया और हिंसा जारी रही है। 

यमन संकट: 

  • अरब क्षेत्र के लोकतांत्रिक आंदोलन; जिसे ‘अरब स्प्रिंग’ (Arab Spring) के रूप में जाना जाता है, के बाद यमन के शासक ने सत्ता हादी (Hadi's) के विरुद्ध शिया मुसलमानों (हूती) को सत्ता स्थानांतरित कर दी। हूती को ईरान का समर्थन है, जबकि सऊदी अरब हूती के विरुद्ध है।
  • वर्ष 2014 के अंत में सना में हादी की सरकार को सत्ता से बेदखल करने के बाद से यमन हिंसा में घिर गया है जिससे सऊदी के नेतृत्त्व वाले गठबंधन को हस्तक्षेप करने के लिये प्रेरित किया।
  • इस विद्रोह को सऊदी अरब और ईरान के बीच छद्म युद्ध के रूप में देखा गया।

सऊदी अरब का हस्तक्षेप:

  • शिया हूती विद्रोहियों ने यमन की राजधानी सना (Sanaa) पर कब्जा कर लिया और राष्ट्रपति हादी की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सरकार को दक्षिणी हिस्से में सिमटना पड़ा, तब सऊदी अरब ने यमन में हस्तक्षेप करना शुरू किया। 
  • सऊदी अरब ने ईरान पर अरब प्रायद्वीप में अस्थिरता लाने और शिया हूती विद्रोहियों को आर्थिक सहायता देने का आरोप लगाया था। वस्तुतः इस प्रायद्वीप में स्थिरता स्थापित करना सऊदी अरब की योजना थी।

सऊदी अरब और ईरान के बीच झगड़े का कारण:

  • सऊदी अरब सुन्नी प्रधान देश है तथा स्वयं को इस्लामी नेतृत्त्वकर्त्ता के रूप में प्रदर्शित करता है।
  • दोनों देशों की शासन प्रणाली में अंतर है।
  • पर्शियन गल्फ में स्थित द्वीपों को लेकर भी दोनों देशों में मतभेद है ।
  • ईरान परंपरागत रूप से अमेरिकी विरोधी रहा है जबकि सऊदी अरब अमेरिका का प्रमुख सामरिक सहयोगी रहा है। 

भारत का हित: 

  • पश्चिमी एशिया के संबंध में कोई भी निर्णय करते समय भारत इन देशों के साथ जटिल संबंधों के निम्नलिखित पहलुओं पर विचार करके ही कोई निर्णय लेता है। 
    • भारतीय डायस्पोरा
    • ‘इस्लामी सहयोग संगठन’ (Organisation of Islamic Cooperation) की भूमिका 
    • भारतीय तेल आयात 
    • अमेरिका का हस्तक्षेप 
    • भारत में अल्पसंख्यकों की उपस्थिति 

आगे की राह:

  • पिछले कुछ समय से आर्थिक प्रतिबंधों को झेल रहे ईरान के कारण भारत का तेल आयात प्रभावित हो रहा है। ऐसे में दक्षिण-पश्चिम एशिया में स्थित सऊदी अरब भारत के लिये एक बेहतर विकल्प उपलब्ध कराता है। यह न सिर्फ तेल की दृष्टि से बल्कि भारतीय कामगारों की दृष्टि से भी पश्चिम एशिया में महत्त्व रखता है।  

स्रोत: द हिंदू